Class-11 Geography
Chapter- 3 (पृथ्वी की आंतरिक संरचना)
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न
में स्तम्भ 'अ' को स्तम्भ 'ब' से सुमेलित कीजिए
|
स्तम्भ
'अ' (परत) |
स्तम्भ
'ब' (गहराई) |
|
(i) भूपर्पटी |
(अ) 100-2900 किमी. |
|
(ii)
मैंटल |
(ब) 2900-5100 किमी. |
|
(iii)
बाहरी क्रोड |
(स) 5150-पृथ्वी के केन्द्र तक |
|
(iv)
आन्तरिक क्रोड |
(द) $0-100$ किमी. |
उत्तर:
|
स्तम्भ
'अ' (परत) |
स्तम्भ
'ब' (गहराई) |
|
(i) भूपर्पटी |
(द) $0-100$ किमी. |
|
(ii)
मैंटल |
(अ) 100-2900 किमी. |
|
(iii)
बाहरी क्रोड |
(ब) 2900-5100 किमी. |
|
(iv)
आन्तरिक क्रोड |
(स) 5150-पृथ्वी के केन्द्र तक |
2.
|
स्तम्भ
'अ' (परत) |
स्तम्भ
'ब' (संघटक तत्व) |
|
(i) सियाल |
(अ) सिलिका व मैग्नीशियम |
|
(ii)
सीमा |
(ब) निकिल व फेरियम |
|
(iii)
निफे |
(स) सिलिका व एल्युमिनियम |
उत्तर:
|
स्तम्भ
'अ' (परत) |
स्तम्भ
'ब' (संघटक तत्व) |
|
(i) सियाल |
(स) सिलिका व एल्युमिनियम |
|
(ii)
सीमा |
(अ) सिलिका व मैग्नीशियम |
|
(iii)
निफे |
(ब) निकिल व फेरियम |
रिक्त
स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न
निम्न
वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. भू-पर्पटी
से........"तक सभी पदार्थ परतों के रूप में विभाजित हैं।
2. गहराई
बढ़ने के साथ-साथ पदार्थ का........... भी बढ़ता है।
3. गुरुत्व
का मान पदार्थ के.........के अनुसार भी बदलता है।
4. सभी
प्राकृतिक भूकंप.......... में ही आते हैं।
5. भूकंप
एक........... आपदा है।
उत्तर:
1. क्रोड
2. घनत्व
3. द्रव्यमान
4. स्थलमंडल
5. प्राकृतिक।
सत्य-असत्य
कथन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न
कथनों में से सत्य-असत्य कथन की पहचान कीजिए
1. उल्काएँ
पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का प्रत्यक्ष स्रोत हैं।
2. अधिकेन्द्र
उद्गम केन्द्र के 120° के कोण पर होता है।
3. 'S' (द्वितीयक)
तरंगें तरल भाग में लुप्त हो जाती हैं।
4. रिक्टर
स्केल पर 5 से अधिक तीव्रता वाले भूकम्प अत्यधिक विनाशकारी होते हैं।
5. मैंटल
का औसत घनत्व 3.4 ग्राम प्रति घन सेमी. है।
उत्तर:
1. असत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. सत्य
5. सत्य।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लावा
से क्या आशय है ?
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भागों में स्थित मैग्मा जब धरातल पर आ जाता है तो
इसको लावा कहते हैं।
प्रश्न 2. मैग्मा
क्या है ?
उत्तर:
धरातल के नीचे मिलने वाले तरल व पिघली अवस्था में लाल रंग के तरल
पदार्थ को मैग्मा कहते हैं।
प्रश्न 3. पृथ्वी
के आन्तरिक भाग को अप्रत्यक्ष प्रमाणों के आधार पर क्यों समझा जा सकता है ?
उत्तर:
क्योंकि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में न तो कोई पहुँच सका है और न ही
पहुंच सकता है।
प्रश्न 4. पृथ्वी
के धरातल का विन्यास किसका परिणाम है ?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यतः भूगर्भ में होने वाली
प्रक्रियाओं का परिणाम है।
प्रश्न 5. कौन-कौन
सी प्रक्रियाएँ निरन्तर भू-दृश्यों को आकार प्रदान करती रहती हैं ?
उत्तर:
बहिर्जात व अन्तर्जात प्रक्रियाएँ निरन्तर भू-दृश्यों को आकार
प्रदान करती रहती हैं।
प्रश्न 6. सुनामी
क्या है ?
उत्तर:
भूकम्प के कारण सागरीय जल में उठने वाली विशालकाय लहरों को सुनामी
कहते हैं।
प्रश्न 7. सुनामी
लहरें कैसे उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर:
जब समुद्रों में तीव्र शक्तिशाली भूकम्प आते हैं अथवा ज्वालामुखी
विस्फोट होता है तो समुद्रों का जल तट की ओर प्रवाहित होना प्रारम्भ कर देता है
जिनसे विनाशकारी सुनामी लहरें उत्पन्न हो जाती हैं। .
प्रश्न 8. पृथ्वी
के आन्तरिक भाग में अधिक गहराई में जाना क्यों असम्भव है ?
उत्तर:
क्योंकि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में अधिक गहराई पर तापमान अधिक होता
है।
प्रश्न 9. पृथ्वी
के आन्तरिक भाग की जानकारी प्राप्त करने हेतु विश्व के वैज्ञानिक किन-किन
परियोजनाओं पर कार्य कर रहे हैं ?
उत्तर:
1. गहरे
समुद्र में प्रवेधन परियोजना
2. समन्वित
महासागरीय प्रवेधन परियोजना।
प्रश्न 10. वर्तमान
समय तक सबसे गहरा प्रवेधन कहाँ किया गया है ?
उत्तर:
वर्तमान समय तक सबसे गहरा प्रवेधन आर्कटिक महासागर के कोला क्षेत्र
में 12 किमी. की गहराई तक किया गया है।
प्रश्न 11. पृथ्वी
के आन्तरिक भाग की जानकारी के लिए उल्काएँ महत्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं ?
उत्तर:
उल्काएँ (उल्का पिंड) उसी प्रकार के पदार्थ से बने ठोस पिंड हैं
जिनसे पृथ्वी का निर्माण हुआ है। अतः पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी के लिए
उल्काएँ (उल्का पिंड) महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
प्रश्न 12. गुरुत्वाकर्षण
बल ध्रुवों पर कम एवं भूमध्य रेखा पर अधिक क्यों होता है ?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर कम
व भूमध्य रेखा पर अधिक होता है।
प्रश्न 13. गुरुत्व
विसंगति क्या है ?
उत्तर:
धरातल के विभिन्न स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता को गुरुत्व
विसंगति कहते हैं।
प्रश्न 14. गुरुत्व
विसंगति से हमें क्या जानकारी प्राप्त होती है ?
उत्तर:
गुरुत्व विसंगति से हमें भूपर्पटी में पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण
की जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न
15. भूकम्प से क्या आशय है?
अथवा
भूकम्प
क्या है?
उत्तर:
साधारण भाषा में भूकम्प का अर्थ है- पृथ्वी का कंपन। इस प्रकार
पृथ्वी में होने वाली हलचल या कंपन को भूकम्प कहते हैं।
प्रश्न 16. भ्रंश
क्या है ?
उत्तर:
जब भूपटल के दो भागों के मध्य टूटन एवं विखण्डन की क्रिया होती है
तो उसे भ्रंश कहते हैं।
प्रश्न
17. भूकम्प का उद्गम केन्द्र क्या होता है ?
अथवा
भूकम्प
मूल किसे कहते हैं ?
अथवा
अवकेन्द्र क्या है ?
उत्तर:
पृथ्वी के अन्दर वह स्थान जहाँ से भूकम्प की तरंगों का आविर्भाव
होता है वह स्थान भूकम्प का उद्गम केन्द्र या भूकम्प मूल या अवकेन्द्र कहलाता है।
प्रश्न 18. अधिकेन्द्र
क्या है ?
उत्तर:
भूतल पर स्थित वह स्थान जहाँ पर सर्वप्रथम भूकम्पीय तरंगों का अनुभव
होता है उसे अधिकेन्द्र या भूकम्प केन्द्र कहते हैं। अधिकेन्द्र उद्गम केन्द्र के
ठीक ऊपर (90° के कोण पर) होता है।
प्रश्न 19. भूकम्पीय
तरंगें किसे कहते हैं ?
उत्तर:
भूकम्प के उद्गम केन्द्र से बाहर की ओर फैलने वाली तरंगों को
भूकम्पीय तरंगें कहते हैं।
प्रश्न 20. स्थलमण्डल
से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल से 200 किमी. गहराई वाले भाग
को स्थलमण्डल के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 21. भूकम्पीय
तरंगों के बुनियादी आधार पर प्रकार बताइए।
उत्तर:
1. भूगर्भिक
तरंगें
2. धरातलीय
तरंगें।
प्रश्न 22. भूगर्भिक
तरंगें कब उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर:
भूगर्भिक तरंगें भूकम्प के उद्गम केन्द्र से ऊर्जा के मुक्त होने के
दौरान उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 23. धरातलीय
तरंगें क्या हैं ?
उत्तर:
भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण
उत्पन्न नई तरंगों को धरातलीय तरंगें कहते हैं।
प्रश्न 24. भूगर्भीय
तरंगों के प्रकार बताइए।
उत्तर:
1. प्राथमिक
तरंगें (P तरंगें),
2. द्वितीयक
तरंगें (S तरंगें)।
प्रश्न 25. प्राथमिक
तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी भूकम्पीय तरंगें जो धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं उन्हें
प्राथमिक तरंग कहा जाता है।
प्रश्न 26. प्राथमिक
तरंगों की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1. प्राथमिक
तरंगें ध्वनि तरंगों जैसी होती हैं।
2. ये ठोस
द्रव तथा गैस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं।
प्रश्न 27. द्वितीयक
तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राथमिक तरंगों के बाद धरातल पर पहुँचने वाली तरंगें द्वितीयक
तरंगें कहलाती हैं।
प्रश्न 28. द्वितीयक
तरंगों की एक प्रमुख विशेषता बताइए।
उत्तर:
द्वितीयक तरंगें केवल ठोस पदार्थों में ही चलती हैं।
प्रश्न 29. सबसे
तीव्र एवं सबसे धीमी गति से चलने वाली भूकम्पीय तरंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सबसे तीव्र गति प्राथमिक तरंगें (P) सबसे धीमी
गति-धरातलीय तरंगें (L)।
प्रश्न 30. भूकम्पलेखी
यंत्र पर सबसे अन्त में अभिलेखित होने वाली तरंगें कौन-सी हैं ?
उत्तर:
धरातलीय तरंगें।
प्रश्न 31. सबसे
अधिक विनाशकारी कौन-सी भूकम्पीय तरंगें होती हैं ?
उत्तर:
धरातलीय तरंगें।
प्रश्न 32. पदार्थों
में उभार व गर्त बनाने वाली तरंगें कौन-सी हैं?
उत्तर:
'S' (द्वितीयक) तरंगें।
प्रश्न 33. भूकम्पीय
छाया क्षेत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर:
धरातल पर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित
नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र कहा जाता है।
प्रश्न 34. प्राथमिक
(P) तरंगों का भूकम्पीय छाया क्षेत्र मिलता है?
उत्तर:
मुख्यतया 105°-145° के बीच।
प्रश्न 35. विवर्तनिक
भूकम्प क्या है ?
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में होने वाली हलचलों के कारण उत्पन्न होने
वाले भूकम्प विवर्तनिक भूकम्प कहलाते हैं।
प्रश्न 36. ज्वालामुखी
जन्य भूकम्प क्या होते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी प्रक्रिया के दौरान होने वाले विस्फोट से उत्पन्न भूकम्प
ज्वालामुखी जन्य भूकम्प होते हैं।
प्रश्न 37. नियात
भूकम्प से क्या आशय है ?
उत्तर:
खनन क्षेत्रों में कभी-कभी अत्यधिक मात्रा में होने वाले खनन कार्य
से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है। जिससे हल्के झटके महसूस किए जाते हैं। इन्हें
नियात भूकम्प कहा जाता है।
प्रश्न 38. भूकम्पीय
घटनाओं का मापन किस आधार पर किया जाता है ?
उत्तर:
भूकम्पीय घटनाओं का मापन भूकम्पीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की
तीव्रता के आधार पर किया जाता है।
प्रश्न 39. भूकम्पीय
तीव्रता की मापनी को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
रिक्टर स्केल।
प्रश्न 40. भूकम्पीय
तीव्रता की मापनी कितनी होती है?
उत्तर:
रिएक्टर स्केल में तीव्रता की मापनी 0 से 10
तक होती है।
प्रश्न 41. भूकम्पीय
आघात की तीव्रता/गहनता की मापनी को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
मरकैली स्केल।
प्रश्न 42. भूकम्पीय
गहनता की मापनी कितने तक होती है?
उत्तर:
1 से 12 तक।
प्रश्न 43. किन्हीं
दो प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. भूकम्प
2. ज्वालामुखी।
प्रश्न 44. भूकम्पीय
आपदा से होने वाले किन्हीं दो प्रकोपों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. सुनामी
2. भू-स्खलन।
प्रश्न 45. भू-स्खलन
से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पर्वतों में ढाल के अनुसार मिट्टी तथा चट्टानों का ऊपर से नीचे की
ओर खिसकना लुढ़कना एवं गिरने की प्रक्रिया भूस्खलन कहलाती है।
प्रश्न 46. हिम
स्खलन क्या है ?
उत्तर:
अधिक मात्रा में हिम के संचयन से जब हिम व मिट्टी आदि का ढेर अचानक
तीव्र गति से पर्वतों से फिसलकर नीचे आ जाता है तो उसे हिम स्खलन कहते हैं।
प्रश्न 47. भू-पर्पटी
या क्रस्ट क्या है ?
उत्तर:
पृथ्वी की सबसे ऊपरी या बाहरी परत को भूपर्पटी या क्रस्ट कहते हैं।
इसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति होती है।
प्रश्न 48. मैंटल
के ऊपरी भाग को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
दुर्बलता मंडल।
प्रश्न 49. मोहो
असातत्य क्या है ?
उत्तर:
भूपर्पटी की निचली सतह पर तथा मैंटल की ऊपरी सतह पर (दोनों के बीच)
पायी जाने वाली असमानता को मोहो असातत्य कहते हैं।
प्रश्न 50. पृथ्वी
के क्रोड का निर्माण कौन-कौन से पदार्थों से हुआ है ?
उत्तर:
पृथ्वी के क्रोड का निर्माण भारी पदार्थों जैसे निकिल व लोहा से हुआ
है। इसे निफे परत के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 51. पृथ्वी
का बाह्य व आन्तरिक क्रोड किस अवस्था में है ?
उत्तर:
पृथ्वी का बाह्य क्रोड तरल अवस्था में तथा आन्तरिक क्रोड ठोस अवस्था
में है।
प्रश्न 52. ज्वालामुखी
से क्या आशय है ?
उत्तर:
धरातल के आन्तरिक भाग से तरल व तप्त पदार्थों गैसों व जलवाष्प का
नालीनुमा रूप में धरातल से बाहर निकलना ज्वालामुखी कहलाता है।
प्रश्न 53. ज्वालामुखी
के कोई दो प्रकार बताइए।
उत्तर:
1. शील्ड
ज्वालामुखी
2. मिश्रित
ज्वालामुखी।
प्रश्न 54. शील्ड
ज्वालामुखी का ढाल तीव्र नहीं होता है ? क्यों।
उत्तर:
शील्ड ज्वालामुखी से नि:सृस्त लावा उद्गार के समय बहुत तरल होता है
जिसके कारण लावा दूर तक बह जाता है। इसी कारण इन ज्वालामुखियों का ढाल तीव्र नहीं
होता है।
प्रश्न 55. सिंडर
शंकु क्या है ?
उत्तर:
ज्वालामुखी में निःसृत राख धूल व अन्य पदार्थों के जमाव से निर्मित
लघु शंकु को सिंडर शंकु कहते हैं।
प्रश्न 56.पृथ्वी पर
पाये जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी कौन-से होते हैं ?
उत्तर:
ज्वालामुखी कुंड (काल्डेरा)।
प्रश्न 57. भारत
में वृहत बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र कौन-सा है ?
उत्तर:
भारत का दक्कन ट्रेप जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार का अधिकांश भाग
पाया जाता है वृहत बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है।
प्रश्न 58. आग्नेय
शैल का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाले लावा के ठंडा होने से आग्नेय शैल
का निर्माण होता है।
प्रश्न 59. किन्हीं
दो ज्वालामुखी निर्मित अन्तर्वेधी आकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. बैथोलिथ
2. लैकोलिथ।
प्रश्न
60. बैथोलिथ क्या है ?
उत्तर:
जब मैग्मा का एक बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठण्डा हो जाए
तो यह एक गुम्बद के रूप में विकसित हो जाता है। ऐसी आकृति को बैथोलिक कहते हैं।
प्रश्न 61. भारत
में लैकोलिथ आकृति का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ।
प्रश्न 62. सिल
या शीट क्या है ?
उत्तर:
अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में
ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है।
प्रश्न 63. भारत
में डाइक आकृति का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों में।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1 प्रश्न)
प्रश्न 1. पृथ्वी
की आन्तरिक संरचना का अध्ययन भूगोल में क्यों महत्त्वपूर्ण है ? बताइए।
उत्तर:
भूगोल मुख्यतः पृथ्वी तल (Earth surface) का
अध्ययन है किन्तु इसके अन्तर्गतं पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के अध्ययन को भी सम्मिलित
किया जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि पृथ्वी के तल का विन्यास मुख्यतः भूगर्भ
में होने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम है। बहिर्जात एवं अन्तर्जात बलों द्वारा
उत्पन्न शक्तियाँ लगातार धरातल के स्वरूप को निर्धारित करती हैं। किसी प्रदेश के
धरातलीय स्वरूप का अध्ययन वहाँ की आन्तरिक क्रियाओं की उपेक्षा करके नहीं किया जा
सकता। मानवीय क्रियाओं एवं जीवन-क्रम का निर्धारण क्षेत्रीय भू-आकृतियों द्वारा
होता है। इसी प्रकार भूकम्प ज्वालामुखी सुनामी लहरों आदि के बारे में जानने के लिए
धरातल की आन्तरिक संरचना का अध्ययन आवश्यक है।
प्रश्न 2. पृथ्वी
की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले प्रमुख स्रोत (साधन)
कौन-कौन से हैं ? बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले
प्रमुख स्रोत (साधन) निम्नलिखित हैं
1. प्रत्यक्ष
स्रोत–वे स्रोत जिनसे प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी की आन्तरिक
संरचना के विषय में जानकारी प्राप्त होती है उन्हें प्रत्यक्ष स्रोत या साधन कहते
हैं जो निम्न हैं
1. धरातलीय
ठोस चट्टानें
2. खनन
क्षेत्र से प्राप्त चट्टानें
3. ज्वालामुखी
उद्गार
4. प्रवेधन
प्रक्रियाएँ।
2. अप्रत्यक्ष
स्रोत- वे स्रोत जिनसे अत्प्रयक्ष रूप से पृथ्वी के आन्तरिक
भाग की जानकारी प्राप्त होती है उन्हें अप्रत्यक्ष स्रोत या साधन कहते हैं। जो
निम्न हैं
1. तापमान
2. दबाव
3. घनत्व
4. उल्काएँ
5. गुरुत्वाकर्षण
6. चुम्बकीय
क्षेत्र
7. भूकम्पीय
गतिविधियाँ।
प्रश्न 3. खनन
क्रिया से पृथ्वी की आंतरिक संरचना को किस प्रकार समझा जा सकता है?
उत्तर:
खनन क्रिया से हमें पता चलता है कि पृथ्वी के धरातल की गहराई बढ़ने
के साथ-साथ तापमान व दबाव में वृद्धि होती जाती है। हमें गहराई बढ़ने के साथ-साथ
यह भी पता चलता है कि पदार्थ का घनत्व भी बढ़ता जाता है। खनन क्रिया के दौरान
निकलने वाले भिन्न-भिन्न पदार्थ पृथ्वी के अन्तरतम की जानकारी प्रदान करते हैं।
प्रश्न 4. उद्गम
केन्द्र (Focus) एवं अधिकेन्द्र (Epicentre) में अन्तर बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में जिस केन्द्र से भूकम्प की उत्पत्ति होती
है अथवा वह स्थान जहाँ से ऊर्जा निकलती है; भूकम्प का उद्गम
केन्द्र' कहलाता है। इसी केन्द्र से ऊर्जा तरंगें अलग-अलग
दिशाओं में चलती हुई पृथ्वी की सतह पर पहुँचती हैं। जबकि भूतल का वह बिन्दु जो
उद्गम केन्द्र के निकटतम होता है तथा जहाँ भूकम्प की तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं
उसे अधिकेन्द्र (Epicentre) कहा जाता है। अधिकेन्द्र भूकम्प
के उद्गम केन्द्र (Focus) के ठीक ऊपर स्थित होता है।
प्रश्न 5. भूकम्पीय
तरंगें क्या हैं ? इनके प्रकार बताइए।
उत्तर-
भूकम्पीय तरंगें भूकम्प के
उद्गम केन्द्र से बाहर की ओर फैलने वाली तरंगों को भूकम्पीय तरंगें कहते हैं।
भूकम्पीय तरंगों के प्रकार भूकम्पीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं
1. भूगर्भिक
तरंगें वे तरंगें जो भूकम्प के उद्गम केन्द्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान
उत्पन्न होती हैं तथा पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं
भूगर्भिक तरंगें कहलाती हैं।
2. धरातलीय
तरंगें भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण
उत्पन्न नई तरंगों को धरातलीय तरंगें कहते हैं।
प्रश्न 6. भूगर्भिक
तरंगें कौन-कौन सी हैं ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
भूगर्भिक तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें 'P' तरंगें तथा 'S' तरंगें कहा जाता है।
(i) 'P' तरंगें-
इन्हें प्राथमिक तरंगों के नाम से भी जाना जाता है। ये तीव्र गति से चलने वाली
तरंगें हैं। ये तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं तथा धरातल पर सबसे पहले
पहुँचती हैं। ये तरंगें ठोस द्रव व गैस तीनों प्रकार के पदार्थों में से होकर गुजर
सकती हैं।
(ii) 'S' तरंगें- इन्हें
द्वितीयक तरंगों के नाम से भी जाना जाता है। ये तरंगें धरातल पर कुछ समय अन्तराल
के बाद पहुँचती हैं। ये तरंगें केवल ठोस पदार्थों के ही माध्यम से चलती हैं। इनकी
इसी विशेषता के कारण वैज्ञानिक भूगर्भिक संरचना को समझने में सफल हो पाए हैं।
प्रश्न 7. सीसमोग्राफ
क्या है ? इसका प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता है ?
उत्तर:
सीसमोग्राफ को भूकम्पमापी यंत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह एक
यंत्र है जिसके द्वारा भूकम्पीय तरंगों एवं उनकी तीव्रता मापी जाती है। इस यंत्र
में लगी एक सुई द्वारा ग्राफ पेपर पर भूकम्पीय तरंगों को रेखांकित किया जाता है।
इस यंत्र द्वारा भूकम्प का उद्गम भूकम्पीय तरंगों की गति मार्ग एवं तीव्रता आदि का
ज्ञान होता है।
प्रश्न 9. भूकम्पीय
घटनाओं का मापन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
भूकम्पीय घटनाओं का मापन भूकम्पीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की
तीव्रता के आधार पर किया जाता है। भूकम्पीय तीव्रता की मापनी 'रिक्टर स्केल' के नाम से जानी जाती है। भूकम्पीय
तीव्रता भूकम्प के दौरान ऊर्जा मुक्त होने से सम्बन्धित है। इस मापनी के अनुसार
भूकम्प की तीव्रता 0 से 10 तक होती है।
आघात की तीव्रता/गहनता मापनी को इटली के भूकम्प वैज्ञानिक मरकैली के नाम पर जाना
जाता है। यह मापनी भूकम्प के झटकों से हुई प्रत्यक्ष हानि द्वारा निर्धारित की गई
है। इसकी गहनता का विस्तार 1 से 12 तक
है।
प्रश्न 10. भूकम्प के
प्रभावों को संक्षेप में बताइए।
अथवा
भूकम्पीय आपदा से होने वाले प्रकोप कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
भूकम्प एक आकस्मिक प्राकृतिक घटना है। इससे अपार जन-धन की हानि होती
है। भूकम्प से होने वाली (हानियों) प्रकोपों को निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं ।
1. धरातल
में कम्पन
2. धरातलीय
विसंगति
3. भूस्खलन
व पंकस्खलन
4. हिमस्खलन
5. धरातलीय
विस्थापन
6. मृदा
द्रवण
7. धरातल
का एकतरफा झुकाव
8. बाँधों
व तटबन्धों के टूटने से अपार जन-धन की हानि
9. आग
लगना
10. इमारतों
सड़कों का टूटना-फूटना तथा अन्य निर्माण कार्यों का नष्ट होना
11. वस्तुओं
का भारी नुकसान
12. सुनामी
लहरों द्वारा तटीय क्षेत्रों में भारी जन-धन की हानि आदि।
प्रश्न 11. भूपर्पटी
क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए। अथवा क्रस्ट के बारे
में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
भूपर्पटी (क्रस्ट)-पृथ्वी की सबसे ऊपरी
परत भूपर्पटी या क्रस्ट कहलाती है। विशेषताएँ
1. यह
बहुत ही भंगुर भाग है जिसमें शीघ्र टूट जाने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
2. इसकी
मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग पायी जाती है। जो क्रमश: 30 किमी. एवं 5
किमी. तक है।
3. यह परत
भारी चट्टानों से निर्मित है। इसका घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेन्टीमीटर है।
4. महासागरों
के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट निर्मित हैं।
प्रश्न 13. मैग्मा
और लावा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
|
मैग्मा |
लावा |
|
(i) धरातल के नीचे जमने वाले तरल व पिघली अवस्था में लाल रंग के तरल पदार्थ
को मैग्मा कहते हैं। |
(i) पृथ्वी के आन्तरिक भागों में स्थित मैग्मा जब धरातल पर आ जाता है तो
इसके जमाव को लावा कहते हैं। |
|
(ii)
इससे धरातल के नीचे पातालीय शैलों का निर्माण होता है। |
(ii)
इससे धरातल के ऊपर ज्वालामुखी शैलों का निर्माण होता है। |
|
(iii)
इससे धरातल के नीचे बैथोलिथ, लैकोलिथ,
फैकोलिथ, सिल व डाइक जैसी अन्तर्वेधी
आकृतियों का निर्माण होता है। |
(iii)
इससे धरातल के ऊपर विभिन्न प्रकार की आकृतियों जैसे लावा पठार,
सिंडर शंकु, लावा शील्ड, काल्डेरा आदि का निर्माण होता है। |
प्रश्न 14. शील्ड
ज्वालामुखी क्या है ? इन ज्वालामुखियों का ढाल तीव्र नहीं
होने का क्या कारण है ?
उत्तर:
एक विशाल ज्वालामुखी जिसका आकार चपटे गुम्बद के समान होता है तथा
जिसका निर्माण तरल बेसाल्टिक लावा के जमाव के कारण होता है, शील्ड
ज्वालामुखी या गुम्बदी ज्वालामुखी कहलाता है। शील्ड ज्वालामुखी मुख्यतः बेसाल्ट से
निर्मित होते हैं जो तरल लावा के ठण्डे होने से बनते हैं। तरल लावा के कारण इन
ज्वालामुखियों का ढाल तीव्र नहीं होता। उदाहरण हवाई द्वीप के ज्वालामुखी।
प्रश्न 15. मिश्रित
ज्वालामुखी क्या है ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
भीषण विस्फोट वाले ज्वालामुखी जिनमें लावा के साथ-साथ भारी मात्रा
में ज्वलखण्डाश्मि पदार्थ (ज्वालामुखी बम आदि) व राख आदि धरातल पर पहुँचती है तथा
इनका जमाव परतों के रूप में निकास नली के आसपास हो जाता है तो ऐसे ज्वालामुखी
मिश्रित ज्वालामुखी कहलाते हैं। इन ज्वालामुखियों से बेसाल्ट की अपेक्षा अधिक ठंडे
व गाढ़े लावा का उद्गार होता है।
प्रश्न 16. ज्वालामुखी
कुंड का निर्माण कैसे होता है ? अथवा काल्डेरा के बारे में
आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
ज्वालामुखी कुण्ड (काल्डेरा)-काल्डेरा
(Caldera) स्पेन की भाषा का शब्द है, जिसका
अर्थ कडाहा' होता है। ज्वालामुखी उद्गार के समय तीव्र
विस्फोट से शंकु का ऊपरी भाग उड़ जाने से अथवा क्रेटर (ज्वालामुखी के शीर्ष पर
स्थित कीप के आकार का गर्त) के धंस जाने से ज्वालामुखी कुण्ड (काल्डेरा) का
निर्माण होता है। ये सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी होते हैं। काल्डेरा के लावा
भण्डार विशाल होने के साथ-साथ इनके बहुत पास स्थित होते हैं। इनसे निर्मित पहाड़ी
मिश्रित ज्वालामुखी जैसी प्रतीत होती है।
प्रश्न 17. बेसाल्ट
प्रवाह क्षेत्र ज्वालामुखी की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र ज्वालामुखी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
हैं
1. इस
प्रकार के ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा उगलते हैं जो कि अत्यधिक दूरी तक प्रवाहित
होता है।
2. विश्व
के कुछ भाग हजारों वर्ग किमी. वाले घने लावा प्रवाह से ढके हुए हैं।
3. इनमें
लावा प्रवाह क्रमानुसार होता है तथा तरल लावा क्षेत्र की मोटाई कहीं-कहीं 50 मीटर से भी
अधिक होती है।
4. दक्षिण
भारत का दक्कन ट्रैप बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र का एक प्रमुख उदाहरण है।
प्रश्न 18. मध्य-महासागरीय
कटक ज्वालामुखी क्या है?
उत्तर:
ऐसे ज्वालामुखी जिनका उद्गार महासागरीय भागों से होता है, उन्हें मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी कहा जाता है। मध्य महासागरीय कटक एक
श्रृंखला है जो 70000 किमी. से अधिक लम्बी है, जो सभी महासागरीय बेसिनों में फैली हुई है। इस कटक के मध्यवर्ती भाग में
लगातार उद्गगार होता रहता है।
प्रश्न 20. लैकोलिथ
आकृति का निर्माण किस प्रकार होता है ? संक्षिप्त विवरण
दीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की सतह के नीचे बने आग्नेय शैलों का एक वृहत टीला जिसका
निचला भाग प्रायः समतल एवं ऊपरी भाग गुम्बद के आकार का होता है, लैकोलिथ कहलाता है। जब पृथ्वी के गर्भ में गर्म मैग्मा ऊपर उठता है तो
उसके दबाव से मैग्मा के ऊपर स्थित चट्टानें गुम्बद का आकार धारण करके ऊपर उठ जाती
हैं तथा उनके खाली स्थान में तरल मैग्मा भर जाता है। यही मैग्मा बाद में ठंडा होकर
लैकोलिथ में परिवर्तित हो जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2 प्रश्न)
प्रश्न 1. पृथ्वी
के आन्तरिक भाग की जानकारी परोक्ष स्रोतों पर आधारित है। क्यों? अथवा पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के सभी आँकड़े अप्रत्यक्ष स्रोतों पर
आधारित हैं। क्यों ?
अथवा
पृथ्वी की परतदार संरचना की जानकारी के महत्वपूर्ण साधन
अप्रत्यक्ष स्रोत हैं। क्यों?
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए मानव के पास सीमित
प्रत्यक्ष साधन हैं। इस भाग की संरचना के बारे में मानव का ज्ञान बहुत कम गहराई तक
ही सीमित है। पृथ्वी की संरचना का प्रत्यक्ष ज्ञान कुओं, खदानों
द्वारा ही अधिकांश स्थानों पर केवल 3 से 4 किमी. की गहराई तक ही प्राप्त होता है। पृथ्वी के केन्द्र की गहराई (लगभग 6371
किमी.) की तुलना में यह बहुत ही कम है। खनन क्रिया से हमें पता चलता
है कि पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान व दबाव में भी वृद्धि
होती जाती है।
एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी
के आन्तरिक भाग का तापमान लगभग 2000° सेन्टीग्रेड है। इतने उच्च
तापमान के कारण भी पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना
पूर्णतः असम्भव है। अत: पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का प्रत्यक्ष अध्ययन किया जाना
मानव की सीमाओं से परे है। इसी कारण से पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी के लिए
मानव अप्रत्यक्ष स्रोतों-भूकम्प तरंगें, तापमान, दबाव, उल्काएँ व गुरुत्वाकर्षण आदि पर निर्भर है।
प्रश्न 2. गुरुत्वाकर्षण
एवं चुम्बकीय क्षेत्र किस प्रकार भूगर्भ की जानकारी प्रदान करते हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी प्रदान करने में गुरुत्वाकर्षण,
चुम्बकीय क्षेत्र एवं भूकम्प सम्बन्धी क्रियाएँ पहत्वपूर्ण स्थान
रखती हैं। पृथ्वी के धरातल पर भी विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान
नहीं होता है। यह ध्रुवों पर एवं भूमध्य रेखा पर कम होता है। पृथ्वी के केन्द्र से
दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर अधिक तथा भूमध्य रहाय कम होता है।
गुरुत्व का भान पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार बदलता है।
पृथ्वी के भीतर पदार्थों के
वितरण की असमानता भी इस भिन्नता को प्रभावित करती है। भिन्न-भिन्न स्थानों पर
गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता अनेक अन्य कारकों से भी प्रभावित होती है। इस भिन्नता को
गुरुत्व विसंगति कहा जाता है। गुरुत्व विसंगति हमें भूपर्पटी में पदार्थ के
द्रव्यमान के वितरण की जानकारी प्रदान करती है। चुम्बकीय सर्वेक्षण भी भूपर्पटी
में चुम्बकीय पदार्थ के वितरण की पर्याप्त जानकारी प्रदान करते हैं। इनके अतिरिक्त
भूकम्पीय गतिविधियाँ भी भूगर्भ की आन्तरिक जानकारी प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण
स्रोत है।।
प्रश्न 3. भूकम्प
क्या है ? इसकी उत्पत्ति किस प्रकार होती है ?
उत्तर:
भूकम्प का अर्थ साधारण भाषा में भूकम्प का अर्थ है- पृथ्वी का कम्पन। भूपर्पटी की चट्टानों में अचानक ऊर्जा संचरण होने के
कारण भूपर्पटी या प्रावार (मैंटल) में किसी बिन्दु पर लगने वाले झटके या झटकों के
क्रम को भूकम्प कहते हैं। भूकम्प एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें
ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो कि सभी दिशाओं में फैलकर कंपन
उत्पन्न करती हैं। भूकम्प की उत्पत्ति भू-पर्पटी पर प्रायः भ्रंश के किनारे-किनारे
ही ऊर्जा निकलती है।
भूपर्पटी की शैलों में गहरी
दरारें ही भ्रंश होती हैं। भ्रंश के दोनों ओर की शैलें जब विपरीत दिशा में गति
करती हैं, जहाँ ऊपर के शैल खण्ड दबाव डालते हैं एवं उनके आपस का घर्षण उन्हें परस्पर
बाँधे रखता है। इसके बावजूद अलग होने की प्रवृत्ति के कारण एक समय पर घर्षण का
प्रभाव कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप शैल खण्ड विकृत होकर अचानक एक-दूसरे की
विपरीत दिशा में खिसक जाते हैं। इसके फलस्वरूप ऊर्जा तरंगें निकलती हैं और सभी
दिशाओं में गतिशील हो जाती हैं। ये ऊर्जा तरंगें अलग-अलग दिशाओं में चलती हुई
धरातल तक पहुँचती हैं, फलस्वरूप कम्पन होना प्रारम्भ हो जाता
है। इस प्रकार भूकम्प की उत्पत्ति होती है।
प्रश्न 4. भूकम्पीय
तरंगें कितने प्रकार की होती हैं ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में ऊर्जा निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न
होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर भूकम्प का कारण बनती हैं। मूल रूप से भूकम्प
तरंगें दो प्रकार की होती हैं
1. भूगर्भिक
तरंगें
2. धरातलीय
तरंगें।
भूगर्भिक तरंगें उद्गम
केन्द्र से ऊर्जा की मुक्ति के दौरान उत्पन्न होती हैं और पृथ्वी के आन्तरिक भाग
से विभिन्न दिशाओं में फैलती हैं। भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य
अन्तक्रिया के फलस्वरूप धरातलीय तरंगों की उत्पत्ति होती है। ये तरंगें धरातल के
साथ-साथ चलती हैं तथा घनत्व में अन्तर के कारण इनकी गति में भी अन्तर आ जाता है।
भूगर्भिक तरंगों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-'P' तरंगें व 'S'
तरंगें। 'P' तरंगें सर्वाधिक वेगवान तरंगें
हैं और धरातल पर सबसे पहले पहँचती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिक तरंगें' कहा जाता है। ये तरंगें ध्वनि तरंगों जैसी होती हैं और गैस, तरल व ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों से होकर गुजर सकती हैं। 'S' तरंगें 'द्वितीयक तरंगें हैं, जो
तरल भागों में प्रवेश नहीं करती हैं।
प्रश्न 5. भूकम्प
के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं
1. विवर्तनिक
भूकम्प-ये भूकम्प भ्रंशतल के सहारे चट्टानों के सरकने के परिणामस्वरूप आते हैं।
2. ज्वालामुखी
भूकम्प-ज्वालामुखी उद्गार के सहारे आन्तरिक भाग से निकलने वाला लावा ऊपरी चट्टानों
पर धक्के लगाता है जिससे भूकम्प आते हैं। ये सामान्यतः विवर्तनिक भूकम्प ही हैं जो
सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों में आते हैं।
3. नियात
भूकम्प- खनन
क्षेत्रों में भूमिगत खदानों की छतों के ढह जाने से हल्के झटके महसूस किये जाते
हैं, इन्हें ही नियात (Collapse) भूकम्प कहा जाता है।
4. विस्फोटजन्य
भूकम्प-
कभी-कभी परमाणु एवं रासायनिक विस्फोट से उत्पन्न होने वाले कम्पन को विस्फोट जन्य
भूकम्प कहा जाता है।
5. बाँधजनित
भूकम्प-ऐसे भूकम्प बड़े-बड़े बाँध वाले क्षेत्रों में आते हैं। बाँध क्षेत्रों में
अत्यधिक पानी एकत्रित कर लिया जाता है फलस्वरूप नीचे की चट्टानें अव्यवस्थित हो
जाती हैं, जिससे भूकम्प उत्पन्न होते हैं। इन्हें बाँधजनित भूकम्प कहते हैं।
प्रश्न 6. पृथ्वी
को कितनी परतों में बाँटा गया है ? किसी एक परत की विशेषताएँ
बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी को तीन परतों में बाँटा गया है-
1. भू-पर्पटी
2. मैंटल
3. क्रोड।
क्रोड की विशेषताएँ-
क्रोड
की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) यह पृथ्वी की संरचना का केन्द्रीय भाग है।
(ii) इस परत की रचना भारी पदार्थों; जैसे-निकिल
व लोहे की चट्टानों से हुई है। इसे निफे परत के नाम से भी जाना जाता है।
(iii) क्रोड को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है,
(ब) आन्तरिक क्रोड ठोस अवस्था में।
(iv) क्रोड व मैंटल की सीमा 2900 किमी. की
गहराई तक है।
(v) मैंटल क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम घन सेमी. तथा केन्द्र में 6300 किमी. की गहराई
तक घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी. है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भूकम्पीय
तरंगों के प्रकार, अभिलेखन एवं छाया क्षेत्र के उद्भव का
विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकम्पीय तरंगें-
भूकम्प के उत्पत्ति केन्द्र से बाहर की ओर फैलने वाली तरंगों को
भूकम्पीय तरंगें कहते हैं। भूकम्पीय तरंगें पृथ्वी की आन्तरिक परतों का सम्पूर्ण
चित्र प्रस्तुत करती हैं। पृथ्वी के आन्तरिक भाग से ऊर्जा के निकलने के कारण
तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो समस्त दिशाओं में फैलकर भूकम्प
लाती हैं। भूकम्पीय तरंगों के प्रकार एवं अभिलेखन-भूकम्पमापी यंत्र (सीसमोग्राफ)
सतह पर पहुँचने वाली तरंगों का अभिलेखन करता है। प्रस्तुत चित्र में प्रदर्शित
भूकम्पीय तरंगों धरातलीय का अभिलेखीय वक्र तीन भिन्न-भिन्न प्रकारं की बनावट वाली
तरंगों को प्रदर्शित करता है। मूल रूप से भूकम्पीय तरंगें दो प्रकार की हैं

1. भूगर्भिक
तरंगें एवं
2. धरातलीय
तरंगें।
(i) भूगर्भिक
तरंगें- ये तरंगें भूकम्प के पहुँचने का समय उद्गम केन्द्र
से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान भूगर्भीय तरंगें उत्पन्न होती हैं या पृथ्वी के
आन्तरिक भाग से होकर समस्त दिशाओं में आगे बढ़ती हैं।
चित्र-
भूकंप-अभिलेख भूगर्भिक
तरंगें भी दो प्रकार की होती हैं इन्हें 'P' तरंगें तथा 'S' तरंगें कहा जाता है। 'P' तरंगें तीव्र गति से चलने
वाली तरंगें हैं। ये तरंगें धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। ये तरंगें ध्वनि
तरंगों जैसी होती हैं एवं ठोस, द्रव एवं गैस तीनों प्रकार के
पदार्थों से होकर गुजर सकती हैं। इन्हें प्राथमिक तरंगें भी कहा जाता है। 'S'
तरंगें धरातल पर कुछ समय अन्तराल के पश्चात् पहुँचती हैं। ये केवल
ठोस पदार्थों के ही माध्यम से चलती हैं। 'S' तरंगों की इसी
विशेषता ने वैज्ञानिकों को भूगर्भिक संरचना समझने में अत्यधिक सहायता प्रदान की
है। ये द्वितीयक तरंगें भी कहलाती हैं।
(ii) धरातलीय
तरंगें- भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया
के कारण एक नयी प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं जिन्हें धरातलीय तरंगें कहा
जाता है। ये तरंगें धरातल के साथ-साथ चलती हैं। ये तरंगें अत्यधिक विनाशकारी होती
हैं। इनसे शैलों में विस्थापन होता है तथा जन-धन की अत्यधिक हानि होती है।
परावर्तन से तरंगें प्रतिध्वनित होकर वापस लौट आती हैं जबकि आवर्तन से तरंगें कई
दिशाओं में चलती हैं। भूकम्पलेखी यंत्र पर बने आरेख से तरंगों की दिशा व भिन्नता
का अनुमान लगाया जाता है।
भूकम्पलेखी यंत्र पर
सर्वप्रथम P तरंगें तत्पश्चात् 'S' तरंगें तथा अन्त में धरातलीय
तरंगें अभिलेखित होती हैं। भूकम्पीय तरंगों के संचरण से शैलों में कम्पन उत्पन्न
हो जाता है। 'P' तरंगों के कम्पन की दिशा तरंगों की दिशा के
समानान्तर होती है। 'S' तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की
दिशा के समकोण पर कम्पन करती हैं। ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं उनमें उभार व गर्त
बनाती हैं। धरातलीय तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कम्पन पैदा करती हैं। छाया
क्षेत्र का उद्भव-भूकम्प लेखी यंत्र पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकम्पीय
तरंगों का अभिलेखन किया जाता है। यद्यपि कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहाँ कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय
छाया क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
आयाम

विभिन्न भूकम्पीय घटनाओं के
आधार पर स्पष्ट होता है कि एक भूकम्प का छाया क्षेत्र दूसरे भूकम्प के छाया
क्षेत्र से भिन्न होता है। भूकम्प लेखी यंत्र भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° के अन्दर
किसी भी दूरी पर 'P' तथा 'S' दोनों ही
तरंगों का अभिलेखन करते हैं। भूकम्पलेखी यंत्र अधिकेन्द्र से 145° से परे केवल 'P' तरंगों के पहुँचने को ही दर्ज करते
हैं तथा 'S' तरंगों को अभिलेखित नहीं करते। अत: वैज्ञानिकों
का मत है कि भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° तथा 1450 के मध्य का क्षेत्र दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र है। 105°
से परे सम्पूर्ण क्षेत्र में 'S' तरंगें नहीं
पहुँचतीं। 'S' तरंगों का छाया क्षेत्र 'P' तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तार लिए हुए है। 'S' तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है अपितु यह पृथ्वी के
लगभग 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
प्रश्न 2. पृथ्वी
की आन्तरिक संरचना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूगोल में पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है
क्योंकि पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यतः भूगर्भ में होने वाली प्रक्रियाओं का
परिणाम है। पृथ्वी की आन्तरिक एवं बाह्य शक्तियाँ लगातार भू-दृश्य को आकार देती
रहती हैं। किसी भी क्षेत्र की भू-आकृति की प्रकृति को समझने के लिए भूगर्भिक क्रियाओं
के प्रभाव को जानना आवश्यक होता है। पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के सम्बन्ध में
विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं। इनमें स्वेस, जॉली, रॉस आदि के विचार महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान समय
में आन्तरिक संरचना के बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी भूकम्पीय तरंगों के
अध्ययन व विश्लेषण से प्राप्त होती है। भूकम्प की तरंगें आन्तरिक भाग में समान गति
से संचरित नहीं होती हैं। जैसे-जैसे ये तरंगें भूगर्भ में गहराई में जाती हैं,
इनकी गति बढ़ती जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की आन्तरिक
संरचना एक जैसी नहीं है बल्कि गहराई के साथ चट्टानों का घनत्व बढ़ता जाता है।
भूकम्पीय तरंगों के आधार पर पृथ्वी के आन्तरिक भाग को निम्न परतों में विभाजित
किया गया है
1. भूपर्पटी
या क्रस्ट
2. मैण्टल
3. क्रोड
या अन्तरतम।
1. भूपर्पटी
(क्रस्ट)- पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत भूपर्पटी या क्रस्ट कहलाती
है। भूपर्पटी की मोटाई महासागरों व महाद्वीपों के नीचे अलग-अलग मिलती है।
महासागरों में इसकी मोटाई अपेक्षाकृत कम है। महासागरों के नीचे इसकी मोटाई 5 किमी तथा
महाद्वीपों के नीचे 30 किमी तक है। प्रमुख पर्वतीय
श्रृंखलाओं में इसकी मोटाई और भी अधिक है। भूपर्पटी की चट्टानों का घनत्व 3
ग्राम प्रतिघन सेमी. के लगभग प्राप्त होता है। महासागरों के नीचे
भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट द्वारा निर्मित हैं। जहाँ इसका घनत्व 2.7 ग्राम प्रति घन सेमी. है। भूपर्पटी पृथ्वी का सबसे बाहरी भंगुर (Brittle)
भाग है जिसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
2. मैंटल- भूपर्पटी
के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है। इसकी गहराई मोहो असांतत्य क्षेत्र से प्रारम्भ
होकर 2900 किमी तक है। मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलता मण्डल कहलाता है जहाँ भूकम्प
तरंगों की गति अत्यन्त मन्द हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार दुर्बलता मण्डल का
विस्तार 400 किमी. तक है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान निकलने
वाला लावा यहीं से प्राप्त होता है। इसकी गहराई 100 से 200
किमी. तक है। इसका घनत्व 3.4 ग्राम प्रति घन
सेमी. है। निचली मैंटल का विस्तार दुर्बलता मण्डल के समाप्त होने के बाद तक विस्तृत
है। यह ठोस अवस्था में होता है।
3. क्रोड या
अन्तरतम- क्रोड व मैंटल की सीमा 2900 किमी. की
गहराई तक है। यहाँ से पृथ्वी के केन्द्र तक क्रोड का विस्तार मिलता है। यहीं एक
असम्बद्ध क्षेत्र की उत्पत्ति होती है जिसे गुटेनबर्ग असम्बद्धता क्षेत्र कहते
हैं। क्रोड को दो भागों में विभाजित किया गया है-बाह्य क्रोड एवं आन्तरिक क्रोड।
बाह्य क्रोड को तरल अवस्था मे माना गया है क्योंकि इस भाग में भूकम्प की 'S
तरंगें प्रवेश नहीं करती हैं। यह 2900 किमी.
से 5150 किमी. तक फैला हुआ है। आन्तरिक क्रोड ठोस अवस्था में
है। आन्तरिक भाग में जाने पर घनत्व बढ़ जाता है यहाँ घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी प्राप्त होता है। आन्तरिक केन्द्रीय भाग की संरचना
भारी पदार्थों निकिल एवं फेरियम से मानी गयी है अत: इसे ' निफे'
कहते हैं। केन्द्रीय भाग में लोहे की उपस्थिति पृथ्वी के
गुरुत्वाकर्षण को भी प्रमाणित करती है।

प्रश्न 3. ज्वालामुखी
के प्रकारों को विस्तार से बताइए।
उत्तर:
उत्तर- ज्वालामुखी वह छिद्र है जिससे होकर गैसें, राख, तरल चट्टानी पदार्थ व लावा पृथ्वी तल तक
पहुँचता है। जब ये पदार्थ लगातार एक छिद्र के सहारे ऊपर आते रहते हैं तो इसे सक्रिय
ज्वालामुखी कहा जाता है। ज्वालमुखी उद्गार के समय धरातल के नीचे यदि बाहर निकलने
वाले पदार्थ चट्टानों के भीतर ही फैल जाते हैं, जिसे मैग्मा
कहते हैं। जब ये पदार्थ धरातल के ऊपर आ जाते हैं, तब इसे
लावा कहा जाता है। ज्वालमुखी उद्गार के समय जो पदार्थ बाहर निकलते हैं उनमें लावा
प्रवाह, लावा के जमे हुए टुकड़े, ज्वालामुखी
बम, राख, धूलिकण व गैसें; जैसे-नाइट्रोजन यौगिक, सल्फर यौगिक और अल्प मात्रा
में क्लोरीन, हाइड्रोजन व आर्गन शामिल होते हैं। उद्गार की प्रवृत्ति तथा धरातल पर विकसित होने वाली आकृतियों के आधार पर
ज्वालामुखियों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. शील्ड
ज्वालामुखी- शील्ड ज्वालामुखी सबसे विशाल होते हैं। ये
ज्वालामुखी बेसाल्ट निर्मित होते हैं जो तरल लावा के ठण्डे होने से बनते हैं। हवाई
द्वीप के अधिकांश ज्वालामुखी इसी प्रकार के ज्वालामुखी हैं। इनमें लावा फव्वारों
के रूप में बाहर निकलता है। निकास पर बनने वाला शंकु सिण्डर शंकु के रूप में होता
है।


2. मिश्रित
ज्वालामुखी- ये अधिक भीषण ज्वालामुखी हैं। उद्गार के समय इनसे
भारी मात्रा में ज्वलखण्डाश्मि पदार्थ (Pyroclastic) व राख धरातल पर आती है।
इनका जमाव नली के आस-पास परतों के रूप में हो जाता है। इनके जमाव मिश्रित
ज्वालामुखी के रूप में प्राप्त होते हैं।
3. ज्वालामुखी
कुण्ड- ये सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं। विस्फोट के
समय ये स्वयं नीचे फँस जाते हैं। इन्हें ही ज्वालामुखी कुण्ड या काल्डेरा कहते हैं।
स्पष्टतया इनके लावा भण्डार विशाल होने के साथ-साथ इनके बहुत पास स्थित होते हैं।
इनसे निर्मित पहाड़ी मिश्रित ज्वालामुखी जैसी प्रतीत होती है।
4. बेसाल्ट
प्रवाह क्षेत्र- यह ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा उगलते हैं जिनका
प्रवाह हजारों वर्ग किमी. क्षेत्र तक हो जाता है। इनमें लावा क्षेत्र की मोटाई
कहीं-कहीं 50 मीटर से भी अधिक होती है। कभी-कभी ज्वालामुखी प्रवाह सैकड़ों वर्ग किमी.
क्षेत्र में फैल जाता है। दक्षिण भारत का दक्कन ट्रैप वृहद् बेसाल्ट लावा प्रवाह
क्षेत्र है।
5. मध्य
महासागरीय कटक ज्वालामुखी-इन ज्वालामुखियों का उद्गार महासागरों में होता है।
मध्य महासागरीय कटक एक विस्तृत श्रृंखला है जो लगभग 70,000 किमी.
लम्बाई में फैली है। जब ज्वालामुखी उद्गार महासागरों में इन कटकों के सहारे होता
है तो उसे मध्य महासागरीय ज्वालामुखी कटक कहा जाता है। इस कटक के मध्यवर्ती भाग
में लगातार उद्गगार होता रहता है।

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