Class-12 History
Chapter- 5 (यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी
समझ)
सुमेलित कीजिए 
प्रश्न 1. खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
| खण्ड 'क' | खण्ड 'ख' | 
| (विद्वान) | (देश) | 
| (1) अल बिरूनी | मोरक्को | 
| (2) इब्न बतूता | समरकंद | 
| (3) मार्को पोलो | इटली | 
| (4) अब्दुर रज्जाक | उज्बेकिस्तान    | 
उत्तर:
| खण्ड 'क' | खण्ड 'ख' | 
| (विद्वान) | (देश) | 
| (1) अल
  बिरूनी | उज्बेकिस्तान | 
| (2) इब्न
  बतूता | मोरक्को | 
| (3) मार्को
  पोलो | इटली | 
| (4) अब्दुर
  रज्जाक | समरकंद | 
प्रश्न 2. खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
| खण्ड 'क' | खण्ड 'ख' | 
| (विद्वान) | (शासक) | 
| (1) अल
  बिरूनी | शाहजहाँ | 
| (2) इन
  बतूता | महमूद गजनवी | 
| (3). बर्नियर | मुहम्मद बिन तुगलक | 
उत्तर:
| खण्ड 'क' | खण्ड 'ख' | 
| (विद्वान) | (शासक) | 
| (1) अल
  बिरूनी | महमूद गजनवी | 
| (2) इन
  बतूता | मुहम्मद बिन तुगलक | 
| (3). बर्नियर | शाहजहाँ     
            | 
प्रश्न 3. खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
| खण्ड 'क' | खण्ड 'ख'   | 
| (विद्वान) | (देश) | 
| (1) मनूची | समरकंद | 
| (2) ज्यौं
  बैप्टिस्ट तैवर्निय | इटली | 
| (3) दुआर्ते
  बारबोसा | फ्रांस | 
| (4) अब्दुर
  रज्जाक | पुर्तगाल | 
उत्तर:
| खण्ड 'क' | खण्ड 'ख' | 
| (विद्वान) | (देश) | 
| (1) मनूची 
                       
     | इटली  | 
| (2) ज्यौं
  बैप्टिस्ट तैवर्निय | फ्रांस | 
| (3) दुआर्ते
  बारबोसा | पुर्तगाल | 
| (4) अब्दुर
  रज्जाक | समरकंद    | 
प्रश्न 1. 
अल बिरूनी का जन्म कब व कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
अल बिरूनी का जन्म 973 ई. में ख्वारिज्म
(उज्बेकिस्तान) में हुआ था। 
प्रश्न 2. 
अल बिरूनी कौन-कौन सी भाषा जानता था ? 
उत्तर:
अल बिरूनी फारसी, सीरियाई, संस्कृत, हिब्रू इत्यादि भाषाएँ जानता था। 
प्रश्न 3. 
अल बिरूनी की प्रमुख कृति का क्या नाम है?
अथवा 
अल बिरूनी द्वारा भारत के धर्म, दर्शन, खगोल विज्ञान तथा कानून पर लिखी गई पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:
'किताब-उल-हिन्द'। 
प्रश्न 4. 
इब्न बतूता का यात्रा वृत्तान्त किस नाम से
जाना जाता है?
उत्तर:
इब्न बतूता का यात्रा वृत्तान्त 'रिला' के नाम से जाना जाता है। 
प्रश्न 5. 
इन बतूता कहाँ का निवासी था? 
उत्तर:
मोरक्को का। 
प्रश्न 6. 
इब्न बतूता सिंध कब और कैसे पहुँचा? 
उत्तर:
इब्न बतूता 1333 ई. में मध्य
एशिया के रास्ते होकर स्थलमार्ग से सिंध पहुँचा। 
प्रश्न 7. 
इन बतूता किस शासक के समय भारत आया था ? 
उत्तर:
इब्न बतूता मुहम्मद बिन तुगलक के समय भारत आया
था।
प्रश्न 8. 
उस विदेशी यात्री का नाम लिखिए जिसे मुहम्मद
बिन तुगलक ने दिल्ली का काजी (न्यायाधीश) कई वर्षों के लिए नियुक्त किया?
उत्तर:
मुहम्मद बिन तुगलक ने इब्न बतूता को दिल्ली का
काजी नियुक्त किया था।।
प्रश्न 9. 
चीन के विषय में इब्न बतूता के वृत्तान्त की
तुलना किसके वृत्तान्त से की जाती है? 
उत्तर:
मार्को पोलो के वृत्तांत से। 
प्रश्न 10. 
फ्रांस्वा बर्नियर कौन था?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शनिक और एक इतिहासकार था। 
प्रश्न 11. 
बर्नियर कितने समय तक भारत में रहा? 
उत्तर:
12 वर्ष (1656-1668 ई.) तक। 
प्रश्न 12. 
बर्नियर किसके चिकित्सक के रूप में मुगल दरबार
से जुड़ा था?
अथवा 
आप किस प्रकार सोचते हैं कि फ्रांस्वा बर्नियर
मुगल दरबार से नजदीकी से जुड़ा रहा? 
उत्तर:फ्रांस के शासक लुई सोलहवें को। 
प्रश्न 13: 
बर्नियर ने अपनी प्रमुख कृति को किसे समर्पित
किया था? 
उत्तर:
फ्रांस के शासक लुई सोलहवें को।
प्रश्न 14. 
अल बिरूनी की समझ में बाधक अवरोध कौन-कौन से थे? 
उत्तर:
अल बिरूनी की समझ में बाधक अवरोध थे- भाषा, धार्मिक अवस्था व प्रथा
में भिन्नता तथा अभिमान। 
प्रश्न 15. 
इब्न बतूता ने भारत की किन बातों का विशेष : 'से वर्णन किया है ? 
उत्तर:
इब्न बतूता ने डाक-व्यवस्था, पान तथा नारियल का विशेष
रूप से वर्णन अपने ग्रन्थ 'रिला' में किया है। 
प्रश्न 16. 
इब्न बतूता ने भारत के किस शहर को सबसे बड़ा
कहा है ?
उत्तर:
दिल्ली को इब्न बतूता ने भारत का सबसे बड़ा शहर
कहा है। 
प्रश्न 17. 
भारत के उन दो नगरों के नाम लिखिए जिनका इन
बतूता ने दौरा किया और विश्ववादी संस्कृति पाई।
उत्तर:
दिल्ली तथा दौलताबाद। 
प्रश्न 18. 
ताराबबाद किसे कहा जाता था ? 
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष तथा महिला गायकों के लिए एक
बाजार होता था जिसे ताराबबाद कहा जाता था। 
प्रश्न 19. 
इब्न बतूता ने कितने प्रकार की डाक-व्यवस्था का
वर्णन किया है ? 
उत्तर:
इब्न बतूता ने दो प्रकार की डाक-व्यवस्था का
वर्णन किया है । 
1.        
अश्व आधारित डाक-व्यवस्था, तथा 
2.        
पैदल डाक-व्यवस्था। 
प्रश्न 20.
उलुक' एवं 'दावा' में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उलुक' अश्व डाक व्यवस्था को कहा जाता
था जबकि 'दावा' पैदल डाक
व्यवस्था को। उलुक प्रति चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चलित
होती थी, जबकि 'दावा' में प्रति मील तीन अवस्थान होते थे। 
प्रश्न 21. 
बर्नियर के ग्रन्थ का क्या नाम है ?
उत्तर:
ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर'। 
प्रश्न 22. 
फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार भारत तथा
यूरोप के मध्य मूल असमानताओं में से एक कौन-सी थी ? 
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत में यूरोप के विपरीत
निजी भू-स्वामित्व का सर्वथा अभाव पाया जाता है। 
प्रश्न 23. 
किसने यह तर्क दिया कि भारत में उपनिवेशवाद से
पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था ? 
उत्तर:
यह तर्क कार्ल मार्क्स का था। 
प्रश्न 24. 
किस विदेशी यात्री ने मुगलकालीन शहरों को शिविर
नगर' कहा है? 
अथवा 
उस फ्रांसीसी राजनीतिक दार्शनिक का नाम लिखिए
जो दारा शिकोह का चिकित्सक था।  
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर।    
प्रश्न 25. 
किस यात्री ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को भेंट
में देने के लिए घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे ?
उत्तर:
मोरक्को निवासी इब्न बतूता ने। 
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1)
प्रश्न 1. 
अल बिरूनी गजनी किस प्रकार पहुँचा ?
उत्तर:
अल बिरूनी उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म का निवासी
था। 1017 ई. में गज़नी के सुल्तान महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और यहाँ के कई
कवियों व विद्वानों को अपने साथ गज़नी ले गया। अल बिरूनी भी उनमें से एक था।
प्रश्न 2. 
अल बिरूनी के लेखन कार्य की कोई दो विशेषताएँ
लिखिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के लेखन कार्य की दो विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं
1.        
अल बिरूनी ने अपने लेखन कार्य में अरबी भाषा का
प्रयोग किया, 
2.        
अल बिरूनी द्वारा लिखित ग्रन्थों की लेखन शैली के
विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था। 
प्रश्न 3. 
"इन बतूता एक हठीला यात्री
था।" कथन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता को यात्राओं से न तो घबराहट होती ५
और न ही थकान; उसने उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका में स्थित अपने निवास स्थान मोरक्को वापस
जाने से पूर्व कई वर्षों तक उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी
एशिया, मध्य एशिया भारतीय उपमहाद्वीप एवं चीन के कई
भागों की यात्राएँ कीं। इसी कारण उसे हठीला यात्री कहा जाता है।
प्रश्न 4. 
भारत का वृत्तान्त लिखने में अल बिरूनी के
समक्ष कौन-कौन सी बाधाएँ आयीं ? किन्हीं दो को बताइए।
उत्तर:
1.        
भाषा-अल बिरूनी के अनुसार संस्कृत भाषा अरबी व फारसी
भाषा से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धान्तों को एक भाषा से दूसरी भाषा में
अनुवाद करना सरल नहीं था।
2.        
धार्मिक अवस्था व प्रथाएँ भारत में विभिन्न धार्मिक
विश्वास व प्रथाएँ प्रचलित थीं जिन्हें समझने के लिए उसे वेदों व ब्राह्मण
ग्रन्थों का सहारा लेना पड़ा। 
प्रश्न 5. 
इब्न बतूता भारत की डाक-प्रणाली की कार्यकुशलता
देखकर क्यों चकित हुआ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता भारत की डाक-प्रणाली की कार्यकुशलता
देखकर चकित हुआ क्योंकि भारत की डाक-प्रणाली इतनी अधिक . . कुशल थी कि जहाँ सिन्ध
से दिल्ली तक की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं सुल्तान तक
गुप्तचरों की खबर मात्र पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थी। इसके अतिरिक्त इससे
व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजी जा सकती थी बल्कि अल्प सूचना
पर माल भी भेजा जा सकता था।
प्रश्न 6. 
मॉन्टेस्क्यू कौन था ? इसका प्राच्य
निरंकुशवाद का सिद्धान्त क्या था ?
उत्तर:
मॉन्टेस्क्यू एक फ्रांसीसी दार्शनिक था जिसके
प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त के अनुसार एशिया में शासक अपनी प्रजा पर असीम
प्रभुत्व का उपभोग करते थे और उसे दासता व निर्धनता की स्थिति में रखते थे। समस्त
भूमि पर शासक का स्वामित्व होता था तथा निजी स्वामित्व का कोई अस्तित्व नहीं था।
प्रश्न 7. 
"फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा
प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।"कथन को स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण
समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था। वास्तव में 16वीं व 17वीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में बड़े पैमाने पर सामाजिक व आर्थिक विभेद
पाया जाता था। एक ओर बड़े जमींदार थे तो दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक थे; इन दोनों के बीच में बड़े किसान थे, जो किराए
के श्रम का उपयोग करते थे और उत्पादन में जुटे रहते थे। कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी मुश्किल से अपने जीवनयापन लायक उत्पादन कर पाते थे।
प्रश्न 8. 
"इब्न बतूता के विवरण के
अनुसार दासों में काफी विभिन्नताएँ थीं।" कथन को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
इब्न बतूता के विवरण से प्रतीत होता है कि
दासों में काफी विभिन्नता थी। सुल्तान अपने अमीरों पर निगरानी रखने के लिए भी
दासियों को नियुक्त करते थे। दासों को घरेलू श्रम के लिए भी प्रयोग में लाया जाता
था। वे विशेष रूप से पालकी या डोले में . महिलाओं और पुरुषों को ले जाने का कार्य
करते थे। 
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2)
प्रश्न 1. 
अल बिकनी की जीवन-यात्रा का संक्षिप्त विवरण
दीजिए।
उत्तर:
शो के आरम्भ में भारत में आये अल बिरूनी का
जन्म 973 ई. में आधुनिक उज्वेकिस्तान में स्थित र । नामक स्थान पर हुआ था। अल
बिरूनी एक विद्वान व्यक्ति तथा अनेक भाषाओं का ज्ञाता था, जैसे—सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत इत्यादि। अल बिरूनी यूनानी
भाषा नहीं जानता था फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के विचारों तथा
कार्यों से पूर्णरूपेण परिचित था। अल बिरूनी ने यूनानी विचारकों तथा उनके साहित्य
को अरबी अनुवाद से पढ़ा। इनमें धीरे-धीरे अल बिरूनी को गज़नी अच्छा लगने लगा तथा
महमूद गज़नवी के भारत आक्रमण के समय वह भारत आ गया। 
प्रश्न 2. 
हिन्द, हिन्दू, हिन्दवी तथा हिन्दुस्तान शब्द कैसे प्रचलन में आये? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि 'हिन्दू' शब्द लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में प्रयोग होने वाले एक प्राचीन फारसी शब्द
से निकला है जिसका प्रयोग सिन्धु नदी (Indus) के पूर्व
के क्षेत्र के लिए होता था। अरबों ने इस फारसी शब्द का प्रयोग जारी रखा तथा इस
क्षेत्र को 'अल-हिन्द' तथा
यहाँ के निवासियों को हिन्दी कहने लगे।
कालांतर में तुर्कों ने (लगभग 10-13वीं शताब्दी के मध्य)
सिन्धु से पूर्व में रहने वाले भारतीयों को हिन्दू पुकारना आरम्भ कर दिया तथा उनके
निवास क्षेत्र को हिंदुस्तान एवं उनकी भाषा को हिन्दवी कहने लगे। वस्तुतः हिन्द, हिन्दू तथा हिन्दवी शब्द तत्कालीन समय तक कोई धार्मिक पहचान, अर्थ अथवा प्रतीक के रूप में नहीं थे। धार्मिक सन्दर्भ में इन शब्दों का
प्रयोग मध्यकाल में विशेषकर 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में हुआ।
प्रश्न 3. इब्न बतूता के समय
यात्राएँ अति दुष्कर थीं, स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
इब्न बतूता देशाटन का बहुत ही शौकीन था। इब्न
बतूता नए-नए देशों, नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं और उनकी ममताओं को जानने हेतु बहुत उत्सुक रहता था। 1332-33 ई. के उस काल में जब इब्न बतूता ने अपनी यात्राएँ प्रारम्भ की थीं, यात्रा करना एक बहुत ही कठिन और जोखिम भरा कार्य था। कई प्रकार की
कठिनाइयाँ यात्रा में व्यवधान डालती थीं। यात्रा में चोर, लुटेरों समुद्री डाकुओं, जंगली जीवों, बीमारियों का भय रहता था तथा यात्रा के साधन भी नहीं थे।
इब्न बतूता के अनुसार मुल्तान से दिल्ली और
सिन्ध पहुँचने में क्रमशः चालीस और पचास दिन का समय लगता था। जब वह मुल्तान से
दिल्ली की यात्रा पर था तो रास्ते में डाकुओं ने उसके कारवाँ पर हमला बोल दिया, इब्न बतूता बुरी तरह घायल
हो गया और कई सहयात्रियों की डाकुओं ने हत्या कर दी।
प्रश्न 4. अल बिरूनी ने
ब्राह्मणवादी व्यवस्था की अपवित्रता की मान्यता को क्यों अस्वीकार कर दिया ? क्या जाति-व्यवस्था के नियमों का पालन पूर्ण कठोरता से किया जाता था ?
उत्तर: 
अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में जो
भी विवरण दिया है वह पूर्णतया संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से प्रभावित है। जिन
नियमों का वर्णन इन ग्रन्थों में ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था को  संचालित
करने हेतु किया गया है वह वास्तविक रूप में समाज में उतनी कठोरता से लागू नहीं थी, इनमें लचीलापन था। उदाहरण
हेतु, अंत्यज नामक श्रेणियों के लोग किसानों और जमींदारों
द्वारा प्रायः । सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होते थे लेकिन फिर भी ये आर्थिक
तन्त्र में शामिल होते थे। 
प्रश्न 5. 
इब्न बतूता ने भारतीय शहरों के सम्बन्ध में जो
लिखा है उस पर प्रकाश डालिए। 
अथवा 
"इब्न बतूता ने भारतीय
उपमहाद्वीप के शहरों को लोगों के लिए व्यापक अवसरों से भरपूर पाया।" दिल्ली
शहर के संदर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता मोरक्को का निवासी था। वह मुहम्मद
बिन तुगलक के शासनकाल में भारत आया था। उसने भारतीय शहरों के बारे में लिखा था कि
भारतीय शहर घनी आबादी वाले व समृद्ध हैं। उसने दिल्ली को भारत का सबसे बड़ा व
विशाल जनसंख्या वाला शहर बताया। उसने महाराष्ट्र के दौलताबाद शहर को भी आकार में
दिल्ली के समकक्ष बताया। शहरों के बाजार मात्र आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे
बल्कि सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक
मस्जिद व मन्दिर होते थे। शहर आवश्यक इच्छा, साधन और कौशल वाले लोगों के लिए
व्यापक अवसरों से भरपूर थे।
प्रश्न 6. भारतीय ग्रामीण
परिवेश (कृषि) तथा व्यापार और वाणिज्य के सम्बन्ध में इब्न बतूता के वर्णन पर
टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार भारतीय शहरों की समृद्धि
का आधार भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी। इब्न बतूता का यह कथन पूर्णरूपेण सत्य है
क्योंकि शहरों की समृद्धि का सीधा सम्बन्ध कृषि अर्थव्यवस्था से होता है। भारतीय
भूमि बहुत उपजाऊ और उत्पादक थी। गंगा-यमुना जैसी नदियों के कारण सिंचाई हेतु पानी
की पर्याप्त उपलब्धता और मौसम की अनुकूलता के कारण वर्ष में किसान दो-दो फसलें
लेते थे।
व्यापार और वाणिज्य के सम्बन्ध में इब्न बतूता
ने यहाँ की शिल्पकारी की वस्तुयें तथा सूती कपड़ों, महीन, मलमल, साटन, ज़री
आदि के सम्बन्ध में वर्णन किया है कि इनकी अन्य देशों में बहुत माँग थी। भारतीय
उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर एशियाई तन्त्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ
था। इसीलिए निर्यात के द्वारा यहाँ के शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी लाभ
होता था। निर्यात की वस्तुओं में महीन मलमल विश्व प्रसिद्ध था जिसकी कुछ किस्में
इतनी महँगी होती थीं कि उन्हें पहनना सिर्फ राजा-महाराजाओं, अमीरों और सरदारों के बस की ही बात थी।
प्रश्न 7. भारतीय संचार
प्रणाली के संदर्भ में इब्न बतूता के विवरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार राज्य व्यापारियों को
प्रोत्साहित करने के लिए विशेष उपाय करता था; उदाहरणार्थ-राज्य द्वारा लगभग
सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय एवं विश्राम गृह की स्थापना करना तथा डाक प्रणाली
के जरिए संचार की सुविधा उपलब्ध कराना। डाक प्रणाली से व्यापारियों के लिए लम्बी
दूरी तक सूचना भेजना तथा उधार प्रेषित करने के साथ-साथ अल्प सूचना पर माल भेजना भी
संभव हुआ। इस प्रणाली की कुशलता के फलस्वरूप गुप्तचरों की खबरें सिन्ध से दिल्ली
तक मात्र पाँच दिनों में पहुँच जाती थी जबकि सामान्यतः इस यात्रा में पचास दिन का
समय लगता था जिसने इब्न बतूता को चकित कर दिया। यह डाक (व्यवस्था) दो प्रकार की
थी-
1.        
अश्व डाक व्यवस्था यानि 'उलुक' जो हर चार मील की दूरी पर स्थापित घोड़ों द्वारा चालित थी तथा
2.        
पैदल डाक व्यवस्था यानि 'दावा' जिसमें प्रति मील तीन अवस्थान होते थे। अश्व डाक व्यवस्था पैदल डाक
व्यवस्था की अपेक्षा तीव्र थी।
प्रश्न 8. 'ट्रैवल्स इन द
मुगल एम्पायर' नामक ग्रन्थ में बर्नियर भारत को पश्चिमी
जगत की तुलना में अल्प विकसित व निम्न श्रेणी का दर्शाना चाहता था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' बर्नियर की भारतीय उपमहाद्वीप की यात्राओं का वर्णन है। यह ग्रन्थ बर्नियर
की गहन आलोचनात्मक,चिन्तन दृष्टि का उदाहरण है, लेकिन बर्नियर का यह दृष्टिकोण पूर्वाग्रह से प्रेरित तथा एकपक्षीय है।
बर्नियर ने मुगलकालीन इतिहास को भारत की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में न रखकर एक वैश्विक ढाँचे में ढालने का
प्रयास किया। वह यूरोप के परिप्रेक्ष्य में मुगलकालीन इतिहास की तुलना निरन्तर
करने का प्रयास करता रहा।
बर्नियर के अनुसार यूरोप की प्रशासनिक व्यवस्था
तथा यूरोप की सामाजिक, आर्थिक स्थिति भारत से कहीं बेहतर है। वास्तव में
उसका भारत चित्रण पूरी तरह पक्षपात पर आधारित है। उसने भारत में जो भी विभिन्नताएँ
देखीं; उनको प्रत्येक स्थान पर तुलनात्मक दृष्टिकोण से
इस प्रकार क्रमानुसार वर्णित किया है ताकि पश्चिमी जगत के पाठकों को यूरोप की
श्रेष्ठता और भारत की हीनता का स्पष्ट बोध हो सके।
प्रश्न 9. 
पेलसर्ट नामक डच यात्री की भारत यात्रा का
वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक डच यात्री ने सत्रहवीं शताब्दी
के आरंभिक दशकों में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। बर्नियर की ही तरह वह भी
लोगों में व्यापक गरीबी देखकर अचम्भित था। लोग 'इतनी दुखद गरीबी' में रहते हैं कि इनके जीवन को नितान्त अभाव के घर तथा कठोर कष्ट दुर्भाग्य
के आवास के रूप में चित्रित अथवा ठीक प्रकार से वर्णित किया जा सकता है। राज्य को
उत्तरदायी ठहराते हुए वह कहता है : "कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता है कि
पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।"
प्रश्न 10. बर्नियर के
अनुसार राज्य का भू-स्वामित्व कृषि के विकास पर विनाशकारी प्रभाव डालता है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
मुगल भारत में भूमि स्वामित्व के बारे में
बर्नियर का विरोध क्यों था? परख कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार राज्य द्वारा भूमि के
स्वामित्व को अपने अधिकार में लेना कृषि के विकास पर विनाशकारी प्रभाव डालता है।
बर्नियर के अनुसार भारत की सांधारण जनता की हीन स्थिति का कारण उनका भूमि पर
अधिकार न होना था।
भूमि पर खेती करने वाले लोग अपने पश्चात् भूमि
अपने बच्चों को नहीं दे सकते थे, जिस कारण कृषक भूमि की
उत्पादकता एवं उत्पादन को बढ़ाने में विशेष रुचि नहीं लेते थे। निजी भू-स्वामित्व
न होने के कारण शासक वर्ग, अमीरों तथा सरदारों को
छोड़कर शेष समाज के जीवन स्तर में लगातार पतन की स्थिति बनी रहती थी। बर्नियर का
निजी भू-स्वामित्व पर दृढ़ विश्वास था क्योंकि राजकीय स्वामित्व अर्थव्यवस्था और
समाज पर विनाशकारी प्रभाव डालता है।
प्रश्न 11. भारतीय महिलाओं
की मध्यकालीन सामाजिक स्थिति के बारे में यूरोपीय लेखकों के क्या विचार थे ?
उत्तर:
विभिन्न यूरोपीय यात्री जो भारत आये उन्होंने
सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर्गत मध्यकालीन भारतीय महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर
अपने विचार प्रकट किये हैं। इन विचारकों ने पाया कि भारतीय महिलाओं से किया जाने
वाला व्यवहार पश्चिमी समाजों से सर्वथा भिन्न था। बर्नियर ने इस सन्दर्भ में भारत
की क्रूरतम अमानवीय सती-प्रथा का उदाहरण दिया है; जो भारत के अतिरिक्त
विश्व के किसी भी देश में नहीं थी। सती-प्रथा के सम्बन्ध में बर्नियर ने काफी
विस्तृत रूप से वर्णन किया है। यह मार्मिक वर्णन निश्चय ही यूरोप के लोगों को
झकझोर देता होगा।
परन्तु सती-प्रथा के अतिरिक्त यूरोपीय लेखकों
ने महिलाओं के सामाजिक जीवन के अन्य पक्षों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
लेखकों के अनुसार उनका जीवन सती-प्रथा के अतिरिक्त कई और चीजों के चारों ओर घूमता
था। वे केवल घरों की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहती थीं। कृषि तथा कृषि से
सम्बन्धित कार्यों जैसे पशुपालन में उनके श्रम का बहुत महत्व था। व्यापारिक
परिवारों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भागीदारी रखती थीं। कुछ महिलाएँ
प्रशासनिक कार्यों में भी भाग लेती थीं। 
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत के 10वीं से 17वीं सदी तक के इतिहास के पुनर्निर्माण
में विदेशी यात्रियों के विवरणों का क्या योगदान है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निश्चय ही यात्रियों के वृत्तान्त इतिहास के
निर्माण में अत्यन्त सहायक होते हैं। यही स्थिति हम 10वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य भी देखते हैं जिसमें अनेक यात्री भारत आये तथा
उन्होंने अपनी समझ के अनुसार भारत का विवरण प्रस्तुत किया। इस तथ्य को समझने में
निम्नलिखित बिन्दु सहायक हो सकते हैं
1.        
अधिकांश यात्री भिन्न-भिन्न देशों, भिन्न-भिन्न आर्थिक तथा
सामाजिक परिदृश्य से आये थे।
2.        
स्थानीय लेखक भारत की तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन
करने में रुचि नहीं रखते थे, जबकि इन विदेशी लेखकों ने भारत
की तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों
पर विशेष विवरण दिए हैं।
3.        
10वीं शताब्दी के आस-पास भारतीय विद्वान विदेशों के साथ
सम्बन्ध बनाने तथा उनके विषय में जानने में अधिक रुचि नहीं रखते थे जिसके
परिणामस्वरूप वे तुलनात्मक अध्ययन करने में असमर्थ थे।
4.        
विदेशी यात्रियों ने अपने विवरण में उन तथ्यों को
अधिक महत्व दिया है जो उन्हें विचित्र जान पड़ते थे। इससे उनके विवरण में रोचकता आ
जाती थी। 
5.        
विदेशी यात्रियों के विवरण तत्कालीन राजदरबार के
क्रियाकलापों तथा धार्मिक विश्वासों की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं
जिससे इतिहास निर्माण में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है।
उपर्युक्त बिन्दुओं को हम पृथक्-पृथक्
यात्रियों के विवरण के साथ भी समझ सकते हैं जो निम्नलिखित हैं
1.अल बिरूनी का विवरण अल बिरूनी
के विवरण के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं
1.        
अल बिरूनी ने तत्कालीन भारतीय समाज में वर्ण-व्यवस्था
तथा जाति-व्यवस्था का व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। 
2.        
अल बिरूनी ने तत्कालीन भारतीय समाज की रूढ़िवादिता पर
भी चर्चा की है। 
3.        
अल बिरूनी ने भारत के ज्योतिष, खगोल-विज्ञान तथा गणित की
विस्तार से चर्चा की है तथा इसे अद्भुत माना है। 
2. इन बतूता का विवरण:
इससे सम्बन्धित मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं -
1.        
इब्न बतूता ने भारतीय डाक-व्यवस्था को अद्भुत कहा तथा
उससे हमें परिचित भी कराया। 
2.        
इन बतूता के विवरण हमें बताते हैं कि उस समय तक भारत
में नारियल तथा पान की खेती का व्यापक प्रचलन हो गया था।
3.        
इब्न बतूता ने दासों का भी विस्तार से विवरण दिया है
जिससे ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज तथा राजनैतिक व्यवस्था में दासों की
महत्वपूर्ण भूमिका थी।
4.        
इब्न बतूता ने भारतीय बाजारों तथा व्यापारियों की
सम्पन्नता का भी व्यापक विवरण दिया है, जिससे ज्ञात होता है कि
तत्कालीन भारत आर्थिक रूप से समृद्ध था।
3. बर्नियर का विवरण:
बर्नियर ने अपने ग्रन्थ 'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' में जो विवरण दिया है, उसका संक्षिप्त तथा
बिन्दुवार विवरण निम्नलिखित है
1.        
बनियर के अनुसार भारतीयों को निजी भू-स्वामित्व का
अधिकार प्राप्त नहीं था। 
2.        
बर्नियर ने सती-प्रथा का भी विस्तार से विवरण किया
है।
3.        
बर्नियर मुगल-सेना के साथ कश्मीर गया था, अतः उसने अपनी यात्रा का
विस्तृत विवरण दिया है जिससे हमें ज्ञात होता है कि उस समय यात्रा में किन वस्तुओं
की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समकालीन यात्रियों के विवरण
इतिहास को समझने तथा उसका निर्माण करने में अत्यधिक सहायक होते हैं। 
प्रश्न 2. 
भारतीय उपमहाद्वीप में अल बिरूनी के अनुभवों का
वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी ने भारतीय उपमहाद्वीप को समझने में
कई अवरोधों का सामना किया जिनमें भाषा पहला अवरोध थी। उसके अनुसार संस्कृत, अरबी तथा फारसी से
अत्यधिक भिन्न थी जिस कारण विचारों तथा सिद्धान्तों का अन्य भाषा में अनुवाद करना
कठिन था। धार्मिक अवस्था तथा प्रथा में भिन्नता दूसरा अवरोध था, जबकि तीसरा अवरोध अभिमान था। इन अवरोधों के बाद भी वह लगभग पूर्णतः
ब्राह्मणों द्वारा रचित कृतियों पर आश्रित रहा।
उसने प्रायः वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, मनुस्मृति, पतंजलि की कृतियों आदि से अंश उद्धृत कर भारतीय समाज को समझने का प्रयास
किया। अल बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की
खोज के जरिए जाति व्यवस्था को समझने तथा व्याख्या करने का प्रयास किया। उसके
अनुसार प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता हासिल थी-
1.        
घुड़सवार व शासक वर्ग, 
2.        
भिक्षु व आनुष्ठानिक पुरोहित, 
3.        
चिकित्सक, खगोलशास्त्री व अन्य वैज्ञानिक
तथा 
4.        
कृषक व शिल्पकार। उसके अनुसार सामाजिक वर्ग केवल भारत
तक ही सीमित नहीं था।
वहीं, इस्लाम में सभी लोग एकसमान थे
तथा उनमें केवल धार्मिकता के पालन में भिन्नताएँ दिखलायी पड़ती थी।
अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में
ब्राह्मणवादी व्याख्या को माना लेकिन अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार नहीं किया।
वह लिखता है कि अपवित्र होने वाली हर वस्तु
अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास करती है तथा सफल
होती है। सूर्य हवा को साफ करता है तथा समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से
बचाता है। यदि यह नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन सम्भव नहीं हो पाता। वह जाति
व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा को प्रकृति के नियमों के विरुद्ध
मानता था। उसका जाति व्यवस्था का वर्णन उसके नियामक संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से
पूर्णतः प्रभावित था।
प्रश्न 3. 
इन बतूता ने अपनी भारतीय यात्रा के सम्बन्ध में
दिये गये वृत्तान्त में भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के किन-किन बिन्दुओं
को उजागर किया है ?
उत्तर:
इब्न बतूता ने अपने अरबी भाषा में लिखे गये
यात्रा वृतान्त, जिसे रिहला कहा जाता है, में भारतीय उपमहाद्वीप
की चौदहवीं शताब्दी के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का बहुत ही रोचक एवं विस्तृत
वर्णन किया है। इब्न बतूता के यात्रा वृत्तान्त का यह विवरण उसको गहन सूक्ष्म
अवलोकन दृष्टि का उदाहरण है। इब्न बतूता द्वारा वर्णित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार
हैं
(1) अपरिचित वस्तुएँ :
नारियल और पान:
इब्न बतूता भारत के धार्मिक और सामाजिक जीवन में
प्रयोग की जाने वाली दो वस्तुओं नारियल और पान को देखकर अचम्भित हुआ क्योंकि ये
दोनों वस्तुएँ उसके अपने देश में नहीं पायी जाती थीं। नारियल के विषय में इब्न
बतूता लिखता है कि इसके वृक्ष प्रकृति के अनोखे और विस्मयकारी वृक्षों में से एक
हैं। पेड़ तो खजूर के जैसा ही होता है, परन्तु इसमें जो फल लगते हैं; उनकी आकृति मानव के सिर के समान होती है।
नारियल के रेशों से रस्सी निर्मित की जाती है; जिसके विविध प्रयोग होते
हैं। नारियल गिरी का प्रयोग खाने में होता है। इसी प्रकार पान के सम्बन्ध में इब्न
बतूता का कहना है कि इसकी बेल अंगूर की लता के समान होती है, लेकिन इसमें कोई फल नहीं लमता। यह पत्तों के लिए उगाया जाता है और इसे
सुपारी जैसी विविध चीजों के साथ मुख में रखकर चबाया जाता है। इब्न बतूता के विवरण
से प्रतीत होता है कि उस समय नारियल और पान की व्यावसायिक खेती का प्रचलन हो गया
था।
(2) भारतीय नगर और ग्रामीण
क्षेत्र:
बाजारों में केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक
व सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी होती थीं। दिल्ली भारत का बहुत बड़ा नगर था। शहरों में
शिल्पकारी तथा वस्त्र-उद्योग भी बहुत विकसित अवस्था में थे। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र
के सम्बन्ध में इब्न बत्ता का कथन है कि भारतीय कृषि बहुत उन्नत थी। भूमि उपजाऊ थी; कृषक साल में एक ही खेत
से दो फसलें ले लेते थे। कृषि के अनुकूल भौगोलिक वातावरण तथा मौसम की अनुकूलता के
कारण कृषक वर्ग खुशहाल था। शहरों की समृद्धि का आधार भी भारतीय ग्रामीण क्षेत्र की
अर्थव्यवस्था थी।
(3) संचार (डाक) प्रणाली:
इब्न बतूता को तत्कालीन डाक प्रणाली ने बहुत
प्रभावित किया। उसके अनुसार विश्व में उस समय इतनी सुगठित डाक-व्यवस्था का उदाहरण
शायद ही कहीं मिलता हो।
(4) दास प्रथा:
तत्कालीन समय में भारत में प्रचलित दास प्रथा
का भी इब्न बतूता ने व्यापक वर्णन किया है जिसके अनुसार उसने यहाँ प्रचुर संख्या
में दास-दासियों के व्यापार को देखा। अधिकांश परिवार जो समर्थ थे; वे अपनी सेवा में
दास-दासियों को रखते थे।
इस प्रकार इब्न बतूता ने अपनी भारत यात्रा के
सम्बन्ध में अपने विवरण में व्यापक रूप से लगभग सभी सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक
बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए अपने अभिमत को बहुत ही कुशलतापूर्वक व्यक्त किया
है।
प्रश्न 4. 
फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई पूर्व और
पश्चिम की तुलना को उल्लेखित कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम वह शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा
शिकोह के चिकित्सक के रूप में तत्पश्चात् मुगल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर
दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी एवं वैज्ञानिक के रूप में जुड़ा रहा। उसने अपने
यात्रा वृत्तान्त अपनी पुस्तक 'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' में लिखे।
पूर्व और पश्चिम की तुलना:
(i) बर्नियर ने देश के कई
भागों की यात्रा की तथा जो देखा उसके विषय में विवरण लिखे। वह सामान्यतया भारत में
जो देखता था; उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था।
उसने अपनी प्रमुख कृति को फ्रांस के शासक लुई XIV को
समर्पित किया था। उसने प्रत्येक दृष्टान्त में भारत की स्थिति को यूरोप में हुए
विकास की तुलना में दयनीय बताया।
(ii) बर्नियर का ग्रन्थ 'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' उसके अपने गहन
प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तदृष्टि एवं गहन चिन्तन के लिए
उल्लेखनीय है। इस ग्रन्थ में बर्नियर ने मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप
से की है तथा यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाया है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम
के रूप में दिखाया है अर्थात यूरोप के विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो
भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत अर्थात् पूर्व पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
(iii) बर्नियर भारतीय समाज
को दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना बताता है जो अमीर एवं शक्तिशाली शासक वर्गों
द्वारा अधीन बनाया जाता है। गरीबों में सबसे गरीब एवं अमीरों में सबसे अमीर
व्यक्तियों के बीच नाममात्र का भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था, जबकि यूरोप में अर्थात् पश्चिम में यह स्थिति बिल्कुल विपरीत थी। वहाँ
मध्यम वर्ग के लोग मिलते हैं।
(iv) भारत विकास की दृष्टि
से पिछड़ा हुआ था, जबकि यूरोप विकसित स्थिति में था।
(v) बर्नियर के अनुसार
तत्कालीन भारत में राजा और अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई में
जीवन-यापन करता था। .
(vi) भारत में सत्रहवीं
शताब्दी में जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत भाग
नगरों में रहता था। यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से
अधिक था।
(vii) बर्नियर के विवरण से
एक जटिल सामाजिक सच्चाई भी उजागर होती है। उसका मत था कि यद्यपि उत्पादन प्रत्येक
जगह पतनोन्मुख था फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत
में आती थीं, क्योंकि उत्पादों का सोने व चाँदी के बदले
निर्यात होता था। उसने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व को भी स्वीकार किया
है।
(viii) यूरोप का व्यापारी
वर्ग भी सुदृढ़ व संगठित था।
(ix) बर्नियर ने तत्कालीन
भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को दयनीय बताया, जबकि
इस काल में यूरोप में महिलाओं
की स्थिति को अच्छी बताया। . . इस प्रकार
बर्नियर ने पूर्व (भारत) को पश्चिम (यूरोप) की तुलना में निम्न कोटि का बताया।
प्रश्न 5. मान्टेस्क्यू
(फ्रांस) तथा कार्ल मार्क्स (जर्मनी) जैसे विचारकों पर बर्नियर के वर्णनों का क्या
प्रभाव पड़ा? व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में भू-स्वामित्व के संदर्भ में बर्नियर
के दिए गए विवरण का अठारहवीं शताब्दी से पश्चिमी विचारकों पर प्रभाव का वर्णन
कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्राएँ कर
उनके विषय में विवरण लिखे। फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू तथा कार्ल मार्क्स
जैसे पश्चिमी विचारकों को निश्चय ही बर्नियर के विवरणों ने व्यापक रूप से प्रभावित
किया जिसके सम्बन्ध में निम्न उदाहरण दिए जा सकते हैं -
(1) मॉन्टेस्क्यू पर
बर्नियर के विवरण का प्रभाव-फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने बर्नियर के
विवरणों के आधार पर प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त का विश्लेषण किया। प्राच्य
निरंकुशवाद के सिद्धान्त के अनुसार मुगलकाल में समस्त भूमि का स्वामी सम्राट होता
था। लोगों का भूमि पर निजी स्वामित्व नहीं था, शासक अपनी प्रजा के ऊपर
अबाधित प्रभुता का उपभोग करते थे। प्रजा गरीबी तथा दासता के बीच किसी प्रकार
जीवन-निर्वाह करती थी। शासक वर्ग द्वारा इस अबाधित प्रभुता के उपभोग के कारण राजा
और सरदारों को छोड़कर अन्य लोग कठिन परिस्थितियों में गुज़ारा करने के लिए विवश
थे। 
(2) कार्ल मार्क्स पर
बर्नियर के विवरण का प्रभाव- कार्ल मार्क्स एक प्रसिद्ध साम्यवादी विचारक था
जिसने 19वीं शताब्दी में बर्नियर के इस भूमि के राजकीय स्वामित्व के विचार की
व्याख्या कुछ इस प्रकार से की है. कार्ल मार्क्स ने अपनी अवधारणा में यह कहा कि
अधिशेष का ग्रहण उपनिवेशवाद से पूर्व भारत तथा अन्य एशियाई देशों में राज्य द्वारा
किया जाता था, फलस्वरूप एक ऐसा समाज अस्तित्व में आया; जो बड़ी संख्या में समतामूलक तथा स्वायत्त ग्रामीण समुदायों से बना था। ये
स्वायत्त तथा समतामूलक ग्रामीण समुदाय राज्य द्वारा नियन्त्रित होते थे।
इन समुदायों की स्वायत्तता की रक्षा राज
दरबारों द्वारा जब तक राजस्व या अधिशेष की आपूर्ति बिना किसी रुकावट के निर्बाध
रूप से होती रहती थी, की जाती थी। अधिशेष की आपूर्ति में बाधा आने पर राज्य
द्वारा इनकी स्वायत्तता का हनन कर दिया जाता था। इस प्रणाली को निष्क्रिय प्रणाली
माना जाता था।
वास्तव में भूमि से मिलने वाला राजस्व
मुगल-साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी। मुगल-साम्राज्य अपनी आमदनी का बहुत बड़ा
हिस्सा कृषि-उत्पादन से प्राप्त करता था। इसलिए अधिशेष की वसूली हेतु राज्य के
कर्मचारी, अधिशेष निर्धारित करने वाले, वसूली करने वाले, हिसाब रखने वाले ग्रामीण समुदायों पर कठोरता से नियन्त्रण रखने का प्रयास
करते थे तथा समय पर अधिशेष की वसूली उनका मुख्य लक्ष्य था।

 
 
						 
 
 Hello, This is the plateform for curious student. those students want faster your preparation, lets come with us and write a new chapter of your bright future.
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