Class-12
Political Science
Chapter- 4
(भारत के विदेश संबंध)
अतिलघु
उत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न
1. गुटनिरपेक्षता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विश्व के किसी भी गुट में सम्मिलित न होते हुए, राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन
करना गुटनिरपेक्षता कहलाता है।
प्रश्न
2. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इण्डियन नेशनल आर्मी (आई.एन.ए.) का गठन किसने
किया था?
उत्तर:
सुभाष चन्द बोस ने।
प्रश्न
3. भारत की विदेश नीति का निर्माता किसे माना जाता है?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू को भारत की विदेश नीति का निर्माता माना जाता
है।
प्रश्न
4. नाटो का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization)।
प्रश्न
5. अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
4 अप्रैल 1949 को।
प्रश्न
6. नेहरू जी की विदेश नीति के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
1. कठिन
संघर्ष से प्राप्त संप्रभुत्ता को बचाए रखना।
2. क्षेत्रीय
अखण्डता को बनाए रखना।
प्रश्न
7. भारतीय विदेश नीति के किन्हीं दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1. गुटनिरपेक्षता
2. पंचशील।
प्रश्न
8. किस सम्मेलन के माध्यम से गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी?
उत्तर:
बांडुंग सम्मेलन के माध्यम से गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी।
प्रश्न
9. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम सम्मेलन कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम सम्मेलन सितम्बर 1961 में बेलग्रेड में हुआ।
प्रश्न
10. चीन में क्रान्ति कब हुई?
उत्तर:
सन् 1949 में चीन की क्रान्ति हुई।
प्रश्न
11. पंचशील के सिद्धान्तों की घोषणा कब और किसने की?
उत्तर:
29 अप्रैल, 1954 को भारतीय प्रधानमंत्री पं.
जवाहरलाल नेहरू एवं चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से पंचशील के
सिद्धान्तों की घोषणा की।
प्रश्न
12. तिब्बत के किस धार्मिक नेता ने कब भारत में शरण ली?
उत्तर:
तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने सन् 1959 में भारत में शरण ली।
प्रश्न
13. चीन ने भारत पर कब आक्रमण किया?
उत्तर:
चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को
भारत पर आक्रमण किया।
प्रश्न
14. भारत - चीन के बीच सबसे बड़ा मुददा क्या रहा है?
उत्तर:
सीमा विवाद।
प्रश्न
15. सिन्धु नदी जल संधि कब व किसके मध्य हुई?
उत्तर:
सिन्धु नदी जल संधि भारत और पाकिस्तान के मध्य सन् 1960 में हुई थी। इस पर पं. जवाहरलाल नेहरू व जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किये
थे।
प्रश्न
16. सन् 1965 ई. में किन दो देशों के मध्य युद्ध हुआ?
उत्तर:
सन् 1965 ई. में भारत और पाकिस्तान के मध्य
युद्ध हुआ।
प्रश्न
17. ताशकंद समझौता कब व किसके मध्य हुआ?
अथवा
ताशकन्द समझौता किन दो देशों के बीच हुआ था?
अथवा
1966 में ताशकंद समझौता किन दो राष्ट्रों के मध्य हुआ?
उत्तर:
सन् 1966 में भारत और पाकिस्तान के मध्य
ताशकंद समझौता हुआ।
प्रश्न
18. ताशकंद समझौता कहाँ हुआ था?
अथवा
ताशकंद समझौते पर किसने हस्ताक्षर किए और कब?
उत्तर:
ताशकंद समझौता भारत - पाकिस्तान के मध्य सन् 1966 में तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकंद शहर में हुआ था। इस पर लाल बहादुर
शास्त्री व जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे।
प्रश्न
19. बांग्लादेश का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1971 में बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
प्रश्न
20. सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के कोई दो
राजनीतिक परिणाम बताइए।
उत्तर:
1. बांग्लादेश
के रूप में एक स्वतंत्र देश का जन्म।
2. 3 जुलाई,
1972 को इंदिरा गाँधी एंव जुल्फिकार अली भुट्टो के मध्य शिमला
समझौता हुआ।
प्रश्न
21. शिमला समझौता कब व किसके मध्य हुआ और इस पर किसने हस्ताक्षर किये?
अथवा
शिमला समझौते पर कब और किनके बीच हस्ताक्षर किए गए?
उत्तर:
शिमला समझौता 2 जुलाई, 1972 को भारत-पाकिस्तान के मध्य हुआ था। इस समझौते पर श्रीमती इंदिरा गाँधी व
जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किये थे।
प्रश्न
22. करगिल संघर्ष का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर:
करगिल संघर्ष का मुख्य कारण पाकिस्तानी सेना द्वारा विभाजन रेखा के
निकट भारतीय क्षेत्र के कुछ भागों पर कब्जा करना था।
प्रश्न
23. नेहरू जी की औद्योगीकरण की नीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक कौन सा कार्यक्रम
था?
उत्तर:
नेहरूजी की औद्योगीकरण की नीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक परमाणु
कार्यक्रम था।
प्रश्न
24. भारत की परमाणु नीति के कोई दो पक्ष बताइए।
उत्तर:
1. भारत
ने केवल आत्म - रक्षा हेतु परमाणु बमों का निर्माण किया।
2. भारत
ने परमाणु हथियारों का युद्ध में पहले प्रयोग न करने की घोषणा कर रखी है।
प्रश्न
25. भारत ने पहला परमाणु परीक्षण कब किया?
उत्तर:
भारत ने पहला परमाणु परीक्षण मई, 1974 में
किया।
प्रश्न
26. भारत ने द्वितीय परमाणु परीक्षण कब किया?
उत्तर:
भारत ने द्वितीय परमाणु परीक्षण मई 1998 में
किया।
प्रश्न
27. सी.टी.बी.टी व एन.पी.टी. का विस्तृत रूप लिखिए।
उत्तर:
सी.टी.बी.टी.- परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि (Comprehensive
Test Ban Treaty)
एन.पी.टी. - परमाणु अप्रसार संघि (Nuclear Non Proliferation
Treaty)
लघु
उत्तरात्मक प्रश्न (SA1):
प्रश्न
1. विदेश नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विदेश नीति से आशय उस नीति से होता है जो एक देश द्वारा अन्य दूसरे
देशों के साथ सम्बन्ध स्थापना हेतु अपनाई जाती है। वर्तमान युग में कोई भी
स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता है। उसे आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर
रहना पड़ता है। इस सम्बन्ध को स्थापित करने के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करता
है, वह नीति उस देश की विदेश नीति कहलाती है।
प्रश्न
2. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् कई देशों ने शक्तिशाली राष्ट्रों की इच्छानुसार
अपनी विदेश नीति क्यों बनाई थी?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के तत्काल बाद (1945 ई.
के उपरान्त) के दौर में अनेक विकासशील देशों ने शक्तिशाली देशों की मर्जी को ध्यान
में रखते हुए स्वयं की विदेश नीति इसलिए बनाई क्योंकि इन देशों से इन्हें अनुदान
या कर्ज मिल रहा था।
प्रश्न
3. किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति निर्धारित करने के लिए कौन-कौन से कारक
अनिवार्य माने जाते हैं?
अथवा
विदेश नीति के चार अनिवार्य कारक बताइए।
उत्तर:
किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित
चार कारक अनिवार्य माने जाते हैं।
1. राष्ट्रीय
हित
2. राज्य
की राजनीतिक स्थिति
3. पड़ोसी
देशों से सम्बन्ध
4. अंतर्राष्ट्रीय
राजनीतिक वातावरण।
प्रत्येक
राष्ट्र अपनी नीति, जहाँ अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निश्चित करता है,
वहाँ उसे अन्य कारकों, जैसे - बदलती क्षेत्रीय
राजनीति तथा विश्व में होने वाली घटनाओं के प्रभाव का भी ध्यान रखना पड़ता है।
इसके अतिरिक्त विचारधाराएँ, लक्ष्य आदि भी विदेश नीति
निश्चित करने में सहायक होते हैं।
प्रश्न
4. भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।
1. गुटनिरपेक्षता
की नीति।
2. पंचशील।
3. निःशस्त्रीकरण।
4. अंतर्राष्ट्रीय
संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ को पूरी निष्ठा के साथ सहयोग देना।
5. अंतर्राष्ट्रीय
सामान्य समस्याओं के लिए अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए पूरा सहयोग
देना। (vi) अपने पड़ोसी देशों के साथ विशेषकर अच्छे सम्बन्ध बनाने के साथ विश्व की
सभी मुख्य शक्तियों से भी अच्छे सम्बन्ध बनाए रखना।
प्रश्न
5. अनुच्छेद - 51 में वर्णित अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं
सुरक्षा बढ़ाने वाले कोई दो नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनुच्छेद - 51 में वर्णित अन्तर्राष्ट्रीय
शांति एवं सुरक्षा बढ़ाने वाले दो नीति निर्देशक तत्व निम्नलिखित हैं:
1. अन्तर्राष्ट्रीय
शांति व सुरक्षा की अभिवृद्धि करना।
2. राष्ट्रों
के बीच न्यायसंगत एवं सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखना।
प्रश्न
6. गुटनिरपेक्षता की नीति भारत के लिए अपने हित साधनों की दृष्टि से कैसे
सहायक रही?
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे। पहला, कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, दूसरा
क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तीसरा तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। अपनी
गुटनिरपेक्षता की नीति अपना कर भारत ने इन सभी उद्देश्यों को प्राप्त करने का
हरसंभव प्रयास किया।
प्रश्न
7. भारतीय विदेश नीति के दो लक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति के दो लक्ष्य निम्नलिखित हैं।
1. राष्ट्रीय
हित-राष्ट्रीय हितों में आर्थिक क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र तथा राष्ट्रीय
विकास में राष्ट्रीय स्थिरता अथवा स्वामित्व, रक्षा
क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा आदि का विशेष ख्याल रखना पड़ता है।
2. विश्व
की समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण-इसमें मुख्य रूप से विश्व की शान्ति, राज्यों का
सह-अस्तित्व, राज्यों का आर्थिक रूप से विकास, मानव अधिकार आदि शामिल हैं।
प्रश्न
8. नेहरू की विदेश नीति के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। वह किस रणनीति के
द्वारा इन उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहते थे?
उत्तर:
नेहरू जी की विदेश नीति के तीन प्रमुख उद्देश्य थे:
1. कठिन
संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बनाए रखना।
2. क्षेत्रीय
एकता व अखंडता की रक्षा करना,
3. तीव्र
आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
नेहरू
जी इन उद्देदश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति और विश्वशांति और सुरक्षा की नीति
अपनाकर प्राप्त करना चाहते थे।
प्रश्न
9. "विदेश नीति प्रायः राष्ट्रीय हितों से प्रभावित होती है।" क्या आप इस
विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कोई दो उपयुक्त
तर्क दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस विचार से सहमत हूँ कि विदेश नीति
प्रायः राष्ट्रीय हितों से प्रभावित होती है। प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं।
(1) भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन जिन उदान्त विचारों से प्रेरित था
उसका प्रभाव भारत की विदेश नीति पर भी पड़ा।
(2) नेहरू जी की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे।
1. कठिन
संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बनाए रखना
2. क्षेत्रीय
अखण्डता को बनाए रखना
3. (तीव्र गति से
आर्थिक विकास करना।
प्रश्न
10. नेहरू की विदेश नीति के किन्हीं दो उद्देदश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू विदेश मंत्री भी थे।
प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने भारतीय विदेश नीति की रचना और
क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। उनकी विदेश नीति के दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं।
1. कठिन और लम्बी लड़ाई के बाद प्राप्त संप्रभुता को बनाए रखना।
इसके लिए नेहरू गुटनिरपेक्षता की नीति के पैरोकार बने। उन्होंने सोवियत संघ और
अमेरिका दोनों से संतुलित व्यवहार किया।
2. तीव्र गति से देश को आर्थिक विकास के पथ पर ले जाना। नेहरू जी ने
कठिन परिस्थितियों में देश का नेतृत्व संभाला था। किसी एक खेमे के पिछलग्गू बन
जाने के बाद देश का आर्थिक विकास ठप पड़ जाता इसलिए उन्होंने विदेश नीति को देश के
विकास सापेक्ष रखा।
प्रश्न
11. प्रथम एफ्रो - एशियाई एकता सम्मेलन कहाँ और कब हुआ? इसकी
कुछ विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रथम एफ्रो: एशियाई एकता सम्मेलन इण्डोनेशिया के एक बड़े शहर
बांडुग में सन् 1955 में हुआ। विशेषताएँ:
1. इस
सम्मेलन से गुट - निरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी।
2. इस
सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों ने इण्डोनेशिया में नस्लवाद और दक्षिण अफ्रीका
में रंग-भेद का विरोध किया।
प्रश्न
12. भारत और चीन के मध्य सीमा विवाद क्या था? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच एक सीमा विवाद भी उठ खड़ा हुआ था। भारत का दावा
था कि चीन के साथ सीमा-रेखा का मामला ब्रिटिश शासन के समय ही सुलझाया जा चुका है।
लेकिन चीनी सरकार का कहना था कि अंग्रेजी शासन के समय का फैसला नहीं माना जा सकता।
मुख्य विवाद चीन से लगी लम्बी सीमा-रेखा के पश्चिमी और पूर्वी छोर के बारे में था।
दोनों देशों के नेताओं के बीच लम्बी बातचीत चली लेकिन इसके बावजूद मतभेद को सुलझाया
नहीं जा सका।
प्रश्न
13. 1962
में हुए चीन के युद्ध ने किस प्रकार भारत की छवि को देश और विदेश
में धक्का पहुँचाया? किन्हीं चार बिन्दुओं की व्याख्या
कीजिए।
उत्तर:
1962 में हुए भारत-चीन युद्ध ने भारत की छवि को निम्नलिखित तरीकों
से धक्का पहुँचाया:
1. आधुनिक
हथियारों की कमी की वजह से भारत युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ। उसका भू-क्षेत्र
भी उससे छिन गया।
2. भारत
को ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों से मदद माँगनी पड़ी।
3. कई
सैनिक भारत की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हालत से निराश थे और इस कारण से
उन्होंने त्याग पत्र दे दिया।
4. रक्षा
मंत्री कृष्णा मेनन ने त्याग पत्र दे दिया। वल्लभभाई पटेल द्वारा दी गई चेतावनी के
बावजूद चीन के इरादे की पहचान करने में विफल रहने के कारण नेहरू की छवि भी खराब हो
गई थी।
प्रश्न
14. भारत और चीन के बीच 1962 के संघर्ष के फलस्वरूप
किन्हीं चार दूरगामी परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच 1962 के संघर्ष के
फलस्वरूप चार दूरगामी परिणाम निम्नलिखित हैं:
1. भारत
की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह पर धक्का लगा।
2. चीन
युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुंची लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्र
भावना भी बलवती हुई।
3. इसने
विपक्षी दलों पर भी प्रभाव डाला। चीन का पक्षधर कम्युनिस्ट खेमे के कारण भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में टूट गई और उसने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(मार्क्सवादी) बनाया।
4. चीन के
साथ युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डाँवाडोल स्थिति के प्रति सचेत
किया। पिछड़े और अलग-थलग दशा में पड़े इस क्षेत्र की ओर हर तरह से ध्यान देने की
आवश्यकता अनुभव की गई।
प्रश्न
15. 'स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र' से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चीन ने 'स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र' बनाया है और इस इलाके को वह चीन का अभिन्न अंग मानता है। तिब्बती जनता चीन
के इस दावे को नहीं मानती कि तिब्बत चीन का अभिन्न अंग है। अधिक संख्या में चीनी
लोगों को तिब्बत लाकर वहाँ बसाने की चीन की नीति का तिब्बती जनता ने विरोध किया।
तिब्बती चीन के इस दावे को भी अस्वीकार करते हैं कि तिब्बत को स्वायत्तता दी गयी
है। वे मानते हैं कि तिब्बत की पारम्परिक संस्कृति और धर्म को नष्ट करके चीन वहाँ
साम्यवाद फैलाना चाहता है।
प्रश्न
16. दलाई लामा ने भारत में शरण क्यों ली?
उत्तर:
दलाई लामा तिब्बत के धार्मिक नेता हैं। चीन ने सन् 1950 में जब तिब्बत पर अधिकार कर लिया तो तिब्बत के अधिकांश लोगों ने चीनी
कब्जे का विरोध किया। सन् 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध
तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ जिसे चीनी सेनाओं ने दबा दिया। तिब्बत को स्थिति
अधिक बिगड़ने पर सन् 1959 में दलाई लामा ने भारत में शरण ली।
प्रश्न
17. भारत द्वारा दलाई लामा को दी गई शरण का चीन ने विरोध क्यों किया?
उत्तर:
भारत द्वारा दलाई लामा को दी गई शरण का चीन ने इसलिए विरोध किया कि
चीन तिब्बत को अपना अभिन्न अंग मानता है। उसने तिब्बत को स्वायत्त क्षेत्र बनाया
तथा चीनी जनता को तिब्बत लाकर बसाना चाहता था।
प्रश्न
18. ताशकंद समझौता क्या था?
उत्तर:
सन् 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच कहीं
ज्यादा गम्भीर किस्म के सैन्य संघर्ष की शुरुआत हुई। भारत की सेनो आगे बढ़ते हुए
लाहौर के नजदीक तक पहुँच गयी। संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से इस लड़ाई का
अंत हुआ। बाद में, भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री
और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सन् 1966 ई. में
ताशकंद समझौता हुआ। सोवियत संघ ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई।
प्रश्न
19. 1965
में हुए भारत - पाकिस्तान युद्ध की किन्हीं चार मुख्य घटनाओं का
वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध की चारप्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित
हैं।
1. अप्रैल
1965 में पाकिस्तान ने गुजरात के कच्छ क्षेत्र के रण में सैनिक हमला बोला।
2. अगस्त
- सितम्बर में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर हमला किया।
3. कश्मीर
मोर्चे पर पाकिस्तान को रोकने के लिए भारतीय सेना ने पंजाब की सीमा से हमला किया।
4. भारत
की सेना लाहौर तक पहुँच गयी जिससे पाकिस्तान कमजोर स्थिति में पहुँच गया।
प्रश्न
20. करगिल संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सन् 1999 को मुख्य रूप में भारतीय इलाके की नियंत्रण
सीमा रेखा के कई ठिकानों, जैसे - द्रास, माश्कोह, काकसर और बतालिक पर अपने को मुजाहिदीन
बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना की इसमें मिलीभगत भाँपकर भारतीय
सेना इस कब्जे के खिलाफ हरकत में आई। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया।
इसे 'करगिल संघर्ष' के नाम से जाना
जाता है। 26 जुलाई, 1999 तक भारत अपने
अधिकतर ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था।
प्रश्न
21. करगिल संघर्ष के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
'करगिल संघर्ष' के निम्नलिखित कारण थे
1. 1999 के
शुरुआती महीनों में मुजाहिदीनों द्वारा भारतीय सीमा के भीतर कुछ क्षेत्रों पर
कब्जा कर लेना।
2. पाकिस्तानी
सेना की मिली - भगत एवं प्रोत्साहन।
3. पाकिस्तानी
सेना की घुसपैठ।
प्रश्न
22. शिमला समझौता क्या था? इस पर हस्ताक्षर करने वालों
के नाम लिखिए।
उत्तर:
1971 के युद्ध के पश्चात भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला में हुए
समझौते को शिमला समझौता कहा जाता है। इस पर भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गाँधी और पाकिस्तान की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने
हस्ताक्षर किए थे।
प्रश्न
23. निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए।
1. भारत - चीन युद्ध - 1966
2. ताशकंद समझौता - 1962
3. शिमला समझौता - 1954
4. पंचशील की घोषणा - 1972
उत्तर:
1. भारत-चीन
युद्ध - 1962
2. ताशकंद
समझौता - 1966
3. शिमला
समझौता - 1972
4. पंचशील
की घोषणा - 1954.
प्रश्न
24. भारत के परमाणु कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत ने सन् 1974 के मई में परमाणु परीक्षण
किया। भारत ने परमाणु अप्रसार के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की गयी संधियों का
विरोध किया क्योंकि ये संधियाँ उन्हीं देशों पर लागू होने को थीं जो परमाणु-शक्ति
से हीन थे। भारत ने मई 1998 में परमाणु परीक्षण किए और यह
जताया कि उसके पास सैन्य उद्देश्यों के लिए अणु - शक्ति को प्रयोग में लाने की
क्षमता है। इसके तुरन्त बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किए। भारत की परमाणु
नीति में यह बात दुहराई गयी है कि भारत वैश्विक स्तर पर लागू और भेदभावहीन परमाणु
निशस्त्रीकरण के प्रति वचनबद्ध है।
प्रश्न
25. निःशस्त्रीकरण का समर्थन करने के बावजूद भारत ने परमाणु परीक्षण क्यों किए?
उत्तर:
भारत ने मई 1998 में परमाणु परीक्षण किए और यह
जताया कि उसके पास सैन्य उद्देश्यों के लिए अणु - शक्ति को इस्तेमाल में लाने की
क्षमता है। इसके तुरन्त बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किए। इससे क्षेत्र में
परमाणु युद्ध की आशंकाओं को बल मिला। भारत की परमाणु नीति में सैद्धान्तिक तौर पर
यह बात स्वीकार की गयी कि भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन इन
हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा।
प्रश्न
26. भारत ने परमाणु अप्रसार के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की गयी संधियों का
विरोध क्यों किया?
अथवा
भारत ने सी.टी.बी.टी. पर हस्ताक्षर करने से क्यों इंकार कर दिया?
उत्तर:
भारत ने परमाणु अप्रसार के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की गयी संधियों
का विरोध इसलिए किया क्योंकि ये संधियाँ उन्हीं देशों पर लागू होने को थीं जो
परमाणु - शक्ति विहीन थे। इन संधियों के द्वारा परमाणु हथियारों से सम्पन्न देशों
की परमाणु शक्ति पर एकाधिकार को वैधता दी जा रही थी। इसी कारण भारत ने व्यापक
परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि पर (सी.टी.बी.टी. ) हस्ताक्षर करने से इंकार कर
दिया।
प्रश्न
27. सन् 1990 के पश्चात भारत की विदेश नीति में क्या
महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए?
उत्तर:
सन् 1990 के बाद से भारत के लिए रूस का
अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व कम हुआ है इसी कारण भारत की विदेश नीति में अमेरिका
समर्थक रणनीतियाँ अपनाई गयी हैं। इसके अलावा, वर्तमान
अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में सैन्य - हितों की अपेक्षा आर्थिक-हितों का जोर ज्यादा
है। इसके साथ-ही-साथ इस अवधि में भारत-पाक सम्बन्धों में भी कई नई बातें जुड़ीं।
कश्मीर दोनों देशों के बीच मुख्य मसले के तौर पर कायम है लेकिन सम्बन्धों को सामान्य
बनाने के लिए दोनों देशों ने कई प्रयास किए हैं।
लघु
उत्तरात्मक प्रश्न (SA2):
प्रश्न
1. किसी देश के लिए विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करना क्यों महत्त्वपूर्ण होता
है?
उत्तर:
प्रत्येक संप्रभुता सम्पन्न राष्ट्र के लिए विदेशी सम्बन्ध सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि उसकी स्वतंत्रता बुनियादी तौर पर विदेशी सम्बन्धों
से ही बनी होती है। यही स्वतंत्रता की कसौटी भी है। बाकी सब कुछ तो स्थानीय
स्वायत्तता है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को आंतरिक तथा
बाहरी कारक निर्देशित करते हैं उसी प्रकार एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू और
अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
विकासशील देशों के पास अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने
सरोकारों को पूर्ण करने के लिए आवश्यक संसाधनों का अभाव होता है। इसके कारण वे
बड़े सीधे - सादे लक्ष्यों को लेकर अपनी विदेश नीति तय करते हैं। ऐसे देशों का जोर
इस बात पर होता है कि उनके पड़ोस में शांति स्थापित रहे तथा विकास होता रहे। इसके
अलावा विकासशील देश आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से अधिक ताकतवर देशों पर निर्भर
होते हैं।
इस निर्भरता का भी उनकी विदेश नीति पर असर पड़ता है। जैसे भारत ने
भी अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धान्त पर आधारित किया है।
अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन
उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत ने विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्वक सम्बन्ध
स्थापित किये हैं। इसी कारण भारत आज आर्थिक, राजनीतिक व
सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है।
प्रश्न
2. विदेश नीति से सम्बन्धित नीति-निदेशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
किन्हीं दो नीति निदेशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए, जिनका सम्बन्ध विदेश नीति से है।
अथवा
भारतीय संविधान में दिए गए विदेश नीति सम्बन्धी राज्य के नीति
निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में राजनीति के निदेशक सिद्धान्तों में केवल राज्य
की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए हैं बल्कि भारत को
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए, के
बारे में भी निर्देश दिए गए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में 'अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के बढ़ावे'
के लिए राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्तों के माध्यम से कहा गया है
कि राज्य :
1. अन्तर्राष्ट्रीय
शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
2. राष्ट्रों
के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने का,
3. संगठित
लोगों से एक - दूसरे से व्यवहार में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और संधि - बाध्यताओं के
प्रति आदर बढ़ाने का, और
4. अन्तर्राष्ट्रीय
विवादों को पारस्परिक बातचीत द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास
करेगा।
प्रश्न
3. भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का संक्षेप में
वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य अथवा उद्देश्य राष्ट्रीय हितों
की पूर्ति व विकास करना है। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं
1. अन्तर्राष्ट्रीय
शान्ति व सुरक्षा का समर्थन करना एवं पारस्परिक मतभेदों के शान्तिपूर्ण समाधान का
प्रयत्न करना।
2. शस्त्रों
की होड़ - विशेष तौर से आण्विक शस्त्रों की होड़ का विरोध करना व व्यापक
नि:शस्त्रीकरण का समर्थन करना।
3. राष्ट्रीय
सुरक्षा को बढ़ावा देना जिससे राष्ट्र की स्वतन्त्रता व अखण्डता पर मँडराने वाले
हर प्रकार के खतरे को रोका जा सके।
4. विश्वव्यापी
तनाव दूर करके पारस्परिक समझौते को बढ़ावा देना तथा संघर्ष नीति व सैन्य गुटबाजी
का विरोध करना।
5. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद,
नस्लवाद, पृथकतावाद एवं सैन्यवाद का विरोध
करना।
6. शान्तिपूर्ण
सह-अस्तित्व तथा पंचशील के आदर्शों को बढ़ावा देना।
7. विश्व
के समस्त राष्ट्रों विशेष रूप से पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध
बनाए रखना।
8. राष्ट्रों
के बीच संघर्षपूर्ण वातावरण को कम करना तथा उनमें परस्पर सूझ-बूझ व मैत्रीपूर्ण
सम्बन्धों को बढ़ावा देना।
प्रश्न
4. भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का महत्त्व बताइये। भारत ने
गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनाई है?
उत्तर:
भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का महत्त्व-गुटनिरपेक्षता का
अर्थ है कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के सम्बन्ध में अपनी स्वतंत्र निर्णय लेने
की नीति का पालन करता है। भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनी विदेश नीति में
गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्त को अत्यधिक महत्त्व दिया। भारत प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय
समस्या का समर्थन या विरोध उसमें निहित गुण और दोषों के आधार पर करता है। भारत ने
यह नीति अपने देश की राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक स्थितियों
को देखते हुए अपनाई है। भारत की विभिन्न सरकारों ने अपनी विदेश नीति में
गुटनिरपेक्षता की नीति ही अपनाई है।
भारत
द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण-भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति
को अपनाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
1. किसी
भी गुट के साथ मिलने तथा उसका पिछलग्गू बनने से राष्ट्र की स्वतन्त्रता कुछ हद तक
अवश्य प्रभावित होती है।
2. भारत
ने अपने को गुट संघर्ष में शामिल करने की अपेक्षा देश की आर्थिक, सामाजिक तथा
राजनीतिक प्रगति की ओर ध्यान देने में अधिक लाभ समझा क्योंकि हमारे सामने अपनी
प्रगति अधिक महत्त्वपूर्ण है।
3. भारत
स्वयं एक महान देश है तथा इसे अपने क्षेत्र में अपनी स्थिति को महत्त्वपूर्ण बनाने
हेतु किसी बाहरी शक्ति की आवश्यकता नहीं थी।
प्रश्न
5. गुटनिरपेक्षता की नीति किन-किन सिद्धान्तों पर आधारित है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को
अपनाया। भारत ने यह नीति अपने देश की राजनीतिक, आर्थिक तथा
भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अपनाई है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को जन्म देने तथा
उसको बनाए रखने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। गुटनिरपेक्षता की नीति
मुख्य रूप से निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित है:
1. गुटनिरपेक्ष
राष्ट्र दोनों गुटों से अलग रहकर अपनी स्वतंत्र नीति अपनाते हैं और गुण-दोषों के
आधार पर दोनों गुटों का समर्थन या आलोचना करते हैं।
2. गुटनिरपेक्ष
राष्ट्र सभी राष्ट्रों से मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं तथा
इन्हें तटस्थ रहने की कोई विधिवत् औपचारिक घोषणा नहीं करनी पड़ती।
3. गुटनिरपेक्ष
राष्ट्र युद्धरत किसी पक्ष से सहानुभूति अवश्य रख सकते हैं। ऐसी स्थिति में वे
सैनिक सहायता के स्थान पर घायलों के लिए दवाइयाँ व चिकित्सा-सुविधाएँ उपलब्ध करा
सकते हैं।
4. गुटनिरपेक्ष
राष्ट्र निष्पक्ष रहते हैं, वे युद्धरत देशों को अपने क्षेत्र
में युद्ध करने की अनुमति नहीं देते तथा न ही उन्हें किसी अन्य देश के साथ युद्ध
करने हेतु सामरिक सुविधा प्रदान करते हैं।
5. गुटनिरपेक्ष
राष्ट्र किसी प्रकार की सैनिक संधि या गुप्त समझौता करके किसी भी गुटबंदी में
शामिल नहीं होते हैं।
प्रश्न
6. भारत की विदेश नीति के निर्माण में नेहरू की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत की विदेश नीति के निर्माण में भारत के पहले प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेंडा तय
करने में निर्णायक भूमिका निभाई। 1946 - 64 तक उन्होंने भारत
की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन किया। नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े
उद्देश्य थे-कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बनाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखना और आर्थिक विकास। नेहरू ने गुटनिरपेक्षता की
नीति की नींव रखी और एफ्रो-एशियाई और भारत की स्वतंत्रता के बाद अन्य देशों के साथ
कूटनीतिक सम्बन्धों की स्थापना की।
प्रश्न
7. अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिए जिनमें भारत ने
स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के ऐसे दो उदाहरण निम्नांकित रूप से
प्रस्तुत हैं जिनमें भारत ने स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।
(i) भारत ने एक स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई तथा अपने राष्ट्रीय हितों
को मध्य में रखकर ही निष्पक्षता से सभी अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर, गुण-दोष के आधार पर, निर्भय होकर अन्तर्राष्ट्रीय
संस्थाओं को सहयोग देने, उपनिवेशवाद, रंगभेदभाव
समाप्त करने के साथ - साथ (एक स्वतंत्र राज्य के रूप में) अन्तर्राष्ट्रीय मामलों
में सहभागिता शुरू की तथा आज तक कर रहा है।
भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा की अभिवृद्धि की।
शीतयुद्ध के दौरान भारत न तो संयुक्त राज्य अमेरिका और न ही सोवियत संघ के खेमे
में सम्मिलित हुआ तथा उसने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को शुरू करने, समय-समय पर होने वाले उसके सम्मेलनों में स्वेच्छा एवं पूर्ण निष्पक्षता
से भाग लिया।
(ii) भारत ने शान्ति व विकास के लिए परमाणु ऊर्जा व शक्ति के प्रयोग
का समर्थन किया है तथा निर्भय होकर सन् 1998 में परमाणु
परीक्षण का निर्णय लिया और उसे उचित बताया क्योंकि भारत चारों ओर परमाणु हथियारों
से सम्पन्न देशों से घिरा हुआ है। भारत ने सभी मंचों से पर्यावरण संरक्षण तथा
प्राकृतिक संसाधनों के न्यायपूर्ण उपयोग हेतु समर्थन एवं सहयोग दिया है, जैसे- भारत ने अपनी “नेशनल ऑटो-फ्यूल पॉलिसी"
के अन्तर्गत वाहनों के लिए स्वच्छ ईंधन अनिवार्य कर दिया है।
प्रश्न
8. भारत की विदेश नीति की एक विशेषता के रूप में "अन्तर्राष्ट्रीय
विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान" पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आधुनिक समय में प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्पर्क
स्थापित करने के लिए विदेश नीति निर्धारित करनी पड़ती है। सामान्य शब्दों में,
विदेश नीति से अभिप्राय उस नीति से है जो एक देश द्वारा अन्य देशों
के प्रति अपनाई जाती है। भारत ने भी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। इसकी अनेक विशेषताएँ
हैं और उनमें से एक विशेषता है-अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शान्तिपूर्ण समाधान।
इस
कार्य के सफलतापूर्वक संचालन हेतु भारत ने विश्व को पंचशील के सिद्धान्त दिए तथा
हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन किया। समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ
द्वारा किए गए शान्ति प्रयासों में भारत ने हर प्रकार की सहायता प्रदान की, जैसे-स्वेज
नहर की समस्या, हिन्द-चीन का प्रश्न, वियतनाम
की समस्या, कांगो की समस्या, साइप्रस
की समस्या, भारत-पाकिस्तान युद्ध, ईरान-इराक
युद्ध आदि अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए भारत ने भरपूर
प्रयत्न किए तथा अपने अधिकांश प्रयत्नों में सफलता भी प्राप्त की।
प्रश्न
9. भारतीय विदेश नीति के वैचारिक मूलाधारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति के वैचारिक मूलाधारों की चर्चा निम्न प्रकार की
जा सकती है।
1. भारतीय
विदेश नीति का उदय विश्व में होने वाले राष्ट्रीय आन्दोलनों के युग में हुआ था।
अत: यह स्पष्ट है कि भारतीय विदेश नीति का जन्म विशेष परिस्थितियों में हुआ था।
2. भारतीय
विदेश नीति का उदय दूसरे विश्व युद्ध के बाद परस्पर निर्भरता वाले विश्व के दौर
में हुआ था।
3. भारतीय
विदेश नीति के मूलाधारों को उपनिवेशीकरण के विघटन की प्रक्रिया का भी एक कारक माना
जा सकता है।
4. भारतीय
विदेश नीति का जन्म उस समय हुआ था जब विश्व में सामाजिक, आर्थिक
व राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे।
प्रश्न
10. एफ्रो - एशियाई एकता को बढ़ावा देने के लिए जवाहरलाल नेहरू द्वारा किए गए
प्रयासों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
एफ्रो - एशियाई एकता के लिए बांडुंग सम्मेलन का महत्त्व निर्विवाद
है। इस सम्मेलन को आयोजित कराने में भारत की भूमिका सर्व प्रमुख थी। एफ्रो -
एशियाई एकता सम्मेलन 1955 में इंडोनेशियाई शहर बांडुंग में
हुआ था। सामान्यतः इसे बांडुंग सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। नव स्वतंत्र
एशियाई और अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंध चरम सीमा पर थे। गुटनिरपेक्ष आंदोलन
का पहला सम्मेलन सितम्बर 1961 में बेलग्रेड में आयोजित किया
गया था।
इसके सह - संस्थापक नेहरू थे। इसके आकार, स्थान
और क्षमता, नेहरू ने विश्व मामलों में और विशेष रूप से
एशियाई मामलों में भारत के लिए एक बड़ी भूमिका निभायी थी। इस युग में एशिया और
अफ्रीका में भारत और नव-स्वतंत्र राज्यों के बीच सम्पर्कों की स्थापना को चिन्हित
किया गया। 1940 और 1950 के दशक के
दौरान नेहरू एफ्रो - एशियाई एकता के प्रबल समर्थक थे। उनके नेतृत्व में उपनिवेशवाद
और नस्लवाद के विरोध की अलख को जलाया गया। इन दो समस्याओं से अफ्रीकी और एशियाई
देश पीड़ित थे। इन्हीं विचार बिन्दुओं पर एफ्रो - एशियाई एकता की आधारशिला रखी गयी
थी।
प्रश्न
11. तिब्बत, भारत और चीन के मध्य तनाव का बड़ा मामला
कैसे बना? बताइए।
अथवा
तिब्बत का मसला क्या था? भारत और चीन के
बीच यह तनाव का विषय कैसे बन गया? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ऐतिहासिक रूप से तिब्बत, भारत व चीन के मध्य
विवाद का बड़ा मामला रहा है। अतीत में समय-समय पर चीन ने तिब्बत पर अपना प्रशासनिक
नियंत्रण जताया तथा कई बार तिब्बत स्वतंत्र भी हुआ। सन् 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। तिब्बत के अधिकतर लोगों ने चीनी
कब्जे का विरोध किया।
सन् 1958 में चीनी
आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीन की सेनाओं
ने दबा दिया। स्थिति को बिगड़ता हुआ देखकर तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने
सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया तथा सन् 1959 में भारत से
शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध
किया।
सन् 1950 और 1960
के दशक में भारत के अनेक राजनीतिक दल तथा राजनेताओं ने तिब्बत की
आजादी के प्रति अपना समर्थन जताया। इन दलों में सोशलिस्ट पार्टी तथा जनसंघ शामिल
थे। चीन ने 'स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र' बनाया
है और इस क्षेत्र को वह चीन का अभिन्न अंग मानता है। तिब्बती जनता चीन के इस दावे
को नहीं मानती कि तिब्बत, चीन का अभिन्न अंग है।
अधिक से अधिक संख्या में चीनी लोगों को तिब्बत लाकर वहाँ बसाने की
चीन की नीति का तिब्बती जनता ने विरोध किया। तिब्बती, चीन के
इस दावे को भी अस्वीकार करते हैं कि तिब्बत को स्वायत्तता दी गयी है। वे मानते हैं
कि तिब्बत की धार्मिक संस्कृति तथा धर्म को नष्ट करके चीन वहाँ साम्यवाद फैलाना
चाहता है।
प्रश्न
12. 1962
में हुए चीन के युद्ध ने किस प्रकार भारत की छवि को देश और विदेश
में धक्का पहुँचाया? किन्हीं चार बिन्दुओं की व्याख्या
कीजिए।
उत्तर:
1962 के भारत - चीन चुद्ध ने भारत की छवि को निम्नलिखित तरीकों से
धक्का पहुँचाया
1. आधुनिक
हथियारों की कमी की वजह से भारत युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ। उसका भू-क्षेत्र
भी उससे छिन गया।
2. भारत
को ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों से मदद माँगनी पड़ी।
3. कई
सैनिक भारत की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हालत से निराश थे और इस कारण से
उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
4. रक्षा
मंत्री कृष्णा मेनन ने इस्तीफा दे दिया। वल्लभभाई पटेल द्वारा दी गई चेतावनी के
बावजूद चीन के इरादे की पहचान करने में विफल रहने के कारण नेहरू की छवि भी खराब हो
गई थी।
प्रश्न
13. 1947
से 1962 तक भारत - चीन संबंधों का वर्णन
कीजिए।
उत्तर:
1947 से 1962 तक भारत - चीन के सम्बन्ध।
(i)
1947 से भारत - चीन के सम्बन्धों की शुरुआत मित्रतापूर्ण वातावरण
में हुई थी। 1949 में चीनी क्रांति हुई थी। क्रांति के बाद
ची की साम्यवादी सरकार को मान्यता देने वाले पहले देशों में भारत भी था।
(ii) तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू चीन के प्रति अत्यंत संवेदनापूर्ण भाव
रखते थे। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चीनी सरकार को मान्यता दिलाने में सहायता
की थी।
(iii) भारत तथा चीन के संबंधों में 1950 के बाद तनाव आने
लगा। 1950 में ही चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। चीन के
द्वारा तिब्बत की संस्कृति को कुचलने की खबरों से भारत बेचैन होने लगा। 1959
में तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा को भारत ने राजनीतिक शरण प्रदान
की। चीन ने इसे अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप समझा।
(iv)
भारत के प्रधानमंत्री नेहरू तथा चीन के प्रमुख चाऊ एन. लाई के बीच 29
अप्रैल 1954 को पंचशील समझौता हुआ। 1957
से 1959 के बीच चीन ने अक्साई-चीन के क्षेत्र
पर कब्जा कर लिया। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों पर अपना अधिकार
जताया। अक्टूबर 1962 में चीन द्वारा इन दोनों क्षेत्रों पर
आक्रमण कर दिया गया तथा अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया गया। इस
प्रकार काफी समय तक दोनों देशों के सम्बन्ध खराब रहे।
प्रश्न
14. 'हकीकत' नामक फिल्म पर एक टिप्पणी लिखिए तथा बताइए कि
यह फिल्म किस युद्ध की पृष्ठभूमि व किस प्रकार सैनिकों के देश-प्रेम तथा बलिदान की
अमर गाथा को अभिव्यक्त करती है?
उत्तर:
'हकीकत' नामक फिल्म सन् 1964 में चेतन आनन्द के कुशल निर्देशन में बनी। इसके मुख्य अभिनेता धर्मेन्द्र,
प्रिया राजवंश, बलराज साहनी, संजय खान, विजय आनन्द, जयन्त,
सुधीर आदि थे।
फिल्म
की पृष्ठभूमि तथा सैनिक बलिदान-हकीकत फिल्म की पृष्ठभूमि में सन् 1962 के चीनी
आक्रमण को दर्शाया गया है। भारतीय सेना की एक छोटी टुकड़ी लद्दाख क्षेत्र में घिर
गयी है। सेना का कप्तान बहादुर सिंह स्थानीय घुमंतू कबीले की एक लड़की कम्मो की
सहायता से इस टुकड़ी को बाहर निकालने का प्रयत्न करता है। इस प्रयत्न में बहादुर
सिंह और कम्मो दोनों शहीद हो जाते हैं। भारतीय टुकड़ी के जवान पूरे प्राणपण से
चीनी सैनिकों से मुकाबला करते हैं। अंततः उन्हें अपनी जान न्यौछावर करनी पड़ती है।
फिल्म
का महत्त्व - 'हकीकत' नामक
फिल्म सेना के जवानों के सामने आने वाली चुनौतियों, परेशानियों
के साथ - साथ चीनी विश्वासघात से उपजी राजनीतिक निराशा का भी मुआयना कराती है। इस
फिल्म में युद्ध के दृश्यों को रचने के लिए 'डॉक्यूमेंटरी
फुटेज' का बहुत प्रयोग किया गया है। इस प्रकार 'हकीकत' फिल्म युद्ध पर आधारित फिल्मों की श्रेणी में
अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
प्रश्न
15. 1971
में हुए बांग्लादेश युद्ध के किन्हीं चार परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1971 में हुए बांग्लादेश युद्ध के निम्नलिखित परिणाम थे।
1. यह
युद्ध 'शिमला समझौते' से समाप्त हुआ। इंदिरा गाँधी और
जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच यह समझौता हुआ था।
2. बांग्लादेश
के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र का उदय हुआ।
3. अधिकांश
भारतीयों ने इसे गौरव की घड़ी के रूप में देखा और माना कि भारत का सैन्य-पराक्रम
प्रबल हुआ है।
4. इस समय
भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी थीं। 1971 के लोकसभा चुनावों में उन्हें
विजय मिली थी। 1971 की जंग के बाद इंदिरा गाँधी की
लोकप्रियता को चार चाँद लग गए। इस युद्ध के बाद अधिकतर राज्यों में विधानसभा के
चुनाव हुए और अनेक राज्यों में कांग्रेस पार्टी बड़े बहुमत से जीती।
प्रश्न
16. भारतीय परमाणु नीति की किन्हीं दो विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय परमाणु नीति की विशेषताएँ- भारत की परमाणु नीति की दो प्रमुख
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. भारत ने परमाणु अप्रसार के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की गई संधियों का
विरोध किया क्योंकि ये संधियाँ उन्हीं देशों पर लागू होने को थीं जो परमाणु शक्ति
से हीन थे। इन संधियों के द्वारा परमाणु हथियारों से लैस देशों की जमात के परमाणु
शक्ति पर एकाधिकार को वैधता दी जा रही थी। इसी कारण 1995 में
जब परमाणु-अप्रसार संधि को अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया तो भारत ने इसका विरोध
किया और उसने व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (कंप्रेहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी
- सीटीबीटी) पर भी हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
2. भारत ने 1998 के मई से परमाणु परीक्षण किए और यह
जताया कि उसके पास सैन्य उद्देश्यों के लिए अणुशक्ति को इस्तेमाल में लाने की
क्षमता है। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी भारतीय उपमहाद्वीप में हुए
इस
परमाणु परीक्षण को लेकर बहुत नाराज थी और उसने कुछ प्रतिबंध लगाए जिन्हें बाद में
हटा लिया गया। भारत की परमाणु नीति में सैद्धान्तिक तौर पर यह बात स्वीकार की गई
है कि भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन इन हथियारों का 'प्रयोग पहले
नहीं' करेगा। भारत की परमाणु नीति में यह बात दोहराई गई है
कि भारत वैश्विक स्तर पर लागू और भेदभाव हीन परमाणु निशस्त्रीकरण के प्रति वचनबद्ध
है ताकि परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व की रचना हो।
निबन्धात्मक
प्रश्न:
प्रश्न
1. भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धान्त एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के विदेश सम्बन्ध 339] भारतीय विदेश
नीति के किन्हीं चार सिद्धान्तों का आकलन कीजिए।
अथवा
भारतीय विदेशी नीति की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक राष्ट्र के रूप में भारत का उदय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में
हुआ था। ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की सम्प्रभुता का
सम्मान करने तथा शान्ति स्थापित करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने
रखा। अतः उसने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धान्त पर आधारित किया
है। भारत की विदेश नीति के मूलभूत सिद्धान्तों (विशेषताओं) का विवेचन निम्न प्रकार
से है।
(i) गुटनिरपेक्षता की नीति:
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में बँट गया था। इसमें से एक पश्चिम
देशों का गुट था तथा दूसरा साम्यवादी देशों का। दोनों महाशक्तियों ने भारत को अपने
पीछे लगाने के अनेक प्रयत्न किए, लेकिन भारत ने दोनों ही प्रकार के
सैनिक गुटों से अलग रहने का निश्चय किया और तय किया कि वह किसी भी सैनिक गठबंधन का
सदस्य नहीं बनेगा।
वह स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा और प्रत्येक राष्ट्रीय महत्त्व के
प्रश्न पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विचार करेगा। पं. नेहरू के शब्दों में,
“गुटनिरपेक्षता शान्ति का मार्ग तथा लड़ाई से बचाव का मार्ग है।
इसका उद्देश्य सैनिक गुटबन्दियों से दूर रहना है।
(ii) उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद का विरोध: साम्राज्यवादी देश दूसरे
देशों की स्वतंत्रता का अपहरण करके उनका शोषण करते रहते हैं। संघर्ष तथा युद्धों
का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद है। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शोषण का शिकार रहा
है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमेरिका के
अधिकांश राष्ट्र स्वतंत्र हो गए लेकिन साम्राज्यवाद का अभी पूर्ण विनाश नहीं हो
पाया है। भारत ने एशियाई तथा अफ्रीकी देशों की स्वतन्त्रता का स्वागत किया है।
(iii) अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध: भारत की विदेश नीति की अन्य
विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने हेतु हमेशा
तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बनाए
हैं बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाए हैं। भारत के नेताओं ने कई
बार घोषणा भी की है कि भारत सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता
है।
(iv) पंचशील तथा शान्तिपूर्ण सह -अस्तित्व: पंचशील का अर्थ है-पाँच
सिद्धान्त। यह सिद्धान्त हमारी विदेश नीति के मूल आधार हैं। इन पाँच सिद्धान्तों
के लिए "पंचशील" शब्द का प्रयोग सबसे पहले 29 अप्रैल,
1954 ई. में किया गया था। यह ऐसे सिद्धान्त हैं कि यदि इन पर विश्व
के सभी देश चलें तो विश्व में शान्ति स्थापित हो सकती है।
ये पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।
1. एक - दूसरे की अखण्डता और प्रभुसत्ता को बनाए रखना।
2. एक - दूसरे पर आक्रमण न करना।
3. एक - दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
4. शान्तिपूर्ण सह - अस्तित्व के सिद्धान्त को मानना।
5. आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना। पंचशील के ये पाँच
सिद्धान्त विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। यह संसार
के बचाव की एकमात्र आशा है क्योंकि आज का युग परमाणु बम तथा हाइड्रोजन बम का युग
है। युद्ध के छिड़ने से कोई भी नहीं बच पाएगा। अतः केवल इन सिद्धान्तों को मानने
से ही संसार में शान्ति की स्थापना हो सकती है।
(v) राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा - भारत शुरू से ही एक
शान्तिप्रिय देश रहा है इसीलिए उसने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के
सिद्धान्त पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने
उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए भारत ने संसार
के समस्त देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित किए हैं। इसी कारण आज भारत आर्थिक, राजनीतिक
तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है। इसके साथ-साथ वर्तमान
समय में भारत के सम्बन्ध विश्व की महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूस और अपने
लगभग समस्त पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण हैं।
प्रश्न
2. क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि “स्वतंत्र भारत की
विदेश नीति में शान्तिपूर्ण विश्व का सपना रहा है"? अपने
उत्तर के समर्थन में कोई तीन उपयुक्त तर्क दीजिए।
उत्तर:
"स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में शांतिपूर्ण विश्व का सपना
रहा है।" राजनीति विज्ञान के एक छात्र के रूप में मैं इस कथन से पूर्णरूप से
सहमत हूँ। मेरी सहमति का निर्माण निम्न तीन तर्कों के आधार पर हुआ है।
(1) भारतीय विदेश नीति में अन्य सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान
करने और शांति कायम करने के लक्ष्य की प्रतिध्वनि स्वतंत्रता के बाद निर्मित होने
वाले संविधान से प्राप्त हो जाती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में 'अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के बढ़ावे'
के लिए राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्त के हवाले से कहा गया है कि
राज्य
1. अन्तर्राष्ट्रीय
शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का
2. राष्ट्रों
के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का
3. संगठित
लोगों के एक-दूसरे से व्यवहार में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के
प्रति आदर बढ़ाने का, और
4. अन्तर्राष्ट्रीय
विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।
(2) भारत ने आजादी के बाद गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया। भारत
ने उसके लिए शीतयुद्ध से उपजे तनाव को कम करने की कोशि की और संयुक्त राष्ट्र संघ
के शांति अभियानों में अपनी सेना भेजी। भारत दोनों महाशक्तियों में से किसी के भी
सैन्य गठबंधन का सदस्य भी नहीं बना था। यह उसकी शांतिपूर्ण विदेश नीति का
क्रियात्मक पक्ष था।
(3) पड़ोसी देश चीन के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों
यानी पंचशील की घोषणा भी इस कथन को पुष्ट करती है। यह कदम पड़ोसी देशों के साथ
शांतिपूर्ण संबंधों के लिए महत्वपूर्ण कदम थी। यह शांति के प्रति भारत के पक्ष को
पुष्ट करता है।
प्रश्न
3. किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर
असर डालता है? भारत की विदेश नीति से संबंधित दो उदाहरण देते
हुए संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व राष्ट्र की विदेश नीति को
प्रभावित करता है।
1. नेहरू जी के नेतृत्व में: प्रधानमंत्री और विदेश
मंत्री के रूप में 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की
विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। नेहरू की विदेश नीति के
तीन बड़े उद्देश्य थे।
(i) कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना,
(ii) क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना
(iii) तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना।
नेहरू
इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे। उन दिनों देश
में कुछ पार्टियाँ और समूह ऐसे भी थे जिनका मानना था कि भारत को अमेरिकी खेमे के
साथ ज्यादा नजदीकी बढ़ानी चाहिए क्योंकि इस खेमे की प्रतिष्ठा लोकतंत्र के हिमायती
के रूप में थी। साम्यवाद की विरोधी कुछ राजनीतिक पार्टियाँ भी चाहती थीं कि भारत
अपनी विदेश नीति अमेरिका के पक्ष में बनाए। ऐसे दलों में भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र
पार्टी प्रमुख थे। लेकिन, विदेश नीति को तैयार करने के मामले
में नेहरू को विशेष योग्यता प्राप्त थी।
2. श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में- पाकिस्तान को अमेरिका और
चीन ने मदद की। 1960 के दशक में अमेरिका और चीन के बीच संबंधों को सामान्य करने की कोशिश चल
रही थी और इससे एशिया में सत्ता-समीकरण नया रूप ले रहा था। अमेरिकी राष्ट्रपति
रिचर्ड निक्सन के सलाहकार हेनरी किसिंजर ने 1971 के जुलाई
में पाकिस्तान होते हुए गुपचुप चीन का दौरा किया।
अमेरिका - पाकिस्तान - चीन की धुरी बनती देख भारत ने इसके जवाब में
सोवियत संघ के साथ 1971 में शांति और मित्रता की एक 20
वर्षीय संधि पर हस्ताक्षर किए। संधि से भारत को इस बात का आश्वासन
मिला कि हमला होने की स्थिति में सोवियत संघ भारत की सहायता करेगा। इस संधि से
भारत की विदेश नीति में बहुत बदलाव आया।
प्रश्न
4. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुख उपलब्धियाँ बताइए।
अथवा
गुटनिरपेक्षता की उपलब्धियों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं।
(i) गुटनिरपेक्षता की नीति को मान्यता:
प्रारम्भ में जब गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का आरम्भ हुआ तो विश्व के विकसित व अविकसित
राष्ट्रों ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया तथा इसे राजनीति के विरुद्ध एक संकल्पना
का नाम दिया। अत: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रवर्तकों ने यह सोचा कि इसके विषय में
राष्ट्रों को कैसे समझाया जाए एवं विश्व के राष्ट्रों से इसे कैसे मान्यता दिलवाई
जाए ? विश्व के दोनों राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका एवं
सोवियत संघ कहते थे कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन एक छलावे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
अतः विश्व के राष्ट्रों को किसी एक गुट में अवश्य शामिल हो जाना चाहिए, परन्तु गुटनिरपेक्ष आन्दोलन अपनी नीतियों पर दृढ़ रहा।
(ii) शीत - युद्ध के भय को दूर करना:
शीत युद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में तनाव का वातावरण था लेकिन
गुटनिरपेक्षता की नीति ने इस तनाव को शिथिलता की दशा में लाने के लिए अनेक प्रयत्न
किये तथा इसमें सफलता प्राप्त की।
(iii) विश्व के संघर्षों को दूर करना:
गुटनिरपेक्षता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने विश्व में होने वाले कुछ भयंकर
संघर्षों को टाल दिया था। धीरे-धीरे उनके निदान भी ढूँढ़ लिये गये। गुटनिरपेक्ष
राष्ट्रों ने आण्विक अस्त्र के खतरों को दूर करके अन्तर्राष्ट्रीय जगत में शान्ति
व सुरक्षा को बनाने में योगदान दिया। विश्व के छोटे - छोटे विकासशील तथा विकसित
राष्ट्रों को दो भागों में विभाजित होने से रोका। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने
सर्वोच्च शक्तियों को हमेशा यही प्रेरणा दी कि "संघर्ष अपने हृदय में सर्वनाश
लेकर चलता है" इसलिए इससे बचकर चलने में ही विश्व का कल्याण है।
इसके स्थान पर यदि सर्वोच्च शक्तियाँ विकासशील राष्ट्रों के कल्याण
के लिए कुछ कार्य करती हैं तो इससे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को भी बल मिलेगा।
उदाहरणार्थ-गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने कोरिया यद्ध बर्लिन का संकट, इण्डो-चीन संघर्ष, चीनी तटवर्ती द्वीप समूह का विवाद
(1955) एवं स्वेज नहर युद्ध (1956) जैसे
संकटों के बारे में निष्पक्ष तथा त्वरित समाधान के सुझाव देकर विश्व को भयंकर आग
की लपटों में जाने से बचा लिया।
(iv) निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र-नियंत्रण की दिशा में भूमिका- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के देशों ने नि:शस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के
लिए विश्व में अवसर तैयार किया है। यद्यपि इस क्षेत्र में गुटनिरपेक्ष देशों को
तुरन्त सफलता नहीं मिली, तथापि विश्व के राष्ट्रों को यह
भरोसा होने लगा कि हथियारों को बढ़ावा देने से विश्व शान्ति संकट में पड़ सकती है।
यह गुटनिरपेक्षता का ही परिणाम है कि सन् 1954 में आण्विक
अस्त्र के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लग गया तथा सन् 1963 में
आंशिक परीक्षण पर प्रतिबन्ध स्वीकार किए गए।
(v) संयुक्त राष्ट्र संघ का सम्मान:
गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का भी हमेशा सम्मान
किया, साथ ही संगठन के वास्तविक रूप को रूपान्तरित करने में
सहयोग दिया। पहली बात तो यह है कि गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या इतनी है कि
शीत-युद्ध के वातावरण को तटस्थता की नीति के रूप में बदलाव करने में राष्ट्रों के
संगठन की बात सुनी गयी। इससे छोटे राष्ट्रों पर संयुक्त राष्ट्र संघ का नियंत्रण
सरलतापूर्वक लागू हो सका था। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के
महत्त्व को बढ़ावा देने में भी सहायता दी।
(vi) आर्थिक सहयोग का वातावरण बनाना:
गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विकासशील राष्ट्रों के बीच अपनी विश्वसनीयता का ठोस
प्रमाण दिया जिस कारण विकासशील राष्ट्रों को समय - समय पर आर्थिक सहायता प्राप्त
हो सकी। कोलंबो शिखर सम्मेलन में जो आर्थिक घोषणा पत्र तैयार किया गया जिसमें
गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के बीच अधिकाधिक आर्थिक सहयोग की स्थिति निर्मित हो सके। इस
प्रकार से गुटनिरपेक्षता का आन्दोलन आर्थिक सहयोग का एक संयुक्त मोर्चा है।
प्रश्न
5. भारत - चीन सम्बन्धों के विषय में आप क्या जानते हैं? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत - चीन सम्बन्धों का अध्ययन केवल मैत्री भाव व असंलग्नता की
नीति पर आधारित न होकर मित्रता के उतार-चढ़ाव पर भी आधारित है।
उपर्युक्त संदर्भ में भारत - चीन सम्बन्धों का अध्ययन निम्नांकित
बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है।
(i) भारत का दृष्टिकोण: भारत, चीन के साथ प्रारम्भ से ही मित्रता
की इच्छा व्यक्त करता रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेहरू जी ने स्पष्ट
किया था "चीन, भारत से सदैव मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखेगा।
चीन में जब माओत्से-तुंग के नेतृत्व में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई तो भारत ने
उसके साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को और भी सुदृढ़ किया।" सन् 1947 से 1959 तक भारत व चीन के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहने
के निम्नांकित कारण थे।
1. भारत
द्वारा चीन को मान्यता प्रदान करना।
2. चीन को
संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता दिलाने में भारत की भूमिका।
3. पंचशील
के सिद्धान्तों में दोनों देशों की सहमति।
4. कोरिया
के प्रश्न पर सहयोग।
(ii) तिब्बत पर भारतीय नीति: सदियों से चीन, तिब्बत पर अपने अधिकार की चर्चा कर
रहा था। जब चीन में साम्यवादी सरकार स्थापित हुई तब उसने तिब्बत पर अपना अधिकार
घोषित कर दिया। 1950 ई. में चीन सरकार ने तिब्बत पर नियंत्रण
स्थापित कर लिया। भारत ने चीनी सरकार से वार्तालाप भी किया। इसके अनुसार भारत ने
तिब्बत में चीन का अधिकार स्वीकार कर लिया, जो भारत की एक
बड़ी भूल थी। भारत सरकार ने यांतुंग व ग्यान्तसे से अपने सैनिक हटा लिए। चीन ने
तिब्बत पर अपनी सार्वभौमिकता स्थापित कर ली। इस प्रकार सन् 1956 तक भारत तथा चीन के सम्बन्ध मधुर रहे।
(iii) चीन का भारत के प्रति कटु व्यवहार: सन् 1956 ई. में
तिब्बत के खम्पा क्षेत्र में चीनी शासन के विरुद्ध विद्रोह हो गया। यह विद्रोह सन्
1959 ई. तक चला। चीन सरकार ने इसे कठोरता से कुचल दिया। 31
मार्च 1959 ई. को दलाई लामा ने अपने कुछ
साथियों के साथ भारत में राजनीतिक शरण ली। उसके बाद लाखों तिब्बती शरणार्थियों ने
हिमाचल प्रदेश व मसूरी में शरण ली। चीन की सरकार द्वारा भारत सरकार पर दोषारोपण
किया गया कि भारत ने शत्रुतापूर्ण कार्य किया है और इस प्रकार चीन तथा भारत के
सम्बन्ध कटुतापूर्ण हो गये।
(iv) चीन का विश्वासघाती कदम: भारत ने अपनी शान्तिपूर्ण
नीति का प्रदर्शन करते हुए 10 मई, 1962 ई.
को चीन के समक्ष सीमा सम्बन्धी प्रश्न का समाधान करने का प्रस्ताव रखा लेकिन चीन
ने उसकी अवहेलना करते हुए 11 जुलाई को भारत पर आक्रमण कर
दिया जबकि भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था।
(v) भारत के प्रति उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण: सन् 1965 में भारत
व पाकिस्तान के मध्य युद्ध प्रारम्भ हुआ, उस समय चीन ने
पाकिस्तान के समर्थन में कई बातें कहीं। उसने भारत को आक्रमणकारी घोषित किया। भारत
को चीन ने चेतावनी भी दी कि वह सिक्किम की सीमा पर निर्माण कार्य को स्थगित कर दे।
भारत ने चीन की इस चेतावनी की चिन्ता नहीं की क्योंकि भारत का पक्ष न्याययुक्त था।
अंततः चीन ने अपनी चेतावनी के प्रति चुप्पी साध ली और सन् 1971 में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत
विरोधी प्रस्ताव पारित करके भारत को आक्रमणकारी घोषित किया।
(vi) परिवर्तित स्थिति में भारत: चीन सम्बन्ध - भारत व चीन
एशिया महाद्वीप की दो बड़ी शक्तियाँ हैं। दोनों देशों के सम्बन्ध लगभग 25 वर्षों से
सौहार्द्रपूर्ण नहीं रहे हैं। दोनों देश, विशेषकर भारत ने
बीजिंग से सम्बन्ध सुधारने की पहल की, परन्तु चीन के नेताओं
ने भारत के पत्रकारों के सामने एक सुझाव रखा कि यदि भारत लद्दाख के क्षेत्र में
चीनी दावे को स्वीकार कर ले, तो पूर्वी संभाग में वह वर्तमान
नियंत्रण रेखा को अन्तर्राष्ट्रीय सीमा मान लेगा, लेकिन भारत
ने चीन की यह शर्त स्वीकार नहीं की।
20 नवम्बर, 2006 ई. को चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ ने
भारत की यात्रा की। चीनी राष्ट्रपति का भारत दौरा दोनों देशों के अच्छे सम्बन्ध
बनाने में सहायक हुआ। पर्यटन के जरिए सन् 2007 को भारत-चीन
मैत्री वर्ष के रूप में मनाया गया। हू जिंताओ ने भारत व चीन के मध्य आर्थिक सहयोग
संवर्द्धन हेतु एक नए पंचशील का आव्हान किया तथा इसके पाँच सूत्रों का पालन करने
की बात की गयी जिससे भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार होकर मित्रता हो सके।
प्रश्न
6. निम्नलिखित अवतरण को सावधानीपूर्वक पढ़ें तथा इसके नीचे दिए प्रश्नों के
उत्तर लिखें।
उत्तर:
"सन् 1999 के शुरुआती महीनों में भारतीय
इलाके की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों जैसे - द्रास, माश्कोह,
काकसर और बतालिक पर अपने को मुजाहिदीन बताने वालों ने कब्जा कर लिया
था। पाकिस्तानी सेना की इसमें मिली-भगत भाँपकर भारतीय सेना इस कब्जे के खिलाफ हरकत
में आयी। इसमें दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया। इसे “करगिल
की लड़ाई" के नाम से जाना जाता है। सन् 1999 के मई-जून
में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई, 1999 तक भारत अपने अधिकतर ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था। करगिल की लड़ाई
ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा था क्योंकि इससे ठीक एक साल पहले दोनों देश परमाणु
हथियार बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे। बहरहाल, यह लड़ाई सिर्फ करगिल के इलाके तक ही सीमित रही। पाकिस्तान में, इस लड़ाई को लेकर बहुत विवाद मचा। कहा गया कि सेना के प्रमुख ने
प्रधानमंत्री को इस मामले में अंधेरे में रखा था। इस लड़ाई के तुरन्त बाद
पाकिस्तान की हुकूमत पर जनरल परवेज मुशर्रफ की अगुवाई में पाकिस्तानी सेना ने
नियंत्रण कर लिया।"
(अ) मुजाहिदीनों ने नियंत्रण सीमा-रेखा के किन ठिकानों पर कब्जा
किया था?
(ब) 'करगिल की लड़ाई' किसे
कहा गया था? यह लड़ाई कब से कब तक चली?
(स) करगिल लड़ाई के परिणाम बताइए।
उत्तर:
(अ) सन् 1999 के प्रारम्भिक महीनों में भारतीय
इलाके की नियंत्रण सीमा रेखा के अनेक ठिकानों, जैसे-द्रास,
माश्कोह, काकसर और बतालिक पर अपने को
मुजाहिदीन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। जो मुस्लिम भारत-विभाजन के बाद
पाकिस्तान चले गये तथा वहीं के नागरिक बन गये थे, वे स्वयं
को मुजाहिदीन बताते हैं। ,
(ब) करगिल क्षेत्र के अनेक भागों पर जब मुजाहिदीनों ने कब्जा कर
लिया तो भारतीय सेना ने उनकी इस हरकत के पीछे के सत्य को जानने का प्रयास किया।
पाकिस्तानी सेना की इसमें मिलीभगत को भांपकर भारतीय सेना इस कब्जे के विरुद्ध हरकत
में आई। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया। इसे 'करगिल
की लड़ाई' के नाम से जाना जाता है। यह लड़ाई सन् 1999
के मई - जून में जारी रही। 26 जुलाई,
1999 तक भारत अपने अधिकांश ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था।
(स) करगिल की लड़ाई के परिणाम इस प्रकार रहे।
1. करगिल
की लड़ाई मात्र दो-तीन महीने ही चली अंततः इसमें भारत की जीत हुई।
2. करगिल
की लड़ाई ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था क्योंकि इससे ठीक एक वर्ष पूर्व दोनों
देश परमाणु बम बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे।
3. यह
लड़ाई करगिल के क्षेत्र तक ही सीमित रही। पाकिस्तान में इस लड़ाई को लेकर बहुत
विवाद उठा।
4. करगिल
लड़ाई के बाद पाकिस्तान की सत्ता पर जनरल परवेज मुशर्रफ की अगुवाई में पाकिस्तानी
सेना ने नियंत्रण कर लिया।
प्रश्न
7. भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाये जाने के प्रमुख कारणों का विस्तार से
वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत
ने शीतयुद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के विकास पर बहुत अधिक बल दिया। इसके
अतिरिक्त भारत निःशस्त्रीकरण का समर्थन करता रहा लेकिन 1962 में चीन
से युद्ध में हार तथा सन् 1965 व 1971 में
पाकिस्तान से युद्ध के पश्चात् भारत को अपनी विदेश नीति पर सोचना पड़ा। सन् 1970
के दशक में भारत ने प्रथम बार अनुभव किया कि अन्य राष्ट्रों की तरह
उसे भी परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनना चाहिए। भारत ने सन् 1974 में एवं सन् 1998 में परमाणु परीक्षण किये। वर्तमान
में भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है। भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाये
जाने के निम्नलिखित कारण हैं।
(i) आत्म-निर्भर राष्ट्र के रूप में विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाना: विश्व
में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार उपलब्ध हैं वे सभी आत्म-निर्भर देश माने
जाते हैं। भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना
चाहता है जिससे कि उसकी पहचान विश्व स्तर पर स्थापित हो।
(ii) शक्तिशाली राष्ट्र बनने की इच्छा: विश्व में जितने भी देश परमाणु शक्ति
सम्पन्न हैं, वे सभी शक्तिशाली राष्ट्र माने जाते हैं। भारत
भी उसी राह पर चलना चाहता है। भारत भी परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व
में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है ताकि कोई देश उस पर बुरी नजर न डाले।
(iii) विश्वव्यापी प्रतिष्ठा प्राप्त करना: सम्पूर्ण विश्व में सभी परमाणु
सम्पन्न राष्ट्रों को आदर और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। भारत भी परमाणु
नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करना चाहता
है।
(iv) शान्तिपूर्ण कार्यों हेतु परमाणु हथियारों का उपयोग: भारत का मत है कि
उसने शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु नीति को अपनाया है। भारत ने जब अपना प्रथम
परमाणु परीक्षण किया तो उसे शान्तिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत का मत है कि वह अणु-शक्ति
को केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों में प्रयोग करने की अपनी नीति के प्रति दृढ़
संकल्प है।
(v) भारत द्वारा लड़े गए युद्ध: भारत ने सन् 1962 में
चीन के साथ युद्ध किया तथा सन् 1965 एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध किया। इन युद्धों में भारत को बहुत जन-धन की
हानि उठानी पड़ी। अब भारत युद्धों में होने वाली अधिक हानि से बचने के लिए परमाणु
हथियार प्राप्त करना चाहता है।
(vi) पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना-भारत के पड़ोसी देशों चीन व
पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं। इन देशों के साथ भारत के युद्ध भी हो चुके
हैं। अतः भारत को इन देशों से अपने को सुरक्षित महसूस करने के लिए परमाणु हथियार
बनाना अति आवश्यक है।
(vii) न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना-भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार
बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से स्वयं को बचाने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति
प्राप्त करना चाहता है। भारत ने सदैव ही विश्व समुदाय को यह आश्वस्त किया है कि वह
कभी भी परमाणु हथियारों के प्रयोग की पहल नहीं करेगा। परमाणु शक्ति सम्पन्न होने
के बाद आज भारत इस स्थिति में पहुँच चुका है कि कोई भी देश भारत पर हमला करने से
पहले सोचेगा।
(viii)
परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की भेदपूर्ण नीति-विश्व के परमाणु शक्ति
सम्पन्न, राष्ट्रों ने परमाणु अप्रसार संधि एवं व्यापक
परमाणु परीक्षण संधि को इस प्रकार लागू करना चाहा कि उनके अतिरिक्त कोई अन्य देश
परमाणु हथियार का निर्माण न कर सके। भारत ने इन दोनों संधियों को भेदभावपूर्ण
मानते हुए इन पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तथा यह घोषणा की कि वह अपनी रक्षा
के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन इन हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा। भारत की
परमाणु नीति में यह बात स्पष्ट की गयी है कि भारत वैश्विक स्तर पर लागू एवं भेदभावरहित
परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए वचनबद्ध है ताकि परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व की
रचना हो।

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