Monday, September 29, 2025

Class 12th Political Science Chapter 3 Book-2 imp QA

 







 Class-12 Political Science

Chapter- 3 (नियोजित विकास की राजनीति)

 

 

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न:

 

प्रश्न 1. द्वितीय पंचवर्षीय योजना के दिशा - निर्देशों के अनुसारसरकार ने किस प्रकार देसी उद्योगों को संरक्षण देने की कोशिश की?
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना के तहत सरकार ने आयातित वस्तुओं पर कर बढ़ाकर आयातित वस्तुओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया।

 

प्रश्न 2. वामपंथी विचारधारा से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
वामपंथी विचारधारा निर्धन एवं पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करती है एवं इनको लाभ पहुँचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करती है।

 

प्रश्न 3. दक्षिणपंथी विचारधारा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दक्षिणपंथी विचारधारा खुली प्रतिस्पर्धा एवं बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था को प्रेरित करती है। इस विचारधारा के अनुसार सरकार को अर्थव्यवस्था में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

 

प्रश्न 4. स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष विकास के कौन-कौन से मॉडल थे?
उत्तर:

1.    पूँजीवादी मॉडल,

2.    समाजवादी मॉडल। 

 

 

प्रश्न 5. नीति आयोग की स्थापना कब हुई
उत्तर:
नीति आयोग की स्थापना 1 जनवरी, 2015 को हुई।

 

 

प्रश्न 6. सन् 1944 में उद्योगपतियों के एक वर्ग ने देश में नियंत्रित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार कियाउसे किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
बॉम्बे प्लान। 

 

 

प्रश्न 7. किस देश की तरह भारत के योजना आयोग ने पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना
उत्तर:
सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। 

 

 

प्रश्न 8. बजट का क्या अर्थ है
उत्तर:
सरकारी आय - व्यय का वार्षिक विवरण बजट कहलाता है। 

 

 

प्रश्न 9. पी.सी. महालनोबिस कौन थे
उत्तर:
पी.सी.महालनोबिस एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। वे द्वितीय पंचवर्षीय योजना के योजनाकार थे। 

 

 

प्रश्न 10. द्वितीय पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
तीव्र गति से संरचनात्मक विकास करना। 

 

 

प्रश्न 11. गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने की कोशिश किसने की
उत्तर:
जे.सी.कुमारप्पा ने गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने की कोशिश की। 

 

 

प्रश्न 12. जे. सी. कुमारप्पा द्वारा लिखित पुस्तक का नाम बताइए। 
उत्तर:
'इकॉनोमी ऑफ परमानेस

 

 

प्रश्न 13. केरल मॉडल किसे कहा जाता है
उत्तर:
केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया उसे 'केरल मॉडलकहा जाता है। 

 

 

प्रश्न 14. 'केरल मॉडलमें 'नवलोकतंत्रात्मक पहलनाम का अभियान कैसे चलाया गया था?
उत्तर:
केरल मॉडल में लोगों को स्वयंसेवी नागरिक संगठनों के माध्यम से विकास की गतिविधियों में सम्मिलित करके 'नवलोकतंत्रात्मक पहलनाम का अभियान चलाया गया।

 

 

प्रश्न 15. भारत में किस प्रकार की अर्थव्यवस्था अपनायी गयी
उत्तर:
भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनायी गयी। 

 

 

प्रश्न 16. भारतीय अर्थव्यवस्था को किस कारण मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है?
उत्तर:
भारत ने पूँजीवादी मॉडल एवं समाजवादी मॉडल की मुख्य बातों को अपने देश में मिले - जुले रूप में लागू किया। इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

 

 

प्रश्न 17. नियोजित विकास से क्या आशय है?
उत्तर:
नियोजित विकास से आशय कम से कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का उपयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने से है।

 

 

प्रश्न 18. भारत में हरित क्रान्ति की आवश्यकता क्यों पड़ी
उत्तर:
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लिए। 

 

 

प्रश्न 19. हरित क्रांति के कोई दो सकारात्मक परिणाम लिखिए।
अथवा 
भारत में हरित क्रान्ति से किस फसल की पैदावार में सर्वाधिक वृद्धि हुई
उत्तर:

1.    भारत में हरित क्रान्ति से गेहूँ की पैदावार में सर्वाधिक वृद्धि हुई। 

2.    हरित क्रान्ति के कारण धनी किसान तथा बड़े भू-स्वामियों को अधिक लाभ हुआ। 

 

 

प्रश्न 20. 'ऑपरेशन फ्लडसे आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
'ऑपरेशन फ्लडएक ग्रामीण विकास कार्यक्रम था जिसके अन्तर्गत सहकारी दुग्ध उत्पादकों को उत्पादन और वितरण के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया।

 

 

प्रश्न 21. 'ऑपरेशन फ्लडके नाम से ग्रामीण विकास कार्यक्रम कब शुरू हुआ
उत्तर:
सन् 1970 में 'ऑपरेशन फ्लडके नाम से ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ। 

 

 

प्रश्न 22. गुजरात में अमूल की शुरुआत किसने की? 
उत्तर:
वर्गीज कूरियन ने गुजरात में अमूल की शुरुआत की। 

 

 

प्रश्न 23. 'मिल्क मैन ऑफ इंडियाकिसे कहा जाता है?
उत्तर:
वर्गीज कूरियन को।

 

 

प्रश्न 24. योजना आयोग के सदस्य के रूप में आप भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में किस क्षेत्र पर बल देते?
उत्तर:
देश को गरीबी से निकालने पर तथा सबको रोजगार दिलाने पर। 

 

 

प्रश्न 25. योजना आयोग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
योजना आयोग एक ऐसी संस्था थी जो देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के कार्यक्रमों को लागू करने के लिए सरकार को सलाह देती थी।

 

 

प्रश्न 26. नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष कौन थे
उत्तर:
अरविंद पनगढ़िया। 

 

 

प्रश्न 27. नीति आयोग के वर्तमान उपाध्यक्ष कौन हैं?
उत्तर:
राजीव कुमार। 

 

 

 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA1):

 

प्रश्न 1. योजना आयोग की स्थापना कब हुईयोजना आयोग के प्रस्ताव में किन नीतियों को व्यवहार में लाने की बात कही गयी?
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना सन् 1950 ई. में हुई। योजना आयोग के प्रस्ताव में निम्नलिखित नीतियों को व्यवहार में लाने की बात कही गयी

1.    स्त्री और पुरुष सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधनों का समान अधिकार हो। 

2.    समुदाय के भौतिक संसाधनों और उनके नियंत्रण को इस तरह बाँटा जाएगा कि उससे जनसाधारण की भलाई हो।

3.    अर्थव्यवस्था का संचालन इस तरह नहीं किया जाएगा कि धन अथवा उत्पादन के साधन एक-दो स्थानों पर ही केन्द्रित हो जाएँ तथा जनसामान्य की भलाई बाधित हो।

 

 

प्रश्न 2. निम्नलिखित अवतरण को ध्यान से पढ़िए और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
विकास के दो जाने - माने मॉडलों में सेभारत ने किसी को नहीं अपनाया ............ दोनों ही मॉडलों की कुछ एक बातों को ले लिया गया और अपने देश में इन्हें मिले जुले रूप में लागू किया गया। इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को 'मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा गया है।
1. विकास के दो मॉडलों के नाम लिखिए।
2. भारत ने दोनों मॉडलों में से किसी एक को भी पूर्णतया स्वीकार क्यों नहीं कियाप्रत्येक के लिए कम से कम एक मुख्य कारण दीजिए।
3. भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था की ऐसी दो विशेषताओं को उजागर कीजिए जो उपरोक्त मॉडलों पर आधारित
उत्तर:

1.    पूँजीवादी मॉडल व समाजवादी मॉडल।

2.    भारत में पूँजीवादी व समाजवादी मॉडल क्योंकि पूँजीवादी मॉडल सामाजिक कल्याण के स्थान पर निजी क्षेत्रों को प्राथमिकता देता है जबकि समाजवादी मॉडल में निजी संपत्ति को समाप्त करउत्पादन राज्य द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

3.    • निजी और सार्वजनिक क्षेत्र का अस्तित्व
• व्यक्तिगत स्वतंत्रता
• आर्थिक योजना
• एकाधिकार शक्ति का नियंत्रण। 

 

 

प्रश्न 3. सन् 1940 और सन् 1950 के दशक में सम्पूर्ण विश्व नियोजन के पक्ष में क्यों था?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण हेतु नियोजन के विचार को सन् 1940 व सन् 1950 के दशक में सम्पूर्ण विश्व में जन-समर्थन प्राप्त हुआ था। यूरोप महामंदी का शिकार होकर बहुत कुछ सबक सीख चुका थाजापान तथा जर्मनी ने युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद अपनी अर्थव्यवस्था पुनः खड़ी कर ली थी और सोवियत संघ ने सन् 1930 व सन् 1940 के दशक में भारी कठिनाइयों के बीच शानदार आर्थिक प्रगति की थी। इन समस्त बातों के कारण नियोजन के पक्ष में सम्पूर्ण विश्व में हवा बह रही थी। 

 

 

प्रश्न 4. बॉम्बे प्लान क्या है?
उत्तर:
भारत में सन् 1944 में उद्योगपतियों का एक वर्ग एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे 'बॉम्बे प्लानकहा जाता है। 'बॉम्बे प्लानका मत था कि सरकार औद्योगिक और अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। इस प्रकार दक्षिणपंथी और वामपंथी सभी नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चलना चाहते थे।

 

 

प्रश्न 5. 'योजनासे आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
योजना से अभिप्राय किसी निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों से है। योजना के अन्तर्गत देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लक्ष्य रखे जाते हैं जिनकी प्राप्ति के लिए देश में व देश के बाहर से सभी साधन जुटाये जाते हैं। उद्देश्यों की प्राप्ति तथा साधनों को जुटाने के लिए सम्बन्धित देश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति को देखते हुए विकास की व्यूह रचना निर्धारित की जाती है। 

 

 

प्रश्न 6. नियोजित विकास का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
नियोजित विकास व्यापक स्तर पर पर्यावरण की जानकारी प्राप्त करने तथा इससे संबद्ध मुद्दों जैसे साझी सम्पत्ति का बोध प्राप्त करने तथा पर्यावरण व मानव विकास को संतुलित अवस्था में संरक्षण प्रदान करने के उत्तरदायित्व का निर्वाह करने को समाविष्ट करता है। अन्य शब्दों मेंनियोजित विकास सतत् विकास की उपलब्धि की ओर अग्रसर करने वाला एक कदम है। यह पर्यावरण के साथ अनुशासित ढंग से जीवन बिताने की एक विधि है।

 

 

प्रश्न 7. भारतीय नियोजन की तीन प्रमुख कठिनाइयाँ बताइए।
उत्तर:

1.    भारत जैसी पिछड़ी अर्थव्यवस्था में कृषि व उद्योग के बीच किसमें अधिक संसाधन लगाए जाने चाहिए ताकि सही दिशा में विकास हो सके।

2.    नियोजन से शहरी और औद्योगिक वर्ग समृद्ध हो रहे हैं तथा इसकी कीमत किसानों तथा ग्रामीण जनता को चुकानी पड़ रही थी।

3.    जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की गति मन्द रही है। 

 

 

प्रश्न 8. प्रथम पंचवर्षीय योजना में किन बातों पर बल दिया गया था?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951 - 1956) में गरीबी को दूर करने का प्रयास किया गया था। इस योजना में अधिक बल कृषि क्षेत्र पर था। इसी योजना के अन्तर्गत बाँध तथा सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। भाखड़ा - नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशि आवंटित की गयी। इस योजना में भूमि - सुधार पर बल दिया गया और उसे देश के विकास की बुनियाद माना गया।

 

 

प्रश्न 9. नीति आयोग क्या है?
उत्तर:
नीति आयोग भारत सरकार द्वारा गठित एक नया संस्थान है जिसकी स्थापना योजना आयोग के स्थान पर की गयी है। इसकी स्थापना 1 जनवरी, 2015 को हुई थी। प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं।

 

 

प्रश्न 10. भूमि सुधार के क्षेत्र में कौन-कौन से प्रयास किए गए ?
उत्तर:
जहाँ तक कृषि क्षेत्र का सवाल हैइस अवधि में भूमि सुधार के गम्भीर प्रयास हुए। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण और सफल प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। यह प्रथा ब्रिटिश शासन के समय से चली आ रही थी। इस साहसिक कदम को उठाने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिसे कृषि में कोई रुचि नहीं थी। जमीन के छोटे - छोटे टुकड़ों को एक साथ (चकबंदी) करने के प्रयास किए गए जिससे खेती का काम सुविधाजनक हो सके।

 

 

प्रश्न 11. खाद्य संकट के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
सन् 1960 के दशक में कृषि की दशा अत्यन्त खराब हो गयी थी। खाद्यान्न के अभाव में कुपोषण बड़े पैमाने पर फैला तथा इसने गम्भीर रूप धारण किया। सन् 1965 से 1967 के बीच देश के अनेक भागों में सूखा पड़ा। इन वर्षों के दौरान बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न कीमतें भी काफी बढ़ीं। खाद्य संकट के कई परिणाम हुए। सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा और विदेशी सहायता भी स्वीकार करनी पड़ी।

 

 

प्रश्न 12. 'हरित क्रांतिके किन्हीं चार लाभों का मूल्यांकन कीजिए। 
उत्तर:

1.    हरित क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म की वृद्धि हुई। 

2.    देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हुई। 

3.    हरित क्रांति के कारण कृषि में मझोले दर्जे के किसानों यानि मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ। 

4.    कहीं भी किसी भी फसल को विकसित करने में सक्षम होने की क्षमता पैदा हुई। 

 

प्रश्न 13. श्वेत क्रान्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गुजरात राज्य के एक नगर आणंद में सहकारी दुग्ध उत्पादन का आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। यह 'अमूलनाम से प्रसिद्ध है। यह एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम के रूप में प्रारम्भ हुआ था। इसके माध्यम से दूध उत्पादकों की आय में वृद्धि हुई तथा दूध उत्पादन में वृद्धि हुई। दूध से संबंधित नवीन उद्योग स्थापित किए गए। दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के कारण इसे 'श्वेत क्रान्तिके नाम से जाना जाता है। 

 

 

 

 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA2):

 

प्रश्न 1. वामपंथ एवं दक्षिणपंथ का अर्थ स्पष्ट करते हुए भारतीय राजनीतिक दलों के रुझानों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जब विभिन्न देशों की राजनीति की बात होती है तो अक्सर वहाँ के राजनीतिक दल या समूहों का विवरण देते हुए कहा जाता है कि इस या उस दल या समूह की विचारधारा वामपंथी या दक्षिणपंथी रुझान वाली है। वामपंथ - वामपंथ शब्द से प्रकट होता है कि सामाजिक बदलाव को लेकर राजनीतिक दल या समूह कौन-सा पक्ष लेगा। 'वामपंथसे सामान्यतया उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं तथा इन वर्गों को लाभ पहुँचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं। भारत में भारतीय साम्यवादी दलभारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी) तथा समाजवादी दल स्वयं को वामपंथी मानते हैं। वामपंथी भूमि सुधारों तथा उत्पादन के साधनों का स्वामित्व एवं प्रबन्धन प्रायः किसानों एवं मजदूरों को दिए जाने के पक्षधर होते हैं। 

दक्षिणपंथ - दक्षिणपंथी विचारधारा से उन लोगों को इंगित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा तथा बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है अर्थात् सरकार को अर्थव्यवस्था में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। दक्षिणपंथी उदारवादवैश्वीकरणपूँजीवाद व्यक्तिवादउन्मुक्त व्यापार आदि के पक्षधर होते हैं। स्वतंत्र पार्टीभारतीय जनसंघवर्तमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (विशेषतः 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद) को दक्षिणपंथ की राजनीतिक पार्टियाँ कहा जाता है। वर्तमान भारतीय जनता पार्टी और एन.डी.ए. से जुड़े अधिकांश दल भी दक्षिणपंथी हैं।

 

 

प्रश्न 2. भारतीय संदर्भ में आर्थिक नियोजन का अर्थ तथा महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
आर्थिक नियोजन का अर्थ: यदि कोई राष्ट्र सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ हो तो वह राजनीतिक दृष्टि से विकसित नहीं कहा जा सकता। सामाजिक-आर्थिक असमानता के वातावरण में लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए भारत के नेताओं ने स्वतंत्रता प्राप्त होते ही भारत के सामाजिक तथा आर्थिक विकास की ओर ध्यान देना शुरू किया जो आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण था। अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए नियोजन के विचार को सन् 1940 और 1950 के दशक में सम्पूर्ण विश्व में जनसमर्थन मिला था। 
आर्थिक नियोजन का महत्त्व:

1.    स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नेताओं ने अनुभव किया कि देश का सामाजिक-आर्थिक विकास एक योजनाबद्ध तरीके से किया जाए।

2.    भारतीय नेताओं ने भारत के चहुँमुखी विकास के लिए योजनायें बनाने तथा उनको व्यवहार में लाकर निश्चित समय में अनिवार्य सफलता प्राप्त करने का विचार किया तथा इस हेतु योजना आयोग की स्थापना की।

3.    सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए नियोजन का अत्यन्त महत्त्व हैक्योंकि विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके नियोजन में ही अपनाए जाते हैं।

4.    आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश में व्याप्त आर्थिक असंतुलन को समाप्त करना था जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो तथा लोगों का जीवन - स्तर ऊँचा हो।

5.    आर्थिक नियोजन का महत्त्व इस दृष्टि से भी था कि समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त किया जाये। 

 

 

 

प्रश्न 3. भारत में नियोजित विकास हेतु किये गये प्रारंभिक प्रयासों के किन्हीं तीन परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने कई चुनौतियाँ और समस्याएँ थींजिनको दूर किया जाना आवश्यक था। इन सभी कार्यों के लिए धन की भी आवश्यकता थी। अतः भारत के लोगों की आर्थिकसामाजिक एवं राजनीतिक दशा को सुधारने के लिए सरकार के लिए जरूरी था कि योजनाएँ बनाएप्रत्येक उद्देश्य की प्राप्ति का समय निश्चित करे तथा यह प्रयास किया जाए कि निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साधन जुटाए जाएँ।

भारत ने पंचवर्षीय योजनाएँ बनाने तथा उनसे विकास करने का निश्चय किया। 1950 में एक योजना आयोग की नियुक्ति की गई जिसका मुख्य उद्देश्य योजनाएँ बनाना तथा प्रत्येक योजना के लक्ष्य निश्चित करना था। योजना आयोग की उत्पत्ति कोई आकस्मिक घटना नहीं थी।

1944 में मुम्बई में उद्योगपतियों का एक सम्मेलन हुआ। उद्योगपतियों के इस समूह ने भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने के लिए एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इस प्रस्ताव को 'बॉम्बे प्लानकहा जाता है। बॉम्बे प्लान में निश्चित किया गया कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में कदम उठाएगी। अतः स्पष्ट है कि सभी लोग यह चाहते थे कि भारत नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाए। इसीलिए स्वतंत्र भारत में योजना आयोग की स्थापना की गई।

भारतीय योजना आयोग ने भी सोवियत संघ की तरह पंचवर्षीय योजना का रास्ता अपनाया। 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी किया गया। इस प्रारूप को लेकर देश में व्यापक बहस हुई। 1956 में लागू दूसरी पंचवर्षीय योजना तथा 1961 में लागू तीसरी पंचवर्षीय योजना तक भारतीयों का उत्साह इन योजनाओं साथ बना रहा।

 

 

प्रश्न 4. 1967 के आम चुनावों से पूर्वभारत की आर्थिक स्थिति का आकलन कीजिए।
उत्तर:
1967 के आम चुनाव से पहले देश को गंभीर संकट का सामना करना पड़ा।
1. इस अरसे में देश गंभीर आर्थिक संकट में था। मानसून की असफलताव्यापक सूखाखेती की पैदावार में गिरावटगंभीर खाद्य संकटविदेशी मुद्रा भंडार में कमीऔद्योगिक उतपादन और निर्यात में गिरावट के साथ ही साथ सैन्य खर्चे में भारी बढ़ोत्तरी हुई थी। नियोजन और आर्थिक विकास के संसाधनों को सैन्य-मद में लगाना पड़ा। इन समस्त बातों से देश की आर्थिक स्थिति विकट हो गई थी।

2. इंदिरा गांधी की सरकार के शुरुआती फैसलों में एक था-रुपये का अवमूल्यन करना। माना गया कि रुपये का अवमूल्यन अमरीका के दबाव में किया गया। अमरीकी डॉलर की कीमत 5 रुपये थीजो अब बढ़कर 7 रुपये हो गई। 

3. आर्थिक स्थिति की विकटता के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई। लोग आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धिखाद्यान्न की कमीबढ़ती हुई बेरोजगारी और देश की दयनीय आर्थिक स्थिति को लेकर विरोध पर उतर आए। देश में अक्सर 'बंदऔर 'हड़तालकी स्थिति रहने लगी। सरकार ने इसे कानून और व्यवस्था की समस्या माना न कि जनता की बदहाली की अभिव्यक्ति । इससे लोगों की नाराजगी बढ़ी और जन विरोध ने ज्यादा उग्र रूप धारण किया। 

 

 

प्रश्न 5. योजना आयोग का गठन किन कारणों से किया गया थाक्या वह अपने गठन के उद्देश्यों में सफल रहा?
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ अत्यन्त खराब थीं। अतः भारत के लोगों की आर्थिकसामाजिक एवं राजनीतिक दशा को सुधारने के लिए सरकार के पास एक ही रास्ता था कि वह योजनाबद्ध ढंग से देश का विकास करे। इसके लिए सन् 1950 में भारत सरकार ने योजना आयोग की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य योजनाएँ बनाना एवं प्रत्येक योजना का लक्ष्य निर्धारित करना है। योजना आयोग ने अपने गठन के निम्नलिखित उद्देश्यों पर भी कार्य किया

1.    स्त्री और पुरुष सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधनों पर समान अधिकार हो।

2.    समुदाय के भौतिक संसाधनों के समूह और नियंत्रण को इस तरह बाँटा जाएगा कि उससे जनसाधारण की भलाई हो। 

3.    अर्थव्यवस्था का संचालन इस तरह नहीं किया जाएगा कि धन अथवा उत्पादन के साधन एक ही स्थान पर केन्द्रित हो जायें तथा जनसाधारण की भलाई बाधित हो।


इस प्रकार उपर्युक्त उद्देश्यों पर विचार करते हुए भारत में योजना आयोग द्वारा विभिन्न पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं ताकि देश का सुनियोजित विकास सम्भव हो सके। योजना आयोग अपने गठन से लेकर वर्तमान तक अपने गठन के उद्देश्यों में पूर्णतः सफल रहा है। योजना आयोग द्वारा निर्मित योजनाओं से देश विकास के पथ पर अग्रसर है।

 

 

प्रश्न 6. भारत ने योजना पद्धति को क्यों चुनास्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने हेतु योजना पद्धति को चुना। आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने हेतु आर्थिक नियोजन के अलावा दूसरा विकल्प स्वतंत्र बाजार व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत उत्पादक सभी क्रियाएँ लाभ के दृष्टिकोण से करता है लेकिन यह व्यवस्था भारत के लिए कुछ कारणों से अनुपयुक्त थी

1.    भारत में आय में भारी असमानता पायी जाती है। उत्पादन पूँजीपतियों के लिए किया जाएगा क्योंकि उनके पास वस्तुओं को क्रय करने की शक्ति है।

2.    निर्धन व्यक्तियों हेतु आवासशिक्षाचिकित्सा आदि की ओर ध्यान नहीं दिया जायेगा क्योंकि वे आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं हैं।

3.    अधिकांश व्यक्ति निर्धन होने के कारण साख और पैसा उपभोग की वस्तुओं पर व्यय कर देंगे तथा बचत नहीं हो सकेगी। 

4.    यह भी हो सकता है कि दीर्घकालिक आर्थिक बातों की ओर ध्यान नहीं दिया जायेजैसे-आधारभूत व भारी उद्योग आदि।

इन्हीं कारणों से अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए नियोजन के विचार को सन् 1940 और 1950 के दशक में पूरी दुनिया में जनसमर्थन मिला था। जापान और जर्मनी ने युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद अपनी अर्थव्यवस्था पुनः खड़ी कर ली थी तथा सोवियत संघ ने सन् 1930  1940 के दशक में भारी कठिनाइयों के बीच शानदार आर्थिक प्रगति की थी। इन सभी बातों के कारण नियोजन के पक्ष में दुनियाभर में हवा बह रही थी।

 

 

प्रश्न 7. "भारत में स्वतंत्रता से पहले ही नियोजन के पक्ष में कुछ उद्योगपति आ गए थे।" इस कथन के पक्ष में संक्षेप में तर्क दीजिए।
उत्तर:
यद्यपि भारत अगस्त, 1947 में स्वतंत्र हुआ लेकिन उससे लगभग दो-ढाई वर्ष पूर्व ही नियोजन के पक्ष में प्रभावशाली ढंग से बातचीत चलने लगी थी। सन् 1944 में उद्योगपतियों का एक समूह एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक 'संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे 'बॉम्बे प्लानकहा जाता है।

'बॉम्बे प्लानकी मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाये। इस प्रकार दक्षिणपंथी हों अथवा वामपंथीउस वक्त सभी यही चाहते थे। इस तरह स्वतंत्रता के पश्चात् योजना आयोग अस्तित्व में आया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने। भारत अपने विकास हेतु कौन-सा रास्ता और रणनीति अपनायेगायह फैसला करने में इस संस्था ने केन्द्रीय और सर्वाधिक प्रभावशाली भूमिका निभाई।

 

 

प्रश्न 8. आर्थिक नियोजन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में सामाजिक समानतासामाजिक न्याय तथा सामाजिक लोकतंत्र नहीं था। इसी प्रकार आर्थिक दशा भी अत्यन्त दयनीय थी। कुटीर-धन्धे चौपट हो चुके थे। इस कारण भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास की ओर ध्यान देना आवश्यक था। अतः विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके से आर्थिक नियोजन अपनाया गया। आर्थिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं

1.    नियोजित अर्थव्यवस्था आर्थिक संगठन की एक पद्धति है। 

2.    आर्थिक नियोजन सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में लागू होता है। 

3.    आर्थिक नियोजन की सम्पूर्ण क्रियाविधि एक केन्द्रीय सत्ता द्वारा सम्पन्न की जाती है। 

4.    नियोजन के अन्तर्गत साधनों का वितरण प्राथमिकताओं के अनुसार विवेकपूर्ण नीति से किया जाता है। 

5.    योजना के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु एक निश्चित अवधि निर्धारित की जाती है। 

6.    नियोजन के अन्तर्गत पूर्णपूर्व निश्चित तथा निर्धारित उद्देश्य होते हैं 

7.    उद्देश्यों व लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नियंत्रण स्थापित किए जाते हैं। 

8.    नियोजन सामान्यतः एक सतत् दीर्घकालीन प्रक्रिया है। 

 

 

प्रश्न 9. निजी क्षेत्र के उद्यम और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निजी क्षेत्र के उद्यम तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में निम्नलिखित अन्तर हैं।

निजी क्षेत्र के उद्यम

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम

(i) निजी क्षेत्र के उद्यमों का स्वामित्व तथा उन्हें संचालित करने का उत्तरदायित्व व्यक्तिगत होता है।

(i) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की स्वामी स्वयं सरकार होती है तथा वह उनका संचालन करती है।

(ii) निजी क्षेत्र के उद्यमों की स्थापना व्यक्तिगत लाभ हेतु की जाती हैउद्यमी अधिकाधिक लाभ लेने का प्रयास करता है तथा पूँजी का केन्द्रीयकरण आरम्भ हो जाता है।

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की स्थापना जन-साधारण के लाभ के लिए की जाती है। इनमें पूँजी के विकेन्द्रीकरण की संभावना बनी रहती है।

(iiii) सभी प्रकार की खुदरा तथा थोक की दुकानेंकम्पनीखेतमछली पालन इकाइयाँ और अन्य अनेक कार्य निजी क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।

(iii) इसके अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी इकाइयाँ सम्मिलित होती हैंजैसे-स्टील अर्थॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड (सेल) व इण्डियन ऑयल कॉर्पेरिशन (आई.ओ.सी.) आदि ।

(iv) निजी क्षेत्र के उद्यमों में गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यहाँ वर्ग-संघर्ष तथा श्रम-संघर्ष की कोई संभावना नहीं रहती है। उद्यमी का अपने उद्यम पर पूर्ण नियंत्रण रहता है।

(iv) यद्यपि सार्वजनिक उद्यमों में भी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता हैपरन्तु दिन-प्रतिदिन होने वाले वर्ग-संघर्ष व श्रम-संघर्ष का प्रभाव उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता पर पड़ना स्वाभाविक है।




 

प्रश्न 10. मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ व विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्र एक साथ कार्य करते हैं। इन दोनों ही क्षेत्रों की भूमिका अर्थव्यवस्था में इस प्रकार निर्धारित की जाती है जिसमें समाज के सभी वर्गों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो सके। मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित उद्योगों का स्वामित्वनियंत्रण तथा निर्देशन सरकार के हाथों में होता है। इसके विपरीत निजी क्षेत्र में स्थापित उद्योगों का स्वामित्वनिर्देशन तथा नियंत्रण निजी उद्योगपतियों के हाथों में होता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ।

1.    सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र: मिश्रित अर्थव्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र दोनों विद्यमान रहते हैं। इन दोनों ही क्षेत्रों के बीच कार्यों का स्पष्ट विभाजन रहता है।

2.    लोकतांत्रिक व्यवस्था: मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं का निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र में विभाजनलक्ष्यों का निर्धारणनीतियों का निर्धारण सभी बातों का निर्णय जन-प्रतिनिधियों के द्वारा लिया जाता है। 

3.    लाभ - उद्देश्य: मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की प्रमुख भूमिका रहती है। निजी क्षेत्र द्वारा अपनी आर्थिक क्रियाओं का संचालन लाभ के उद्देश्य से किया जाता है।

4.    मूल्य - तंत्र पर नियंत्रण: मिश्रित अर्थव्यवस्था में 'मूल्य तंत्रके संचालन को सरकार जन-कल्याण की दृष्टि से स्वयं की कीमत नीति द्वारा नियंत्रित करती है।




प्रश्न 11. सन् 1960 के दशक के अन्त में भारत के आर्थिक विकास में क्या बदलाव आएवर्णन कीजिए। 
उत्तर:
सन् 1960 के दशक के अन्त में भारत के आर्थिक विकास में नया मोड़ आया। इन बदलावों का वर्णन निम्न प्रकार।

1.    नेहरूजी की मृत्यु के बाद कांग्रेस-प्रणाली संकट से घिरने लगी।

2.    इंदिरा गाँधी जन - नेता बनकर उभरीं। उन्होंने फैसला किया कि अर्थव्यवस्था के नियंत्रण और निर्देशन में राज्य और बड़ी भूमिका निभाएगा।

3.    सन् 1967 के पश्चात् की अवधि में निजी क्षेत्र के उद्योगों पर और बाधाएँ आईं। 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।

4.    सरकार ने गरीबों की भलाई के लिए अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की। इन परिवर्तनों के साथ ही साथ सरकार का विचारधारात्मक रुझान समाजवादी नीतियों की ओर बढ़ा।

5.    इन बदलावों को लेकर देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में गर्मागर्म बहसें चलीं। विशेषज्ञों के बीच भी सरकार की नीतियों पर जोरदार बहसें चलीं।

6.    सरकारी नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था के पक्ष में बनी सहमति अधिक दिनों तक कायम नहीं रही। नियोजन का काम तो जारी रहा परन्तु इसके महत्त्व में कमी आई।

7.    सार्वजनिक क्षेत्र या नौकरशाही के प्रति प्रारम्भ में लोगों का गहरा विश्वास था परन्तु बदले हुए माहौल में यह विश्वास टूट गया। 

 

 

प्रश्न 12. मिश्रित अर्थव्यवस्था के भारतीय मॉडल के मुख्य परिणामों का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा 
भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल के प्रमुख परिणामों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल के प्रमुख परिणामों का आलोचनात्मक परीक्षण।
(i) नियोजित विकास के प्रारंभिक प्रयत्नों को राष्ट्र के आर्थिक विकास तथा नागरिकों की भलाई के लक्ष्य में आंशिक सफलता प्राप्त हुई। प्रारंभिक दौर में इस दिशा में कड़े कदम न उठा पाने की अक्षमता एक राजनीतिक समस्या के रूप में सामने आयी। असमान विकास से जिन्हें लाभ पहुँचा थावे शीघ्र ही राजनीति रूप से शक्तिशाली हो गए। इसलिए सभी के हित को ध्यान में रखकर विकास की दिशा में कदम उठाना कठिन हो गया।

(ii) इस अवधि में कृषि के क्षेत्र में भूमि सुधार के गम्भीर प्रयास किए गए। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सफल प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। इससे राजनीति पर प्रभुत्व कायम रखने की जमींदारों की शक्ति भी कम हुई। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करने के प्रयास किए गए। अधिकतम भूमि रखने की सीमा तय की गई। लेकिन कुछ लोगों ने इस कानून को ही असफल करने का प्रयास किया।

(iii) खाद्यान्न संकट के कारण भारत विदशी खाद्य: सहायता पर निर्भर हो गया था। सहायता की आड़ में अमरीका ने भारत पर अपनी आर्थिक नीतियाँ बदलने के लिए दबाव डाला। उत्पादन बढ़ाने के लिए हरित क्रांति का सहारा लिया गया। सरकार द्वारा इस बात की गारण्टी दी गई कि पैदावार को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा लेकिन इन कदर्मों से धनी किसानों तथा भू-स्वामियों को ही लाभ पहुँचा। किसानों तथा भू-स्वामियों के बीच अंतर बढ़ा गया लेकिन मध्यम दर्जे के किसानों को हरित क्रांति से लाभ हुआ। हालांकि इसका क्षेत्र सीमित था।

(iv) 1960 के दशक में भारत के आर्थिक विकास में एक नया परिवर्तन आया। इंदिरा गांधी ने अर्थव्यवस्था के नियंत्रण तथा निर्देशन में राज्य की भूमिका में वृद्धि की। निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। सरकार की नीतियाँ समाजवाद की ओर झुकीं। यद्यपिसरकारी नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था अधिक दिनों तक कायम नहीं रही। सरकारी उद्यमों में अकुशलताभ्रष्टाचार तथा नौकरशाही का दबदबा रहा। इसके चलते नीति निर्माताओं ने 1980 के दशक में अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को सीमित कर दिया।

 

 

प्रश्न 13. हरित क्रान्ति की असफलता के कारण लिखिए।
उत्तर:
यद्यपि उन्नत बीजआधुनिक विकसित तकनीकरासायनिक उर्वरक आदि के उपयोग द्वारा कृषि-उत्पादकता में बहुत वृद्धि हुई तथापि व्यापक दृष्टि से कृषि के विभिन्न स्तरों पर क्रान्ति लाने में यह असफल रही। हरित क्रान्ति के लाभों में गाँव के सभी वर्गों को हिस्सा मिला है तथा इससे वास्तविक मजदूरी और रोजगार में वृद्धि हुई है। लेकिन इससे प्रादेशिक असमानताएँ अधिक बढ़ी हैं। जिन क्षेत्रों में हरित क्रान्ति का प्रयोग हुआ हैउसमें न्यून मात्रा में सभी वर्गों को आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ है। जहाँ कृषि की सामन्ती प्रथा नहीं पायी जाती है वहाँ तो गाँव के विभिन्न वर्गों में तनाव दिखाई नहीं देता है।
फिर भी भारत में हरित क्रान्ति की असफलता के कारण निम्नलिखित हैं।

1.    कृषि क्रान्ति का प्रभाव केवल कुछ ही फसलोंजैसे-गेहूँज्वारबाजरा तक ही सीमित रहा है। गन्नाकपासतिलहन जैसे कृषि पदार्थों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा है।

2.    कृषि क्रान्ति का प्रभाव कुछ ही विकसित क्षेत्रोंजैसे-पंजाबहरियाणामध्य प्रदेश के कुछ भागों तक ही सीमित रहा है।

3.    भारत में कृषि क्रान्ति से केवल बड़े किसान ही लाभ प्राप्त कर सके हैं। इससे गाँव के क्षेत्रों में असमानताएँ बढ़ी हैं तथा इस प्रकार से धनी किसान अधिक धनी तथा निर्धन और अधिक निर्धन होते गए हैं।

4.    विस्तृत भू-खण्डों पर उत्तम खाद तथा बीज व नवीन तकनीकों के उपयोग से कृषि योग्य भूमि के कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रित होने की प्रवृत्ति बढ़ गयी है।

5.    कृषि विकास की गति अत्यधिक धीमी रही है।

 

 

प्रश्न 14. नीचे दिए गए दोनों अनुच्छेदों को सावधानीपूर्वक पढ़ें तथा इनके अंत में दिए गए सभी प्रश्नों के संक्षिप्त में उत्तर दीजिए।
(1) विकेन्द्रित नियोजन: 
जरूरी नहीं कि हर नियोजन केन्द्रीकृत ही हो। ऐसा भी नहीं है कि नियोजन का आशय हमेशा उद्योगों और बड़ी-बड़ी परियोजनाओं से ही लगाया जाए। केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया उसे 'केरल मॉडलकहा जाता है। इस मॉडल में शिक्षास्वास्थ्यभूमि - सुधारकारगर खाद्य-वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता रहा है।

केरल में प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम है और यहाँ औद्योगिक-आधार भी तुलनात्मक रूप से कमजोर रहा है। इसके बावजूद केरल में साक्षरता शत - प्रतिशत है। आयु प्रत्याशा बढ़ी है और वहाँ शिशु मृत्यु - दरमातृ - मृत्यु दर और जन्म-दर भी कम है। केरल में लोगों को कहीं ज्यादा चिकित्सीय - सुविधा उपलब्ध है।

1987 से 1991 के बीच सरकार ने 'नव लोकतांत्रिक पहलनाम से अभियान चलाया। इसके अन्तर्गत विकास के अभियान चले (जिसमें विज्ञान और पर्यावरण के मामले में शत-प्रतिशत साक्षरता का अभियान शामिल है)। इन अभियानों की रूपरेखा इस तरह बनायी गयी थी कि लोगों को स्वयंसेवी नागरिक संगठनों के माध्यम से विकास की गतिविधियों में सीधे शामिल किया जा सके। केरल में इस बात के भी प्रयास किए गए कि लोग पंचायतप्रखण्ड और जिला स्तर की योजनाओं को तैयार करने में शामिल हों।


उपर्युक्त अवतरण के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
(अ) 'केन्द्रीकृत नियोजनका तात्पर्य क्या है
(ब) 'केरल मॉडलकिसे कहा जाता है
(स) 'केरल मॉडलमें किन-किन मूल आवश्यकताओं पर जोर दिया गया
(द). 'केरल मॉडलकी दो कमजोरियाँ तथा कुछ अच्छी उपलब्धियाँ बताइए। 
(ङ) 'नव लोकतांत्रिक पहलनामक अभियान के उद्देश्य क्या थे?
 
उत्तर:
(अ) केन्द्रीकृत नियोजन का तात्पर्य है- एक ही केन्द्र से योजना को लागू करना। प्रायः ऐसे नियोजन का अर्थ हमेशा उद्योगों तथा बड़ी - बड़ी परियोजनाओं पर बल देना ही होता है।
(ब) केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया उसे 'केरल मॉडलकहा जाता है। 
(स) 'केरल मॉडलमें शिक्षास्वास्थ्यभूमि-सुधारकारगर खाद्य - वितरण तथा गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया गया है। 
(द) 'केरल मॉडलकी दो कमजोरियाँ इस प्रकार हैं
(i) प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम रही। 
(ii) केरल में औद्योगिक आधार भी तुलनात्मक रूप से कमजोर रहा है। 

 

केरल मॉडल की उपलब्धियाँ निम्न प्रकार से हैं:

1.    केरल मॉडलके कारण इस राज्य में साक्षरता शत-प्रतिशत है।

2.    इस राज्य में आयु प्रत्याशा बढ़ी है। 

3.    इस राज्य में शिशु-मृत्यु दरमातृ-मृत्यु दर तथा जन्म - दर भी कम है।

4.    केरल में लोगों को कहीं अधिक चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध हैं। 

 

(ङ) सन् 1987 से 1991 के बीच सरकार ने 'नव लोकतांत्रिक पहलनाम से अभियान चलाया। इसके अन्तर्गत विकास के अभियान चले (जिसमें विज्ञान और पर्यावरण के मामले में शत-प्रतिशत साक्षरता का अभियान शामिल है)। इन अभियानों की रूपरेखा इस प्रकार बनाई गयी थी कि लोगों को स्वयंसेवी नागरिक संगठनों के माध्यम से विकास की गतिविधियों में सीधे शामिल किया जा सके। केरल में इस बात के भी प्रयास किए गए कि लोग पंचायतप्रखण्ड और जिला स्तर की योजनाओं को तैयार करने में शामिल हों।

 

(2) पाथेर पांचाली फिल्म की कहानी बंगाल के एक गाँव में रहने वाले गरीब परिवार के जीवन-संघर्ष को बयान करती है। गरीबी और रोज़मर्रा के संघर्षों से बेखबर दुर्गा तथा उसका छोटा भाई अप्पू जीवन की छोटी-मोटी खुशियों में मशगूल रहते हैं। पाथेर पांचाली गरीबी से जूझ रहे इस परिवार की इच्छाओं और निराशा को बच्चों की आँखों से दिखती है।

फिल्म के अन्त में दुर्गा बीमार पड़ जाती है। उसके पिता हरिहर बाहर गए हुए हैं। पिता जब लौटते हैं तो अपने बच्चों के लिए तरह-तरह की चीजें लाते हैं। वे दुर्गा के लिए एक साड़ी भी लाए हैं लेकिन घर आने पर उन्हें पता चलता है कि दुर्गा इस दुनिया में नहीं रही। फिल्म को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले। इनमें राष्ट्रपति स्वर्ण पदक और रजत पदक पुरस्कार (1955) शामिल हैं।
(अ) उपर्युक्त अनुच्छेद का सम्बन्ध किस फिल्म से है
(ब) इस फिल्म को कौन - कौन से पुरस्कार मिल चुके हैं?
 
उत्तर:
(अ) उपर्युक्त अनुच्छेद का सम्बन्ध 'पाथेर पांचालीनामक फिल्म से है।
(ब) पाथेर पांचालीफिल्म को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार मिले हैं। इनमें राष्ट्रपति स्वर्ण पदक तथा रजत पदक पुरस्कार (1955) सम्मिलित हैं। 

 

 

प्रश्न 15. 'अमूलक्या हैअमूल के लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा 
'ऑपरेशन फ्लडसे आप क्या समझते हैंस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुजरात राज्य के एक शहर 'आणंदमें सरकारी दुग्ध उत्पादन का आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। यह 'अमूलनाम से प्रसिद्ध है। देश का प्रत्येक नागरिक अमूल के उत्पादनों दूधमक्खनमिठाइयाँपनीर आदि से परिचित है। इनका प्रयोग प्रत्येक घर में किया जाता है। 'अमूलके उत्पादों के पीछे सहकारी डेयरी फार्मिंग की अहम् भूमिका है। इससे गुजरात के 25 लाख दूध-उत्पादक जुड़े हुए हैं।

सहकारी डेयरी प्रारम्भ करने का श्रेय वर्गीज कूरियन को जाता है। इन्हें 'मिल्क मैन ऑफ इण्डियाभी कहते हैं। कूरियन ने दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ की स्थापना की थी। ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन की दृष्टि से 'अमूलनाम का यह सहकारी आन्दोलन अपने आप में एक अनूठा और सफल मॉडल है। इस मॉडल के विस्तार को 'श्वेत क्रान्तिके नाम से जाना जाता है।

सन् 1970 में 'ऑपरेशन फ्लडके नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ था। 'ऑपरेशन फ्लडके अन्तर्गत सहकारी दुग्ध - उत्पादकों को उत्पादन व विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। 'ऑपरेशन फ्लडकेवल डेयरी कार्यक्रम नहीं था। इस कार्यक्रम में डेयरी के काम को विकास के एक माध्यम के रूप में अपनाया गया थाजिससे ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंउनकी आमदनी बढ़े तथा गरीबी दूर हो। सहकारी दुग्ध उत्पादकों की सदस्य संख्या लगातार बढ़ रही है। सदस्यों में महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। महिला सहकारी डेयरी की संख्या में भी वृद्धि हुई है। 

 

 

 

निबन्धात्मक प्रश्न:

 

प्रश्न 1. "भारत की भावी आर्थिक वृद्धि की बुनियाद विकास के प्रारंभिक दौर में पड़ी।" क्या आप इस कथन से सहमत हैंअपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्र भारत के नेताओं ने राष्ट्र-निर्माण और लोकतंत्र को कायम करने की चुनौतियों का सामना किया। तीसरी चुनौती आर्थिक विकास की थी जिससे सबकी भलाई को सुनिश्चित किया जा सके। पहली दो चुनौतियों में हमारे नेताओं ने कुछ अलग और कुछ कठिन रास्ता चुना।

लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक - सामाजिक न्याय दोनों ही हैं। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायीउद्योगपति और कृषकों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। भारत के भावी आर्थिक विकास की बुनियाद विकास के प्रारंभिक दौर में पड़ चुकी थी। इस कथन के पक्ष में निम्नांकित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

(i) हाँभारत की भावी आर्थिक वृद्धि की बुनियाद विकास के प्रारंभिक दौर में पड़ी। इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ।

(ii) सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् भारत सरकार ने देश के शीघ्र आर्थिक विकास हेतु केन्द्रीकृत योजना के मार्ग का अनुसरण किया। मार्च 1950 में देश के संसाधनों का सबसे अधिक कुशल और संतुलित प्रयोग करने का सुझाव देने वाले योजना आयोग की नियुक्ति की गयी। इस आयोग द्वारा एक कोलंबो योजना तैयार की गयी जो दक्षिण - पूर्व के एशियाई देशों में विकास हेतु विकसित योजना का एक हिस्सा थी।

तत्पश्चात् इस योजना से भारतीय योजना को अलग कर दिया गया। जुलाई, 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना का ढाँचा प्रस्तुत किया गया। इस योजना को समाचार - पत्रों में प्रकाशित करवाया गया तथा इस पर व्यापक रूप में चर्चा की गयी। दिसम्बर सन् 1952 में भारत की पहली पंचवर्षीय योजना का आखिरी मसौदा संसद के समक्ष रखा गया।

(iii) प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रमुख उद्देश्य विकास की एक ऐसी प्रक्रिया को प्रारम्भ करने का था जो भारतीयों के जीवन - स्तर को ऊपर उठाए एवं पहले से ज्यादा बेहतर तथा बहुआयातित अवसरों को प्रदान करे। विशेष रूप से यह तय कर दिया गया था कि आर्थिक योजना को एक ऐसी व्यापक प्रक्रिया का अभिन्न भाग समझा जाए जो संकीर्ण तकनीकी अर्थ में न केवल संसाधनों की ओर विकासोन्मुख हो बल्कि मानवीय चेतना को भी विकसित करे तथा लोगों की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुकूल सरकारी ढाँचे को बनाये। 

 

 

प्रश्न 2. भारत में अकाल तथा पंचवर्षीय योजनाओं के निलम्बन पर एक लेख लिखिए।
अथवा 
भारत में खाद्य संकट क्यों उत्पन्न हुआइसने पंचवर्षीय योजनाओं को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
भारत में अकाल तथा खाद्य संकट-भारत में सन् 1951 से ही पंचवर्षीय योजनाओं को अपना लिया गया परन्तु सन् 1960 के दशक में कृषि की दशा शोचनीय होती चली गयी। सन् 1940 और 1950 के दशक में ही खाद्यान्न के उत्पादन की वृद्धि दरजनसंख्या की वृद्धि दर से जैसे-तैसे अपने को ऊपर रख पायी थी। सन् 1965 से 1967 के बीच देश के अनेक भागों में सूखा पड़ा। इसी अवधि में भारत ने दो युद्धों का सामना किया तथा उसे विदेशी मुद्रा संकट को भी झेलना पड़ा। इन सभी कारणों से देश में खाद्यान्न की भारी कमी हो गयी। देश के अनेक भागों में अकाल जैसी स्थिति आ पड़ी।

 

बिहार में खाद्यान्न संकट सबसे ज्यादा भीषण था। यहाँ स्थिति लगभग अकाल जैसी हो गयी थी। बिहार के सभी जिलों में खाद्यान्न का अभाव बड़े पैमाने पर था। इस राज्य के 9 जिलों में अनाज की पैदावार सामान्य स्थिति की तुलना में आधी से भी कम थी। इनमें से पाँच जिले अपनी सामान्य पैदावार की तुलना में मात्र एक-तिहाई ही अनाज उगा रहे थे।

 

खाद्यान्न संकट के परिणाम-खाद्य संकट के कई परिणाम हुए। सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा तथा विदेशी सहायता (विशेषकर संयुक्त राज्य अमरीका की) भी स्वीकार करनी पड़ी। पूरी योजना-प्रक्रिया व इससे जुड़ी आशा और गर्वबोध को इन बातों से एक धक्का-सा लगा। अब योजनाकारों के सामने पहली प्राथमिकता तो यही थी कि किसी भी तरह खाद्यान्न के मामले में आत्म - निर्भरता हासिल की जाए।

 

खाद्यान्न के अभाव में कुपोषण बड़े पैमाने पर फैला तथा इसने गम्भीर रूप धारण लिया। एक अनुमान के अनुसार बिहार के अनेक भागों में उस समय प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी हो गया थाजबकि एक सामान्य आदमी के लिए प्रतिदिन 2450 कैलोरी के आहार की आवश्यकता होती है। सन् 1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले वर्ष की तुलना में 34 प्रतिशत बढ़ गयी थी। इन वर्षों के दौरान बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न की कीमतें भी काफी बढ़ गयी थीं।

 

अपेक्षाकृत समृद्ध पंजाब की तुलना में गेहूँ और चावल बिहार में दोगुने अथवा उससे भी अधिक दामों पर बिक रहे थे। सरकार ने उस वक्त ‘जोनिंगया इलाकाबंदी की नीति अपना रखी थी। इस कारण से विभिन्न राज्यों के बीच खाद्यान्न का व्यापार नहीं हो पा रहा था। इस नीति के कारण उस समय बिहार में खाद्यान्न की उपलब्धता में भारी कमी हो गयी। देश के अनेक भागों में ऐसी दशा में समाज के सबसे गरीब तबके पर सबसे अधिक चोट पड़ी।

 

पंचवर्षीय योजनाओं का निलम्बन-सन् 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ तथा इसी वर्ष नवम्बर में इस योजना का वास्तविक दस्तावेज भी जारी किया गया। नियोजन को लेकर जो गहमागहमी पैदा हुई थी वह सन् 1956 से प्रारम्भ दूसरी पंचवर्षीय योजना के साथ अपने चरम पर पहुँच गयी। सन् 1961 की तीसरी पंचवर्षीय योजना के समय तक यह माहौल जारी रहा। चौथी पंचवर्षीय योजना सन् 1966 से प्रारम्भ होनी थी परन्तु इस समय तक नियोजन का नयापन एक सीमा तक धीमा पड़ गया था तथा भारत गहन आर्थिक संकट की चपेट में आ गया था। 

 

सरकार ने पंचवर्षीय योजना को अल्प . अवधि का विराम देने का फैसला किया। यद्यपि इन योजनाओं की प्राथमिकताओं और प्रक्रिया को लेकर अनेक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा परन्तु यह बात सच है कि इस वक्त तक भारत के आर्थिक विकास की नींव पड़ चुकी थी।

 

सन् 1960 से लेकर 1970 के दशक के प्रारंभिक वर्षों तक बचत की मात्रा में लगातार कमी आई। निष्कर्ष के तौर कहा जा सकता है कि अकाल व खाद्य संकट से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण देश में चल रही पंचवर्षीय योजनाओं के कार्यक्रम को अस्त-व्यस्त कर दिया तथा इस दौरान सन् 1966 से 1969 तक तीन एक-एक वर्षीय योजनाओं का . संचालन करना पड़ा।

 

(i) हाँभारत की भावी आर्थिक वृद्धि की बुनियाद विकास के प्रारंभिक दौर में पड़ी। इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ।

 

(ii) सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् भारत सरकार ने देश के शीघ्र आर्थिक विकास हेतु केन्द्रीकृत योजना के मार्ग का अनुसरण किया। मार्च 1950 में देश के संसाधनों का सबसे अधिक कुशल और संतुलित प्रयोग करने का सुझाव देने वाले योजना आयोग की नियुक्ति की गयी। इस आयोग द्वारा एक कोलंबो योजना तैयार की गयी जो दक्षिण - पूर्व के एशियाई देशों में विकास हेतु विकसित योजना का एक हिस्सा थी।

तत्पश्चात् इस योजना से भारतीय योजना को अलग कर दिया गया। जुलाई, 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना का ढाँचा प्रस्तुत किया गया। इस योजना को समाचार-पत्रों में प्रकाशित करवाया गया तथा इस पर व्यापक रूप में चर्चा की गयी। दिसम्बर सन् 1952 में भारत की पहली पंचवर्षीय योजना का आखिरी मसौदा संसद के समक्ष रखा गया।

 

(iii) प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रमुख उद्देश्य विकास की एक ऐसी प्रक्रिया को प्रारम्भ करने का था जो भारतीयों के जीवन - स्तर को ऊपर उठाए एवं पहले से ज्यादा बेहतर तथा बहुआयातित अवसरों को प्रदान करे। विशेष रूप से यह तय कर दिया गया था कि आर्थिक योजना को एक ऐसी व्यापक प्रक्रिया का अभिन्न भाग समझा जाए जो संकीर्ण तकनीकी अर्थ में न केवल संसाधनों की ओर विकासोन्मुख हो बल्कि मानवीय चेतना को भी विकसित करे तथा लोगों की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुकूल सरकारी ढाँचे को बनाये। 

 

 

 


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