
























Class-12 Political Science
Chapter- 1 (राष्ट्र - निर्माण
की चुनौतियाँ)
अतिलघु
उत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1. जवाहरलाल नेहरू का 'ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी' भाषण कब व कहाँ दिया गया था?
अथवा
भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट या ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी
प्रसिद्ध भाषण किस प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू ने 'ट्रिस्ट विद
डेस्टनी' अथवा 'भाग्यवधू से
चिर-प्रतीक्षित भेंट' नामक भाषण 14 -
15 अगस्त, 1947 को मध्यरात्रि के
वक्त संविधान सभा में दिया था।
प्रश्न 2. स्वतंत्र भारत के समक्ष मुख्य रूप से कौन सी तत्कालीन चुनौती थी?
उत्तर:
देश की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखना।
प्रश्न 3. भारत में प्रथम गणतंत्र दिवस कब मनाया गया?
अथवा
भारत का संविधान कब से अमल में आया?
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 को।
प्रश्न 4. ब्रिटिश इण्डिया को कितने भागों में बाँटा गया?
उत्तर:
दो भागों में
1. भारत,
2. पाकिस्तान।
प्रश्न 5. भारत विभाजन के समय धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर विभाजित हुए दो
प्रान्तों के नाम बताइए।
अथवा
भारत के विभाजन में किन दो प्रान्तों का भी बँटवारा किया गया?
उत्तर:
1. पंजाब,
2. बंगाल।
प्रश्न 6. ब्रिटिश इण्डिया कितने हिस्सों में था?
उत्तर:
1. ब्रिटिश प्रभुत्त्व वाले प्रान्त,
2. देसी रजवाड़े।
प्रश्न 7. स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री कौन थे?
अथवा
स्वतंत्र भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
सरदार वल्लभ भाई पटेल।
प्रश्न 8. राष्ट्रीय आन्दोलन के नेता एक पंथ-निरपेक्ष राज्य के पक्षधर क्यों थे?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन के नेता एक पंथ - निरपेक्ष राज्य के पक्षधर इसलिए
थे क्योंकि किसी धर्म विशेष को राज्य का संरक्षण दिया जाना भारत के विभिन्न
धर्मावलम्बियों के मूल अधिकारों का हनन करेगा।
प्रश्न 9. 'इंस्ट्रमेंट ऑफ़ एक्सेशन' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभिन्न रजवाड़ों व रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में विलय के
एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस सहमति पत्र को 'इंस्ट्रमेंट
ऑफ़ एक्सेशन' कहा जाता है।
प्रश्न 10. भारत के किस राज्य में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाकर
सर्वप्रथम चुनाव हुए थे?
उत्तर:
मणिपुर राज्य में।
प्रश्न 11. राज्य पुनर्गठन अधिनियम कब लागू किया गया?
उत्तर:
सन् 1956 में।
प्रश्न 12. राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर भारत में कितने राज्य व केन्द्र -
शासित प्रदेश बनाए गए?
उत्तर:
14 राज्य व 6 केन्द्र - शासित
प्रदेश।
प्रश्न 13. आन्ध्र प्रदेश राज्य की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
दिसम्बर 1952 में।
प्रश्न 14. सन् 2000 में किन-किन राज्यों का निर्माण
किया गया?
उत्तर:
1. झारखण्ड,
2. छत्तीसगढ़,
3. उत्तरांचल (वर्तमान नाम - उत्तराखण्ड)।
प्रश्न 15. निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए:
उत्तर:
|
भारतीय
राज्य |
भारतीय
संघ में विलय की विधि |
|
(i) विलय समझौता |
(अ) हैदराबाद |
|
(ii) सैनिक कार्यवाही |
(ब) जूनागढ़ |
|
(iii) जनमत संग्रह |
(स) मणिपुर |
प्रश्न 16. मेघालय का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1972 में।
प्रश्न 17. ऐसे दो देसी रजवाड़ों के नाम लिखिए जिन्होंने स्वतंत्रता के पश्चात, भारत के साथ विलय करने का विरोध किया?
उत्तर:
हैदराबाद तथा कश्मीर।
प्रश्न 18. देसी रजवाड़ों के राजाओं द्वारा 'इंस्ट्रमेंट
ऑफ़ एक्सेशन' पर हस्ताक्षर किए जाने का क्या अर्थ था?
उत्तर:
अब वे भारतीय संघ का हिस्सा हैं।
प्रश्न 19. हैदराबाद के लोगों ने निजाम के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
उत्तर:
क्योंकि वे भारत का हिस्सा बनना चाहते थे।
लघु
उत्तरात्मक प्रश्न (SA1):
प्रश्न 1. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने मुख्यतः दो कौन - कौन सी
चुनौतियाँ थीं?
अथवा
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष किन्हीं दो मुख्य
चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष निम्नलिखित दो मुख्य
चुनौतियाँ थीं।
(i) क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखना: भारत अपने आकार व विविधता में किसी भी महादेश से कम नहीं है। यहाँ अलग -
अलग भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं, उनकी संस्कृति अलग
है और विभिन्न धर्मों को मानने वाले हैं। इन सभी में एकता स्थापित करना तत्कालीन
समय की एक प्रमुख चुनौती थी।
(ii) लोकतंत्र को कायम रखना: देश में लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करने के साथ - साथ संविधान के
अनुकूल लोकतांत्रिक व्यवहार एवं बर्ताव की व्यवस्था करना भी तत्कालीन समय की
आवश्यकता थी।
प्रश्न 2. भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का क्या आधार तय किया गया?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का यह आधार तय किया गया कि विभाजन
धार्मिक बहुसंख्या के आधार पर होगा। अर्थात् जिन क्षेत्रों में मुस्लिम बहुसंख्यक
थे, वे क्षेत्र 'पाकिस्तान' के भू - भाग होंगे तथा शेष भाग 'भारत' कहलाएँगे।
प्रश्न 3. ऐसे किन्हीं दो कारणों का विश्लेषण कीजिए जो पाकिस्तान के बनने के लिए
उत्तरदायी थे?
उत्तर:
1. मुस्लिम लीग द्वारा 'द्वि: राष्ट्र सिद्धान्त' को प्रस्तावित किया जाना तथा यह कहना कि भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि
हिन्दू और मुसलमान नामक दो कौमों का देश है।
2. ब्रिटिश शासन की भूमिका का विभाजन के पक्ष में होना।
प्रश्न 4. मुस्लिम लीग ने 'द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त' की बात क्यों की थी? इसका क्या परिणाम हुआ?
अथवा
मुस्लिम लीग द्वारा प्रस्तुत द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त क्या था?
उत्तर:
मुस्लिम लीग के द्वि: राष्ट्र सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम
का नहीं बल्कि 'हिन्दू' और 'मुसलमान' नाम की दो कौमों का देश था और इसी
कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की माँग की और यह माँग
मान भी ली गयी।
प्रश्न 5. भारत धर्म निरपेक्ष राज्य कैसे बना? तर्क सहित
उत्तर दीजिए।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु 1951 में भारत में 12% मुसलमान थे फिर भी लोकतांत्रिक भारत में मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी और यहूदियों के साथ समानता का
व्यवहार किया गया। इस प्रकार भारत एक धर्म - निरपेक्ष राष्ट्र बना।
प्रश्न 6. पंजाब और बंगाल का बँटवारा करने का क्या आधार सुनिश्चित किया गया?
उत्तर:
'ब्रिटिश इण्डिया' के मुस्लिम बहुल
प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर - मुस्लिम आबादी वाले थे।
अतः निर्णय हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार
पर होगा और इसमें जिले या उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हल्के को आधार बनाया
जाएगा।
प्रश्न 7. विभाजन की त्रासदी बताने हेतु कोई तीन घटनाएँ बताइए।
अथवा
"पाकिस्तान बनने की बात थोड़ी आसान लगती थी, परन्तु इसके बनने से कई विकट कठिनाइयाँ पैदा हुईं।" उनमें से किन्हीं
दो कठिनाइयों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. स्वयं परिवार के लोगों ने अपने 'कुल की इज्जत' बचाने के नाम पर घर की बहू - बेटियों तक को मार डाला। बहुत से बच्चे अपने
माँ - बाप से बिछुड़ गए।
2. वित्तीय सम्पत्ति के साथ - साथ टेबिल - कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्ययंत्रों तक का बँटवारा हुआ।
3. धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से
मारा।
प्रश्न 8. महात्मा गाँधी ने 14 अगस्त,
1947 को कहा, 'कल का दिन हमारे लिए खुशी
का दिन होगा और गम का भी।' महात्मा गाँधी के अनुसार 15 अगस्त 1947 खुशी एवं गम (दोनों) का दिन
क्यों होगा?
उत्तर:
कल का दिन अर्थात् 15 अगस्त,
1947 का दिन खुशी एवं गम का दिन इसलिए होगा क्योंकि एक ओर भारत
को अनेक वर्षों के बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक राज्य से छुटकारा मिलेगा, देश स्वतंत्र होगा तो खुशी होगी। दूसरी ओर देश की एकता और अखण्डता खत्म हो
जायेगी। देश का विभाजन होगा। भारत, दो देशों ( भारत या
हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान) में बँट जाएगा इसलिए यह दिन इतिहास में गम का दिन भी
कहलायेगा।
प्रश्न 9. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
(i) द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त
(ii) मुस्लिम लीग।
उत्तर:
1. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के
अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि हिन्दू और मुसलमान नाम की दो कौमों का देश
था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश अर्थात् पाकिस्तान की
माँग की थी।
2. मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ढाका में हुई थी। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को लेकर 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस
मनाया। मुस्लिम लीग ने द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त की बात कर पाकिस्तान की माँग की थी।
प्रश्न 10. 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
फजल अली आयोग की रिपोर्ट 1955 में
आयी जिसके आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन
अधिनियम बना। इसके तहत भारत में भाषा के आधार पर 14 राज्यों का गठन किया गया। 6 केन्द्र-शासित
प्रदेश बनाये गये। बम्बई और पंजाब को द्विभाषी राज्य बनाया गया। इसके विरोध में
आन्दोलन हुए जिनके परिणामस्वरूप 1960 में गुजराती
भाषी लोगों के लिए गुजरात तथा 1966 में पंजाब से
अलग करके हरियाणा बना।
लघु
उत्तरात्मक प्रश्न (SA2):
प्रश्न 1. 'आजाद हिन्दुस्तान का जन्म अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में हुआ।' स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
14 - 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि
को हिन्दुस्तान आजाद हुआ। हिन्दुस्तान की जनता इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी
परन्तु यह कोई आसान कार्य नहीं था। आजाद हिन्दुस्तान का जन्म अत्यन्त कठिन
परिस्थितियों में हुआ। हिन्दुस्तान जब आजाद हुआ उस समय कोई भी राष्ट्र इस प्रकार
की परिस्थितियों में आजाद नहीं हुआ था। आजादी मिलने का स्वप्न देश के बँटवारे के
साथ पूरा हो सका। सन् 1947 का साल अभूतपूर्व हिंसा
व विस्थापन की त्रासदी का साल था। इन्हीं कठिन परिस्थितियों में अपने विभिन्न
लक्ष्यों को आजाद हिन्दुस्तान को प्राप्त करना था। नए राष्ट्र के सामने अनेक
चुनौतियाँ भी थीं, जिनका सामना हिन्दुस्तान को करना था।
आजादी
के उन कष्टकारी दिनों में भी हमारे नेताओं का ध्यान इस लक्ष्य से नहीं भटका कि यह
नव स्वतंत्र भारत चुनौतियों की चपेट में है। बँटवारे के कारण बड़े पैमाने पर हिंसा
हुई। लोग विस्थापित हुए तथा इस घटना से धर्मनिरपेक्ष भारत की धारणा पर ही आँच आने
लगी। दोनों देशों के भू-भाग को रेखांकित करते हुए सीमा-रेखा खींच दी गई। इस प्रकार
यह कथन पूर्णत: उपयुक्त है कि 'आजाद हिन्दुस्तान का जन्म अत्यन्त
कठिन परिस्थितियों में हुआ।'
प्रश्न 2. भारत ने स्वतंत्रता के समय किन तीन चुनौतियों का सामना किया?
अथवा
भारत की स्वतंत्रता के समय, देश के
समक्ष आई किन्हीं तीन चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
5 अगस्त, 1947 को भारत को
स्वतंत्रता प्राप्त हुई और एक नए राष्ट्र के रूप में भारत विश्व पटल पर उदित हुआ।
स्वाधीन भारत का जन्म अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में हुआ। स्वाधीन भारत के सामने
विभिन्न चुनौतियाँ थीं, इनमें से तीन प्रमुख
चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं।
(i) देश की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखने की चुनौती : स्वतंत्र भारत के सामने सर्वप्रथम व तात्कालिक चुनौती विविधता में एकता
लाने के लिए भारत को गढ़ने की थी क्योंकि स्वतंत्रता, भारत
विभाजन की शर्त पर प्राप्त हुई थी। तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार यही माना जा
रहा था कि इतनी अधिक विविधताओं से भरा कोई देश अधिक दिनों तक एकता के सूत्र में
बँधा नहीं रह सकता। इस प्रकार सर्वाधिक बड़ी चुनौती भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को
कायम रखना था।
(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की चुनौती : स्वाधीन भारत के समक्ष दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम
करने की थी। भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया।
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की गारण्टी दी गयी है तथा प्रत्येक नागरिक को
मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है। परन्तु केवल इतने से ही कार्य नहीं चलता, चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार प्रचलन में
लाए जाएँ।
(iii) आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारण करना : स्वतंत्र भारत के सामने तीसरी बड़ी चुनौती थी कि आर्थिक विकास हेतु नीति
निर्धारित करना। इन नीतियों के आधार पर सम्पूर्ण समाज का विकास होना था, किन्हीं विशेष वर्गों का नहीं। संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि
समाज में सभी वर्गों के साथ समानता का व्यवहार किया जाए। संविधान में नीति -
निर्देशक सिद्धान्तों' का प्रावधान किया गया जिनका
मुख्य उद्देश्य लोककल्याण व सामाजिक विकास था। अतः देश के सामने मुख्य चुनौती
आर्थिक विकास तथा गरीबी खत्म करने हेतु कारगर नीतियों के निर्धारण की थी।
प्रश्न 3. पंजाब और बंगाल का बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी किस प्रकार साबित
हुआ?
उत्तर:
विभाजन की प्रक्रिया में अनेक समस्याएँ सामने आईं। 'ब्रिटिश इण्डिया' के मुस्लिम बाहुल्य प्रान्त
पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर - मुस्लिम आबादी वाले थे। इस स्थिति
में फैसला हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार
पर होगा तथा इसमें जिले या उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हल्के को आधार बनाया
जायेगा। 14 - 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था इसका मतलब था कि स्वतंत्रता
के दिन तक अनेक लोगों को यह पता नहीं था कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में।
देश विभाजन के समय पंजाब के साथ-साथ बंगाल का भी दो भागों में
विभाजन हुआ। एक भाग पूर्वी बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) तथा बंगाल के उस भाग को
जो भारत का अंग बना रहा उसे पश्चिम बंगाल कहा गया। आज तक इसे इसी नाम से जाना जाता
है। इस प्रकार भारत को स्वतंत्रता अवश्य प्राप्त हुई परन्तु विभाजन की त्रासदी के
साथ। इसी क्रम में पंजाब और बंगाल का बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी साबित
हुआ।
प्रश्न 4. आजाद भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने के लिए हमारे नेतागणों ने
क्या-क्या प्रयास किए?
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् कुछ ऐसे संगठन सक्रिय थे जो भारत को
हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिन्दुओं को लामबंद करने की कोशिश में लगे थे, परन्तु भारत की कौमी सरकार के अधिकांश नेतागण सभी नागरिकों को समान दर्जा
देने के पक्षधर थे, चाहे नागरिक किसी भी धर्म का हो। वे
भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में नहीं देखना चाहते थे जहाँ किसी एक धर्म के
अनुयायियों को दूसरे धर्मावलम्बियों से ऊँचा माना जाए तथा अन्य को हीन माना जाए।
नागरिकता की कसौटी धर्म को नहीं बनाया जाना चाहिए। हमारे नेताओं के धर्मनिरपेक्ष
राज्य के आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। नवीन संविधान के द्वारा
भारत में धर्मनिरपेक्ष समाजवादी राज्य की स्थापना की गयी।
इस प्रकार समस्त सम्प्रदायों के लोगों को समान अधिकार व अवसर प्रदान
किए गए। हमारे नेतागणों के प्रयासों के फलस्वरूप भारत में धर्म अथवा सम्प्रदाय के
आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। भारतीय संविधान की मुख्य विशेषता भारत में
राष्ट्रीयता व एकता की भावना को बढ़ाना है। पं० जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में,
'हमें अपने अल्पसंख्यकों के साथ सभ्यता और शालीनता के साथ पेश आना
है। लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में हमें उन्हें नागरिकों के अधिकार देने होंगे और
उनकी रक्षा करनी होगी। अगर हम ऐसा करने में कामयाब नहीं होते तो यह एक नासूर बन
जाएगा जो पूरी राज-व्यवस्था में जहर फैलाएगा और शायद उसको तबाह भी कर दे।'
प्रश्न 5. भारत के विभाजन अथवा एक राष्ट्र को दो टुकड़ों-भारत और पाकिस्तान में
बँटने से सम्बन्धित किन्हीं दो परिणामों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
14 - 15 अगस्त, 1947 को एक नहीं
बल्कि दो राष्ट्र - भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आए। सन् 1947 में बड़े पैमाने पर एक स्थान की आबादी दूसरे स्थान पर जाने को मजबूर हुई।
भारत और पाकिस्तान विभाजन के निम्नलिखित दो परिणाम थे।
(i) आबादी का स्थानान्तरण : अगस्त, 1947 में बड़े पैमाने पर एक जगह की
आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई। लगभग 80 लाख
लोगों को एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में जाने के लिए विवश कर दिया गया। आबादी का
यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था।
मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह एक था।
(ii) हिंसक अलगाववाद : विभाजन
में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही
बँटवारा नहीं हुआ बल्कि इस विभाजन में दो समुदाय जो अब तक पड़ोसियों की तरह रहते
थे उनमें हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने
दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा। अल्पसंख्यकों पर अवर्णनीय
अत्याचार हो रहे थे। साम्प्रदायिक हिंसा ने लगभग पाँच लाख लोगों को निगल लिया था
तथा इस साम्प्रदायिक ताण्डव में करोड़ों की सम्पत्ति लूट ली गयी तथा बर्बाद कर दी
गयी थी।
प्रश्न 6. देसी रियासतों के भारतीय संघ में विलय होने में कौन - कौनसी कठिनाइयाँ थीं? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत
पर ब्रिटिश प्रभुत्व समाप्त होने के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश अधीनता से स्वतंत्र
हो जायेंगे। इसका तात्पर्य यह था कि सभी रजवाड़े ब्रिटिश राज्य की समाप्ति के साथ
ही कानूनी तौर पर स्वतंत्र हो जायेंगे। अंग्रेजी राज का दृष्टिकोण यह था कि
रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहे तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना
स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र
हैसियत बनाए रखने का फैसला रजवाड़ों की प्रजा को करना था। यह फैसला लेने का अधिकार
राजाओं को दिया गया था। यह अपने आपमें एक बड़ी गम्भीर समस्या थी और इससे अखण्ड
भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा था।
समस्या
ने शुरुआती दौर में ही अपने तेवर दिखाने शुरू किए। सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने
अपने राज्य को स्वतंत्र रखने की घोषणा की। अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने ऐसी ही
घोषणा की। कुछ शासक जैसे भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल नहीं होना चाहते थे।
रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात साफ हो गयी कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान कई
छोटे - छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का लक्ष्य
एकता और आत्म - निर्णय के साथ-साथ लोकतंत्र का मार्ग अपनाना था। इसे देखते हुए यह
स्थिति अपने आप में बड़ी विचित्र थी।
प्रश्न 7. भारत संघ में हैदराबाद के विलय का विवरण दीजिए।
अथवा
हैदराबाद के भारत में विलय के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों को
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित एक विशाल रियासत थी। इसकी
जनसंख्या एक करोड़ चालीस: ब थी जिनमें 35 प्रतिशत
हिन्दू थे। इसका शासक निजाम उस्मान अली खान था तथा उसका ब्रिटिश शासन के साथ एक
विशेष सम्बन्ध था। यह रियासत चारों तरफ से हिन्दूबहुल इलाके से घिरी थी। हैदराबाद
के शासक को 'निजाम' कहा जाता
था। निजाम चाहता था कि हैदराबाद की रियासत को आजाद रियासत का दर्जा दिया जाए।
हैदराबाद की रियासत के लोगों के बीच निजाम के शासन के खिलाफ एक
आन्दोलन ने जोर पकड़ा। तेलंगाना के किसान निजाम के दमनकारी शासन से दुखी थे।
आन्दोलन को देख निजाम ने लोगों के खिलाफ एक अर्द्ध-सैनिक बल (रज़ाकार) रवाना किया।
रज़ाकार साम्प्रदायिक और अत्याचारी थे। रज़ाकारों ने गैर - मुसलमानों को मुख्य रूप
से अपना निशाना बनाया।
रज़ाकारों ने लूट - पाट मचाई तथा हत्या व बलात्कार पर उतारू हो गये।
सन् 1948 के सितम्बर में भारतीय सेना, निजाम के सैनिकों पर काबू पाने हेतु हैदराबाद आ पहुँची। कुछ दिनों तक
रुक-रुक कर लड़ाई चली तथा इसके बाद निज़ाम ने आत्म-समर्पण कर दिया। निज़ाम के
आत्म-समर्पण करते ही 17 सितम्बर,
1948 ई. को हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हो गया।
प्रश्न 8. मणिपुर के भारत संघ में विलय के लिए उत्तरदायी घटनाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में मणिपुर के विलय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मणिपुर रियासत का भारत संघ में विलय का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं
के आधार पर किया जा सकता है।
(i) भारत सरकार और मणिपुर के महाराजा में समझौता : स्वतंत्रता
प्राप्ति के कुछ समय पूर्व मणिपुर के महाराजा बोधचन्द्र सिंह ने भारत सरकार के साथ
भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय के सम्बन्ध में एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर
किए थे। इसके फलस्वरूप उन्हें यह आश्वासन दिया गया था कि मणिपुर की आन्तरिक
स्वायत्तता बरकरार रहेगी।
(ii) चुनाव कार्य : जनमत के दबाव में महाराजा
ने जून 1948 में चुनाव सम्पन्न करवाया और मणिपुर
रियासत में संवैधानिक राजतंत्र स्थापित हुआ। मणिपुर भारत का पहला राज्य है जहाँ
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाकर चुनाव हुए।
(iii)
राजनैतिक दलों में मतभेद : मणिपुर
की विधानसभा में भारत में विलय पर गम्भीर मतभेद उत्पन्न हो गए थे। मणिपुर की
कांग्रेस चाहती थी कि इस रियासत को भारत में सम्मिलित कर दिया जाए जबकि अन्य
राजनीतिक पार्टियाँ इसके विरुद्ध थीं।
(iv) अन्तिम समझौता व विलय : मणिपुर की निर्वाचित
विधानसभा से परामर्श किए बिना भारत सरकार ने महाराजा पर दबाव डाला कि वे भारतीय
संघ में सम्मिलित होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दें। भारत सरकार को इसमें सफलता
भी प्राप्त हुई। मणिपुर में इस कदम को लेकर जनता में क्रोध और नाराजगी के भाव पैदा
हुए। इसका प्रभाव अभी भी देखा जा सकता है।
प्रश्न 9. भारत के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
अथवा
सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा देसी रियासतों के भारत में विलय के
लिए किए गए प्रयत्नों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सरदार वल्लभ भाई पटेल को 'लौह पुरुष' कहा जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् रियासतों का भारत में विलय
करना सरल कार्य नहीं था। इस कार्य में दो प्रमुख बाधाएँ थीं- प्रथम जिन्ना द्वारा
स्वयं को पूर्ण स्वतंत्र करना व भारत तथा पाकिस्तान दोनों से सम्बन्ध रखना। परन्तु
सरदार पटेल ने असाधारण योग्यता का परिचय दिया। 5 जुलाई,
1947 ई. को सरदार पटेल की अध्यक्षता में स्टेट विभाग' की स्थापना की गयी।
स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री की हैसियत से पटेल ने सबसे पहले 565 रजवाड़ों का भारत संघ में विलय करना ही अपना पहला कर्त्तव्य समझा। सरदार
पटेल ने देखा कि 565 राज्यों में से 100 राज्य प्रमुख थे, जैसे हैदराबाद, कश्मीर, बड़ौदा, ग्वालियर, मैसूर आदि। सरदार पटेल के नेतृत्व में ही 'इंस्ट्रमेंट ऑफ़ एक्सेशन' तैयार किया गया।
उन्होंने ही राजाओं और राजकुमारों से इस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए।
जाओं को इसके लिए सहमत करना अत्यन्त कठिन कार्य था। जूनागढ़, हैदराबाद व कश्मीर की रियासतों का भारत में विलय करने के लिए सरदार पटेल
को सेना की सहायता भी लेनी पड़ी। इसके अलावा उन्होंने रियासतों से अपील की कि वे
भारत की अखण्डता को बनाए रखने में उनकी सहायता करें। इस प्रकार सभी रियासतों का
भारत में विलय करने में सरदार पटेल सफल रहे। यह उनकी असाधारण उपलब्धि थी, जिसने भारत की अखण्डता की रक्षा की।
प्रश्न 10. भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने में सरकार को किस प्रकार की
कठिनाइयाँ आने की आशंका थी?
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् विभिन्न राज्यों के पुनर्गठन की मांग उठने
लगी। बँटवारे और देशी रियासतों के विलय के साथ ही राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया का
अंत नहीं हुआ। भारतीय प्रान्तों की आंतरिक सीमाओं को तय करने की चुनाती अभी सामने
थी। विभिन्न राज्यों से भाषाई भेदभाव की शिकायतें प्राप्त हो रही थीं।
इस प्रकार की शिकायतें बम्बई तथा असम में अधिक थीं। यहाँ के
अल्पसंख्यक लोगों को यह भय था कि बहुमत वाले लोग अन्य भाषाओं को विकसित नहीं होने
देंगे, इसलिए ये लोग भाषायी आधार पर अलग राज्य की माँग
करने लगे। यह केवल एक प्रशासनिक विभाजन का मामला नहीं था। प्रान्तों की सीमाओं को
इस प्रकार तय करने की चुनौती सामने थी कि देश की भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता की
झलक मिले, साथ ही राष्ट्रीय एकता भी छिन्न-भिन्न न हो।
औपनिवेशिक
शासन के समय प्रान्तों की सीमाएँ प्रशासनिक सुविधा के लिहाज से तय की गयी थीं या
ब्रिटिश सरकार ने जितने क्षेत्र को जीत लिया हो उतना क्षेत्र एक अलग प्रान्त मान
लिया जाता था। प्रान्तों की सीमा इस बात से भी निश्चित होती थी कि किसी रजवाड़े के
अन्तर्गत कितना क्षेत्र सम्मिलित है। साथ ही हमारे नेताओं को यह चिन्ता थी कि यदि
भाषा के आधार पर प्रान्त बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फैल सकती है और देश के टूटने
का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
प्रश्न 11. भाषाई आधार पर राज्य पुनगठन मामले ने देश में अलगाववाद की भावना को पनपाने
के स्थान पर उसे मजबूती प्रदान की है। कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आजादी के बाद के शुरूआती सालों में एक बड़ी चिन्ता यह थी कि अलग
राज्य बनाने की माँग से देश की एकता पर आँच आयेगी। आशंका थी कि नये भाषाई राज्यों
में अलगाववाद की भावना पनपेगी और नव - निर्मित भारतीय राष्ट्र पर दबाव बढ़ेगा।
जनता के दबाव में आखिकार भारत सरकार ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का मन
बनाया।
(i) उम्मीद थी कि अगर प्रत्येक क्षेत्र के क्षेत्रीय और भाषाई
दावे को मान लिया गया तो बँटवारे और अलगाववाद के खतरे में कमी आयेगी।
(ii) इसके अलावा क्षेत्रीय मांगों को मानना और भाषा के आधार पर
नये राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में भी देखा गया। राज्यों के
भाषाई पुनगर्छन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला है।
अनेक आशंकाओं के विपरीत देश आज भी अखण्डित रूप में है बल्कि इससे
देश की एकता और अधिक मजबूत हुई है। भाषाई राज्यों के पुनगर्छन से विभिन्नता के
सिद्धान्त को भी स्वीकृति प्राप्त हुई है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भाषाई आधार
राज्य पुनर्गठन मामले ने देश में अलगाववाद की भावना को पनपाने के स्थान पर उसे
मजबूती प्रदान की है।
प्रश्न 12. भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन ने कैसे सिद्ध किया कि भारत में
लोकतंत्र की धारणा, विचारों तथा जीवन पद्धतियों की
बहुलता की धारणा से जुड़ी हुई है?
अथवा
भाषाई आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम किस
प्रकार साबित हुआ? समझाइए।
उत्तर:
भारत के लोकतांत्रिक देश होने का अर्थ है-विभिन्नताओं को पहचानना व
उन्हें स्वीकार करना। इसके साथ ही यह मानकर चलना कि विभिन्नताओं में परस्पर विरोध
भी हो सकते हैं। अन्य शब्दों में कहें तो, भारत में
लोकतंत्र की धारणा विचारों और जीवन पद्धति की बहुलता की धारणा से जुड़ी हुई है।
सन् 1952 से लेकर सन् 2014 तक लगातार कई राज्यों के पुनर्गठन हुए हैं और पुनर्गठित राज्यों में पहले
की अपेक्षा अधिक आन्तरिक शान्ति का माहौल देखा जा सकता है।
पुनर्गठित
राज्यों के आर्थिक विकास का संदर्भ भी लिया जा सकता है। इसी प्रकार क्षेत्रीय
आकांक्षाओं का सीधा सम्बन्ध क्षेत्र विशेष के लोगों की विचारधारा और जीवन शैली से
है। क्षेत्रीय मांगों को मानना तथा भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक
लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया।
भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आन्दोलनों ने
लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। भाषाई
पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला। इससे देश की एकता
और अधिक मजबूत हुई। भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता में एकता के
सिद्धान्त को स्वीकृति मिली। लोकतंत्र को चुनने का अर्थ था विभिन्नताओं को पहचानना
तथा उन्हें स्वीकार करना। अतः भाषाई आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक
लोकतांत्रिक कदम साबित हुआ।
प्रश्न 13. आन्ध्र प्रदेश के गठन के संदर्भ में पोट्टी श्रीरामुलु किस प्रकार
सम्बन्धित हैं?
अथवा
पोट्टी श्रीरामुलु ने आन्ध्र प्रदेश के निर्माण के सम्बन्ध में
क्या-क्या प्रयास किए?
अथवा
पोट्टी श्रीरामुलु की मृत्यु भाषा पर आधारित राज्यों के पुनर्गठन
का आधार कैसे बनी?
उत्तर:
पुराने मद्रास प्रान्त के अन्तर्गत आज के तमिलनाडु तथा आन्ध्र
प्रदेश भी सम्मिलित थे। इसके कुछ भाग वर्तमान केरल व कर्नाटक में भी हैं। इस समय
विशाल आन्ध्र आन्दोलन ने माँग की कि मद्रास प्रान्त के तेलुगुभाषी क्षेत्रों को
अलग करके एक नया राज्य आन्ध्र प्रदेश बनाया जाये। तेलुगुभाषी क्षेत्र की लगभग सभी
राजनीतिक शक्तियाँ मद्रास प्रान्त के पुनर्गठन के पक्ष में थीं। इसी समय कांग्रेस
के नेता व प्रसिद्ध गाँधीवादी पोट्टी श्रीरामुलु अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ
गए।
उन्होंने
सविनय अवज्ञा आन्दोलन और व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी भाग लिया था। दलित वर्ग के
लोगों का उन्हें व्यापक समर्थन प्राप्त था। नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में सन् 1920 में श्रीरामुलु भी उपस्थित थे। इसमें कांग्रेस ने स्वतंत्रता के बाद भाषाई
आधार पर राज्यों के पुनर्गठन करने का वचन दिया था। श्रीरामुलु की 56 दिनों की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु हो गयी। इससे मद्रास प्रांत में बहुत
अव्यवस्था फैली, स्थान-स्थान पर हिंसक
घटनाएँ होने लगी। मद्रास में अनेक विधायकों ने विरोध जताते हुए अपनी सीट से त्यागपत्र
दे दिया। अंततः दिसम्बर 1952 में प्रधानमंत्री पं.
जवाहरलाल नेहरू ने आन्ध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की।
प्रश्न 14. सन् 1953 में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग के
परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1953 में गठित राज्य
पुनर्गठन आयोग के परिणाम निम्नलिखित थे-
(i) तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने दिसम्बर,
1952 में आन्ध्र प्रदेश नाम से (मद्रास से) अलग राज्य बनाने की
घोषणा की। आन्ध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में भी भाषाई आधार
पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष प्रारम्भ हो गया। इन संघर्षों के कारण तत्कालीन
केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में राज्य पुनर्गठन
आयोग बनाया।
(ii) राज्य पुनर्गठन आयोग का प्रमुख कार्य राज्यों के सीमांकन
के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण कार्य करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया
कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना
चाहिए।
(iii) इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य तथा 6 केन्द्र-शासित प्रदेश बनाए
गए।
(iv) स्वतंत्रता के बाद के प्रारम्भिक वर्षों में एक बड़ी
चिन्ता यह थी कि अलग राज्य बनाने की माँग से देश की एकता व अखण्डता खतरे में पड़
जाएगी। आशंका यह भी थी कि नए भाषाई राज्यों में अलगाववाद की भावना उत्पन्न होगी व
नव-निर्मित भारतीय राष्ट्र पर दबाव बढ़ेगा।
(v) परन्तु जनता के दबाव में सरकार ने अंततः भाषा के आधार पर
राज्यों के पुनर्गठन का मन बनाया। इसके अलावा क्षेत्रीय माँगों को मानना तथा भाषा
के आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया।
प्रश्न 15. रजवाड़ों के शासकों को सरदार पटेल ने एक पत्र में सन् 1947 में लिखा, "मैं उम्मीद करता हूँ कि भारत की
रियासतें इस बात को पूरी तरह से समझेंगी कि अगर हमने सहयोग नहीं किया और सर्व -
सामान्य की भलाई में साथ मिलकर कदम नहीं बढ़ाया तो अराजकता और अव्यवस्था, हम में से सबको चाहे कोई छोटा हो या बड़ा घेर लेगी और हमें बर्बादी की तरफ
ले जाएगी।
उपर्युक्त
अवतरण के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
(अ) किस सर्व - सामान्य की भलाई का वर्णन किया गया है?
(ब) कौन - सी स्थिति बर्बादी की ओर ले जाएगी?
उत्तर:
(अ) सन् 1947 में तत्कालीन भारत
सरकार के उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत में देसी
रियासतों के शासकों को पत्र लिखकर देश की एकता व अखण्डता बचाने और देश को सुदृढ़
सीमाएँ प्रदान करने हेतु अपने व्यक्तिगत अहम् और स्वार्थ से ऊपर उठकर सम्पूर्ण
राष्ट्र व सर्व-साधारण जनता के हित में भारतीय संघ में सम्मिलित होने के लिए
आह्वान किया जिससे देश को जो नवीन स्वतंत्रता प्राप्त हुई है उसे अक्षुण्ण रखा जा
सके व देश को आंतरिक कलह, अराजकता तथा अव्यवस्थाओं से
दूर रखा जा सके।
(ब) भारतीय रजवाड़े यदि सहयोग व बलिदान नहीं करेंगे और वे स्वेच्छा से
भारतीय संघ में नहीं शामिल होंगे तो स्वाभाविक रूप से देश में अराजकता एवं
अव्यवस्था फैल जाएगी और ऐसी स्थिति सम्पूर्ण देश व उसके सभी नागरिकों को बर्बादी
की ओर ले जाएगी तथा जब हम सभी लोग सहयोग करेंगे तथा मिल - जुलकर राष्ट्रहित में एकता
व अखण्डता के लिए कार्य करेंगे तभी देश महान बन सकेगा।
प्रश्न 16. भारत के मानचित्र में निम्न को दर्शाइए।
(A) पूर्व रियासतें
(B) देश के विभाजन से प्रभावित दो राज्य।
उत्तर:
(i) जूनागढ़
(ii) हैदराबाद
(iii) जम्मू और कश्मीर
(iv) मणिपुर
(B) देश के विभाजन से प्रभावित दो राज्य।
(i) पंजाब
(ii) बंगाल।

निबन्धात्मक
प्रश्न:
प्रश्न 1. 'आजाद हिन्दुस्तान का जन्म अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में हुआ।' कथन को स्पष्ट कीजिए तथा बताइए कि आजाद भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य
बनाने के लिए हमारे नेतागणों ने क्या-क्या प्रयास किए?
उत्तर:
14 - 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि
को हिन्दुस्तान आजाद हुआ। हिन्दुस्तान की जनता इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी
परन्तु यह कोई आसान काम नहीं था। आजाद हिन्दुस्तान का जन्म अत्यन्त कठिन
परिस्थितियों में हुआ। हिन्दुस्तान जब आजाद हुआ उस समय कोई भी राष्ट्र इस प्रकार
के हालातों में आजाद नहीं हुआ था।
आजादी
मिलने का स्वप्न देश के बँटवारे के साथ पूरा हो सका। सन् 1947 का वर्ष भयंकर हिंसा व विस्थापन की त्रासदी का वर्ष था। इन्हीं कठिन
परिस्थितियों में अपने विभिन्न लक्ष्यों को आजाद हिन्दुस्तान को प्राप्त करना था।
नए राष्ट्र के सामने अनेक चुनौतियाँ भी थीं जिनका सामना हिन्दुस्तान को करना था।
आजादी
के उन कष्टकारी दिनों में भी हमारे नेताओं का ध्यान इस लक्ष्य से नहीं भटका कि
नव-स्वतंत्र भारत चुनौतियों की चपेट में है। बँटवारे के कारण बड़े पैमाने पर हिंसा
हुई। लोग विस्थापित हुए तथा इस घटना से धर्मनिरपेक्ष भारत की धारणा पर ही आँच आने
लगी। दोनों देशों के भू-भाग को रेखांकित करते हुए सीमा-रेखा खींच दी गई।
1940 के दशक में राजनीतिक मोर्चे में कई बदलाव आए थे। कांग्रेस
और मुस्लिम लीग के बीच राजनैतिक प्रतिस्पर्धा तथा ब्रिटिश शासन की भूमिका जैसी
अनेक बातों का जोर रहा। अंतत: पाकिस्तान की माँग मान ली गयी। इस प्रकार यह कथन
पूर्णतः उपयुक्त है कि "आजाद हिन्दुस्तान का जन्म अत्यन्त कठिन परिस्थितियों
में हुआ।"।
भारत
को धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने हेतु नेतागणों के प्रयास-स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद
कुछ ऐसे संगठन सक्रिय थे जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिन्दुओं को
लामबंद करने की कोशिश में लगे थे, परन्तु भारत की कौमी सरकार के अधिकांश
नेतागण सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के हिमायती थे, चाहे नागरिक किसी भी धर्म का हो। वे भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में
नहीं देखना चाहते थे जहाँ किसी एक धर्म के अनुयायियों को दूसरे धर्मावलम्बियों से
ऊँचा माना जाए तथा अन्य को हीन माना जाए।
नागरिकता की कसौटी धर्म को नहीं बनाया जाना चाहिए। हमारे नेताओं के
धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। नवीन संविधान
के द्वारा भारत में धर्मनिरपेक्ष समाजवादी राज्य की स्थापना की गयी है। इस प्रकार
समस्त सम्प्रदायों के लोगों को समान अधिकार व अवसर प्रदान किए गए है। हमारे
नेतागणों के प्रयासों के फलस्वरूप भारत में धर्म अथवा सम्प्रदाय के आधार पर कोई भेदभाव
नहीं किया जाता है।
भारतीय
संविधान की मुख्य विशेषता भारत में राष्ट्रीयता व एकता की भावना को बढ़ाना है। पं.
जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में, 'हमें अपने अल्पसंख्यकों के साथ सभ्यता और
शालीनता के साथ पेश आना है। लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में हमें उन्हें नागरिक के
अधिकार देने होंगे और उनकी रक्षा करनी होगी। अगर हम ऐसा करने में कामयाब नहीं होते
तो यह एक नासूर बन जाएगा जो पूरी राज-व्यवस्था में जहर फैलाएगा और शायद उसको तबाह
भी कर दे।'
प्रश्न 2. स्वतंत्रता के समय, भारत के समक्ष आईं किन्हीं
तीन चुनौतियों की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
अथवा
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौन सी
थीं ? व्याख्या करें।
अथवा
स्वतंत्र भारत के समक्ष कौन - कौनसी प्रमुख चुनौतियाँ थीं? वर्णन कीजिए।
ङ्केसर-
स्वतंत्र भारत का जन्म अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में हुआ। प्रमुख रूप से
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के सामने तीन तरह की चुनौतियाँ थीं इनका उल्लेख
निम्नानुसार है:
(i) देश की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती: आजादी के तुरन्त बाद देश की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती
सबसे प्रमुख थी। एकता के सूत्र में बँधे एक ऐसे भारत को गढ़ने की चुनौती थी जिसमें
भारतीय समाज की समस्त विविधताओं के लिए जगह हो। भारत अपने आकार व विविधता के कारण
एक उपमहाद्वीप है। यहाँ विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों, भाषाओं, बोलियों, संस्कृति को मानने वाले लोग निवास करते हैं। अतः यही माना जा रहा था कि
इतनी विभिन्नताओं से भरा कोई देश अधिक दिनों तक एकता कायम नहीं रख सकता।
वैसे
भी देश को आजादी विभाजन की शर्त पर ही मिल सकी। ऐसे में राष्ट्रीय एकता के सूत्र
में बँधे राष्ट्र की स्थापना व निर्माण करना एक गम्भीर चुनौतीपूर्ण कार्य था। ऐसे
में हर क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहचान के साथ ही देश की एकता व अखण्डता को भी
कायम रखना था। उस वक्त आमतौर पर यही माना जाता था कि इतनी विभिन्नताओं वाला देश
लम्बे समय तक एकता के सूत्र में बँधा नहीं रह पाएगा।
देश के विभाजन के साथ लोगों के मन में समाई यह आशंका एक तरह से सत्य
सिद्ध हुई। देश के भविष्य के सम्बन्ध में अनेक गम्भीर प्रश्न सामने खड़े थे, जैसे-क्या भारत एकता के सूत्र में बँधा रह सकेगा? क्या भारत केवल राष्ट्रीय एकता पर ही सर्वाधिक ध्यान देगा या अन्य
उद्देश्यों को भी पूर्ण करेगा? इस प्रकार स्वतंत्रता के
बाद तात्कालिक प्रश्न देश की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती का था।
(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करना: दूसरी
चुनौती लोकतांत्रिक व्यवस्था को सफलतापूर्वक लागू रखने की थी। भारत ने संसदीय शासन
पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया। भारतीय संविधान भारत की आन्तरिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्तियों के
पारस्परिक सम्बन्धों की वैधानिक अभिव्यक्ति है। संविधान में मौलिक अधिकारों की
व्यवस्था की गयी है तथा प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार भी दिया गया है।
इन विशेषताओं के आधार पर यह बात सुनिश्चित हो गई कि लोकतांत्रिक
शासन-व्यवस्था के बीच राजनीतिक मुकाबले होंगे। लोकतंत्र को कायम करने के लिए
लोकतांत्रिक संविधान आवश्यक होता है परन्तु यह भी काफी नहीं होता। देश के सामने यह
चुनौती भी थी कि संविधान पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवहार व व्यवस्थाएँ भी चलन में
आएँ ताकि लोकतंत्र कायम रह सके।
(iii) आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारित करना : स्वतंत्रता
के तुरन्त बाद तीसरी प्रमुख चुनौती थी - आर्थिक विकास हेतु नीतियों का निर्धारण
करना। इन नीतियों के आधार पर सम्पूर्ण समाज का विकास होना था, किन्हीं विशेष वर्गों का नहीं। संविधान में भी इस बात का स्पष्ट तौर पर
उल्लेख था कि समाज में सभी वर्गों के साथ समानता का व्यवहार किया जाए तथा सामाजिक
रूप से वंचित व पिछड़े वर्गों तथा धार्मिक - सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को विशेष
सुरक्षा प्रदान की जाए।
संविधान
में 'नीति-निदेशक सिद्धान्तों' का भी प्रावधान किया
गया है जिनका प्रमुख उद्देश्य लोक-कल्याण व सामाजिक विकास था। सरकार को नीति
निर्धारित करते समय इन सिद्धान्तों को अवश्य अपनाना चाहिए। अतः देश के सामने मुख्य
चुनौती आर्थिक विकास करने हेतु कारगर नीतियों के निर्धारण की थी।
इस
चुनौती का भी सफलतापूर्वक सामना हमारे नीति: निर्माताओं ने किया। भारतीय संविधान
के द्वारा भारत में एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना किए जाने की व्यवस्था की
गयी। इसी व्यवस्था के अन्तर्गत भारतीयों को अवसर की समानता तथा अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता प्रदान की गयी। सरकार से यह भी अपेक्षा की गयी कि वह अपंगों, वृद्धों
व बीमार व्यक्तियों की उचित सहायता करे। उपर्युक्त चुनौतियों का सामना भारत के
नीति - निर्माताओं ने डटकर किया। भारत में लोकतंत्र की धारणा कारगर सिद्ध हुई
राज्यों के भाषाई पुनर्गठन के बावजूद देश की एकता और अधिक मजबूत हुई क्योंकि हमारे
स्वतंत्रता-संग्राम की गहरी प्रतिबद्धता लोकतंत्र में थी।
प्रश्न 3. भारत विभाजन में आयी कठिनाइयों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत विभाजन में आयी कठिनाइयाँ: भारत
विभाजन में निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा
(i) भारत - पाकिस्तान में विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्या को
बनाया जाना तय हुआ अर्थात् जिन क्षेत्रों में मुसलमान बहुसंख्यक थे वो क्षेत्र
पाकिस्तान के भू - भाग होंगे और शेष हिस्से भारत कहलायेंगे। इसमें कई प्रकार की
परेशानियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश भारत में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं था जहाँ
मुसलमान बहुसंख्यक हों।
ऐसे दो क्षेत्र थे जहाँ मुसलमानों की आबादी अधिक थी। एक क्षेत्र
पश्चिम में व दूसरा पूर्व में। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दोनों क्षेत्रों को
जोड़कर एक स्थान पर कर दिया जाए। इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में दो
क्षेत्र सम्मिलित होंगे अर्थात् पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान तथा इसके
बीच में भारतीय भूमि का विस्तार रहेगा।
(ii) मुस्लिम बहुल प्रत्येक क्षेत्र पाकिस्तान में मिलने को सहमत नहीं था। खान
अब्दुल गफ्फार खान पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के निर्विवाद नेता थे। उन्होंने
द्वि-राष्ट्रीय सिद्धान्त का विरोध किया लेकिन उनके विरोध को अनदेखा कर
पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त को पाकिस्तान में सम्मिलित कर लिया गया।
(iii) ब्रिटिश भारत के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब व बंगाल में अनेक हिस्से
बहुसंख्यक गैर मुस्लिम जनसंख्या वाले थे। ऐसे में फैसला हुआ कि दोनों प्रान्तों
में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले अथवा उससे
निचले स्तर के प्रशासनिक हलके को आधार माना जाएगा। 14 - 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि तक यह फैसला
नहीं हो पाया था। फलस्वरूप अनेक लोगों को यह पता नहीं था कि वे भारत में हैं या
पाकिस्तान में।
(iv) भारत - पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर अल्पसंख्यक थे। जो क्षेत्र पाकिस्तान
में थे वहाँ लाखों की संख्या में हिन्दू-सिख आबादी थी। ठीक उसी प्रकार पंजाब व
बंगाल के भारतीय भू - भाग में लाखों की संख्या में मुस्लिम आबादी थी। इन लोगों ने
पाया कि वे तो अपने ही घर में विदेशी बन गये हैं। लोगों को देश के बँटवारे की
जानकारी मिलते ही दोनों ओर - लख्यकों पर हमले होने लगे। हिंसा की घटनाएं बढ़ गईं।
दोनों ओर के अल्पसंख्यकों के पास एक ही रास्ता बचा था कि वे अपने - अपने घर-बार
छोड़ दें।
प्रश्न 4. सन् 1947 में हुए भारत के विभाजन के
किन्हीं दो कारणों का आकलन कीजिए। इस विभाजन के किन्हीं चार परिणामों की व्याख्या
कीजिए।
अथवा
"भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक था।"
विभाजन के परिणामों का उल्लेख सविस्तार कीजिए।
अथवा
सन् 1947 में हुए भारत विभाजन के
किन्हीं छः परिणामों का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
'क्या भारत विभाजन अनिवार्य था।' इस
कथन की समीक्षा कीजिए और परिणाम बताइए।
उत्तर:
क्या भारत विभाजन अनिवार्य था: भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं ने भारत - विभाजन का विरोध किया। गाँधीजी ने तो यहाँ
तक कह दिया था कि 'पाकिस्तान का निर्माण उनकी लाश पर
होगा।' फिर भी भारत का विभाजन होकर ही रहा। कुछ विचारक
जिन्ना को भारत विभाजन हेतु उत्तरदायी मानते हैं। यह बात एक हद तक ठीक भी है
क्योंकि जिन्ना की हठधर्मिता के कारण ही भारत-विभाजन की स्थिति निर्मित हुई थी।
भारत के विभाजन के सम्बन्ध में प्रश्न यह है कि क्या भारत का विभाजन
अनिवार्य था और उसे टाला नहीं जा सकता था, इसके उत्तर
में दो पक्ष हैं। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी पुस्तक 'इण्डिया विन्स फ्रीडम' में यह विचार रखा कि
भारत-विभाजन अनिवार्य नहीं था तथा नेहरू व पटेल ने उसे अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के
आधार पर ही स्वीकार किया था।
दूसरे
पक्ष का विचार यह है कि विभाजन को टाला नहीं जा सकता था तथा उन परिस्थितियों में
विभाजन अनिवार्य ही था। यह विचार सत्य के अधिक समीप दिखाई पड़ता है क्योंकि उन
परिस्थितियों में भारत-विभाजन अपरिहार्य ही हो गया था जैसा कि साम्प्रदायिक दंगों
ने कांग्रेस के नेताओं को यह विश्वास दिला दिया था कि अविभाजित भारत की कल्पना
अव्यावहारिक है व केवल कोरा स्वप्न है। पर्सिवल स्पीयर के शब्दों में, "सिद्धान्त
रूप में विभाजन पर कितना भी अफसोस किया जाए, परन्तु
संभवतः देश के व्यापक हितों में यह आवश्यक था।"
भारत
का विभाजन: 14
- 15 अगस्त, 1947 को एक नहीं बल्कि
दो राष्ट्र भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आये। भारत और पाकिस्तान का विभाजन
दर्दनाक था तथा इस पर फैसला करना और अमल में लाना और भी कठिन था।
विभाजन
के कारण:
1. मुस्लिम लीग ने 'द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त' की बात की थी। इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश अर्थात्
पाकिस्तान की मांग की।
2. भारत के विभाजन के पूर्व ही देश में दंगे फैल गए ऐसी स्थिति में कांग्रेस
के नेताओं ने भारत - विभाजन की बात स्वीकार कर ली।
भारत - विभाजन के परिणाम: भारत और
पाकिस्तान विभाजन के निम्नलिखित परिणाम सामने आए:
(i) आबादी का स्थानान्तरण : भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद
आबादी का स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और
त्रासदीपूर्ण था। मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह
एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त
बेरहमी से मारा। जिन क्षेत्रों में अधिकतर हिन्दू अथवा सिख आबादी थी, उन क्षेत्रों में मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया। ठीक इसी प्रकार
मुस्लिम-बहुल आबादी वाले क्षेत्रों से हिन्दू और सिख भी नहीं गुजरते थे।
(ii) घर - परिवार छोड़ने के लिए विवश होना : विभाजन
के फलस्वरूप लोग अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक
अपने घरों से भाग खड़े हुए तथा अक्सर अस्थाई तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में
रहना पड़ा। वहाँ की स्थानीय सरकार व पुलिस इन लोगों से बेरुखी का बर्ताव कर रही
थी। लोगों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा और ऐसा उन्हें हर हाल में करना था, यहाँ तक कि लोगों ने पैदल चलकर यह दूरी तय की।
(iii) महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार : विभाजन के फलस्वरूप सीमा
के दोनों ओर हजारों की संख्या में औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबर्दस्ती
शादी करनी पड़ी तथा अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई परिवारों में तो
खुद परिवार के लोगों ने अपने 'कुल की इज्जत' बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला। बहुत से बच्चे अपने माता
- पिता से बिछुड़ गए।
(iv) हिंसक अलगाववाद : विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि इस विभाजन में दो
समुदाय जो अब तक पड़ोसियों की तरह रहते थे, उनमें हिंसक
अलगाववाद व्याप्त हो गया।
(v) भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा : विभाजन के कारण 80 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा तथा वित्तीय सम्पदा के
साथ-साथ टेबिल, कुर्सी, टाइपराइटर
और पुलिस के वाद्ययंत्रों तक का बँटवारा हुआ। सरकारी और रेलवे कर्मचारियों का भी
बँटवारा हुआ। इस प्रकार साथ-साथ रहते आए दो समुदायों के बीच यह एक हिंसक और भयावह
विभाजन था।
(vi) अल्पसंख्यकों की समस्या : विभाजन के समय सीमा के
दोनों तरफ 'अल्पसंख्यक' थे।
जिस जमीन पर वे और उनके पूर्वज सदियों तक रहते आए थे। उसी जमीन पर वे 'विदेशी' बन गए थे। जैसे ही देश का बँटवारा होने
वाला था वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। इस कठिनाई से उबरने
के लिए किसी के पास कोई योजना भी नहीं थी।
हिंसा नियंत्रण से बाहर हो गयी। दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों ने अपने
- अपने घरों को छोड़ दिया। - इस प्रकार भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त
दर्दनाक व त्रासदी से भरा था। सआदत हसन मंटों के शब्दों में, 'दंगाइयों ने चलती ट्रेन को रोक लिया। गैर-मजहब के लोगों को खींच-खींच कर
निकाला और तलवार तथा गोली से मौत के घाट उतार दिया। बाकी यात्रियों को हलवा, फल और दूध दिया गया।'
प्रश्न 5. देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
देसी रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका-सरदार
वल्लभ भाई पटेल भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख नेता थे। ये महात्मा गाँधी
के अनुयायी कांग्रेसी नेता थे। ये स्वतंत्र भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री एवं
प्रथम गृहमंत्री रहे। ये मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक, प्रांतीय संविधान आदि से सम्बन्धित संविधान सभा की महत्वपूर्ण समितियों के
सदस्य रहे।
इनकी
देसी रियासतों को भारत संघ में मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही, सरदार
वल्लभ भाई पटेल को 'लौह पुरुष' कहा जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् रियासतों को भारत में विलय
करना सरल कार्य नहीं था। इस कार्य में प्रमुख बाधा थीं - जिन्ना द्वारा स्वयं को
पूर्ण स्वतंत्र करना व भारत तथा पाकिस्तान दोनों से सम्बन्ध रखना। परन्तु सरदार
पटेल ने असाधारण योग्यता का परिचय दिया।
5 जुलाई, 1947 ई. को सरदार पटेल की अध्यक्षता में 'स्टेट विभाग' की स्थापना की गयी। स्वतंत्र .
भारत के प्रथम गृह मंत्री की हैसियत से पटेल ने सबसे पहले 565 रजवाड़ों का भारत संघ में विलय करना ही अपना पहला कर्तव्य समझा। सरदार
पटेल ने देखा कि 565 राज्यों में से 100 राज्य प्रमुख थे, जैसे हैदराबाद, कश्मीर, बड़ौदा, ग्वालियर, मैसूर आदि। सरदार पटेल के प्रयासों से शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से
लगभग समस्त रियासतें जिनकी सीमाएं स्वतंत्र भारत की नयी सीमाओं से मिलती थीं,
15 अगस्त 1947 से पहले ही
भारतीय संघ में सम्मिलित हो गए।
अधिकांश
रियायतों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर
किए। इस सहमति पत्र को 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन' कहा गया। जूनागढ़, हैदराबाद व कश्मीर की रियासतों का भारत में विलय करने के लिए सरदार पटेल
को सेना की सहायता भी लेनी पड़ी। जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण - पश्चिम किनारे पर
स्थित एक छोटी सी रियासत थी।
इस रियासत की जनता मुख्यतः हिन्दू थी तथा इसका नबाव मुसलमान था। वह
पाकिस्तान में मिलना चाहता था जबकि जनता भारत में। सरदार पटेल ने नबाव पर जनमत
संग्रह कराने का दबाव डाला। नबाव द्वारा असहमत होने पर सरदार पटेल ने सेना की
सहायता से जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय कराया।
हैदराबाद
भारत के दक्षिण में स्थित एक विशाल राज्य था। यहाँ का शासक जिसे निजाम कहा जाता था, वह
आजाद रियासत का दर्जा चाहता था। जनता निजाम के अत्याचारी शासन से परेशान थी। वह
भारत में मिलना चाहती थी। सरदार पटेल के प्रयासों से निजाम को आत्मसमर्पण करना
पड़ा और यह रियासत भी भारत में सम्मिलित हो गयी। इसी प्रकार कश्मीर का भारत में
विलय हुआ।
यहाँ का हिन्दू शासक भारत में शामिल नहीं होना चाहता था। उसने अपने
स्वतंत्र राज्य के लिए भारत और पाकिस्तान के साथ समझौता करने की कोशिश की।
पाकिस्तान के घुसपैठियों से परेशान होकर यहाँ के शासक ने भारत से मदद मांगी और
भारत संघ में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए।
इस
प्रकार पटेल के प्रयासों से इन रियासतों का भारत संघ में विलय हुआ। इसके अलावा
सरदार पटेल ने रियासतों से अपील की कि वे भारत की अखण्डता को बनाए रखने में उनकी
सहायता करें। इस प्रकार सभी रियासतों का भारत में विलय कराने में सरदार पटेल सफल
रहे। यह उनकी असाधारण उपलब्धि थी, जिसने भारत की अखण्डता की रक्षा की।
प्रश्न 6. भारत में राज्यों के पुनर्गठन पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
भारत में राज्यों का पुनर्गठन: देश
के विभाजन व देशी रियासतों के विलय के साथ ही राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया का अंत
नहीं हुआ। भारतीय प्रान्तों की आंतरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती अभी सामने थी।
यह केवल प्रशासनिक विभाजन सम्बन्धी मामला नहीं था। प्रान्तों की सीमाओं को इस
प्रकार तय करने की चुनौती थी कि देश की भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता की झलक मिले, साथ ही राष्ट्रीय एकता भी छिन्न - भिन्न न हो। हमारी राष्ट्रीय सरकार ने
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का वायदा किया। सन् 1920 के नागपुर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मान लिया कि राज्यों
का पुनर्गठन भाषाई आधार पर होगा।
केन्द्रीय
नेतृत्व के इस फैसले को स्थानीय नेताओं और लोगों ने चुनौती दी। पुराने मद्रास
प्रान्त के तेलुगुभाषी क्षेत्रों में विरोध भड़क उठा। पुराने मद्रास प्रान्त में
आज के तमिलनाडु व आन्ध्र प्रदेश शामिल थे। इसके कुछ हिस्से मौजूदा केरल व कर्नाटक
में भी हैं। भारत में राज्यों का पुनर्गठन निम्नलिखित चरणों के अन्तर्गत सम्पन्न
हुआ
(i) विशाल आन्ध्र आन्दोलन एवं एक नए राज्य का गठन : विशाल
आन्ध्र आन्दोलन जो कि आन्ध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने के लिए चलाया गया था, इसमें माँग की गयी थी कि मद्रास प्रान्त के तेलुगुभाषी इलाकों को अलग करके
एक नया राज्य आन्ध्र प्रदेश बनाया जाए। तेलुगुभाषी क्षेत्र की लगभग समस्त राजनीतिक
शक्तियों मद्रास प्रान्त के भाषाई पुनर्गठन के पक्ष में थीं। इस आन्दोलन ने जोर
पकड़ा और कांग्रेस के नेता और दिग्गज गाँधीवादी पोट्टी श्रीरामुलु अनिश्चितकालीन
भूख-हड़ताल पर बैठ गए।
56 दिनों की भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गयी। इससे बहुत अव्यवस्था फैली
तथा मद्रास में जगह - जगह हिंसक घटनाएँ हुई। लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल
आए। पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए या मारे गए। मद्रास में अनेक विधायकों ने
अपना विरोध प्रकट करते हुए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। अंततः दिसम्बर 1952 में प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने आन्ध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की
घोषणा की।
(ii) राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन : आन्ध्र प्रदेश के गठन के
साथ ही देश के अन्य भागों में भी भाषाई आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल
पड़ा। इन संघर्षों से मजबूर होकर केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का प्रमुख कार्य राज्यों के
सीमांकन के मामले पर कार्यवाही करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि
राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।
इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य
पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र-शासित प्रदेश बनाए गए।
(iii) कुछ अन्य राज्यों का निर्माण : क्षेत्रीय मांगों को
मानना तथा भाषा के आधार पर राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में
देखा गया।
(i) भाषावार राज्यों को पुनर्गठित करने के सिद्धान्त को मान
लेने का अर्थ यह नहीं था कि सभी राज्य तत्काल भाषाई राज्य में बदल जाएँ। एक प्रयोग
द्विभाषी राज्य बम्बई के रूप में किया गया, जिसमें
गुजराती और मराठी भाषा बोलने वाले लोग थे। एक जन आन्दोलन के बाद सन् 1960 में महाराष्ट्र और गुजरात राज्य बनाए गए।
(ii) पंजाब में भी हिन्दी भाषी और पंजाबी भाषी दो समुदाय थे। पंजाबी
भाषी लोग अलग राज्य की मांग कर रहे थे। बाकी राज्यों की तरह उनकी माँग सन् 1956 में नहीं मानी गयी। सन् 1966 में पंजाबी
भाषी इलाके को पंजाब राज्य का दर्जा दिया गया तथा वृहत्तर पंजाब से अलग करके
हरियाणा व हिमाचल प्रदेश नाम के राज्य बनाए गए।
(iii) सन् 1963 में नागालैंड
को राज्य का दर्जा दिया गया।
(iv) सन् 1972 में असम से अलग
करके मेघालय बनाया गया। इसी वर्ष मणिपुर और त्रिपुरा भी अलग राज्य के रूप में
अस्तित्व में आए। अरुणाचल प्रदेश व मिजोरम सन् 1987 में अस्तित्व में आए।
(v) राज्यों के पुनर्गठन में सिर्फ भाषा को आधार बनाया गया हो, ऐसी बात नहीं। बाद के वर्षों में अनेक उप - क्षेत्रों ने अलग क्षेत्रीय
संस्कृति अथवा विकास के मामले में क्षेत्रीय असंतुलन के प्रश्न खड़े कर अलग राज्य
बनाने की मांग की। ऐसे तीन राज्य-झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और
उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखण्ड) सन् 2000 में
बने तथा 2014 में तेलंगाना को भी अलग राज्य बना
दिया गया।' - राज्यों के पुनर्गठन को लेकर अभी भी देश
के अनेक भागों में छोटे-छोटे अलग राज्य बनाने की माँग को लेकर आन्दोलन चल रहे हैं।
प्रश्न 7. राज्य पुनर्गठन आयोग का क्या कार्य था? इसकी प्रमुख
सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
अथवा
स्वतंत्रता के बाद राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को समझाते
हुए राज्यों का पुनर्गठन समझाइए ।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग का कार्य-सन् 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने दिसम्बर 1952 में आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की। आन्ध्र प्रदेश के
गठन के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में भी भाषाई आधार पर राज्यों को गठित करने का
संघर्ष प्रारम्भ हो गया। इन संघर्षों के कारण तत्कालीन केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया।
राज्य पुनर्गठन आयोग का प्रमुख कार्य राज्यों के सीमांकन के सम्बन्ध
में गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का
निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।
राज्य
पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण: राज्य
पुनर्गठन आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं।
1. भारत की एकता व सुरक्षा की व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।
2. राज्यों का गठन भाषाई आधार पर किया जाए।
3. भाषाई और सांस्कृतिक सजातीयता का ध्यान रखा जाए।
4. वित्तीय तथा प्रशासनिक विषयों की ओर उचित ध्यान दिया जाए।
इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र - शासित प्रदेश बनाए
गए। स्वतंत्रता के बाद के प्रारम्भिक वर्षों में एक बड़ी चिन्ता यह थी कि अलग
राज्य बनाने की मांग से देश की एकता व अखण्डता खतरे में पड़ जाएगी। आशंका यह भी थी
कि नए भाषाई राज्यों में अलगाववाद की भावना पनपेगी व नव-निर्मित भारतीय राष्ट्र पर
दबाव बढ़ेगा।
परन्तु
जनता के दबाव में सरकार ने अंततः भाषा के आधार पर पुनर्गठन का मन बनाया। इसके
अलावा क्षेत्रीय मांगों को मानना तथा भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक
लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया। भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए
चले आन्दोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूप से
बदला है। भाषाई पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला।
इससे देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई। भाषावार राज्यों के पुनर्गठन
से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली। लोकतंत्र को चुनने का अर्थ था
विभिन्नताओं को पहचानना तथा उन्हें स्वीकार करना। अतः भाषाई आधार पर नए राज्यों का
गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम साबित हुआ।
प्रश्न 8. 11 अगस्त, 1947 को मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा
कराची में, पाकिस्तान की संविधान सभा में दिए गए
अध्यक्षीय भाषण के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
"हमें बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की इन जटिलताओं को दूर
करने की भावना से काम करना चाहिए। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक - दोनों ही समुदायों
में तरह-तरह के लोग शामिल हैं। अगर मुसलमान, पठान, पंजाबी, शिया और सुन्नी आदि में बँटे हैं तो
हिन्दू भी ब्राह्मण, वैष्णव, खत्री तथा बंगाली, मद्रासी आदि समुदायों में ये
अंतर समाप्त हो जाएंगे। पाकिस्तान में आप आजाद हैं, आप
अपने मंदिर में जाने के लिए आजाद हैं, आप अपनी मस्जिद
में जाने या किसी भी अन्य पूजास्थल में जाने के लिए आज़ाद हैं। आपके धर्म, आपकी जाति या विश्वास से राज्य को कुछ लेना - देना नहीं है।"
(अ) क्या आप समझते हैं कि जिन्ना का वक्तव्य उस सिद्धान्त के
विरुद्ध है जिसके अनुसार पाकिस्तान का जन्म हुआ? अपने
उत्तर की पुष्टि कीजिए।
(ब) इस लेखांश में जिन्ना के वक्तव्य का क्या सार है?
(स) इस लेखांश में पाकिस्तान, किस सीमा
तक जिन्ना की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है?
उत्तर:
(अ) मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा दिए गए अध्यक्षीय भाषण के आधार पर हम समझते हैं
कि जिन्ना का वक्तव्य उस सिद्धान्त के विरुद्ध है, जिसके
अनुसार पाकिस्तान का जन्म हुआ था। भारत का विभाजन मुहम्मद अली जिन्ना तथा मुस्लिम
लीग द्वारा प्रतिपादित द्वि - राष्ट्र सिद्धान्त के अन्तर्गत हुआ था, जबकि कराची में 11 अगस्त,
1947 को मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में
बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक समुदायों में जटिलताओं को दूर कर एक समान राष्ट्र की तरह
रहने की बात कही थी। जिन्ना ने पहले यह घोषणा भी की थी कि "भारत का गतिरोध
भारत और अंग्रेजों के बीच नहीं, वरन् कांग्रेस और
मुस्लिम लीग के मध्य है। जब तक पाकिस्तान नहीं दिया जाएगा तब तक कोई समस्या हल
नहीं हो सकती।"
(ब) जिन्ना के वक्तव्य के अनुसार नए पाकिस्तान में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय
तथा अल्पसंख्यक हिन्द - सिख - ईसाई समुदाय दोनों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं।
यदि मुस्लिम पठान, पंजाबी, शिया
और सुन्नी आदि वर्गों में बँटे हुए हैं तो हिन्दू भी ब्राह्मण, वैष्णव, खन्नी, बंगाली
व मद्रासी आदि समुदायों में बँटे हुए हैं। पाकिस्तान में सभी समान रूप से आजाद
रहेंगे तथा उन्हें समान रूप से धार्मिक स्वतंत्रता भी प्राप्त होगी। राज्य सभी
समुदायों व वर्गों के लोगों को बराबर मानेगा। किसी भी धर्म, जाति, विश्वास को मानने से राज्य के कार्यों पर
कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
(स) जिन्ना द्वारा दिए गए इस वक्तव्य के अनुरूप एवं जिन्ना की आकांक्षाओं के
अनुरूप पाकिस्तान खरा नहीं उतरा क्योंकि इस लेखांश में जिन्ना ने जिस
धर्मनिरपेक्षता की बात कही है वह पाकिस्तान में नहीं पायी जाती है। पाकिस्तान का
राजधर्म मुस्लिम धर्म है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान में अधिकांशतया सैनिक तानाशाही
रही है। वहाँ अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव की नीति रही। आज तक कोई अल्पसंख्यक
राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री जैसे उच्च पदों पर कार्य नहीं कर सका है। स्थिति यह है
कि तालिबान ने अब तो हिन्दुओं व सिखों से जजिया जैसा घृणा उत्पन्न करने वाला कर
वसूल करना शुरू कर दिया है। वहाँ लड़के व लड़कियों में भी भेदभाव की नीति अपनाई
जाती है। इस प्रकार पाकिस्तान जिन्ना के वक्तव्य के अनुरूप अपेक्षाओं पर खरा नहीं
उतरा है।

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