Class-11 Geography
Chapter- 4 (महासागरों और महाद्वीपों का वितरण)
सुमेलन
सम्बन्धी प्रश्न
निम्न
में स्तम्भ 'अ' को स्तम्भ 'ब' से सुमेलित कीजिए स्तम्भ 'अ'
|
स्तम्भ
'अ' (संकल्पना/तथ्य) |
स्तम्भ
'ब' (प्रतिपादक/सम्बन्ध) |
|
(i) महाद्वीपीय प्रवाह |
(अ) पेंजिया का उत्तरी भाग |
|
(ii)
चट्टानों की आयु ज्ञात करना |
(ब) आर्थर होम्स |
|
(iii)
अंगारालैण्ड |
(स) हेरी हैस |
|
(iv)
गोण्डवानालैण्ड |
(द) रेडियोमिट्रिक प्रणाली |
|
(v) संवहन धारा सिद्धान्त |
(य) पैंजिया का दक्षिणी भाग |
|
(vi)
सागरीय नितल प्रसरण |
(र) वेगनर |
उत्तर:
|
स्तम्भ
'अ' (संकल्पना/तथ्य) |
स्तम्भ
'ब' (प्रतिपादक/सम्बन्ध) |
|
(i) महाद्वीपीय प्रवाह |
(र) वेगनर |
|
(ii)
चट्टानों की आयु ज्ञात करना |
(द) रेडियोमिट्रिक प्रणाली |
|
(iii)
अंगारालैण्ड |
(अ) पेंजिया का उत्तरी भाग |
|
(iv)
गोण्डवानालैण्ड |
(य) पैंजिया का दक्षिणी भाग |
|
(v) संवहन धारा सिद्धान्त |
(ब) आर्थर होम्स |
|
(vi)
सागरीय नितल प्रसरण |
(स) हेरी हैस |
रिक्त
स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न
निम्न
वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. अंगारालैण्ड
व गोण्डवानालैण्ड के बीच........... भूसन्नति थी।
2. ज्वारीय
बल सूर्य व चंद्रमा के........... से सम्बन्धित है।
3. स्थलमंडल
में पर्पटी एवं............"को शामिल किया जाता है।
4. दृढ़
प्लेटों के नीचे ..........."है।
5. भारत
एक वृहत.......... था।
6. भारत
ने .............."दिशा की ओर खिसकना प्रारम्भ किया।
उत्तर:
1. टेथीज
2. आकर्षण
3. ऊपरी
मैंटल
4. दुर्बल
व उष्ण मैंटल
5. द्वीप
6. उत्तर
सत्य-असत्य
कथन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न
कथनों में से सत्य-असत्य कथन की पहचान कीजिए
1. प्रशांत
महासागरीय प्लेट एक लघु प्लेट है।
2. अपसरण
में नई पर्पटी का निर्माण होता है।
3. पृथ्वी
भूमध्यरेखा पर चपटी है।
4. भारत
का पश्चिम की ओर प्रवाहन हुआ है।
5. भारत
की आर्कटिक प्लेट सीमा अपसारी सीमा है।
उत्तर:
1. असत्य
2. सत्य
3. असत्य
4. असत्य
5. सत्य।
अतिलघु
उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न
1. पृथ्वी के कितने प्रतिशत भाग पर महाद्वीपों का विस्तार है ?
उत्तर:
29 प्रतिशत भाग पर।
प्रश्न
2. महाद्वीपीय प्रवाह के सम्बन्ध में डच मानचित्रकार अब्राहम ऑरटेलियस ने
क्या मत प्रस्तुत किया ?
उत्तर:
सन् 1596 में डच मानचित्रकार अब्राहम ऑरटेलियस
ने सर्वप्रथम उत्तर व दक्षिणी अमेरिका यूरोप व अफ्रीका के एक साथ जुड़े होने की
सम्भावना व्यक्त की।
प्रश्न
3. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त कब व किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर-
महाद्वीपीय
विस्थापन सिद्धान्त को सबसे पहले सन् 1912 में जर्मन मौसमविद् अल्फ्रेड
वेगनर ने प्रतिपादित किया।
प्रश्न
4. वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त की आधारभूत संकल्पना क्या थी ?
उत्तर:
वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त की आधारभूत संकल्पना यह थी
कि समस्त महाद्वीप एक अकेले भूखण्ड पैंजिया से जुड़े हुए थे।
प्रश्न
5. अल्फ्रेड वेगनर ने बड़े महाद्वीप को क्या नाम दिया ?
उत्तर:
पैंजिया।
प्रश्न
6. पैंजिया का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
सम्पूर्ण पृथ्वी।
प्रश्न
7. वेगनर ने विशाल महासागर को क्या नाम दिया ?
उत्तर:
पैंथालासा।
प्रश्न
8. वेगनर के अनुसार पैंजिया महाद्वीप का विभाजन कब हुआ ?
उत्तर:
लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले।
प्रश्न
9. पैंजिया के विभाजन से कौन-कौन से दो महाद्वीपीय पिण्ड बने ?
उत्तर:
1. लारेशिया
(अंगारालैण्ड)
2. गोंडवानालैण्ड।
प्रश्न
10.
उन दो महाद्वीपों के नाम लिखो जिनकी आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत
व त्रुटिरहित साम्य दिखाती हैं ?
उत्तर:
1. दक्षिण
अमेरिका
2. अफ्रीका।
प्रश्न
11. किस विद्वान ने व कब कम्प्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अटलांटिक तटों को
जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया था ?
उत्तर:
सन् 1964 में बुलर्ड नामक विद्वान ने।
प्रश्न
12. महासागरों के पार महाद्वीपों की चट्टानों के निर्माण के समय का निर्धारण
किस विधि से किया जा सकता है ?
उत्तर:
रेडियोमिट्रिक काल निर्धारण विधि से।
प्रश्न
13. तटों के सहारे मिले आरंभिक समुद्री निक्षेप किस काल के हैं?
उत्तर:
जुरेसिक काल के।
प्रश्न
14. टिलाइट क्या है ?
उत्तर:
हिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानों को टिलाइट कहते हैं।
प्रश्न
15. टिलाइट चट्टानें कहाँ-कहाँ मिलती हैं ?
उत्तर:
भारत अफ्रीका फॉकलैंडद्वीप मैडागास्कर अंटार्कटिक एवं ऑस्ट्रेलिया
में टिलाइट चट्टानें मिलती हैं।
प्रश्न
16. टिलाइट चट्टानें क्यों महत्वपूर्ण हैं ?
उत्तर:
टिलाइट चट्टानें पुरातन जलवायु और महाद्वीपों के विस्थापन के स्पष्ट
प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
प्रश्न
17. प्लेसर निक्षेप क्या हैं ?
उत्तर:
मूल्यवान खनिजों विशेषकर स्वर्ण कण जो नदियों द्वारा शैल शिराओं को
धोकर लाए जाते हैं के सहित रेत अथवा बजरी के निक्षेप प्लेसर निक्षेप कहलाते हैं।
प्रश्न
18. लेमूरिया से क्या आशय है ?
उत्तर:
लेमूर नामक जंतु भारत मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं। कुछ
वैज्ञानिकों ने तीनों स्थलखण्डों को जोड़कर एक सतत् स्थलखण्ड की उपस्थिति को
स्वीकार किया जिसे आज लेमूरिया के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न
19. मेसोसारस नामक जीव के अस्थि अवशेष कहाँ मिलते हैं ?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी केप प्रांत तथा ब्राजील में इरावर शैल
समूह में।
प्रश्न
20. ज्वारीय बल क्या है ?
उत्तर:
सूर्य व चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति से उत्पन्न होने वाला बल ज्वारीय
बल कहलाता है। इस बल से महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।
प्रश्न
21. महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में वेगनर द्वारा दिए गए किन्हीं दो प्रमाणों
के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. महाद्वीपों
में साम्य
2. महासागरों
के पार चट्टानों की आयु में समानता।
प्रश्न
22. कब व किसने पृथ्वी के मैंटल भाग में संवहन धाराओं के प्रभाव की संभावना
व्यक्त की ?
उत्तर:
1930 के दशक में आर्थर होम्स ने।
प्रश्न
23. महासागरीय अधस्तल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वह सम्पूर्ण महासागरीय भाग जो निम्न जल चिह्न (Low water
mark) से नीचे स्थित होता है महासागरीय अधस्तल या समुद्र नितल कहते
हैं।
प्रश्न
24. महासागरीय पर्पटी की चट्टानों के काल निर्धारण से क्या स्पष्ट होता है ?
उत्तर:
महासागरीय पर्पटी की चट्टानों के काल निर्धारण से यह स्पष्ट होता है
कि महासागरों के नितल की चट्टानें महाद्वीपीय भागों में पायी जाने वाली चट्टानों
की अपेक्षा नवीन हैं।
प्रश्न
25. गहराई व उच्चावच के आधार पर महासागरीय तल को कितने भागों में बाँटा जा
सकता है ?
उत्तर:
1. महाद्वीपीय
सीमा
2. गहरे
समुद्री बेसिन
3. मध्यम
सागरीय कटक।
प्रश्न
26. महाद्वीपीय सीमा क्या है ?
उत्तर:
महाद्वीपीय किनारों एवं गहरे समुद्री बेसिन के मध्य के भाग को
महाद्वीपीय सीमा कहते हैं।
प्रश्न
27. महाद्वीपीय सीमा के प्रमुख भाग बताइए।
उत्तर:
1. महाद्वीपीय
मग्न तट
2. महाद्वीपीय
ढाल
3. महाद्वीपीय
उभार
4. गहरी
महासागरीय खाइयाँ।
प्रश्न
28. महाद्वीपीय मग्न तट क्या है अथवा महाद्वीपीय शेल्फ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी महाद्वीप का क्रमशः ढलवाँ होता हुआ भाग जो पानी में डूबा होता
है महाद्वीपीय मग्न तट या महाद्वीपीय शेल्फ कहलाता है।
प्रश्न
29. महाद्वीपीय ढाल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
महाद्वीपीय मग्न तट से समुद्र की ओर वितल क्षेत्र के गहरे तल तक का
ढाल वाला भाग महाद्वीपीय ढाल कहलाता है।
प्रश्न
30. वितलीय मैदान क्या हैं ?
उत्तर:
महाद्वीपीय
तटों एवं मध्य महासागरीय कटकों के बीच पाये जाने वाले मैदानों को वितलीय मैदान
कहते हैं।
प्रश्न
31. मध्य महासागरीय कटक क्या है?
उत्तर:
यह आपस में जुड़े हुए पर्वतों की एक श्रृंखला है जो महासागरीय जल
में डूबी हुई है।
प्रश्न
32. किन्हीं दो भूकम्प पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. प्रशांत
महासागर तटीय पेटी
2. अल्पाइन-हिमालय
पेटी।
प्रश्न
33. 'रिंग ऑफ फायर' क्या है ?
उत्तर:
प्रशान्त महासागर के किनारों को सक्रिय ज्वालामुखी का क्षेत्र होने
के कारण 'रिंग ऑफ फायर' कहा जाता
प्रश्न
34. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त कब और किसने दिया ?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त 1967 ई. में
मैकेन्जीपारकर व मोरगन ने दिया।
प्रश्न
35. प्लेट क्या हैं ?
उत्तर:
भूपृष्ठ का कठोर खण्ड जो भारी अर्ध पिघली शैल में आर-पार तैर सकता
है प्लेट कहलाता है। प्लेट्स से ही महाद्वीप बने हैं।
प्रश्न
36. विवर्तनिक प्लेट से क्या आशय है ?
उत्तर:
विवर्तनिक प्लेट जिसे लिथोस्फेरिक प्लेट भी कहा जाता है ठोस चट्टान का
विशाल व अनियमित आकार का खंड होता है जो कि महाद्वीपीय एवं महासागरीय स्थलखण्डों
से मिलकर बनी होती है।
प्रश्न
37. पृथ्वी का स्थलमण्डल कितनी मुख्य प्लेटों से मिलकर बना है ? किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:
सात।
1. अंटार्कटिक
प्लेट
2. प्रशान्त
महासागरीय प्लेट।
प्रश्न
38. उत्तरी अमेरिकी प्लेट में कौन-कौन से भाग सम्मिलित हैं ?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिकी प्लेट में पश्चिमी अंध महासागरीय तल सम्मिलित हैं
तथा दक्षिणी अमेरिकन प्लेट व कैरेबियन द्वीप इसकी सीमा का निर्धारण करते हैं।
प्रश्न
39. यूरेशियाई प्लेट में कौन-सा क्षेत्र सम्मिलित है ?
उत्तर:
पूर्वी अटलांटिक महासागरीय तल तथा यूरोप व एशिया।
प्रश्न
40. स्थलमण्डल की महत्वपूर्ण छोटी प्लेटों के नाम बताइए।
उत्तर:
कोकोस नजका अरेबियन फिलीपीन्स तथा कैरोलिन फ्यूजी प्लेट आदि
स्थलमंडल की महत्वपूर्ण छोटी प्लेटें हैं।
प्रश्न
41. कोकोस प्लेट कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
कोकोस प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका एवं प्रशांत महासागरीय प्लेट के मध्य
स्थित है।
प्रश्न
42. नजका प्लेट की स्थिति बताइए।
उत्तर:
नजका प्लेट दक्षिण अमेरिका व प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित
है।
प्रश्न
43. फिलीपीन प्लेट कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
फिलीपीन प्लेट एशिया महाद्वीप एवं प्रशांत महासागरीय प्लेट के मध्य
स्थित है।
प्रश्न
44. कैरोलिन प्लेट की स्थिति बताइए।
उत्तर-
कैरोलिन प्लेट न्यूगिनी के उत्तर में फिलीपीन व इंडियन
प्लेट के मध्य स्थित है।
प्रश्न
45. ऑस्ट्रेलिया के उत्तर पूर्व में कौन-सी छोटी प्लेट स्थित है ?
उत्तर:
फ्यूजी प्लेट।
प्रश्न
46. वेगनर ने 'सुपर महाद्वीप' किसे
कहा ?
उत्तर:
वेगनर ने 'सुपर महाद्वीप' पैन्जिया को कहा।
प्रश्न
47. प्लेट संचरण के कारण कौन-कौन सी प्लेट सीमाएँ बनती हैं ?
उत्तर;
1. अपसारी
सीमा
2. अभिसरण
सीमा
3. रूपांतर
सीमा।
प्रश्न
48. अपसारी सीमा किसे कहते हैं ? उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
जब दो प्लेट एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं एवं नई
पर्पटी का निर्माण होता है उन्हें अपसारी सीमा कहते हैं। यथा- मध्य अटलांटिक कटक।
प्रश्न
49. अभिसरण सीमा से क्या आशय है ?
उत्तर:
जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है और जहाँ भूपर्पटी नष्ट
होती है वह अभिसरण सीमा कहलाती है।
प्रश्न
50. प्रविष्ठन क्षेत्र क्या है ?
उत्तर:
ऐसा क्षेत्र जहाँ दो भूपृष्ठीय प्लेटें टकराती हैं तथा अधिक सघन
सामूहिक भूपृष्ठ वाली प्लेट कम सघन प्लेट के नीचे चली जाती हैं अर्थात् धंसती हैं
प्रविष्ठन क्षेत्र कहलाता है।
प्रश्न
51. अभिसरण कितने प्रकार से हो सकता है ?
उत्तर:
अभिसरण तीन प्रकार से हो सकता है-
1. महासागरीय
व महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य
2. दो
महासागरीय प्लेटों के मध्य
3. दो
महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य।
प्रश्न
52. रूपांतर सीमा से क्या आशय है ?
उत्तर:
वह स्थान जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का
विनाश होता है उसे रूपांतर सीमा कहते हैं।
प्रश्न
53. रूपांतर भ्रंश क्या है ?
उत्तर:
दो प्लेटों को अलग करने वाला तल जो सामान्यतया मध्य महासागरीय कटकों
से लम्बवत् स्थिति में पाया जाता है रूपांतर भ्रंश कहलाता है।
प्रश्न
54. किस प्लेट की प्रवाह दर सर्वाधिक है ?
उत्तर:
प्रशांत महासागरीय प्लेट की।
प्रश्न
55. पृथ्वी के आंतरिक भाग में ताप उत्पत्ति के माध्यम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी के आंतरिक भाग में ताप उत्पत्ति के दो माध्यम हैं-
1. रेडियोधर्मी
तत्वों का क्षय
2. अवशिष्ट
ताप।
प्रश्न
56. भारतीय प्लेट में कौन-कौन से भाग सम्मिलित हैं ?
उत्तर:
भारतीय प्लेट में प्रायद्वीपीय भारत एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपीय भाग
सम्मिलित हैं।
प्रश्न
57. टेथीस सागर के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
लारेशिया तथा गोंडवानालैंड के मध्य में स्थित एक लम्बी व उथली
भू-अभिनति को वेगनर ने टेथीस सागर कहा। इससे ही हिमालय पर्वत श्रृंखला का उद्भव
हुआ।
प्रश्न
58. दक्कन ट्रैप का निर्माण कैसे हुआ ?
उत्तर;
लगभग 6 करोड़ वर्ष पहले भारतीय प्लेट के
एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ।
लघु
उत्तरीय प्रश्न (SA1 प्रश्न)
प्रश्न
1. महाद्वीपीय प्रवाह के सम्बन्ध में किन-किन विद्वानों ने अपना मत प्रस्तुत
किया ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
विज्ञान के इतिहास के ज्ञात अभिलेखों से यह जानकारी मिलती है कि सन्
1556 में एक डच मानचित्रकार अब्राहम ऑरटेलियस ने सर्वप्रथम
इस सम्भावना को व्यक्त किया था कि दक्षिण व उत्तरी अमेरिका यूरोप तथा अफ्रीका
प्राचीनकाल में एक साथ जुड़े हुए थे। तत्पश्चात् एन्टोनियो पैलेरीनी ने एक मानचित्र
का निर्माण किया जिसमें अमेरिका . यूरोप व अफ्रीका महाद्वीपों को एक साथ दिखाया
गया था। सन् 1912 में जर्मन मौसम विज्ञानी अल्फ्रेड वेगनर ने
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसमें बताया गया कि सभी महाद्वीप एक
अकेले भूखण्ड 'पैंजिया' से जुड़े हुए
थे।
प्रश्न
2. पैंजिया क्या है ? इसके विभाजन पर संक्षिप्त टिप्पणी
लिखिए।
उत्तर:
पैंजिया-पैंजिया का अर्थ है-सम्पूर्ण पृथ्वी। कार्बोनीफेरसकालीन एक
विशाल महाद्वीप जिसमें सभी स्थलीय भाग सम्मिलित थे तथा यह एक विशाल स्थलखण्ड के
रूप में पाया जाता था जिसे वेगनर ने पैंजिया नाम दिया। वैगनर के तर्क के अनुसार
लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया का विभाजन आरम्भ हुआ।
पैंजिया सर्वप्रथम दो बड़े महाद्वीपीय पिंडों में विभाजित हुआ। इसका उत्तरी भाग
लारेशिया तथा दक्षिणी भाग गोंडवानालैंड कहलाया। इसके पश्चात् लारेशिया व
गोंडवानालैंड धीरे-धीरे अनेक छोटे-छोटे भागों में बँट गए जिससे वर्तमान महाद्वीपों
का निर्माण हुआ।
प्रश्न
3. 'महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष
में एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।' स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में विकसित की गई रेडियोमिट्रिक काल निर्धारण विधि से
महासागरों के पार महाद्वीपों की चट्टानों के निर्माण के समय को आसानी से जाना जा
सकता है। लगभग 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की एक
पट्टी ब्राजील तट एवं पश्चिमी अफ्रीका के तट पर मिलती है जो आपस में मेल खाती है।
दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका की तट रेखा के साथ पाये जाने वाले आरम्भिक समुद्री
निक्षेप जुरेसिक काल के हैं। इससे यह जानकारी मिलती है कि इस समय से पहले महासागर
वहाँ उपस्थित नहीं था।
प्रश्न
4. टिलाइट (Tillite) चट्टानें क्या हैं ? ये कहाँ मिलती हैं ?
उत्तर:
हिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानों को टिलाइट चट्टानें कहा
जाता है। गोंडवाना श्रेणी के आधार तल में टिलाइट चट्टानें मिलती हैं। इससे स्पष्ट
होता है कि ये क्षेत्र लम्बे समय तक हिमाच्छादित थे। इस प्रकार की टिलाइट चट्टानें
गौंडवानालैण्ड के भागों-भारत अफ्रीका फाकलैण्ड द्वीप मैडागास्कर अण्टार्कटिका व
ऑस्ट्रेलिया में मिलती हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये सभी भाग जुड़े थे और
गोंडवानालैण्ड के भाग थे। यह चट्टानें पुरातन जलवायु और महाद्वीपों के विस्थापन के
प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
प्रश्न
5.संवहन धारा सिद्धान्त क्या है ? बताइए।
उत्तर:
संवहन धारा सिद्धान्त का प्रतिपादन आर्थर होम्स ने 1930 के दशक में किया। इन्होंने बताया कि संवहन धाराएँ चक्रीय प्रवाह के रूप
में संचालित होती रहती हैं। इनकी उत्पत्ति मैण्टल में उपस्थित रेडियोएक्टिव तत्वों
में ताप की भिन्नता के कारण होती है। इन्होंने संवहन धारा सिद्धान्त का प्रतिपादन
महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण एवं पर्वतों के निर्माण की समस्या के समाधान के
लिए किया था। वस्तुतः यह सिद्धान्त उक्त उद्देश्यों में सफल रहा है और अपने से
पूर्व में प्रतिपादित सभी सिद्धान्तों से अधिक मान्य एवं तर्कसंगत है।
प्रश्न
6. महासागरीय अधस्तल का मानचित्रण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
महासागरीय अधस्तल की बनावट सर्वत्र समान न होकर भिन्नताओं को
दर्शाती है। महासागरीय भागों में मिलने वाली ऊबड़-खाबड़ दशाओं से मानवीय
गतिविधियों का जुड़ाव देखने को मिलता है। महासागरीय पर्पटी के अध्ययन ज्वालामुखियों
की स्थिति व उच्चावचों के विस्तृत अध्ययन हेतु महासागरीय अधस्तल का मानचित्रण
आवश्यक
प्रश्न
7. महासागरीय नितल में महासागरीय कटकों का अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है ?
उत्तर:
महासागरीय नितल में महासागरीय कटकों का अध्ययन अति महत्वपूर्ण है।
ये कटक आपस में जुड़े हुए पर्वतों की एक श्रृंखला बनाते हैं। महासागरीय जल में
डूबी हुई यह पृथ्वी के तल की सर्वाधिक लम्बी पर्वत श्रृंखला है। महासागरीय कटकों
के मध्य में स्थित द्रोणी सक्रिय ज्वालामुखी के प्रमुख क्षेत्र हैं। विवर्तनिक
घटनाएँ इनके सहारे घटित होती रहती हैं। महाद्वीप एवं महासागरों के निर्माण एवं
वितरण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।
प्रश्न
8. प्रशान्त महासागर के किनारे सक्रिय ज्वालामुखी अधिक क्यों मिलते हैं?
उत्तर:
प्रशान्त महासागर का किनारों वाला भाग महाद्वीपीय व महासागरीय
प्लेटों का मिलन क्षेत्र है यहाँ सम्पन्न होने वाली
अभिसरण भ्रंशन की प्रक्रियाएँ ज्वालामुखियों के निरन्तर उद्गार में सहायक हैं।
विवर्तनिक दृष्टि से मिलने वाली सक्रियता यहाँ सक्रिय ज्वालामुखियों हेतु
उत्तरदायी है।
प्रश्न
9. महासागरीय अधस्तल का विस्तार किस प्रकार हो रहा है ? बताइए।
अथवा
हेस द्वारा प्रतिपादित सागरीय अधस्तल विस्तार परिकल्पना को
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हेस ने सन 1961 में एक परिकल्पना प्रस्तुत की
जिसे सागरीय अधस्तल विस्तार के नाम से जाना जाता है। हेस के अनुसार महासागरीय
कटकों के शीर्ष पर लगातार ज्वालामुखी उद्गार से महासागरीय पर्पटी में विभेदन हुआ
और नवीन लावा इस दरार को भरकर महासागरीय पर्पटी को दोनों तरफ धकेल रहा है। इस
प्रकार महासागरीय अधस्तल का विस्तार हो रहा है।
प्रश्न
10. प्लेट संचरण की अपसारी सीमा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब दो प्लेट एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी
का निर्माण होता है उन्हें अपसारी सीमा या अपसारी प्लेट कहते हैं। इसे रचनात्मक
प्लेट भी कहते हैं। इन प्लेट किनारों के सहारे पदार्थों का निर्माण होता है। मध्य
अटलांटिक कटक अपसारी सीमा का एक प्रमुख उदाहरण है। यहाँ से अमेरिकी प्लेटें (उत्तरी
अमेरिकी व दक्षिण अमेरिकी प्लेटें) तथा यूरेशिया व अफ्रीकी प्लेटें अलग हो रही
हैं।
प्रश्न
11. अभिसरण सीमा किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार से हो
सकता है ?
उत्तर:
जब दो प्लेटें आमने-सामने सरकती हैं तो एक प्लेट दूसरी प्लेट के
नीचे धंसती है तथा वहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है उसे अभिसरण सीमा या विनाशात्मक
प्लेट किनारा भी कहते हैं।
अभिसरण तीन प्रकार से हो सकता है-
1. महासागरीय
व महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य
2. दो
महासागरीय प्लेटों के मध्य
3. दो
महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य।
प्रश्न
12. रूपांतर भ्रंश क्या है ? यह मध्य महासागरीय कटकों से
लम्बवत् स्थिति में क्यों पाये जाते हैं ?
उत्तर:
रूपांतर भ्रंश-दो प्लेटों को अलग करने वाला तल रूपांतर भ्रंश कहलाता
है। रूपांतर भ्रंश सामान्यतः मध्य महासागरीय कटकों से लम्बवत् स्थिति में पाये
जाते हैं क्योंकि कटकों के शीर्ष पर एक ही समय में समस्त स्थानों पर ज्वालामुखी
उद्गार नहीं होता है। ऐसी स्थिति में पृथ्वी के अक्ष से दूर प्लेट के हिस्से भिन्न
प्रकार से गति करने लगते हैं। इसके अतिरिक्त पृथ्वी के घूर्णन का भी प्लेट के अलग
खंडों पर भिन्न प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न
13. संवहन प्रवाह क्या है ? बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी का धरातल व भूगर्भ दोनों ही स्थिर न होकर गतिमान हैं। प्लेट
निरन्तर भ्रमण करती रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि दृढ़ प्लेट के नीचे चलायमान
चट्टानें वृत्ताकार रूप में संचालित हो रही हैं। उष्ण पदार्थ धरातल पर पहुँचता है
फैलता है तथा धीरे-धीरे ठण्डा होता जाता है। फिर गहराई में जाकर नष्ट हो जाता है।
यही चक्र निरन्तर चलता रहता है। वैज्ञानिकों ने इसका नामकरण संवहन प्रवाह किया है।
प्रश्न
14. भारतीय प्लेट की अवस्थिति एवं विस्तार का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय प्लेट के अन्तर्गत प्रायद्वीपीय भारत एवं ऑस्ट्रेलिया
महाद्वीप सम्मिलित हैं। इसकी उत्तरी सीमा का निर्धारण हिमालय पर्वत श्रेणियों के
साथ पाया जाने वाला प्रविष्ठन क्षेत्र जो महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण के रूप में
है। यह पूर्व में अराकिन्योमा पर्वत (म्यांमार) से होती हुई जावा तक फैली है। इसकी
पूर्वी सीमा विस्तारित तल है जो ऑस्ट्रेलिया के पूर्व में दक्षिण-पश्चिमी प्रशान्त
महासागर में महासागरीय कटक के रूप में है। इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की किरथर
श्रेणियों का अनुसरण करती हुई मकरान तट के साथ-साथ दक्षिणी-पूर्वी चैगोस द्वीप
समूह के साथ लालसागर द्रोणी में जा मिलती है।
लघु
उत्तरीय प्रश्न (SA2 प्रश्न)
प्रश्न
1. अल्फ्रेड वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त की आधारभूत संकल्पना को
स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त क्या था ?
उत्तर:
जर्मनी के मौसम विज्ञानी अल्फ्रेड वेगनर ने सन् 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। यह सिद्धान्त
महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से सम्बन्धित था। इस सिद्धान्त की आधारभूत
संकल्पना यह थी कि समस्त महाद्वीप एक अकेले भूखंड से जुड़े हुए थे। वेगनर के
अनुसार वर्तमान समय के समस्त महाद्वीप इस भूखंड के भाग थे तथा यह एक बड़े महासागर से
घिरा हुआ था। वेगनर ने इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया का नाम दिया।
पैंजिया
का अर्थ है-सम्पूर्ण पृथ्वी। इस पैंजिया के चारों ओर पानी फैला हुआ था। वेगनर ने
इस विशाल महासागर को पैंथालासा कहा जिसका अर्थ है-जल ही जल। वेगनर का तर्क है कि
लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व इस बड़े महाद्वीप 'पैंजिया'
का विभाजन प्रारम्भ हो गया। पैंजिया पहले दो बड़े महाद्वीपीय पिंडों
में विभाजित हुआ। इसका उत्तरी भाग लारेशिया तथा दक्षिणी भाग गोंडवानालैंड कहलाये।
इसके पश्चात् लारेशिया व गोंडवानालैंड धीरे-धीरे अनेक छोटे-छोटे हिस्सों में बँट
गए जो वर्तमान समय के महाद्वीपों के रूप में विद्यमान हैं।
प्रश्न
2. सागरीय अधःस्तल के विस्तार के सम्बन्ध में पुरा चुम्बकीय अध्ययन एवं
महासागरीय तल के मानचित्रण ने कौन-से तथ्य उजागर किये हैं ?
उत्तर:
चट्टानों के पुरा चुम्बकीय अध्ययन एवं महासागरीय तल के मानचित्रण ने
सागरीय अधःस्तल के विस्तार के सम्बन्ध में निम्न तथ्य महत्वपूर्ण माने हैं
1. महासागरीय
कटकों एवं ज्वालामुखी उद्गार का घनिष्ठ सम्बन्ध है। ज्वालामुखी उद्गार से इस
क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लावा बाहर निकलता रहता है।
2. महासागरीय
कटकों के समीप की चट्टानें नवीनतम हैं तथा इनमें सामान्य चुम्बकत्व ध्रुवण पाया
जाता है। कटक के दोनों ओर की चट्टानों के निर्माण-काल संरचना संघटन एवं चुम्बकीय
गुणों में समानता मिलती है। कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
3. महासागरीय
पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों से अपेक्षाकृत नई हैं।
महासागरीय पर्पटी की चट्टानें कहीं भी 20 करोड़ वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं
हैं।
4. मध्य
महासागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकम्प उद्गम केन्द्र कम गहराई में हैं। गहरी
खाइयों में उद्गम केन्द्र अधिक गहराई पर हैं।
प्रश्न
3. स्थलमण्डल की सात प्रमुख प्लेटों के नाम व क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार स्थलमण्डल निम्न सात प्रमुख
प्लेटों में विभक्त है
1. अण्टार्कटिक
प्लेट-इस प्लेट का अधिकांश भाग हिमाच्छादित है। इसमें अण्टार्कटिक को घेरे हुए
महासागर भी शामिल हैं।
2. उत्तरी
अमेरिकी प्लेट-इसमें पश्चिमी अन्धमहासागरीय तल सम्मिलित है तथा
दक्षिणी अमेरिकन प्लेट और कैरेबियन द्वीप इसकी सीमा निर्धारित करते हैं।
3. दक्षिण
अमेरिकी प्लेट-पश्चिमी अटलाण्टिक तल उत्तरी अमेरिकन प्लेट तथा
कैरेबियन द्वीप इसे पृथक् करते हैं।
4. प्रशान्त
महासागरीय प्लेट-पूर्वी प्रशांत कटक से पश्चिम की ओर सम्पूर्ण प्रशांत
महासागर पर फैली यह एकमात्र ऐसी प्लेट है जो पूर्णरूप से महासागरीय पर्पटी से
निर्मित है।
5. इण्डो-ऑस्ट्रेलियन-न्यूजीलैण्ड
प्लेट-इस प्लेट के अन्तर्गत भारतीय उपमहाद्वीप व ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप की स्थलीय
पर्पटी तथा हिन्द महासागर व प्रशांत महासागर की दक्षिणी-पश्चिमी महासागरीय पर्पटी
सम्मिलित है।
6. अफ्रीकी
प्लेट-यह एक मिश्रित महाद्वीपीय व महासागरीय प्लेट है। इसमें पूर्वी अटण्लाटिक
महासागरीय प्लेट भी सम्मिलित है।
7. यूरेशियाई
प्लेट-यह एकमात्र ऐसी प्लेट है जो अधिकांशतया महाद्वीपीय पर्पटी से निर्मित है।
जिसमें उत्तरी-पूर्वी अटलाण्टिक महासागरीय तल सम्मिलित हैं।
प्रश्न
4. स्थलमण्डल की महत्वपूर्ण छोटी प्लेटों के नाम व स्थिति बताइए।
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार स्थलमण्डल सात प्रमुख प्लेटों
व कुछ लघु प्लेटों में विभक्त है। प्रमुख लघु प्लेटें निम्नलिखित हैं
1. कोकोस
प्लेट-इसकी स्थिति मध्य अमेरिका व प्रशान्त महासागरीय प्लेट के मध्य है।
2. नजका
प्लेट-यह दक्षिणी अमेरिका एवं प्रशान्त महासागरीय प्लेट के मध्य है।
3. अरेबियन
प्लेट-इसमें सामान्य रूप से अरब प्रायद्वीपीय भाग सम्मिलित है।
4. फिलीपीन्स
प्लेट-यह एशिया महाद्वीप एवं प्रशान्त महासागरीय प्लेट के मध्य स्थित है।
5. कैरोलिन
प्लेट-यह न्यूगिनी के उत्तर में फिलीपाइन्स तथा इण्डियन प्लेट के मध्य स्थित है।
6. फ्यूजी
प्लेट-इसकी स्थिति ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के उत्तर-पूर्व में है।
प्रश्न
5. अपसरण व अभिसरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
|
अपसरण |
अभिसरण |
|
यह
दो प्लेटों के एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटने की प्रक्रिया होती है। |
यह
दो प्लेटों के एक-दूसरे के पास आने की प्रक्रिया होती है। |
|
इस
प्रक्रिया से नई पर्पटी का निर्माण होता है। |
इस
प्रक्रिया से भूपर्पटी नष्ट होती है। |
|
यह
प्रक्रिया सामान्यतः सागरों व महासागरों का निर्माण करती है। |
यह
प्रक्रिया सामान्यतः पर्वतों के निर्माण हेतु उत्तरदायी होती है। |
|
ऐसी
प्रक्रिया रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे सम्पन्न होती है। |
ऐसी
प्रक्रिया विनाशी प्लेट किनारों के सहारे सम्पन्न होती है। |
दीर्घ
उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न
1. वेगनर के महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
अल्फ्रेड वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन परिकल्पना का
समालोचनात्मक मूल्यांकन करें।
अथवा
अल्फ्रेड वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का सविस्तार
वर्णन कीजिए।
अथवा
महाद्वीपीय प्रवाह (ड्रिफ्ट) सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है ?
व्याख्या करें।
उत्तर:
वेगनर ने महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त का प्रतिपादन 1912 ई. में किया। इनका यह सिद्धान्त महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण की
समुचित व्याख्या करता है। वेगनर ने जलवायुशास्त्र वनस्पतिशास्त्र भूशास्त्र एवं
भूगर्भशास्त्र के विभिन्न प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया कि कार्बोनिफेरस युग
में समस्त स्थलखण्ड एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। इस स्थल पिण्ड को उन्होंने 'पैन्जिया' कहा। स्थलखण्ड के चारों ओर विस्तृत जलीय भाग
था जिसे पैंथालासा (Panthalassa) कहा गया। पैन्जिया की
ग्रीनलैंड तीन परतें थी-सियाल सिमा एवं निफे।

पैन्जिया
का उत्तरी भाग'लारेशिया' तथा दक्षिणी भाग 'गोंडवानालैंड'
यूरोप को प्रदर्शित करता था। लगभग 20 करोड़
वर्ष पहले अफ्रीका पैन्जिया का विभाजन हुआ और लारेशिया तथा दक्षिणी गोंडवानालैंड
सरकने से बीच का भाग 'टेथिस सागर' अमेरिका
के रूप में बदल गया। जुरैसिक युग में गोंडवानालैण्ड का विभाजन हो गया तथा ज्वारीय
बल के कारण प्रायद्वीपीय भारत अफ्रीका मेडागास्कर ऑस्ट्रेलिया अण्टार्कटिका तथा
फाकलैण्ड द्वीप एक-दूसरे से ED पेन्थालसा । पैन्जिया
भारत अलग हो गये। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम की ओर
प्रवाहित होने के कारण अंधमहासागर चित्र-वेगनर का महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त की
उत्पत्ति हुई। चूँकि ये दोनों महाद्वीप समान गति से संचलित नहीं हो रहे थे अतएव
अन्धमहासागर का आकार अंग्रेजी के 'S' अक्षर की भाँति हो गया।
वेगनर
ने महाद्वीपों के प्रवाह के सम्बन्ध में अनेक प्रमाण भी दिये हैं। इन्होंने प्रवाह
का कारण गुरुत्व बल व प्लवनशीलता के बल को माना है। इनके कारण महाद्वीप उत्तर की
ओर या भूमध्य रेखा की ओर सरके। सूर्य एवं चन्द्रमा के ज्वारीय बल के कारण उत्तरी
एवं दक्षिणी अमेरिका का प्रवाह पश्चिम की ओर हुआ। वेगनर के अनुसार करोड़ों वर्षों
के दौरान ये बल प्रभावशाली होकर महाद्वीपों के विस्थापन में सक्षम हो गए। बहुत से
वैज्ञानिकों ने महाद्वीपों के विस्थापन हेतु इन बलों को अपर्याप्त माना है।
महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में प्रमाण-वेगनर ने महाद्वीपों के विस्थापन के
सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रमाण दिए
(i) महाद्वीपों में साम्य-वेगनर के अनुसार दक्षिण अमेरिका एवं अफ्रीका की
तटरेखाओं में समानता मिलती है इन्हें एक-दूसरे से जोड़ा जा सकता है। सन् 1964 में
बुलर्ड नामक विद्वान के द्वारा कम्प्यूटर से तैयार मानचित्र द्वारा तटों का यह
साम्य बिल्कुल सही सिद्ध हुआ।
(ii) महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता-दक्षिण
अमेरिका एवं अफ्रीका के अन्ध महासागरीय तटों में समानता मिलती है। इन दोनों
किनारों पर पाये जाने वाले समुद्री निक्षेप ‘जुरैसिक काल' के
हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कभी ये महाद्वीप मिले हुए थे तथा अन्ध महासागर की
स्थिति नहीं थी।
(iii) टिलाइट-हिमानी के निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानों को
टिलाइट कहा जाता है। ये चट्टानें गोंडवानालैंड के भागों-भारत अफ्रीका फाकलैंड
द्वीप मेडागास्कर अण्टार्कटिका एवं ऑस्ट्रेलिया में मिलती हैं। हिमावरण का प्रभाव
इन स्थलखण्डों पर स्पष्ट रूप से दिखलायी देता है। इससे स्पष्ट होता है कि कभी ये
सभी भूखण्ड एक ही स्थलखण्ड के भाग थे।
(iv) प्लेसर निक्षेप-अफ्रीका महाद्वीप के घाना तट पर स्वर्ण निक्षेपों की
बहुतायत मिलती है। यहाँ चट्टानों का अभाव मिलता है। सोनायुक्त शिराएँ दक्षिणी
अमेरिका महाद्वीप के ब्राजील में मिलती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि घाना में पाये
जाने वाले स्वर्ण निक्षेप ब्राजील पठार से सम्बद्ध है। अतः स्पष्ट है कि ये दोनों
महाद्वीप मिले हुए थे।
(v) जीवाश्मों का वितरण-स्थलखण्डों के विपरीत समुद्री किनारों पर पाए जाने
वाले जीवावशेष व वनस्पति अवशेषों में भी समानता देखने को मिलती है। लैमूर नामक
जंतु भारत अफ्रीका एवं मेडागास्कर में मिलते हैं। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार ये
तीनों स्थलखण्ड जुड़े हुए थे जिसे 'लेमूरिया' कहा
जाता था। 'मेसोसारस' नामक छोटे जीव के
अवशेष दक्षिणी अफ्रीका के केप प्रांत और ब्राजील के इरावर शैल समूहों में ही पाये
जाते हैं तथा ग्लोसोपेट्रिस वनस्पति पायी जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि कभी ये
दोनों भाग एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। आज इन दोनों स्थानों के मध्य की दूरी 4800
किमी. है तथा इनके मध्य में एक महासागर विद्यमान है।
प्रश्न
2. महासागरीय अधस्तल से क्या तात्पर्य है? महासागरीय
अधस्तल का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
महासागरीय अधस्तल की बनावट का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय
अधस्तल का आशय-जिस प्रकार महाद्वीपीय भागों पर अनेक प्रकार की उच्चावचीय
स्थलाकृतियाँ मिलती हैं ठीक उसी प्रकार महासागरीय भागों में भी अनेक प्रकार के
उच्चावच देखने को मिलते हैं। महासागरीय तली व इससे सम्बन्धित इन उच्चावचों को ही
महासागरीय अधस्तल कहा जाता है। महासागरीय अधस्तल का विभाजन-महासागरीय भागों के तल
का वितरण सर्वत्र समान नहीं होता है। गहराई के आधार पर इसमें परिवर्तन आता रहता
है। गहराई व उच्चावचीय दशाओं के आधार पर महासागरीय अधस्तल को निम्न भागों में
विभाजित किया जा सकता है
1. महाद्वीपीय
सीमा
2. वितलीय
मैदान (समुद्री बेसिन)
3. मध्य
महासागरीय कटक।

(i) महाद्वीपीय सीमा-ये महाद्वीपीय किनारों व उच्चतम पर्वत गहरे समुद्री
बेसिन के बीच का भाग है। इसे अध्ययन की सुविधा के आधार पर पुनः निम्न भागों में
बाँटा गया हैसमुद्र महाद्वीपीय औसत ऊँचाई
(क) महाद्वीपीय मग्नतट- महासागरीय नितल
तल ढाल समुद्र तल का वह भाग जो महाद्वीपीय स्थल से संलग्न रहता है। ऐसे महाद्वीपीय
शेल्फ महाद्वीपीय भाग को मग्न तट कहते हैं।
(ख) महाद्वीपीय ढाल- महाद्वीपीय मग्न
तटों के बाद समुद्र की ओर मिलने वाले भाग को महाद्वीपीय ढाल गभीरतम महासागर कहते
हैं।
(ग) गहरी सागरीय खाइयाँ- सागरों व
महासागरों में मिलने वाले गहरे गर्तों को सागरीय खाइयों के रूप में
जाना जाता है।
(घ) महाद्वीपीय उभार- उबड़-खाबड़ या
ऊँचे भू-भाग।
(ii) वितलीय मैदान- महाद्वीपीय तटों व मध्य महासागरीय कटकों के बीच मिलने
वाले क्षेत्र। इन भागों पर ही स्थलीय निक्षेपों/अवसादों का जमाव होता है।
(iii) मध्य-महासागरीय कटक- महासागरीय भागों में मिलने वाली जुड़ी हुई पर्वतों की
शृंखला। यह जल में डूबी रहती है। इसमें शिखर रिफ्ट व प्रभाजक पठार भी मिलते हैं।
प्रश्न
3. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त को विस्तार से बताइए।
उत्तर:
स्थिर दृढ़ भू-खण्डों को प्लेट कहते हैं। प्लेटों की प्रकृति और
उनके प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं। प्लेट विवर्तनिकी
अवधारणा का प्रतिपादन 1967 ई. में मैकेन्जी मोरगन तथा पारकर
नामक विद्वानों ने किया था। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार स्थल-मण्डल सात
प्रमुख प्लेटों और कुछ छोटी प्लेटों से मिलकर बना है। नवीन
वलित पर्वत श्रेणियाँ खाइयाँ और भ्रंश मुख्य प्लेटों को सीमांकित करते हैं।
प्रमुख
प्लेटें-
1. अंटार्कटिक
प्लेट
2. उत्तरी
अमेरिकी प्लेट
3. दक्षिणी
अमेरिकी प्लेट
4. प्रशांत
महासागरीय प्लेट
5. इंडो-ऑस्ट्रेलियन-न्यूजीलैंड
प्लेट
6. अफ्रीकी
प्लेट
7. यूरेशियाई
प्लेट।
छोटी
प्लेटें-
1. कोकोस
प्लेट
2. नजका
प्लेट
3. अरेबियन
प्लेट
4. फिलीपीन
प्लेट
5. कैरोलिन
प्लेट
6. फ्यूजी
प्लेट।
ये
समस्त प्लेटें पृथ्वी के सम्पूर्ण इतिहासकाल में लगातार विचरण कर रही हैं। महाद्वीप
एक प्लेट का हिस्सा है और समस्त प्लेट गतिमान रही हैं और भविष्य में भी गतिमान
रहेंगी। इन प्लेटों के किनारे ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि भूकम्प,
ज्वालामुखी तथा अन्य विवर्तनिकी घटनाएँ इन प्लेटों के किनारों के
सहारे ही घटित होती हैं। अत: प्लेट किनारों का अध्ययन महत्वपूर्ण होता है। प्लेट
संचरण के फलस्वरूप निम्नांकित तीन प्रकार के प्लेट किनारों (सीमाओं) का निर्माण
होता है-

(i) अपसारी सीमा- इसे रचनात्मक प्लेट किनारे भी कहते हैं। इसमें दो
प्लेट एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में सरकते हैं। मध्य अटलाण्टिक कटक अपसारी सीमा
का प्रमुख उदाहरण है। इन प्लेट किनारों के सहारे पदार्थों का निर्माण होता है।
(ii) अभिसरण सीमा- इसे विनाशात्मक प्लेट किनारा भी कहते हैं। जब दो
प्लेट एक-दूसरे की ओर सरकती हैं तो अधिक घनत्व वाली शैल नीचे मैण्टल में जाकर
पिघलकर नष्ट हो जाती हैं। वह स्थान जहाँ प्लेट फँसती है, उसे
प्रविष्ठन (प्रवेश) क्षेत्र कहा जाता है। यह अभिसरण महासागरीय एवं महाद्वीपीय
प्लेटों के बीच, दो महासागरीय प्लेटों के बीच अथवा दो
महाद्वीपीय प्लेटों के बीच हो सकता है।
(iii) रूपान्तर सीमा- इसमें दो प्लेटें एक-दूसरे के अगल-बगल सरकती हैं।
इसमें न तो प्लेटों का निर्माण होता है और न विनाश अतएव इससे संरक्षी प्लेट
किनारों का निर्माण होता है।


प्रश्न
4. भूकम्प एवं ज्वालामुखियों के विश्व वितरण की सचित्र विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प एवं ज्वालामुखी दो प्राकृतिक तथा आकस्मिक घटनाएँ हैं। इनसे
अचानक मिनटों में धरातल की रूपरेखा बदल जाती है। विश्व मानचित्र पर भूकम्प एवं
ज्वालामुखी के वितरण को देखने से स्पष्ट होता है कि दोनों के क्षेत्र लगभग समान
हैं। इससे स्पष्ट होता है कि दोनों क्रियाएँ अन्तर्सम्बन्धित हैं। भूगोलवेत्ताओं
ने उत्तरी गोलार्द्ध में सक्रिय ज्वालामुखियों की संख्या 275 तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 155 बताई है। ज्वालामुखी
एवं भूकम्प विश्व में एक निश्चित क्रम में पाये जाते हैं। अतः इन्हें विभिन्न
पेटियों में प्रदर्शित किया जा सकता है। विश्व में ज्वालामुखी एवं भूकम्प की निम्न
पेटियाँ पाई जाती हैं
(1) परिप्रशान्त महासागरीय पेटी- यह पेटी प्रशान्त महासागर
के चारों ओर फैली हुई है, अतः इसे परिप्रशान्त महासागरीय पेटी
के नाम से भी जाना जाता है। यह पेटी ज्वालामुखी एवं भूकम्प दोनों दृष्टियों से
संवेदनशील है। इस पेटी में विश्व के लगभग 63 प्रतिशत भूकम्प
आते हैं। इसी प्रकार इस पेटी में ज्वालामुखी उद्गार भी होता ही रहता है। इसलिए इस
पेटी को 'रिंग आफ दि फायर' के नाम से
भी जाना जाता है। विश्व के लगभग 88% ज्वालामुखी इसी क्षेत्र
में हैं।
(2) मध्य महाद्वीपीय पेटी- महाद्वीपों के मध्य में स्थित होने के कारण इस पेटी
को मध्य महाद्वीपीय पेटी कहते हैं। यह पेटी यूरोप एवं एशिया महाद्वीपों के बीच
नवीन वलित पर्वतों के सहारे फैली हुई है। यह आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर भूमध्यसागर
के तटवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों को सम्मिलित करती हुई म्यांमार से होकर जावा द्वीप
तक जाती है और फिलीपीन्स के पास परिप्रशान्त मध्यसागरीय पेटी से मिल जाती है। इस
पेटी में भ्रंशमूलक तथा असन्तुलनमूलक भूकम्प आते हैं, भारत के
भूकम्प क्षेत्र भी इसी पेटी में सम्मिलित किए जाते हैं।

(3) मध्य अटलांटिक पेटी- यह पेटी अटलाण्टिक महासागर के मध्यवर्ती भाग में
मध्यवर्ती कटक के सहारे उत्तर से दक्षिण में बोवेट द्वीप तक फैली हुई है। इसमें
विश्व के लगभग 10% ज्वालामुखी तथा 10% भूकम्प आते हैं।
(4) अन्य क्षेत्र- उपर्युक्त क्षेत्रों के अलावा एक प्रमुख पेटी अफ्रीका
महाद्वीप के पूर्वी भाग में नील नदी घाटी में उत्तर से दक्षिण तक फैली है। यह
विश्व प्रसिद्ध रिफ्ट घाटी है, जिसमें अनेक सक्रिय ज्वालामुखी हैं।
यही भूकम्प का भी प्रमुख क्षेत्र है। हिन्द महासागर के ज्वालामुखी एवं भूकम्प भी
इसी क्षेत्र में सम्मिलित किये जाते हैं।
प्रश्न
5. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार विश्व की प्रमुख बड़ीप्लेटों एवं
छोटी प्लेटों का विस्तार से वर्णन कीजिए। अथवा प्लेट विवर्तनिकी प्रक्रिया का
विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्लेट-स्थलखण्ड के दृढ़ व कठोर पिंडों को प्लेट कहा जाता है।
प्लेटों के प्रकार-प्लेटों को सामान्यतया दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(i) महाद्वीपीय प्लेटें एवं
(ii) महासागरीय प्लेटें।
जिस
प्लेट का सम्पूर्ण या अधिकांश भाग स्थलीय होता है, वह महाद्वीपीय प्लेट कहलाती है तथा
जिस प्लेट का पूर्णरूपेण अथवा अधिकांश भाग महासागरीय तली के अन्तर्गत होता है,
वह महासागरीय प्लेट कहलाती है।
प्लेटों के उद्भव, प्रकृति व गतियों की
सम्पूर्ण प्रक्रियाएँ व परिणाम प्लेट विवर्तनिकी कहलाते हैं।
विश्व की प्रमुख बड़ी प्लेटें-प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार
पृथ्वी का स्थलमंडल सात प्रमुख प्लेटों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है, जो निम्नलिखित है
(i) इंडो-ऑस्ट्रेलियन- न्यूजीलैंड प्लेट-इस प्लेट को भारतीय प्लेट के नाम से
भी जाना जाता है। इस प्लेट के अन्तर्गत भारतीय उपमहाद्वीप, ऑस्ट्रेलिया
व न्यूजीलैंड की स्थलीय पर्पटी तथा हिन्द महासागर व प्रशांत महासागर की
दक्षिणी-पश्चिमी महासागरीय पर्पटी सम्मिलित है।
(ii) यूरेशियाई प्लेट- यह एकमात्र ऐसी प्लेट है जो अधिकांशतया महाद्वीपीय
पर्पटी से निर्मित है। यह प्लेट पूर्वी अटलांटिक महासागरीय तल, पश्चिम में
मध्य अटलांटिक कटक, दक्षिण में आल्पस-हिमालय पर्वतीय क्रम
तथा पूर्व में द्वीपीय भागों तक फैली हुई है।
(iii) उत्तरी अमेरिकन प्लेट- इस प्लेट के अन्तर्गत पश्चिमी अटलांटिक महासागरीय तल
सम्मिलित हैं तथा दक्षिणी अमेरिकी प्लेट व कैरेबियन द्वीप इसकी सीमा का निर्धारण
करते हैं।
(iv) दक्षिणी अमेरिकन प्लेट- इस प्लेट के अन्तर्गत
पश्चिमी अटलांटिक तल सम्मिलित हैं। इसे उत्तरी अमेरिकी प्लेट व कैरेबियन द्वीप
पृथक् करते हैं।

(v) प्रशांत महासागरीय प्लेट- पूर्वी प्रशांत कटक से
पश्चिम की ओर सम्पूर्ण प्रशांत महासागर पर फैली यह एकमात्र एक ऐसी प्लेट है जो
पूर्ण रूप से महासागरीय पर्पटी से निर्मित है।
(vi) अंटार्कटिक प्लेट- इस प्लेट का अधिकांश भाग हिम से घिरा हुआ है। यह
प्लेट अंटार्कटिका महाद्वीप के चारों ओर महासागरीय कटकों तक विस्तृत है।
(vii) अफ्रीकी प्लेट- यह एक मिश्रित महाद्वीपीय व महासागरीय प्लेट है। इसका
विस्तार पूर्व में भारतीय, दक्षिण में अंटार्कटिका, पश्चिम में मध्य अटलांटिक कटक व उत्तर में यूरेशियन प्लेट तक है।
छोटी
प्लेटें-
उपर्युक्त
बड़ी प्लेटों के अतिरिक्त कुछ छोटी प्लेटें भी पृथ्वी पर गतिशील हैं। उनमें से कुछ
महत्वपूर्ण छोटी प्लेटें निम्नलिखित हैं
1. कोकोस
प्लेट- यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका एवं प्रशांत महासागरीय प्लेट के मध्य स्थित है।
2. नजका
प्लेट- यह प्लेट दक्षिण अमेरिका व प्रशांत महासागरीय प्लेट के मध्य स्थित है।
3. फिलीपीन
प्लेट- यह प्लेट एशिया महाद्वीप एवं प्रशांत महासागरीय प्लेट के मध्य स्थित है।
4. अरेबियन
प्लेट- इस प्लेट के अन्तर्गत अरब प्रायद्वीप का अधिकांश भूभाग सम्मिलित है।
5. कैरोलिन
प्लेट- यह प्लेट न्यूगिनी के उत्तर में फिलीपीन तथा भारतीय प्लेट के मध्य स्थित
है।
6. फ्यूजी
प्लेट- यह प्लेट ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
प्रश्न
6. भारतीय प्लेट के संचलन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय प्लेट में भारतीय प्रायद्वीप एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपीय भाग
सम्मिलित किए जाते हैं। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणियों से सम्बद्ध
प्रविष्ठन (प्रवेश) क्षेत्र मिलता है जो इसकी उत्तरी सीमा का निर्धारण करता है।
लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले जब पैन्जिया का विभाजन हुआ तब
भारतीय प्लेट गुरुत्व बल के कारण उत्तर की ओर सरकने लगी। लगभग 4 या 5 करोड़ वर्ष पहले भारतीय प्रायद्वीप एशिया से जा
टकराया। फलस्वरूप, टेथिस का मलबा वलित होकर हिमालय पर्वत के
रूप में परिवर्तित हो गया। । लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व
भारतीय उपमहाद्वीप सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर
स्थित था।
भारतीय
प्लेट और एशियाई प्लेट के मध्य टेथिस सागर स्थित था और तिब्बतीय खण्ड एशियाई
स्थलखण्ड के समीप था। जब भारतीय प्लेट एशियाई प्लेट की ओर सरक रही थी उस समय लावा
प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। यह भारतीय भौगोलिक इतिहास की प्रमुख घटना
थी। लावा जमाव की प्रक्रिया 6 करोड़ वर्ष पहले प्रारम्भ हुई और
काफी लम्बे समय तक चलती रही। भारतीय उपमहाद्वीप उस समय की भूमध्य रेखा के समीप
स्थित था और आज भी इसकी स्थिति भूमध्य रेखा के समीप ही उत्तरी गोलार्द्ध में है।
हिमालय निर्माण की प्रक्रिया आज से लगभग 7 करोड़ वर्ष पहले
प्रारम्भ हुई थी, यह आज भी जारी है। भूगोलवेत्ताओं की
मान्यता है कि आज भी हिमालय का उत्थान हो रहा है।

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