Class-11 History
Chapter- 4 (तीन वर्ग)
अति
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. रोमन साम्राज्य के पतन का क्या प्रभाव हुआ ?
उत्तर:
पूर्वी
एवं मध्य यूरोप के अनेक जर्मन मूल के समूहों ने इटली, फ्रांस व स्पेन के क्षेत्र
पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न
2. चौथी शताब्दी में रोमन साम्राज्य का राजकीय
धर्म क्या था ?
उत्तर:
ईसाई
धर्म।
प्रश्न
3. नौवीं से सोलहवीं सदी के मध्य यूरोप का समाज
कितनी सामजिक श्रेणियों में विभाजित था?
उत्तर:
यूरोप
का समाज तीन सामाजिक श्रेणियों-ईसाई पादरी, भूमिधारक अभिजात वर्ग व कृषक
वर्ग में विभाजित था।
प्रश्न
4. मार्क ब्लॉक कौन था ?
उत्तर:
मार्क
ब्लॉक एक फ्रांसीसी विद्वान था। द्वितीय विश्व युद्ध में नाजियों द्वारा इनकी गोली
मारकर हत्या कर
प्रश्न
5. 'सामंती समाज' नामक
पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
मार्क
ब्लॉक ने।
प्रश्न
6. मार्क ब्लॉक क्यों प्रसिद्ध हुए ?
उत्तर:
सामंतवाद
पर सर्वप्रथम कार्य करने के लिए।
प्रश्न
7. मार्क ब्लॉक ने भूगोल के महत्व द्वारा मानव
इतिहास के निर्माण पर क्यों बल दिया ?
उत्तर:
जिससे
कि लोगों के समूहों का व्यवहार व रुख समझा जा सके।
प्रश्न
8. 'मध्यकालीन युग' शब्द
से क्या आशय है ?
उत्तर:
मध्यकालीन
युग पाँचवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य के यूरोपीय इतिहास को इंगित करता है।
प्रश्न
9. इतिहासकारों ने 'सामंतवाद' शब्द
का वर्णन किसके लिए किया?
उत्तर:
इतिहासकारों
ने 'सामंतवाद' शब्द
का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, विधिक, राजनीतिक और सामाजिक संबधों
का वर्णन करने के लिए किया।
प्रश्न
10. गॉल किस साम्राज्य का प्रांत था तथा उसकी क्या
विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
गॉल
रोमन साम्राज्य का प्रांत था। यहाँ दो विस्तृत तट-रेखाएँ, पर्वत श्रेणियाँ, लम्बी
नदियाँ, वन और कृषि योग्य विस्तृत मैदान थे।
प्रश्न
11. फ्रांस को वर्तमान नाम किस प्रकार प्राप्त हुआ?
उत्तर:
जर्मनी
की एक जनजाति फ्रैंक ने रोमन साम्राज्य के गॉल प्रान्त को अपना नाम देकर उसे
फ्रांस बना दिया।
प्रश्न
12. फ्रांसीसियों के चर्च के साथ संबंध कैसे थे?
उत्तर:
फ्रांसीसियों
के चर्च के साथ प्रगाढ़ संबंध थे।
प्रश्न
13. चर्च ने शॉर्लमेन को कौन सी उपाधि दी?
उत्तर:
पवित्र
रोमन सम्राट की।
प्रश्न
14. शार्लमेन कौन था ?
उत्तर:
फ्रांस
का सम्राट।
प्रश्न
15. फ्रांस का समाज कितने वर्गों में विभाजित था ? नाम
लिखिए।
उत्तर:
तीन
वर्गों में-
1.
पादरी
2.
अभिजात
3.
कृषक।
प्रश्न
16. फ्रांस में पादरियों ने स्वयं को किस वर्ग में
रखा ?
उत्तर:
प्रथम
वर्ग में।
प्रश्न
17. फ्रांस में सामाजिक प्रक्रिया में किस वर्ग की
महत्वपूर्ण भूमिका थी?
उत्तर;
द्वितीय
अभिजात वर्ग की।
प्रश्न
18. फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव किस प्रथा
के कारण था ?
उत्तर:
वैसलेज' नामक
प्रथा के कारण।
प्रश्न
19. फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग को विशेष स्थान
प्राप्त था। क्यों ?
उत्तर:
क्योंकि
अभिजात वर्ग का अपनी सम्पदा पर स्थायी रूप से पूर्ण नियंत्रण प्राप्त था। वह अपनी
सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे, स्वयं का न्यायालय संचालित कर सकते थे तथा अपनी
मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।
प्रश्न
20. मेनर क्या था ?
उत्तर:
फ्रांस
में लॉर्ड का घर मेनर कहलाता था।
प्रश्न
21. फ़ीफ़ किसे कहा गया ?
उत्तर:
लार्ड
नाइट को भूमि का एक भाग देता था। इसी भूभाग को 'फ़ीफ़' कहते
थे।
प्रश्न
22. कैथोलिक चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी, कैसे?
उत्तर:
कैथोलिक
चर्च एक स्वतंत्र संस्था थी जिसके अपने नियम थे। उसके पास राजा द्वारा दी गयी भूमि
होती थी जिससे वह 'कर' उगाहता था। इसलिए चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी।
प्रश्न
23. फ्रांस में पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष कौन थे? वह
कहाँ रहते थे?
उत्तर;
फ्रांस
में पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष पोप थे, जो रोम में रहते थे।
प्रश्न
24. यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन कौन करता था?
उत्तर:
बिशप
व पादरी।
प्रश्न
25. किन लोगों के पादरी बनने पर प्रतिबन्ध था ?
उत्तर:
1.
कृषि दास
2.
शारीरिक रूप से अक्षम लोग
3.
स्त्रियाँ।
प्रश्न
26. 'टीथ' क्या
था ?
उत्तर:
चर्च
को एक वर्ष के अंतराल में किसान से उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था, इसे
टीथ कहा जाता था।
प्रश्न
27. चर्च की आय के दो प्रमुख स्रोत बताइए।
उत्तर:
1.
टीथ
2.
धनी लोगों द्वारा प्रदत्त दान।
प्रश्न
28. यूरोप में भिक्षु कौन थे ?
उत्तर:
एकान्त
जीवन व्यतीत करने वाले अत्यधिक धार्मिक लोग भिक्षु कहलाते थे। ये लोग मनुष्यों की
आम आबादी से दूर धार्मिक समुदायों अर्थात् मोनैस्ट्री मठों में रहते थे।
प्रश्न
29. पादरियों और भिक्षुओं में क्या अंतर था?
उत्तर:
पादरी
लोगों के मध्य नगरों व गाँवों में गिरजाघरों में रहते थे जबकि भिक्षु मठों में
रहते हुए एकान्त जीवन व्यतीत करते थे।
प्रश्न
30. मोनेस्ट्री शब्द से क्या आशय है ?
उत्तर:
मोनेस्ट्री
शब्द ग्रीक भाषा के शब्द 'मोनोस' से निर्मित है। जिसका अर्थ
है-ऐसा व्यक्ति जो अकेला रहता है।
प्रश्न
31. यूरोप के दो प्रसिद्ध मठ कौन-कौन से थे ?
उत्तर:
1.
सेंट बेनेडिक्ट (इटली)
2.
क्लूनी (बरगंडी)।
प्रश्न
32. मोंक किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
पुरुष
भिक्षुओं को मोंक कहा जाता था।
प्रश्न
33. नन किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
स्त्री
भिक्षुओं को नन कहा जाता था।
प्रश्न
34. आबेस हिल्डेगार्ड कौन था?
उत्तर:
आबेस
हिल्डेगार्ड एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामूहिक गायन
की प्रथा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
प्रश्न
35. 'फ्रायर' किन्हें
कहा जाता था ?
उत्तर:
यूरोप
में 13वीं
शताब्दी में भिक्षुओं के कुछ समूह मठों में न रहकर विभिन्न स्थानों पर घूम-घूमकर
लोगों को उपदेश देते थे। ऐसे भिक्षु फ्रायर कहलाते थे।
प्रश्न
36. यूरोप में चौदहवीं सदी तक मठवाद के महत्व और
उद्देश्य के विषय में कुछ शंकाएँ व्याप्त होने लगी थीं। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि
इस दौरान मठों के कुछ भिक्षु आरामदायक एवं विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे थे।
प्रश्न
37. यूरोप में काश्तकार कितने प्रकार के होते थे ?
उत्तर:
1.
स्वतन्त्र किसान
2.
सर्फ (कृषि दास)।
प्रश्न
38. 'टैली कर' क्या
था ?
उत्तर:
टैली
एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर था, जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे।
प्रश्न
39. 'टैली' नामक
कर से कौन-कौन से वर्ग मुक्त थे?
उत्तर:
1.
पादरी वर्ग
2.
अभिजात वर्ग।
प्रश्न
40. इंग्लैण्ड में सामंतवाद का विकास कब हुआ ?
उत्तर:
ग्यारहवीं
सदी में।
प्रश्न
41. इंग्लैण्ड की वर्तमान रानी किसकी उत्तराधिकारी
है ?
उत्तर:
विलियम
प्रथम की।
प्रश्न
42. इंग्लैण्ड देश का नाम किसका रूपांतरण है ?
उत्तर:
एंजिल
लैंड का।
प्रश्न
43. इंग्लैण्ड पर ग्यारहवीं शताब्दी में किस
व्यक्ति ने विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर:
नारमंडी
के इयक विलियम ने।
प्रश्न
44. मध्यकाल में इंग्लैण्ड की कृषि प्रौद्योगिकी के
कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:
1.
कृषक का लकड़ी का हल केवल पृथ्वी की सतह को
खुरच सकता था।
2.
फ़सल चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो
रहा था।
प्रश्न
45. इंग्लैण्ड में नवीन कृषि प्रौद्योगिकी के
अन्तर्गत कृषि क्षेत्र में हुए कोई दो परिवर्तन बताइए।
उत्तर:
1.
लोहे के भारी नोंक वाले हलों का उपयोग।
2.
पशुओं को हलों में जोतने की तकनीक में सुधार।
प्रश्न
46. कृषि में विस्तार के साथ ही उससे सम्बन्धित
किन-किन क्षेत्रों का विस्तार हुआ ?
उत्तर:
1.
जनसंख्या
2.
व्यापार.
3.
नगर।
प्रश्न
47. मध्यकाल में यूरोप में नगरों के विकास के कोई
दो कारण बताइए।
उत्तर:
1.
कृषि का विस्तार
2.
नगरों का स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण।
प्रश्न
48. फ्रांस में कथील चर्च किसके सहयोग से बनाये
जाते थे?
उत्तर:
फ्रांस
में कथील चर्च लोगों के विभिन्न समूहों द्वारा अपने श्रम, वस्तुओं और उनके धन के सहयोग
से बनाये जाते थे।
प्रश्न
49. फ्रांस के कथील नगर क्या थे ?
उत्तर:
फ्रांस
में बड़े-बड़े चर्चों का निर्माण हुआ, जिन्हें कथीड्रल कहा जाता था। धीरे-धीरे इन
चर्चों के चारों ओर नगरों का विकास हुआ, जिन्हें कथील नगर कहा गया।
प्रश्न
50. यूरोप में चौदहवीं शताब्दी की किन्हीं दो
आपदाओं का नाम लिखिए।
उत्तर:
1.
1315-1317 ई. में भयंकर अकाल पड़ना।
2.
1347 से 1350 की अवधि में भीषण महामारी (ब्यूबोनिक प्लेग)का
फैलना।
प्रश्न
51. चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में हुए कृषकों के
विद्रोह के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
1.
आय कम होने से अभिजात वर्ग द्वारा धन सम्बन्धी
अनुबन्धों को तोड़ देना।
2.
अभिजात वर्ग द्वारा पुरानी मजदूरी सेवाओं को
पुनः प्रचलन में लाना।
प्रश्न
52. 15वीं व 16वीं
शताब्दी में यूरोप में किन-किन नए शासकों का उदय हुआ ?
उत्तर:
1.
फ्रांस में लुई ग्यारहवाँ
2.
इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम
3.
आस्ट्रिया में मैक्समिलन
4.
स्पेन में ईसाबेला व फर्जीनेंड।
प्रश्न
53. एस्टेट्स जनरल क्या थी ?
उत्तर:
लुई
तेरहवें के शासनकाल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा को एस्टेट्स जनरल कहते थे।
प्रश्न
54. फ्रांस में एस्टेट्स जनरल के कितने सदन थे ?
उत्तर:
तीन-
1.
पादरी वर्ग
2.
अभिजात वर्ग
3.
सामान्य लोग।
प्रश्न
55. 1614 ई. से 1789
ई.
तक फ्रांस की एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन आयोजित क्यों नहीं किया गया?
उत्तर:
क्योंकि
फ्रांस के राजा तीन वर्गों-पादरी, अभिजात व सामान्य लोगों के मध्य अपनी शक्ति
नहीं बाँटना चाहते थे।
प्रश्न
56. इंग्लैण्ड में स्थापित पार्लियामेंट के दो
सदनों के नाम बताइए।
उत्तर:
1.
हाउस ऑफ लॉर्ड्स
2.
हाउस ऑफ कॉमन्स।
प्रश्न
57. हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य कौन होते थे ?
उत्तर:
लॉर्ड
व पादरी।
प्रश्न
58. हाउस ऑफ कॉमन्स किसका प्रतिनिधित्व करती थी ?
उत्तर:
नगरों
व ग्रामीण क्षेत्रों का।
प्रश्न
59. इंग्लैण्ड के किस शासक ने पालिर्यामेंट को बिना
बुलाये ग्यारह वर्षों तक शासन किया था ?
उत्तर:
चार्ल्स
प्रथम (1629-1640) ने।
प्रश्न
60. इंग्लैण्ड के किस शासक को मृत्युदण्ड देकर वहाँ
गणतन्त्र की स्थापना की गयी थी ?
उत्तर:
चार्ल्स
प्रथम को।
प्रश्न
61. वर्तमान में फ्रांस में किस प्रकार की शासन
व्यवस्था है ?
उत्तर:
गणतंत्रीय
सरकार। प
प्रश्न
62. वर्तमान में इंग्लैण्ड में किस प्रकार की शासन
व्यवस्था है ?
उत्तर:
राजतंत्र।
लघूत्तरीय
प्रश्नोत्तर (SA)
प्रश्न
1. 9वीं से 15वीं
शताब्दी तक के पश्चिमी यूरोप के इतिहास की जानकारी किस प्रकार प्राप्त हो सकी है?
उत्तर:
यूरोप
के इतिहास की जानकारी हमें इसलिए मिल सकी क्योंकि वहाँ भू-स्वामित्व के विवरणों, मूल्यों
और कानूनी मुकद्दमों जैसी बहुत सामग्री दस्तावेजों के रूप में उपलब्ध थी। जैसे
1.
चर्चों में मिलने वाले जन्म-मृत्यु एवं विवाह
के अभिलेखों की सहायता से परिवारों व जनसंख्या की संरचना को समझा जा सका।
2.
चर्चों से प्राप्त अभिलेखों से व्यापारिक सम्बन्धों
की जानकारी प्राप्त हुई।
3.
गीत व कहानियों द्वारा त्योहारों व अन्य
गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।
प्रश्न
2. मार्क ब्लॉक के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मार्क
ब्लॉक (1886-1944) एक फ्रांसीसी विद्वान थे। इन्होंने सर्वप्रथम
सामंतवाद पर कार्य किया था। इनका मत था कि इतिहास की विषयवस्तु राजनीतिक इतिहास, अन्तर्राष्ट्रीय
सम्बन्ध एवं महान व्यक्तियों की जीवनियों से अधिक है। इन्होंने भूगोल के महत्व
द्वारा मानव इतिहास के निर्माण पर बल दिया जिससे कि लोगों के समूहों का व्यवहार व
रुख समझा जा सके। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इनकी नाजियों द्वारा हत्या कर दी
गई।
प्रश्न
3. सामंतवाद का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
सामंतवाद
को आंग्ल भाषा में 'Fuedalism' कहा जाता है। इस शब्द की
उत्पत्ति एक जर्मन शब्द 'फ्यूड' से हुई जिसका अर्थ होता है-'एक
भूमि का टुकड़ा'। यह शब्द एक ऐसे समाज की ओर इंगित करता है जो
मध्यकालीन यूरोप के फ्रांस व इंग्लैण्ड में विकसित हुआ। यह सामंतों (लॉर्डी) व
कृषकों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं विधिक
सम्बन्धों का वर्णन करता है।
प्रश्न
4. आर्थिक सन्दर्भ में सामंतवाद क्या था ?
उत्तर:
आर्थिक
सन्दर्भ में यदि सामंतवाद शब्द को परिभाषित करें तो यह एक प्रकार के कृषि उत्पादन
को व्यक्त करता है, जो लॉर्ड (सामंत) और कृषकों के सम्बन्धों पर
आधारित था। कृषक स्वयं के खेतों के साथ-साथ लॉर्ड के खेतों पर भी कार्य करते थे।
कृषकों की श्रम सेवा के बदले लार्ड द्वारा उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान की जाती
थी। लॉर्ड के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी थे। सामंतवाद ने जीवन के आर्थिक, सामाजिक
एवं राजनीतिक पहलुओं पर भी अधिकार कर लिया था।
प्रश्न
5. सामंतवाद का उद्भव कब से माना जा सकता है?
उत्तर:
हालाँकि
सामंतवाद की जड़ें रोमन साम्राज्य में विद्यमान प्रथाओं और फ्रांस के राजा
शॉर्लमेन (742-814 ई.) के काल में पायी गईं, फिर
भी ऐसा कहा जाता है कि जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामंतवाद की उत्पत्ति
यूरोप के अनेक भागों में ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई।
प्रश्न
6. फ्रांस का उद्भव किस प्रकार हुआ? बताइए।
उत्तर:
गॉल
रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था। इसमें दो विस्तृत तट-रेखाएँ, पर्वत
श्रेणियाँ, लम्बी नदियाँ, वन एवं कृषि योग्य विस्तृत
मैदान स्थित थे। जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक ने गॉल पर विजय प्राप्त करके अपने नाम
पर उसका नाम फ्रांस रख दिया। छठी शताब्दी में इस प्रदेश पर फ्रैंकिंश अथवा फ्रांस
के ईसाई राजा शासन करते थे। .
प्रश्न
7. यूरोप में फ्रांस का समाज किस आधार पर तीन
वर्गों में विभाजित हुआ था ?
उत्तर:
यूरोप
में फ्रांस का समाज कार्य के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित हुआ
1.
पादरी वर्ग
2.
अभिजात वर्ग
3.
कृषक वर्ग। फ्रांसीसी पादरियों को यह विश्वास
था कि प्रत्येक व्यक्ति कार्य के आधार पर तीन वर्गों में से किसी एक वर्ग का सदस्य
होता है। एक बिशप का कथन है कि “वर्ग क्रम में, कुछ प्रार्थना करते हैं, दूसरे
लड़ते हैं एवं शेष अन्य कार्य करते
प्रश्न
8. वैसलेज प्रथा क्या थी ?
उत्तर:
वैसलेज
एक ऐसी प्रथा थी, जिसके माध्यम से फ्रांस के शासकों का लोगों से
जुड़ाव था। इस प्रथा के अन्तर्गत अभिजात वर्ग, दास (वैसल) की रक्षा करता था
एवं दास उसके प्रति निष्ठावान रहता था। यह प्रथा जर्मन मूल के लोगों, जिनमें
से फ्रैंक लोग भी एक थे, में समान रूप से विद्यमान थी। .
प्रश्न
9. मेनर से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
फ्रांस
में लॉर्ड के घर को मेनर कहा जाता था। वह गाँवों पर नियंत्रण रखता था। कुछ लॉर्ड
अनेक गाँवों के स्वामी होते थे। मेनर के मालिक लॉर्ड की व्यक्तिगत कृषि भूमि पर
खेती का कार्य कृषक करते थे। इन किसानों को युद्ध के समय पैदल सैनिक के रूप में भी
कार्य करना पड़ता था। ये किसान लॉर्ड की भूमि पर अपना जीवन निर्वाह करते थे। इनका
जीवन कष्टमय था, जबकि मेनर का स्वामी अर्थात् सामंत (लॉर्ड)
शान-शौकत का जीवन व्यतीत करता था।
प्रश्न
10. सामंती सेना से क्या आशय था ? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस
में कार्य के आधार पर विभाजित द्वितीय अभिजात वर्ग को वहाँ के समाज में विशेष
महत्व प्राप्त था। उनका अपनी सम्पत्ति पर स्थाई रूप से पूर्ण नियंत्रण था। वे अपनी
सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे, इसके लिए वे कृषकों को अपनी भूमि जोतने के लिए
दे देते थे और बदले में कृषकों को आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के
रूप में कार्य करना पड़ता था। इसी सैन्य व्यवस्था को सामंती सेना के नाम से जाना
जाता था।
प्रश्न
11. मध्यकालीन यूरोप में दुर्गों का विकास किस रूप
में हुआ? 13वीं सदी में इनके आकार में
वृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोप में दुर्गों का विकास सामंत प्रथा के अन्तर्गत राजनीतिक प्रशासन एवं सैन्य
शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ। तेरहवीं शताब्दी में नाइट एवं उसके परिवार का
निवास स्थान बनाने हेतु दुर्गों के आकार में वृद्धि की जाने लगी थी।
प्रश्न
12. नाइट्स से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
नौवीं
शताब्दी के दौरान यूरोप में प्रायः स्थानीय युद्ध होते रहते थे। इस युद्ध में कृषक
शौकिया सैनिक के रूप में भाग लेते थे, जो पर्याप्त नहीं होने के साथ-साथ युद्ध कला
में कुशल भी नहीं होते थे। इसलिए कुशल घुड़सवार अश्वसेना की आवश्यकता महसूस की
गयी। इस आवश्यकता ने एक नये वर्ग के उदय को बढ़ावा दिया। कुशल घुड़सवार अश्व सेना
का नया वर्ग नाइट्स कहलाया।
प्रश्न
13. फ़ीफ़ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
फ्रांस
में लार्ड (सामंत) द्वारा नाइट्स को भूमि का एक टुकड़ा दिया जाता था और बदले में
उनसे रक्षा करने का वचन लिया जाता था। भूमि के इस टुकड़े को 'फ़ीफ़' कहा
जाता था। फ़ीफ़ को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया जा सकता था। यह 1000
से 2000
एकड़
या उससे भी अधिक क्षेत्र में फैली हुई भूमि होती थी, जिससे नाइट्स व उसके परिवार
की व्यवस्था होती थी।
प्रश्न
14. मध्यकालीन यूरोप में कैथोलिक चर्च का क्या
महत्व था ?
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोप में कैथोलिक चर्च अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। उसके अपने नियम-कानून
होते थे। राजा द्वारा प्रदत्त भूमि से वह टीथ नामक कर वसूल करता था। चर्च के पादरी
स्वयं को समाज का प्रथम वर्ग मानते थे। यह वर्ग मानता था कि नियम धर्म के आधार पर
निर्धारित हुए थे। यूरोप में समाज का मार्गदर्शन इसी वर्ग द्वारा किया जाता था।
प्रश्न
15. आप यह किस प्रकार कह सकते हैं कि अनेक
सांस्कृतिक सामंती रीति-रिवाजों और तौर-तरीकों को चर्च की दुनिया ने अपना लिया था?
उत्तर:
चर्च
के औपचारिक रीति-रिवाज कुछ महत्वपूर्ण रस्में, सामंती कुलीनों की नकलें
थीं। जैसे-प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकना। यह
रिवाज नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफादारी की शपथ लेने के दौरान
अपनाये गये तरीके की नकल थी। इसी प्रकार ईश्वर के लिए लॉर्ड शब्द का प्रचलन भी एक
उदाहरण था जिसके द्वारा सामंती संस्कृति चर्च के उपासना कक्षों में प्रवेश करने
लगी। इस प्रकार अनेक सांस्कृतिक सामंती रीति-रिवाज और तौर-तरीकों को चर्च की
दुनिया ने अपना लिया था।
प्रश्न
16. मठ क्या थे ? मध्यकालीन
यूरोप के किन्हीं दो प्रसिद्ध मठों के नाम बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोप में चर्च के अतिरिक्त कुछ विशेष ईसाई श्रद्धालुओं की एक अन्य संस्था भी होती
थी, जो
गाँवों व नगरों से दूर एकांत में रहती थी, इसमें धार्मिक व्यक्ति
(भिक्षु) रहते थे। इस संस्था को मठ या ऐबी या मोनेस्ट्री मठ कहते थे। इन मठों में
रहने वाले पुरुषों को मोंक व स्त्रियों को नन कहते थे। मध्यकालीन यूरोप के दो
प्रसिद्ध मठ थे
1.
सेंट बेनेडिक्ट (इटली)-529
ई.
में स्थापित
2.
क्लूनी मठ (बरगंडी)-910 ई. में स्थापित।
प्रश्न
17. 14वीं शताब्दी में मठवाद के महत्व में कमी आने के
कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
14वीं
शताब्दी में मठवाद के महत्व में कमी आने के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं
1.
भिक्षुओं के आरामदायक एवं विलासितापूर्ण जीवन
की आलोचना करना।
2.
चॉसर नामक विद्वान द्वारा अपनी । पुस्तक 'कैंटरबरी
टेल्स' में
भिक्षु-भिक्षुणी एवं फ्रायर का हास्यास्पद ढंग से चित्रण करना।
प्रश्न
18. विलियम प्रथम कौन था ? उसने
इंग्लैण्ड की सत्ता किस प्रकार प्राप्त की ?
उत्तर:
विलियम
प्रथम फ्रांस के नारमंडी प्रान्त का ड्यूक था। 11वीं शताब्दी में इसने अपनी
एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल को पारकर इंग्लैण्ड के शासक सैक्सन को पराजित कर
इंग्लैण्ड की सत्ता पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न
19. श्रेणी (गिल्ड) से आपका क्या आशय है ? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
यूरोप
में नौवीं शताब्दी में श्रेणी (गिल्ड) आर्थिक संस्था का आधार थी। प्रत्येक शिल्प
या उद्योग एक श्रेणी के रूप में संगठित था। यह एक ऐसी संस्था थी, जो
उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य एवं बिक्री पर नियंत्रण रखती थी। ' श्रेणी
सभागार' प्रत्येक नगर का एक आवश्यक अंग था। यह सभागार
आनुष्ठानिक समारोहों के लिए था जहाँ श्रेणी (गिल्डों) के मुखिया औपचारिक रूप से
मिलते थे।
प्रश्न
20. यूरोप में ग्यारहवीं एवं बारहवीं सदी के
व्यापार-वाणिज्य को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यूरोप
में ग्यारहवीं शताब्दी की शुरुआत में पश्चिम एशिया के साथ नए व्यापार मार्ग विकसित
हो रहे थे। स्कैंडिनेविया के व्यापारी वस्त्रों के बदले फर व शिकारी बाज लेने के
लिए उत्तरी सागर से दक्षिण की समुद्री यात्रा करते थे और अंग्रेज व्यापारी यहाँ
राँगा बेचने के लिए आते थे। बारहवीं शताब्दी तक फ्रांस में वाणिज्य एवं शिल्प का
विकास होने लगा था। पहले दस्तकारों को व्यापार के लिए एक मेनर से दूसरे मेनर में
जाना पड़ता था किन्तु अब उन्होंने जहाँ वस्तुओं का उत्पादन होता था वहीं बसकर
व्यापार करना प्रारम्भ कर दिया।
प्रश्न
21. इंग्लैण्ड में मेनरों के लॉर्ड के विरुद्ध
कृषकों ने निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति क्यों अपनायी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड
में कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध ड़ता था
और इस कार्य को करने के लिए उन्हें नियमानुसार निर्धारित समय से अधिक समय देना
पड़ता था। वृ त्याचार को चुपचाप नहीं सहते थे। चूँकि वे खुलकर विरोध नहीं कर सकते
थे। इसलिए कृषकों ने निष्क्रिय प्रति अपनायी।
प्रश्न
22. फ्रांस में कथीडूल क्या थे ? इनके
निर्माण के समय किन-किन बातों का
ता
था?
उत्तर:
बारहवीं
शताब्दी के दौरान फ्रांस में बड़े-बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा था, ऐसे
त कहलाते थे। यद्यपि कथीड्रल चर्च मठों की संपत्ति थे लेकिन लोगों के विभिन्न
समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं के सहयोग से निर्माण कराया। कथीड्रल
पत्थर के बने होते थे और उन्हें पूरा करने में वर्षों लगते थे। इन चर्चों के ओर
विकसित होने वाले नगर कथीड्रल नगर कहलाते थे। कथीड्रल का निर्माण इस प्रकार से
किया जाता था कि दर की आवाज सभागार में उपस्थित समस्त लोगों को स्पष्ट रूप से
सुनाई दे तथा लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने गली घण्टियों की आवाज भी दूर-दूर
तक सुनाई पड़ सके।
प्रश्न
23. 15वीं एवं 16वीं
शताब्दी के यूरोपीय शासकों को इतिहासकारों ने नये शासक क्यों का? कुछ
शासकों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
15वीं
एवं 16वीं
शताब्दी के दौरान यूरोपीय शासकों ने अपनी वित्तीय एवं सैनिक शक्ति में अप्रत्याशित
ढंग से वृद्धि कर ली थी। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने शक्तिशाली राज्य स्थापित कर
लिए थे जो आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते थे। इसी कारण इतिहासकारों ने
उन्हें नये शासक कह उदाहरण-लुई ग्यारहवाँ (फ्रांस), मैक्समिलन (ऑस्ट्रिया), हेनरी
सप्तम (इंग्लैण्ड), ईसाबेला व फर्डीनेंड (स्पेन)।
प्रश्न
24. बेनेडिक्टीन मठों में भिक्षुओं द्वारा पालन किए
जाने वाले प्रमुख नियमों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
बेनेडिक्टीन
मठों में भिक्षुओं द्वारा पालन किये जाने वाले प्रमुख नियम निम्नलिखित थे-
1.
बेनेडिक्टीन मठों में भिक्षुओं को बोलने की
आज्ञा नहीं थी, वे केवल कुछ विशिष्ट अवसरों पर ही बोल सकते थे।
2.
भिक्षुओं को विनम्रता का व्यवहार करना पड़ता
था। इन मठों में विनम्रता का अर्थ होता था-आज्ञापालन।
3.
किसी भी भिक्षु को निजी सम्पत्ति रखने की
अनुमति नहीं थी।
4.
आलस्य आत्मा का शत्रु है। इसलिए मठ के नियम के
अनुसार भिक्षु और भिक्षुणियों को निश्चित समय में शारीरिक श्रम और निश्चित घण्टों
में पवित्र पाठ करना होता था।
5.
मठ का निर्माण इस प्रकार किया जाता था कि
आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ; जैसे-जल, चक्की, उद्यान, कार्यशाला
सभी उसकी सीमा के अन्दर हों। अतः भिक्षु-भिक्षुणियों को अनावश्यक बाहर जाने पर
प्रतिबन्ध था।
उक्त
नियम जो बेनेडिक्टीन मठों में एक हस्तलिखित पुस्तक में वर्णित थे, इनका
पालन भिक्षुओं ने कई सदियों तक किया। इस पुस्तक में नियमों के कुल 73 अध्याय
थे।
प्रश्न
25. यूरोपीय सामंती समाज में किसान किन-किन वर्गों
में विभाजित थे? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यूरोपीय
सामंती समाज में किसान निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित थे
(i)
स्वतन्त्र
किसान- इस वर्ग के किसान अपनी भूमि सामंत (लॉर्ड) से प्राप्त करते
थे। वे अपने को सामंत या लॉर्ड का काश्तकार मानते थे, पुरुषों का सैनिक सेवा में
कुछ दिनों का योगदान आवश्यक था। किसान इस भूमि से उत्पादन के बदले में सामंत को कर
देते थे। इन कृषकों के परिवार को लॉर्ड की जागीर पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह
में तीन या अधिक दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे
श्रम-अधिशेष (Labour rent) कहते थे, सीधे
लार्ड के पास जाता था।
(ii)
सर्फ
या कृषि-दास- सर्फ को हिंदी में कृषि-दास कहा जाता है। सर्फ
की उत्पत्ति अंग्रेजी क्रिया 'To Serve' से हुई है जिसका अर्थ
है-सेवा करना। यह किसानों का सबसे निम्न वर्ग था। कृषि दास अपने जीवन-यापन के लिए
जिन भूखण्डों पर कार्य करते थे वे लॉर्ड के स्वामित्व में थे। अतः उपज का अधिकांश
भाग लॉर्ड को ही मिलता था। ये लॉर्ड की भूमि पर कृषि कार्य करते थे। इसके लिए
उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। उन्हें बिना लॉर्ड की आज्ञा के जागीर से बाहर
जाने का भी अधिकार नहीं था। इसलिए ये एक गुलाम या दास की तरह थे।
प्रश्न
26. 11वीं शताब्दी में यूरोप में होने वाले नवीन कृषि
प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:
11वीं
शताब्दी में यूरोप में होने वाले नवीन कृषि प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के निम्नलिखित
परिणाम निकले
1.
विभिन्न कृषि सम्बन्धी नवीन प्रौद्योगिकीय
परिवर्तनों से भूमि की प्रत्येक इकाई में होने वाले उत्पादन में तीव्र गति से
वृद्धि हुई। फलस्वरूप खाद्यान्न की उपलब्धता दुगुनी हो गयी।
2.
कृषक अब कम भूमि पर अधिक खाद्य सामग्री का
उत्पादन कर सकते थे।
3.
पशुओं को भी अधिक चारा मिलने लगा।
4.
आहार में मटर व सेम का अधिक उपयोग पर्याप्त
प्रोटीन का स्रोत बन गया।
प्रश्न
27. 14वीं शताब्दी में यूरोप में फैली महामारियों के
क्या परिणाम निकले ? बताइए।
उत्तर:
14वीं
शताब्दी में यूरोप में फैली महामारियों के निम्नलिखित परिणाम निकले
1.
महामारियों के पश्चात् आई आर्थिक मंदी ने
सामाजिक विस्थापन को बढ़ावा दिया।
2.
जनसंख्या में ह्रास के कारण श्रमिकों की संख्या
में अत्यधिक कमी आ गई।
3.
कृषि और उत्पादन के मध्य गम्भीर असन्तुलन
उत्पन्न हो गया क्योंकि इन दोनों ही कार्यों में पर्याप्त संख्या में लग सकने वाले
लोगों की संख्या में बहुत अधिक कमी आ गई।
4.
खरीददारों की कमी के कारण कृषि उत्पादों के
मूल्यों में कमी आई।
5.
प्लेग के बाद इंग्लैण्ड में मजदूरों, विशेषकर
कृषि-मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई।
दीर्घ
उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. मध्यकालीन यूरोपीय समाज कौन-कौन से वर्गों में
विभक्त था ? विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोपीय समाज के वर्ग-मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन वर्गों में विभाजित था
(i)
प्रथम
वर्ग- पादरी वर्ग- समाज में प्रथम वर्ग पादरियों का था। कैथोलिक
चर्च के अपने नियम थे। राजा द्वारा दान दी गई भूमियाँ चर्चों के पास होती थीं
जिनसे उनको कर वसूलने का अधिकार प्राप्त होता था। इसलिए चर्च एक शक्तिशाली संस्था
थी, जो
राजा पर निर्भर नहीं थी। पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष को 'पोप' कहते थे, जो
रोम में रहता था।
यूरोप
में बिशप और पादरी समाज का मार्गदर्शन किया करते थे। लगभग प्रत्येक गाँव का अपना
चर्च हुआ करता था, जहाँ पर प्रत्येक 'रविवार' को
लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने और सामूहिक प्रार्थना करने के लिए उपस्थित होते थे।
धर्म के क्षेत्र में बिशप को अभिजात माना जाता था। बिशपों के पास भी लॉर्ड की तरह
विस्तृत जागीरें थीं और वे शानदार महलों में निवास करते थे। चर्च को एक वर्ष के
अन्तराल पर कृषकों से उनकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था जिसे 'टीथ' कहते
थे। अमीरों द्वारा अपने कल्याण और मरणोपरान्त अपने रिश्तेदारों के कल्याण हेतु
दिया जाने वाला दान भी उनकी आय का एक स्रोत था।
(ii)
द्वितीय
वर्ग- अभिजात वर्ग- यूरोपीय समाज में अभिजात कुलीनों को दूसरे
वर्ग में रखा गया था। परन्तु वास्तव में, सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की
महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसका कारण था कि अधिकांश भूमि पर इस वर्ग का नियन्त्रण एवं
आधिपत्य था, वह 'वैसलेज' नामक एक प्रथा के विकास के
कारण हुआ था। बड़े-बड़े भूस्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक
भू-स्वामियों के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग तथा भू-स्वामी कृषकों की रक्षा का वचन
देते थे और बदले में कृषक उनके प्रति निष्ठावान रहते थे।
अभिजात
वर्ग की एक विशेष हैसियत होती थी। ये सामंती सेना रख सकते थे, स्वयं
का न्यायालय स्थापित कर सकते थे एवं मुद्रा भी जारी कर सकते थे। वे अपनी भूमि पर
बसे सभी व्यक्तियों के मालिक होते थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी होते थे।
जिसमें उनके घर, उनके निजी खेत व चारागाह और उनके पट्टेदार
कृषकों के घर व खेत होते थे। उनका घर 'मेनर' कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा
जोती जाती थी, जिनको आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल
सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था।
(iii)
तृतीय
वर्ग- कृषक वर्ग- कृषकों की एक विशाल जनसंख्या थी जो पहले दो
वर्गों पादरी व अभिजात के भरण-पोषण का कार्य करती थी।
ये
कृषक दो प्रकार के होते थे-
1.
स्वतंत्र कृषक और
2.
सर्फ; जिन्हें कृषिदास कहा जाता था। स्वतंत्र कृषक
अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे।
इस
समाज के पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान अनिवार्य था। इसके लिए वर्ष में
कम-से-कम 40 दिन सैनिक सेवा का नियम प्रचलित था। कृषकों और
उनके परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करना पड़ता था। इसके लिए सप्ताह
में तीन या इससे कुछ अधिक दिन निश्चित थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन
(श्रम-अधिशेष) सीधे लॉर्ड के पास जाता था। इसके अतिरिक्त उनको अन्य कार्य भी करने
पड़ते थे। इसके अतिरिक्त वे एक प्रत्यक्ष कर 'टैली' जिसे
राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाता था, भी इनको देना पड़ता था। कृषि दास अपने जीवन
निर्वाह के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे वे लॉर्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए
उनकी अधिकतर उपज (श्रम-अधिशेष) भी लॉर्ड को ही मिलती थी।
थ
ही वे उन भूखण्डों पर भी कृषि करते थे जो केवल लॉर्ड के स्वामित्व में थे, इसके
लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। वे बिना लॉर्ड की आज्ञा के जागीर नहीं छोड़
सकते थे और न ही किसी अन्य लॉर्ड के पास जा सकते थे। गलती करने पर उन्हें कठोर
दण्ड दिये जाते थे। इस प्रकार मध्यकालीन यूरोप के समाज को उपर्युक्त वर्णित तीन
वर्गों में विभाजित किया गया था। यह पूरा समाज कृषि दासों के श्रम पर निर्भर था।
कृषक की मेहनत और कृषि उपज को शेष दो वर्ग पादरी एवं अभिजात वर्ग सुख, भोग-विलास
और ऐश्वर्य में उपयोग करते थे।
प्रश्न
2. मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग को कौन-कौन
से अधिकार प्राप्त थे ? विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
मध्यकाल
में फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकाल
में फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग की भूमिका-(अधिकार)- मध्यकालीन
फ्रांस में अभिजात वर्ग को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। यह फ्रांस का दूसरा
सामाजिक वर्ग था। फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग की भूमिका (अधिकारों) का वर्णन
निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है
(i)
भूमि
पर नियंत्रण- फ्रांसीसी सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग
की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसका मुख्य कारण उनका भूमि पर नियंत्रण होना था। यह
नियंत्रण वैसलेज नामक एक प्रथा के विकास का परिणाम था। वे अपनी भूमि पर बसे हुए
समस्त लोगों के स्वामी होते थे। वे विस्तृत क्षेत्र के स्वामी थे जिसमें उनके घर, व्यक्तिगत
खेत, चारागाह
तथा उनके आसामी कृषकों के घर व खेत होते थे। उनका घर मेनर कहलाता था।
(ii)
सम्पदा
पर स्थायी रूप से नियंत्रण- फ्रांसीसी समाज में अभिजात वर्ग का अपनी
सम्पदा पर स्थायी रूप से पूर्ण नियंत्रण होता था। वे अपनी सम्पदा का अपनी
इच्छानुसार उपयोग कर सकते थे।
(iii)
सेना
का गठन- अभिजात वर्ग अपनी सेना का गठन कर सकते थे। उनके द्वारा
गठित सेना सामंती सेना कहलाती थी। इसके अतिरिक्त वे अपनी सैन्य-क्षमता में भी
वृद्धि कर सकते थे।
(iv)
स्वयं
का न्यायालय स्थापित करना- मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग अपना स्वयं
का न्यायालय स्थापित कर सकते थे। इन न्यायालयों में वे फरियादी की फरियाद भी सुनते
थे तथा फैसला भी देते थे।
(v)
मुद्रा
जारी करना- अभिजात वर्ग अपनी मुद्रा भी जारी कर सकते थे। जिससे
वस्तुएँ खरीदी व बेची जा सकती थीं।
(vi)
कृषकों
द्वारा सेवा प्रदान करना- अभिजात वर्ग की व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा
जोती जाती थी। इन कृषकों को खेतों पर काम करने के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर युद्ध
के समय पैदल सैनिक के रूप में भी कार्य करना पड़ता था।
प्रश्न
3. मेनर की जागीर क्या थी ? इसकी
प्रमुख विशेषताओं को बताइए।
उत्तर:
मेनर
की जागीर से आशय- फ्रांस में लॉर्ड का घर मेनर कहलाता था।
प्रतिदिन के उपयोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। जागीरों में अरण्य भूमि व
वन होते थे। जागीर का शाब्दिक अर्थ-राज्य की ओर से प्राप्त भूमि या प्रदेश होता
है। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जनभर एवं बड़ी जागीर में 50-60
परिवार
हो सकते थे। मेनर की जागीर की प्रमुख विशेषताएँ-मेनर की जागीर की प्रमुख विशेषताएँ
निम्नलिखित थीं
(i)
दैनिक
उपभोग की वस्तुओं का उपलब्ध होना- दैनिक उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर ही
मिलती थी। जागीरों में विस्तृत अरण्य भूमि व वन होते थे जहाँ लॉर्ड शिकार करते थे।
मेनर के चारागाह भी होते थे, जहाँ उनके घोड़े व अन्य पशु चरते थे। अनाज
खेतों में उगाए जाते थे तथा लोहार व बढ़ई लॉर्ड के औजारों की देखभाल एवं मरम्मत
करते थे। जबकि राज मिस्त्री उनकी इमारतों की देखभाल करता था। महिलाएँ सूत कातती
एवं बुनती थीं। बच्चे लॉर्ड की मदिरा संपीडक में कार्य करते थे।
(ii)
चर्च
एवं दुर्ग की उपलब्धता- मेनर की जागीर में प्रार्थना के लिए एक चर्च
होता था तथा सम्पूर्ण जागीर की सुरक्षा के लिए एक दुर्ग भी होता था। दुर्ग की वजह
से उनमें निवास करने वाले सभी लोग अपने आपको सुरक्षित महसूस करते थे। इन दुर्गों
में नाइट्स के परिवार भी रहते थे। दुर्गों का विकास सामंती प्रथा के अन्तर्गत
राजनीतिक प्रशासन एवं सैनिक शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ।
(iii)
मेनरों
का आत्मनिर्भर न होना- मेनर कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते थे
क्योंकि उन्हें नमक, चक्की का पाट एवं धातु के बर्तन बाहर से
मँगवाने पड़ते थे। विलासी जीवन के शौकीन लॉर्डों के लिए भी महँगी वस्तुएँ, वाद्य
यंत्र एवं आभूषण आदि सामग्री अन्य दूसरे स्थानों से मँगवानी पड़ती थीं।
प्रश्न 4. नाइट्स
कौन थे? उनकी जीवन शैली व लॉर्ड से
उनके सम्बन्धों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नाइट्स- यूरोप
में नौवीं शताब्दी में नाइट्स कुशल घुड़सवार अश्व सैनिक होते थे। ये नाइट्स (अश्व
सैनिक) लार्ड के प्रति वफादार होते थे।
नाइट्स की जीवन शैली एवं
लॉर्ड से सम्बन्ध-
नाइट्स, लॉर्ड
से उसी प्रकार सम्बद्ध थे। जिस प्रकार लॉर्ड, राजा के साथ सम्बद्ध थे।
लॉर्ड ने अपने-अपने नाइट्स को एक भूमि का भाग जागीर के रूप में दे दिया जिसे 'फ़ीफ़' कहा
गया। इसके बदले में नाइट्स अपने लॉर्ड की रक्षा करने का वचन देता था। फ़ीफ़, जो
कि 1000-2000
एकड़
या अधिक हो सकती थी, को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया जा सकता
था। इस फ़ीफ़ में नाइट, एक पनचक्की और मदिरा सम्पीडक के अतिरिक्त अपने
परिवार के लिए एक घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के रहने की
व्यवस्था करता था।
नाइट अपनी सेवाएँ अन्य
लॉर्डों को भी दे सकता था, परन्तु उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के
प्रति ही होती थी। अपनी सैन्य क्षमताओं को बनाये रखने के लिए नाइट्स प्रतिदिन अपना
समय बाड़ लगाने, घेराबंदी करने एवं पुतलों से लड़ने तथा अपने
बचाव का अभ्यास करने में व्यतीत करते थे। 9वीं से 11वीं
शताब्दी तक नाइट्स की प्रथा फलती-फूलती रही परन्तु 12वीं सदी के आते-आते नाइट्स
का पतन हो गया। 12वीं सदी के गायक फ्रांस के मेनरों में वीर
राजाओं और नाइट्स की वीरता की कहानियाँ गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे
जो अंशतः ऐतिहासिक और अंशतः काल्पनिक होती थीं। अतः कह सकते हैं कि अब नाइट्स
वास्तविक रूप में नहीं वरन् कहानियों के रूप में रह गये।
प्रश्न
5. मध्यकालीन यूरोप के मोनेस्ट्री मठों में रहने
वाले भिक्षुओं के जीवन एवं उनके लिए बनाए गए नियमों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोप में मोनेस्ट्री मठ- ईसाई धर्म में कुछ अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति
के व्यक्ति जो पादरी नहीं होते थे, लोगों के बीच नगरों व गाँवों में नहीं रहते थे
बल्कि एकांत जीवन जीना पसन्द करते थे। ऐसे व्यक्ति जिन धार्मिक समुदायों में रहते
थे, उन्हें
मोनेस्ट्री मठ या ऐबी कहा जाता था।
मध्यकालीन
यूरोप में दो मठ विख्यात थे-
1.
529 ई. में इटली में स्थापित सेन्ट बेनेडिक्ट मठ
2.
910 ई. में बरगंडी में स्थापित क्लूनी मठ।
भिक्षुओं
का जीवन-
मध्यकालीन
यूरोप में भिक्षुओं का सम्पूर्ण जीवन मठों में रहने, प्रार्थना करने, अध्ययन
करने, कृषि
जैसा शारीरिक श्रम करने में व्यतीत हो जाता था। एक भिक्षु का जीवन पुरुष व महिला
दोनों ही अपना सकते थे। पुरुष भिक्षुओं को 'मोंक' एवं
महिला भिक्षुओं को 'नन' कहा जाता था। पुरुष एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग
मठ होते थे। भिक्षु व भिक्षुणियों को विवाह करने की अनुमति नहीं होती थी। इस
प्रकार मठों में भिक्षुओं का जीवन अत्यन्त कठिन था। भिक्षुओं के लिए
नियम-बेनेडिक्टीन मठों में भिक्षुओं के लिए एक हस्तलिखित पुस्तक होती थी, जिसमें
नियमों के 73 अध्याय थे। भिक्षुओं द्वारा इन नियमों का पालन
कई सदियों तक किया जाता रहा। इनमें से कुछ निम्नलिखित थे
1.
भिक्षुओं को आज्ञा का पालन करना चाहिए।
2.
किसी भी भिक्षु को व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं
रखनी चाहिए।
3.
भिक्षुओं को बोलने की आज्ञा कभी-कभी ही दी जानी
चाहिए।
4.
आलस्य आत्मा का शत्रु है, इसलिए
भिक्षु-भिक्षुणियों को निश्चित समय में शारीरिक श्रम एवं निश्चित घण्टों में
पवित्र पाठ करना चाहिए।
5.
मठों का निर्माण इस प्रकार से किया जाना चाहिए
कि उसकी चारदीवारी में आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ, जैसे-चक्की, उद्यान, जल, कार्यशाला
आदि उपलब्ध हों। .
प्रश्न
6. मध्यकाल में चर्चा का यूरोपियन समाज पर क्या
प्रभाव पड़ा ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
मध्यकाल
में चर्चों का यूरोपियन समाज पर प्रभाव-मध्यकाल में चर्चों का यूरोपियन समाज पर
बहुत अधिक प्रभाव पड़ा, जिसका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत
प्रस्तुत है
(i)
मध्यकाल
में यूरोप में चर्चों के प्रभाव से अधिकांश लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया था।
(ii)
ईसाई
बनने के बावजूद कुछ यूरोपियों ने अभी तक चमत्कार व रीति-रिवाजों से जुड़े अपने
पुराने विश्वासों का पूर्णतः त्याग नहीं किया था।
(iii)
ईसा
मसीह के जन्मदिन क्रिसमस (25 दिसम्बर) ने एक पुराने रोमन त्योहार का स्थान
ले लिया था। इस तिथि की गणना सौर पंचांग के आधार पर की गयी।
(iv)
क्रिसमस
व ईस्टर चौथी शताब्दी में ही कैलेण्डर की महत्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे।
(v)
ईस्टर
ईसामसीह के शूलारोपण एवं उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था लेकिन उसकी तिथि
निश्चित नहीं थी क्योंकि इसने चन्द्र पंचांग पर आधारित एक प्राचीन त्योहार का
स्थान ग्रहण किया था। जो लम्बी सर्दी के पश्चात् बसन्त ऋतु के आगमन का स्वागत करने
के लिए मनाया जाता था। एक परम्परा के अनुसार उस दिन गाँव का प्रत्येक व्यक्ति अपने
गाँव की भूमि का दौरा करता था। ईसाई धर्म अपनाने पर भी उन्होंने इसे निरन्तर जारी
रखा, परन्तु
अब वे उसे ग्राम के स्थान पर पैरिश (पैरिश-एक पादरी की देख-रेख में आने वाला
क्षेत्र) कहने लगे।
(vi)
कार्य
के बोझ से दबे कृषक इन पवित्र दिनों अथवा छुट्टियों का स्वागत इसलिए करते थे
क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई कार्य नहीं करना पड़ता था। वैसे तो ये दिन प्रार्थना
करने के लिए थे परन्तु लोग सामान्यतया इसका अधिकांश समय घूमने-फिरने, मौज
मस्ती करने एवं दावतों में खर्च करते थे।
(vii)
चर्चों
में ईसाई लोग प्रवचन सुन-सुनकर धार्मिक हो गये। वे तीर्थयात्राओं पर जाने लगे। यह
उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया। अनेक लोग शहीदों की समाधियों तथा
बड़े-बड़े गिरिजाघरों की लम्बी यात्राओं पर जाने लगे। इस प्रकार मध्यकाल में
चर्चों का यूरोपियन समाज पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।
प्रश्न
7. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषकों की दशा पर
विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोपीय समाज में कृषकों की दशा-मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषक वर्ग को तृतीय
स्थान प्राप्त था। इस काल में कृषक दो प्रकार के होते थे-
1.
स्वतंत्र कृषक,
2.
कृषि दास (सर्फ)।
1. स्वतंत्र
कृषकों की दशा- इस वर्ग में कृषक अपनी भूमि सामंत से प्राप्त
करते थे। वे अपने को सामंत (लॉर्ड) का काश्तकार मानते थे। पुरुष कृषकों द्वारा
सैनिक सेवा में कुछ दिनों का योगदान दिया जाना आवश्यक था। उन्हें अपने लार्ड को
वर्ष में कम से कम 40 दिन सैनिक सेवा देनी पड़ती थी। कृषकों के
परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर कार्य करना पड़ता था। उन्हें सप्ताह में तीन
या उससे अधिक दिनों तक लॉर्ड की जागीरों पर जाकर कार्य करना पड़ता था।
इस
श्रम से होने वाला उत्पादन 'श्रम अधिशेष' कहलाता था। यह श्रम अधिशेष
सीधे लॉर्ड के पास जाता था। कृषकों को एक प्रत्यक्ष कर 'टैली' भी
देना पड़ता था। जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे। कृषि के अतिरिक्त कृषकों को
जागीर में गड्डे खोदना, जलाऊ लकड़ी एकत्रित करना, बाड़
बनाना, सड़कों
व इमारतों की मरम्मत करना आदि कार्य भी करने पड़ते थे, जिनकी कोई भी मजदूरी प्रदान
नहीं की जाती थी। कृषकों के परिवारों की महिलाओं एवं बच्चों को सूत कातने, कपड़ा
बुनने, मोमबत्ती
बनाने तथा अंगूरों के रस से शराब बनाने जैसे कार्य भी लॉर्ड की आज्ञानुसार करने
पड़ते थे।
2. कृषि
दासों की दशा- इन्हें 'सर्फ' कहा
जाता था। मध्यकालीन यूरोप में यह कृषकों का सबसे निम्न वर्ग था। इनकी स्थिति बहुत
ही दयनीय थी। ये कृषि दास अपने जीवनयापन के लिए लॉर्ड के स्वामित्व वाले भूखण्डों
पर कार्य करते थे। इनसे प्राप्त उपज का अधिकांश भाग लॉर्ड को ही मिलता था। इन्हें
कार्य के बदले कोई मजदूरी नहीं मिलती थी, ये लॉर्ड की अनुमति के बिना जागीर से बाहर भी
नहीं जा सकते थे। इन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। ये केवल अपने लॉर्ड
की चक्की से ही आटा पीस सकते थे।
उनके
तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे एवं उनकी मदिरा सम्पीडक में ही शराब व बीयर तैयार
कर सकते थे। लॉर्ड को कृषि दास का विवाह तय करने का भी अधिकार प्राप्त था। वह कृषि
दास द्वारा पसन्द की गयी वधू को अशीर्वाद दे सकता था परन्तु इसके लिए वह कृषि दास
से शुल्क लेता था। कृषि दास एक गुलाम की तरह से जीवनयापन करते थे। इस प्रकार
मध्यकालीन यूरोप में कृषकों की दशा बहुत शोचनीय थी। लॉर्ड द्वारा उनका शोषण किया
जाता था। इनके द्वारा कठोर परिश्रम करने के बावजूद उन्हें भरपेट भोजन भी नहीं
मिलता था।
प्रश्न
8. यदि आप यूरोपीय सामन्तवादी मध्यकाल में होते तो
बताइए कि निम्न रूप में आप अपना समय किस प्रकार व्यतीत करते
1.
मेनर का स्वामी
2.
नाइट
3.
भिक्षु
4.
कृषि दास।
उत्तर:
1. यदि मैं मेनर का स्वामी होता- यदि मैं मध्यकालीन यूरोप के
सामन्तवादी समाज में मेनर का स्वामी होता तो मैं विलासतापूर्ण जीवन जीता। मेरे पास
गाँव में सबसे खूबसूरत किले जैसा महल होता। मेरे भवन में अनेक कमरे और सभागार होते
तथा उनमें साजसज्जा का सामान उचित स्थान पर सुसज्जित होता। मेरी अपनी कृषि भूमि
होती जिस पर अनेक कृषक तथा दास कृषक खेती कार्य कर रहे होते। मेरे महल के पास ही
चारागाह और एक जंगल भी होता। मेरे गाँव में मेरा पूर्णतया राज्य होता और मेरा जीवन
पूर्णतः सुख-सुविधाओं से सम्पन्न होता। अपनी स्वयं की न्याय व्यवस्था के कारण एक
न्यायाधीश के रूप में अपना कार्य निष्पक्ष होकर करता तथा स्त्रियों को उचित सम्मान
देता।
2. यदि
मैं नाइट होता- यदि मैं मध्यकालीन यूरोप के सामन्तवादी समाज
में नाइट होता, तो मेरा एक भव्य भवन होता। मेरी सेवा में तत्पर
रहने वाले अनेक लोग होते। मेरे पास पहनने के लिए बहुमूल्य आभूषण और सुन्दर वस्त्र
होते। मैं अपने अधिपति ड्यूक या बैरन का सम्मान करता और कुशल सैनिकों की पैदल और
घुड़सवारों की अश्व सैनिक टुकड़ी सदैव तैयार रखता। मैं निश्चित होकर अपनी सैन्य
योग्यताओं को बनाए रखने के लिए प्रतिदिन अपना समय बाड़ बनाने/घेराबंदी करने और
पुतलों से रणकौशल एवं अपने बचाव का अभ्यास करने, युद्ध करने तथा उत्सवों में
अपना समय व्यतीत करता।
3. यदि
मैं एक भिक्षु होता- यदि मैं एक भिक्षु होता तो एक भिक्षु के रूप
मैं संन्यासियों जैसा जीवन व्यतीत कर रहा होता। मैं अपना अधिकांश समय ईश्वर की
भक्ति में व्यतीत करता और कुछ समय शारीरिक श्रम में लगाता। मेरा निवास स्थान नगरों
और गाँवों से दूर एकान्त स्थान पर होता, जिसे लोग मठ कहते। मठ में रहकर वहाँ के नियमों
का पालन करना, तप करना, पुण्य करना, ईश्वरीय
आराधना करना ही मेरी दिनचर्या होती, साथ ही कुछ समय मठ में कला विकास के लिए और
लोगों को शिक्षित करने या ज्ञान प्रदान करने के लिए भी मैं अवश्य निकालता।
4. यदि
मैं एक कृषि दास होता- यदि मैं एक कृषि दास होता तो मेरा जीवन दुःखों
और कष्टों से भरा हुआ होता। मुझे सामंत की भूमि पर काम करना पड़ता। जिसके लिए वह
मुझे किसी तरह का कोई मेहनताना या वेतन नहीं देता। अतः मेरा जीवन एक गुलाम जैसा
होता। मैं अपनी भूमि की उपज का अधिकांश भाग सामंत को देने के लिए बाध्य होता
क्योंकि यदि मैं ऐसा नहीं करता, तो सामंत मुझे कठोर दण्ड दे सकता था। मैं कभी
भी अपनी जमीन को छोड़कर नहीं भागता और हमेशा यही इच्छा रखता कि मेरा स्वामी सामंत
मेरे कार्य से खुश रहे क्योंकि इस तरह वह मुझे स्वतन्त्र किसान बना सकता था जिससे
मेरा जीवन भी अच्छा हो जाता तथा कुछ कार्य अपनी इच्छानुसार करने की स्वतंत्रता मिल
जाती।
प्रश्न
9. मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक एवं आर्थिक
सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारकों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोप में सामाजिक एवं आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारक-मध्यकालीन
यूरोप में सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक
निम्नलिखित थे
1.
पर्यावरण में परिवर्तन
2.
भूमि का उपयोग
3.
कृषि प्रौद्योगिकी में बदलाव।
1. पर्यावरण
में परिवर्तन- पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक यूरोप का अधिकांश
भाग विस्तृत वनों से घिरा हुआ था। अतः कृषि के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी। इसके
अलावा, अपनी
परिस्थितियों से असन्तुष्ट कुछ किसान भी अत्याचार से बचने के लिए वहाँ से भागकर
वनों में शरण ले लेते थे। इस समय यूरोप में तीव्र ठण्डी ऋतु का दौर चल रहा था।
इससे सर्दियाँ प्रचण्ड और लम्बी अवधि की हो गई थीं। परिणामस्वरूप फसलों की उपज का
काल छोटा हो गया था, इसी कारण से कृषि की पैदावार कम हो गई।
ग्यारहवीं सदी से यूरोप के पर्यावरण में एक बार पुनः परिवर्तन आने लगा और गर्माहट
का दौर शुरू हो गया, औसत तापमान बढ़ गया।
इस
प्रकार ग्रीष्म ऋतु आने लगी जिसका कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा। कृषकों को कृषि के
लिए लम्बी अवधि मिलने लगी। मिट्टी पर पाले का असर कम होने के कारण आसानी से खेती की
जा सकती थी। इसके अलावा वनों को काटकर और जलाकर कृषि भूमि के रूप में प्रयोग हो
सका क्योंकि वनों में आग लगाना गर्मियों में अधिक आसान होता है। इस प्रकार कृषि
भूमि का विस्तार हुआ फलतः उत्पादन भी बढ़ने लगा।
2. भूमि
का उपयोग- प्रारम्भ में यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत ही प्राचीन
थी। कृषक का एकमात्र कृषि उपकरण बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था। यह
भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था। इसलिए
कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था। इसके अतिरिक्त फ़सल चक्र का भी एक प्रभावहीन
तरीके से उपयोग हो रहा था। इस व्यवस्था के कारण मिट्टी की उर्वरता का धीरे-धीरे
ह्रास होने लगा था और इसके परिणामस्वरूप अकाल पड़ने लगे थे। चारागाहों की कमी के
कारण पशुओं की संख्या में भी कमी आ गई। दूसरी ओर जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी
फलस्वरूप उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए। इस कारण गरीब लोगों का जीवन अत्यन्त मुश्किल हो
गया। वहीं दूसरी ओर लॉर्ड अपनी आय को अधिक-से-अधिक बढ़ाना चाहते थे।
यद्यपि
भूमि के उत्पादन को बढ़ाना सम्भव नहीं था तीन वर्ग (215) इसलिए कृषकों को 'मेनर
की जागीर' की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध्य
होना पड़ता था और इस कार्य को करने के लिए उन्हें नियमानुसार निर्धारित समय से
अधिक समय देना पड़ता था। कृषक इन अत्याचारों को चुपचाप सहते थे और खुलकर उनका
विरोध नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने निष्क्रिय विरोध का सहारा लिया। वे अपने
खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे और उस मेहनत से हुए उत्पादन का बड़ा
भाग अपने लिए रखने लगे, साथ ही वे बेगार करने से बचते थे। उनका चारागाह
और वन भूमि के कारण लॉर्डों से वाद-विवाद होने लगा। लॉर्ड इस भूमि को अपनी
व्यक्तिगत सम्पत्ति समझते थे, जबकि कृषक इसको सम्पूर्ण समुदाय द्वारा उपयोग
की जाने वाली साझा सम्पदा मानते थे।
कृषि
प्रौद्योगिकी में बदलाव- ग्यारहवीं सदी में कृषि कार्य करने की विधियों
में अनेक बदलाव आए, जो निम्नलिखित थे-
·
लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे की भारी नोंक
वाले हल और साँचेदार पटरे का प्रयोग होने लगा।
·
पशुओं में गले के स्थान पर जुआ अब कन्धे पर
बाँधा जाने लगा।
·
घोड़ों के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाई जाने
लगी, जिससे
उनके खुर सुरक्षित हो गये।
·
कृषि कार्यों के लिए वायु और जलशक्ति का उपयोग
बहुतायत में होने लगा।
·
भूमि के उपयोग के तरीकों में भी बदलाव आया।
सबसे क्रान्तिकारी परिवर्तन दो खेतों वाली व्यवस्था से तीन खेतों वाली व्यवस्था
में परिवर्तन था।
प्रश्न
10. 11वीं शताब्दी में कृषि में आए विभिन्न
प्रौद्योगिकी परिवर्तनों एवं उनके परिणामों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि प्रौद्योगिकी में परिवर्तन-मध्यकालीन यूरोप
में ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि प्रौद्योगिकी में निम्नलिखित परिवर्तन हुए
(i) लोहे की भारी नोंक वाले हल एवं साँचेदार पटरे का उपयोग- मध्यकालीन
यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी में कृषकों द्वारा लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे की
भारी नोंक वाले हल और साँचेदार पटरे का प्रयोग किया जाने लगा। यह हल अधिक गहराई तक
खोद सकते थे और इससे भूमि में व्याप्त पौष्टिक तत्वों का अच्छा उपयोग होने लगा।
(ii)
घोड़े
के खुरों पर लोहे की नाल लगाना- घोड़ों के खुरों में लोहे की नाल लगाई जाने
लगी, जिससे
उनके खुर सुरक्षित रह सकें।
(iii)
पशुओं
को हलों में जोतने के तरीकों में सुधार- पशुओं को हल में जोतने के
तरीकों में भी सुधार हुआ। गले के स्थान पर जुआ अब कन्धों पर बाँधा जाने लगा। इससे
पशुओं को अधिक शक्ति मिलने लगी।
(iv)
कारखानों
की स्थापना- अनाज को पीसने और अंगूरों से शराब बनाने के
लिए जल और वायु शक्ति से चलने वाले कारखानों की स्थापना की गई।
(v)
कृषि
हेतु जल-शक्ति एवं वायु-शक्ति- कृषि हेतु जल-शक्ति एवं वायु-शक्ति का उपयोग
बहुतायत से होने लगा।
(vi)
भूमि
के उपयोग के तरीकों में परिवर्तन- भूमि के उपयोग के तरीके में भी परिवर्तन आया।
सबसे क्रान्तिकारी परिवर्तन था, दो खेतों वाली व्यवस्था से तीन खेतों वाली
व्यवस्था। इससे कृषक तीन वर्षों में दो वर्ष अपने खेतों का उपयोग कर सकते थे। अब
वे एक खेत में शरद ऋतु में गेहूँ या राई बो सकते थे। दूसरे खेत में बसन्त ऋतु में
मटर, सेम
और मसूर अथवा जौ और बाजरा बो सकते थे। तीसरा खेत परती यानि खाली रखा जाता था।
प्रत्येक वर्ष वे तीनों खेतों का प्रयोग बदल-बदलकर कर सकते थे। इसके परिणामस्वरूप
कृषि उत्पादन बढ़ा।
परिणाम-
कृषि
प्रौद्योगिकी में परिवर्तनों के निम्नलिखित परिणाम हुए
1.
भूमि के प्रति इकाई उत्पादन क्षमता में तेजी से
वृद्धि हुई, फलस्वरूप खाद्यान्न की माँग दुगुनी हो गई।
2.
आहार में मटर और सेम का अधिक उपयोग पर्याप्त
प्रोटीन का स्रोत बन गया।
3.
पशुओं को भी पौष्टिक चारा मिलने लगा।
4.
किसान अब कम भूमि पर अधिक अन्न का उत्पादन कर
सकते थे।
5.
13वीं सदी तक एक कृषक के खेत का आकार 100
एकड़
से घटकर 20 एकड़ रह गया। छोटी जोतों पर अधिक कुशलता से
कृषि की जा सकती थी और उसमें श्रम भी कम लगता था।
6.
गाँवों में लोहार की भट्टियाँ और दुकानें
स्थापित हो गईं क्योंकि लोहे की नोंक वाले हल और घोड़ों की लोहे की नालों की माँग
बहुत बढ़ गई थी।
प्रश्न
11. मध्यकाल में यूरोप में नगरों के विकास के लिए
कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
मध्यकाल
में यूरोप में नगरों का विकास-मध्यकाल में यूरोप में नगरों के विकास के लिए
निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे
(i) कृषि क्षेत्र का विस्तार- रोमन साम्राज्य के पतन के
पश्चात् उसके नगर बर्बाद हो गए। परन्तु ग्यारहवीं शताब्दी में जब कृषि का विस्तार
हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार सहन करने में सक्षम हुई तो नगर अपने विकास के पथ
पर पुनः अग्रसर हो गये।
(ii)
कृषि
उत्पादन में वृद्धि- कृषि क्षेत्र का विस्तार होने से कृषि उत्पादन
में भी वृद्धि हुई। जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न उत्पादित
होता था उन्हें एक ऐसे स्थान की आवश्यकता अनुभव हुई, जहाँ वे अपना बिक्री केन्द्र
स्थापित कर सकें तथा जहाँ वे फसलें बेचकर आवश्यक उपकरण, वस्त्र व शस्त्र आदि खरीद
सकें।
इस
आवश्यकता ने मियादी हाट व मेलों को जन्म दिया और छोटे विपणन केन्द्रों का विकास
हुआ, जिनमें
धीरे-धीरे नगरों के लक्षण विकसित होने लगे। नगर चौक, चर्च, सड़क, व्यापारियों
के घर व दुकानों का निर्माण होने लगा। नगर प्रशासन के कार्यालय व कर्मचारी आदि का
प्रबन्ध होने लगा। बड़े दुर्गों, बिशपों की जागीरों, बड़े चर्चों के चारों ओर
नगरों का विकास होने लगा।
(iii)
नगरों
का स्वतंत्र जीवन- एक प्रसिद्ध कहावत है कि "नगरों की हवा
स्वतंत्र बनाती है।" अपने लॉर्डों से स्वतंत्र होने के इच्छुक अनेक कृषि दास
भागकर नगरों में छिपने लगे। उस काल की परम्परा के अनुसार कृषक दास एक वर्ष और एक
दिन तक अपने लॉर्ड से यदि छिपा रहता था तो वह स्वतन्त्र माना जाता था। ऐसे लोग
नगरों में रहकर अकुशल श्रमिक के रूप में कार्य करने लगे। व्यापारी, दुकानदार, साहूकार, वकील
व चिकित्सक आदि भी नगरों में बसने लगे। उस समय एक नगर की जनसंख्या लगभग 30,000
तक
होती थी। इस प्रकार नगरों के स्वतंत्र जीवन ने भी नगरों के विकास में सहयोग प्रदान
किया।
(iv)
नगरों
में कृषक परिवारों के लोगों को कार्य मिलना- नगरों में कृषक परिवार के
लोगों को वैतनिक कार्य मिलने से भी नगरों के विकास को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
(v)
व्यापार
एवं वाणिज्य का विकास- ग्यारहवीं शताब्दी के आते-आते विदेशी व्यापार
बढ़ने लगा। नये-नये व्यापारिक मार्गों की खोज हो रही थी। पहले दस्तकार व्यापार
हेतु एक मेनर से दूसरे मेनर जाते थे परन्तु अब उन्हें एक स्थान से व्यापार करने से
सब आसान हो गया। वे अब एक सुविधाजनक स्थल पर बसकर वस्तुओं का उत्पादन कर सकते थे
तथा अपने जीवनयापन के लिए व्यापार भी कर सकते थे। इस प्रकार व्यापार-वाणिज्य के
विकास ने भी नगरों के विकास को प्रोत्साहन प्रदान किया।
प्रश्न
12. चौदहवीं शताब्दी के संकट से आप क्या समझते हो? इसके
लिए उत्तरदायी परिस्थितियों एवं परिणामों का उल्लेख भी कीजिए।
उत्तर:
चौदहवीं
शताब्दी के संकट से आशय-चौदहवीं शताब्दी में यूरोपवासियों को भीषण अकालों, मुद्रा
की कमी व प्लेग की महामारी जैसे संकटों का सामना करना पड़ा, जिससे
इस क्षेत्र का आर्थिक विकास मंद पड़ गया। इसे ही 'चौदहवीं शताब्दी का संकट' कहा
गया। चौदहवीं शताब्दी के संकट के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ-यूरोप में चौदहवीं
शताब्दी के संकट के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं
(i)
पर्यावरण
सम्बन्धी परिवर्तन- तेरहवीं शताब्दी के अंत तक उत्तरी यूरोप में
पिछली तीन शताब्दियों की तीव्र ग्रीष्म ऋतु का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया फलस्वरूप
कृषि कार्य वाला मौसम घटने लगा था तथा कृषि भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया।
तूफानों एवं बाढ़ों ने अनेक कृषि फार्मों को नष्ट कर दिया। उक्त समस्त कारणों से
सरकार को करों के रूप में प्राप्त आय कम हो गयी।
(ii)
भूमि
की उर्वरा शक्ति का क्षीण होना- गहन जुताई से तीन क्षेत्रीय फ़सल चक्र के
बावजूद कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर हो गयी। उचित भू-संरक्षण के अभाव के कारण
भूमि बंजर होने लगी, फलस्वरूप जंगलों व चारागाहों को कृषि भूमि में
बदलना पड़ा। इससे चारागाहों की कमी हो गई। लाखों की संख्या में पशु भूख से मर गए।
(iii)
जनसंख्या
में तीव्र गति से वृद्धि होना- मध्यकालीन यूरोप में जनसंख्या में तीव्र गति
से वृद्धि दर्ज की गयी, जिससे उपलब्ध संसाधन कम पड़ने लगे जिसका
तात्कालिक परिणाम अकाल के रूप में हमारे सामने आया। 1315 ई. से 1317
ई.
के मध्य यूरोप में कई भयंकर अकाल पड़े। साथ ही 1320 ई. के दशक में असंख्य पशुओं
की मौत हो गयी।
(iv)
ब्यूबोनिक
(ब्लैक डैथ) प्लेग का प्रकोप- बारहवीं व तेरहवीं शताब्दी में व्यापार एवं
वाणिज्य के विस्तार के कारण दूर देशों से व्यापार करने वाले जहाज यूरोप के तटों पर
आने लगे। इन जलपोतों के आने के कारण ही अनेक चूहे भी आ गए, जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग
जैसी महामारी का संक्रमण भी लाए। 1347 से 1350 ई. के मध्य की अवधि में यूरोपीय समाज की 40 प्रतिशत
जनसंख्या नष्ट हो गयी।
परिणाम-चौदहवीं
शताब्दी के संकट के निम्नलिखित परिणाम हुए-
1.
महामारी की विनाशलीला के साथ-साथ आर्थिक मंदी
के कारण व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ।
2.
जनसंख्या में कमी के कारण श्रमिकों की संख्या
में अत्यधिक कमी आ गई।
3.
कृषि और उत्पादन के मध्य अत्यधिक असन्तुलन
उत्पन्न हो गया।
4.
क्रेताओं की कमी के कारण कृषि उत्पादों के
मूल्य में कमी आ गयी।
5.
प्लेग के कारण कृषि श्रमिकों की माँग अत्यधिक
बढ़ जाने से मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गयी।
प्रश्न
13. मध्यकालीन यूरोप में नए शक्तिशाली राज्यों के
उदय एवं अभिजात वर्ग द्वारा किए गए विरोध का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
यूरोप
में शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोप में नए शक्तिशाली राज्यों का उदय (राजतंत्रों की स्थापना)-मध्यकालीन यूरोप
में सामाजिक स्तर पर परिवर्तन के साथ-साथ राजनीतिक स्तर पर भी परिवर्तन हुए।
पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी के दौरान यूरोप में विभिन्न राज्यों के शासकों ने
वित्तीय शक्ति के साथ-साथ अपनी सैनिक शक्ति में भी वृद्धि कर ली, फलस्वरूप
उन्होंने कई नए-नए राज्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। उनके द्वारा स्थापित
व निर्मित राज्य उस समय होने वाले आर्थिक परिवर्तनों के समान ही अपना महत्व रखते
थे।
इसी
कारण यूरोप के इतिहासकारों ने ऐसे शासकों को 'नए शासक' की
संज्ञा दी। इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम, ऑस्ट्रिया में मैक्समिलन, फ्रांस
में लुई ग्यारहवाँ तथा स्पेन में ईसाबेला व फर्डीनेंड ऐसे ही निरंकुश शासक थे। इन
शासकों ने राष्ट्रीय स्थायी सेनाओं का गठन किया, स्थायी नौकरशाही की व्यवस्था
की तथा राष्ट्रीय कर प्रणाली की स्थापना की। स्पेन और पुर्तगाल जैसे देशों ने
यूरोप के समुद्रपारीय विस्तार की योजनाओं का निर्माण कर उनके क्रियान्वयन का
प्रयास किया परिणामस्वरूप मध्यकालीन यूरोप में अनेक शक्तिशाली राज्यों की स्थापना
हुई। यूरोप
में शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारक-यूरोप में शक्तिशाली
राजतंत्रों की स्थापना के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे
(i)
विभिन्न
प्रकार के सामाजिक परिवर्तनों का होना- मध्यकालीन यूरोप में बारहवीं व तेरहवीं
शताब्दी के दौरान विभिन्न प्रकार के सामाजिक परिवर्तन हुए, जिन्होंने यहाँ शक्तिशाली
राजतंत्रों की स्थापना में सहयोग प्रदान किया। जागीरदारी (वेसलेज) व सामन्तशाही
(लॉर्डशिप) प्रथा के समापन एवं आर्थिक विकास की मंद गति ने इन शासकों को
प्रभावशाली बनाया। इन सब बातों ने शासकों को जनसाधारण पर अपना नियंत्रण बढ़ाने का
अवसर प्रदान किया। नए शासकों ने सामंतों से अपनी सेना के लिए कर लेना बंद कर दिया।
इसके स्थान पर बंदूकों व बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना तैयार की जो
पूर्ण रूप से उनके नियंत्रण में थी। इन नए शासकों की शक्तिशाली सेनाओं के कारण
अभिजात वर्ग भी इनका विरोध करने में असफल रहा।
(ii)
करों
में वृद्धि से शासकों के राजस्व में वृद्धि- करों में वृद्धि करने से
शासकों को पर्याप्त राजस्व की प्राप्ति होने लगी। जिससे वे वित्तीय दृष्टि से
सुदृढ़ होने लगे और अपनी सेना के लिए पर्याप्त सैन्य सामग्री खरीदकर उनका आकार भी
बढ़ाने लगे। इन बढ़ी हुई सेनाओं की सहायता से उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं की
रक्षा की एवं उनका विस्तार भी किया। सेना के सहयोग से उनके द्वारा राज्य में होने
वाले आन्तरिक विद्रोहों का दमन करना भी आसान हो गया। अभिजात वर्ग का विरोध यूरोप
में स्थापित नए शासकों को उनके द्वारा राज्य की शासन प्रणाली में किए गए
परिवर्तनों के कारण उन्हें अभिजात वर्ग का विरोध भी झेलना पड़ा। अभिजात वर्ग ने
सत्ता के केन्द्रीकरण का पुरजोर विरोध किया।
कर
प्रणाली से भी अभिजात वर्ग में असंतोष उत्पन्न हो गया फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए
जिनका दमन कर दिया गया। उदाहरण के रूप में इंग्लैण्ड में 1497 ई., 1536 ई.
व 1547
ई.,
1549 ई.
व 1553
ई.
में राजसत्ता के विरुद्ध हुए विद्रोहों का दमन कर दिया गया। फ्रांस में भी लुई XI को
ड्यूक लोगों व राजकुमारों से एक लम्बे समय तक संघर्ष करना पड़ा। छोटी श्रेणी के
अभिजातों एवं स्थानीय सभाओं के सदस्यों ने भी अपने अधिकारों के बलपूर्वक छीने जाने
का विरोध किया। सोलहवीं शताब्दी में फ्रांस में हुए धर्मयुद्ध भी एक सीमा तक शाही
सुविधाओं व क्षेत्रीय स्वतन्त्रता के मध्य संघर्ष थे।
प्रश्न
14. मध्यकालीन यूरोपीय नये शासकों के साथ अभिजात
वर्ग के सम्बन्धों को बताइए। यूरोप में हुए राजनीतिक परिवर्तनों का इंग्लैण्ड व
फ्रांस पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
मध्यकालीन
यूरोपीय नये शासकों के साथ अभिजात वर्ग के सम्बन्ध-मध्यकालीन यूरोपीय नये शासकों
ने अभिजात वर्ग के कई अधिकार छीन लिए फलस्वरूप उनमें विद्रोह की भावना उत्पन्न हो
गयी, जिनका
इन शासकों द्वारा दमन कर दिया गया। मध्यकालीन यूरोपीय शासकों के साथ अभिजात वर्ग
के सम्बन्धों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है
(i)
अभिजात
वर्ग द्वारा कूटनीति का प्रयोग- अभिजात वर्ग द्वारा अपने अस्तित्व को बनाये
रखने के लिए कूटनीति से काम लिया गया। उन्होंने नई शासन व्यवस्था का स्पष्टतः
विरोधी बनने की अपेक्षा अपने को राजभक्त होने का दिखावा किया। इसी कारण शाही
निरंकुशता को सामंतवाद का सुधरा हुआ रूप माना जाता है।
(ii)
लॉर्डों
का अभी भी राजनीतिक इतिहास पर प्रभावशाली होना- वास्तविक रूप से देखा जाए
तो सामंती प्रथा के शासक (लॉर्ड) अभी भी प्रभावशाली बने हुए थे। उन्हें प्रशासनिक
सेवाओं में स्थायी स्थान दिये गये, परन्तु नवीन शासन व्यवस्था कई तरीकों में
सामंती प्रथा से अलग थी। अब शासक उस. पिरामिड के शिखर पर नहीं था, जहाँ
राजभक्ति, आपसी विश्वास एवं निर्भरता पर आधारित थी। अब वह
एक व्यापक दरबारी तंत्र का एक केन्द्र बिन्दु होने के साथ-साथ अपने अनुयायियों को
भी आश्रय देने वाला था।
(iii)
राजतंत्रों
द्वारा सत्ता में भाग लेने वाले व्यक्तियों से सहयोग प्राप्त करना- सभी
प्रकार के राजतंत्र चाहे वे कितने भी कमजोर हों अथवा शक्तिशाली, सत्ता
में भाग लेने वाले समस्त व्यक्तियों का सहयोग चाहते थे। धन इस प्रकार के सहयोग को
सुनिश्चित करने का साधन बन गया। समर्थन धन के माध्यम से दिया अथवा लिया जा सकता
था। अतः धन गैर-अभिजात वर्गों जैसे व्यापारियों एवं साहूकारों के लिए राजदरबार में
प्रवेश करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया। वे शासकों को धन उधार देते थे, जो
इसका उपयोग सैनिकों को वेतन देने में करते थे। इस प्रकार शासकों ने अपनी शासन
व्यवस्था में गैर-सामंती तत्वों को भी स्थान प्रदान कर दिया। राजनीतिक परिवर्तनों
का इंग्लैण्ड पर प्रभाव-इंग्लैण्ड पर नॉरमनों की विजय से पहले यहाँ एंग्लो-सैक्सन
लोगों की एक महान परिषद् होती थी। इंग्लैण्ड के शासक को अपनी प्रजा पर कर लगाने से
पूर्व इस परिषद् की सलाह लेनी पड़ती थी।
यह
परिषद् कालान्तर में संसद (पार्लियामेंट) के रूप में विकसित हुई, जिसके
दो सदन थे-
(i)
हाउस
ऑफ लार्ड्स तथा
(ii)
हाउस
ऑफ कॉमन्स।
हाउस
ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य लॉर्ड एवं पादरी होते थे तथा हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य नगरों व
ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते थे। इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स प्रथम (1629-40)
ने
संसद का अधिवेशन बिना बुलाए 11 वर्षों तक शासन किया। एक बार उसे धन की
आवश्यकता पड़ी तो उसे मजबूरी में संसद का अधिवेशन बुलाना पड़ा। अधिवेशन के दौरान
संसद के एक भाग ने उसका विरोध किया। कुछ समय पश्चात् सम्राट चार्ल्स को मृत्युदण्ड
दे दिया गया तथा गणतंत्र की स्थापना की गई लेकिन यह व्यवस्था अधिक समय तक न चल
सकी। इंग्लैण्ड में पुनः राजतंत्र की स्थापना हो गयी। परन्तु इस शर्त पर कि अब
पार्लियामेंट नियमित रूप से बुलाई जायेगी।
राजनीतिक
परिवर्तनों का फ्रांस पर प्रभाव-
1614 ई.
में फ्रांस में बालक शासक लुई XIII के शासनकाल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा का, जिसे
एस्टेट्स जनरल के नाम से जाना जाता था, का एक अधिवेशन हुआ। इसके तीन सदन थे जो
फ्रांसीसी समाज के तीन वर्गों, यथा-पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग एवं अन्य वर्ग
का प्रतिनिधित्व करते थे। एस्टेट्स जनरल के इस अधिवेशन के पश्चात् दो सदियों,
1789 ई.
तक इस अधिवेशन को फिर से नहीं बुलाया गया क्योंकि, फ्रांस के राजा अपनी
शक्तियों को तीनों वर्गों-पादरी, अभिजात व अन्य में बाँटना नहीं चाहते थे।

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