Saturday, September 20, 2025

12th Economics Chapter 5 imp QA

 





Class-12 Economics

Chapter- 5 (बाज़ार संतुलन)

 

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
शून्य अधिमांग एवं शून्य अधिपूर्ति की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी कीमत पर जब बाजार मांग एवं पूर्ति बराबर हो तो वह शून्य अधिमांग एवं शून्य अधिपूर्ति की स्थिति होगी।

प्रश्न 2. 
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में बाजार माँग एवं पूर्ति जिस कीमत पर बराबर होते हैं, वह कीमत क्या कहलाती है?
उत्तर:
सन्तुलन कीमत।

प्रश्न 3. 
जब बाजार पूर्ति बाजार मांग से अधिक होती है तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अधिपूर्ति।

प्रश्न 4. 
जब बाजार माँग, बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अधिमांग।

प्रश्न 5. 
पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी किसके बराबर होती है?
उत्तर:
श्रम के सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद के।

प्रश्न 6. 
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर रहे तो बाजार में मांग में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पडेगा?
उत्तर:
सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी।

प्रश्न 7. 
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर रहे तथा बाजार माँग में कमी हो जाए तो सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सन्तुलन कीमत में कमी होगी।

प्रश्न 8. 
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहे तथा बाजार में पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कीमत में वृद्धि होगी।

प्रश्न 9. 
बाजार मांग तथा बाजार पूर्ति वक्रों के बायीं तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सन्तुलन मात्रा कम होगी।

प्रश्न 10. 
जब बाजार मांग वक्र तथा बाजार पूर्ति वक्र दोनों दाहिनी दिशा में शिफ्ट होते हैं, तो सन्तुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।

प्रश्न 11. 
एक बाजार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में कीमत पूर्ण प्रतिस्पर्धा में किसके बराबर होती है?
उत्तर:
न्यूनतम औसत लागत के।

प्रश्न 12. 
बाजार में सन्तुलन की स्थिति में बाजार मांग एवं बाजार पूर्ति की क्या स्थिति होती है?
उत्तर:
सन्तुलन की स्थिति में बाजार मांग एवं बाजार पूर्ति दोनों एक-दूसरे के बराबर होते हैं।

प्रश्न 13. 
एक बाजार माँग वक्र का ढाल कैसा होता
उत्तर:
बाजार माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला वक्र होता है।

प्रश्न 14. 
एक बाजार पूर्ति वक्र का ढाल कैसा होता
उत्तर:
एक बाजार पूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला वक्र होता है।

प्रश्न 15. 
श्रम का सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
श्रम का सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद - = सीमान्त संप्राप्ति x श्रम का सीमान्त उत्पाद

प्रश्न 16. 
यदि बाजार माँग वक्र P = 200 - P है तथा संतुलन कीमत P = 20 है तो निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में संतुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
संतुलन मात्रा (P) = 200 - P  = 200 - 20
= 180 

प्रश्न 17. 
राशनिंग का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपयोग की उच्चतम मात्रा का निर्धारण करना।

प्रश्न 18. 
बाजार माँग क्या दर्शाती है?
उत्तर:
यह कि बाजार में दी हुई कीमतों पर उपभोक्ता कितनी मात्रा में वस्तुएँ खरीदने को तैयार है।

प्रश्न 19. 
श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति परिवारों द्वारा की जाती है।

प्रश्न 20. 
श्रम बाजार में श्रम की माँग किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादक फर्मों द्वारा की जाती है। 

प्रश्न 21. 
वस्तु बाजार में वस्तु की माँग किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
वस्तु बाजार में वस्तु की माँग परिवारों द्वारा की जाती है। 

प्रश्न 22. 
श्रम बाजार में माँग वक्र की आकृति कैसी होती है?
उत्तर:
श्रम बाजार में मांग वक्र नीचे की ओर ढलान वाला वक्र होता है।

प्रश्न 23. 
बाजार में पूर्ति में वृद्धि के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

·            तकनीक में सुधार 

·            उत्पादन साधनों की कीमतों में कमी।

प्रश्न 24. 
बाजार में पूर्ति में कमी के कोई दो कारण बताइए। .
उत्तर:

·            उत्पादन लागत में वृद्धि 

·            उत्पादक फर्मों की संख्या में कमी।

प्रश्न 25. 
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कोई दो तत्त्व बताइए।
उत्तर:

·            वस्तु की कीमत 

·            उत्पादन साधनों की कीमत।

प्रश्न 26. 
बाजार की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
बाजार में वस्तु, सेवा तथा साधनों का क्रयविक्रय होता है। 

 

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
वस्तु बाजार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाजार वह क्षेत्र है जिसमें विभिन्न क्रेता एवं विक्रेता आपस में सम्पर्क कर वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं।

प्रश्न 2. 
एक वस्तु बाजार में वस्तु के माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
एक वस्तु बाजार में वस्तु की माँग वक्र नीचे गिरता हुआ अर्थात् ऋणात्मक ढाल वाला वक्र होता है जबकि पूर्ति वक्र ऊपर उठता हुआ अर्थात् धनात्मक ढाल वाला वक्र होता है।

प्रश्न 3. 
फर्म एवं उद्योग में अन्तर बताइए।
उत्तर:
फर्म एक या अधिक उत्पादन इकाइयों को कहते हैं जो कि एक ही स्वामित्व के अन्तर्गत हो, जबकि उद्योग बहुत सी ऐसी फर्मों को कहा जाता है जो एक सी वस्तुओं का उत्पादन कर रही हो।

प्रश्न 4. 
एक उद्योग के साम्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक दी हुई कीमत पर उद्योग साम्य की स्थिति में तब होगा जबकि उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तु की कुल पूर्ति उसकी कुल माँग के बराबर होती है।

प्रश्न 5. 
शून्य अधिमाँग - शून्य अधिपूर्ति की स्थिति कौनसी होती है?
उत्तर:
यदि बाजार में किसी कीमत पर बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते हैं तो इसे शून्य अधिमांगशून्य अधिपूर्ति की स्थिति कहा जाता है।

प्रश्न 6. 
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन मात्रा का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में जहाँ बाजार माँग वक्र बाजार पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, वहाँ सन्तुलन मात्रा निर्धारित होती है।

प्रश्न 7. 
यदि बाजार माँग वक्र qD = 200 - p तथा बाजार पूर्ति वक्र qS = 140 + p है, तो सन्तुलन कीमत ज्ञात कीजिए। 
उत्तर:
सन्तुलन कीमत = qD = qS
200 - p = 140 + P
2p = 60
p= 30 रुपये

प्रश्न 8.
यदि बाजार पूर्ति वक्र qS = 140 + p है तथा सन्तुलन कीमत p = 30 रुपये है, तो सन्तुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
qS = 140 + P
p = 30
सन्तुलन मात्रा = 140 + p
= 140 + 30 
= 170

प्रश्न 9. 
पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी कहाँ निर्धारित होती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी वहाँ निर्धारित होगी, जहाँ श्रम का पूर्ति वक्र तथा श्रम का माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं।

प्रश्न 10. 
यदि बाजार पूर्ति वक्र तथा माँग वक्र दोनों बायीं तरफ शिफ्ट हो जाएं तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार पूर्ति वक्र तथा माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन मात्रा कम होगी तथा कीमत में वृद्धि, कमी अथवा वह अपरिवर्तित रह सकती है।

प्रश्न 11. 
यदि बाजार माँग वक्र दायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार माँग वक्र दायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा मात्रा में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है।

प्रश्न 12. 
यदि बाजार माँग एवं पूर्ति वक्र दोनों दायीं तरफ शिफ्ट हों तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार मांग एवं पूर्ति वक्र दोनों दायीं तरफ शिफ्ट हों तो सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी तथा कीमत में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है।

प्रश्न 13. 
यदि बाजार माँग वक्र बायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन माँग तथा पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? .
उत्तर:
यदि बाजार माँग वक्र बायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा मात्रा में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित रहेगी।

प्रश्न 14. 
यदि बाजार मांग वक्र स्थिर रहे तथा बाजार पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन मात्रा एवं कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
बाजार पूर्ति वक्र के दाहिनी तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत में कमी होती है तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।

प्रश्न 15. 
यदि बाजार माँग वक्र स्थिर रहे तथा बाजार पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन मात्रा में कमी आएगी।

प्रश्न 16. 
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में यदि बाजार माँग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट होता है तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में बाजार माँग वक्र के दाहिनी तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।

प्रश्न 17. 
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में यदि बाजार माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में मांग वक्र के बायीं तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा दोनों में कमी होती है।

प्रश्न 18. 
फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत तथा न्यूनतम औसत लागत में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में निर्वाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में कीमत, न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है।

प्रश्न 20. 
यदि बाजार में फर्मों को निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की अनुमति हो, तो माँग में वृद्धि होने पर सन्तुलन मात्रा एवं कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में माँग में वृद्धि होने पर सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन कीमत अपरिवर्तित रहेगी।

प्रश्न 21. 
यदि बाजार में फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो, तो माँग में कमी होने पर सन्तुलन कीमत एवं मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में मांग में कमी होने पर सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जबकि सन्तुलन मात्रा में कमी आएगी।

प्रश्न 22. 
उच्चतम निर्धारित कीमत किसे कहते
उत्तर:
किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित कीमत कहते हैं।

प्रश्न 23. 
निम्नतम निर्धारित कीमत किसे कहते
उत्तर:
किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की न्यूनतम सीमा को निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं।

प्रश्न 24. 
श्रम की सीमान्त उत्पादकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक अतिरिक्त श्रम लगाने से कुल उत्पाद में जो वृद्धि होती है, उसे श्रम की सीमान्त उत्पादकता कहा जाता है।

प्रश्न 25. 
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक फर्म की सीमान्त आगम एवं वस्तु की कीमत में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक फर्म की सीमान्त आगम वस्तु की कीमत के बराबर होती है।

प्रश्न 26. 
एक वस्तु की पूर्ति करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि होने पर एक वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
एक वस्तु की पूर्ति करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि होने पर वस्तु की सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।

प्रश्न 27. 
यदि सरकार बाजार में वस्तु पर उत्पादन कर लगाती है तो सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार बाजार में वस्तु पर उत्पादन कर लगाती है, तो इसके फलस्वरूप सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी।

प्रश्न 28. 
नियन्त्रण कीमत तथा सन्तुलन कीमत में क्या अन्तर है?
उत्तर:
नियन्त्रण कीमत का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि बाजार कीमत का निर्धारण बाजार में मांग एवं पूर्ति के साम्य द्वारा होता है।

प्रश्न 29. 
बाजार की मुख्य विशेषताएँ अथवा तत्त्व बताइए।
उत्तर:

1.          बाजार का आशय किसी स्थान विशेष से न होकर उस सम्पूर्ण क्षेत्र से है जहाँ वस्तु के क्रेता और विक्रेता फैले हुए हैं।

2.          बाजार हेतु क्रेताओं एवं विक्रेताओं में किसी भी माध्यम से सम्पर्क होना आवश्यक है।

3.          बाजार में वस्तु, सेवा या साधन का क्रयविक्रय हो सकता है।

प्रश्न 32. 
यदि एक बाजार में माँग वक्र qD = 400 - p है तथा बाजार पूर्ति वक्र qS = 240 + p है तो सन्तुलन कीमत की गणना कीजिए।
उत्तर:
बाजार में सन्तुलन कीमत का निर्धारण वहाँ होगा, जहाँ पर बाजार माँग वक्र तथा बाजार पूर्ति वक्र बराबर होते हैं
qD  = qS
400 - p = 240 + P
2p = 400 - 240
2p = 160
p = 160/2 = 80 

प्रश्न 33. 
श्रम की माँग तथा श्रम की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाजार में उत्पादकों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करने हेतु श्रम की जो माँग की जाती है, उसे श्रम की मांग कहा जाता है तथा एक दी हुई मजदूरी दर पर परिवार क्षेत्र द्वारा फर्म में उत्पादन का कार्य किया जाता है, उसे श्रम की पूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 36. 
सन्तुलन के सम्बन्ध में 'अदृश्य हाथ' सम्बन्धी धारणा को स्पष्ट कीजिए। .
उत्तर:
एडम स्मिथ के समय से ही यह मान्यता रही है कि जब भी बाजार में असन्तुलन होता है, तो पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक 'अदृश्य हाथ' कीमतों में परिवर्तन कर देता है। यह अदृश्य हाथ अधिमाँग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि तथा अधिपूर्ति की स्थिति में कीमतों में कमी कर देता है।

प्रश्न 37. 
बाजार में मांग तथा पूति क असन्तुलन से उत्पन्न स्थितियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असन्तुलन की निम्न दो स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

1.          अधिपूर्ति: अधिपूर्ति वह स्थिति होती है, जिसमें किसी कीमत पर बाजार पूर्ति, बाजार माँग से अधिक होती है।

2.          अधिमाँग: अधिमांग वह स्थिति होती है, जिसमें किसी कीमत पर बाजार माँग, बाजार पूर्ति से अधिक होती है।

 

निबन्धात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में माँग एवं पूर्ति के सन्तुलन एवं असन्तुलन से उत्पन्न स्थितियों को रेखाचित्रों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन वहाँ होता है, जहाँ बाजार माँग बाजार पूर्ति के बराबर होती है। यदि ये दोनों बराबर नहीं होते हैं तो इसे असन्तुलन की स्थिति कहा जाता है। बाजार सन्तुलन तथा असन्तुलन से तीन स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
(1) अधिपूर्ति: अधिपूर्ति बाजार में वह स्थिति होती है, जिसमें किसी कीमत पर बाजार में बाजार पूर्ति, बाजार मांग से अधिक होती है। इसे हम रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।


 दिए गए रेखाचित्र 1 में DD तथा SS क्रमशः बाजार माँग एवं पूर्ति वक्र है, जहाँ पर सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा OQ है। यदि बाजार में कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तो यहाँ पूर्ति P1B हो जाएगी तथा माँग P1A हो जाएगी। अतः यहाँ पूर्ति माँग से AB अधिक होगी, यह अधिपूर्ति की स्थिति है।

(2) अधिमांग: अधिमांग बाजार की वह स्थिति है, जिसमें किसी कीमत पर बाजार मांग, बाजार पूर्ति से अधिक होती है। इसे हम रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।


दिए गए रेखाचित्र 2 में DD तथा SS क्रमश: बाजार मांग एवं पूर्ति वक्र है तथा बाजार में सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा OQ है। यदि बाजार में कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है तो इस स्थिति में माँग P1B तथा पूर्ति P1A हो जाती है अर्थात् वस्तु की माँग पूर्ति से AB अधिक हो जाती है। इसे अधिमांग की स्थिति कहते हैं।

(3) शून्य अधिमाँग: शून्य अधिपूर्ति - शून्य अधिमांग - शून्य अधिपूर्ति बाजार की वह स्थिति होती है, जिसमें बाजार माँग एवं बाजार पूर्ति बराबर होते हैं, जिससे सन्तुलन कीमत एवं सन्तुलन मात्रा निर्धारित होती है। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

 दिए गए रेखाचित्र 3 में DD तथा SS क्रमशः बाजार माँग वक्र एवं बाजार पूर्ति वक्र है, जो E बिन्दु पर एक-दूसरे को काटते हैं, अत: E सन्तुलन का बिन्दु है, यहाँ पर OP सन्तुलन कीमत तथा OQ सन्तुलन मात्रा


प्रश्न 2.
श्रम बाजार में मजदूरी दर के निर्धारण को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण श्रम के लिए माँग तथा पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है। लाभ - अधिकतमकर्ता होने के कारण फर्म सदा, उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी, जिस पर श्रम की अन्तिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने के अतिरिक्त लागत मजदूरी दर (w) है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमांत उत्पाद तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमांत संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमांत संप्राप्ति तथा सीमांत उत्पाद के गुणनफल के बराबर है। इसे श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद कहते हैं। अतः फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है जहाँ,

w = श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद
तथा
श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद = सीमांत संप्राप्ति x श्रम का सीमांत उत्पाद

क्योंकि हम एक पूर्णतः प्रतिस्पर्धी फर्म का अध्ययन कर रहे हैं, जहाँ सीमांत संप्राप्ति वस्तु की कीमत के बराबर है तथा इस स्थिति में श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य के बराबर है। जब तक श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी से अधिक है, फर्म श्रम की एक अतिरिक्त इकाई का उपयोग करके अधिक लाभ अर्जित कर सकती है तथा यदि श्रम उपयोग के किसी भी स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर की तुलना में कम है, तो फर्म श्रम की एक इकाई कम करके अपने लाभ में वृद्धि कर सकती श्रम (घंटों में दी गई ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम की मान्यता पर फर्म मजदूरी - श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य पर ही सदैव उत्पाद करती है, इसका यह अभिप्राय है कि श्रम के लिए माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली है। किसी मजदूरी दर w, पर श्रम के लिए माँग , है। अब मान लीजिए कि मजदूरी दर बढ़कर w, हो जाती है। मजदूरी - श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य में समानता बनाए रखने के लिए श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य में भी वृद्धि होनी चाहिए, वस्तु की कीमत स्थिर रहते हुए।

यह तभी सम्भव है, जब श्रम के सीमांत उत्पाद में वृद्धि हो, जिससे अभिप्राय है कि श्रम की ह्रासमान सीमांत उत्पादकता के कारण कम श्रम का उपयोग किया जाये। अतः ऊँची मजदूरी दर पर कम श्रम की माँग होती है, जिसके परिणामस्वरूप माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली हो जाती है।
व्यक्तिगत फर्मों की माँग वक्रों से बाजार माँग वक्र ज्ञात करने के लिए हम साधारणतः विभिन्न मजदूरी की दरों पर व्यक्तिगत फर्मों द्वारा श्रम की माँग को जोड़ देते हैं । यद्यपि प्रत्येक फर्म मजदूरी बढ़ने पर कम श्रम की माँग करती है, बाजार माँग वक्र भी नीचे की ओर प्रवणता वाली होती है।
मांग पक्ष के अन्वेषण के पश्चात् अब हम पूर्ति पक्ष पर आते हैं।

किसी दी हुई मजदूरी पर कितनी श्रम - पूर्ति की जानी चाहिए, इसका निर्धारण घर-परिवार करते हैं। उनके पूर्ति का निर्णय अनिवार्य रूप से आय तथा अवकाश के बीच एक चयन है। एक ओर, व्यक्ति अवकाश में रहना चाहता है। क्योंकि वे कार्य को बोझिल मानते हैं तथा दूसरी ओर वे आय को महत्त्व देते हैं, जिसके लिए उन्हें कार्य करना पड़ता है। अत: व्यक्ति अधिक मजदूरी पर श्रम की अधिक पूर्ति होगी तथा कम मजदूरी पर श्रम की कम पूर्ति होगी। सन्तुलन मजदूरी दर उस बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ से दोनों वक्र एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित करते हैं, दूसरे शब्दों में वहाँ परिवारों द्वारा श्रम की पूर्ति फर्मों द्वारा श्रम की माँग बराबर होती है।


 


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