Class-12 History
Chapter- 3 (बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. महाभारत की मुख्य कथा क्या है?
उत्तर: महाभारत की मुख्य कथा दो परिवारों के मध्य हुए युद्ध का
वर्णन है।
प्रश्न 2. महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने की परियोजना किसके नेतृत्व
में तथा कब शुरू हुई ?
उत्तर: सन् 1919
में बी. एस. सुकथांकर के नेतृत्व में महाभारत के समालोचनात्मक
संस्करण तैयार करने की परियोजना प्रारम्भ हुई।
प्रश्न 3. कुल और जाति में क्या अन्तर है ?
उत्तर: संस्कृत ग्रन्थों में कुल शब्द का
प्रयोग परिवार के लिए तथा जाति शब्द का प्रयोग बान्धवों (सगे-सम्बन्धियों) के एक
बड़े समूह के लिए होता है। .
प्रश्न 4. पितृवंशिकता एवं मातृवंशिकता में क्या अन्तर है?
उत्तर: पितृवंशिकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र,
फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है।
मातृवंशिकता शब्द का प्रयोग तब किया जाता है, जब वंश परम्परा
माँ से जुड़ी होती है।
प्रश्न 5. महाभारत का युद्ध किन दो दलों के मध्य और क्यों हुआ था ?
उत्तर: महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के
मध्य भूमि और सत्ता पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए हुआ था।
प्रश्न 6. कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध किस वंश से था ?
उत्तर-कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध कुरु वंश से था।
प्रश्न 7. विवाह में पिता का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य क्या माना गया है ?
उत्तर: कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की
भेंट।
प्रश्न 8. बहुपत्नी प्रथा क्या है ?
उत्तर: एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परम्परा को
बहुपत्नी प्रथा कहते हैं।
प्रश्न 9. बहुपति प्रथा क्या है ?
उत्तर: एक स्त्री के अनेक पति होने की सामाजिक परम्परा को बहुपति
प्रथा कहते हैं।
प्रश्न 10. धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थ किस भाषा में लिखे गये ?
उत्तर: धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे
गये।
प्रश्न 11.मनुस्मृति से आप क्या समझते हैं ? इसकी रचना कब हुई ?
उत्तर: मनुस्मृति धर्मशास्त्रों एवं धर्मसूत्रों में सबसे बड़ा
ग्रन्थ है जिसका संकलन लगभग 200 ई. पू. से 200 ई. के मध्य हुआ।
प्रश्न 12. किस राजवंश में राजाओं के नाम से पूर्व माताओं का नाम लिखा जाता था ?
उत्तर: सातवाहन राजवंश में राजाओं को उनके मातृनाम से जाना जाता था।
प्रश्न 13. ब्राह्मणों द्वारा स्थापित दैवीय व्यवस्था में वर्ण कौन-कौन से थे ?
उत्तर:
1.
ब्राह्मण
2.
क्षत्रिय
3.
वैश्य
4.
शूद्र।
प्रश्न 14. ब्राह्मणों द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था में सबसे उच्च दर्जा एवं सबसे
निम्न दर्जा किसे प्राप्त था ?
उत्तर: सबसे उच्च दर्जा ब्राह्मणों को तथा सबसे निम्न दर्जा शूद्रों
को प्राप्त था।
प्रश्न 15. शास्त्रों के अनुसार राजा कौन हो सकते थे?
उत्तर: शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे।
प्रश्न 16. सातवाहन कुल के किस शासक ने शक राजा रुद्रदामन के परिवार से विवाह सम्बन्ध
स्थापित किए?
उत्तर गोतमी-पुत्त सिरी-सातकनि ने।
प्रश्न 17. महाकाव्य काल में चाण्डाल किसे कहा जाता था?
उत्तर: महाकाव्य काल में शवों की अंत्येष्टि तथा मृत पशुओं को छूने
वालों को चाण्डाल कहा जाता था।
प्रश्न 18. स्त्रीधन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: विवाह के समय स्त्री को मिले उपहारों पर स्त्री का स्वामित्व
माना जाता था जिसे स्त्रीधन कहा जाता था।
प्रश्न 19. महाभारत की विषयवस्तु को किन दो शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं ?
उत्तर:
1.
आख्यान तथा
2.
उपदेशात्मक।
प्रश्न 20. महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश कौन-सा है?
उत्तर:
महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश भगवद्गीता है जो
कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है।
प्रश्न 21. आरंभिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को किसकी श्रेणी में रखा गया है?
उत्तर:
आरंभिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को इतिहास की श्रेणी में रखा
गया है।
प्रश्न 22. इतिहास का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
इतिहास का अर्थ है 'ऐसा ही था'।
प्रश्न 23. महाभारत की मूल कथा के रचयिता कौन माने जाते हैं ?
उत्तर:
महाभारत की मूल कथा के रचयिता भाट सारथी, जिन्हें
'सूत" कहा जाता था, माने जाते
हैं।
प्रश्न 24. पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल ने 1951-52 में मेरठ
जिले (उ. प्र.) के किस गाँव का उत्खनन किया?
उत्तर:
हस्तिनापुर का।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लगभग 600 ई. पू. से 600 ई. तक
के दौरान हुए आर्थिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों का समकालीन समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1.
वन
क्षेत्रों में कृषि का विस्तार हुआ जिससे वहाँ निवास करने वाले लोगों की जीवन शैली
में बदलाव आया।
2.
सम्पत्ति के
असमान वितरण से सामाजिक विषमताओं में वृद्धि हो गयी।
3.
शिल्प
विशेषज्ञों के एक विशिष्ट सामाजिक समूह का उदय हुआ।
प्रश्न 2. भारत के आरंभिक समाज में प्रचलित आचार-व्यवहार एवं रीति-रिवाजों का इतिहास
लिखने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर:
1.
प्रत्येक
ग्रन्थ किसी समुदाय विशेष के दृष्टिकोण से लिखा जाता था; अतः यह याद
रखना आवश्यक है कि ये ग्रन्थ किसने लिखे, इनमें क्या लिखा गया एवं किन लोगों के लिए इनकी रचना हुई।
2.
इस बात पर
ध्यान देना आवश्यक है कि इन ग्रन्थों की रचना में किस भाषा का प्रयोग हुआ है तथा
इनका प्रचार-प्रसार किस प्रकार हुआ।
प्रश्न 3. पारिवारिक सम्बन्धों की परिभाषा अलग-अलग तरीके से दी जाती है। उदाहरण देकर
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक सम्बन्ध प्रायः प्राकृतिक एवं रक्त आधारित माने जाते हैं।
फिर भी इन सम्बन्धों की परिभाषा अलग-अलग समाजों में अलग-अलग तरीके से दी जाती है।
उदाहरणस्वरूप कुछ समाजों में चचेरे व मौसेरे भाई-बहनों के साथ खून का रिश्ता माना
जाता है, परन्तु कुछ समाज इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं।
प्रश्न 4. पितृवंशिकता प्रणाली में क्या विभिन्नताएँ थीं?
उत्तर:
पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति का
उत्तराधिकारी होता था। राजसिंहासन भी इसमें सम्मिलित था, परन्तु
कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी
बन्धु-बान्धव सिंहासन पर बलात अपना अधिकार स्थापित कर लेते थे। कुछ विशिष्ट
परिस्थितियों में स्त्रियाँ (जैसे-प्रभावती गुप्त) सत्ता का उपभोग करती थीं।
प्रश्न 5. बहिर्विवाह पद्धति की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बहिर्विवाह पद्धति की दो विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
1.
इस पद्धति
में विवाह अपने गोत्र से बाहर करना अनिवार्य था।
2.
इस पद्धति
के अनुसार पिता का महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या
की भेंट करना था।
प्रश्न 6. अन्तर्विवाह एवं बहिर्विवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्विवाह में वैवाहिक सम्बन्ध समूह के मध्य ही होते हैं। यह समूह
एक गोत्र, कुल, एक जाति अथवा एक ही
स्थान पर बसने वालों का हो सकता है; जबकि बहिर्विवाह से आशय
गोत्र से बाहर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने से है।
प्रश्न 7. बहुपत्नी प्रथा एवं बहुपति प्रथा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बहुपत्नी प्रथा के अन्तर्गत एक पुरुष की एक से अधिक पत्नियाँ होती
हैं। प्रायः शासक वर्ग के लोग (जिनमें राजा भी शामिल हैं) इस प्रकार के विवाह करते
थे, जबकि बहुपति प्रथा में एक स्त्री के अनेक पति होते हैं;
जैसे-द्रौपदी के पाँच पति थे।
प्रश्न 8. धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र क्या है ?
उत्तर:
प्राचीन काल में ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताओं
का निर्माण किया जिनका पालन ब्राह्मणों के साथ-साथ शेष समाज को भी करना पड़ता था।
लगभग 500 ई. पू. में इन नियमों का संकलन संस्कृत ग्रन्थों
में किया गया। इन ग्रन्थों को ही धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र कहा जाता है।
प्रश्न 9. धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में विवाह के कितने प्रकारों को स्वीकृति
दी गयी है ? इनमें कौन-से विवाह उत्तम एवं कौन-से विवाह
निंदित माने गये हैं ?
उत्तर:
धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों को
स्वीकृति प्रदान की गई है जिनमें से प्रथम चार विवाह उत्तम माने गये हैं तथा शेष
को निंदित माना गया है। सम्भव है कि ये निंदित विवाह पद्धतियाँ उन लोगों में
प्रचलित थीं जो ब्राह्मणीय नियमों को अस्वीकार करते थे।
प्रश्न 10. गोत्र किस प्रकार अस्तित्व में आये ? इनके दो महत्वपूर्ण
नियम कौन से थे?
अथवा
गोत्र प्रणाली के दो नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लगभग 1000 ई. पू. के बाद से प्रचलन में आयी
ब्राह्मणीय पद्धति ने लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत किया। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था जिसके सदस्य उसी ऋषि के वंशज माने जाते थे।
1.
विवाह के
पश्चात् स्त्री को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था।
2.
एक ही गोत्र
के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे।
प्रश्न 11. वर्ण व्यवस्था के नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने कौन-कौन सी
नीतियाँ अपनायीं ?
अथवा
महाभारत काल के दौरान वर्ण व्यवस्था का पालन करवाने के लिए
ब्राह्मणों द्वारा अपनाई गई किन्हीं दो रणनीतियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वर्ण व्यवस्था के नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने
निम्नलिखित नीतियाँ अपनायीं
1.
उन्होंने
लोगों को बताया कि वर्ण व्यवस्था एक दैवीय व्यवस्था है।
2.
उन्होंने
शासकों को यह उपदेश दिया कि वे अपने राज्य में इन नियमों का पालन करवाएँ।
3.
उन्होंने
लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है।
प्रश्न 12. 'वर्ण' और 'जाति' में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
वर्ण' और 'जाति' में दो अन्तर निम्न प्रकार हैं -
1.
वर्ण
व्यवस्था को एक दैवीय व्यवस्था माना जाता था, जबकि जाति
जन्म पर आधारित व्यवस्था थी।
2.
वर्ण संख्या
में चार थे, जबकि जाति
की कोई निश्चित संख्या नहीं थी।
प्रश्न 14. मनुस्मृति में चाण्डालों के क्या कर्त्तव्य बताए गए हैं ?
उत्तर:
मनुस्मृति में चाण्डालों के कर्त्तव्य बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं
-
1.
चाण्डालों
को गाँव से बाहर रहना पड़ता था,
2.
वे फेंके
हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे, मृत लोगों के वस्त्र व लोहे आभूषण पहनते थे,
3.
रात्रि में
वे गाँव व शहरों में आवागमन नहीं कर सकते थे,
4.
उन्हें
सम्बन्धियों से विहीन लोगों की अन्त्येष्टि करनी पड़ती थी,
5.
उन्हें वधिक
(जल्लाद) के रूप में भी कार्य करना पड़ता था।
प्रश्न 16. मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के कौन-कौन से तरीके
हैं ?
अथवा
मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए सम्पत्ति अर्जन के चार तरीके
बताइए।
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन (सम्पत्ति) अर्जित करने के
निम्नलिखित सात तरीके हैं -
1.
विरासत के
रूप में
2.
खरीद द्वारा
3.
विजय
प्राप्त करके
4.
निवेश
द्वारा
5.
कार्य
द्वारा
6.
सज्जनों
द्वारा दी गयी भेंट को स्वीकार करके
7.
खोज द्वारा।
प्रश्न 17. मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों के लिए सम्पत्ति अर्जन के कौन-कौन से तरीके
हैं ?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों के लिए सम्पत्ति अर्जन के छः तरीके
निम्नलिखित हैं -
1.
वैवाहिक
अग्नि के समक्ष मिली भेंट,
2.
वधू गमनागमन
के समय मिली भेंट,
3.
स्नेह के
प्रतीक के रूप में मिली भेंट,
4.
माता-पिता
द्वारा दिए गए उपहार,
5.
परवर्ती काल
में मिली भेंट,
6.
वह सब कुछ
जो उसे अपने अनुरागी पति से प्राप्त हो।
प्रश्न 18. इतिहासकार महाभारत की विषय-वस्तु को कौन-कौन से दो मुख्य शीर्षकों में
बाँटते हैं तथा इनमें क्या अन्तर
उत्तर:
इतिहासकार महाभारत की विषय-वस्तु को मुख्य रूप से दो
शीर्षकों-आख्यान एवं उपदेशात्मक में बाँटते हैं। आख्यान में कहानियों का संग्रह है,
जबकि इसके उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार के मानदण्डों का
चित्रण है।
प्रश्न 19. महाभारतकालीन स्त्रियों की विभिन्न समस्याएँ लिखिए।
उत्तर:
महाभारत कालीन स्त्रियों की विभिन्न समस्याएँ इस प्रकार थीं -
1.
स्त्री को
भोग की वस्तु समझा जाता था।
2.
स्त्रियों
को बहुत कम अधिकार प्राप्त थे।
3.
पिता की
सम्पत्ति पर पुत्री का कोई अधिकार नहीं होता था।
4.
स्त्रियों
को पुरुषों से निम्न समझा जाता था।
5.
स्त्रियों
को पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्वपूर्ण रही
होगी?
उत्तर:
पूर्व वैदिक समाज के विशिष्ट परिवारों के विषय में इतिहासकारों को सुगमता
से सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। इतिहासकार परिवार तथा बन्धुता सम्बन्धी विचारों
का विश्लेषण करते हैं, यहाँ उनका अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण हो
जाता है क्योंकि इससे वैदिककालीन लोगों की विचारधारा का ज्ञान प्राप्त होता है।
यहाँ हम उन बिन्दुओं को भी निर्दिष्ट कर सकते हैं जब बन्धुता के रिश्तों में
परिवर्तन आया।
यहाँ महाभारत की कथा महत्वपूर्ण है जिसमें बान्धवों के दो
दलों (कौरवों तथा पाण्डवों) के मध्य भूमि तथा सत्ता को लेकर संघर्ष होता है। दोनों
ही कुरु वंश से सम्बन्धित थे जिनमें भयंकर युद्ध के उपरान्त पाण्डव विजयी होते
हैं। इसके उपरान्त पितृवंशिक उत्तराधिकार को उद्घोषित किया गया। हमें यहाँ यह
ध्यान रखना चाहिए कि विशिष्ट परिवारों की पितृवंशिकता पूर्व में भी थी, महाभारत की कथा तो यहाँ उदाहरण मात्र है।
लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में अधिकांश राजवंश पितृवंशीय व्यवस्था का अनुगमन करते
थे। यद्यपि इस प्रणाली में कभी-कभी भिन्नता भी देखने को मिलती है।
प्रश्न 3. बहिर्विवाह पद्धति क्या है ? इसे अपनाने का कारण
बताइए।
उत्तर:
गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह कहते हैं। जहाँ पितृवंश को
आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण थे वहीं इस व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह
से देखा जाता था। पैतृक संसाधनों पर उनका कोई अधिकार नहीं था। अपने गोत्र से बाहर
उनका विवाह कर देंमा ही वांछित था जिसको बहिर्विवाह के नाम से जाना जाता था और
इसका तात्पर्य यह था कि ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम उम्र की कन्याओं एवं
स्त्रियों का जीवन बहुत सावधानी से नियमित किया जाता था जिससे उचित समय एवं उचित
व्यक्ति से उनका विवाह किया जा सके। इसका प्रभाव यह हुआ कि कन्यादान अर्थात् विवाह
में कन्या की भेंट को पिता का महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया।
प्रश्न 4. मनुस्मृति में विवाह के कितने प्रकार बताये गये हैं ? किन्हीं चार प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुस्मृति में विवाह के आठ प्रकार बताये गये हैं जिनमें से चार
प्रकारों का वर्णन इस प्रकार है -
1.
प्रथम विवाह
पद्धति: इस पद्धति में कन्या के लिये पिता वेदज्ञ वर
का चयन करके कन्या को बहुमूल्य वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत कर वर को आमन्त्रित
कर कन्यादान करता था।
2.
चतुर्थ
विवाह पद्धति: इस पद्धति
में कन्या का पिता युगल (वर-वधू) को यह कहकर सम्बोधित करता था कि-"तुम साथ
मिलकर अपने दायित्वों का पालन करो": तत्पश्चात् वह वर का सम्मान करके उसे
कन्या का दान करता था।
3.
पाँचवीं
विवाह पद्धति: इस पद्धति के अन्तर्गत जब वर अपनी क्षमता और
इच्छानुसार वधू एवं उसके बन्धु-बान्धवों को यथेष्ट धन प्रदान करता था तो उसे वधू
की प्राप्ति होती थी।
4.
छठी विवाह
पद्धति: इस पद्धति में परिजनों की इच्छा का समावेश नहीं
होता था; प्रेम (काम)
के वशीभूत होकर स्त्री पुरुष प्रेम विवाह करते थे।
प्रश्न 5. जाति प्रथा तथा सामाजिक विषमताओं के आधार पर धर्मशास्त्रों तथा
धर्मसूत्रों में चारों वर्गों हेतु उचित जीविका के क्या नियम बनाये गये और इन
नियमों को दृढ़ता से पालन करने के लिये ब्राह्मणों ने क्या उपाय किये ?
अथवा
ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार वर्ण व्यवस्था एवं जीविका में क्या
सम्बन्ध है? संक्षेप में बताइए।
अथवा
उन कानून एवं नैतिक आदर्शों के बारे में चर्चा कीजिए जिन्होंने
हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तकों में व्यवसाय के विषय में निर्णय लिए थे।
उत्तर:
धर्मशास्त्रों तथा धर्मसूत्रों में विभिन्न व्यवसायों के लिये
वर्गों को चार वर्गों में बाँटा गया है। ब्राह्मणों ने स्वयं को इस कड़ी में सबसे
ऊँचा स्थान दिया और शूद्रों तथा अछूतों को सबसे निचले स्थान पर रखा। व्यक्ति का इस
वर्ण व्यवस्था में स्थानं जन्म पर आधारित था। धर्मशास्त्रों तथा धर्मसूत्रों ने
चारों वर्गों के लिए उचित जीविका के निम्न नियम बनाये थे
1.
ब्राह्मण
वर्ग-ब्राह्मणों का कार्य वेदाध्ययन करना, वेदों का
प्रचार-प्रसार करना, यज्ञादि अनुष्ठान करना, धार्मिक
रीतियों एवं धार्मिक नियमों का पालन करना और दान लेना था।
2.
क्षत्रिय
वर्ग-
क्षत्रिय वर्ग का कार्य राज्य करना, लोगों की सुरक्षा करना, युद्ध करना, प्रशासन
करना, न्याय करना, वेदों का
अध्ययन, धर्मानुसार
आचरण करना तथा दान आदि देना था।
3.
वैश्य वर्ग-
कृषि, व्यापार, गौ-पालन तथा
दान-दक्षिणा देना, वेदाध्ययन और यज्ञ आदि अन्य धार्मिक अनुष्ठान करवाना, धार्मिक
कार्यों का प्रचार-प्रसार करना आदि वैश्यों के कार्य थे।
4.
शूद्र वर्ग- शूद्र वर्ग का कार्य उपर्युक्त तीनों वर्गों की सेवा करना।
इन नियमों के दृढ़ता से अनुपालन हेतु ब्राह्मणों ने इस
व्यवस्था को दैवीय व्यवस्था के रूप में प्रचारित किया। शासकों को अपने शासित राज्य
में कठोरता से इन नियमों को लागू करने के लिए परामर्श दिया तथा लोगों को यह
विश्वास दिलाने के भरसक प्रयत्न किये कि समाज में उनका स्थान जन्म के आधार पर
निर्धारित होता है। प्रमाण के लिए उन्होंने महाभारत तथा अन्य धार्मिक पुस्तकों में
वर्णित आख्यानों का सहारा लिया।
प्रश्न 6. जाति पर आधारित सामाजिक वर्गीकरण क्या था ?
अथवा
ब्राह्मणीय व्यवस्था में जाति आधारित सामाजिक वर्गीकरण किस
प्रकार किया गया?
उत्तर;
समाज का वर्गीकरण शास्त्रों में प्रयुक्त शब्द 'जाति' के आधार पर किया गया था। ब्राह्मणीय सिद्धान्त
में वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी, परन्तु वर्गों
की संख्या जहाँ मात्र चार थी वहीं जातियों की संख्या निश्चित नहीं थी। वास्तव में
जिन नये समुदायों का जैसे जंगलों में निवास करने वाले निषाद या व्यावसायिक वर्ग
(जैसे सुवर्णकार आदि) जिन्हें चार वर्णों वाली वस्था में सम्मिलित करना सम्भव नहीं
था; उनका जाति में वर्गीकरण कर दिया गया। वे जातियाँ जो एक
ही जीविका अथवा व्यवसाय से जुड़ी हुई थीं उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में भी संगठित
किया जाता था।
प्रश्न 7. चारों वर्गों से परे ब्राह्मणीय व्यवस्था से अलग वर्णहीन समुदायों की
स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर;
भारतीय उपमहाद्वीप में विविधताओं के कारण हमेशा से ही लोगों के
रीतिरिवाज ऐसे रहे जो 600 ई. पू. से 600 ई. तक ब्राह्मणीय विचारों से प्रभावित नहीं हुई थीं।" कथन की परख
कीजिए। भारतीय उपमहाद्वीप की विशालता तथा विविधता और सामाजिक जटिलताओं के कारण कुछ
ऐसे समुदाय भी अस्तित्व में थे जिनका ब्राह्मणों द्वारा निश्चित किये गये वर्गों
में कोई स्थान नहीं था, उन्हें वर्णहीन कहा जाता था। इन
वर्णहीन समुदायों पर ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित सामाजिक नियमों का कोई प्रभाव
नहीं था।
संस्कृत साहित्य में जब ऐसे समुदायों का उल्लेख होता था तो
इन्हें असभ्य, बेढंगे और पशु समान कहा जाता
था। जंगलों में रहने वाली एक जाति निषाद की गणना इसी वर्ग में होती थी। शिकार करना,
कन्द-मूल, फल-फूल एकत्र करना आदि वनों पर
आधारित उत्पाद इनके जीवन निर्वाह के साधन थे। वे लोग जो संस्कृत भाषी नहीं थे
उन्हें हीन समझा जाता था और मलेच्छ कहकर सम्बोधित किया जाता था, लेकिन इसके बावजूद वे समाज से पूर्ण रूप से बहिष्कृत नहीं थे। समाज के
अन्य वर्गों के साथ उनका संवाद होता था एवं उनके बीच विचारों और मतों का
आदान-प्रदान होता था जिसका महाभारत की कई कथाओं में उल्लेख है।
प्रश्न 8. प्राचीनकाल में अछुतों के जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर माने जाने वाले लोगों
को ब्राह्मणों ने अछूत (अस्पृश्य) घोषित कर दिया तथा ब्राह्मण इन्हें अपवित्र
मानते थे। चाण्डाल ऐसे ही लोगों में सम्मिलित थे जो शवों की अंत्येष्टि तथा मृत
पशुओं को उठाने जैसे कार्य करते थे जिन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे
निम्न कोटि में रखा जाता था।
सामाजिक क्रम में स्वयं को सबसे ऊपर मानने वाले लोग इन्हें
देखना भी अपवित्रकारी मानते थे। ये लोग बधिक (जल्लाद) का भी काम करते थे तथा सड़क
पर चलते समय ये करताल कर अपने होने की सूचना देते थे ताकि अन्य लोग इन्हें देखने
के दोष से बच सकें। ये लोग नगर से बाहर रहते थे तथा मृत लोगों के वस्त्र व लोहे के
आभूषण पहनते थे तथा खाने के लिए फेंके हुए बर्तनों का इस्तेमाल करते थे। इस प्रकार
इन लोगों का जीवन दीन-हीन अवस्था में गुजरता था।
प्रश्न 9. प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति
अच्छी नहीं थी। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राचीनकाल में स्त्री और पुरुषों के मध्य सामाजिक स्थिति की
भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई । स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व पर, विशेषकर
पैतृक सम्पत्ति के सन्दर्भ में, महिलाओं की स्थिति अच्छी
नहीं थी। मनुस्मृति के अनुसार पैतृक सम्पत्ति का माता-पिता की मृत्यु के पश्चात्
सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए लेकिन ज्येष्ठ पुत्र विशेष
भाग का अधिकारी था। स्त्रियाँ इस पैतृक सम्पत्ति में हिस्सेदारी की मांग नहीं कर
सकती थीं, किन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का
स्वामित्व माना जाता था और इसे स्त्रीधन की संज्ञा दी जाती थी।
इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर
सकती थी, परन्तु इस पर उनके पति का कोई
अधिकार नहीं होता था। मनुस्मृति स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक सम्पत्ति
अथवा स्वयं अपने बहुमूल्य धन के गुप्त संचय के विरुद्ध भी चेतावनी देती है।
अधिकांश साक्ष्य इस बात की ओर संकेत करते हैं कि यद्यपि उच्च वर्ग की महिलाएँ
संसाधनों पर अपनी पहुँच रखती थीं फिर भी भूमि और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण
था। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि स्त्री और पुरुष के मध्य सामाजिक स्थिति
की भिन्नता उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई।
प्रश्न 10. आर्थिक संसाधनों (धन और सम्पत्ति) पर स्त्री-पुरुष के अधिकारों में क्या
विभिन्नता थी ?
अथवा
600 ई. पू. से 600 ई. के दौरान प्रचलित 'सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकार' का
वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्मशास्त्रों, धर्मसत्रों, महाभारत आदि में स्त्री और पुरुष के धन-सम्पत्ति के अधिकारों में
विभिन्नताओं के कई दृष्टान्त प्राप्त होते हैं। महाभारत में यह भी उल्लेख मिलता है
कि पत्नी को एक वस्तु के समान सम्पत्ति समझा जाता था। द्यूत क्रीड़ा में पाण्डवों
ने द्रौपदी को ही एक सम्पत्ति समझकर दांव पर लगा दिया था। ऐसी दशा में अधिकारों
में विभिन्नता होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं। - मनुस्मृति के अनुसार पैतृक
सम्पत्ति में पुत्री को कोई अधिकार प्राप्त नहीं था। पिता की मृत्यु के बाद
सम्पत्ति का बँटवारा पुत्रों में किया जाता था।
पुत्री के विवाह के समय जो धन उसे पिता, भाई या अन्य कुटुंबीजनों से प्राप्त होता
था, पुत्री का उस पर पूरा अधिकार होता था जिसे स्त्रीधन
अर्थात् स्त्री का धन कहा जाता था। इस धन-सम्पत्ति पर स्त्री के पति का अधिकार
नहीं होता था, किन्तु उनकी सन्तानें इस धन को विरासत के रूप
में प्राप्त कर सकती थीं।
मनुस्मृति में यह भी निर्देश है कि स्त्री पति की आज्ञा के
बगैर गुप्त रूप से धन का संचय नहीं कर सकती थी, लेकिन अभिलेखों में इस बात के भी साक्ष्य मिले हैं कि उच्च वर्ग की
स्त्रियाँ संसाधनों और सम्पत्ति पर अपना प्रभाव रखती थीं। कुछ ऐसे उदाहरण भी मिले
हैं कि कुछ स्त्रियाँ बहुत धनवान थीं; जैसे-दक्षिण के वाकाटक
परिवार की रानी प्रभावती गुप्त जिनका स्वामित्व संसाधनों पर था और उसने भूमिदान भी
किया था।
प्रश्न 11. वर्ण तथा सम्पत्ति के अधिकार के मध्य क्या सम्बन्ध था ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार लैंगिक आधार के अतिरिक्त सम्पत्ति
पर अधिकार का एक अन्य आधार वर्ण भी था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार लैंगिक आधार के अतिरिक्त सम्पत्ति पर
अधिकार का एक अन्य आधार वर्ण भी था। शूद्रों के लिए एकमात्र जीविका अन्य तीन
वर्गों की सेवा थी, परन्तु प्रथम तीन वर्षों ब्राह्मण,
क्षत्रिय व वैश्य के पुरुषों के लिए विभिन्न . जीविकाओं की सम्भावना
रहती थी। यदि इन नियमों को वास्तविक रूप से कार्यान्वित किया जाता तो ब्राह्मण व
क्षत्रिय सबसे अधिक धनवान व्यक्ति होते। यह तथ्य कुछ सीमा तक सामाजिक वास्तविकता
से समानता रखता है। साहित्यिक परम्परा में पुरोहितों एवं राजाओं का वर्णन मिलता है
जिसमें उन्हें धनी बताया गया है। इनमें कहीं-कहीं निर्धन ब्राह्मणों का भी उल्लेख
मिलता है।
प्रश्न 12. इतिहासकार किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय किन पहलुओं पर विचार करते हैं
? संक्षेप में बताइए।
अथवा
साहित्यिक स्रोतों का अध्ययन करते समय इतिहासकार को किन-किन
बातों का ध्यान रखना चाहिए?
अथवा
किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय आप किन पहलुओं पर विचार करेंगे?
उत्तर:
साहित्यिक स्रोतों का अध्ययन करते समय इतिहासकारों को निम्नलिखित
बातों का ध्यान रखना चाहिए
1.
ग्रन्थ की
भाषा क्या है-जैसे - पालि, प्राकृत, तमिल अथवा संस्कृत जो विशिष्ट रूप से पुरोहितों एवं विशेष
वर्ग की भाषा थी।
2.
ग्रन्थ किस
प्रकार का है मन्त्रों के रूप में अथवा कथा के रूप में।
3.
ग्रन्थ के
लेखक की जानकारी प्राप्त करना जिसके दृष्टिकोण एवं विचारों से इस ग्रन्थ का लेखन
हुआ है।
4.
इन ग्रन्थों
के श्रोताओं का भी इतिहासकार परीक्षण करते हैं क्योंकि लेखकों ने अपनी रचना करते
समयः श्रोताओं की अभिरुचि पर ध्यान दिया होगा।
5.
ग्रन्थों के
सम्भावित संकलन एवं रचनाकाल की जानकारी प्राप्त करना और उसकी रचना भूमि की जानकारी
प्राप्त करना।
प्रश्न 13. 12वीं से 7वीं शताब्दी ई. पू. के मध्य मिलने वाले घरों
के बारे में डॉ. बी. बी. लाल के किसी एक अवलोकन .. का उल्लेख कीजिए।
अथवा
पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल द्वारा मेरठ, उत्तर
प्रदेश के हस्तिनापुर नामक गाँव के उत्खनन में प्राप्त किए गए किन्हीं दो प्रमाणों
की परख कीजिए।
उत्तर:
1951-52 ई. में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल ने उत्तर
प्रदेश के मेरठ जिले के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया। सम्भवतः यह
महाभारत में उल्लिखित पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर थी। उन्हें यहाँ आबादी के
पाँच स्तरों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जिनमें से द्वितीय एवं तृतीय स्तर हमारे
विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
द्वितीय स्तर (लगभग 12वीं से 7वीं शताब्दी ई. पू.) पर मिलने वाले घरों के
बारे में बी. बी. लाल कहते हैं-जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से आवास
गृहों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती, किन्तु मिट्टी की
बनी दीवारें एवं कच्ची मिट्टी की ईंटें अवश्य मिलती हैं। सरकण्डे की छाप वाले
मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर संकेत करती है कि कुछ घरों की दीवारें
सरकण्डे की बनी थीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।
प्रश्न 14. महाभारत ग्रन्थ की गतिशीलता और लोगों पर इसके प्रभाव के सम्बन्ध में
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
महाभारत महाकाव्य पद्य साहित्य की एक श्रेष्ठ रचना है जो एक गतिशील
ग्रन्थ रहा है। महाकाव्य के अनेक रूपान्तरण, भिन्न-भिन्न
भाषाओं में लिखे जाते रहे, इसका विकास निरन्तर गतिशील रहा,
भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखे गये रूपान्तरण उस संवाद को दर्शाते थे
जो इन रूपान्तरण के लेखकों और अन्य लोगों तथा समुदायों के बीच हुए। अनेक कहानियाँ;
जिनका उद्भव विशेष क्षेत्रों में हुआ.और जिनका विशेष लोगों में
प्रचार हुआ, वे सब इस महाकाव्य में समाहित कर ली गयीं।
मूल कथानक की अनेकानेक पुनर्व्याख्याएं की गई। इस महाकाव्य
ने नृत्य कला, नाटकों, मूर्तियों
और चित्रों के लिए भी पृष्ठभूमि तैयार की। सैकड़ों वर्षों से भारतवासी ही नहीं
सम्पूर्ण विश्व के लोग इससे प्रेरित होते रहे हैं। इसने लोगों को जीवन के महान
आदर्श दिये हैं। यह महाकाव्य सदैव आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत रहा है। इसने लोगों
को कष्टों का दृढ़ता और साहस के साथ सामना करने के योग्य बनाया है। यूरोप के
विद्वानों ने महाभारत का अन्तर्राष्ट्रीय संस्करण तैयार किया है। देश-विदेश के
प्रबन्धन संस्थानों में आज गीता का
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. महाभारत क्या है ? समालोचनात्मक संस्करण के सन्दर्भ
में वी. एस. सुकथांकर की परियोजना का वर्णन कीजिए।
अथवा
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण के द्वारा सामाजिक इतिहास की पुनर्रचना करने में वी. एस. सुकथांकर के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
महाभारत का विश्लेषण करने के लिए इतिहासकारों द्वारा विचार किए
गए पहलुओं का वर्णन कीजिए। महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने में वी.
एस. सुकथांकर और अनेक विद्वानों के प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महाभारत विश्व का सबसे विस्तृत और बड़ा महाकाव्य है। इस ग्रन्थ का
रचनाकाल बहुत अधिक लम्बा है, इसकी रचना 500 ई. पू. से एक हजार वर्ष तक होती रही। इस ग्रन्थ में समकालीन विभिन्न
परिस्थितियों और सामाजिक श्रेणियों का लेखा-जोखा है। महाभारत की मुख्य कथावस्तु
पारिवारिक सम्बन्धों की कहानी है। पारिवारिक सम्बन्धों में परिवर्तन कैसे आये |
कुरु वंश का एक राज परिवार जो कुरु महाजनपद पर शासन करता था के
चचेरे भाइयों के दो समूहों कौरव और पाण्डव के बीच सत्ता और सिंहासन के लिए हुआ
संघर्ष एक भीषण महायुद्ध में समाप्त हुआ जिसमें पाण्डवों को विजय भी प्राप्त हुई।
महाभारत इसी महासंघर्ष और महायुद्ध की कथा है।
समालोचनात्मक संस्करण महाभारत ग्रन्थ का समालोचनात्मक
संस्करण तैयार करना कई दृष्टियों से एक ऐतिहासिक स्तर का राष्ट्रीय कार्य था।
प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी. एस. सुकथांकर, जो कि भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य सम्पादक थे के नेतृत्व
में 1919 में यह महत्वाकांक्षी परियोजना प्रारम्भ की गयी। इस
कार्य के लिए श्री सुकथांकर ने अनेक विद्वानों को अपने साथ जोड़ा तथा सबने मिलकर
समालोचनात्मक संस्करण को तैयार करने का निर्णय किया।
सर्वप्रथम देश के विभिन्न भागों से गया। विभिन्न
पाण्डुलिपियों में पाये जाने वाले श्लोकों की तुलना करने के लिए वैज्ञानिकों ने
विश्लेषण की नवीन विधि का चयन किया जिसके अनुसार उन्होंने सर्वप्रथम उन श्लोकों का
चयन किया जो सभी पाण्डुलिपियों में समान रूप से पाये गये। विद्वानों ने सभी
पाण्डुलिपियों में पाये गये श्लोकों का प्रकाशन 13000
पृष्ठों के रूप में विस्तृत अनेक ग्रन्थ-खण्डों में किया। लगभग 47
वर्ष का लम्बा समय इस परियोजना के पूर्ण होने में लगा।
इस विश्लेषण में दो महत्वपूर्ण बिन्दु समानता और प्रभेदों
के सम्बन्ध में निकल कर सामने आए :
(i) पहला बिन्दु पाठों के अंशों की समानता के सम्बन्ध
में था। विद्वानों ने विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला कि पाठों के अंशों की समानता
सम्पूर्ण भारतीय महाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल
तथा तमिलनाडु तक की सभी पाण्डुलिपियों में एक समान थी।
(ii) विद्वानों ने टिप्पणियों और परिशिष्टों के
रूप में इन विभेदों का संकलन किया। 13000 पृष्ठों के
समालोचनात्मक संस्करण में आधे से अधिक पृष्ठों में इन विभेदों का विवरण है। इन
विभदों से उन गूढ़ प्रक्रियाओं का संकेत मिलता है जिनके द्वारा रूढ़ परम्पराओं और
समकालीन स्थानीय परिवर्तनशील आचरण और विचारों के मध्य तारतम्य द्वारा संवाद के
माध्यम से सामाजिक इतिहासों को रूप प्रदान किया गया था। इन सभी प्रक्रियाओं के
बारे में प्राप्त विवरण ब्राह्मणों द्वारा लिखित संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित था।
इन ग्रन्थों को ब्राह्मणों ने अपने दृष्टिकोण से अपनी सुविधानुसार लिखा था।
प्रश्न 2. ब्राह्मणीय सिद्धान्त के संदर्भ में बंधुता और वर्ण व्यवस्था के आदर्श
व्यवसायों का वर्णन कीजिए। "इस सिद्धान्त का सार्वभौमिक पालन नहीं किया',
यह सिद्ध करने के लिए उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बन्धुता और वर्ण व्यवस्था के आदर्श व्यवसाय
परिवार प्रायः बन्धुत्व का हिस्सा थे। पारिवारिक रिश्ते 'नैसर्गिक' और रक्त संबद्ध माने जाते थे। कुछ समाजों
में भाई-बहन चचेरे, मौसेरे आदि) से खून का रिश्ता माना जाता
था, किन्तु अन्य समाज ऐसा नहीं मानते थे। बन्धु एक-दूसरे से
सम्बन्ध रखते थे, लेकिन कभी-कभी उनमें आपस में झगड़ा भी होता
था जिसका महाभारत एक अच्छा उदाहरण है।
यह बान्धवों के दो दलों (कौरव और पांडव) के बीच भूमि और
सत्ता को लेकर हुए संघर्ष का चित्रण करता है। दोनों ही दल कुरु वंश से सम्बन्धित
थे जिनका एक जनपद पर शासन था। यह संषर्ष एक युद्ध में परिणत हुआ जिसमें पांडव
विजयी हुए। इनके पश्चात् पितृवंशिक उत्तराधिकार को उद्घोषित किया गया। हालांकि
पितृवंशिकता महाकाव्य की रचना से पूर्व भी प्रचलित थी, महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने इस आदर्श को
और सुदृढ़ किया।
पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के बाद उनके संसाधनों
पर (राजाओं के संदर्भ में सिंहासन भी) अधिकार जमा सकते थे। लगभग छठी शताब्दी ई.
पू. से अधिकांश राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे। हालांकि इस प्रथा
में समानता नहीं थी-कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता
था तो कभी बन्धु-बान्धव सिंहासन पर अपना अधिकार जमाते थे, वहीं कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में
स्त्रियाँ (जैसे-प्रभावती गुप्त) सत्ता का उपभोग करती थीं।
धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए
आदर्श जीविका' से जुड़े अनेक नियम मिलते हैं।
ब्राह्मणों का कार्य अर्ध्ययन, वेदों की शिक्षा, यज्ञ करना तथा दान-दक्षिणा देना था। अंतिम तीन कार्य वैश्यों के लिए भी
थे। साथ ही उनसे कृषि, गौ-पालनं तथा व्यापार का काम करना भी
अपेक्षित था। शूद्रों के लिए तीनों उच्च वर्गों की सेवा करना ही एकमात्र जीविका
थी।
"ब्राह्मणीय सिद्धान्त का सार्वभौमिक पालन नहीं किया गया "
ब्राह्मणीय सिद्धान्त का सार्वभौमिक पालन नहीं किए जाने से
सम्बन्धित कुछ प्रमुख उदाहरण निम्न प्रकार हैं :
1. सातवाहन राजा बहुपत्नी प्रथा (अर्थात् एक से अधिक पत्नी) को मानने वाले
थे। इनसे विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम और वशिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे जो
उनके पिता के गोत्र थे। इससे प्रतीत होता है कि विवाह के बाद भी अपने पति के कुल
के गोत्र को ग्रहण करने की अपेक्षा, जैसा ब्राह्मणीय
व्यवस्था में अपेक्षित था, उन्होंने पिता का गोत्र नाम ही
कायम रखा, वहीं कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से भी थीं जो
बहिर्विवाह पद्धति के नियमों के विपरीत था। वस्तुतः यह उदाहरण एक वैकल्पिक प्रथा
अंतर्विवाह पद्धति अर्थात् बन्धुओं में विवाह सम्बन्धों को दर्शाता है जिसका
प्रचलन दक्षिण भारत के कई समुदायों में (भी) है।
2. शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय राजा हो सकते थे, लेकिन कई महत्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्गों से भी हुई थी;
जैसे-मौर्य वंश। ब्राह्मणीय शास्त्र इस वंश के शासकों को 'निम्न' कुल का मानते हैं। इसी तरह शुंग तथा कण्व जो
मौर्यों के उत्तराधिकारी थे, ब्राह्मण थे।
3. निषाद वर्ग के एकलव्य का तीर चलाने की कला में पारंगत होना।
4. हिडिम्बा और भीम का विवाह धर्मसूत्रों के अनुसार नहीं था।
5. धनाढ्य वाकाटक महिषी प्रभावती गुप्त का भूमिदान करना।
प्रश्न 3. 600
ई. पू. से 600 ई. के दौरान ब्राह्मणीय
निर्धारण के अनुसार पारिवारिक सम्बन्धों और विवाह के नियमों का वर्णन कीजिए ।
अथवा
"महाभारत बन्धुता, विवाह तथा
पितृवंशिक की एक कहानी है।" इस कथन की परख कीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक संबंध (बन्धुता) व पितृवंशिक व्यवस्था
600 ई. पू. से 600 ई. के दौरान परिवार प्रायः
बन्धुत्व का हिस्सा थे। कुछ परिवारों में लोग भोजन और अन्य संसाधनों का आपस में
मिल-बाँटकर इस्तेमाल करते थे, एकसाथ रहते और काम करते थे और
अनुष्ठानों को साथ ही संपादित करते थे। परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते थे
जिन्हें 'सम्बन्धी' या, 'जाति समूह' कहा जाता था।
पारिवारिक रिश्ते नैसर्गिक' और रक्त संबद्ध माने जाते थे, किन्तु इन सम्बन्धों
की परिभाषा अलग-अलग तरीके से की जाती थी। कुछ समाजों में भाई-बहन (चचेरे, मौसेरे आदि) से खून का रिश्ता माना जाता था, किन्तु
अन्य समाज ऐसा नहीं मानते थे। महाभारत की कहानी बन्धुता के रिश्तों में परिवर्तन
को बताती है। यह बान्धवों के दो दलों (कौरव और पांडव) के बीच भूमि और सत्ता को
लेकर हुए संघर्ष का चित्रण करती है। दोनों की दल कुरु वंश से सम्बन्धित थे जिनका
एक जनपद पर शासन था।
यह संघर्ष एक युद्ध में परिणत हुआ जिसमें पांडव विजयी हुए।
महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने पितृवंशिक व्यवस्था को और सुदृढ़ किया। पितृवंशिकता
में पुत्र पिता की मृत्यु के बाद उनके संसाधनों पर (राजाओं के संदर्भ में सिंहासन
भी) अधिकार जमा सकते थे। इस व्यवस्था के प्रति झुकाव शासक परिवारों के लिए कोई अलग
बात नहीं थी। यह बात ऋग्वेद के मंत्रों से भी स्पष्ट होती है।
विवाह के नियम:
एक ओर पुत्र पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए
महत्वपूर्ण थे, वहीं इस व्यवस्था में
पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था जिनका पैतृक संसाधनों पर कोई अधिकार नहीं
था। उनका विवाह अपने गोत्र से बाहर कर देना ही अपेक्षित था जो बहिर्विवाह पद्धति
कहलाती है।
इसका तात्पर्य यह था कि ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम
उम्र की कन्याओं एवं स्त्रियों का 'उचित' समय तथा 'उचित' व्यक्ति से विवाह करने के लिए उनका जीवन बहुत सावधानी से नियमित किया जाता
था। परिणामस्वरूप कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्वपूर्ण
धार्मिक कर्तव्य माना गया। ... समाज में कई प्रकार के विवाह प्रचलित थे; जैसे-अंतर्विवाह (समूह के मध्य ही विवाह करना), बहिर्विवाह
(अपने गोत्र से बाहर विवाह करना), बहुपत्नी प्रथा, बहुपति प्रथा आदि।
मनुस्मृति, जिसका
संकलन लगभग 200 ई. पू. से 200 ई. के बीच
हुआ, में विवाह के आठ प्रकारों का वर्णन हैं जिनमें से पहले
चार 'उत्तम' माने जाते थे, जबकि अन्य को निंदित माना गया। संभवतः ये विवाह गोत्र के नियमानुसार
स्त्रियाँ विवाह के पश्चात पिता के स्थान पर पति के गोत्र की मानी जाती थी और एक
ही गोत्र के सदस्यों का आपस में विवाह सम्बन्ध अमान्य था।
प्रश्न 4. महाभारत काल में लैंगिक असमानता (स्त्री और पुरुष) के आधार पर सम्पत्ति के
अधिकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
महाभारत काल में स्त्री की स्थिति तथा लैंगिक असमानता के कारण
स्त्रियों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक
आदि क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे। सम्पत्ति के अधिकारों
की क्रमबद्ध व्याख्या निम्न प्रकार है
(1) वस्तु की भाँति पत्नी को निजी सम्पत्ति मानना: इसका प्रमुख उदाहरण द्यूत-क्रीड़ा के प्रकरण में प्राप्त
होता है। पाण्डव अपनी सारी सम्पत्ति कौरवों के साथ द्यूत-क्रीड़ा में हार गये तब
अन्त में पाण्डवों ने अपनी साझी पत्नी द्रौपदी को भी निजी सम्पत्ति मानकर दाँव पर
लगा दिया और उसे भी हार गये। स्त्री को सम्पत्ति मात्र समझने के कई दृष्टान्त, धर्मशास्त्रों तथा धर्मसूत्रों में प्राप्त
होते हैं। इस प्रकरण के द्वारा बड़े भाई को सम्पत्ति पर विशेषाधिकार का भी संकेत
प्राप्त होता है।
(2) मनुस्मृति के अनुसार सम्पत्ति का बँटवारा: मनुस्मृति में सम्पत्ति के बँटवारे के सम्बन्ध में वर्णित
है कि माता-पिता की सम्पत्ति में उनकी मृत्यु के पश्चात् पुत्रों का समान अधिकार
होता है इसलिए पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान बँटवारा करना चाहिए, परन्तु ज्येष्ठ पुत्र को कुछ विशेषाधिकार
दिये गये थे जिनके अन्तर्गत उसे ज्येष्ठांश के रूप में सम्पत्ति का कुछ अधिक भाग
विशेष रूप से दिया जाता था। माता-पिता की सम्पत्ति में पुत्रियों का कोई अधिकार
नहीं था।
(3) स्त्री धन: स्त्रियों
हेतु धन की व्यवस्था स्त्रीधन के रूप में की गयी थी। स्त्री को विवाह के समय जो
उपहार परिवार और कुटुम्बीजनों से प्राप्त होते थे उन पर उनका अधिकार होता था, वह उनकी स्वामिनी मानी जाती थी। इस धन को
स्त्री-धन अर्थात् स्त्री का धन कहा जाता था जिस धन पर उसके पति का अधिकार नहीं
होता था, परन्तु इस धन को उसकी सन्तान विरासत के रूप में
प्राप्त कर सकती थी। मनुस्मृति में यह भी विधान था कि पति की आज्ञा के बगैर गुप्त
रूप से स्त्रियाँ धन एकत्र नहीं कर सकती थीं।
(4) सम्पत्ति अर्जन के पुरुषों के अधिकार-मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिये धन अर्जन के सात तरीके
हैं; जैसे-विरासत, खोज, खरीद, विजित करके,
निवेश, कार्य द्वारा तथा सज्जनों से प्राप्त
भेंट। मनुस्मृति द्वारा निर्देशित धनार्जन के तरीकों में स्त्रियों के लिए धनार्जन
के कम अवसरों के कारण स्त्रियों की आत्मनिर्भरता पर. विपरीत प्रभाव पड़ा तथा वे
पुरुषों पर आश्रित हो गईं।
(5) उच्च वर्ग की महिलाओं की विशेष स्थिति: उच्च वर्ग की महिलाओं की स्थिति कुछ बेहतर थी जो संसाधनों
पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभुत्व रखती थीं। यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण था
लेकिन इनका भी प्रभाव रहता था। दक्षिण भारत में महिलाओं की स्थिति इस सम्बन्ध में
और भी अच्छी थी। वाकाटक वंश की रानी और चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती
गुप्त अत्यन्त प्रभावशाली महिला थीं; उनके सम्पत्ति के अधिकारों
के स्वामित्व का प्रमाण इस बात से मिलता है कि उसने अपने अधिकार से एक ब्राह्मण को
भूमिदान किया था
प्रश्न 5. "महाभारत एक जटिल ग्रन्थ है।" इस कथन की पुष्टि उन इतिहासकारों के
संदर्भ में कीजिए जिन्होंने विभिन्न तत्वों के साथ इसका विश्लेषण किया है।
उत्तर:
इतिहासकारों ने महाभारत का विश्लेषण करते समय निम्नलिखित विभिन्न
तत्वों पर विचार किया -
(1) भाषा-इतिहासकारों
ने संस्कृत, प्राकृत, पालि तथा तमिल जैसे विभिन्न भाषाओं में ग्रन्थों का अध्ययन किया। महाभारत
का प्रस्तुत पाठ संस्कृत में है। यद्यपि अन्य भाषाओं में भी इसके संस्करण मिलते
हैं।
(2) विषयवस्तु-इतिहासकार
महाभारत की विषयवस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं -
·
आख्यान तथा
·
उपदेशात्मक।
आख्यान में कहानियों का संग्रह तथा उपदेशात्मक भाग में
सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का चित्रण है। अधिकांश इतिहासकारों का मत है कि
महाभारत वस्तुतः एक भाग में नाटकीय कथानक था जिसमें उपदेशात्मक अंशों को बाद में
जोड़ा गया।
(3) लेखक- संभवतः
महाभारत की मूल कथा के रचयिता भाट सारथी थे जिन्हें सूत' कहा जाता था। ये क्षत्रिय योद्धाओं के साथ
युद्धक्षेत्र में जाते थे तथा उनकी विजय एवं उपलब्धियों पर कविताएँ लिखते थे,
जिनका प्रेषण मौखिक रूप से होता था। पाँची सदी ई. पू. में
ब्राह्मणों ने इस कथा परम्परा पर अपना अधिकार कर इसे लिखा।
इस समय कुरु तथा पांचाल महाजनपद (जिनके आस-पास महाभारत की
कथा घूमती है) सरदारी से राजतंत्र के रूप में उभर रहे थे। संभवतः नए राजा अपने
इतिहास को अधिक नियमित रूप से लिखना चाहते थे। इन नए राज्यों के साथ ही नवीन
मानदंड भी स्थापित हुए जिनका वर्णन महाभारत में कुछ स्थानों पर मिलता है।
साहित्यिक परम्परा में महाभारत के रचयिता ऋषि वेद व्यास माने जाते हैं।
(4) तिथियाँ-इतिहासकार
ग्रन्थों की रचना या संकलन की संभावित तिथियों के साथ-साथ उस स्थान को जानने का भी
प्रयास करते हैं, जहाँ उनकी रचना हुई होगी।
पाँचवीं सदी ई. पू. से ब्राह्मणों ने इसे लिखा। लगभग 200 ई.
पू. से 200 ई. के मध्य इसके रचनाकाल का एक अन्य चरण देखा
जाता है। इस काल में विष्णु देवता की आराधना का प्रचलन बढ़ रहा था और श्रीकृष्ण
(जो इस महाकाव्य के एक महत्वपूर्ण नायक हैं) को विष्णु का रूप बताया जा रहा था।
कालांतर में लगभग 200-400 ई. के मध्य महाभारत में 'मनुस्मृति' से मिलते-जुलते वृहत उपदेशात्मक प्रकरणों
को जोड़ा गया।
प्रश्न 6. महाभारत की सदृश्यता की खोज से आप क्या समझते हैं ? पुरातत्ववेत्ता
बी. बी. लाल के प्रयासों का वर्णन कीजिए।।
उत्तर:
सदृश्यता की खोज का अर्थ किसी पुरातन ऐतिहासिक घटना के अस्तित्व के
प्रमाण के लिए साक्ष्यों की खोज से है। उत्खनन कार्य द्वारा उस काल के अवशेषों;
जैसे- राजमहल, प्राचीन बस्तियाँ आदि के द्वारा
घटना की प्रामाणिकता के साक्ष्य जुटाए जाते हैं। प्रमुख महाकाव्यों की भाँति
महाभारत में भी राजमहलों, प्राचीन नगरों, बस्तियों, युद्धों और वनों का अत्यन्त जीवन्त चित्रण
किया गया है।
सदृश्यता की खोज से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण कार्य सन् 1951-52 में पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल के
नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ में हस्तिनापुर नामक गाँव में किया गया।
महाभारत में हस्तिनापुर का वर्णन कुरु राज्य की राजधानी के रूप में किया गया है।
स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि यह हस्तिनापुर महाभारत में वर्णित हस्तिनापुर
ही था। नामों की समानता संयोगवश भी हो सकती है, लेकिन इस
हस्तिनापुर की भौगोलिक स्थिति और महाभारतकालीन हस्तिनापुर की भौगोलिक स्थिति में
विलक्षण साम्य प्राप्त होता है।
प्राचीन महाभारतकालीन कुरु राजधानी हस्तिनापुर गंगा-यमुना के ऊपरी दोआब
क्षेत्र में स्थित थी। इस हस्तिनापुर की स्थिति भी यही है। इसलिए नामों की यह
समानता मात्र संयोगवश नहीं कही जा सकती। पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल ने, सम्भवतः यही स्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर हो जिसका महाभारत में
वर्णन किया गया है, इसी आधार को मानकर यहाँ उत्खनन कार्य
किया था जिसके फलस्वरूप यहाँ पर आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
महाभारत की सदृश्यता की खोज के विश्लेषण में आबादी के
साक्ष्य का दूसरा और तीसरा स्थल महत्वपूर्ण है। आबादी के दूसरे स्तर के
साक्ष्य-आबादी के इस दूसरे स्तर का काल लगभग बारहवीं से सातवीं शताब्दी ई. पू. का
है। इस स्तर पर उत्खनन कार्य में प्राप्त अवशेषों से उस काल के घरों की रचना के
बारे में बी. बी. लाल का कथन है कि "जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ, वहाँ से घरों की कोई निश्चित परियोजना नहीं
मिलती, किन्तु मिट्टी की बनी दीवारें और कच्ची मिट्टी की
ईंटें अवश्य मिलती हैं। सरकण्डे की छाप वाली मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर
इशारा करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकण्डों की बनी थीं; जिन
पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।"
"अब यदि महाभारत महाकाव्य के आदि पर्व में प्राचीन हस्तिनापुर के वर्णन को
देखें तो इसका वर्णन इन्द्र की नगरी के समान किया गया है। यह वर्णन वैसे तो
अतिरंजित प्रतीत होता है लेकिन साक्ष्यों के साथ इसकी तुलना करके इस वर्णन के
अनुसार सदृश्यता को प्रमाणित करना पाँच हजार वर्षों के कालखण्ड के बाद एक अति
दुष्कर, लगभग असम्भव कार्य है। हम कह सकते हैं कि बी. बी.
लालं की खोज अपने आप में सदृश्यता की एक महत्वपूर्ण खोज है।
प्रश्न 7. महाभारत की एक अन्य प्रमुख चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी के विवाह (बहुपति
प्रथा) के सम्बन्ध में इतिहासकारों के विभिन्न मतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
द्रौपदी के विवाह (बहुपति प्रथा) की चुनौतीपूर्ण उपकथा कुछ ज्वलन्त
प्रश्नों को उठाती है। महाभारत महाकाव्य का यह प्रसंग अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।
विभिन्न इतिहासकारों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से इस प्रसंग की विवेचना की है और
विभिन्न तरीकों से इसके सम्बन्ध में स्पष्टीकरण देने के प्रयास किये हैं। निम्न
तीन स्पष्टीकरण इस सम्बन्ध में प्रमुख हैं
(1) विशिष्ट शासक वर्ग और बहुपति प्रथा: आधुनिक इतिहासकारों ने बहुपति प्रथा के सम्बन्ध में यह
निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि लेखकों द्वारा महाभारत में वर्णित बहुपति प्रथा का
यह वर्णन इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि शासकों, सम्राटों के विशिष्ट वर्ग में किसी काल में
यह प्रथा अस्तित्व रखती हो।
यहाँ पर यह भी विचारणीय है कि यह माता कुन्ती की अज्ञानतावश
लाई गई वस्तु को आपस में बाँट लेने के आदेश की अवज्ञा न कर सकने के कारण युधिष्ठिर
ने यह निर्णय लिया कि द्रौपदी उन पाँचों की पत्नी होगी और इस प्रकार द्रौपदी को
पांचाली बनना पड़ा। विभिन्न स्पष्टीकरण इस बात का भी वर्णन करते हैं कि कालान्तर
में यह प्रथा उन ब्राह्मणों द्वारा अस्वीकार कर दी गई जिन्होंने कई शताब्दियों के
काल में इस ग्रन्थ का पुनर्निर्माण किया।
(2) हिमालय क्षेत्र में इस प्रथा का आज भी प्रचलनबहुपति प्रथा के सम्बन्ध में
कुछ इतिहासकारों का यह भी स्पष्टीकरण है कि ब्राह्मणों द्वारा अस्वीकृत और अमान्य
की गयी यह प्रथा किन्हीं संकटकालीन परिस्थितियों के कारण उत्पन्न हुई हो; जैसे कि स्त्रियों की जनसंख्या में कमी होना। हिमालय के जौनसार बाबर
क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में इस प्रथा का प्रचलन आज भी है।
(3) बहुपति प्रथा के सम्बन्ध में आरंभिक स्रोतों के तथ्य आरंभिक स्रोतों
द्वारा इस तथ्य की पुष्टि होती है कि बहुपति प्रथा का प्रचलन बहुत ही कम था और न
ही यह एकमात्र विवाह पद्धति थी। महाभारतकालीन समय की अपनी परिस्थितियाँ थीं,
इसलिए इस ग्रन्थ के रचनाकारों द्वारा इस प्रथा को महाभारत के प्रमुख
पात्रों से जोड़ना समकालीन. सृजनात्मक साहित्य की कथा सम्बन्धी अपनी आवश्यकता रही
होगी। सम्पूर्ण समाज की वास्तविक मान्यताओं का इन कथाओं द्वारा आकलन वास्तविकता के
सम्पूर्ण पक्ष को पूर्णत: उजागर नहीं कर सकता।
स्रोत आधारित प्रश्न
निर्देश:
पाठ्य पुस्तक में बाक्स में दिये गए स्रोतों में कुछ जानकारी दी गई
है जिनसे सम्बन्धित प्रश्न दिए गए हैं। स्रोत तथा प्रश्नों के उत्तर यहाँ प्रस्तुत
हैं। परीक्षा में स्रोतों पर आधारित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
स्रोत - 1
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ संख्या 56)
प्रश्न 1. इस मन्त्र के सन्दर्भ में, विवाह का वधू और वर के
लिए क्या अभिप्राय है? इसकी चर्चा कीजिए। क्या ये अभिप्राय
समान हैं या फिर इनमें भिन्नतायें हैं ?
उत्तर:
इस मन्त्र के सन्दर्भ में विवाह का अभिप्राय वधू के लिये यह है कि
वह उत्तम पुत्रों को जन्म दे और पति के प्रेम का सौभाग्य उसे प्राप्त हो। वरं के
सम्बन्ध में विवाह का अभिप्राय यह है कि वह वधू को अपना प्रेम प्रदान करे और उसके
हृदय सिंहासन पर विराजमान हो। दोनों मिलकर उत्तम सन्तानों के द्वारा कुल को आगे
बढ़ायें। यह अभिप्राय समान है।
प्रश्न 2 "मैंइसे यहाँ से मुक्त करता हूँकिन्तु वहाँ से नहीं", इस वाक्य का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इस वाक्य का अर्थ है कि कन्यादान के बाद (यहाँ) यानी पितृगृह से
पुत्री मुक्त होकर वधू के रूप में वहाँ यानी पति के घर की स्वामिनी हो जाती है।
प्रश्न 3. यह प्रार्थना किस देवता से की गयी है ?
उत्तर:
यह प्रार्थना इन्द्र देवता से की गयी है कि वह दम्पत्ति पर अनुग्रह
करें और उन्हें उत्तम पुत्रों के प्रजनन का आशीर्वाद दें। इन्द्र, शौर्य, युद्ध और वर्षा के प्रमुख देवता हैं।
स्रोत-2
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 57)
स्वजन के मध्य लड़ाई क्यों हुई ?
प्रश्न 1 उद्धरण पढ़िए और नसारे मूल तत्वों की सूची तैयार कीजिए जिनका राजा बनने के
लिये प्रस्ताव किया गया है। एक विशेष कुल में जन्म लेना कितना महत्वपूर्ण था?
इनमें से कौन-सा मूल तत्व सही लगता है ? क्या
कोई ऐसा तत्व है जो आपको अनुचित लगता है।
उत्तर:
तत्कालीन परिस्थितियों में राजा बनने के लिये सभी भाइयों में
ज्येष्ठ होना, राजा का उत्तराधिकारी होना, शारीरिक रूप से दोषमुक्त तथा पूर्ण सक्षम होना, योग्य
एवं आचार-विचार में सदाचारी होना आदि मूल तत्व आवश्यक थे। एक विशेष कुल में जन्म
लेना अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है इससे व्यक्ति प्रत्यक्ष ही राज्य के
उत्तराधिकारी की दौड़ मे सम्मिलित हो जाता है। धृतराष्ट्र चूँकि नेत्रहीन थे इसलिए
पाण्डु का सिंहासन पर आसीन होना इस उद्धरण से सही मूल तत्व है। यहाँ दुर्योधन की
ईर्ष्या अनुचित प्रतीत होती है।
प्रश्न 2. इस उद्धरण का सम्बन्ध किस महाकाव्य से है?
उत्तर:
इस उद्धरण का सम्बन्ध महाभारत महाकाव्य से है।
प्रश्न 3. कौरवों के मुकाबले अधिक योग्य और सदाचारी कौन थे ?
उत्तर:
पाण्डव राजकुमार।
स्रोत - 3
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 58)
विवाह के आठ प्रकार
यहाँ मनुस्मति से पहली, चौथी, पाँचवीं और छठी विवाह पद्धति का उद्धरण दिया
जा रहा है- पहली : कन्या का दान, बहुमूल्य वस्त्रों और
अलंकारों से विभूषित होकर उसे वेदज्ञ वर को दान दिया जाए जिसे पिता ने स्वयं
आमंत्रित किया हो। "
चौथी : पिता वर-वधू
(युगल) को यह कहकर सम्बोधित करता है कि "तुम साथ मिलकर अपने दायित्वों का
पालन करों।" तत्पश्चात् वह वर का सम्मान कर उसे कन्या का दान करता है।
पाँचवीं : वर को वधू
की प्राप्ति तब होती है जब वह अपनी क्षमता व इच्छानुसार उसके बान्धवों को और स्वयं
वधू को यथेष्ट धन प्रदान करता है।
छठी : स्त्री और
पुरुष के बीच अपनी इच्छा से सम् ग जिसकी उत्पत्ति काम से है......
प्रश्न 1. इनमें से प्रत्येक विवाह-पद्धति के विषय में चर्चा कीजिए कि विवाह का
निर्णय किसके द्वारा लिया गया था
(क) वधू,
(ख) वर,
(ग) वधू का पिता
(घ) वर का पिता
(ङ) अन्य लोग।
उत्तर:
पहली विवाह पद्धति में विवाह का निर्णय पिता के द्वारा लिया गया तथा
पिता वर का चयन कर उसे आमन्त्रित करता है और कन्या का दान, बहुमूल्य
वस्त्रों और अलंकारों से विभूषित कर वेदज्ञ वर को करता है। चौथी विवाह पद्धति में
भी पिता द्वारा ही विवाह का निर्णय लिया जाता है। पाँचवीं विवाह पद्धति में विवाह
का निर्णय वर द्वारा वधू के परिवार को यथेष्ट धन प्रदान करने के बाद सन्तुष्ट होने
पर वधू के परिवार द्वारा लिया जाता है एवं छठी विवाह पद्धति में वर-वधू दोनों के
द्वारा विवाह का निर्णय स्वयं लिया जाता है जिसे प्रेम-विवाह कह सकते हैं।
प्रश्न 2. यह उद्धरण किस ग्रन्थ से लिया गया है ?
उत्तर:
यह उद्धरण मनुस्मृति से लिया गया है।
प्रश्न 3. प्रस्तुत उद्धरण में कितनी विवाह पद्धतियों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत उद्धरण में चार.विवाह पद्धतियों का उल्लेख किया गया है।
स्रोत-4.
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 59)
अभिलेखों में सातवाहन राजाओं के नाम
अभिलेखों में सातवाहन राजाओं की कई पीढ़ियों के नाम प्राप्त
हुए हैं। इन सभी नामों में राजा की एक जैसी पदवी पर ध्यान दीजिए। इसके अलावा अगले
शब्द को भी लक्षित कीजिए जिसका पुत्त से अन्त होता है। यह एक प्राकृत शब्द है
जिसका अर्थ है 'पुत्र'।
गोतमी-पुत्त का अर्थ है 'गोतमी का पुत्र'। गोतमी और वसिथि स्त्रीवाची नाम हैं गौतम और वशिष्ठ। ये दोनों । वैदिक
ऋषि थे जिनके नाम से गोत्र हैं।
1.
राजा गोतमी
- पुत्त सिरि-सातकनि
2.
राजा वसिथि
- पुत्त (सामि) सरि पुलमायि
3.
राजा गोतमी
- पुत्त सामि-सिरि-यन-सातकनि
4.
राजा मधारि
-प ुत्त स्वामि-सकसेन
5.
राजा हरिति
- पुत्त चत्तरपन सातकनि
6.
राजा हरिति
- पुत्त विनहुकद चतुकुलानन्द-सातकमनि।
7.
राजा गोतमी
- पुत्त सिरी-विजय-सातकनि
प्रश्न 1 यहाँ कितने राजा गोतमी पुत्त तथा कितने राजा वसिधि (वैकल्पिक वर्तनी वसधि)
पुत्त हैं ?
उत्तर:
उपरोक्त उद्धरण में तीन राजा गौतमी पुत्त तथा एक राजा वसिथि पुत्त
हैं।
प्रश्न 2. अभिलेखों से किन राजाओं की पीढ़ियों के नाम प्राप्त हुए हैं? पुत्त से क्या आशय है तथा यह किस भाषा का शब्द है?
उत्तर:
उपर्युक्त नाम सातवाहन राजाओं के हैं। पुत्त का अर्थ पुत्र होता है
जो प्राकृत भाषा का शब्द है।
प्रश्न 3. गोतमी और वसिथि के अतिरिक्त और कौन-कौन से गोत्र दिये गये हैं ?
उत्तर:
गोतमी और वसिथि के अतिरिक्त हरिति और मधारि दो अन्य गोत्र भी दिये
गये हैं।
स्रोत-6
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठसंख्या 61)
एक दैवीय व्यवस्था ?
अपनी मान्यता को प्रमाणित करने के लिये ब्राह्मण बहुधा
ऋग्वेद के पुरुषसूक्त मन्त्र को उद्धृत करते थे जो आदि मानव पुरुष की बलि का
चित्रण करता है। जगत के सभी तत्व जिनमें चारों वर्ण शामिल हैं, इसी पुरुष के शरीर से उपजे थे। ब्राह्मण
उसका मुँह था, उसकी भुजाओं से क्षत्रिय निर्मित हुआ। वैश्य
उसकी जंघा थी, उसके पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई।
प्रश्न 1. आपको क्या लगता है कि ब्राह्मण इस सूक्त को बहुधा क्यों उद्धृत करते थे ?
उत्तर:
अपनी मान्यता को प्रमाणित करने के लिये ब्राह्मण बहुधा पुरुषसूक्त
को इसलिए उद्धृत करते थे क्योंकि यह सूक्त उनकी श्रेष्ठता को प्रमाणित करता था।
सूक्त के अनुसार ब्राह्मणों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से हुई इसलिए वह अन्य
तीनों वर्गों से श्रेष्ठ है।
प्रश्न 2. पुरुषसूक्त ऋग्वेद के किस मण्डल से लिया गया है ?
उत्तर:
यह सूक्त ऋग्वेद के दसवें मण्डल से लिया गया है।
प्रश्न 3. ब्राह्मण इसे दैवीय व्यवस्था क्यों कहते थे ?
उत्तर:
ब्राह्मणों द्वारा इसे दैवीय व्यवस्था इसलिए कहा गया ताकि इस
व्यवस्था पर कोई प्रश्न चिह्न न लगा सके।
स्रोत-7
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 62)
'उचित' सामाजिक कर्तव्य
I. प्रश्न 1. इस कहानी के द्वारा निषादों को
कौन-सा सन्देश दिया जा रहा था?
उत्तर:
इस कहानी के द्वारा निषादों को दो विरोधाभाषी सन्देश दिये जा रहे
थे। पहला सन्देश यह था कि वह धनुर्विद्या के पात्र नहीं हैं, इस पर केवल क्षत्रियों का ही अधिकार है। दूसरा सन्देश यह प्राप्त होता है
कि श्रद्धा, लगन और निष्ठा से सतत् अभ्यास के द्वारा कोई भी
ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वे किसी से कमतर नहीं हैं।
प्रश्न 2. क्षत्रियों को इससे क्या सन्देश मिला होगा ?
उत्तर:
क्षत्रियों को इससे यह सन्देश प्राप्त होता है कि
प्रश्न 3.क्या आपको लगता है कि एक ब्राह्मण के रूप में द्रोण धर्मसूत्र का अनुसरण
कर रहे थे जब वे धनुर्विद्या की शिक्षा दे रहे थे ?
उत्तर:
धर्मसूत्रों में शूद्रों को विद्या अध्ययन की आज्ञा नहीं थी,
इसलिये धर्मसूत्रों के अनुसार द्रोण का यह कार्य उचित था परन्तु
गुरुदक्षिणा के रूप में अँगूठा माँगना कतई न्यायसंगत कार्य नहीं था।
प्रश्न 4 .द्रोण ने एकलव्य को अपना शिष्य स्वीकार करने से क्यों मना कर दिया?
उत्तर:
द्रोण कुरु राजकुमारों को धनुर्विद्या की शिक्षा देते थे, जबकि एकलव्य वनवासी निषाद (शिकारी समुदाय) था। अतः द्रोण ने धर्मानुसार
एकलव्य को अपना शिष्य स्वीकार करने से मना कर दिया।
प्रश्न 5. एकलव्य ने तीर चलाने की उत्तम कुशलता कैसे प्राप्त की?
उत्तर:
एकलव्य ने मिट्टी से द्रोण की प्रतिमा बनाई तथा उसे अपना गुरु मानकर
स्वयं ही तीर चलाने का अभ्यास कर तीर चलाने में उत्तम कुशलता प्राप्त की।
प्रश्न 6. एकलव्य ने अपने आप को पांडवों के समक्ष द्रोण का शिष्य होने का परिचय
क्यों दिया?
उत्तर:
जब कुरु राजकुमारों का कुत्ता एकलव्य की वेशभूषा को देखकर उस पर
भौंकने लगा तो क्रोधित होकर उसने एकसाथ सात तीर चलाकर कुत्ते का मुँह बंद कर दिया।
जब कुरु राजकुमारों ने यह देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए और एकलव्य को तलाशा तथा
उसने स्वयं को द्रोण का शिष्य बताते हुए अपना परिचय दिया।
प्रश्न 4. द्रोण ने अर्जुन को दिए अपने प्रण को कैसे पूरा किया?
उत्तर:
द्रोण ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसके दाहिने हाथ का अंगूठा
माँगा जो उसने फौरन काटकर दे दिया। अब एकलव्य तीर चलाने में उतना तेज नहीं रहा। इस
तरह द्रोण ने अर्जुन को दिए अपने प्रण को पूरा किया।
प्रश्न 5. क्या आप द्रोण के व्यवहार को एकलव्य के प्रति न्यायसंगत ठहराते हो?
यदि ऐसा है तो एक कारण दीजिए।
उत्तर:
नहीं, द्रोण का व्यवहार एकलव्य के प्रति
न्यायसंगत नहीं था। उनका व्यवहार अर्जुन की तरफ पक्षपातपूर्ण था।
स्रोत-9
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 65)
बाघ सदृश पति
यह.सारांश महाभारत के आदिपर्वन् से उद्धृत कहानी का है:
पाण्डव गहन वन में चले गये थे। थक कर वे सो गये; केवल द्वितीय पाण्डव भीम जो अपने बल के लिए प्रसिद्ध थे, रखवाली करते रहे। एक नरभक्षी राक्षस को पांडवों की मानुष गन्ध ने विचलित
किया और उसने अपनी बहन हिडिम्बा को उन्हें पकड़कर लाने के लिये भेजा।
हिडिम्बा भीम को देखकर मोहित हो गयी और एक सुन्दर स्त्री के
वेश में उसने भीम से विवाह का प्रस्ताव किया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। इस बीच राक्षस
वहाँ आ गया और उसने भीम को मल्ल युद्ध हेतु ललकारा। भीम ने उसकी चुनौती को स्वीकार
किया और उसका वध कर दिया। शोर सुनकर अन्य पाण्डव जाग गये। हिडिम्बा ने उन्हें अपना
परिचय दिया और भीम के प्रति अपने प्रेम से उन्हें अवगत कराया।
वह कुन्ती से बोली, "हे उत्तम देवी, मैंने मित्र, बान्धव
और अपने धर्म का भी परित्याग कर दिया है और आपके बाघ सदृश पुत्र का अपने पति के
रूप में चयन किया है चाहे आप मुझे मूर्ख समझें अथवा अपनी ही समर्पित दासी, कृपया मुझे अपने साथ लें और आपका पुत्र मेरा पति हो।" अन्ततः
युधिष्ठिर इस शर्त पर विवाह के लिये तैयार हो गये कि भीम दिनभर हिडिम्बा के पास
रहकर रात्रि में उनके पास आ जायेंगे।
यह दम्पत्ति दिनभर सभी लोकों की सैर करते। समय आने पर
हिडिम्बा ने एक राक्षस पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम घटोत्कच रखा। तत्पश्चात् माँ
और पुत्र पाण्डवों को छोड़कर वन में चले गये किन्तु घटोत्कच ने यह प्रण किया कि जब
भी पाण्डवों को उसकी जरूरत होगी वह उपस्थित हो जायेगा। कुछ इतिहासकारों का यह मत
है कि राक्षस उन लोगों को कहा जाता था जिनके आचार-व्यवहार उन मानदण्डों से भिन्न
थे, जिनका चित्रण ब्राह्मणीय
ग्रन्थों में हुआ था।
प्रश्न 1. इस सारांश में उन व्यवहारों को निर्दिष्ट कीजिए जो अब्राहाणीय प्रतीत होते
हैं।
उत्तर:
इस सारांश में नरभक्षी प्रवृत्ति, हिडिम्बा
द्वारा भीम को पकड़कर लाने हेतु भेजना, राक्षस द्वारा
अनावश्यक भीम को युद्ध के लिए ललकारना, हिडिम्बा द्वारा वेश
बदलकर सुन्दर स्त्री के रूप में भीम से विवाह का प्रस्ताव रखना आदि हिंसक और
छल-कपट भरे व्यवहार अब्राह्मणीय हैं। राक्षस उन लोगों को कहा जाता था जिनके
आचार-व्यवहार ब्राह्मणों के विपरीत होते थे।
प्रश्न 2. आदिपर्वन् की कहानी समाज के मूल्यों और सदाचार सम्बन्धों को किस प्रकार
प्रभावित करती थी?
उत्तर:
आदिपर्वन् की कहानी को पढ़ने तथा सुनने वाले लोग ब्राह्मण विचारों
का पालन करने के साथ-साथ उनका प्रसार भी करते थे। यह कथा वर्ण व्यवस्था से परे भी
लोगों के एक-दूसरे से सम्बन्ध रखने को दर्शाती है।
प्रश्न 3. यह कहानी बहिर्विवाह का एक अनूठा उदाहरण किस प्रकार था?
उत्तर:
परिवार से बाहर विवाह करने की प्रथा बहिर्विवाह कहलाती थी जिसका एक
अनूठा उदाहरण हिडिम्बा का विवाह है क्योंकि उसका समुदाय ब्राह्मण नियमों के
अंतर्गत नहीं आता है। उसने यह विवाह कर नारी की नियमित भूमिका को खुली चुनौती पेश
की थी।
प्रश्न 4. हिडिम्बा और युधिष्ठिर ने धर्म की व्याख्या किस प्रकार की थी?
उत्तर:
हिडिम्बा का विवाह एक ओर पितृवंशिकता को चुनौती था तो दूसरी ओर यह
मनुस्मृति द्वारा वर्णित प्रेम विवाह के आठ प्रकारों में से एक था। हिडिम्बा ने
सामाजिक नियमों से परे जाकर प्रेम को सर्वोपरि समझा तथा एक आदर्श पत्नी तथा
पुत्रवधू के धर्म को सामाजिक परम्पराओं के अनुसार निभाया। युधिष्ठिर ने धर्मराज के
रूप में पितृवंशिक व्यवस्था के आदर्शों का पालन करते हुए इस अनूठे बहिर्विवाह को
अनुमति दी।
स्रोत-10
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ संख्या 67)
बोधिसत्त्व एक चाण्डाल के रूप में
क्या चाण्डालों ने अपने को समाज की सबसे निचली श्रेणी में
रखे जाने का विरोध किया? यह कहानी पढ़िए जो पालि में
लिखी मातंग जातक से ली गयी है। इस कथा में बोधिसत्त्व (पूर्वजन्म में बुद्ध) एक
चाण्डाल के रूप में चित्रित हैं। एक बार बोधिसत्त्व ने बनारस नगर के बाहर एक
चाण्डाल के पुत्र के रूप में जन्म लिया, उनका नाम मातंग था।
एक दिन वे किसी कार्यवश नगर में गये और वहाँ उनकी मुलाकात दिथ्थ मांगलिक नामक एक
व्यापारी की पुत्री से हुई। उन्हें देखकर वह चिल्लाई, "मैंने
कुछ अशुभ देख लिया है।"
यह कहकर उसने अपनी आँखें धोईं। उसके क्रोधित सेवकों ने
मातंग की पिटाई की। विरोध में मातंग व्यापारी के घर के दरवाजे के बाहर लेट गये।
सातवें रोज घर के लोगों ने बाहर आकर दिथ्थ को उन्हें सौंप दिया। दिथ्य उपवास से
क्षीण हुए मातंग को लेकर चाण्डाल बस्ती में आई। घर लौटने पर मातंग ने संसार
त्यागने का निर्णय लिया।
अलौकिक शक्ति हासिल करने के उपरान्त वह बनारस लौटे और
उन्होंने दिथ्थ से विवाह कर लिया, माण्डव्य
कुमार नामक उनका एक पुत्र हुआ। बड़े होने पर उसने तीन वेदों का अध्ययन किया और
प्रत्येक दिन वह 16,000 ब्राह्मणों को भोजन कराता था। एक दिन
फटे वस्त्र पहने तथा मिट्टी का भिक्षापात्र हाथ में लिए मातंग अपने पुत्र के
दरवाजे पर आए और उन्होंने भोजन माँगा।
माण्डव्य ने कहा कि वे एक पतित आदमी प्रतीत होते हैं अतः
भिक्षा के योग्य नहीं, भोजन ब्राह्मणों के लिए है।
मातंग ने उत्तर दिया, "जिन्हें अपने जन्म पर गर्व है पर
अज्ञानी हैं वे भेंट के पात्र नहीं हैं। इसके विपरीत जो लोग दोषमुक्त हैं, वे भेंट के योग्य हैं।" माण्डव्य ने क्रोधित होकर अपने सेवकों से
मातंग को घर से बाहर निकालने को कहा। मातंग आकाश में जाकर अदृश्य हो गए। जब दिथ्थ
को माण्डव्य के इस प्रसंग के बारे में पता चला तो वह माफी माँगने के लिए उनके पीछे
आई। मातंग ने उससे कहा कि वह उनके भिक्षा पात्र में बचे हुए भोजन का कुछ अंश
माण्डव्य तथा ब्राह्मणों को दे दें
I. प्रश्न 1. इस कथा में उन तत्वों की ओर इंगित कीजिए
जिनसे यह ज्ञात होता हो कि वे मातंग के नजरिये से लिखे गए
उत्तर:
इस कथा में मातंग के नजरिए से लिखे गए तत्व निम्न हैं
(क) मातंग का लगातार 7 दिन तक दिथ्य के घर के
आगे उपवास करना,
(ख) मातंग का संसार त्यागने का निर्णय और अलौकिक शक्ति पाकर बनारस
लौटना,
(ग) मातंग का माण्डव्य को उत्तर जिन्हें अपने जन्म पर गर्व है पर
अज्ञानी है; वे भेंट के पात्र नहीं हैं। इसके विपरीत जो लोग
दोषमुक्त हैं; वे भेंट के योग्य हैं।"
(घ) मातंग का दिथ्य से कहना कि वह उनके भिक्षा-पात्र में बचे हुए
भोजन का कुछ अंश माण्डव्य तथा ब्राह्मणों को दे दें।
II. प्रश्न 1. चाण्डालों को समाज की सबसे निचली
श्रेणी में क्यों रखा जाता था?
उत्तर:
चाण्डालों को शवों की अंत्येष्टि करने तथा मृत पशुओं को छूने के
कारण दूषित माना जाता था तथा उनके स्पर्श को भी अपवित्र माना जाता था। इस कारण
उन्हें समाज की सबसे निचली श्रेणी में रखा जाता था।
प्रश्न 2. दिथ्थ मांगलिक ने मातंग को अशुभं क्यों समझा?
उत्तर:
दिथ्थ मांगलिक ने मातंग को चाण्डाल होने के कारण अशुभ समझा।
प्रश्न 3. इस स्रोत के आधार पर मातंग की भावनाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मातंग को नगर में देखकर दिथ्थ मांगलिक चिल्लाई “मैंने कुछ अशुभ देख लिया है।" तब उसके क्रोधित सेवकों ने मातंग की
पिटाई कर दी तब विरोधस्वरूप वह व्यापारी के घर के दरवाजे पर लेट गए जिससे उसकी
विरोध की भावना का पता चलता है। इसी तरह, अपने बेटे को अंतिम
रूप से क्षमा करने से उसकी स्नेह की भावनाओं का पता चलता है।
स्रोत-11
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 68)
द्रोपदी के प्रश्न
ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी ने युधिष्ठिर से यह प्रश्न किया था कि
वह उसे दाँव पर लगाने से पहले स्वयं को हार बैठे थे अथवा नहीं। इस प्रश्न के उत्तर
में दो भिन्न मतों को प्रस्तुत किया गया। प्रथम तो यह कि यदि युधिष्ठिर ने स्वयं
को हार जाने के पश्चात् द्रौपदी को दाँव पर लगाया तो यह अनुचित नहीं क्योंकि पत्नी
पर पति का नियन्त्रण सदैव रहता है। .. दूसरा यह कि एक दासत्व स्वीकार करने वाला
पुरुष (जैसे उस क्षण युधिष्ठिर थे) किसी और को दाँव पर नहीं लगा सकता। इन मुद्दों
का कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका और अन्ततः धृतराष्ट्र ने सभी पाण्डवों और द्रौपदी
को उनकी निजी स्वतन्त्रता पुनः लौटा दी।
I. प्रश्न
क्या आपको लगता है कि यह प्रकरण इस बात की ओर संकेत करता है कि
पत्नियों को पति की निजी सम्पत्ति माना जाये।
उत्तर:
द्रौपदी के प्रश्न का युधिष्ठिर कोई उत्तर न दे सके। प्रश्न के
उत्तर में जो दो मत प्रस्तुत किये गये; उनका कोई निष्कर्ष
नहीं निकल सका। धृतराष्ट्र द्वारा पाण्डवों और द्रौपदी को उनकी निजी स्वतन्त्रता
पुनः वापस लौटा देना, इस प्रकरण में इस बात को इंगित करता है
कि वस्तु के समान पत्नियों को पति की निजी सम्पत्ति मानना अनुचित है।
II. प्रश्न 1.
द्रौपदी के प्रश्न ने सभा में सबको बेचैन क्यों कर दिया?
उत्तर:
द्रौपदी अपने बड़ों से उसके साथ किए गए बर्ताव का स्पष्टीकरण माँग
रही थी। वह अपने पति तथा अपने बड़ों से 'दाँव' पर लगने की बात का प्रश्न पूछ रही थी, लेकिन किसी के
पास भी उसके प्रश्न का
उत्तर नहीं था। अतः द्रौपदी के प्रश्न ने सभा में सबको बेचैन कर
दिया।
प्रश्न 2.
उसके प्रश्न का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
सभा के लोगों के पास उसके प्रश्न का उत्तर नहीं थी। उसके प्रश्न ने
सबको अपनी सीमाओं पर विचार करने पर विवश किया। उसके कारण ही वह अपनी एवं अपने
पतियों की स्वतंत्रता की बात कर सकी।
प्रश्न 3.
द्रौपदी के प्रश्न को प्रशंसनीय क्यों माना जाता है?
उत्तर:
द्रौपदी ने बड़े लोगों की सभा में अपनी दशा पर.प्रश्न किया तथा
उन्हें,उनकी गलतियों से अवगत करवाया एवं उनके अंत:करण को
जागृत किया। अत: द्रौपदी के प्रश्न को प्रशंसनीय माना जाता है।'
स्रोत-12
(पाठ्यपुस्तक पृ. संख्या 69)
स्त्री और पुरुष किस प्रकार सम्पत्ति अर्जित कर सकते थे?
पुरुषों के लिए मनुस्मृति कहती है कि धन अर्जित करने के सात तरीके
हैं: विरासत, खोज,खरीद, विजित करके, निवेश, कार्य
द्वारा तथा सज्जनों द्वारा दी गई भेंट स्वीकार करके। स्त्रियों के लिए सम्पत्ति
अर्जन के छह तरीके हैं: वैवाहिक अग्नि के सामने तथा वधूगमन के समय मिली भेंट।
स्नेह के प्रतीक के रूप में भ्राता, माता और पिता के द्वारा
दिए गए उपहार । इसके अतिरिक्त परवर्ती काल में मिली भेंट तथा वह सब कुछ जो 'अनुरागी' पति द्वारा उसे प्राप्त हो।
प्रश्न 1. स्त्री और पुरुष किस प्रकार धन प्राप्त कर सकते थे? इसकी
तुलना कीजिए व अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनुस्मृति में पुरुषों के लिये धन प्राप्त करने के सात मार्ग बताये
गये हैं :
विरासत, खोज, विजय
प्राप्त करके, निवेश, कार्य द्वारा,
खरीद तथा सज्जनों द्वारा दी गयी भेंट स्वीकार करके महिलाओं के लिये
मनुस्मृति में धन प्राप्त करने के छः मार्ग बताये गये हैं, जो
इस प्रकार हैं विवाह, वधूगमन के समय मिली भेंट, स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट, भ्राता,
माता तथा पिता द्वारा दिये गये उपहार तथा परवर्ती काल में पति से
प्राप्त धन तथा वह सब कुछ जो अपने अनुरागी पति से प्राप्त हो।
तुलना:
मनुस्मृति के अनुसार पुरुष और स्त्री दोनों को ही धन प्राप्त करने
का अधिकार है। पुरुष सात तरीकों से धन प्राप्त कर सकते हैं एवं स्त्रियाँ छः
तरीकों से धन प्राप्त कर सकती हैं।
अन्तर:
1.
पुरुषों को
विरासत में पैतृक सम्पत्ति मिलती थी जबकि स्त्रियों को पिता की सम्पत्ति विरासत
में नहीं मिलती थी।
2.
पुरुष युद्ध
में विजय प्राप्त करके, खोज करके, निवेश एवं कार्य द्वारा अधिकांश धन प्राप्त करते थे, जबकि
स्त्रियों को अधिकांश धन भेंट से प्राप्त होता था
स्रोत-13
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 70)
एक धनाढ्य शूद्र
यह कहानी पालि भाषा के बौद्ध ग्रन्थ मज्झिमनिकाय से है जो
एक राजा अवन्ति पुत्र और बुद्ध के अनुयायी कच्चन के बीच हुए संवाद का हिस्सा है।
यद्यपि यह कहानी अक्षरशः सत्य नहीं थी तथापि यह बौद्धों के वर्ण सम्बन्धी रवैये को
दर्शाती है। अवन्तिपुत्र ने कच्चन से पूछा कि ब्राह्मणों के इस मत के बारे में
उनकी क्या राय है, कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं और अन्य
जातियाँ निम्नकोटि की हैं; ब्राह्मण का वर्ण शुभ्र है और
अन्य जातियाँ काली हैं; केवल ब्राह्मण पवित्र हैं अन्य नहीं;
ब्राह्मण ब्रह्मा के पुत्र हैं, ब्रह्मा के
मुख से जन्मे हैं, उनसे ही रचित हैं तथा ब्रह्मा के वंशज
हैं।
कच्चन ने उत्तर दिया- "क्या यदि शूद्र धनी
होता....दूसरा शूद्र.... अथवा क्षत्रिय या फिर ब्राह्मण अथवा वैश्य....उनसे विनीत
स्वर में बात करता ? अवन्तिपुत्र ने प्रत्युत्तर
में कहा कि यदि शूद्र के पास धन अथवा अनाज, स्वर्ण या फिर
रजत होता तो वह दूसरे शूद्र को अपने आज्ञाकारी सेवक के रूप में प्राप्त कर सकता था,
जो उससे पहले उठे और उसके बाद विश्राम करे; जो
उसकी आज्ञा का पालन करे, विनीत वचन बोले; अथवा वह क्षत्रिय, ब्राह्मण या फिर वैश्य को भी
आज्ञावाही सेवक बना सकता था। कच्चन ने पूछा, "यदि ऐसा
है तो क्या फिर यह चारों वर्ण एकदम समान नहीं हैं ?" अवन्तिपुत्र
ने स्वीकार किया कि इस आधार पर चारों वर्गों में कोई भेद नहीं है।
(I) प्रश्न 1. अवन्तिपुत्र के वक्तव्य में कौन से
विचार ऐसे हैं जो ब्राह्मणीय ग्रन्थों/परम्पराओं से लिये गये हैं ? क्या आप इनमें से किसी विचार के स्रोत की पहचान कर सकते हैं? इस ग्रन्थ के अनुसार सामाजिक असमानता के लिये क्या स्पष्टीकरण दिया जा
सकता है?
उत्तर:
इस वक्तव्य के अनुसार वे विचार जो ब्राह्मण ग्रन्थों से लिये गये
हैं; निम्नलिखित हैं -
ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ हैं, अन्य जातियाँ निम्न
कोटि की हैं। ब्राह्मण का वर्ण शुभ्र है अन्य जातियाँ काली हैं, केवल ब्राह्मण पवित्र हैं अन्य नहीं। ब्राह्मण ब्रह्मा के पुत्र हैं,
ब्रह्मा के मुख से जन्मे हैं, उनसे ही रचित
हैं तथा ब्रह्मा के वंशज हैं। उपरोक्त विचारों का स्रोत ऋग्वेद के दसवें मण्डल का
पुरुषसूक्त मंत्र है। इस ग्रन्थ के अनुसार सामाजिक असमानता का सीधा सम्बन्ध आर्थिक
स्थिति से है। धन ही व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का मापदण्ड है।
प्रश्न 2.
यह कहानी किस बौद्ध ग्रन्थ से ली गयी है?
उत्तर:
यह कहानी पालि भाषा के बौद्ध ग्रन्थ मज्झिमनिकाय से ली गयी है।
(II) प्रश्न 1.
ब्राह्मण अपने आपको अन्य जातियों से श्रेष्ठ क्यों समझते थे?
उत्तर:
ब्राह्मण बुद्धि, वर्ण, पवित्रता
तथा ब्रह्मा के पुत्र होने के आधार पर अपने आपको अन्य जातियों से श्रेष्ठ समझते
थे।
प्रश्न 2.
कच्चन के अनुसार एक शूद्र किस प्रकार अपने स्तर को सुधार सका?
.
उत्तर:
कच्चन के अनुसार एक शूद्र धन, आर्थिक स्थिति
तथा गरिमा के आधार पर अपने स्तर को सुधार सका।
प्रश्न 3.
यह कहानी वर्गों के संदर्भ में बौद्धों के विचारों से क्या ताल-मेल
खाती है?
उत्तर:
यह कहानी वर्गों के संदर्भ में बौद्धों के विचारों से निम्न प्रकार
ताल-मेल खाती है -
1.
जाति आधारित
विचारों की अस्वीकृति।
2.
जन्म के
आधार पर श्रेष्ठता के विचारों को खारिज करना।
3.
सामाजिक
समानता के लिए अनुरोध करना।
स्रोत - 15
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 76)
हस्तिनापुर
महाभारत के आदिपर्वन् में इस नगर का चित्रण इस प्रकार मिलता है। यह
नगर जो समुद्र की भाँति भरा हुआ था, जो सैकड़ों प्रासादों से
अलंकृत था। इसके सिंहद्वार, तोरण और कँगूरे सघन बादलों की
तरह घुमड़ रहे थे। यह इन्द्र की नगरी के समान शोभायमान था।
प्रश्न 1.
क्या आपको लगता है कि बी. बी. लाल की खोज और महाकाव्य में वर्णित
हस्तिनापुर में समानता है।
उत्तर:
1951-52 में पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल के नेतृत्व में मेरठ जिले
के हस्तिनापुर नामक गाँव में उत्खनन कार्य किया गया। इतिहासकारों ने इस सम्बन्ध
में कोई स्पष्ट मत नहीं दिया है लेकिन कुरु राज्य गंगा के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र
में इसी स्थान पर स्थित था। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि वर्तमान हस्तिनापुर
का यह पुरास्थल सम्भवतः कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर ही थी जिसका उल्लेख महाभारत
के 'आदिपर्वन्' में किया गया है।
प्रश्न 2.
महाभारत में वर्णित हस्तिनापुर नगर की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
महाभारत के आदिपर्वन् में वर्णित हस्तिनापुर नगर की प्रमुख
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
1.
हस्तिनापुर
समुद्र की भाँति भरा हुआ था जिसमें सैकड़ों की संख्या में महल थे।
2.
इसके
सिंहद्वार, तोरण एवं
कँगूरे बादलों की तरह घुमड़ रहे थे।

No comments:
Post a Comment