Monday, September 29, 2025

Class 12th Political Science Chapter 2 Book-2 imp QA

 







 

Class-12 Political Science

Chapter- 2 (एक दल के प्रभुत्व का दौर)

 

 

 

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न: 


प्रश्न 1. भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् किस प्रकार की शासन प्रणाली अपनाई गई
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अपनाई गई। 

 

प्रश्न 2. भारत का संविधान कब लागू हुआ
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। 

 

प्रश्न 3. स्वतन्त्र भारत में प्रथम आम चुनाव कब हुए? 
उत्तर:
स्वतन्त्र भारत में प्रथम आम चुनाव अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 के मध्य हुए। 

 

प्रश्न 4.  नायक - पूजा क्या है?
उत्तर:
नायक - पूजा चापलूसी का वह रूप है जिसमें किसी व्यक्ति विशेष में विशेष योग्यता न होते हुए भी उसकी पूजा की जाती है।

 

प्रश्न 5. हमारे देश की चुनाव प्रणाली में विजय का तरीका क्या अपनाया गया
उत्तर:
हमारे देश की चुनाव प्रणाली में 'सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीतके तरीके को अपनाया गया। 

 

प्रश्न 6. संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेड़कर। 

 

प्रश्न 7. समग्र मानवतावाद सिद्धान्त के प्रणेता का नाम लिखिए। 
उत्तर:
दीनदयाल उपाध्याय। 

 

प्रश्न 8. स्वतंत्र भारत के प्रथम संचार मंत्री कौन थे
उत्तर:
रफी अहमद किदवई। 

 

प्रश्न 9. स्वतंत्र भारत के प्रथम गर्वनर जनरल कौन थे
उत्तर:
सी. राजगोपालाचारी। 

 

प्रश्न 10. 1951 में गठित भारतीय जनसंघ के किन्हीं दो महत्वपूर्ण नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा दीनदयाल उपाध्याय। 

 

प्रश्न 11. भारतीय जनसंघ ने किन दो प्रमुख विचारों पर विशेष बल दिया? 
उत्तर:

1.    एक देशएक संस्कृति और एक राष्ट्र। 

2.    भारत द्वारा आण्विक हथियारों के निर्माण को समर्थन। 

 

प्रश्न 12. भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना कब हुईइसका प्रथम चुनाव आयुक्त कौन था?
उत्तर:
भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना जनवरी 1950 में हुई थी। सुकुमार सेन इसके प्रथम चुनाव आयुक्त थे। 

 

प्रश्न 13. स्वतंत्रता के बाद भारत में काँग्रेस पार्टी के प्रभुत्त्व का दौर क्यों रहा था?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत में काँग्रेस पार्टी के प्रभुत्त्व का दौर रहाक्योंकि इसका संगठन अखिल भारतीय स्तर तक पहुँच चुका था।

 

प्रश्न 14. भारत में एक दल प्रधानता के युग में किस दल को सबसे अधिक प्रभावशाली माना गया
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को। 

 

प्रश्न 15. भारत में वामपंथी कहे जाने वाले दलों की विचारधारा क्या रही है
उत्तर:
साम्यवादी या मार्क्सवादी विचारधारा। 

 

प्रश्न 16. भारत में दलितों को न्याय दिलाने के संघर्ष का नेतृत्व किसने किया?
अथवा
भारत में दलितों का मसीहा किसे कहा गया है
उत्तर:
बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर। 

 

प्रश्न 17. हिन्दू - मुस्लिम एकता के प्रतिपादक कौन थे
उत्तर:
मौलाना अबुल कलाम आजाद। 

 

प्रश्न 18. भारत में आम चुनावों में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का प्रयोग कब प्रारम्भ हुआ
उत्तर:
सन् 1990 के दशक के अन्त में। 

 

प्रश्न 19. भारत के किस राज्य में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित साम्यवादी सरकार प्रथम बार सत्ता में आई ?
उत्तर:
केरल। 

 

 

प्रश्न 20. 'गठबंधन सरकारकी अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब कई पार्टियाँ मिलकर सरकार बनाती हैं तो उसे गठबंधन सरकार कहते हैं। 

 

 

 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA1): 

 

प्रश्न 1. भारत में किस चुनाव प्रणाली को अपनाया गया है?
उत्तर:
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की प्रणाली को अपनाया गया है। इस प्रणाली के अंतर्गत देश के 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके सभी नागरिक लिंगजातिधर्मक्षेत्रभाषास्थिति आदि के आधार पर भेदभाव बिना अपने प्रतिनिधि लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के लिए चुनते हैं जो केन्द्र तथा राज्य सरकारों का गठन करते हैं।

 

प्रश्न 2. आलोचक ऐसा क्यों सोचते थे कि भारत में चुनाव सफलतापूर्वक नहीं कराए जा सकेंगेकिन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कराए जा सकने सम्बन्धी दो कारण निम्नलिखित हैं-
(i) भारत क्षेत्रफल तथा जनसंख्या की दृष्टि से बहुत बड़ा देश है व शुरू से ही सभी 21 वर्ष के वयस्कों (जिनमें स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे) को सार्वभौम वयस्क मताधिकार दे दिया गया। इतने बड़े निर्वाचक मंडलों के लिए व्यवस्था करना बहुत कठिन था।

(ii) भारत के अधिकांश मतदाता अशिक्षित थे जिनसे स्वतंत्र व समझदारी से मताधिकार का प्रयोग किस प्रकार हो सकेगा इस पर लोगों को विश्वास नहीं थापरन्तु यह मात्र एक भ्रम सिद्ध हुआ।

 

प्रश्न 3. मौलाना अबुल कलाम आजाद का संक्षिप्त परिचय दीजिए। .
उत्तर:
मौलाना अबुल कलाम आजाद (1888 - 1958) का पूरा नाम अबुल कलाम मोहियुद्दीन अहमद था। वह इस्लाम के विद्वान थे। साथ ही वह एक स्वतंत्रता सेनानी व कांग्रेस के प्रमुख नेता थे। वह हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे तथा भारत विभाजन के विरोधी थे। वह संविधान सभा के सदस्य रहे तथा स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री के पद पर आसीन हुए।

 

प्रश्न 4. आपके मतानुसार आजादी के बाद 20 वर्षों तक भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व के क्या कारण रहे हैंकिन्हीं दो को बताइए।
अथवा 
भारत में लम्बे समय तक कांग्रेस के दलीय प्रभुत्व के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण बताइए।
अथवा 
भारत में पहले तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के दो कारण बताइए।
उत्तर:
आजादी के बाद 20 वर्षों तक भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्त्व के दो निम्नलिखित कारण रहे हैं।

1.    स्वतंत्रता संग्राम में काँग्रेसी नेताओं का जनता में अधिक लोकप्रिय होना। 

2.    काँग्रेस ही एकमात्र ऐसा दल था जिसके पास ग्रामीण स्तर तक फैला हुआ संगठन था।

 

प्रश्न 5. भारत और मैक्सिको दोनों देशों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताइए कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?
उत्तर:
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय तक एक ही पार्टी का प्रभुत्व रहा। परन्तु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में मौलिक अन्तर था। जहाँ भारत में लोकतांत्रिक आधार पर एक ही पार्टी का प्रभुत्व कायम था। वहीं मैक्सिको में एक ही पार्टी की तानाशाही पायी जाती थी। मैक्सिको की इस तानाशाही व्यवस्था में लोगों को अपने विचार प्रकट करने का अधिकार नहीं था।

 

प्रश्न 6. कांग्रेस पार्टी ने केरल में निर्वाचित सरकार के खिलाफ मुक्ति संघर्ष क्यों छेड़ा ?
उत्तर:
सन् 1957 में कांग्रेस पार्टी को केरल में हार का स्वाद चखना पड़ गया था। विधानसभा चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी को केरल की विधानसभा के लिए सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। केरल में सत्ता से बेदखल होने पर कांग्रेस पार्टी ने निर्वाचित सरकार के खिलाफ 'मुक्ति संघर्षछेड़ दिया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में इस संकल्प के साथ आई थी कि वह कुछ क्रान्तिकारी व प्रगतिशील नीतिगत पहल करेगी। कम्युनिस्टों का कहना था कि इस संघर्ष की अगुवाई स्वार्थी लोग और धार्मिक संगठन कर रहे हैं।

 

प्रश्न 7. 'केरल में धारा 356 का कांग्रेस द्वारा दुरुपयोगविषय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
केरल में सत्ता से बेदखल होने पर कांग्रेस पार्टी ने निर्वाचित सरकार के खिलाफ 'मुक्ति संघर्षछेड़ दिया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में इस वायदे के साथ आई थी कि कुछ क्रान्तिकारी तथा प्रगतिशील नीतिगत पहल करेगी किन्तु सन् 1959 में केन्द्र की काँग्रेस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया। यह फैसला बड़ा विवादास्पद साबित हुआ। संविधान - प्रदत्त आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग के पहले उदाहरण के रूप में इस फैसले का बार - बार उल्लेख किया जाता है।

 

प्रश्न 8. सोशलिस्ट पार्टी किन-किन पार्टियों में विभाजित हुई ? इसके प्रमुख नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
सोशलिस्ट पार्टी के कई विभाजन हुए। इन दलों में किसान मजदूर प्रजा पार्टीप्रजा सोशलिस्ट पार्टी तथा संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का नाम प्रमुख है। जयप्रकाश नारायणअच्युत पटवर्धनअशोक मेहताआचार्य नरेन्द्र देवराममनोहर लोहिया और एस. एम. जोशी प्रमुख सोशलिस्ट नेता थे।

 

प्रश्न 9. डॉ. भीमराव अम्बेडकर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भीमराव अम्बेडकर जाति विरोधी आन्दोलन के नेता थे। इन्होंने दलितों को न्याय दिलाने का कार्य किया। इन्हें संविधान सभा की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। ये नेहरू मन्त्रिमण्डल में मंत्री भी रहे। इन्होंने हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर अपनी असहमति जताते हुए सन् 1951 में मन्त्री पद के इस्तीफा दे दिया। इन्होंने सन् 1956 में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को अपनाया।

 

प्रश्न 10. समाजवादी और कम्युनिस्ट पार्टी के मध्य कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

1.    समाजवादी पार्टी लोकतांत्रिक विचारधारा में विश्वास करती है जबकि कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवादी लोकतंत्र में विश्वास करती है।

2.    समाजवादी पार्टी पूँजीपतियों और पूँजी को अनावश्यक और समाज विरोधी नहीं मानती जबकि कम्युनिस्ट पार्टी निजी पूँजी और पूँजीपतियों को पूर्णतया अनावश्यक और समाज विरोधी मानती है।

 

प्रश्न 11. रफी अहमद किदवई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के प्रसिद्ध नेताओं में से एक रफी अहमद किदवई का जन्म सन् 1894 में हुआ था। आजादी से पहले बनने वाली प्रथम प्रान्तीय सरकार में सन् 1937 में वह मंत्री नियुक्त हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् सन् 1946 में उन्हें पुनः मंत्री बनाया गया। आजादी के पश्चात् स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमण्डल में संचार मंत्री नियुक्त हुए। सन् 1952 से सन् 1954 तक वह देश के स्वास्थ्य एवं कृषि मंत्री रहे। सन् 1954 में उनका निधन हो गया। 

 

प्रश्न 12. भारतीय जनसंघ ने किन दो प्रमुख विचारों पर विशेष बल दिया?
अथवा 
भारतीय जनसंघ की विचारधारा को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय जनसंघ की स्थापना सन् 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा की गई। 

1.    जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके 'अखंड भारतके निर्माण की बात कही।

2.    जनसंघ ने 'एक देशएक संस्कृति और एक राष्ट्रके विचार पर बल दिया। इसका मानना था कि देश भारतीय संस्कृति व परंपरा के आधार पर आधुनिकप्रगतिशील व शक्तिशाली बन सकता है।

 

प्रश्न 13. भारत में दलीय व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ लिखिए। 
उत्तर:
भारत में दलीय व्यवस्था की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं। 

1.     भारत में बहुदलीय व्यवस्था है तथा राजनैतिक दल विभिन्न हित समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

2.    भारत में राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दल भी पाये जाते हैं। 

 

प्रश्न 14. एक दलीय प्रभुत्व प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर प्रतिकूल प्रभाव कैसे पड़ा है?
उत्तर:
एक दलीय प्रभुत्व प्रणाली के कारण कोई अन्य विचारधारात्मक गठबंधन या पार्टी उभरकर सामने नहीं आ पायी जो मजबूत व संगठित विपक्ष की भूमिका निभा सके। इस कारण मतदाताओं के पास भी कांग्रेस को समर्थन देने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं था। इसके अतिरिक्त एक दलीय प्रभुत्व के कारण प्रशासन की कार्यकुशलता कम हो गयी एवं भ्रष्टाचार में भी वृद्धि हो गयी। 

 

प्रश्न 15. सुमेलित कीजिए नेता:

नेता

दल

(अ) एस.ए. डांगे

1. भारतीय जनसंघ

(ब) श्यामा प्रसाद मुखजी

2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

(स) जवाहरलाल नेहरू

3. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी

(द) अशोक मेहता

4. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

उत्तर:

नेता

दल

(अ) एस.ए. डांगे

1. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

(ब) श्यामा प्रसाद मुखजी

2. भारतीय जनसंघ

(स) जवाहरलाल नेहरू

3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

(द) अशोक मेहता

4. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी




प्रश्न 16. सुमेलित कीजिए:

(अ) पहली साम्यवादी सरकार वाला राज्य

(i) स्वतंत्र पार्टी

(ब) श्यामा प्रसाद मुखर्जी

(ii) समाजवादी पार्टी

(स) डॉ. बी.आर. अम्बेडकर

(iii) भारतीय जनसंघ

(द) के.एम. मुंशी

(iv) केरल

(ङ) राम मनोहर लोहिया

(v) रिपब्लिकन पार्टी

उत्तर:
(अ) 
 (iv), (ब)  (iii), (स)  (v), (द)  (i), (ङ)  (ii)



प्रश्न 17. भारत में मतदान के दो तरीके बताइए।
उत्तर:
भारत में मतदान के दो तरीके निम्नलिखित हैं।
(i) बैलेट पेपर द्वारा:  इस प्रणाली में एक कागज का छपा हुआ प्रपत्र मतदाता को दिया जाता है जिसमें उम्मीदवारों के नाम तथा उनके चुनाव चिह्न होते हैं। मतदाता जिस उम्मीदवार को वोट देना चाहता है उसके खाने में मुहर लगाकर बैलेट पेपर को बॉक्स में डाल देता है।

(ii) E.V.M. द्वारा: वर्तमान में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (E.V.M.) के माध्यम से चुनाव होते हैं जिसमें उम्मीदवार के नाम व चुनाव चिह्न के सामने वाले बटन को दबाकर वोट डाला जाता है।

 

प्रश्न 18. 'A' में दिए तथ्यों कास्तंभ 'B' में दिए गए तथ्यों से सार्थक मिलान कीजिए

 स्तंभ 'A'

स्तंभ 'B'

(अ) दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार

(i) बलराज मधोक

(ब) जनसंघ के एक नेता

(ii) मौलाना अबुल कलाम आजाद

(स) स्वतंत्र पार्टी के नेता

(ii) पी.सी. महालनोबिस 

(द) हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतिपादक

(iv) मीनू मसानी उनर

उत्तर:

 स्तंभ 'A'

स्तंभ 'B'

(अ) दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार

(i) पी.सी. महालनोबिस 

(ब) जनसंघ के एक नेता

(ii) बलराज मधोक 

(स) स्वतंत्र पार्टी के नेता

(iii) मीनू मसानी  

(द) हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतिपादक

(iv) मौलाना अबुल कलाम आज़ाद




 

 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA2): 

 

प्रश्न 1. भारतीय संदर्भ में 'एक दलीय प्रभुत्वसे क्या तात्पर्य है?
अथवा 
प्रथम तीन आम चुनावों में एक दल के प्रभुत्व के कारणों को इंगित कीजिए। 
उत्तर:
भारतीय संदर्भ में 'एक दलीय प्रभुत्वसे तात्पर्य: पहले तीन आम चुनावों में भारत कांग्रेस पार्टी के एकल प्रभुत्व के दौर से गुजरा है। इसे एक दलीय प्रभुत्व की संज्ञा दी जाती है।
(i) पहले आम चुनाव के परिणामों से संभवतः ही किसी को आश्चर्य हुआ हो क्योंकि आशा यही थी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस चुनाव में जीत जाएगी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लोक प्रचलित नाम कांग्रेस पार्टी था तथा इस पार्टी को स्वतंत्रता संग्राम की विरासत प्राप्त थी। उन दिनों में एकमात्र पार्टी यही थी जिसका संगठन पूरे देश में था। साथ ही इस पार्टी में स्वयं पं. जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई व लोकप्रिय नेता थे।

(ii) लोकसभा के पहले चुनाव में कांग्रेस ने कुल 489 सीटों में से 364 सीटें जीती तथा इस तरह वह किसी भी प्रतिद्वंद्वी से चुनावी दौड़ में बहुत आगे निकल गई। कांग्रेस पार्टी को विधान सभा के चुनावों में बड़ी जीत हासिल हुई। सन् 1952 - 1962 के ब्रीद कांग्रेस पार्टी का ही प्रभुत्व था। केन्द्र सरकार और प्रांतीय सरकारों पर कांग्रेस पार्टी का पूरा नियंत्रण था। दूसरा आम चुनाव सन् 1957 में तथा तीसरा चुनाव सन् 1962 में हुआ था। इन चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपनी पूर्व स्थिति बरकरार रखी व उसे तीन-चौथाई सीटें मिली। कांग्रेस पार्टी ने जितनी सीटें जीती थीं उसका दशांश भी कोई विपक्षी पार्टी प्राप्त नहीं कर सकी। 

 

प्रश्न 2. कांग्रेस पार्टी की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा 
कांग्रेस पार्टी की गठबंधनी प्रकृति ने किस प्रकार कांग्रेस को असाधारण ताकत दी
उत्तर:
(i) कांग्रेस की गठबंधनी प्रकृति ने इस पार्टी को असाधारण शक्ति प्रदान की। गठबंधन की नमनीयता ने अतिवादी रुख को दूर रखा। गठबंधन की विशेषता. सुलह - समझौते के रास्ते पर चलना तथा सर्व - समावेशी होना।

(ii) कांग्रेस को गठबंधनी प्रकृति ने विपक्ष के सामने कठिनाई उत्पन्न कर दी। विपक्ष की विचारधारा तथा कार्यक्रम को कांग्रेस तुरंत समावेशित कर लेती थी। किसी भी राजनीतिक दल का गठबंधनी स्वभाव आंतरिक मतभेद के प्रति सहनशीलता रखता है।
(iii) गठबंधनी प्रकृति विभिन्न समूह तथा नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी समावेशित करने की क्षमता रखती है। कांग्रेस ने आजादी के समय तथा आजादी के बाद राजनैतिक नमनीयता तथा सहनशीलता को कायम रखा।

(iv) गठबंधनी प्रकृति के कारण यदि कोई समूह पार्टी के नजरिए से अथवा सत्ता में प्राप्त अपनी भागीदारी में अप्रसन्न हो तब भी वह पार्टी में बना रहता है। ऐसे हालातों में वह पार्टी को छोड़कर विपक्षी की भूमिका अपनाने की जगह पार्टी में विद्यमान किसी दूसरे से लड़ने को बेहतर समझता था।

 

प्रश्न 3. 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर सन् 2004 के आम चुनाव तकमतदान के तरीकों में क्या बदलाव आया है ?
अथवा 
स्वतंत्र भारत में प्रारम्भ से लेकर अब तक मतदान के तरीके कैसे बदलते रहे हैंकारण भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहले दो आम चुनावों के पश्चात् सन् 2004 के आम चुनावों तक मतदान के तरीकों में बहुत अंतर आया हैये अन्तर निम्नांकित हैं।
(i) सन् 1952 के पहले आम चुनाव में निर्णय किया गया कि प्रत्येक मतदान केन्द्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक मतपेटी रखी जाएगी तथा मतपेटी पर उम्मीदवार का चुनाव चिह्न अंकित होगा। हर मतदाता को एक खाली मतपत्र दिया जाएगाजिसे वह अपनी पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डालेगा।

(ii) प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक अलग संदूक रखने की व्यवस्था को बदल दिया गया। अब मतपत्र पर प्रत्येक उम्मीदवार का नाम व चुनाव चिह्न अंकित किया जाने लगा। मतदाता को अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम के आगे मुहर लगानी होती थी। यह तरीका अगले चालीस सालों तक उपयोग में रहा। मतदान पूर्णतः गुप्त ही रखा गया। 

(iii) सन् 1990 के दशक के अंत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का प्रयोग शुरू कर दिया। सन् 2004 तक सम्पूर्ण देश में ईवीएम का इस्तेमाल प्रारम्भ हो गया। ईवीएम में मोहर लगाने की आवश्यकता नहीं होती। मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार के सामने दिए गए बटन को दबा देता है और मतदान हो जाता है। इस मशीन के द्वारा मतगणना करने में भी अत्यधिक सुविधा होती है।

 

प्रश्न 4. भारत का प्रथम आम चुनाव देश के लोकतांत्रिक इतिहास में किस प्रकार मील का पत्थर साबित हुआउल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनावों को दो बार स्थगित करना पड़ा तथा आखिरकार अक्टूबर सन् 1951 से फरवरीसन् 1952 तक चुनाव हुए। इस चुनाव को सन् 1952 का चुनाव भी कहा जाता है क्योंकि देश के अधिकतर भागों में मतदान सन् 1952 में ही हुए। चुनाव अभियानमतदान और मतगणना में कुल छः महीने लगे। चुनावों में औसतन प्रत्येक सीट के लिए चार उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। लोगों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कुल मतदाताओं में आधे से अधिक ने मतदान के दिन अपना वोट डाला।

चुनावों के परिणाम घोषित होने पर पराजित होने वाले उम्मीदवारों ने भी इन परिणामों को निष्पक्ष बताया। सार्वभौम वयस्क मताधिकार के इस प्रयोग ने आलोचकों का मुँह बंद कर दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने माना कि इन चुनावों ने “उन सभी आलोचकों के संदेहों पर पानी फेर दिया है जो सार्वभौम वयस्क मताधिकार की इस शुरुआत को इस देश के लिए खतरे का सौदा मान रहे हैं।"

देश के बाहर के पर्यवेक्षक भी हैरान थे। हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा- “यह बात हर जगह मानी जा रही है कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया।" सन् 1952 का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। इस प्रकार यह भी साबित हो गया कि दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र पर अमल किया जा सकता है।

 

प्रश्न 5. प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त होने के कारणों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त होने के प्रमुख कारण निम्नांकित हैं। 

1.    कांग्रेस दल ने प्रथम आम चुनाव में लोकसभा की कुल 489 सीटों में 364 सीटें जीतीं और इस प्रकार वह किसी भी प्रतिद्वंद्वी से चुनावी दौड़ में आगे निकल गई। 

2.    लोकसभा के चुनाव के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव भी कराए गए थे। विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बड़ी जीत प्राप्त हुई।

3.    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रचलित नाम कांग्रेस पार्टी था और इस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत प्राप्त थी। उस समय एकमात्र यही पार्टी थीजिसका संगठन सम्पूर्ण देश में था।

4.    कांग्रेस पार्टी में स्वयं जवाहरलाल नेहरू नेजो भारतीय राजनीति के सबसे लोकप्रिय नेता थेकांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया और पूरे देश का दौरा किया। जब चुनाव परिणामों की घोषणा हुई तो कांग्रेस पार्टी की बहुत बड़ी जीत से सभी को आश्चर्य हुआ।

 

प्रश्न 6. एक प्रभुत्व वाली दल प्रणाली के लाभ व हानियों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
एक प्रभुत्व वाली दल प्रणाली के लाभ- इस प्रणाली के लाभ निम्नांकित हैं-

1.    सत्ताधारी दल की स्थिति सुदृढ़ होती है तथा वह स्वतंत्र रूप से शासन का संचालन कर सकता है। 

2.    शासन प्रणाली में स्थायित्व रहता है तथा राष्ट्रीय नीतियों में अधिक परिवर्तन नहीं होता। उनमें निरन्तरता बनी रहती है।

3.    कानून व्यवस्था की स्थिति समाज में सुदृढ़ रहती है तथा शासन का संचालन सामाजिकआर्थिक विकास के लिए सरलतापूर्वक किया जा सकता है। .

4.    यह प्रणाली आपातकाल का मुकाबला आसानी से कर सकती है। 

एक प्रभुत्व वाली दल प्रणाली की हानियाँ: एक प्रभुत्व वाली दल प्रणाली की हानियाँ निम्नलिखित हैं-

1.    एक दलीय व्यवस्था लोकतंत्र की सफलता और विकास हेतु उचित नहीं है। 

2.    प्रभुत्वशाली दल शासन का संचालन तानाशाहीपूर्ण तरीके से करने लगते हैं जिससे शक्ति का दुरुपयोग होता है। 

3.    इस व्यवस्था में विरोधी दल कमजोर होते हैंअतः सरकार की आलोचना प्रभावशाली ढंग से नहीं हो पाती।

4.    इस व्यवस्था के तानाशाही व्यवस्था में बदलने का भय होने के कारण जनता के अधिकार व स्वतंत्रताओं पर अकुंश की संभावना रहती है। 

 

प्रश्न 7. 'जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में हमने अपने देश में एक पार्टी प्रभुत्व को देखा। पार्टी प्रभुत्व के कई कारण थे जिनमें उस समय जनमत की कमजोरी भी एक कारण था। इस कमजोरी ने एक पार्टी प्रभुत्व की स्थापना में योगदान दियाजो निम्न प्रकार है:

1.    नव स्वतंत्र भारत में जनमत निर्माण के आधुनिक साधनों की संख्या बहुत कम थीअतः लोगों में से अधिकांश ने एक पार्टी को वोट दिये।

2.    भारत में सशक्त विपक्षी दल नहीं थे जिनका जनमत निर्माण में प्रमुख योगदान होता है।

3.    जनता का बहुत बड़ा भाग निरक्षर था जो अपनी लोकतंत्र की यात्रा शुरू कर रहा था तथा लोगों को कांग्रेस पार्टी से बहुत आशायें थीं।


उपर्युक्त आधारों हम कह सकते है कि भारत में जनमत कमजोर थाजो विकासोन्मुख था अतः देश में एक पार्टी प्रभुत्व के कायम होने में जनमत की कमजोरी एक महत्त्वपूर्ण कारण थी।

 

प्रश्न 8. समाजवादियों को 1948 में एक अलग सोशलिस्ट पार्टी बनाने के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितियों को उजागर कीजिए। उनके द्वारा कांग्रेस पार्टी की आलोचना करने के किन्हीं दो आधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) सोशलिस्ट पार्टी बनाने के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितियाँ
कांग्रेस द्वारा 1948 में अपने संविधान में परिवर्तन किया गया ताकि कांग्रेस के सदस्य दोहरी सदस्यता न ले सकें। अतः कांग्रेस के समाजवादियों को 1948 में अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

(2) सोशलिस्ट पार्टी द्वारा कांग्रेस की आलोचना करने के दो आधार

1.    सोशलिस्ट पार्टी का मत था कि कांग्रेस पूंजीपतियों तथा जमींदारों की हिमायत कर रही है तथा मजदूरों-किसानों की उपेक्षा कर रही है।

2.    सोशलिस्ट पार्टी लोकतांत्रिक समाजवाद की विचारधारा में यकीन करती थी तथा कांग्रेस व साम्यवादी दलों से अपने को पृथक समझती थी।

 

प्रश्न 9. इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी की स्थापना पर प्रकाश डालिए।
अथवा 
पी.आर.आई. के शासन को परिपूर्ण तानाशाही क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी (इसे स्पेनिश में पी.आर.आई. कहा जाता है) का मैक्सिको में लगभग 60 वर्षों तक शासन रहा। इस पार्टी की स्थापन सन् 1929 में हुई थी तब इसे नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी कहा जाता था। इसे मैक्सिकन क्रांति की विरासत प्राप्त थी। मूल रूप से पी.आर.आई. में राजनेता और सैनिक नेतामजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों सहित कई किस्म के हितों का संगठन था। समय व्यतीत होने के साथ - साथ पी.आर.आई. के संस्थापक प्लूटार्को इलियास कैलस ने इसके संगठन पर कब्जा कर लिया तथा इसके बाद नियमित रूप से होने वाले चुनावों में प्रत्येक बार पी.आर.आई. को विजय प्राप्त होती रही।

चुनाव के नियम इस प्रकार तय किए गए कि पी.आर.आई. की जीत हर बार पक्की हो सके। शासक दल ने हमेशा चुनावों में हेर-फेर व धाँधली की। पी.आर.आई. के शासन को 'परिपूर्ण तानाशाहीकहा जाता है। अंततः सन् 2000 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में यह पार्टी हारी। मैक्सिको अब एक पार्टी के प्रभुत्व वाला देश नहीं रहा। अपने प्रभुत्व के दौर में पी.आर.आई. ने जो दाँव-पेंच अपनाए थेउनका लोकतंत्र पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव की बात पर अब भी नागरिकों का पूर्ण विश्वास नहीं जम पाया है।

 

प्रश्न 10. बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संक्षिप्त परिचय एवं व्यक्तित्व- डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का जन्म सन् 1891 में एक दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने देश में जाति विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया तथा वह दलितों को न्याय दिलाने के संघर्ष में अग्रणी रहे। वे अत्यन्त विद्वान व बुद्धिजीवी व्यक्तित्व के धनी थे। कार्य - बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के संस्थापक थे। कालांतर में उन्होंने अनुसूचित जाति परिसंघ की स्थापना की। वे रिपब्लिकन पार्टी के गठन के योजनाकार थे। द्वितीय विश्व- युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारत के तत्कालीन वायसराय की काउंसिल में सदस्य रहे। वह देश के लिए संविधान निर्माण करने वाली संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष भी रहे।

स्वतंत्रता के बाद पं० जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में वे मंत्री भी रहे। उन्होंने सन् 1951 में हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर अपनी असहमति दर्ज कराते हुए नेहरू मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र दे दिया। अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्धधर्म ग्रहण कर लिया। सन् 1956 में इनका निधन हो गया।

 

प्रश्न 11. भारतीय जनसंघ के गठन व विचारधारा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

भारतीय जनसंघ का गठन- भारतीय जनसंघ का गठन सन् 1951 में हुआ था। इसके संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। इस दल की जड़ें स्वतंत्रता पूर्व के समय से सक्रिय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर. एस. एस.) और हिन्दू महासभा में खोजी जा सकती हैं। प्रारम्भिक वर्षों में इस पार्टी को हिन्दी भाषी राज्योंजैसे - राजस्थानमध्य प्रदेशदिल्ली और उत्तर प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में समर्थन मिला। जनसंघ के नेताओं में श्यामा प्रसाद मुखर्जीदीनदयाल उपाध्याय और बलराज मधोक के नाम सम्मिलित हैं। भारतीय जनता पार्टी की जड़ें इसी जनसंघ में हैं।

 

जनसंघ की विचारधारा:

1.    जनसंघ ने 'एक देशएक संस्कृति और एक राष्ट्रके विचार पर बल दिया। इसका मानना था कि देश भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर आधुनिकप्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है।

2.    जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके 'अखंड भारतबनाने की बात कही। 

3.    जनसंघ अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को राजभाषा बनाने का पक्षधर था। 

4.    इसने धार्मिक व सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियायत देने की बात का विरोध किया। 

 

प्रश्न 12. निम्नांकित नेताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए इनका योगदान बताइए। 
(i) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(ii) दीनदयाल उपाध्याय।
उत्तर:

(i) श्यामा प्रसाद मुखर्जी:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक महान देशभक्त व स्वतंत्रता सेनानी थे इनका जन्म सन् 1901 में हुआ था। वे हिन्दू महासभा के विख्यात नेता थे। स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के प्रथम मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री पद पर नियुक्त किया गया था। वह संविधान सभा के सदस्य रह चुके थे। उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की। पं. नेहरू के साथ पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों में मतभेदों के कारण सन् 1950 में उन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। वह लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वह कश्मीर को स्वायत्तता देने के विरोधी थे। कश्मीर नीति पर भारतीय जनसंघ के प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा सन् 1953 में पुलिस हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई।

 

(ii) दीनदयाल उपाध्याय- दीनदयाल उपाध्याय का जन्म सन् 1916 में हुआ। सन् 1942 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से थे। वह भारतीय जनसंघ में पहले महासचिव तत्पश्चात् फिर अध्यक्ष पद भी पर रहे। वे समग्र मानवतावाद सिद्धान्त के प्रणेता थे। सन् 1968 में उनकी मृत्यु हो गई। 

 

 

प्रश्न 13. स्वतंत्र पार्टी के गठन पर प्रकाश डालते हुए इसकी विचारधारा व कार्यक्रम का वर्णन कीजिए।
अथवा 
स्वतंत्र पार्टी के किन्हीं दो संस्थापक नेताओं के नाम लिखिए। इस पार्टी की किन्हीं तीन आर्थिक नीतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

स्वतंत्र पार्टी का गठन- स्वतंत्र पार्टी का गठन अगस्त 1959 में किया गया। इस पार्टी का नेतृत्व सी. राजगोपालाचारीके. एम. मुंशीएन. जी. रंगा और मीनू मसानी जैसे पुराने कांग्रेसी नेताओं ने किया। यह पार्टी आर्थिक मुद्दों पर अपनी खास किस्म की पक्षधरता के कारण दूसरी पार्टियों से अलग थी। 

 

विचारधारा व कार्यक्रम: स्वतंत्र पार्टी की विचारधारा व कार्यक्रम निम्नांकित थे।

1.    स्वतंत्र पार्टी का विचार था कि सरकार अर्थव्यवस्था में कम - से - कम हस्तक्षेप करे। इसका मानना था कि समृद्धि केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के द्वारा आ सकती है। स्वतंत्र पार्टी अर्थव्यवस्था के अंदर सार्वजनिक क्षेत्र की उपस्थिति को आलोचना की दृष्टि से देखती है।

2.    यह पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हित को ध्यान में रखकर किए जा रहे कराधान के भी विरुद्ध थी। इस दल ने निजी क्षेत्र को स्वतंत्रता देने का पक्ष लिया।

3.    स्वतंत्र पार्टी कृषि में जमीन की हदबंदीसहकारी खेती व खाद्यान्न के व्यापार पर सरकारी नियंत्रण के विरुद्ध थी। यह दल गुटनिरपेक्षता की नीति व सोवियत संघ से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध कायम रखने का विरोधी था। इसने संयुक्त राज्य अमरीका से निकट सम्बन्ध कायम करने का पक्ष लिया। 

 

प्रश्न 14. कांग्रेस पार्टी तथा 1959 में बनी स्वतंत्र पार्टी की आर्थिक विचारधाराओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

(1) कांग्रेस पार्टी की आर्थिक नीतियाँ

1.    कांग्रेस ने नागपुर अधिवेशन में जमीन की हबंदीखाद्यान्न के व्यापारसरकारी अधिग्रहण तथा सहकारी खेती का प्रस्ताव पारित किया था।

2.    कांग्रेस पार्टी अर्थव्यवस्था में मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की हिमायत करती थी। पार्टी ने केन्द्रीकृत नियोजनराष्ट्रीयकरण तथा अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की उपस्थिति को प्राथमिकता दी।

(2) स्वतंत्र पार्टी की आर्थिक नीतियाँ:

1.    स्वतंत्र पार्टी अगस्त 1959 में अस्तित्व में आयी थी। यह पार्टी अर्थव्यवस्था में सरकार के हस्तक्षेप को बहुत सीमित रखना चाहती थी। स्वतंत्र पार्टी अर्थव्यवस्था के अन्दर सार्वजनिक क्षेत्र की उपस्थिति की विरोधी थी। 

2.    स्वतंत्र पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हित को ध्यान में रखकर किए जाने वाले कराधान के विरुद्ध थी। इस पार्टी ने निजी क्षेत्र को खुली छूट देने का समर्थन किया। यह पार्टी कृषि में जमीन की हदबंदीसहकारी खेती तथा खाद्यान्न के व्यापार पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ थी। 

 

प्रश्न 15. मतदान के बदलते तरीके के रूप में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा 
इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा मतदान के आधुनिक तरीके पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पहले आम चुनाव में मतदान हेतु हर एक मतदान केन्द्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक मतपेटी रखी जाती थी। प्रत्येक मतदाता खाली मतपत्र को अपनी पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डालता था। शुरुआती दो चुनावों के बाद यह तरीका बदल दिया गया तथा हर मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम व चुनाव चिह्न अंकित किया जाने लगा।

मतदाता को इस मतपत्र पर अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगानी होती थी। यह तरीका अगले चालीस वर्षों तक उपयोग में लाया गया। सन् 1990 के दशक के अंत में चुनाव आयोग ने इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का प्रयोग शुरू किया। सन् 2004 तक पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल प्रारंभ हो गया। इस मशीन के द्वारा मतदाता उम्मीदवारों के विषय में अपनी पसंद व्यक्त करते हैं तथा प्रत्येक उम्मीदवार व उसके चुनाव चिह्न के आगे लगे बटनों में से किसी एक बटन को जिसे वह वोट देना चाहते हैं दबाते हैं। 

बटन दबाते ही 'पीजैसी लंबी बीप की आवाज़ आती है और मतदान हो जाता है। इस मशीन को अगले मतदाता द्वारा मतदान करने पर पुन: चालू करना होता है अतः दोहरा मतदान भी नहीं हो सकता। साथ ही मतगणना में लगने वाले समय की बचत होती है। मतपत्र में लगने वाला कागज व मतपेटियों आदि का खर्चा बच जाता है। एक बार चुनाव हो जाने के बाद ईवीएम को अगले चुनावों में प्रयोग करने हेतु सुरक्षित रूप से रख दिया जाता है। 

 

 

 

निबन्धात्मक प्रश्न:

 

प्रश्न 1. ऐसे किन्हीं तीन घटकों का उल्लेख कीजिए जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् कांग्रेस के वर्चस्व को भारत के राजनैतिक परिदृश्य में लगातार तीन दशकों तक कायम रखने में सहायता प्रदान की?
अथवा 
भारतीय राजनीति में सन् 1952 से 1967 के युग को 'एक दल के प्रभुत्व का दौरकहकर पुकारा गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं
किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या कीजिएजिन्होंने इस प्रभुत्व को बनाए रखने में सहायता की है।
अथवा 
व्याख्या कीजिए कि कैसे चुनावी प्रतिस्पर्धा के पहले दशक का काल कांग्रेस प्रणाली कहा जाता है?
उत्तर:
कांग्रेस की स्थापना: कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 ई. में हुई थी। इसकी स्थापना ए. ओ. ह्यूम ने की थी। यह वही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी जिसने जन आंदोलन का मंच तैयार किया। इसी कारण कांग्रेस (ओ.) कांग्रेस (आर.)उत्कल कांग्रेसकांग्रेस फॉर डेमोक्रेसीराष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी तथा कांग्रेस (आई.) आदि सभी राजनैतिक दल कांग्रेस नाम को ही धारण करते हैं।

कांग्रेस के प्रारम्भिक रूप में यह नवशिक्षितकार्यशील और व्यापारिक वर्गों का एक हित - समूह मात्र थी परन्तु बीसवीं सदी में इसने जन आंदोलन का रूप धारण कर लिया। इस कारण से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप ले लिया तथा राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ। कांग्रेस का वर्चस्व भारत के राजनैतिक परिदृश्य में लगातार तीन दशकों तक स्थापित रहा। ऐसे तीन घटक या कारक निम्नलिखित हैं जिन्होंने कांग्रेस का प्रभुत्व बनाए रखा

 

(i) कांग्रेस का चमत्कारिक नेतृत्व- राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के चमत्कारिक नेतृत्व में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। भारत के सन् 1952 में हुए पहले आम चुनाव के परिणामों से शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ हो। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जनप्रचलित नाम कांग्रेस पार्टी था तथा इस पार्टी को स्वतंत्रता संग्राम की विरासत प्राप्त थी। तब के दिनों में यही एकमात्र पार्टी थी जिसका संगठन सम्पूर्ण भारत में था। इस पार्टी में जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई और लोकप्रिय नेता थे। नेहरू ने कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया तथा सम्पूर्ण देश का दौरा किया। लोकसभा के पहले चुनाव में कांग्रेस ने कुल 489 सीटों में से 364 सीटें जीतीं तथा इस तरह वह किसी भी प्रतिद्वंद्वी से चुनाव दौड़ में बहुत आगे निकल गई। 

 

दूसरा आम चुनाव सन् 1957 में और तीसरा चुनाव सन् 1962 में हुआ। इन चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपनी पुरानी स्थिति बनाये रखी। कांग्रेस की इस सफलता को उस समय की कांग्रेस प्रणाली भी कहा जाने लगा था। इस प्रकार कांग्रेस के चमत्कारिक नेतृत्व में स्वतंत्रता के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन का आकार ग्रहण कर चुकी थी। कांग्रेस ने अपने अन्दर क्रांतिकारी और शांतिवादीरूढ़िवादी और परिवर्तनवादीगरमपंथी और नरमपंथीदक्षिणपंथीवामपंथी और प्रत्येक धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया।

 

(ii) जनसामान्य की मनोवृत्तियों का अच्छा ज्ञान होना: सन् 1947 से 1977 के 30 वर्ष के आँकड़ों का पुनर्समरण करने पर यह बात स्पष्ट होती है कि कांग्रेस इन वर्षों में लगातार भारत की जनता पर वर्चस्व कायम करती रही। दीर्घकालिक अनुभव होने के कारण कांग्रेस प्रत्येक बार नए-नए रूप में जनता के सामने अपना चुनावी घोषणा-पत्र प्रस्तुत करती रही। कांग्रेस पार्टी का रूप प्रारंभ से ही शांतउग्ररूढ़िग्रस्तवामपंथीदक्षिणपंथीक्रान्तिकारीसक्रिय व निष्क्रिय नीति वाले जन-समूहों का गठजोड़ है। इसके पास राजनीति में आने वाले लोगों की मनोदशा व उसमें आने वाले सामयिक परिवर्तनों का लम्बा-चौड़ा अभिलेख है। उसे पता था कि कौन-सी मनोवृत्ति वाले व्यक्ति प्रत्येक चुनाव में जनमत प्राप्त करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाने में सक्षम हैं।

 

(iii) कांग्रेस का गठबंधनी स्वभाव और सहनशीलता: कांग्रेस के गठबंधनी स्वभाव ने उसे एक असाधारण शक्ति प्रदान की। सुलह-समझौते के रास्ते पर चलना और सर्व समावेशी होना गठबंधन की विशेषता होती है। इस रणनीति की वजह से विपक्ष कठिनाई में पड़ा। विपक्ष कोई बात कहना चाहे तो कांग्रेस की विचारधारा और कार्यक्रमों में उसे तुरंत स्थान मिल जाता था। दूसरेअगर किसी पार्टी का स्वभाव गठबंधनी हो तो अंदरूनी मतभेदों को लेकर उसमें सहनशीलता भी अधिक होती है। 

विभिन्न समूह और नेताओं की महत्वाकांक्षाओं की भी उसमें समावेशिता हो जाती है। कांग्रेस ने स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान इन दोनों ही बातों पर विचार किया था व स्वतंत्रता मिलने के बाद भी उस पर अमल जारी रखा। पार्टी के अंदर मौजूद विभिन्न समूह गुट कहे जाते एक दल के प्रभुत्व का दौर 19289 हैं। अपने गठबंधनी स्वभाव के कारण कांग्रेस विभिन्न गुटों के प्रति सहनशील थी और इस स्वभाव से विभिन्न गुटों को बढ़ावा भी मिला। ऐसे में अंदरूनी गुटबाजी कांग्रेस की कमजोरी बनने की अपेक्षा उसकी ताकत सिद्ध हुई। चूँकि पार्टी के भीतर विभिन्न गुटों की आपसी होड़ के लिए गुंजाइश थी अतः विभिन्न हित और विचारधाराओं के समर्थन कर रहे नेता कांग्रेस के भीतर ही बने रहे। पार्टी से बाहर निकलकर नई पार्टी बनाने को इन्होंने एक अच्छा कदम नहीं समझा।

 

 

प्रश्न 2. भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हुए आम चुनावों में एक दल के प्रभुत्व के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा 
भारत में पहले तीन आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के किन्हीं चार कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हुए आम चुनावों में एक दल के प्रभुत्व के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
(i) सभी वगो को समान प्रतिनिधित्व: प्रारम्भिक वर्षों में भारत में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्त्व रहा। इस प्रभुत्व का महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि इस पार्टी के अन्दर देश के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्त्व प्राप्त था। काँग्रेस ने अपने अन्दर क्रान्तिकारी और शान्तिवादीकंजरवेटिव और रेडिकलगरमपंथी और नरमपंथीदक्षिणपंथी और वामपंथी तथा प्रत्येक धारा के मध्यमार्गियों को सम्मिलित किया। यह पार्टी एक मंच की तरह थी जिस पर अनेक समूहहित एवं राजनीतिक दल एकत्रित हो जाते थे। इस काल में से लोगों ने इस पार्टी को अपना मत दिया।

 

(ii) अधिकांश विरोधी दलों का निर्माण कांग्रेस से ही हुआ: स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में भारत में जितने भी विरोधी दल थेउनमें से अधिकांश राजनीतिक दल कांग्रेस से ही निकले हुए थे। अतः लोगों ने काँग्रेस से अलग हुए दलों की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही वोट देना उचित समझा।

 

(iii) राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों एवं नीतियों में समानता का होना: कांग्रेस और उसकी विरोधी पार्टियों के कार्यक्रमों एवं नीतियों में बहुत अधिक समानता पायी जाती थी। विपक्ष कोई बात कहता था तो कांग्रेस की विचारधारा और कार्यक्रम में तुरन्त स्थान मिल जाता। इसलिए मतदाताओं ने अन्य पार्टियों को मत देने की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही मत देना उचित समझा जिसने कांग्रेस के प्रभुत्त्व को स्थापित करने में सहायता प्रदान की।

 

(iv) सन् 1967 के पश्चात् भी केन्द्र में कांग्रेस प्रभुत्व: सन् 1967 के आम चुनावों के पश्चात् भारतीय संघ के राज्यों में से कांग्रेस की प्रधानता समाप्त हो गयी परन्तु केन्द्र में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। केन्द्र में अभी भी कांग्रेस पार्टी की शक्तिशाली सरकार थी जो राज्यों की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह करती थी।

 

 

(v) राजनीतिक दल-बदल की अधिकता: सन् 1967 के आम चुनावों के पश्चात् बड़े पैमाने पर दल-बदल की राजनीति हावी रही। इससे परोक्ष रूप से कांग्रेस पार्टी को और अधिक शक्तिशाली करने में सहायता प्रदान की। यद्यपि दल-बदल ने केन्द्र व राज्यों की राजनीति एवं शासन में अस्थिरता ला दी व इसके कारण भारतीय राजनीति में आयाराम-गयाराम जैसे शब्द जुड़ गये। लेकिन इस दल-बदल ने कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व को बढ़ाने में मदद की।

 

(vi) गठबंधन सरकारों की असफलता: कांग्रेस पार्टी की प्रधानता का एक प्रमुख कारण यह भी था कि राज्यों में गठबंधन सरकारों को सफलता प्राप्त नहीं हुई। सन् 1967 के आम चुनावों के पश्चात् भारतीय संघ के अपने राज्यों में गैर कांग्रेस गठबंधन सरकारें बनीं परन्तु गैर कांग्रेस नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण आपस में उलझते रहे जिस कारण राज्यों में गठबंधन सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायीं उन्हें असफलता का मुँह देखना पड़ा। फलस्वरूप देश की जनता का गैर कांग्रेसी सरकारों से मोह भंग हो गया जिसका लाभ कांग्रेस पार्टी को प्राप्त हुआ।

 

प्रश्न 3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी किस क्रांति से प्रेरित थीइसकी नीतियों और विचारधारा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठन: सन् 1920 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी-समूह (कम्युनिस्ट ग्रुप) उभरकर सामने आए। ये समूह रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे तथा देश की समस्याओं के समाधान हेतु साम्यवाद की राह अपनाने का समर्थन कर रहे थे। सन् 1935 से साम्यवादियों ने मुख्यतः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दायरे में रहकर काम किया। कांग्रेस से साम्यवादी सन् 1941 के दिसंबर में अलग हुए। इस समय साम्यवादियों ने नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ रहे ब्रिटेन को समर्थन देने का फैसला किया। कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियाँ और विचारधारा - कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियाँ अन्य पार्टियों से अलग थीं। इसकी प्रमुख नीतियाँ व विचारधारा अग्रलिखित प्रकार हैं

1.    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विचार था कि सन् 1947 में सत्ता का जो हस्तांतरण हुआ था वह सच्ची स्वतंत्रता नहीं थी। इस विचार के साथ पार्टी ने तेलंगाना में हिंसक विद्रोह को बढ़ावा दिया।

2.    यह दल अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु हिंसात्मक तरीकों में विश्वास करता था। परन्तु सन् 1951 में पुनर्विचार करने के बाद इसने हिंसात्मक साधनों का मार्ग त्यागकर संवैधानिक मार्ग अपनाने का निर्णय किया।

3.    यह दल रूस के साम्यवादी दल के संरक्षण में बना था तथा इसकी कार्यप्रणाली भी उसी से प्रभावित थी। अतः यह लोकतांत्रिक पद्धति में विश्वास रखता थाउदारवादी लोकतंत्र में नहीं।

4.    यह दल पूँजीवादी व्यवस्था का विरोधी तथा राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था का समर्थक था।

5.    यह दल इस बात का भी समर्थन करता था कि सामाजिक ढाँचे का भी पुनर्निर्माण हो तथा भारत में समाजवादी समाज की स्थापना की जाए।

6.    कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवादी लोकतंत्र में विश्वास करती थी।

7.    यह दल उद्योगों के राष्ट्रीयकरण व अर्थव्यवस्था पर राज्य के नियंत्रण द्वारा आर्थिक असमानताशोषण व अत्याचार तथा जातिभेद आदि को समाप्त करना चाहता था।

8.    कम्युनिस्ट निजी पूँजी और पूँजीपतियों को पूर्णतः अनावश्यक व समाजद्रोही मानते हैं। 

9.    कम्युनिस्ट विचारधारा पूँजीपतियों के बजाय मजदूरोंजमींदारों के बजाय किसानों के हितों की पक्षधर है चाहे वह हिंसात्मक तरीके हों अथवा सरकार जबरदस्ती उत्पादन के साधनों और भूमि का राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर क्यों न हो।

 

प्रश्न 4. लोकतंत्र में विपक्ष एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। क्या एक दलीय शासन के युग में सरकार की त्रुटियों और भूलों को उजागर कर जनता के सामने लाने की भूमिका का निर्वाह हमारे देश के विपक्षी दल कर पाये हैंअपने उत्तर के समर्थन में किन्हीं तीन तर्कों को लिखिए।
उत्तर:
एक दलीय प्रभुत्व के दौर में चुनाव परिणामों की चर्चा में हमारे सामने कांग्रेस के अतिरिक्त अन्य पार्टियों के नाम भी आए। बहुदलीय लोकतंत्र वाले अन्य अनेक देशों की तुलना में उस समय भी भारत में बहुविध और जीवन्त विपक्षी पार्टियाँ थीं। इनमें से अनेक पार्टियाँ सन् 1952 के आम चुनावों से कहीं पहले की थीं। इनमें से कुछ पार्टियों ने 'साठऔर 'सत्तरके दशक में देश की राजनीतिक प्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।

आज की लगभग सभी गैर-कांग्रेसी पार्टियों की जड़ें सन् 1950 के दशक की किसी-न-किसी विपक्षी पार्टी में खोजी जा सकती हैं। लोकतंत्र में विपक्ष एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। एक दलीय शासन के युग में सरकार की त्रुटियों और भूलों को उजागर कर जनता के सामने लाने की भूमिका का निर्वाह विपक्षी दलों ने किया। ऐसे तीन तर्क निम्नलिखित हैं

 

(i) विपक्षी दलों के उदय का प्रारंभिक काल: सन् 1950 के दशक में विभिन्न विपक्षी दलों को लोकसभा या विधानसभा में कहने भर को प्रतिनिधित्व मिल पाया परन्तु फिर भी इन दलों की मौजूदगी ने हमारी शासन व्यवस्था क लोकतांत्रिक चरित्र को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाई। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टीकम्युनिस्ट पार्टीभारतीय जनसंघस्वतंत्र लेबर पार्टीद्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी. एम. के.) जैसी पार्टियाँ भारत की स्वतंत्रता से पहले ही बन चुकी थीं तथा इन दलों ने कांग्रेस पार्टी की नीतियों व व्यवहारों की सकारात्मक आलोचना की। इस आलोचना में सिद्धान्तों का बल होता था।

 

(ii) सत्तारूढ़ दल की कमियों को उजागर करना: सभी विपक्षी दलों की धारणाओंमान्यताओं व कार्य करने के तौर-तरीकों में बहुत अंतर था अतः वे अपनी मान्यताओं व नीतियों के आधार पर एकदलीय सरकार के विरुद्ध आलोचना के सशक्त स्वर उठाने लगे। विपक्षी दलों ने शासक-दल पर अंकुश रखा और अधिकांशतः इन दलों के कारण कांग्रेस पार्टी के भीतर शक्ति संतुलन बदला। इन दलों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवित रखा। ऐसा. करके इन दलों ने व्यवस्थाजन्य रोष को लोकतंत्र विरोधी बनने से रोका। इन दलों ने ऐसे नेता तैयार किए जिन्होंने आगे के समय में हमारे देश की तस्वीर को सँवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

 

(iii) शासक दल की तानाशाही प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना: विपक्षी पार्टियाँ सत्ताधारी दल की गलतियों व भूलों को जनता के समक्ष उजागर करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं। वे शासक दल की तानाशाही प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने हेतु सतत् रूप से आलोचनात्मक रुख अपनाती रहीं। कांग्रेस की अधिकतर प्रांतीय इकाइयाँविभिन्न गुटों को मिलाकर बनी थीं। ये गुट अलग - अलग विचारधारात्मक रुख अपनाते थे।

दूसरी पार्टियाँ मुख्यतः कांग्रेस के इस या उस गुट को प्रभावित करने की कोशिश करती थीं। ये पार्टियाँ सत्ता के वास्तविक इस्तेमाल से कोसों दूर थीं। शासक दल का कोई विकल्प नहीं था। इसके बावजूद विपक्षी पार्टियाँ लगातार कांग्रेस की आलोचना करती थीं। उस पर दबाव डालती थीं और इस क्रम में उसे प्रभावित करती थीं। गुटों की मौजूदगी की यह प्रणाली शासक दल के भीतर संतुलन साधने के एक औजार की तरह काम करती थी।

प्रारंभिक वर्षों में कांग्रेस और विपक्षी दलों के बीच पारस्परिक सम्मान का भाव था। स्वतंत्रता की उद्घोषणा के बाद अंतरिम सरकार ने देश का शासन सँभाला था। इसके मंत्रिमंडल में डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे विपक्षी नेता शामिल थे। जवाहरलाल नेहरू अक्सर सोशलिस्ट पार्टी के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते रहते थे। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से इस प्रकार का निजी रिश्ता व उसके प्रति सम्मान का भाव दलगत प्रतिस्पर्धा के तेज होने के बाद लगातार कम होता गया। इस प्रकार जैसे-जैसे कांग्रेस की क्षमता घटी वैसे-वैसे अन्य विपक्षी राजनीतिक दलों को महत्त्व मिलना शुरू हुआ।

 


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