Class-11 Bussiness Studies
Chapter- 2 (व्यावसायिक संगठन के स्वरूप)
निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. छोटे व्यवसाय के लिए ......................... अत्यन्त उयुक्त
प्रारूप है। (एकाकी व्यापार/साझेदारी)
2. .................... में नाबालिग भी व्यवसाय के सदस्य हो सकते
हैं। (सहकारी संगठन/संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय)
3. वर्तमान में किसी साझेदारी संगठन में अधिकतम
..........................सदस्य हो सकते हैं। (20/50)
4. किसी भवन के निर्माण या कोई कार्य करने के लिए ..........
.....स्थापित की जाती है। (सामान्य साझेदारी/विशिष्ट साझेदारी)
5. ...................... एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धान्त से शासित
होती है। (संयुक्त पूंजी कम्पनी/सहकारी समिति)
6. कम्पनी संगठन .......................... द्वारा शासित होते हैं।
(कम्पनी अधिनियम, 1956/कम्पनी अधिनियम, 2013)
उत्तर:
1. एकाकी व्यापार
2. संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय
3. 50
4. विशिष्ट साझेदारी
5. सहकारी समिति
6. कम्पनी अधिनियम, 2013
निम्न में से सत्य/असत्य कथन बतलाइये-
1. एकल
व्यवसायी को व्यवसाय से सम्बन्धित निर्णय लेने की बहुत अधिक स्वतन्त्रता नहीं होती
है।
2. संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय विशेष प्रकार का संगठन प्रारूप है
जो केवल भारत में ही पाया जाता है।
3. संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति में विवाहित पुत्री को समान
अधिकार है।
4. नाममात्र का साझेदार भी साझेदारी फर्म में पूँजी लगाता है।
5. भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार
किसी साझेदारी फर्म का पंजीयन करवाना अनिवार्य है।
6. सहकारी समिति लोकतंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है।
7. सार्वजनिक कम्पनी में सदस्यों की अधिकतम सीमा पर कोई प्रतिबन्ध
नहीं है।
उत्तर:
1. असत्य
2. सत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. असत्य
6. सत्य
7. सत्य
निम्न को सुमेलित कीजिए-
|
(क) |
(ख) |
|
1. सबसे पुराना व्यावसायिक संगठन का स्वरूप |
साझेदारी
संगठन |
|
2. व्यक्तिगत सेवाएँ प्रदान करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्वरूप |
संयुक्त
हिन्दू परिवार व्यवसाया |
|
3. सदस्य स्वामी भी होता है और एजेण्ट भी |
निजी
कम्पनी में |
|
4. अक्षम प्रबन्धन की सीमा होती है. |
एकल
व्यापार में |
|
5. अधिकतम सदस्य संख्या 200 होती है |
सार्वजनिक
कम्पनी में |
|
6. सदस्यों की अनुक्रमिका अनिवार्य है |
सहकारी
संगठन में |
|
7. स्वामी एवं प्रबन्ध पृथक-पृथक होता है |
संयुक्त
पूंजी कम्पनी में |
उत्तर:
|
(क) |
(ख) |
|
1. सबसे पुराना व्यावसायिक संगठन का स्वरूप |
संयुक्त
हिन्दू परिवार व्यवसाया |
|
2. व्यक्तिगत सेवाएँ प्रदान करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्वरूप |
एकल
व्यापार में |
|
3. सदस्य स्वामी भी होता है और एजेण्ट भी |
साझेदारी
संगठन |
|
4. अक्षम प्रबन्धन की सीमा होती है. |
सहकारी
संगठन में |
|
5. अधिकतम सदस्य संख्या 200 होती है |
निजी
कम्पनी में |
|
6. सदस्यों की अनुक्रमिका अनिवार्य है |
सार्वजनिक
कम्पनी में |
|
7. स्वामी एवं प्रबन्ध पृथक-पृथक होता है |
संयुक्त
पूंजी कम्पनी में |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एकल स्वामित्व वाला व्यवसाय किसे कहते हैं?
उत्तर:
एकल स्वामित्व वाले प्रारूप में स्वामित्व, प्रबन्ध
एवं नियन्त्रण एक ही व्यक्ति के हाथ में होता है तथा वही सम्पूर्ण लाभ पाने का
अधिकारी तथा हानि के लिए उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 2.
एकल स्वामित्व के दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
·
व्यवसाय की स्थापना एवं उसका समापन दोनों ही सरल।
·
व्यवसाय में निर्णय लेने का पूरा अधिकार एकल स्वामी
के पास।
प्रश्न 3.
एकल स्वामित्व स्वरूप का प्रबन्ध एवं संचालन मितव्ययी कैसे है?
उत्तर:
एकल स्वामित्व स्वरूप में स्वामी स्वयं प्रबन्धकीय कार्यों का
निष्पादन करता है, स्वयं ही सारी नीतियाँ निर्धारित कर
उन्हें क्रियान्वित करता है।
प्रश्न 4.
एकल स्वामित्व स्वरूप के कोई दो प्रमुख गुण बतलाइए।
उत्तर:
·
शीघ्र निर्णय लेना सम्भव,
·
सूचनाओं की गोपनीयता।
प्रश्न 5.
एकल स्वामित्व स्वरूप का कार्यक्षेत्र सीमित होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
·
स्वामित्व एवं प्रबन्ध अकेले एकाकी व्यापारी को ही
करने होते हैं।
·
पूँजी की व्यवस्था भी अकेले एकाकी व्यापारी को ही
करनी होती है।
प्रश्न 6.
एकल स्वामी का दायित्व असीमित होता है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
यदि व्यवसाय की सम्पत्तियाँ सभी ऋणों के भुगतान के लिए पर्याप्त
नहीं हैं तो स्वामी इन ऋणों के भुगतान के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा।
प्रश्न 7.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इसका तात्पर्य उस व्यवसाय से है जिसका स्वामित्व एवं संचालन संयुक्त
हिन्दू परिवार के सदस्य करते हैं।
प्रश्न 8.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय का प्रशासन किस कानून के द्वारा होता
है?
अथवा
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय किस अधिनियम से शासित होता है?
उत्तर:
संयक्त हिन्द परिवार व्यवसाय का प्रशासन हिन्द उत्तराधिकार अधिनियम,
1956 के द्वारा होता है।
प्रश्न 9.
संयुक्त परिवार में जन्म लेने वाला व्यक्ति कब तक व्यवसाय में सदस्य
बना रह सकता है?
उत्तर:
संयुक्त परिवार विशेष में जन्म लेने वाला व्यक्ति जन्म लेते ही
परिवार के व्यवसाय का सदस्य बन जाता है और वह तीन पीढ़ियों तक व्यवसाय का सदस्य रह
सकता है।
प्रश्न 10.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के कोई दो लक्षण बतलाइए।
उत्तर:
·
कर्ता को छोड़कर अन्य सभी सदस्यों का दायित्व उनके
अंश तक ही सीमित।
·
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय पर कर्ता का ही
नियन्त्रण।
प्रश्न 11.
सह-समांशी किसे कहते हैं।
उत्तर:
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय में सभी सदस्यों को पूर्वजों की
सम्पत्ति पर बराबर का स्वामित्व होता है, उन्हें ही
सह-समांशी कहा जाता है।
प्रश्न 12.
क्या संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की सम्पत्ति में विवाहित पुत्री
को समान अधिकार प्राप्त हैं।
उत्तर:
हिन्दू (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार
संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति में विवाहित पुत्री को समान अधिकार है।
प्रश्न 13.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के कोई दो लाभ बतलाइए।
उत्तर:
·
व्यवसाय पर प्रभावशाली नियन्त्रण रहना।
·
व्यवसाय का अस्तित्व स्थायी बना रहता है।
प्रश्न 14.
संयक्त हिन्द परिवार व्यवसाय की कोई दो सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
·
सीमित पूँजी की समस्या,
·
कर्ता का दायित्व असीमित रहना।
प्रश्न 15.
साझेदारी की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
साझेदारी उन व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध को कहते हैं जो ऐसे
कारोबार (व्यापार) के लाभ को आपस में बाँटने के लिए सहमत हुए हों, जिसे सबके द्वारा अथवा उन सबकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा चलाया जाता हो।
[धारा 4, साझेदारी अधिनियम, 1932]
प्रश्न 16.
साझेदारी के दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
·
दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा साझेदारी का
निर्माण।
·
साझेदारों का दायित्व असीमित होना।
प्रश्न 17.
व्यावसायिक संगठन का साझेदारी स्वरूप किस अधिनियम द्वारा शासित होता
है?
उत्तर:
व्यावसायिक संगठन का साझेदारी स्वरूप भारतीय साझेदारी अधिनियम,
1932 द्वारा शासित होता है।
प्रश्न 18.
एल.एच. हैने की साझेदारी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
साझेदारी उन लोगों के बीच का संबंध है जो अनुबन्ध के लिए सर्वथा
योग्य हैं तथा जिन्होंने निजी लाभ के लिए आपस में मिलकर एक वैधानिक व्यापार करने
का समझौता किया है। (एल.एच. हैने)
प्रश्न 19.
प्रतिनिधि साझेदार (होल्डिंग आउट) किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह वह व्यक्ति होता है जो जान-बूझकर फर्म में अपने नाम को प्रयोग
करने देता है अथवा अपने आपको इसका प्रतिनिधि मानने देता है।
प्रश्न 20.
साझेदारी संगठन के दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
·
साझेदारी संगठन स्वरूप की स्थापना एवं समापन आसान,
·
सन्तुलित निर्णय लिया जाना सम्भव।
प्रश्न 21.
साझेदारी संगठन की दो सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
·
साझेदारी फर्म के सदस्यों का दायित्व असीमित होता है।
·
साझेदारी संगठन में स्थायित्व एवं निरन्तरता नहीं
होती।
प्रश्न 22.
सुप्त या निष्क्रिय साझेदार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो साझेदार साझेदारी फर्म के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में भाग नहीं
लेते हैं, फर्म में पूँजी लगाते हैं, उन्हें
सुप्त या निष्क्रिय साझेदार कहते हैं।
प्रश्न 23.
गुप्त साझेदार किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह साझेदार जिसके फर्म से सम्बन्ध को साधारण जनता नहीं जानती तथा वह
पूँजी लगाता है, प्रबन्ध में भाग लेता है, लाभ हानि को बाँटता है तथा लेनदारों के प्रति उसका दायित्व असीमित होता है,
गुप्त साझेदार कहलाता है।
प्रश्न 24.
विशिष्ट साझेदारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
साझेदारी की रचना यदि किसी विशिष्ट परियोजनाएँ जैसे किसी भवन के
निर्माण या कोई कार्य या किसी एक निश्चित अवधि के लिए की जाती है तो उसे विशिष्ट
साझेदारी कहते हैं।
प्रश्न 25.
सामान्य साझेदारी क्या होती है?
उत्तर:
ऐच्छिक साझेदारी का निर्माण साझेदारों के इच्छा से होता है। यह उस
समय तक चलती रहती है जब तक कि साझेदार द्वारा अलग होने का नोटिस नहीं दिया जाता
है।
प्रश्न 26.
सीमित साझेदारी क्या होती है?
उत्तर:
सीमित साझेदारी वह साझेदारी होती है जिसमें कम-से-कम एक साझेदार का
दायित्व असीमित तथा शेष साझेदारों का दायित्व सीमित होता है।
प्रश्न 27.
साझेदारी फर्म के पंजीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
साझेदारी फर्म के पंजीकरण का अर्थ है फर्म के पंजीयन अधिकारी के पास
रहने वाले फर्मों के रजिस्टर में फर्म का नाम तथा सम्बन्धित विवरण की प्रविष्टि
करना।
प्रश्न 28.
क्या नाबालिग फर्म में साझेदार बन सकता है?
उत्तर:
नहीं, नाबालिग को फर्म के सभी साझेदारों की
सर्वसम्मति से केवल फर्म के लाभों में हिस्सा प्रदान किया जा सकता है।
प्रश्न 29.
साझेदारी फर्म का पंजीयन कहाँ कराना होता है?
उत्तर:
साझेदारी फर्म को उस राज्य के रजिस्ट्रार के पास पंजीकरण कराना होता
है जिस राज्य में वह स्थित है।
प्रश्न 30.
'सहकारी' शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
'सहकारी' शब्द का अर्थ है किसी साझे उद्देश्य
के लिए एक-साथ मिलकर कार्य करना।
प्रश्न 31.
सहकारी संगठन की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सहकारी संगठन एक समिति है, जिसका उद्देश्य
सहकारिता के सिद्धान्तों के अनुसार अपने सदस्यों के आर्थिक हितों को प्रोत्साहित
करना है। (भारतीय सहकारिता अधिनियम, 1912)
प्रश्न 32.
एक सहकारी समिति का पंजीकरण किस अधिनियम के अन्तर्गत होता है?
उत्तर:
एक सहकारी समिति का पंजीकरण सहकारी समिति अधिनियम, 1912 के अन्तर्गत होता है।
प्रश्न 33.
सहकारी संगठन के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
·
सदस्यता का स्वैच्छिक होना।
·
सहकारी समिति का सदस्यों से पृथक् अस्तित्व।
प्रश्न 34.
सहकारी समिति के दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
·
प्रत्येक सदस्य को वोट का समान अधिकार प्राप्त होना।
·
सदस्यों का दायित्व सीमित होना।
प्रश्न 35.
सहकारी समिति संगठन की कोई दो सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
·
सीमित संसाधनों का होना।
·
असक्षम या अकुशल प्रबन्ध का होना।
प्रश्न 36.
सहकारी समितियों के प्रकृति के आधार पर दो प्रकार बतलाइए।
उत्तर:
·
उपभोक्ता सहकारी समितियाँ।
·
उत्पादक सहकारी समितियाँ।
प्रश्न 37.
कृषक सहकारी समितियों का गठन क्यों किया जाता है?
उत्तर:
कृषक सहकारी समितियों का गठन किसानों को उचित मूल्य पर आगत उपलब्ध
करवाकर उनके हितों की रक्षा करने के लिये किया जाता है।
प्रश्न 38.
सहकारी ऋण समितियों की स्थापना का लक्ष्य बतलाइए।
उत्तर:
सहकारी ऋण समितियों की स्थापना का लक्ष्य अपने सदस्यों को साहूकारों
के शोषण से संरक्षण प्रदान करना है जो ऋणों पर ऊँची दर से ब्याज लेते हैं।
प्रश्न 39.
व्यावसायिक स्वामित्व का संयुक्त पूँजी कम्पनी प्रारूप किस अधिनियम
द्वारा शासित होता है?
उत्तर:
संयुक्त पूँजी कम्पनी रूपी संगठन कम्पनी अधिनियम, 2013 के द्वारा शासित होते हैं।
प्रश्न 40.
कम्पनी की कम्पनी अधिनियम, 2013 की परिभाषा
दीजिए।
उत्तर:
कम्पनी से आशय उन कम्पनियों से है जिनका समामेलन कम्पनी अधिनियम,
2013 में या इससे पूर्व किसी कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत हुआ है।
[कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2(20)]
प्रश्न 41.
कम्पनी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
संयुक्त पूँजी कम्पनी लाभ के लिए कुछ लोगों का स्वैच्छिक संगठन है
जिसकी पूँजी हस्तान्तरणीय अंशों में विभक्त होती है और पूँजी का स्वामित्व कम्पनी
सदस्यता की शर्त है। (प्रो. हैने)
प्रश्न 42.
संयुक्त पूँजी कम्पनी के दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
·
विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति।
·
पृथक् वैधानिक अस्तित्व का होना।
प्रश्न 43.
संयुक्त पूँजी कम्पनी संगठन के दो गुण (लाभ) बतलाइए।
उत्तर:
·
सदस्यों का सीमित दायित्व होना।
·
कम्पनी का अस्तित्व स्थायी होना।
प्रश्न 44.
कम्पनी की दो प्रमुख सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
·
कम्पनी संगठन का निर्माण जटिल।
·
गोपनीयता की कमी।
प्रश्न 45.
संयुक्त पूँजी कम्पनी के प्रमुख प्रकार बतलाइए।
उत्तर:
·
निजी कम्पनी
·
सार्वजनिक कम्पनी।
प्रश्न 46.
कम्पनी के वास्तविक स्वामी किन्हें माना जाता है?
उत्तर:
कम्पनी के वास्तविक स्वामी अंशधारकों को माना जाता है।
प्रश्न 47.
बैंकिंग व्यवसाय में साझेदारों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
उत्तर:
बैंकिंग व्यवसाय में अधिकतम 10 साझेदार हो
सकते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
क्या एकल व्यवसाय की स्थापना करना कठिन एवं खर्चीली है?
उत्तर:
नहीं, एकल व्यवसाय की स्थापना किसी भी समय की
जा सकती है। इसकी स्थापना करते समय किसी वाही को करने की आवश्यकता नहीं होती है।
इसकी स्थापना करना सबसे आसान है क्योंकि इसे स्थापित करने के लिए शायद ही किसी
वैधानिक औपचारिकता को पूरा करने की जरूरत होती है। हाँ, कुछ
मामलों में लाइसेन्स की आवश्यकता हो सकती है। किसी भी व्यक्ति के पास थोड़ी-सी भी
पूँजी हो तथा व्यवसाय करने की थोड़ी-सी भी जानकारी हो तो एकल व्यवसाय को आसानी से
शुरू किया जा सकता है। इसमें व्यवसायी का अपने व्यवसाय पर प्रत्यक्ष प्रबन्ध एवं
नियन्त्रण बना रहता है।
प्रश्न 2.
एकल व्यवसाय स्वरूप की स्थापना करना कब उपयुक्त माना जाता है?
उत्तर:
एकल व्यवसाय स्वरूप की स्थापना में निम्न परिस्थितियाँ अधिक उपयुक्त
मानी जाती हैं-
·
जिन व्यवसायों में व्यक्तिगत सम्पर्क एवं व्यक्तिगत
देखरेख की आवश्यकता हो, जैसे मरम्मत का कार्य।
·
जिन व्यवसायों में पूँजी की कम आवश्यकता हो जैसे पान
की दुकान, नाई की दुकान।
·
जिन व्यवसायों के प्रबन्ध सामान्य योग्यता द्वारा
किये जा सकते हैं, जैसे-खेती, बागवानी आदि।
·
जिन व्यवसायों में व्यक्तिगत निपुणता, दक्षता आदि
की आवश्यकता हो जैसे-अध्यापक, डॉक्टर आदि।
·
जिन व्यवसायों में वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग सीमित
हो जैसे फल-सब्जी की दुकान।
·
जिन व्यवसायों में ग्राहकों की व्यक्तिगत रुचि पर
ध्यान देना आवश्यक हो, जैसे-ब्यूटी पार्लर, दर्जी।
प्रश्न 5.
एकल व्यवसाय की उपयोगिता को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
एकल व्यवसाय की उपयोगिता निम्न प्रकार से स्पष्ट की जा सकती है-
·
एकल व्यवसायी की पहुँच देश के प्रत्येक कोने में है।
यही कारण है कि आधुनिक युग में उसका अस्तित्व ज्यों का त्यों है।
·
यह रोजगार के अधिकतम अवसर उपलब्ध कराने वाला प्रारूप
है जो देश में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में सहयोग करता है।
·
सरकार की समाजवादी समाज की विचारधारा को क्रियान्वित
करने वाला प्रारूप एकल व्यवसाय ही माना जाता है।
·
एकल व्यवसाय ही साहसियों में अत्यधिक व्यावसायिक
गुणों का विकास करता है।
·
आज जितने भी बड़े-बड़े उद्योगपति हैं उन्होंने अपने
व्यावसायिक जीवन की शुरुआत एकाकी प्रारूप द्वारा ही की थी। कोका-कोला प्रारम्भ में
एकल स्वामित्व का ही व्यवसाय था।
·
इस प्रारूप द्वारा ही व्यवसायी उपभोक्ताओं को उनकी
आवश्यकता की वस्तुएँ आसानी से व सुविधा से उनके उपभोग स्थान पर उपलब्ध कराते हैं।
·
एकल व्यवसाय का अपने ग्राहकों से प्रत्यक्ष सम्पर्क
रहने के कारण ये अपने ग्राहकों को सन्तुष्ट रख सकते हैं।
·
एकल व्यवसायी विक्रय के बाद सेवाएँ अधिक अच्छे ढंग से
उपलब्ध करा सकते हैं।
प्रश्न 6.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के कोई तीन/चार लक्षण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के लक्षण-
1. निर्माण-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय के लिए परिवार में कम-से-कम दो सदस्य एवं वह पैतृक सम्पत्ति जो उन्हें
विरासत में मिली हो, का होना आवश्यक है। व्यवसाय की स्थापना के लिए किसी अनुबन्ध की आवश्यकता
नहीं होती। क्योंकि इसमें सदस्यता जन्म के कारण मिलती है।
2. दायित्व-कर्ता को छोड़कर परिवार के
अन्य सदस्यों का दायित्व व्यवसाय की सह-समांशी सम्पत्ति में उनके अंश तक ही सीमित
होता है।
3. कर्ता का
नियन्त्रण-संयुक्त हिन्दू परिवार के व्यवसाय पर कर्ता का नियन्त्रण होता है। वह सभी
निर्णय लेता है तथा वही व्यवसाय के प्रबन्धन के लिए अधिकृत होता है। उसके निर्णयों
से परिवार के अन्य सदस्य भी बाध्य होते हैं।
4. निरन्तरता-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय में कर्ता की मृत्यु होने पर भी व्यवसाय चलता रहता है। क्योंकि कर्ता के
बाद परिवार का सबसे बड़ा सदस्य कर्ता का स्थान ले लेता है।
प्रश्न 7.
'संयुक्त हिन्दू परिवार में लिंग समता-एक वास्तविकता' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हिन्दू (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार
संयुक्त हिन्दू परिवार के सह-समांशी की पुत्री जन्म लेते ही एक सह-समांशी बन जाती
है। परिवार के बँटवारे के समय सह-समांशी सम्पत्तियाँ सभी सह-समांशियों में,
उनके लिंग को ध्यान में रखे बिना, समान रूप से
विभाजित हो जायेंगी। परिवार का सबसे बड़ा सदस्य चाहे वह पुरुष हो या स्त्री कर्ता
बनता है। इसके साथ ही परिवार की सम्पत्ति में विवाहित पुत्री को समान अधिकार
प्राप्त होता है।
प्रश्न 8.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के कोई चार लाभ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के लाभ-
1. प्रभावी
नियन्त्रण-व्यवसाय पर कर्ता का प्रभावी नियन्त्रण रहता है। इससे सदस्यों में
पारस्परिक मतभेद नहीं होता। क्योंकि उनमें से कोई भी कर्ता द्वारा लिये जाने वाले
निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। इससे निर्णय शीघ्र लिये जा सकते हैं।
2. स्थायित्व-व्यवसाय पर कर्ता की मृत्यु
का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि सबसे अधिक आयु का व्यक्ति उसका स्थान ले
लेता है। फलतः व्यवसाय बन्द नहीं होता तथा व्यवसाय को कोई खतरा भी नहीं होता है।
3. सीमित
दायित्व-कर्ता को छोड़कर परिवार के अन्य सभी सदस्यों का दायित्व सीमित होता है।
दायित्व उनके अंश तक ही सीमित होता है। इसलिए इस प्रकार के प्रारूप में जोखिम
स्पष्ट एवं निश्चित होती है।
4. निष्ठा एवं
सहयोग में वृद्धि-व्यवसाय को परिवार के सभी सदस्य मिलकर चलाते हैं।
इसलिए वे एक दूसरे के प्रति अधिक निष्ठावान होते हैं। व्यवसाय का विकास एवं
विस्तार परिवार की उपलब्धि होती है। अतः परिवार के सभी सदस्यों में निष्ठा एवं
सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
प्रश्न 9.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के तीन/चार दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के दोष-
1. सीमित
साधन-संयुक्त
हिन्दू परिवार व्यवसाय में केवल परिवार की पैतृक सम्पत्ति ही लगती है। इसलिए इसके
सामने सीमित पूँजी की समस्या रहती है। इससे व्यवसाय के विकास एवं विस्तार की
सम्भावना कम हो जाती है।
2. कर्ता का
असीमित दायित्व-व्यवसाय में कर्ता का असीमित दायित्व होता है।
व्यवसाय के ऋणों को चुकाने के लिए उसकी निजी सम्पत्ति का भी उपयोग किया जा सकता
है।
3. कर्ता का
प्रभुत्व-व्यवसाय पर कर्ता का ही प्रभुत्व रहता है जो कभी-कभी अन्य सदस्यों को
स्वीकार्य नहीं होता है। इससे उनमें टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यहाँ तक
कि परिवार का विघटन तक हो जाता है।
4. सीमित
प्रबन्ध कौशल-यह आवश्यक नहीं होता कि व्यवसाय का कर्ता सभी
क्षेत्रों का विशेषज्ञ हो। इसलिए व्यवसाय को उसके गलत निर्णयों के परिणाम भुगतने
होते हैं। यदि वह उचित निर्णय नहीं ले पाता है तो उससे व्यवसाय में वित्त सम्बन्धी
समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
प्रश्न 10.
साझेदारी का अर्थ बतलाते हुए दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
साझेदारी का अर्थ-साझेदारी उन
व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध को कहते हैं जो ऐसे कारोबार (व्यापार) के लाभ को
आपस में बाँटने के लिए सहमत हुए हों, जिसे सबके द्वारा अथवा.
उन सबकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा चलाया जाता हो।
लक्षण-
1. दो या दो
से अधिक व्यक्तियों का होना-साझेदारी के निर्माण के लिए अनुबन्ध करने योग्य
कम-से-कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। साझेदारी भी चूँकि एक अनुबन्ध है अतः
इसकी स्थापना के लिए कम-से-कम दो व्यक्ति अवश्य होने चाहिए।
2. असीमित
दायित्व-साझेदारी में समस्त साझेदारों का दायित्व असीमित होता है। फर्म में उनका यह
दायित्व संयुक्त एवं पृथक् दोनों ही प्रकार का होता है।
प्रश्न 11.
साझेदारी की विद्यमानता का निर्णय करने के लिए चार तत्त्व लिखिए।
उत्तर:
साझेदारी की विद्यमानता का निर्णय-
1. वैधानिक
लक्षणों की उपस्थिति-व्यक्तियों के समूह में साझेदारी अधिनियम 1932, की धारा
4 के अनुसार लक्षण मौजूद हैं या नहीं अर्थात् दो या दो से
अधिक व्यक्तियों का होना, अनुबन्ध का होना, किसी कारोबार/व्यापार का होना, लाभ कमाने का
उद्देश्य होना, लाभों का बँटवारा होना तथा व्यवसाय का संचालन
सभी साझेदारों या उनमें से किसी एक के द्वारा किया जाना आदि लक्षण मौजूद हैं या
नहीं।
2. फर्म के
प्रबन्ध एवं संचालन में भाग लेना-यदि व्यक्तियों का समूह
साझेदारी है तो प्रत्येक साझेदार को फर्म के प्रबन्ध एवं संचालन में भाग लेने का
अधिकार है।
3. फर्म की
पुस्तकों एवं खातों तक पहुँच-फर्म के प्रत्येक साझेदार को फर्म की गोपनीय पुस्तकों, कागज एवं
बहियों को देखने का अधिकार है और वह उसकी प्रतिलिपि ले सकता है।
4. वैधानिक
कारोबार-साझेदारी के लिए वैधानिक कारोबार (व्यापार) का होना आवश्यक है। यदि फर्म का
कारोबार वैधानिक नहीं है तो उसे साझेदारी नहीं कहा जा सकता है।
प्रश्न 12.
साझेदारों के चार प्रकार बतलाइए।
उत्तर:
साझेदारों के प्रकार-
1. सक्रिय
साझेदार-वह साझेदार जो फर्म में पूँजी लगाता है, लेनदारों के प्रति उसका दायित्व
असीमित होता है तथा व्यवसाय के संचालन में सक्रिय रूप से भाग लेता है, सक्रिय साझेदार कहलाता है।
2. सुप्त अथवा
निष्क्रिय साझेदार-वह साझेदार जो फर्म में पूँजी लगाता है, लाभ-हानि को
बाँटता है, दायित्व असीमित होता है किन्तु फर्म के
दिन-प्रतिदिन के कार्यों में भाग नहीं लेता है सुप्त या निष्क्रिय साझेदार कहलाता
है।
3. गुप्त
साझेदार-वह साझेदार जो फर्म में पूँजी लगाता है, प्रबन्ध में भाग लेता है, लाभ-हानि को बाँटता है तथा लेनदारों के प्रति दायित्व असीमित होता है,
लेकिन जिसके फर्म से सम्बन्ध को आम जनता नहीं जानती है, गुप्त साझेदार कहलाता है।
4. नाममात्र
का साझेदार-वह साझेदार जो फर्म में पंजी नहीं लगाता है. न ही लाभ-हानि में भागीदार
होता है. लेकिन अन्य साझेदारों के समान फर्म के ऋणों के भुगतान के लिए तीसरे
पक्षों के प्रति उत्तरदायी होता है और फर्म जिसके नाम का प्रयोग करती है, नाममात्र का
साझेदार कहलाता है।
प्रश्न 13.
'साझेदारी संलेख' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
साझेदारी संलेख-फर्म के सभी साझेदारों
के बीच वह लिखित समझौता जो साझेदारी को शासित करने के लिए शर्तों व परिस्थितियों
का उल्लेख करता है साझेदारी संलेख कहलाता है। साझेदारी संलेख में सामान्यतया निम्न
बातें सम्मिलित की जाती हैं-
·
फर्म का नाम;
·
व्यवसाय की प्रकृति एवं स्थान जहाँ वह स्थित है;
·
व्यवसाय की अवधि;
·
प्रत्येक साझेदार द्वारा फर्म में लगायी जाने वाली
पूँजी;
·
लाभ-हानि का बँटवारा;
·
साझेदारों के कर्तव्य एवं दायित्व;
·
साझेदारों का वेतन एवं आहरण;
·
साझेदारों का प्रवेश;
·
अवकाश-ग्रहण एवं हटाये जाने सम्बन्धी शर्ते;
·
पूँजी एवं आहरण पर ब्याज;
·
फर्म के समापन की प्रक्रिया;
·
खातों को तैयार करना एवं उसका अंकेक्षण;
·
विवादों के समाधान की पद्धति आदि।
प्रश्न 14.
सीमित तथा असीमित साझेदारी को समझाइए।
उत्तर:
1. सीमित
साझेदारी-यह वह साझेदारी होती है जिसका निर्माण इस आधार पर किया जाता है कि कुछ
साझेदारों का दायित्व सीमित रहेगा। कम-से-कम एक साझेदार का दायित्व असीमित रहता
है। सीमित दायित्व वाले साझेदार फर्म के प्रबन्ध में भाग नहीं ले सकते तथा उनके
कार्यों से न तो फर्म और न ही दूसरे साझेदार आबद्ध होते हैं। सीमित दायित्व वाले
साझेदारों की मृत्यु, पागलपन या दिवालिया होने से फर्म का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है। सीमित
साझेदारी का पंजीयन अनिवार्य होता है।
2. असीमित
साझेदारी-असीमित साझेदारी वह साझेदारी होती है जिसमें साझेदारों का दायित्व असीमित
होता है। ऐसी साझेदारी में सभी साझेदारों को फर्म के प्रबन्ध एवं संचालन में भाग
लेने का समान अधिकार होता है। सामान्यतया इसी प्रकार की साझेदारी का अधिक निर्माण
किया जाता है।
प्रश्न 15.
अवधि के आधार पर साझेदारी कितने प्रकार की होती है? समझाइए।
उत्तर:
अवधि के आधार पर साझेदारी के प्रकार-
(1) ऐच्छिक
साझेदारी-ऐसी साझेदारी की स्थापना साझेदारों की इच्छा से होती है। यह साझेदारी उस
समय तक चलती है जब तक कि अलग होने का नोटिस नहीं दिया जाता। किसी भी साझेदार
द्वारा नोटिस दिये जाने पर यह साझेदारी समाप्त हो जाती है।
(2) विशिष्ट
साझेदारी-ऐसी साझेदारी की स्थापना किसी भवन के निर्माण या कोई कार्य या फिर एक
निश्चित अवधि के लिए की जाती है। सामान्यतः जिस उद्देश्य को पूरा करने के लिए इस
प्रकार की साझेदारी की स्थापना होती है, उस उद्देश्य के पूरा होते ही यह
साझेदारी समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 16.
उपभोक्ता सहकारी समितियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
उपभोक्ता सहकारी समितियाँ-उपभोक्ता
सहकारी समितियों से आशय उन समितियों से है जिनका गठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा
के लिए किया जाता है। इसमें वे सदस्य वे उपभोक्ता होते हैं जो अच्छी गुणवत्ता वाली
वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त करना चाहते हैं। इन समितियों का उद्देश्य मध्यस्थों
को समाप्त करना होता है क्योंकि ये समितियाँ थोक विक्रेता से वस्तुओं को सीधे ही
बड़ी मात्रा में क्रय करती हैं तथा उन्हें अपने सदस्यों को बेचती हैं। इन समितियों
को यदि लाभ होता है तो उसे वे सदस्यों को क्रय के आधार पर बाँट देती हैं।
प्रश्न 17.
निजी कम्पनी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
निजी कम्पनी की परिभाषा-निजी कम्पनी से
आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसकी प्रदत्त अंश-पूँजी कम-से-कम एक लाख रुपये या इससे
अधिक राशि की निर्धारित की गई है तथा जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा-
·
अपने अंशों के हस्तान्तरण के अधिकार पर प्रतिबन्ध
लगाती है;
·
अपने सदस्यों की संख्या 50 तक सीमित
रखती है;
·
अपने अंशों अथवा ऋण-पत्रों के अभिदान के लिए जनता को
आमन्त्रित करने पर निषेध लगाती है;
·
अपने सदस्यों, संचालकों अथवा उनके रिश्तेदारों के
अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति से जमाएँ आमन्त्रित करने अथवा स्वीकार करने पर निषेध
लगाती है।
यदि दो या दो से अधिक
व्यक्ति संयुक्त रूप से कम्पनी के अंश क्रय कर लेते हैं तो वे सभी एक सदस्य की तरह
ही माने जायेंगे। निजी कम्पनी में सदस्यों की अधिकतम संख्या 50 की गिनती
में कम्पनी के ऐसे वर्तमान तथा पूर्व कर्मचारियों को शामिल नहीं किया जाता है जो
कर्मचारी रहते हुए कम्पनी के सदस्य बने हुए थे और नौकरी छोड़ने के बाद भी बने हुए
हैं।
प्रश्न 18.
सार्वजनिक कम्पनी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक कम्पनी की परिभाषा-एक सार्वजनिक कम्पनी वह है जो निजी
कम्पनी नहीं है। कम्पनी अधिनियम के अनुसार एक सार्वजनिक कम्पनी वह है-
·
जिसमें कम से कम 7 सदस्य हों तथा अधिकतम संख्या की कोई
सीमा नहीं हो;
·
जिसमें अंशों के हस्तान्तरण पर कोई प्रतिबन्ध नहीं हो;
·
जो अपनी अंशपूँजी के अभिदान के लिए जनता को आमन्त्रित
कर सकती है तथा जनसाधारण इसकी सार्वजनिक जमा में रुपया जमा करा सकते हैं।
यदि एक निजी कम्पनी
सार्वजनिक कम्पनी की सहायक कम्पनी है तो वह भी सार्वजनिक कम्पनी के समान ही मानी
जायेगी।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
"एक व्यक्ति का नियन्त्रण सर्वश्रेष्ठ है, यदि वह व्यक्ति समस्त व्यवस्थाओं के लिए पर्याप्त रूप से समर्थ है।"
विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
"एक व्यक्ति का नियन्त्रण विश्व में सर्वश्रेष्ठ है, यदि वह व्यक्ति समस्त व्यवस्थाओं के लिए पर्याप्त रूप से समर्थ है।"
प्रो. विलियम बैसेट ने इस कथन में एकल व्यक्ति अर्थात् एकाकी व्यापारी की
सर्वश्रेष्ठता को स्वीकार अवश्य किया है किन्तु स्पष्ट रूप से सर्वश्रेष्ठ नहीं
माना है। इस सम्बन्ध में विश्लेषण एकल स्वामित्व के लाभ एवं सीमाओं का ध्यान में
रख कर ही किया जा सकता है। उनके इस कथन को दो भागों में बाँट सकते हैं-
(अ) एकल
स्वामित्व सर्वश्रेष्ठ है-वास्तव में यदि एकल स्वामित्व से होने वाले लाभों का
स्वामित्व के अन्य रूपों से होने वाले लाभों से तुलनात्मक विश्लेषण करें तो स्वतः
ही स्पष्ट हो जायेगा कि एकल स्वामित्व अन्य प्रारूपों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ है
जो निम्नानुसार है-
·
एकल स्वामित्व की स्थापना करना अन्य व्यावसायिक
उपक्रमों की अपेक्षा बहुत आसान है।
·
एकल स्वामित्व अन्य प्रारूपों की तुलना में वैधानिक
प्रतिबन्धों से मुक्त है।
·
इसमें निर्णय लेने में शीघ्रता एवं स्वतन्त्रता रहती
है क्योंकि अकेला व्यक्ति ही सर्वेसर्वा होता है।
·
गोपनीयता भी सर्वाधिक रहती है।
·
एकल व्यापारी भली-भाँति जानता है कि जितनी अधिक मेहनत
एवं लगन से वह कार्य करेगा उसे उतना ही लाभ होगा। अतः कार्य के प्रति उसकी रुचि
एवं लगन रहती है।
·
एकाकी व्यापार में संचालन एवं प्रबन्ध का सम्पूर्ण
कार्य एक व्यक्ति के हाथों में रहने के कारण तथा लाभ-हानि में वही भागीदार होने के
कारण प्रबन्ध में मितव्ययिता बनी रहती है।
·
एकल व्यापारी ग्राहकों से भी सीधे सम्पर्क में रहता
है।
·
एक व्यक्ति के नियन्त्रण की सुविधा एकाकी व्यापार में
ही सर्वाधिक रहती है।
·
एकल व्यापार में व्यवसाय के चुनाव की पूर्ण
स्वतन्त्रता रहती है।
·
एकाकी व्यापार को जब चाहें तब शुरू तथा जब चाहें
समाप्त कर सकते हैं।
·
एकल स्वामित्व के अन्तर्गत समाज के प्रत्येक व्यक्ति
को अपनी रुचि एवं योग्यता के अनुसार व्यवसाय करने का अवसर मिल जाता है।
(ब) यदि उसमें
सब कार्यों की प्रबन्ध व्यवस्था करने की क्षमता हो- प्रो. बैसेट ने एकल
स्वामित्व वाले व्यवसाय की सर्वश्रेष्ठता को स्वतन्त्र रूप से स्वीकार नहीं किया
है। उन्होंने एकल स्वामित्व की सीमाओं की ओर ध्यान आकर्षित कर कहा है कि, "यदि
उसमें सब कार्यों को करने की प्रबन्ध क्षमता हो" एकल व्यापारी की कुछ सीमाएँ
हैं। उन सीमाओं के कारण एक व्यक्ति का नियन्त्रण सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकता है। ये
सीमाएँ इस प्रकार हैं-
·
एकल व्यवसायी के वित्तीय स्रोत सीमित ही रहते हैं।
·
प्रबन्धकीय ज्ञान, कौशल एवं क्षमता भी सीमित होती है।
·
एकल व्यवसाय में दायित्व भी असीमित रहता है।
·
एकल स्वामी एवं उसके व्यवसाय में प्रत्यक्ष सम्बन्ध
होने के कारण व्यवसाय का अस्तित्व स्थायी नहीं रहता है।
·
एकल व्यवसायी में विविधता एवं विशिष्टीकरण का भी अभाव
बना रहता है।
·
एक व्यक्ति द्वारा निर्णय लिये जाने की स्थिति में
जल्दीबाजी हो सकती है।
·
एकल व्यवसायी की जितनी स्वयं की ख्याति होती है उतनी
ही उसके व्यापार की ख्याति रहती है।
निष्कर्ष के रूप में यह कहा
जा सकता है कि प्रो. बैसेट का कथन शत प्रतिशत सही है। यदि एक व्यक्ति अपनी सीमाओं
को तोड़कर सब कार्यों का प्रबन्ध कर सके तो उस व्यक्ति का नियन्त्रण सर्वश्रेष्ठ
ही होगा, किन्तु सामान्यतया व्यक्ति अपनी सीमाओं को तोड़ने में असमर्थ रहता है।
इसलिए एकल स्वामित्व की श्रेष्ठता एकल व्यवसायी की कुशलता एवं क्षमता पर निर्भर
करती है।
प्रश्न 2.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय का अर्थ एवं विशेषताएँ बतलाइए।
उत्तर:
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय का अर्थ-संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय का अभिप्राय उस व्यवसाय से है जिसका
स्वामित्व एवं संचालन एक संयुक्त हिन्दू परिवार के सदस्य करते हैं। परिवार विशेष
में जन्म लेने पर वह व्यक्ति व्यवसाय का सदस्य बन जाता है एवं तीन पीढ़ियों तक वह
सदस्य रह सकता है। इस व्यवसाय पर परिवार के मुखिया का ही व्यवसाय का 'कर्ता' कहलाता है। मखिया परिवार का सबसे अधिक आयु का
व्यक्ति होता है। परिवार के सभी सदस्यों का व्यवसाय में बराबर का स्वामित्व होता
है तथा उन्हें सह-समांशी कहा जाता है।
विशेषताएँ-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. निर्माण-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय की स्थापना परिवार के कम-से-कम दो सदस्य मिलकर कर सकते हैं। व्यवसाय के
लिए किसी अनुबन्ध की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि इसमें सदस्यता जन्म के कारण
मिलती है।
2. शासित-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 द्वारा शासित होता है।
3. नियन्त्रण-संयुक्त हिन्दू परिवार के
व्यवसाय पर कर्ता का पूर्ण नियन्त्रण रहता है। इसमें कर्ता ही व्यवसाय सम्बन्धी
सभी निर्णय लेने तथा व्यवसाय के प्रबन्धन के लिए अधिकृत होता है। परिवार के अन्य
सदस्य कर्ता के निर्णय से बाध्य होते हैं।
4. निरन्तरता-संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय
में निरन्तरता बनी रहती है। कर्ता की मृत्यु होने पर भी व्यवसाय निरन्तर चलता रहता
है। क्योंकि परिवार का अगला सबसे अधिक आयु का व्यक्ति कर्ता का स्थान ले लेता है।
संयुक्त हिन्दू परिवार के व्यवसाय को परिवार के सभी सदस्यों की स्वीकृति से ही
समाप्त किया जा सकता है।
5. अवयस्क
सदस्य-संयुक्त
हिन्दू परिवार व्यवसाय में परिवार में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति सदस्य बन
जाता है। अतः इसमें अवयस्क या नाबालिग भी व्यवसाय के सदस्य हो सकते हैं।
6. व्यवसाय का
प्रबन्ध एवं संचालन-परिवार के व्यवसाय का प्रबन्ध एवं संचालन करने का
अधिकार कर्ता को होता है। उसे परिवार की ओर से सभी वैधानिक कार्य करने का अधिकार
होता है।
7. पिछला
हिसाब माँगना-परिवार का कोई भी सदस्य परिवार से अलग होते समय
परिवार के कर्ता से संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के पिछले हिसाब की मांग नहीं कर
सकता है।
प्रश्न 3.
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के गुण और दोष बतलाइए।
उत्तर:
संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के गुण
·
स्थायी अस्तित्व-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय का अस्तित्व स्थायी होता है। कर्ता की मृत्यु से व्यवसाय पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ता क्योंकि कर्ता के बाद सबसे अधिक आयु का व्यक्ति उसका स्थान ले लेता है।
·
प्रभावशाली नियन्त्रण-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय पर कर्ता का प्रभावी नियन्त्रण रहता है। कर्ता के पास निर्णय लेने के पूरे
अधिकार होते हैं। इसके कारण निर्णय शीघ्र लिये जाते हैं तथा उनमें लचीलापन होता
है।
·
प्रबन्ध पर एकाधिकार-इसमें व्यापार के प्रबन्ध पर
कर्ता का पूर्ण अधिकार होता है। उसकी देखरेख और नियन्त्रण में परिवार के सदस्य
कार्य करते हैं। इससे कार्य में रुकावट नहीं आती है।
·
संदस्य संख्या-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय में साझेदारी तथा कम्पनी प्रारूप की तरह सदस्यों की न्यूनतम एवं अधिकतम
कोई सीमा नहीं होती।
·
सदस्यों का सीमित दायित्व-कर्ता को छोड़ कर परिवार के
सभी सदस्यों का दायित्व व्यवसाय में उनके अंश तक सीमित होता है। इसलिए उनकी जोखिम
स्पष्ट एवं निश्चित होती है।
·
निष्ठा एवं सहयोग में वृद्धि-क्योंकि परिवार के सदस्य
मिलकर व्यवसाय चलाते हैं इसलिए वे एक-दूसरे के प्रति अधिक निष्ठावान रहते हैं।
व्यवसाय का विकास एवं विस्तार परिवार की उपलब्धि होती है अतः सबमें सहयोग की भी
वृद्धि होती है।
संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय के दोष-
·
सीमित साधन-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय मुख्य रूप से पैतृक सम्पत्ति से ही चलाया जाता है । इसलिए इसके समक्ष
सीमित पूँजी की समस्या रहती है।
·
कर्ता का दायित्व असीमित-संयुक्त हिन्दू परिवार में
कर्त्ता पर न केवल निर्णय लेने व प्रबन्ध करने का भार होता है बल्कि उस पर असीमित
दायित्व का भी भार होता है।
·
सीमित प्रबन्ध कौशल-यह जरूरी नहीं है कि कर्ता
सर्वगुण-सम्पन्न हो। इसलिए व्यवसाय को कर्त्ता के द्वारा लिये गये निर्णयों के
परिणाम भुगतने होते हैं । यदि वह समय पर निर्णय नहीं ले पाता है तो भी उससे व्यवसाय
को नुकसान हो सकता है।
·
कर्ता का प्रभुत्व-कर्ता अकेला ही व्यवसाय का
प्रबन्ध करता है जो कभी-कभी परिवार के अन्य सदस्यों को स्वीकार्य नहीं होता है।
इससे उनमें टकराव हो जाता है।।
·
सीमित ख्याति-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय की ख्याति भी सीमित ही होती है।
·
गोपनीयता के कारण सन्देह-संयुक्त हिन्दू परिवार
व्यवसाय की अधिकांश बातें गोपनीय रहती हैं। इसलिए इसके साथ लेन-देन करने वाले
व्यक्तियों को सन्देह होना स्वाभाविक है।

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