Class-12 Political Science
Chapter- 5
(कांग्रेस
प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना)
अतिलघु
उत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न
1. हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर:
27 मई, 1964 को पं० जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु
हुई थी।
प्रश्न
2. 1960
के दशक को किन कारणों से खतरनाक दशक कहा जाता है?
उत्तर:
इस समय गरीबी, असमानता, साम्प्रदायिकता,
क्षेत्रीय विभाजन एवं युद्धों का सामना आदि समस्याएं विद्यमान थीं।
प्रश्न
3. जवाहर लाल नेहरू का उत्तराधिकारी कौन बना?
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री, पं० जवाहर लाल नेहरू के
उत्तराधिकारी बने।
प्रश्न
4. लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल में देश को किन - किन
चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
1. देश
में खाद्यान्नों के गम्भीर संकट का सामना करना पड़ा।
2. सन् 1965
में पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ा।
प्रश्न
5. लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु कब व कहाँ हुई?
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु 10 जनवरी,
1966 को ताशकंद (भूतपूर्व सोवियत संघ) में हुई।
प्रश्न
6. इंदिरा गाँधी द्वारा किये गये किन्हीं दो कार्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. प्रिवीपर्स
की समाप्ति,
2. बैंकों
का राष्ट्रीयकरण।
प्रश्न
7. चौथे आम चुनाव कब सम्पन्न हुए?
उत्तर:
चौथे आम चुनाव सन् 1967 में सम्पन्न हुए।
प्रश्न
8. 1967
के दस-सूत्री कार्यक्रम के अन्तर्गत उठाए गए कदमों द्वारा इंदिरा
गाँधी किस मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करना चाहती थीं?
उत्तर:
इंदिरा गाँधी 1967 के दस-सूत्री कार्यक्रम के
तहत बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना चाहती थीं।
प्रश्न
9. गैर - कांग्रेसवाद से क्या आशय है?
उत्तर:
कांग्रेस को सत्ता से अलग करने के लिए समाजवादी नेता राममनोहर
लोहिया द्वारा प्रस्तुत की गयी विचारधारा को गैर-कांग्रेसवाद के नाम से जाना जाता
है।
प्रश्न
10. भारत में सन् 1967 के चुनावों के परिणामों को 'राजनैतिक भूचाल' क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
सन् 1967 के चुनावी परिणामों ने कांग्रेस को राष्ट्रीय
और प्रान्तीय स्तर पर जोरदार झटका दिया था। उसके मत प्रतिशत व सीटों में भारी
गिरावट दर्ज की गयी।
प्रश्न
11. किन्हीं 4 राज्यों के नाम लिखिए जहाँ सन् 1967
के आम चुनाव के पश्चात् गैर-कांग्रेस सरकारें स्थापित हुई?
उत्तर:
1. उत्तर
प्रदेश,
2. पंजाब,
3. पश्चिम
बंगाल,
4. बिहार।
प्रश्न
12. दक्षिण भारत में हिन्दी विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
सी.नटराजन अन्नादुरई ने।
प्रश्न
13. सन् 1967 के आम चुनाव के पश्चात् केन्द्र में किसकी
सरकार बनी?
उत्तर:
सन् 1967 के आम चुनाव के पश्चात् केन्द्र में कांग्रेस
पार्टी की सरकार बनी।
प्रश्न
14. 1967
के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी के किन्हीं दो प्रमुख नेताओं के
नामों का उल्लेख कीजिए जिन्हें हार का सामना कना पड़ा।
उत्तर:
निम्नलिखित दो नेता थे।
1. तमिलनाडु
से के. कामराज।
2. पश्चिम
बंगाल के अतुल्य घोष।
प्रश्न
15. सन् 1967 के चुनावों की एक प्रमुख बात क्या थी?
उत्तर:
सन् 1967 के चुनावों की प्रमुख बात दल-बदल थी।
प्रश्न
16. सिंडिकेट क्या था?
अथवा
कांग्रेस पार्टी के एक भाग के रूप में कांग्रेस सिंडिकेट'
का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कांग्रेस नेताओं के एक प्रभावशाली समूह को अनौपचारिक तौर पर
सिंडिकेट के नाम से जाना जाता था।
प्रश्न
17. रिक्त स्थानों की पूर्ति उपयुक्त शब्दों द्वारा कीजिए।
इंदिरा
गाँधी को ............ से निपटना पड़ा जो .............. के भीतर ही ताकतवर तथा
प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था।
उत्तर:
इंदिरा गाँधी को सिंडिकेट से निपटना पड़ा जो कांग्रेस के भीतर ही
ताकतवर तथा प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था।
प्रश्न
18. सन् 1969 के राष्ट्रपति चुनावों में इंदिरा गाँधी ने
किस उम्मीदवार का समर्थन किया?
उत्तर:
वी.वी.गिरि का।
प्रश्न
19. सन् 1969 में कांग्रेस विभाजन का कोई एक कारण बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रपति पद के चुनाव में कांग्रेस सिंडिकेट के अधिकारिक
उम्मीदवार के विरुद्ध स्वतंत्र उम्मीदवार वी.वी.गिरि को इंदिरा गाँधी द्वारा
समर्थन देना।
प्रश्न
20. प्रिवीपर्स से क्या आशय है?
उत्तर:
भूतपूर्व देशी राजा-महाराजाओं को दिए जाने वाले विशेष भत्ते आदि को
प्रिवीपर्स के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न
21. भारत में 1972 में होने वाले पाँचवें आम चुनावों को
समय से पूर्व 1971 में करवाए जाने के मुख्य कारण का विश्लेषण
कीजिए।
उत्तर:
पहले आम चुनाव 1972 में होना था, लेकिन इंदिरा गाँधी द्वारा लोकसभा भंग करने की सिफारिश के बाद 1971
में पाँचवीं लोकसभा का चुनाव हुआ था।
प्रश्न
22. सन् 1971 ई० के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की जीत
का क्या कारण था?
उत्तर:
1. इंदिरा
गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व,
2. कांग्रेस
की समाजवादी नीतियाँ,
3. गरीबी
हटाओ का नारा।
प्रश्न
23. ग्रैंड अलायंस से क्या आशय था?
उत्तर:
कांग्रेस (ओ) व इंदिरा गाँधी विरोधी विपक्षी पार्टियों तथा गैर
साम्यवादी दलों को सन् 1971 के आम चुनाव में ग्रैंड अलायंस
की संज्ञा दी गयी।
प्रश्न
24. कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापन करने का कार्य किसने किया?
उत्तर:
कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापन करने का कार्य इंदिरा गाँधी ने
किया।
प्रश्न
25. दस सूत्री कार्यक्रम कब और क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
दस सूत्री कार्यक्रम इंदिरा गाँधी द्वारा 1967 में कांग्रेस की प्रतिष्ठा को पुनःस्थापित करने के लिए लागू किया गया।
प्रश्न
26. गठबंधन सरकार की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब कई पार्टियाँ मिलकर सरकार बनाती हैं, उसे
गठबंधन सरकार कहते हैं।
लघु
उत्तरात्मक प्रश्न (SA1):
प्रश्न
1. जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती का
परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस के सामने राजनीतिक
उत्तराधिकार का सवाल था। शास्त्री ने पद संभाला किन्तु आकस्मिक मृत्यु के कारण
पुनः सवाल उत्पन्न हो गया। इस बार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गाँधी को
लेने का फैसला किया लेकिन निर्णय सर्वसम्मति से नहीं था। एक गुप्त मतपत्र चुनाव के
माध्यम से इस दुविधा को हल किया गया था। इंदिरा गाँधी ने मोरारजी देसाई को 2/3
मतों से पराजित किया। भारतीय लोकतंत्र में नेतृत्व का तीव्र
प्रतिस्पर्धा का एक शांतिपूर्ण संक्रमण दिखाई दिया।
प्रश्न
2. सन् 1960 के दशक को 'खतरनाक
दशक' कहा जाता है? क्यों?
अथवा
भारतीय राजनीति के संदर्भ में खतरनाक दशक का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सन् 1960 के दशक को खतरनाक दशक कहा जाता है
क्योंकि निर्धनता, असमानता, बेरोजगारी,
साम्प्रदायिकता एवं क्षेत्रीय विभाजन जैसे मुद्दों का उस समय तक कोई
भी समाधान नहीं हो पाया था। इन कठिन पलों के कारण लोगों को देश में लोकतंत्र के
असफल होने का भय उत्पन्न हो गया था अथवा देश के बिखरने की संभावना भी व्यक्त की जा
रही थी।
प्रश्न 3. सन् 1960 के
दशक में कांग्रेस प्रणाली को पहली बार चुनौती क्यों मिली?
उत्तर:
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा गहन हो चली थी तथा ऐसे में कांग्रेस को अपना
प्रभुत्व बरकरार रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। विपक्ष अब पहले की
अपेक्षा कहीं अधिक शक्तिशाली था। कांग्रेस को इस विपक्ष की चुनौती का सामना करना
पड़ा। कांग्रेस को अंदरूनी चुनौतियों को भी झेलना पड़ा। क्योंकि अब यह पार्टी अपने
अंदर की विभिन्नता के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रही थी। इसलिए कांग्रेस
प्रणाली को सन् 1960 के दशक में पहली बार चुनौती मिली।
प्रश्न
4. सन् 1966 में कांग्रेस दल के वरिष्ठ नेताओं ने
प्रधानमंत्री के पद के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी का साथ क्यों दिया ?
अथवा
सन् 1966 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने
इंदिरा गाँधी को भारत के प्रधानमंत्री के लिए क्यों समर्थन दिया?
उत्तर:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संभवतः यह सोचकर उनका समर्थन किया कि
प्रशासनिक तथा राजनैतिक मामलों में विशेष अनुभव नहीं होने के कारण समर्थन तथा
दिशा-निर्देशन के लिए इंदिरा गांधी उन पर निर्भर रहेंगी। अतः सन् 1966 में कांग्रेस दल के वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री के पद के लिए श्रीमती
इंदिरा गांधी का साथ दिया।
प्रश्न
5. भारत में सन् 1967 के आम चुनावों के परिणामों को 'राजनीतिक भूचाल' की संज्ञा क्यों दी गयी ?
उत्तर:
सन् 1967 के चुनावी परिणामों ने कांग्रेस को
राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर जोरदार झटका दिया था। उसके मत प्रतिशत और सीटों
में भारी गिरावट दर्ज की गयी। अब से पहले कांग्रेस को कभी न तो इतने कम वोट मिले
थे और न ही इतनी कम सीटें मिली थीं। इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के आधे मंत्री
चुनाव हार गए थे। तत्कालीन अनेक राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने चुनाव परिणामों को 'राजनीतिक भूचाल' या 'राजनीतिक
भूकंप' की संज्ञा दी।
प्रश्न
6. 1967
के चौथे आम चुनाव में कांग्रेस दल की मुख्य चुनौतियाँ बताइए।
उत्तर:
मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं:
1. दो
प्रधानमंत्रियों का देहान्त तथा इंदिरा गाँधी का राजनीति के दृष्टिकोण से कम
अनुभवी होना।
2. इस समय
देश आर्थिक संकट में था। मानसून की असफला से खेती में गिरावट, विदेशी
मुद्रा भंडार में कमी आई।
3. साम्यवादी
और समाजवादी पार्टी ने व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया।
प्रश्न
7. सन् 1967 के आम चुनावों के पश्चात् इंदिरा गाँधी ने
किन दो चुनौतियों का सामना किया?
उत्तर:
सन् 1967 के आम चुनाव के पश्चात् इंदिरा गाँधी
को निम्न दो चुनौतियों का सामना करना पड़ा
1. काँग्रेस
के भीतर ताकतवर व शक्तिशाली नेताओं के समूह सिंडिकेट के प्रभाव से अपने आपको मुक
रखना।
2. सन् 1967 के आम
चुनावों में खोई अपनी पार्टी की साख को पुनः प्राप्त करना।
प्रश्न
8. दल - बदल का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब कोई जन प्रतिनिधि किसी विशेष राजनैतिक पार्टी का चुनाव चिह्न
लेकर चुनाव लड़े तथा वह चुनाव जीत जाए और अपने स्वार्थ के लिए अथवा किसी अन्य कारण
से अपने दल को छोड़कर किसी अन्य दल में सम्मिलित हो जाए तो इसे दल-बदल कहा जाता
है।
प्रश्न
9. भारतीय राजनीति पर दल - बदल की भूमिका का आकलन कीजिए।
उत्तर:
दल - बदल उन प्रतिनिधि को संदर्भित करता है जो पार्टी को छोड़ देते
हैं जिससे वे चुने गये थे तथा अन्य दल में शामिल हो जाते हैं। यह संस्कृति भारत
में 1967 के चुनावों के बाद विकसित हुई। बार - बार सरकार
बनाने व सरकार भंग करने जैसी स्थिति। - इस अवधि को 'आया राम,
गया राम' की अभिव्यक्ति दी गई।
प्रश्न
10. (अ) 'आया राम-गया राम' किस वर्ष
से संबंधित घटना थी?
(ब) 'आया राम-गया राम' संबंधित
टिप्पणी किस व्यक्ति के संबंध में की गई?
उत्तर:
(अ) "आया राम - गया राम" सन् 1967 से
संबंधित घटना थी।
(ब) 'आया राम - गया राम' नामक टिप्पणी कांग्रेस के हरियाणा राज्य के एक विधायक से संबंधित है,
जो सन् 1967 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के
टिकट पर विधायक बना था। उसने एक पखवाड़े में तीन बार दल बदल - बदल कर दल बदलने का
एक कीर्तिमान बनाया था।
प्रश्न
11. 'पुरानी कांग्रेस' और 'नयी
कांग्रेस' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी के अधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना
तय हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को अपनी पार्टी से
निष्कासित कर दिया। पार्टी से निष्कासित प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि उनकी
पार्टी ही असली कांग्रेस है। सन् 1969 के नवंबर तक सिंडिकेट
नेतृत्व वाले कांग्रेसी गुट को कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) और इंदिरा गांधी नेतृत्व
वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (रिक्विजिनिस्ट) कहा जाने लगा था। इन दोनों दलों
को क्रमशः 'पुरानी कांग्रेस' और 'नई कांग्रेस' भी कहा जाता था।
प्रश्न
12. 'प्रिवीपर्स' की व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
देसी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने यह
आश्वासन दिया था कि रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार को निश्चित मात्रा में निजी
संपदा रखने का अधिकार होगा। साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें कुछ विशेष भत्ते भी दिए
जाएंगे। ये दोनों (यानी शासक की निजी संपदा और भत्ते) इस बात को आधार मानकर तय की
जाएँगी कि जिस राज्य का विलय किया जाना है उसका विस्तार और राजस्व क्षमता कितनी
है। इस व्यवस्था को 'प्रिवीपर्स' कहा
गया।
प्रश्न
13. 'गरीबी हटाओ' से जुड़े कार्यक्रम में गरीबों के विकास
से संबंधित कौन - कौन से कदम उठाए गए ?
उत्तर:
इंदिरा गांधी ने लोगों के सामने 'गरीबी हटाओ'
नामक एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा। 'गरीबी हटाओ'
के नारे से इंदिरा गांधी ने वंचित वर्गों विशेषकर भूमिहीन किसान,
दलित और आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की
कोशिश की। 'गरीबी हटाओ' का नारा और
इससे जुड़ा हुआ कार्यक्रम इंदिरा गांधी की राजनीतिक रणनीति थी।
प्रश्न
14. कांग्रेस प्रणाली की पुनर्स्थापना से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इंदिरा गांधी ने जो कुछ किया, वह पुरानी
कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का कार्य नहीं था। कई मामलों में यह पार्टी इंदिरा
गांधी द्वारा नई विचारधारा पर बनी थी। इस पार्टी ने चुनाव जीते, लेकिन इस जीत के लिए पार्टी कुछ सामाजिक वर्गों, जैसे-गरीब,
महिला, दलित, आदिवासी और
अल्पसंख्यकों पर अधिक निर्भर थी। जो कांग्रेस उभरकर सामने आई, वह बिल्कुल नयी कांग्रेस थी। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली को
पुनर्स्थापित अवश्य किया लेकिन कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर।
लघु
उत्तरात्मक प्रश्न (SA2):
प्रश्न
1. नेहरूजी के बाद राजनीतिज्ञों को भारत में राजनैतिक उत्तराधिकार की चुनौती
क्यों समझ में आने लगी?
उत्तर:
भारत में राजनैतिक उत्तराधिकार की चुनौती:
(i) मई 1964 में नेहरूजी की मृत्यु हो गयी। वह
पिछले एक साल से भी अधिक समय से बीमार चल रहे थे। इससे नेहरूजी के राजनैतिक
उत्तराधिकारी को लेकर बड़े अंदेशे लगाए गए कि नेहरूजी के बाद में कौन? परन्तु, भारत जैसे नव-स्वतंत्र देश में इस माहौल में
एक और गंभीर प्रश्न उठ खड़ा हुआ था कि नेहरूजी के बाद आखिर इस देश में क्या होगा?
(ii) भारत से बाहर के कई लोगों को संदेह था कि यहाँ नेहरूजी के बाद
लोकतंत्र कायम भी रह पाएगा या नहीं। दूसरा प्रश्न इसी शक के दायरे में उठा था। आशंका
यह थी कि बाकी बहुत से नव-स्वतंत्र देशों की तरह भारत भी राजनीतिक उत्तराधिकार का
सवाल लोकतांत्रिक ढंग से हल नहीं कर पाएगा।
(iii) राजनैतिक उत्तराधिकार के चयन में असफल होने की दशा में डर था
कि सेना राजनीतिक भूमिका में उतर जाएगी। इसके अतिरिक्त, इस
बात को लेकर भी संदेह था कि देश के सामने बहुत-सी कठिनाइयाँ खड़ी हैं तथा नया
नेतृत्व उनका समाधान खोज पाएगा या नहीं। सन् 1960 के दशक को 'खतरनाक दशक' कहा जाता था। क्योंकि गरीबी, सांप्रदायिकता तथा क्षेत्रीय विभाजन आदि के सवाल अभी भी अनसुलझे थे। संभव
था कि इन कठिनाइयों के कारण देश में लोकतंत्र की परियोजना असफल हो जाती या स्वयं
देश ही बिखर जाता।
प्रश्न
2. लाल बहादुर शास्त्री की सरकार के कार्यकाल में जिन दो चुनौतियों का भारत
द्वारा सामना किया गया उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।
अथवा
लाल बहादुर शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने के संक्षिप्त
कार्यकाल में देश ने कौन-सी दो प्रमुख चुनौतियों का सामना किया?
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री सन 1964 से 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इस पद पर वह बड़े कम दिनों तक रहे परंतु इसी
छोटी अवधि में देश ने दो बड़ी चुनौतियों का सामना किया।
(i) देश भारत - चीन युद्ध 1962 के कारण पैदा
हुई आर्थिक कठिनाइयों से उबरने का प्रयास कर रहा था। साथ ही मानसून की असफलता से
देश में सूखे की स्थिति थी। कई स्थानों पर खाद्यान्न का गंभीर संकट था।
(ii) सन् 1965 में भारत को पाकिस्तान के
साथ युद्ध भी करना पड़ा। लाल बहादुर शास्त्री ने 'जय जवान जय
किसान' का नारा दिया जिसमें इन दोनों चुनौतियों से निपटने के
उनके दृढ़ संकल्प का पता चलता है। पाकिस्तान कश्मीर को हड़पना चाह रहा था। युद्ध
की समाप्ति के सिलसिले में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान से
बातचीत करने तथा एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए वे ताशकंद गए थे। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अचानक उनका देहांत हो
गया।
प्रश्न
3. गैर - कांग्रेसवाद को यह नाम किसने दिया? गैर -
कांग्रेसवाद की नीतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गैर - कांग्रेसवाद: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही कुछ समाजवादी
नेताओं ने देश में कांग्रेस विरोधी अथवा गैर - कांग्रेसवाद का राजनैतिक माहौल
बनाने का प्रयत्न किया। देश में सारा राजनैतिक माहौल और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी
हुई स्थिति देश की दलगत राजनीति से अलग-थलग नहीं रह सकती थी। विपक्षी दल जनविरोध
की अगुवाई कर रहे थे तथा सरकार पर दबाव डाल रहे थे। कांग्रेस की विरोधी पार्टियों
ने अनुभव किया कि उनके वोट बँट जाने के कारण ही कांग्रेस सत्तासीन है।
गैर -
कांग्रेसवाद की नीतियाँ: जो दल अपने कार्यक्रमों या विचारधाराओं के धरातल पर
एक-दूसरे से एकदम अलग थे, वे सभी दल एकजुट हुए तथा उन्होंने
कुछ राज्यों में एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया और अन्य राज्यों में सीटों के
मामले में चुनावी तालमेल किया। इन दलों को लगा कि इंदिरा गांधी की अनुभवहीनता तथा
कांग्रेस की अंदरूनी उठा-पटक से उन्हें कांग्रेस को सत्ता से हटाने का एक अवसर हाथ
लगा है।
समाजवादी
नेता राममनोहर लोहिया ने इस रणनीति को 'गैर-कांग्रेसवाद' का नाम दिया। उन्होंने 'गैर - कांग्रेसवाद' के पक्ष में सैद्धांतिक तर्क देते हुए कहा कि कांग्रेस का शासन
अलोकतांत्रिक तथा गरीब लोगों के हितों के विरुद्ध है। अत: गैर-कांग्रेसी दलों का
एक साथ आना आवश्यक है, जिससे गरीबों के हक में लोकतंत्र को
वापस लाया जा सके।
प्रश्न
4. सन् 1967 के चुनावों से गठबंधन की राजनीति का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर:
व्यापक जन: असंतोष तथा राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इसी माहौल में
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए फरवरी 1967 में चौथे आम
चुनाव हुए। कांग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला। आठ राज्यों में विभिन्न
गैर-कांग्रेसी दलों की गठबंधन सरकार बनी। इस प्रकार सन् 1967 ई. के चुनावों से गठबंधन की परिघटना सामने आई। चूँकि किसी पार्टी को बहुमत
प्राप्त नहीं हुआ था। इसलिए अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त
विधायक दल बनाया तथा गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों
को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया।
अधिकांश मामलों में ऐसी सरकार के घटक दल विचारधारा की दृष्टि से
एक-दूसरे से अलग थे। उदाहरण के लिए; बिहार में बनी संयुक्त
विधायक दल की सरकार में दो समाजवादी पार्टियाँ-एसएसपी तथा पीएसपी शामिल थीं। इसके
साथ इस सरकार में वामपंथी सीपीआई तथा दक्षिणपंथी-जनसंघ भी शामिल थे। पंजाब में बनी
संयुक्त विधायक दल की सरकार को 'पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट'
की सर कहा गया। इसमें उस समय के दो परस्पर प्रतिस्पर्धी अकाली दल
संत ग्रुप तथा मास्टर ग्रुप शामिल थे। इसके साथ स. कार में दोनों साम्यवादी दल
सीपीआई तथा सीपीआई (एम), एसएसपी, रिपब्लिकन
पार्टी तथा भारतीय जनसंघ भी सम्मिलित थे।
प्रश्न
5. 'आया राम - गया राम' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
'आया राम - गया राम' का मुहावरा किस
अवधारणा का द्योतक है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर इसके
प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आया राम गया राम - सन् 1967 के आम चुनावों की
एक विशेष बात दल - बदल है। इसने राज्यों में सरकारों के बनने-बिगड़ने में बहुत
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौर में राजनीतिक निष्ठा की इस अदल - बदल से 'आया - राम ग़या - राम' का जुमला प्रसिद्ध हुआ। 'आया राम - गया राम' का मुहावरा भारतीय राजनीति में
दल - बदल की अवधारणा का द्योतक है। राजनीतिज्ञ प्रायः अपने स्वार्थ हेतु दल बदलते
रहते हैं।
भारतीय
राजनीतिक व्यवस्था पर इसके प्रभाव:
1. कांग्रेस
को इससे बड़ा नुकसान हो गया था क्योंकि हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में
गैर - कांग्रेसी सरकारें अस्तित्व में आईं।
2. सन् 1967 के
चुनावों में “आया राम - गया राम" की दलगत मनोवृत्ति के
कारण कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई परन्तु बहुमत से नहीं। कई राज्यों में गैर
कांग्रेसी सरकारें बनीं।
3. दल के
प्रति निष्ठा की कमी इंदिरा की चेष्टाओं में भी देखी गयी। उन्होंने व्हिप का
उल्लंघन करके एवं दल के साथ विश्वासघात करके नीलम संजीव रेड्डी के स्थान पर वी.वी.
गिरि को राष्ट्रपति पद दिलवा दिया।
4. दल के
प्रति विश्वासघात ने सन् 1975 का आपातकाल लाने तक अमर्यादित
उछाल लिया।
प्रश्न
6. 1969
में कांग्रेस पार्टी को विभाजन की ओर ले जाने वाली तीन महत्वपूर्ण
घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1969 में कांग्रेस पार्टी को विभाजन की ओर ले जाने वाली महत्वपूर्ण
घटनाएँ निम्नलिखित हैं।
1. 1969 के
राष्ट्रपति के चुनाव में इंदिरा गाँधी और उनके समर्थकों द्वारा उपराष्ट्रपति
वी.वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद
के लिए अपना नामांकन भरें।
2. इंदिरा
गाँधी ने चौदह अग्रणी बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व राजा - महाराजाओं को
प्राप्त विशेषाधिकार यानि 'प्रिवी पर्स' को
समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा भी की।
3. उस
वक्त मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री थे। उपर्युक्त दोनों
मुद्दों पर प्रधानमंत्री और उनके बीच गहरे मतभेद उभरे और उसके परिणामस्वरूप
मोरारजी ने सरकार से किनारा कर लिया।
4. गुजरे
वक्त में भी कांग्रेस के भीतर इस तरह के मतभेद उठ चुके थे कि राष्ट्रपति के चुनाव
में ताकत को अजमा ही लिया जाए।
5. इंदिरा
गाँधी के समर्थक गुट ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विशेष बैठक आयोजित करने की
याचना की। लेकिन उनकी यह याचना स्वीकार नहीं की गई।
प्रश्न
7. क्या सन् 1969 में हुई कांग्रेस की फूट को रोका जा
सकता था ? यदि कांग्रेस में फूट नहीं होती तो सन् 1970
के दशक की घटनाओं पर इसका कैसा असर पड़ा होता ?
उत्तर:
नहीं, कांग्रेस की
फूट को रोकना संभव नहीं था। इसका कारण यह था कि कांग्रेस में उस वक्त दो गुट बन
चुके थे। पहला गुट सिंडिकेट कांग्रेस का था तथा इसका नेतृत्व कांग्रेस पार्टी के
तत्कालीन अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा कर रहे थे। दूसरा गुट इंडिकेट (इंदिरा) था जिसका
नेतृत्व इंदिरा गांधी के हाथों में था। प्रारंभ में इंदिरा गांधी ने हर बार आयोजित
आम चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए सिंडिकेट को विशेष सम्मान दिया था।
इसका
कारण था कि सिंडिकेट में एस. निजलिंगप्पा, के. कामराज, एस.
के. पाटिल, एन. संजीव रेड्डी और अतुल्य घोष जैसे जाने - माने
प्रभावशाली नेताओं का रहना। इन नेताओं के बल पर ही लाल बहादुर शास्त्री को
प्रधानमंत्री बनाया जा सका तथा इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे भी
इन्हीं नेताओं का हाथ था। ये नेता क्रमशः मद्रास प्रांत, मैसूर,
बम्बई सिटी, आंध्र प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के
मजबूत नेता थे। वह किंग मेकर कहलाते थे।
सिंडिकेट
के नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गांधी उनकी सलाहों पर अमल करेंगी। परन्तु इंदिरा
गांधी ने सरकार और पार्टी के भीतर खुद का वर्चस्व बनाना प्रारंभ किया। उन्होंने
अपने और विश्वस्तों के समूह में पार्टी से बाहर के लोगों को रखा। धीरे - धीरे और
बड़ी सावधानी से उन्होंने सिंडिकेट को हाशिए पर ला खड़ा किया। यदि फूट नहीं होती
तो इंदिरा गांधी अपनी स्वतंत्र प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पाती, साथ ही सन् 1971
के आम चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) पार्टी हार गई
होती।
प्रश्न
8. 'प्रिवीपर्स' की समाप्ति क्यों की गई ? क्या यह उचित था ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
अथवा
'प्रिवीपर्स का क्या अर्थ है? सन् 1970
में इंदिरा गांधी उसे क्यों समाप्त कर देना चाहती थी?
अथवा
'प्रिवीपर्स से आप क्या समझते हैं? इस
व्यवस्था की समाप्ति के विभिन्न प्रयासों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रिवीपर्स का अर्थ: देशी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से
पूर्व सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार को
निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार होगा। साथ ही सरकार की ओर से उन्हें
कुछ भत्ते भी दिए जाएंगे।
ये दोनों (शासक की निजी संपदा और भत्ते) इस बात को आधार मानकर तय की
जाएँगी कि जिस राज्य का विलय किया जाना है उसका विस्तार तथा राजस्व क्षमता कितनी
है। इस व्यवस्था को 'प्रिवीपर्स' कहा
गया। ये वंशानुगत विशेषाधिकार भारतीय संविधान में वर्णित समानता तथा
सामाजिक-आर्थिक न्याय के सिद्धान्तों से मेल नहीं खाते थे। नेहरू ने कई बार इस
व्यवस्था को लेकर असंतोष जताया था।
प्रिवीपों
की समाप्ति के विभिन्न प्रयास-सन् 1967 के आम चुनावों के बाद इंदिरा
गांधी ने 'प्रिवीपर्स' को खत्म करने की
माँग का समर्थन किया। उनकी राय थी कि सरकार को 'प्रिवीपर्स'
की व्यवस्था समाप्त कर देनी चाहिए। मोरारजी देसाई प्रिवीपर्स की
समाप्ति को नैतिक रूप से गलत मानते थे। प्रिवीपर्स की व्यवस्था को समाप्त करने के
लिए सरकार ने सन् 1970 में संविधान संशोधन के प्रयास किए,
परन्तु राज्यसभा में यह मंजूरी नहीं पा सका।
इसके बाद सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, परन्तु
इसे सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया। इंदिरा गांधी ने इसे सन् 1971 के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनाया तथा इस मुद्दे पर उन्हें पर्याप्त
जन-समर्थन भी प्राप्त हुआ। सन् 1971 में मिली भारी विजय के
पश्चात् संविधान संशोधन हुआ तथा इस प्रकार प्रिवीपर्स की समाप्ति के मार्ग में
मौजूद कानूनी अड़चनें समाप्त हो गईं।
प्रश्न
9. निम्नांकित पर टिप्पणी लिखिए
(i) इंदिरा गाँधी बनाम सिंडिकेट
(ii) दल - बदल
उत्तर:
(i) इंदिरा गाँधी बनाम सिंडिकेट-1960 के
दशक में कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर 'सिंडिकेट'
के नाम से पुकारा जाता था। सिंडिकेट कांग्रेस के भीतर ताकतवर और
प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर
नियंत्रण था। इंदिरा गाँधी इसी सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमंत्री बनी थीं।
सिंडिकेट के नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाहों का अनुसरण करेंगी।
प्रारम्भ में इंदिरा गाँधी ने सिंडिकेट को महत्व प्रदान किया।
लेकिन शीघ्र ही इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर स्वयं को
स्थापित करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने अपने सलाहकारों और विश्वस्तों के समूह
में पार्टी से बाहर के लोगों को रखा। धीरे-धीरे और बड़ी सावधानी से इंदिरा गाँधी
ने सिंडिकेट को किनारे पर ला खड़ा किया। सिंडिकेट 1971 के
बाद प्रभावहीन हो गयी।
(ii) दल बदल - कोई जनप्रतिनिधि किसी विशेष दल के चुनाव चिह्न को
लेकर चुनाव लड़े और जीत जाए तथा चुनाव जीतने के बाद इस दल को छोड़कर किसी दूसरे दल
में शामिल हो जाए तो इसे दल - बदल कहते हैं। इसकी शुरुआत 1967 के आम चुनावों से मानी जाती है।
दल - बदल ने सरकारों के बनने-बिगड़ने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई। इस दौर में राजनीतिक निष्ठा थी। इस अदल - बदल से आया राम - गया राम का
जुमला प्रसिद्ध हुआ। वर्ष 1985 में 52वें
संविधान संशोधन के माध्यम से देश में 'दल-बदल विरोधी कानून'
पारित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में 'दल - बदल' की कुप्रथा को समाप्त करना था, जो कि 1970 के दशक से पूर्व भारतीय राजनीति में काफी
प्रचलित थी।
प्रश्न
10. 1971
के चुनाव के बाद किन कारणों से काँग्रेस की पुनर्स्थापना हुई।
अथवा
1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पुनर्स्थापना के कारणों को
स्पष्ट कीजिए।
अथवा
1971 में कांग्रेस की पुनर्स्थापना के कारण बताइए।
उत्तर:
1971 के लोकसभा चुनाव के बाद निम्नलिखित कारणों से कांग्रेस की
पुनर्स्थापना हुई
1. इंदिरा
गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व-1971 के चुनावों में कांग्रेस के पीछे
इंदिरा गाँधी का चमत्कारी नेतृत्व था। उन्होंने मतदाताओं से व्यक्तिगत सम्पर्क
किया तथा कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।
2. गरीबी
हटाओ का नारा-गरीबी हटाओ के नारे से इंदिरा गाँधी ने आधार तैयार किया।
3. इंदिरा
गाँधी की राजनीतिक हैसियत का अप्रत्याशित रूप से बढ़ना-1971 के चुनाव
में विजय के उपरान्त भारतीय राजनीति में इंदिरा गाँधी की अप्रत्याशित रूप से
राजनीतिक हैसियत बढ़ गयी। (iv) समाजवादी नीतियाँ-इन्दिरा
गाँधी ने समाजवादी नीतियों को अपनाया। उन्होंने प्रत्येक चुनाव रैली में समाजवाद
के विषय में बढ़-चढ़कर बातें की।
4. कांग्रेस
के पास एजेंडा एवं कार्यक्रम-1971 के चुनावों में कांग्रेस ही
एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसके पास देश के विकास हेतु एक निश्चित एजेंडा व कार्यक्रम
था।
5. कांग्रेस
प्रणाली के भीतर हर तनाव एवं संघर्ष को पचा लेने की क्षमता थी।
प्रश्न
11. सन् 1971 के चुनावों के परिणामस्वरूप बदली हुई
कांग्रेस व्यवस्था की प्रकृति कैसी थी?
उत्तर:
सन् 1971 के चुनावों के परिणामस्वरूप बदली हुई
कांग्रेस व्यवस्था की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता
है।
1. सन् 1971 के चुनाव
के पश्चात् इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस को अपने सर्वोच्च नेता पर निर्भर रहने वाली
पार्टी बना दिया। यहाँ से उनके आदेश सर्वोपरि बनने प्रारम्भ हुए। सिंडिकेट जैसे
अनौपचारिक प्रभावशाली नेताओं का समूह राजनीतिक मंच से हट गया।
2. सन् 1971 के
पश्चात् कांग्रेस का संगठन भिन्न-भिन्न विचारधाराओं वाले समूहों के समावेशी किस्म
का नहीं रहा। अब यह अनन्य एकाधिकारिता वाला बन गया था।
3. इंदिरा
की कांग्रेस को गरीबों, महिलाओं, दलित समूहों, जनजाति समूहों के लोगों ने जिताया था। यह धनी उद्योगपतियों, सौदागरों तथा राजनीतिज्ञों के समूह अथवा सिंडिकेट के हाथों की कठपुतली अब
नहीं रही। वस्तुतः यह पहले की कांग्रेस पार्टी का पूर्णरूप से बदला हुआ स्वरूप था।
प्रश्न
12. सन् 1971 के लोकसभा चुनावों के परिणामों ने किस
प्रकार भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व को पुनर्स्थापित किया?
उत्तर:
सन् 1971 के लोकसभा चुनावों के परिणाम उतने ही
नाटकीय थे, जितना इन चुनावों को करवाने का फैसला। कांग्रेस
(आर) और सीपीआई के गठबंधन को इस बार जितने वोट या सीटें मिलीं, उतनी कांग्रेस पिछले चार आम चुनावों में कभी हासिल न कर सकी थी। इस गठबंधन
को लोकसभा की 375 सीटें मिलीं और इसने कुछ 48.4 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। अकेले इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) ने 352
सीटें तथा 44 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे।
कांग्रेस
(ओ) में बड़े-बड़े दिग्गज थे, लेकिन इंदिरा गांधी की पार्टी को
जितने वोट मिले थे उसके एक-चौथाई वोट ही इसकी झोली में आए। इस पार्टी को मात्र 16
सीटें मिलीं। अपनी भारी-भरकम जीत के साथ इंदिरा गांधी की अगुवाई
वाली कांग्रेस ने अपने दावे को साबित कर दिया कि वही असली कांग्रेस है और उसे
भारतीय राजनीति में फिर से प्रभुत्व के स्थान पर पुनर्स्थापित किया। विपक्षी 'ग्रैंड अलायंस' धराशायी हो गया था। इस महाजोट को 40
से भी कम सीटें मिली थीं।
प्रश्न
13. ग्रैंड अलायंस से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
सन् 1971 के चुनावों में 'ग्रैंड
अलायंस' के क्या परिणाम रहे?
उत्तर:
ग्रैंड अलायंस - सन् 1971 में इंदिरा कांग्रेस
को अधिकांश नेता पार्टी का एक जर्जर भाग मानते थे तथा कांग्रेस (ओ) को वास्तविक
शक्ति मानते थे। इंदिरा कांग्रेस अथवा नयी कांग्रेस के विरुद्ध सभी बड़ी गैर -
साम्यवादी तथा गैर - कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया
था। इसे "ग्रैंड अलायंस" कहा गया। इस ग्रैंड अलायंस में एस. एस. पी.,
पी. एस. पी., भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी तथा भारतीय क्रांतिदल चुनाव में एक छतरी के नीचे आ गए।
शासक दल ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठजोड़ किया।
'ग्रैंड अलायंस' के पास कोई सुसंगत राजनीतिक
कार्यक्रम नहीं था। इंदिरा गांधी ने देश भर में घूम-घूम कर कहा कि विपक्षी गठबंधन
के पास बस एक ही कार्यक्रम है : इंदिरा हटाओ। सन् 1971 के
लोकसभा चुनावों के परिणाम उतने ही नाटकीय थे, जितना इन
चुनावों को करवाने का फैसला। अपनी भारी-भरकम जीत के साथ इंदिरा गांधी की अगुवाई
वाली कांग्रेस ने अपने दावे को साबित कर दिया कि वही 'असली
कांग्रेस' है और उसे भारतीय राजनीति में फिर से प्रभुत्व के
स्थान पर पुनर्स्थापित किया। विपक्षी 'ग्रैंड अलायंस'
धराशायी हो गया था। इस ‘महाजोट' को 40 से भी कम सीटें मिली थीं।
प्रश्न
14."इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर पुनर्स्थापित
किया।" इस कथन को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित किया। इंदिरा
गांधी ने जो कुछ किया, वह पुरानी कांग्रेस को पुनर्जीवित
करने का काम नहीं था। कई मामलों में यह पार्टी इंदिरा गांधी के हाथों नई तर्ज पर
बनी थी। इस पार्टी को लोकप्रियता की दृष्टि से वही स्थान प्राप्त था, जो उसे प्रारंभिक दौर में हासिल था, परन्तु यह अलग
किस्म की पार्टी थी। यह पार्टी पूर्णतः अपने सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता पर
आश्रित थी।
इस पार्टी का सांगठनिक ढाँचा भी अपेक्षाकृत कमजोर था। इस कांग्रेस
पार्टी के भीतर कई गुट नहीं थे, यानी अब यह विभिन्न मतों और
हितों को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी। इस पार्टी ने चुनाव जीते, परन्तु इस जीत के लिए पार्टी कुछ सामाजिक वर्गों, जैसे-गरीब,
महिला, दलित, आदिवासी
तथा अल्पसंख्यकों पर अधिक निर्भर थी। जो कांग्रेस उभरकर सामने आई, वह बिलकुल नई कांग्रेस थी।
इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित जरूर किया,
मगर कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर। कांग्रेस प्रणाली के
भीतर हर तनाव व संघर्ष को झेलने की क्षमता थी। कांग्रेस प्रणाली को इसी विशेषता के
कारण जाना जाता था, लेकिन नई कांग्रेस ज्यादा लोकप्रिय होने
के बावजूद इस क्षमता से हीन थी। कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत की तथा इंदिरा गांधी
की राजनीतिक हैसियत अप्रत्याशित रूप से बढ़ी।
प्रश्न
15. निम्नलिखित नारे किस संदर्भ में हैं
(अ) जय जवान जय किसान
(ब) गरीबी हटाओ
(स) इंदिरा हटाओ।
उत्तर:
(अ) जय जवान जय किसान-यह नारा देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर
शास्त्री ने भारत-पाक युद्ध (1962) के दौरान दिया था।
उन्होंने कहा था कि जवानों की जय हो क्योंकि देश में जो सेना है उस पर पूरे
राष्ट्र को गर्व है। वह देश की एकता, अखंडता एवं सुरक्षा को
बनाए रखेंगे। किसानों की जय हो क्योंकि वह हमारे देश की जनता के अन्नदाता हैं।
उनकी मेहनत, निष्ठा एवं लगन से देश में खाद्यान्न की कमी दूर
होगी। वे ऐसे जवान हैं जो देश के लिए लड़ाई खेतों में लड़ते हैं।
(ब) गरीबी हटाओ-सन् 1970 - 71 में यह नारा आम चुनावों
से पहले श्रीमती इंदिरा गांधी ने दिया था। गरीबी हटाओ के इस नारे से इंदिरा गाँधी
ने वंचित वर्ग के लोगों विशेषकर भूमिहीन किसान, दलित और
आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और
बेरोजगार नौजवानों के मध्य अपना समर्थन का आधार तैयार करने का प्रयास किया। गरीबी
हटाओ का नारा और इससे जुड़ा हुआ कार्यक्रम इंदिरा गाँधी की राजनीतिक रणनीति थी।
इसके सहारे वह अपने लिए देशव्यापी राजनीतिक समर्थन की बुनियाद तैयार करना चाहती
थीं।
(स) इंदिरा हटाओ-यह नारा इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों एवं विरोधी
राजनीतिक दलों ने दिया था। वह इंदिरा की कुछ नीतियों एवं कार्यक्रमों से सहमत नहीं
थे। वे देश में उदारवादी लोकतंत्र चाहते थे। प्रायः कुछ नेता इसे कठोर एवं
अधिनायकवादी तथा स्वयं के लिए कुछ समर्थकों से 'इंडिया इज
इंदिरा' तक के नारे लगवाने के कारण ऐसा समझते थे। कुछ लोग
नेहरू परिवार की सत्ता पर निरंतर पकड़ के भी विरोधी थे।
निबन्धात्मक
प्रश्न:
प्रश्न
1. लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के पश्चात् इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री
बनाने में सहायक परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए। इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के
रूप में लोकप्रियता प्रदान करने वाली किन्हीं चार उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के पश्चात्, इंदिरा गांधी
को प्रधानमंत्री बनाने में सहायक परिस्थितियाँ
10 जनवरी 1966 को ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री का
अकस्मात देहांत हो गया। शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात् कांग्रेस के समक्ष एक
बार फिर राजनीतिक उत्तराधिकारी का सवाल खड़ा हो गया। उत्तराधिकारी के सवाल पर मोरारजी
देसाई तथा इंदिरा गांधी के बीच कड़ा मुकाबला था।
लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गांधी को समर्थन देने का
फैसला किया। कांग्रेस के सांसदों द्वारा गुप्त मतदान किया गया। इंदिरा गांधी को
दो-तिहाई से अधिक सांसदों ने अपना मत दिया। यह भी अनुमान किया जाता है कि कांग्रेस
के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गांधी का यह सोचकर समर्थन किया होगा कि उन्हें
राजनीतिक तथा प्रशासनिक विषयों का कोई विशेष अनुभव नहीं था जिसके कारण
दिशा-निर्देशन तथा राजनैतिक समर्थन के लिए इंदिरा गाँधी उन वरिष्ठ नेताओं पर
निर्भर रहेंगी।
(2) इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में लोकप्रियता प्रदान करने वाली चार
उपलब्धियाँ।
(i) इंदिरा गांधी ने बड़ी साहसिक रणनीति अपनायी। उन्होंने एक साधारण से सत्ता
- संघर्ष को विचारात्मक संघर्ष में बदल दिया। उन्होंने सरकार की नीतियों को
वामपंथी रंग देने के लिए कई कदम उठाए। 1967 की मई में
कांग्रेस कार्यसमिति ने उनके प्रभाव से दस - सूत्री कार्यक्रम अपनाया।
इस कार्यक्रम में बैंकों का सामाजिक नियंत्रण, आम बैंकों के राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा और आय के
परिसीमन, खाद्यान्न का सरकारी वितरण, भूमि
सुधार तथा ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखण्ड देने के प्रावधान शामिल थे। हालांकि
सिंडिकेट के नेताओं ने औपचारिक तौर पर वामपंथी खेमे के इस कार्यक्रम को स्वीकृति
दे दी, लेकिन इसे लेकर उसके मन में गहरे संदेह थे।
(ii) इंदिरा गाँधी ने चौदह अग्रणी बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व
राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी 'प्रिवीपर्स'
को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा भी की।
(ii) सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी के बीच की गुटबाजी 1969 में
राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय खुलकर सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन
की मृत्यु के कारण उस साल राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गाँधी की असहमति के
बावजूद उस साल सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस
पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा करवाने में सफलता
पाई।
जबकि इंदिरा गाँधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को बढ़ावा
दिया। आखिरकार राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी.वी. गिरि ही विजयी हुए। वे स्वतंत्र
उम्मीदवार थे, जबकि एन. संजीव रेड्डी कांग्रेस के आधिकारिक
उम्मीदवार थे।
(iv) कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना तय हो
गया। कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया।
पार्टी से निष्कासित प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी ही असली
कांग्रेस है।
प्रश्न
2. भारत के राजनीतिक और चुनावी इतिहास में सन् 1967 के
वर्ष को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पड़ाव क्यों माना जाता है? व्याख्या
कीजिए।
अथवा
सन् 1967 के चौथे आम चुनाव पर एक लेख
लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तावना - भारत के राजनैतिक तथा चुनावी इतिहास में सन् 1967 के वर्ष को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। सन् 1952 के प्रथम चुनाव से लेकर सन् 1966 तक कांग्रेस पार्टी
का संपूर्ण देश के अधिकांश राज्यों तथा केन्द्र में राजनैतिक वर्चस्व कायम रहा।
परन्तु सन् 1967 के आम चुनाव में इस प्रवृत्ति में गहरा
परिवर्तन आया।
(ii) सन् 1967 के आम चुनाव तथा देश के समक्ष आर्थिक
समस्याएँ और चुनौतियाँ- चौथे आम चुनावों के आने तक देश में बड़े परिवर्तन हो चुके
थे। दो प्रधानमन्त्रियों का जल्दी-जल्दी देहांत हुआ तथा इंदिरा गांधी को नए
प्रधानमंत्री का पद सँभाले हुए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था। साथ ही इस
प्रधानमंत्री को राजनीति के दृष्टिकोण से कम अनुभवी माना जा रहा था। सन् 1967
के चुनाव से पहले ही कई वर्षों से देश गंभीर आर्थिक संकट में था।
मानसून की असफलता, व्यापक सूखा, खेती की पैदावार में गिरावट, व्यापक खाद्य संकट,
विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, औद्योगिक
उत्पादन तथा निर्यात में गिरावट के साथ ही साथ सैन्य खर्चों में भारी बढ़ोत्तरी
हुई थी। नियोजन तथा आर्थिक विकास के संसाधनों को सैन्य-मद में लगाना पड़ा। इन सभी
बातों से देश की आर्थिक स्थिति जर्जर हो गयी थी। देश में अक्सर 'बंद' तथा 'हड़ताल' की स्थिति रहने लगी। सरकार ने इसे कानून तथा व्यवस्था की समस्या माना न कि
जनता की बदहाली की अभिव्यक्ति। इससे लोगों में नाराजगी बढ़ गई तथा जन विरोध ने
ज्यादा उग्र रूप धारण किया।
(iii) वामपंथियों द्वारा व्यापक संघर्ष छेड़ना-साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने
व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हुए
साम्यवादियों के एक समूह ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनायी
तथा सशक्त कृषक - विद्रोह का नेतृत्व किया। साथ ही, इस
पार्टी ने किसानों के बीच विरोध को संगठित किया। इस अवधि में गंभीर किस्म के
हिन्दू - मुस्लिम दंगे भी हुए। आजादी के बाद से अब तक इतने गंभीर सांप्रदायिक दंगे
नहीं हुए थे।
(iv) चुनावों का जनादेश-व्यापक जन-असंतोष तथा राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के
इसी माहौल में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के लिए सन् 1967 के
फरवरी माह में चौथे आम चुनाव हुए। कांग्रेस पहली बार नेहरू के बिना मतदाताओं का
सामना कर रही थी।
चुनाव के परिणामों से कांग्रेस को राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर
गहरा धक्का लगा। तत्कालीन अनेक राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने चुनाव परिणामों को 'राजनीतिक भूकंप' की संज्ञा दी। कांग्रेस को
जैसे-तैसे लोकसभा में बहुमत तो मिल गया था, परन्तु उसको
प्राप्त मतों के प्रतिशत तथा सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई थी। अब से पहले
कांग्रेस को कभी न तो इतने कम वोट मिले थे और न ही इतनी कम सीटें मिली थीं।
राजनीतिक बदलाव की यह नाटकीय स्थिति राज्यों में और भी अधिक स्पष्ट
नजर आई। कांग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला। दो अन्य राज्यों में दलबदल
के कारण यह पार्टी सरकार नहीं बना सकी। जिन 9 राज्यों में
कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई थी वह देश के किसी एक भाग में कायम राज्य नहीं
थे। वह राज्य पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में थे। कांग्रेस पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर
प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास तथा केरल में सरकार नहीं बना सकी।
मद्रास प्रांत (अब इसे तमिलनाडु कहा जाता है) में एक क्षेत्रीय
पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पाने में सफल रही। द्रविड़
मुनेत्र कषगम (डीएमके) हिंदी-विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करके सत्ता में आई थी। यहाँ
के छात्र हिन्दी को राजभाषा के रूप में केंद्र द्वारा अपने ऊपर थोपने का विरोध कर
रहे थे तथा डीएमके ने उनके इस विरोध को नेतृत्व प्रदान किया था।
प्रश्न
3. 'इंदिरा बनाम सिंडीकेट' के मुद्दे का विश्लेषण कीजिए।
इस मुद्दे ने इंदिरा गांधी के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियाँ प्रस्तुत की?
उत्तर:
1960 के दशक में कांग्रेस पार्टी के एक बहुत शक्तिशाली समूह को 'सिंडीकेट' कहा गया है। सिंडीकेट में कामराज, एस. के. पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा जैसे
अनुभवी कांग्रेसी शामिल थे। सिंडीकेट ने कांग्रेस की नीतियों एवं कार्यक्रमों एवं
निर्णयों को प्रभावशाली ढंग से प्रभावित किया। मई 1964 में
पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात् सिंडीकेट ने श्री लाल बहादुर शास्त्री को
प्रधानमंत्री बनवाने में कांग्रेस में सहमति बनाई।
जनवरी, 1966 में
श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री बनाने में सिंडीकेट ने महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई। अधिकांश कांग्रेसी नेताओं तथा मुख्यमंत्रियों ने श्रीमती इंदिरा गांधी को
भारत की प्रधानमंत्री बनाना स्वीकार कर लिया, परन्तु मोरारजी
देसाई स्वयं प्रधानमंत्री बनने के लिए नेतृत्व के लिए प्रतियोगिता करने का निर्णय
किया। सिंडीकेट ने इस बात को सुनिश्चित किया कि मत विभाजन के समय श्रीमती इंदिरा
गांधी की जीत निश्चित हो। अत: सिंडीकेट की सहायता से ही श्रीमती इंदिरा गांधी
कांग्रेस संसदीय दल की नेता चुनी गईं और प्रधानमंत्री बनीं।
1967 के चुनावों में केन्द्र में कांग्रेस मुश्किल से बहुमत (283) के लिए आवश्यक सीटें जीत पाई। उसे 8 विधानसभाओं में
हार का मुंह देखना पड़ा। इस चुनाव ने कांग्रेस के भीतर सत्ता संघर्ष के बीज बो
दिये। इसके बाद से ही इंदिरा गांधी और सिंडीकेट के बीच राजनीतिक रस्साकसी शुरू हो
गई। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भूमि सुधार लागू करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स समाप्त
करना, युवा कांग्रेसियों को बढ़ावा देना और वामपंथियों से
रिश्तों के विषय पर सिंडीकेट, इंदिरा गांधी के खिलाफ हो रहा
था।
1969 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस में मतभेद खुलकर सामने आ
गया था। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में
जगजीवन राम का नाम राष्ट्रपति पद के लिए उठाया, परन्तु
सिंडीकेट ने इसका विरोध किया तथा सिंडीकेट ने नीलम संजीव रेड्डी का नाम राष्ट्रपति
पद के लिए अनुमोदित किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु
श्रीमती इंदिरा गांधी संतुष्ट नहीं हुईं तथा उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए वी.वी.
गिरि का समर्थन किया तथा वी. वी. गिरि राष्ट्रपति चुनाव जीत गए।
इस
प्रकार कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदावार के राष्ट्रपति चुनाव में हार जाने के बाद
सिंडीकेट ने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को पद से हटाने का प्रयास किया।
परन्तु इसके विरोध में 60 से अधिक कांग्रेसी सदस्यों ने निजलिंगप्पा के विरुद्ध
अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात की। 23 अगस्त, 1969 को हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में अधिकांश सदस्यों ने श्रीमती इंदिरा गांधी
के पक्ष में विश्वास व्यक्त किया। पार्टी विभाजित हो गयी। नई कांग्रेस पर इंदिरा
गांधी की पूरी पकड़ बन गयी। इस तरह इंदिरा गाँधी ने 'सिंडीकेट'
को ध्वस्त कर दिया।
प्रश्न
4. भारत में कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के उदय व पतन के लिए उत्तरदायी
मुख्य कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत में कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के उदय के लिए उत्तरदायी
कारक-भारत में कांग्रेस पार्टी के उदय के लिए उत्तरदायी कारक निम्नांकित थे।
(i) कांग्रेस का गठन सन् 1885 ई. में हुआ था। इस समय यह
केवल नवशिक्षित, कामकाजी तथा व्यापारिक वर्गों का एक
हित-समूह थी परन्तु बीसवीं शताब्दी में इसने एक व्यापक जन-आंदोलन का रूप ले लिया।
इस कारण से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप ले लिया तथा राजनीतिक
व्यवस्था में इसका प्रभुत्व स्थापित हुआ। स्वतंत्रता के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे
सामाजिक गठबंधन का आकार ग्रहण कर चुकी थी।
(ii) कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी व शांतिवादी, कंजरवेटिव
तथा रेडिकल, गरमपंथी व नरमपंथी, दक्षिणपंथी,
क्रान्तिकारी वामपंथी तथा हर धारा के मध्यमार्गियों को शामिल किया।
कांग्रेस एक मंच के समान थी, जिस पर अनेक हित, समूह तथा राजनीतिक दल तक आ जुटते थे तथा राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते
थे।
(iii) कांग्रेस के गठबंधनी स्वरूप ने उसे एक असाधारण ताकत दी। पहली बात तो यही
कि जो भी आए, गठबंधन उसे अपने में शामिल कर लेता है। इस कारण
गठबंधन को अतिवादी रुख अपनाने से बचना होता है तथा प्रत्येक मामले पर संतुलन रख कर
चलना पड़ता है। सुलह-समझौता तथा सर्व समावेशी होना गठबंधनी स्वरूप की विशेषता होती
है।
(iv) भारत में अधिक विपक्षी पार्टियाँ नहीं थीं। कई पार्टियाँ सन् 1952 के आम चुनावों से कहीं पहले बन चुकी थीं। इनमें से कुछ ने 'साठ व सत्तर' के दशक में देश की राजनीति में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1950 के दशक में इन सभी
विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभा में नाममात्र का प्रतिनिधित्व मिल पाया।
(v) भारत की चुनाव प्रणाली में 'सर्वाधिक वोट पाने वाले
की जीत' के तरीके को अपनाया गया है। ऐसे में यदि कोई पार्टी
अन्य की अपेक्षा थोड़े ज्यादा वोट प्राप्त करती है तो दूसरी पार्टियों को प्राप्त
वोटों के अनुपात की तुलना में उसे कहीं अधिक सीटें हासिल होती हैं। यही बात
कांग्रेस पार्टी के पक्ष में रही।
(vi) यदि सभी गैर - कांग्रेसी उम्मीदवारों के वोट जोड़ दिए जाएँ तो वह कांग्रेस
पार्टी को हासिल कुल वोट से कहीं अधिक होंगे। परन्तु गैर - कांग्रेसी वोट विभिन्न
प्रतिस्पर्धी पार्टियों तथा उम्मीदवारों में बँट गए। इस प्रकार कांग्रेस बाकी
पार्टियों की तुलना में आगे रही तथा उसने ज्यादा सीटें जीतीं।
कांग्रेस
पार्टी के प्रभुत्व में कमी आने के लिए उत्तरदायी कारक-कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व
में कमी आने के लिए उत्तरदायी कारक इस प्रकार हैं।
(i) कांग्रेस प्रणाली को सन् 1960 के दशक में पहली बार
विपक्ष से चुनौती मिली। कांग्रेस पार्टी को अपना राजनीतिक प्रभुत्व बनाए रखने में
कुछ कारणों से कठिनाई आने लगी। पहले की अपेक्षा अब विपक्ष कम विभाजित था। कांग्रेस
पार्टी अपनी अन्दरूनी चुनौतियों को झेल नहीं पा रही थी।
(ii) मई 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद
राजनैतिक उत्तराधिकार की चुनौती उत्पन्न हुई जिसे लालबहादुर शास्त्री के
प्रधानमंत्री बनने के साथ ही हल कर लिया गया। शास्त्री जी के निधन के बाद फिर से
राजनैतिक उत्तराधिकार का मामला उठा।
(iii) सन् 1967 के चौथे आम चुनाव के बाद कांग्रेस की
लोकप्रियता में कमी आई तथा कुछ समय के लिए गैर-कांग्रेसवाद को ख्याति प्राप्त होना
प्रारम्भ हुआ। चुनाव के परिणामों से कांग्रेस को राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर
गहरा धक्का लगा। इन चुनावों से दल गठबंधन की परिघटना सामने आने लगी। पंजाब में
संयुक्त विधायक दल की सरकार को पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट की सरकार कहा गया।
(iv) सन् 1967 से देश में राजनैतिक दल - बदल और 'आया राम - गया राम' की राजनीति प्रारंभ हुई जिसके
कारण से भारतीय लोकतंत्र को अस्थायी रूप से गहरा धक्का पहुँचा। कांग्रेस में
सिंडिकेट और इंडिकेट या पुरानी कांग्रेस तथा नई कांग्रेस के नाम से विभाजन हो गया।
(v) सन् 1969 में देश के राष्ट्रपति पद के चुनाव में
कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार एन. नीलम संजीव रेड्डी को वी. वी. गिरि ने इंदिरा
गांधी के खुले समर्थन के कारण पराजित किया।
(vi) सन् 1970 के बाद (अर्थात् सन् 1971 में) हुए चुनावों में इंदिरा कांग्रेस या नई कांग्रेस को भारी सफलता
प्राप्त हुई तथा उसे ही वास्तविक कांग्रेस कहा गया। संविधान में संशोधन करके देशी
राजाओं के प्रिवीपर्स को समाप्त कर दिया गया। इस तरह सन् 1971 के चुनाव के बाद कांग्रेस का इंदिरा गांधी के नेतृत्व में फिर से स्थापन
हुआ। परन्तु सन् 1975 में उन्हीं के द्वारा आपातकाल की घोषणा
ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।
प्रश्न 5. भारतीय
इतिहास में राष्ट्रपति पद के लिए हुए सन् 1969 के चुनाव
संबंधी घटनाओं एवं परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय इतिहास में राष्ट्रपति पद के लिए हुए सन् 1969 के चुनाव संबंधी घटनाओं व परिणामों का वर्णन निम्नानुसार है।
(i) कांग्रेस के दो गुटों में टकराव-सिंडिकेट व इंदिरा गांधी के बीच की
गुटबाजी सन् 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय खुलकर
सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण उस वर्ष
राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद उस वर्ष सिंडिकेट ने
तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी की ओर से राष्ट्रपति
पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा करवाने में सफलता प्राप्त की। एन. संजीव रेड्डी
से इंदिरा गांधी की बहुत दिनों से राजनीतिक अनबन चली आ रही थी। ऐसे में इंदिरा
गांधी ने भी हार नहीं मानी।
(ii) मोरारजी देसाई द्वारा त्यागपत्र-इंदिरा गांधी ने 14 अग्रणी
बैंकों के राष्ट्रीयकरण व भूतपूर्व राजा महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी 'प्रिवीपर्स' को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और
जनप्रिय नीतियों की घोषणा भी की। उस समय मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री तथा
वित्तमंत्री थे। इन दोनों मसलों पर प्रधानमंत्री व उनके बीच गहरे मतभेद उभर कर
सामने आए तथा इसके फलस्वरूप मोराराजी देसाई ने सरकार से किनारा कर लिया।
(iii) कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा व्हिप जारी करना: कांग्रेस के अंदर कई प्रकार के
मतभेद उभर चुके थे, परन्तु इस बार कुछ अलग ही प्रकार का
मामला था। दोनों गुट चाहते थे कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में शक्ति को आजमा ही
लिया जाए। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने व्हिप जारी किया कि सभी 'कांग्रेसी' सांसद तथा विधायक पार्टी के आधिकारिक
उम्मीदवार एन. संजीव रेड्डी को वोट डालें।
इंदिरा गांधी के समर्थक गुट ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विशेष
बैठक आयोजित करने हेतु याचना की, परन्तु यह याचना स्वीकार
नहीं की गई। वी. वी. गिरि का गुप्त तौर पर समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी ने खुलेआम अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने को कहा। इसका तात्पर्य यह था कि
कांग्रेस के सांसद तथा विधायक अपनी मनमर्जी से किसी भी उम्मीदवार को वोट डाल सकते
हैं।
(iv) चुनावों के परिणाम-अंततः राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी. वी. गिरि ही
विजयी हुए। वे स्वतंत्र उम्मीदवार थे, जबकि एन. संजीव रेड्डी
कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार थे। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार
की हार से पार्टी का टूटना तय हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया। पार्टी से निष्कासित प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी ही असली कांग्रेस है।
सन् 1969 के नवंबर
तक सिंडिकेट की नेतृत्व वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) और इंदिरा
गांधी की नेतृत्व वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (रिक्विजिनिस्ट) कहा जाने लगा
था। इन दोनों दलों को क्रमशः 'पुरानी कांग्रेस' और 'नई कांग्रेस' भी कहा जाता
था। इंदिरा गांधी ने पार्टी की इस टूट को विचारधाराओं की लड़ाई के रूप में सामने
रखा। उन्होंने इसे 'समाजवादी' तथा 'पुरातनपंथी' व गरीबों के समर्थक व अमीरों के तरफदार
के बीच की लड़ाई करार दिया।
प्रश्न
6. सन् 1971 के आम चुनाव व देश की राजनीति में कांग्रेस
के पुनर्स्थापन से जुड़ी राजनीतिक घटनाओं व परिणामों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
सन् 1971 के आम चुनाव व देश की राजनीति में
कांग्रेस के पुनर्स्थापन से जुड़ी राजनीतिक घटनाओं व परिणामों का विवरण
निम्नानुसार है।
(i) सन् 1971 का आम चुनाव-इंदिरा गांधी ने दिसंबर 1970
में लोकसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति से की थी। वह अपनी सरकार
के लिए जनता का पुनः आदेश प्राप्त करना चाहती थी। फरवरी 1971 में पाँचवीं लोकसभा का आम चुनाव हुआ।
(ii) कांग्रेस तथा ग्रैंड अलायंस में मुकाबला: चुनावी मुकाबला कांग्रेस (आर) के
विपरीत जान पड़ रहा था। आखिर नई कांग्रेस एक जर्जर होती हुई पार्टी का एक भाग
मात्र थी। सभी को भरोसा था कि कांग्रेस पार्टी की वास्तविक संघटनात्मक शक्ति
कांग्रेस (ओ) के नियंत्रण में है। इसके अलावा, सभी बड़ी गैर
- साम्यवादी तथा गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया
था। इसे "ग्रैंड अलायंस" कहा गया। इससे इंदिरा गांधी के लिए स्थिति और
कठिन हो गयी। एसएसपी, पीएसपी, भारतीय
जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी तथा भारतीय क्रांतिदल, चुनाव में एक छतरी के नीचे आ गए। शासक दल ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के
साथ गठजोड़ किया।
(iii) दोनों राजनैतिक खेमों में अंतर: इसके बावजूद नई कांग्रेस के साथ एक ऐसी
बात थी, जिसका उनके बड़े विपक्षियों के पास अभाव था। नयी
कांग्रेस के पास एक मुद्दा था। एक एजेंडा तथा कार्यक्रम था। “ग्रैंड अलायंस" के पास कोई सुसंगत राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था।
इंदिरा गांधी ने देश भर में घूम - घूम कर कहा था कि विपक्षी गठबंधन के पास बस एक
ही कार्यक्रम है, 'इंदिरा हटाओ'।
(iv) चुनाव के परिणाम: सन् 1971 के लोकसभा चुनावों के
परिणाम उतने ही नाटकीय थे, जितना इन चुनावों को करवाने का
फैसला। कांग्रेस (आर) तथा सीपीआई के गठबंधन को इस बार जितने वोट या सीटें मिलीं,
उतनी कांग्रेस पिछले चार आम चुनावों में कभी हासिल नहीं कर सकी थी।
इस गठबंधन को लोकसभा की 375 सीटें मिली तथा इसने कुल 48.4
प्रतिशत वोट हासिल किए। अकेली इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) ने 352
सीटें तथा 44 प्रतिशत वोट हासिल किए थे।
अब जरा
इस तस्वीर की तुलना कांग्रेस (ओ) के से करें, इस पार्टी में बड़े - बड़े महारथी थे,
परंतु इंदिरा गांधी की पार्टी को जितने वोट मिले थे, उसके एक चौथाई वोट ही इसकी झोली में आए। इस पार्टी को महज 16 सीटें मिलीं। अपनी भारी जीत के साथ इंदिराजी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने
अपने दावे को साबित कर दिया कि वही “वास्तविक कांग्रेस"
है तथा उसे भारतीय राजनीति में फिर से प्रभुत्व के स्थान पर पुनर्स्थापित किया।
विपक्षी ग्रैंड अलायंस धराशायी हो गया था। इसे 40 से भी कम
सीटें मिली थीं।
(v) बांग्लादेश का निर्माण तथा भारत: पाक युद्ध - सन् 1971 के लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है।)
में एक बड़ा राजनीतिक तथा सैन्य संकट उठ खड़ा हुआ। सन् 1971 के
चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान में संकट पैदा हुआ तथा भारत-पाक के मध्य युद्ध
छिड़ गया।
(vi) राज्यों में कांग्रेस की पुनर्स्थापना: सन् 1972 के
राज्य विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को व्यापक सफलता मिली। उन्हें
गरीबों तथा वंचितों के रक्षक और एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा।
पार्टी के अंदर अथवा बाहर उसके विरोध की कोई गुंजाइश नहीं बची। कांग्रेस लोकसभा के
चुनावों में जीती थी तथा राज्य स्तर के चुनावों में भी।
इन दो लगातार जीतों के साथ कांग्रेस का दबदबा एक बार फिर कायम रहा।
कांग्रेस अब लगभग सभी राज्यों में सत्ता में थी। समाज के विभिन्न वर्गों में यह
लोकप्रिय भी थी। महज चार साल की अवधि में इंदिरा गांधी ने अपने नेतृत्व तथा
कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के सामने खड़ी चुनौतियों को धूल चटा दी थी। जीत के
पश्चात् इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित जरूर किया, परन्तु कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर।
प्रश्न
7. "1971
में केन्द्र तथा राज्य दोनों स्तरों पर लगातार चुनाव में विजय
प्राप्त करने के पश्चात्, कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रभुत्व
को पुनः स्थापित कर लिया।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में किन्हीं तीन तर्कों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1971 में पाँचवीं लोकसभा चुनाव कई पहलुओं से ऐतिहासिक माना जाता है
इसी चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी को अपनी लोकप्रियता को एक बार फिर से प्राप्त
करनी थी तो कांग्रेस पार्टी की नीतियों के प्रति जनमत भी स्थापित करना था। 1971
के चुनाव में यह दोनों उद्देश्य सफल होते दिखाई देते है। लोकसभा की 518
सीटों में से 352 सीटे प्राप्त करके श्रीमती
गाँधी लोगों के अभूतपूर्व समर्थन को प्रदर्शित किया।
1971 के चुनावों में बहुत बड़ी संख्या में सीट जिता कर लोगों ने श्रीमती गांधी
को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित कर दिया था। यह विजय श्रीमती गांधी की
क्रांतिकारी विजय मानी जाती है। लोगों के बीच इंदिरा गांधी 'गरीबी
हटाओ' का नारा लेकर गयी थी जबकि उनके 'इंदिरा
हटाओ' का नारा लेकर लोगों का समर्थन चाहते थे। चुनाव
अभियानों से ज्ञात होता है कि आम जनता ने 'गरीबी हटाओ'
के नारे को अधिक पसंद किया तथा श्रीमती गांधी को पूर्ण बहुमत प्रदान
किया।
1972 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व स्थापित हुआ। कई
राज्यों में इंदिरा गांधी की पार्टी ही सरकार बनाने में सफल हुई। स्पष्ट है कि 1971
के चुनाव में इंदिरा के नेतृत्व में नयी कांग्रेस ने अपना प्रभुत्व
स्थापित किया। तकनीकि अर्थों में पुरानी कांग्रेस का प्रभुत्व पुनर्स्थापित नहीं
हुआ था। इस बात के पक्ष में तीन तर्क सामने आते हैं।
1. इंदिरा
गांधी नेतृत्व में नई कांग्रेस अस्तित्व में आयी थी। पुरानी कांग्रेस 'सिंडीकेट'
के पास रही जो चुनाव हार चुकी थी।
2. इंदिरा
के नेतृत्व वाली नयी कांग्रेस कई आयामों में पुरानी कांग्रेस से अलग थी। नई
कांग्रेस अपने नेता की लोकप्रियता पर निर्भर थी। पार्टी का पुरानी कांग्रेस की तरह
मतबूत ढाँचा भी नहीं था।
3. नयी
कांग्रेस अपने आप को नये सिरे से प्रासंगिक और प्रभावी बनाने का प्रयास कर रही थी।
मानचित्र
सम्बन्धीं प्रश्न:
प्रश्न
1.
दिए गए मानचित्र का अध्ययन कीजिए और विधानसभा चुनाव परिणाम सन् 1967
के संदर्भ में निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए।
भारत के किन राज्यों में कांग्रेस को राज्य विधानसभाओं में बहुमत
प्राप्त नहीं हुआ? किन्हीं चार के नाम लिखिए?
उत्तर:
(i) पंजाब,
(ii) उत्तर प्रदेश,
(iii) उड़ीस़ा,
(iv) बिहार।

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