Class-12 Geography
Chapter- 3 (भूसंसाधन तथा कृषि)
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न:
निम्न
में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए।
प्रश्न
1.
|
स्तम्भ
अ (दशा) |
स्तम्भ
ब (सम्बन्ध) |
|
(i) सामुदिक
वन |
(अ)जून
- सितम्बर |
|
(ii) खरीफ
की फसल |
(ब)
महाराष्ट्र |
|
(iii) भारत
का सर्वाधिक ज्वार उत्पादक राज्य |
(स)
मध्यप्रदेश |
|
(iv) सर्वाधिक
सोयाबीन उत्पादक राज्य |
(द) भू
निम्नीकरण की समस्या |
|
(v) जलाक्रांतता |
(य)
साझा सम्पत्ति संसाधन |
उत्तर:
|
स्तम्भ
अ (दशा) |
स्तम्भ
ब (सम्बन्ध) |
|
(i) सामुदिक
वन |
(य)
साझा सम्पत्ति संसाधन |
|
(ii) खरीफ
की फसल |
(अ) जून
- सितम्बर |
|
(iii) भारत
का सर्वाधिक ज्वार उत्पादक राज्य |
(ब)
महाराष्ट्र |
|
(iv) सर्वाधिक
सोयाबीन उत्पादक राज्य |
(स)
मध्यप्रदेश |
|
(v) जलाक्रांतता |
(द) भू
निम्नीकरण की समस्या |
रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न:
निम्न
वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
प्रश्न
1. ............... विभाग भू - उपयोग संबधी
अभिलेख रखता हैं।
उत्तर:
भू - राजस्व
प्रश्न
2. अर्थव्यवस्था का आकार ............... के
साथ बढ़ता है।
उत्तर:
समय
प्रश्न
3. भारत की अधिकतर जनसंख्या का प्रमुख भोजन
............... है।
उत्तर:
चावल
प्रश्न
4. चना .............. क्षेत्रों की फसल है।
उत्तर:
उपोष्ण कटिबंधीय
प्रश्न
5. भारत में .............. तथा
.............. किसानों की संख्या अधिक है।
उत्तर:
सीमांत, छोटे।
सत्य
- असत्य कथन सम्बन्धी प्रश्न:
निम्न
में से सत्य - असत्य कथनों की पहचान कीजिए:
प्रश्न
1. गैर - कृषि कार्यों में प्रयुक्त क्षेत्र
में वृद्धि दर अधिकतम है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न
2. मक्का एक व्यापारिक फसल है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न
3. कपास एक उष्ण कटिबंधीय फसल है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न
4. चाय एक रेशेदार फसल है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न
5. कॉफी एक उष्ण कटिबन्धीय रोपण कृषि है।
उत्तर:
सत्य
अति लघु उत्तरीय प्रश्न:
प्रश्न
1. भू - उपयोग सम्बन्धी अभिलेख कौन-सा
विभाग रखता है?
उत्तर:
भू - राजस्व विभाग।
प्रश्न
2. बंजर व व्यर्थ भूमि कौन - सी होती
है?
उत्तर:
बंजर व व्यर्थ भूमि के अन्तर्गत वह भूमि सम्मिलित होती है जो
प्रौद्योगिकी की सहायता से भी कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती; जैसे - बंजर पहाड़ी भू-भाग तथा खड्ड आदि।
प्रश्न
3. परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह भूमि जिस पर एक से पाँच वर्ष तक कोई फसल नहीं उगाई गयी है,
परती भूमि कहलाती है।
प्रश्न
4. भूमि को परती क्यों छोड़ा जाता है?
उत्तर:
निरन्तर फसलें उत्पादित करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती
है। इसलिए भूमि को कुछ समय के लिए परती छोड़ा जाता है ताकि वह अपनी खोई हुयी
उर्वरता को प्राकृतिक रूप से पुनः प्राप्त कर सके।
प्रश्न
5. निवल बोया गया क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
वह भूमि क्षेत्र जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं, वह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है।
प्रश्न
6. किसी भी क्षेत्र में भू - उपयोग किस
पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में भू - उपयोग अधिकांशतः वहाँ की आर्थिक क्रियाओं की
प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।
प्रश्न
7. वर्ष 1950 - 51 तथा 2014 - 15 के दौरान भू-उपयोग के किन संवर्गों के
अनुपात में कमी दर्ज की गई?
उत्तर:
1.
बंजर एवं
व्यर्थ भूमि
2.
विविध तरु
फसलों के अधीन क्षेत्र
3.
कृषि योग्य
व्यर्थ भूमि
4.
वर्तमान
परती के अतिरिक्त परती भूमि।
प्रश्न
8. चारागाह भूमि के बडते क्षेत्रफल का
प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
साझी चारागाह भूमि पर बढ़ते कानूनी रूप से कृषि विस्तार इसके बढ़ते
क्षेत्रफल का प्रमुख कारण है।
प्रश्न
9. भूमि को स्वामित्व के आधार पर कितने
भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
भूमि को स्वामित्व के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है:
1.
निजी भू -
सम्पत्ति
2.
साझा
सम्पत्ति संसाधन।
प्रश्न
10. साझा सम्पत्ति संसाधनों के प्रमुख
उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
सामुदायिक वन, चारागाह, ग्रामीण
जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजनिक स्थान साझा सम्पत्ति के प्रमुख उदाहरण हैं।
प्रश्न
11. कृषि गहनता क्या है अथवा शस्य गहनता
से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक निश्चित क्षेत्र पर एक फसल वर्ष में कितनी बार फसलों को उत्पादित
किया जाता है, कृषि फसलों की यही प्रवृत्ति कृषि गहनता या
शस्य गहनता कहलाती है।
प्रश्न
12. फसलों
की गहनता ज्ञात करने का सूत्र लिखिए अथवा कृषि गहनता का सूत्र बताइए।
उत्तर:
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प्रश्न
13. भारत की फसल ऋतुएँ कौन - कौन सी हैं?
अथवा
हमारे देश के उत्तरी व आन्तरिक भागों में प्रमुख फसल ऋतुएँ कौन -
सी हैं?
उत्तर:
1.
रबी
2.
खरीफ
3.
जायद।
प्रश्न
14. उत्तरी व दक्षिणी भारत में खरीफ ऋतु
में कौन - कौन सी फसलों की कृषि की जाती है?
उत्तर:
उत्तरी भारत में खरीफ ऋतु में मुख्यतः चावल, कपास,
बाजरा, ज्वार, मक्का,
तोरिया की कृषि की जाती है जबकि दक्षिणी भारत में खरीफ ऋतु में
मुख्यतः चावल, मक्का, रागी, ज्वार व मूंगफली आदि बोयी जाती हैं।
प्रश्न
15. उत्तरी व दक्षिणी भारत में रबी की
ऋतु में कौन - कौन सी फसलों की कृषि की जाती है?
उत्तर:
उत्तरी भारत में रबी की ऋतु में मुख्यतः गेहूँ, चना, सरसों व जौ तथा दक्षिणी भारत में चावल, मक्का, रागी व मूंगफली आदि फसलों की कृषि की जाती
है।
प्रश्न
16. आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोत के
आधार पर कृषि को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
1.
सिंचित कृषि
2.
वर्षा
निर्भर (बारानी) कृषि।
प्रश्न
17. सिंचाई कृषि कितने प्रकार की होती
है?
उत्तर:
1.
रक्षित
सिंचाई कृषि
2.
उत्पादित
सिंचाई कृषि।
प्रश्न
18. वर्षा निर्भर कृषि को कितने भागों
में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
1.
शुष्क भूमि
कृषि
2.
आई भूमि
कृषि।
प्रश्न
19. भारत में शुष्क भूमि कृषि किन
प्रदेशों तक सीमित है?
उत्तर:
भारत में शुष्क भूमि कृषि उन प्रदेशों तक सीमित है जहाँ वार्षिक
वर्षा 75 सेमी. से कम है।
प्रश्न
20. आई भूमि कृषि में कौन - कौन सी फसलें
उगायी जाती हैं?
उत्तर:
चावल, जूट व गन्ना आदि।
प्रश्न
21. भारत में विश्व के कितने प्रतिशत अनाज का उत्पादन होता है?
उत्तर:
भारत में विश्व के लगभग 11 प्रतिशत
अनाज का उत्पादन होता है।
प्रश्न
22. भारत में अनाजों को कितने भागों में
वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
1.
उत्तम अनाज
(चावल, गेहूँ)
2.
मोटे अनाज
(ज्वार, बाजरा, मक्का , रागी)।
प्रश्न
23. भारत के दो प्रमुख खाद्यान्नों के नाम
लिखिए। प्रत्येक फसल के दो प्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1.
गेहूँ उत्तर
प्रदेश व पंजाब।
2.
चावल -
पश्चिम बंगाल व पंजाब।
प्रश्न
24. भारत की अधिकांश जनसंख्या का मुख्य
भोजन क्या है?
उत्तर:
चावल।
प्रश्न
25. पश्चिमी बंगाल के किसानों द्वारा एक
कृषि वर्ष में उत्पादित चावल की तीन फसलों के नाम बताइए।
उत्तर:
औस, अमन तथा बोरो पश्चिम बंगाल की तीन चावल की
फसलें हैं।
प्रश्न
26. पंजाब तथा हरियाणा राज्यों में चावल
की अधिक उत्पादकता रहने के लिए उत्तरदायी कारक बताइए।
उत्तर:
उत्तम किस्म के बीजों, अपेक्षाकृत अधिक खाद
तथा कीटनाशकों का प्रयोग तथा शुष्क जलवायु के कारण - फसलों में रोग प्रतिरोधकता का
होना इन राज्यों में चावल की उच्च उत्पादकता के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारक हैं।
प्रश्न
27. भारत के प्रमुख पाँच चावल उत्पादक
राज्य कौन - कौन से हैं?
उत्तर:
1.
पश्चिम
बंगाल
2.
पंजाब
3.
उत्तर
प्रदेश
4.
आन्ध्र
प्रदेश
5.
तमिलनाडु।
प्रश्न
28. चावल की प्रति हेक्टेयर पैदावार
किन-किन राज्यों में अधिक है?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु,
आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं केरल आदि
राज्यों में चावल की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक है।
प्रश्न
29. भारत में विश्व के कितने प्रतिशत
चावल और गेहूँ का उत्पादन होता है?
उत्तर:
भारत में विश्व का 21.6 प्रतिशत चावल एवं 12.3
प्रतिशत गेहूँ का उत्पादन होता है।
प्रश्न
30. भारत के सबसे बड़े गेहूँ उत्पादक
राज्य का नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश।
प्रश्न
31. भारत में गेहूँ के पाँच प्रमुख
उत्पादक राज्य कौन - कौन से हैं?
उत्तर:
1.
उत्तर
प्रदेश
2.
पंजाब
3.
हरियाणा
4.
राजस्थान
एवं
5.
मध्य
प्रदेश।
प्रश्न
32. भारत में सर्वाधिक ज्वार उत्पादक
राज्य कौन सा है?
उत्तर:
महाराष्ट्र।
प्रश्न
33. भारत के कुल बोये गये क्षेत्र के
कितने प्रतिशत भाग पर बाजरा बोया जाता है?
उत्तर:
भारत के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 5 - 2 प्रतिशत
भाग पर बाजरा बोया जाता है।
प्रश्न
34. भारत के प्रमुख बाजरा उत्पादक राज्य
कौन - कौन से हैं?
उत्तर:
1.
महाराष्ट्र
2.
गुजरात
3.
उत्तर
प्रदेश
4.
राजस्थान
5.
हरियाणा।
प्रश्न
35. भारत में मक्का के प्रमुख उत्पादक
राज्य कौन - कौन से हैं?
उत्तर:
1.
कर्नाटक
2.
मध्य प्रदेश
3.
बिहार
4.
आन्ध्र
प्रदेश
5.
तेलंगाना
प्रश्न
36. प्रोटीन का प्रमुख स्रोत क्या है?
उत्तर:
प्रोटीन का प्रमुख स्रोत दालें हैं।
प्रश्न
37. दालें मिट्टी की उर्वरकता को कैसे
बढ़ाती हैं?
उत्तर:
दालें फलीदार फसलें हैं जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण के द्वारा मिट्टी की
प्राकृतिक उर्वरकता को बढ़ाती हैं।
प्रश्न
38. भारत की प्रमुख दालें कौन - कौन सी
हैं?
उत्तर:
1.
चना
2.
अरहर।
प्रश्न
39. उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों की एक
प्रमुख फसल का नाम लिखिए।
उत्तर:
चना उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों का एक प्रमुख फसल है।
प्रश्न
40. चना के प्रमुख उत्पादक राज्य कौन -
कौन से हैं?
उत्तर:
1.
मध्य प्रदेश
2.
उत्तर
प्रदेश
3.
महाराष्ट्र
4.
आन्ध्र
प्रदेश
5.
राजस्थान।
प्रश्न
41. भारत का सर्वाधिक अरहर उत्पादक
राज्य कौन - सा है?
उत्तर:
महाराष्ट्र।
प्रश्न
42. भारत की प्रमुख तिलहन फसलें कौन -
कौन सी हैं?
उत्तर:
मूंगफली, तोरिया, सरसों,
सोयाबीन एवं सूरजमुखी भारत की प्रमुख तिलहन फसलें हैं।
प्रश्न
43. मूंगफली उत्पादन में भारत का विश्व
में कितना योगदान है?
उत्तर:
भारत विश्व में 16.6 प्रतिशत मूंगफली का
उत्पादन करता है।
प्रश्न
44. मूंगफली के प्रमुख उत्पादक राज्य
कौन - कौन से हैं?
उत्तर:
गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु,
आन्ध्र प्रदेश।
प्रश्न
45. भारत में तोरिया एवं सरसों का
प्रमुख उत्पादक राज्य कौन - सा है?
उत्तर:
राजस्थान।
प्रश्न
46. सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादन करने
वाले किन्हीं दो राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1.
मध्य प्रदेश
2.
महाराष्ट्र।
प्रश्न
47. भारत की दो प्रमुख रेशेदार फसलों के
नाम लिखिए।
उत्तर:
1.
कपास
2.
जूट (पटसन)।
प्रश्न
48. भारत कितने प्रकार की कपास उत्पादित
करता है?
उत्तर:
भारत छोटे रेशे वाली (भारतीय) एवं लंबे रेशे वाली (अमेरिकी) दोनों
प्रकार की कपास का उत्पादन करता है।
प्रश्न
49. नरमा क्या है?
उत्तर:
लंबे रेशे वाली अमेरिकन कपास को भारत के उत्तरी - पश्चिमी भाग में 'नरमा' कहा जाता है।
प्रश्न
50. भारत का कपास उत्पादन में विश्व में
कौन - सा स्थान है?
उत्तर:
भारत का कपास के उत्पादन में विश्व में चीन के पश्चात दूसरा स्थान
है।
प्रश्न
51. भारत में कपास के अग्रणी उत्पादक
राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
1.
पंजाब
2.
हरियाणा
3.
राजस्थान
4.
महाराष्ट्र
5.
तेलंगाना
6.
कर्नाटक
7.
तमिलनाडु,
8.
गुजरात।
प्रश्न
52. जूट का उपयोग बताइए।
उत्तर:
जूट का उपयोग मोटे वस्त्र, थैले, बोरे व अन्य सजावटी सामान बनाने में किया जाता है।
प्रश्न
53. भारत का सबसे बड़ा जूट उत्पादक
राज्य कौन - सा है?
अथवा
भारत में पटसन उत्पादन का सबसे बड़ा राज्य कौन - सा है?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल।
प्रश्न
54. भारत के प्रमुख गन्ना उत्पादक
राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात में प्रमुख रूप
से गन्ना उत्पादित होता है।
प्रश्न
55. चाय की पत्तियों में कौन - से
तत्वों की अधिकता होती है?
उत्तर:
चाय की पत्तियों में कैफीन एवं टैनिन नामक तत्वों की अधिकता पायी
जाती है।
प्रश्न
56. भारत में चाय की खेती सर्वप्रथम कब
व कहाँ प्रारम्भ हुई?
उत्तर:
भारत में सर्वप्रथम चाय की खेती 1840 ई. में
असम की ब्रह्मपुत्र घाटी से प्रारम्भ हुई।
प्रश्न
57. चाय निर्यातक देशों में भारत का
विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
चाय निर्यातक देशों में भारत का चीन के पश्चात् विश्व में दूसरा
स्थान है।
प्रश्न
58. चाय के प्रमुख उत्पादक राज्य कौन -
कौन से हैं?
उत्तर:
1.
असम
2.
पश्चिम
बंगाल
3.
तमिलनाडु।
प्रश्न
59. पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग,
जलपाईगुड़ी एवं कूच बिहार जिलों को किस कृषि फसल के उत्पादन के लिए
जाना जाता है?
उत्तर:
चाय के उत्पादन के लिए।
प्रश्न
60. किन्हीं दो रोपण फसलों के नाम
लिखिए।
उत्तर:
1.
चाय
2.
कॉफी।
प्रश्न
61. भारत में अधिकांशतया कौन - सी किस्म
की कॉफी का उत्पादन होता है?
उत्तर:
भारत में अधिकांशतया उत्तम किस्म की 'अरेबिका'
कॉफी का उत्पादन होता है।
प्रश्न
62. भारत का विश्व में कॉफी उत्पादन में
कौन - सा स्थान है?
उत्तर:
सातवाँ स्थान। प्रथम स्थान ब्राजील का है।
प्रश्न
63. भारत का सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक
राज्य कौन - सा है?
उत्तर:
कर्नाटक।
प्रश्न
64. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्
सरकार ने कृषि उत्पादन में वद्धि हेतु कौन-कौन से उपाय किए?
उत्तर:
1.
व्यापारिक
फसलों के स्थान पर खाद्यान्नों का उगाया जाना।
2.
कृषि गहनता
को बढ़ाना।
3.
कृषि योग्य
बंजर तथा परती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना।
प्रश्न
65. हरित क्रांति से क्या आशय है?
उत्तर:
नवीन कृषि प्रौद्योगिकी एवं सिंचाई हेतु निश्चित जल आपूर्ति द्वारा
खाद्यान्नों के उत्पादन में होने वाली अभूतपूर्व वृद्धि हरित क्रांति कहलाती है।
प्रश्न
66. हरित क्रांति के अन्तर्गत सर्वप्रथम
किन-किन राज्यों में गेहूँ और चावल की उन्नत किस्मों का प्रयोग किया गया?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी
उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश एवं गुजरात राज्यों में।
प्रश्न
67. भारत में रासायनिक उर्वरकों की प्रति
हेक्टेयर खपत किन राज्यों में सर्वाधिक मिलती है?
उत्तर:
पंजाब एवं हरियाणा।
प्रश्न
68. भारतीय कृषि के जुड़वाँ संकट कौन -
कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय कृषि के जुड़वाँ संकट सूखा एवं बाढ़ हैं।
प्रश्न
69. भारतीय कृषि की कोई दो समस्याएँ
बताइए।
उत्तर:
1.
निम्न
उत्पादकता
2.
भूमि
सुधारों की कमी।
प्रश्न
70. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में
कितने प्रकार की भू - राजस्व प्रणालियाँ प्रचलित थी?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में महालवाड़ी, रैयतवाड़ी
एवं जींदारी नामक तीन प्रकार की भू-राजस्व प्रणालियाँ प्रचलित थीं।
प्रश्न
71. भारत में सिंचाई एवं कृषि विकास की
दोषपूर्ण नीतियों से उत्पन्न गम्भीर समस्या क्या है?
उत्तर:
भूमि संसाधनों का निम्नीकरण भारत में सिंचाई एवं कृषि विकास की
दोषपूर्ण नीतियों से उत्पन्न एक गम्भीर समस्या है।
प्रश्न
72. मृदा परिच्छेदिका में जहरीले तत्वों
के मिश्रण का क्या कारण है?
उत्तर:
कीटनाशक रसायनों का अत्यधिक प्रयोग।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1):
प्रश्न
1. प्रतिवेदन क्षेत्र एवं भौगोलिक
क्षेत्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
रिपोर्टिंग क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्र से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
भू - उपयोग सम्बन्धी अभिलेख भू - राजस्व विभाग रखता है। प्रतिवेदन
क्षेत्र (रिपोर्टिंग क्षेत्र) एवं भौगोलिक क्षेत्र में अंतर होता है। भू - उपयोग
संवर्गों का योग कुल प्रतिवेदन क्षेत्र के बराबर होता है। भारत की प्रशासकीय
इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी भारतीय सर्वेक्षण विभाग प्रदान करता है। भू
- राजस्व विभाग एवं सर्वेक्षण विभाग दोनों में मूलभूत अंतर यह है कि भू - राजस्व
द्वारा प्रस्तुत क्षेत्रफल पत्रों के अनुसार रिपोर्टिंग क्षेत्र पर आधारित है,
जो कि कम या अधिक हो सकता है। कुल भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सर्वेक्षण
विभाग के सर्वेक्षण पर आधारित है एवं यह स्थायी होता है।
प्रश्न
2. वर्गीकृत वन क्षेत्र तथा वनों के
अन्तर्गत वास्तविक क्षेत्र में क्या अन्तर है?
उत्तर:
वर्गीकृत वन क्षेत्र के अन्तर्गत वह समस्त क्षेत्र सम्मिलित होता है
जहाँ वन विकसित किए जा सकते हैं। भूराजस्व अभिलेखों में इसी परिभाषा को अपनाया गया
है। वनों के अन्तर्गत वास्तविक क्षेत्र में वे समस्त क्षेत्र सम्मिलित होते है
जहाँ वनों का अस्तित्व वास्तविक रूप में मिलता है। स्पष्ट है कि वर्गीकृत वन
क्षेत्र के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वहाँ वास्तविक रूप से वन मिलें। यही कारण है
कि वर्गीकृत वन क्षेत्र के क्षेत्रफल में वास्तविक वन क्षेत्र की तुलना में वृद्धि
होना स्वाभाविक है।
प्रश्न
3. परती भूमि क्या है? परती भूमि की अवधि को किस तरह कम किया जा सकता है?
उत्तर:
परती भूमि: एक ही खेत पर लम्बे समय तक लगातार फसलें उगाने से मृदा
के पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं। मृदा की उपजाऊ शक्ति को पुनः प्राप्त करने के
लिए भूमि को एक कृषि वर्ष बिना कृषि किए खाली छोड़ दिया जाता है। इस भूमि को परती
भूमि कहते हैं। इस विधि से भूमि की क्षीण उर्वरता प्राकृतिक रूप से वापस आ जाती
है। परती भूमि में उर्वरकों के अधिक उपयोग से परती भूमि की अवधि को घटाया जा सकता
है।
प्रश्न
4. परती भूमि कितने प्रकार की होती है?
विवेचना कीजिए।
उत्तर:
परती भूमि निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:
1.
वर्तमान
परती भूमि,
2.
पुरातन परती
भूमि।
1. वर्तमान
परती भूमि: वह भूमि जो एक कृषि वर्ष या उससे कम समय तक
कृषि विहीन रहती है, वर्तमान परती भूमि कहलाती है।
भूमि की गुणवत्ता कायम रखने के लिए भूमि को परती रखना आवश्यक होता है।
2. पुरातन
परती भूमि: ऐसी कृषि योग्य भूमि जो एक वर्ष से अधिक लेकिन
पाँच वर्षों से कम समय तक कृषि विहीन रहती है तो उसे पुरातन परती भूमि कहा जाता
है।
प्रश्न
5. अर्थव्यवस्था का आकार किस प्रकार भू
उपयोग को प्रभावित करता है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के आकार को उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के
रूप में आंका जाता है। समय के साथ अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि होती है। यह
वृद्धि जनसंख्या में वृद्धि, परिवर्तित आय स्तर, उपलब्ध प्रौद्योगिकी एवं अन्य सम्बन्धित कारकों पर निर्भर करती है। इससे
भूमि पर जनसंख्या के दबाव में वृद्धि होती है तथा सीमांत भूमि का भी प्रयोग होने
लगता है।
प्रश्न
6. अर्थव्यवस्था की संरचना भू-उपयोग को
किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
समय के साथ - साथ अर्थव्यवस्था की संरचना में भी परिवर्तन आता रहता
है। प्राथमिक क्रियाओं की अपेक्षा द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाएँ अधिक तीव्र गति से
प्रगति करती हैं। इस प्रकार के परिवर्तन भारत जैसे विकासशील देश में अधिक देखने को
मिलते हैं। इस प्रक्रिया में कृषि भूमि गैर कृषि सम्बन्धित कार्यों में प्रयुक्त
होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि नगर तेजी से फैलते हैं तथा नगरों की इमारतें
नगरों के आसपास की कृषि भूमि पर बनायी जाती हैं।
प्रश्न
7. भूमि पर कृषि के दबाव के बढ़ने के
क्या कारण हैं?
अथवा
कृषि भूमि पर निरन्तर बढ़ते दबाव के क्या कारण हैं?
उत्तर:
समय बीतने के साथ - साथ भूमि पर कृषि का दबाव बढ़ता चला जा रहा है।
भूमि पर कृषि के दबाव के बढ़ने के दो प्रमुख कारण हैं:
1.
नगरीयकरण की
प्रवृत्ति से कृषि योग्य भूमि आवासी एवं परिवहन के कार्यों में प्रयुक्त होती है
जिससे कृषि योग्य भूमि घटती है।
2.
कृषि सेक्टर
पर निर्भर करने वाली जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती रहती है।
3.
प्रायः
विकासशील देशों में कृषि पर निर्भर व्यक्तियों का अनुपात अपेक्षाकृत धीरे-धीरे कम
होता है। जबकि कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान तीव्रता से कम होता है।
प्रश्न
8. उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत में
विभिन्न ऋतुओं में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख कृषि फसलों का विवरण दीजिए।
उत्तर
तालिका : भारतीय कृषि ऋतु कृषि ऋतु
|
रबी
फसल |
खरीफ
फसल |
|
(i) वर्षा
ऋतु के पश्चात् शीतकाल में अक्टूबर-नवम्बर में बोई जाने वाली फसलें रबी की फसलें
कहलाती हैं। |
(i) दक्षिण
- पश्चिम मानसून के आगमन के समय ग्रीष्मकाल में बोयी जाने वाली फसलें खरीफ की
फसलें कहलाती हैं। |
|
(ii) इसके
अन्तर्गत मुख्यत: शीतोष्ण व उपोष्ण कटिबन्धीय फसलें जैसे गेहूँ, चना व सरसों आदि की बुआई की जाती है। |
(ii) इसके
अन्तर्गत मुख्य रूप से कटिबन्धीय फसलें जैसे चावल, ज्वार,
कपास, जूट, बाजरा व
अरहर आदि की कृषि की जाती है। |
|
(iii) ये
फसलें ग्रीष्मकाल से पूर्व मार्च-अप्रैल में पक कर तैयार हो जाती हैं। |
(iii) ये
फसलें शीतकाल से पहले पक कर तैयार हो जाती हैं। |
प्रश्न 9. रबी और खरीफ की फसलों में
अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रबी और खरीफ की फसलों में निम्नलिखित अंतर हैंरबी फसल खरीफ फसल:
|
कृषि ऋतु |
प्रमुख फसलें |
|
|
उत्तरी भारत |
दक्षिणी भारत |
|
|
खरीफ (जून से सितंबर) |
चावल, कपास, बाजरा,
मक्का , ज्वार, अरहर
(तुर) |
चावल, मक्का, रागी,
ज्वार तथा मूंगफली |
|
रबी (अक्टूबर से मार्च) |
गेहूँ, चना, तोरिया,
सरसों, जौ |
चावल, मक्का, रागी,
मूंगफली |
|
जायद (अप्रैल से जून) |
वनस्पति, सब्जियाँ, फल, चारा फसलें |
चावल, सब्जियाँ, चारा
फसलें |
प्रश्न
10. उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत में
पृथक् फसल ऋतुएँ नहीं पायी जाती हैं, क्यों?
उत्तर:
उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत में पृथक् फसल ऋतुएँ नहीं पायी जाती
हैं क्योंकि यहाँ का अधिकतम तापमान वर्ष भर सम एवं किसी भी उष्ण कटिबन्धीय फसल की
बुआई में सहायक है। इसके लिए पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध होती है। इसलिए देश के इस
भाग में (दक्षिण भारत में) जहाँ पर्याप्त मात्रा में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध हैं,
एक कृषि वर्ष में एक ही फसल तीन बार उगाई जाती है।
प्रश्न
11. रक्षित सिंचाई कृषि एवं उत्पादक
सिंचाई कृषि में अन्तर बताइए।
उत्तर:
1.
रक्षित
सिंचाई कृषि: इस प्रकार की कृषि में वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई द्वारा
पूरा किया जाता है। इस प्रकार की सिंचाई का मुख्य उद्देश्य अधिकतम कृषिगत क्षेत्र
को पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध कराना है।
2.
उत्पादक
सिंचाई कृषि: उत्पादक सिंचाई कृषि में जल उपलब्ध कराने की मात्रा रक्षित सिंचाई से
अधिक होती है। इस कृषि का उद्देश्य फसलों को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराकर
अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना है।
प्रश्न
12. खाद्यान्न फसलों के वर्गीकरण एवं
महत्व को बताइए।
उत्तर:
अनाज की संरचना के आधार पर खाद्यान्नों को अनाज एवं दालों में वर्गीकृत किया
जाता है। भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था में खाद्यान्न फसलों का महत्व बहुत अधिक है।
देश के समस्त बोये गए क्षेत्र के दो तिहाई भाग पर खाद्यान्न फसलें उगायी जाती हैं।
देश के समस्त भागों में खाद्यान्न फसलों का महत्त्वपूर्ण स्थान है, चाहे वहाँ जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था अथवा व्यापारिक कृषि अर्थव्यवस्था
पर आधारित हो। भारत विश्व का लगभग 11 प्रतिशत अनाज उत्पादित
करता है।
प्रश्न
13. पंजाब और हरियाणा राज्यों में वर्षा
की कमी के बावजूद चावल की कृषि की जाती है, क्यों?
उत्तर:
पंजाब और हरियाणा पारंपरिक रूप से चावल उत्पादक राज्य नहीं हैं।
हरित क्रांति के अन्तर्गत पंजाब व हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में चावल की कृषि
सन् 1970 से प्रारम्भ की गई। उत्तम किस्म के बीजों, अपेक्षाकृत अधिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग तथा शुष्क जलवायु के कारण
फसलों में रोग प्रतिरोधकता आदि कारकों ने इन राज्यों में चावल की पैदावार बढ़ाने
में सहायता प्रदान की है। साथ ही सिंचाई की पर्याप्त सुविधा ने चावल की कृषि को
बढ़ाया है।
प्रश्न
14. भारत के प्रमुख ज्वार उत्पादक
क्षेत्रों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत के कुल बोये गये क्षेत्र के 5.3 प्रतिशत
भाग पर ज्वार की कृषि की जाती है। ज्वार दक्षिणी भारत तथा मध्य भारत के
अर्द्धशुष्क क्षेत्रों की प्रमुख खाद्य फसल है। महाराष्ट्र राज्य में देश की 50
प्रतिशत से अधिक ज्वार उत्पादित की जाती है, जबकि
कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश
तथा तेलंगाना ज्वार उत्पादन की दृष्टि से भारत के अन्य प्रमुख राज्य हैं। दक्षिणी
राज्यों में ज्वार, रबी तथा खरीफ दोनों ऋतुओं में उत्पादित
की जाती है।
प्रश्न
15. भारत में बाजरा तथा मक्का उत्पादक
राज्यों का विवरण दीजिए।
उत्तर;
बाजरा तथा मक्का भारत के अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में उत्पादित की
जाने वाली प्रमुख फसलें हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा हरियाणा भारत के प्रमुख
बाजरा उत्पादक राज्य हैं। सूखा प्रतिरोधक किस्मों के आगमन तथा सिंचाई सुविधाओं के
विस्तार से गुजरात व हरियाणा राज्यों की प्रति हेक्टेयर उपज में उल्लेखनीय वृद्धि
हुई है। भारत में मक्का उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, आन्ध्र
प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, तेलगांना तथा उत्तर प्रदेश सम्मिलित हैं। दक्षिणी राज्यों में मक्का की
प्रति हेक्टेयर उपज अपेक्षाकृत अधिक मिलती है।
प्रश्न
16. भारत के प्रमुख दलहन उत्पादक
क्षेत्रों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
दालें - दालें फलीदार फसलें हैं जो मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण
के द्वारा मिट्टी के उपजाऊपन में प्राकृतिक रूप से वृद्धि करती हैं। भारत विश्व का
प्रमुख दाल उत्पादक देश है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 11 प्रतिशत भाग पर विभिन्न दालों की खेती की जाती है। शुष्क क्षेत्रों में यह
वर्षा पर आधारित फसल होने के कारण दालों की प्रति हेक्टेयर उपज कम मिलती है। चना
तथा अरहर भारत में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें हैं। मध्य प्रदेश,
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना व राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात आदि प्रमुख दलहन उत्पादक राज्य हैं।
प्रश्न
17. भारत में कपास उत्पादन के प्रमुख
क्षेत्रों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में कपास उत्पादन के निम्नलिखित तीन क्षेत्र महत्त्वपूर्ण
हैं:
1.
उत्तर - पश्चिम
भारत में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तरी राजस्थान।
2.
पश्चिमी
भारत में गुजरात व महाराष्ट्र।
3.
दक्षिणी
भारत में आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक तथा
तमिलनाडु राज्य।
इनमें
महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र
प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब तथा हरियाणा
भारत के अग्रणी कपास उत्पादक राज्य हैं। महाराष्ट्र के वर्षा निर्भर कपास
क्षेत्रों में कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बहुत कम मिलता है जबकि पंजाब,
हरियाणा तथा उत्तरी राजस्थान के सिंचित क्षेत्रों में कपास का प्रति
हेक्टेयर उत्पादन अधिक रहता है।
प्रश्न
18. भारत में जूट उत्पादक क्षेत्रों का
विवरण दीजिए।
उत्तर:
कपास के बाद भारत में उत्पादित की जाने वाली यह दूसरी महत्त्वपूर्ण
रेशेदार फसल है। जूट का उपयोग मोटे वस्त्र, थैले, बोरे तथा अन्य सजावटी सामान निर्मित करने में किया जाता है। देश के कुल
बोये गये क्षेत्र के केवल 0.5 प्रतिशत भाग पर ही जूट की कृषि
की जाती है, जबकि भारत में विश्व के कुल जूट उत्पादन का लगभग
60 प्रतिशत भाग प्रतिवर्ष उत्पादित किया जाता है। पश्चिम
बंगाल में देश के कुल जूट उत्पादन का लगभग तीन-चौथाई भाग उत्पादित किया जाता है।
बिहार तथा आसाम जूट उत्पादन करने वाले भारत के अन्य प्रमुख राज्य हैं।
प्रश्न
19. भारत में गन्ना उत्पादक क्षेत्रों
का विवरण दीजिए।
उत्तर:
गन्ना एक उष्ण कटिबन्धीय फसल है। भारत में इसकी खेती अधिकांशतया
सिंचित क्षेत्रों में की जाती है। विश्व के गन्ना उत्पादक राष्ट्रों में भारत का
ब्राजील के बाद दूसरा स्थान है। भारत में विश्व का लगभग 19 प्रतिशत
गन्ना उत्पादित किया जाता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना के उत्तरी-पश्चिमी भाग, गुजरात तथा कर्नाटक
भारत के महत्त्वपूर्ण गन्ना उत्पादक राज्य हैं। उत्तर प्रदेश राज्य में देश का
लगभग 40 प्रतिशत गन्ना उत्पादित किया जाता है। उत्तर भारत की
तुलना में दक्षिणी भारत के गन्ना उत्पादक राज्यों में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज
अधिक है।
प्रश्न
20. चाय की कृषि पहाड़ियों के निचले
ढालों पर क्यों की जाती है?
उत्तर:
चाय एक उष्ण कटिबन्धीय रोपण फसल है। चाय का पेय पदार्थ के रूप में
उपयोग किया जाता है। चाय की कृषि पहाड़ियों के निचले ढालों पर की जाती है क्योंकि
चाय के पौधों के विकास के लिए इसकी जड़ों में जल एकत्रित होना हानिकारक होता है।
पहाड़ी ढालों पर इसकी खेती करने से जल का अपवाह सरलता से हो जाता है एवं चाय के
पौधों की जड़ों में जल एकत्रित नहीं हो पाता है। यही कारण है कि चाय की कृषि
पहाड़ियों के निचले ढालों पर की जाती है।
प्रश्न
21. भारत में कॉफी की कृषि पर संक्षिप्त
टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कॉफी एक उष्ण कटिबन्धीय रोपण फसल है। कॉफी की तीन किस्में अरेबिका,
रोबस्ता तथा लिबेरिका हैं। भारत में प्रमुख रूप से अरेबिका किस्म की
कॉफी उत्पादित की जाती है। भारत में विश्व के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 3.7
प्रतिशत भाग उत्पादित किया जाता है। विश्व के कॉफी उत्पादक
राष्ट्रों में भारत का विश्व में सातवाँ स्थान है।
कर्नाटक
भारत में कॉफी उत्पादन करने वाला अग्रणी राज्य है जहाँ भारत की दो-तिहाई से अधिक
कॉफी उत्पादित की जाती है। केरल तथा तमिलनाडु भारत में कॉफी उत्पादन करने वाले
अन्य प्रमुख राज्य हैं। कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु राज्यों में
पश्चिमी घाट की उच्च भूमि पर कॉफी की कृषि प्रमुखता से की जाती है।
प्रश्न
22. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के
महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है। भारत
में कृषि के महत्व को इस तथ्य से जाना जा सकता है कि देश के 58 प्रतिशत भू - भाग पर कृषि की जाती है जबकि विश्व में कुल भूमि के केवल 12
प्रतिशत भू - भाग पर कृषि की जाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के
पश्चात् भारत ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद कृषि में उल्लेखनीय प्रगति की है तथा
स्थानीय लोगों के जीवन का मुख्य आधार भी कृषि ही है।
प्रश्न
23. वर्तमान में भारतीय कृषि की प्रमुख
समस्याएँ कौन - कौन सी हैं?
उत्तर:
वर्तमान में भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं:
1.
अनियमित
मानसून पर निर्भरता
2.
निम्न
उत्पादकता
3.
भूमि
सुधारों की कमी
4.
छोटे खेत
एवं विखण्डित जोत
5.
असिंचित
क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अल्प रोजगारी
6.
वाणिज्यीकरण
का अभाव
7.
कृषि योग्य
भूमि का निम्नीकरण
8.
वित्तीय
संसाधनों की बाध्यताएँ एवं ऋणग्रस्तता।
प्रश्न
24. भूमि सुधारों में कमी भारतीय कृषि
की एक अहम् समस्या है कैसे?
उत्तर:
भारत में भूमि सुधारों को पर्याप्त यात्रा में गति नहीं दी जा रही
है। कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण सुधारों को पूरी तरह लागू नहीं किया गया
है। अधिकतर राज्य सरकारों ने राजनीतिक रूप से शक्तिशाली जमीदारों के खिलाफ कठोर
राजनीतिक निर्णय लेने में टालमटोल किया है। भूमि सुधार लागू न होने के कारण कृषि
योग्य भूमि का असमान वितरण जारी है जिससे कृषि विकास रूपी अनेक बाधाएँ उत्पन्न हो
रही हैं।
प्रश्न
25. "मानसून की अनियमितता भारतीय
कृषि को बहुत अधिक प्रभावित करती है।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में कुल कृषिगत क्षेत्र का लगभग दो - तिहाई भाग फसलों के
उत्पादन के लिए प्रत्यक्ष रूप से मानसून पर निर्भर रहता है। भारत में
दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से होने वाली वर्षा अनियमित होने के साथ - साथ
अनिश्चित होती है। जहाँ अनियमित मानसून से एक ओर राजस्थान तथा अन्य क्षेत्रों में
होने वाली न्यून वर्षा अत्यधिक अविश्वसनीय है।
वहीं
दूसरी ओर भारत के अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों में प्राप्त होने वाली
वर्षा में भी काफी उतार-चढ़ाव देखा जाता है जिसके कारण ऐसे क्षेत्र कभी बाढ़ग्रस्त
तो कभी सूखाग्रस्त हो जाते हैं। सूखा और बाढ़ दोनों के प्रकोप से कृषि फसलों को
गम्भीर हानि का सामना करना पड़ता है। जब वर्षा की प्राप्ति हो जाती है तो फसलों का
उत्पादन हो जाता है किन्तु वर्षा अभाव के कारण फसलें उत्पादित नहीं हो पाती इसी
कारण भारतीय कृषि को मानसून का जुआ कहा जाता है।
लघु
उत्तरीय प्रश्न (SA2):
प्रश्न
1. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि, वर्तमान परती भूमि एवं पुरातन परती भूमि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषि योग्य व्यर्थ भूमि, वर्तमान परती भूमि
एवं पुरातन परती भूमि में निम्नलिखित अंतर हैं:
1. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि: इस वर्ग के
अन्तर्गत उस भूमि को सम्मिलित किया जाता है जिस पर पिछले पाँच वर्षों से अथवा इससे
अधिक समय से कृषि नहीं की गई हो। आधुनिक भूमि सुधार तकनीकों के प्रयोग से इसे कृषि
योग्य बनाया जा सकता है।
2. वर्तमान परती भूमि: यह वह भूमि होती
है जिस पर एक कृषि वर्ष या इससे कम अवधि के लिए कृषि नहीं की जाती है। इस भूमि के
विस्तार में परिवर्तन आता रहता है। जब कई वर्षों तक भूमि पर कृषि की जाती है तो
उसकीउपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। भूमि को परती रखने से उसकी उपजाऊ शक्ति प्राकृतिक
रूप में वापस आ जाती है।
3. पुरातन परती भूमि: यह भी कृषि योग्य
भूमि होती है जो एक वर्ष से अधिक लेकिन पाँच वर्षों से कम समय तक कृषि रहित रहती
है। यह वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त परती भूमि होती है। परती भूमि के विस्तार को
उत्तम बीज, पर्याप्त खाद व सिंचाई आदि के उचित प्रयोग से कम
किया जा सकता है।
प्रश्न
2. भारत में भू - उपयोग को प्रभावित
करने वाले अर्थव्यवस्था के तीन परिवर्तकों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
भारत में भू-उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के परिवर्तक
- भारत में समय के साथ भू - उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के
निम्नलिखित तीन परिवर्तक होते हैं:
1.
अर्थव्यवस्था
का आकार
2.
अर्थव्यवस्था
की संरचना में परिवर्तन
3.
कृषि भूमि
पर बढ़ता दबाव।
(i) अर्थव्यवस्था
का आकार:
अर्थव्यवस्था के आकार को उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य के
संदर्भ में जाना जाता है। अर्थव्यवस्था का आकार समय के साथ बढ़ता है, जो बढ़ती हुई जनसंख्या, बदलते आय स्तर, उपलब्ध तकनीक तथा इसी प्रकार के अन्य कारकों पर निर्भर होता है। इसका
परिणाम यह होता है कि समय के साथ भूमि पर अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का
दबाव बढ़ता जाता है तथा इसके लिए सीमांत भूमि को भी उपयोग में लाया जाता है।
(ii) अर्थव्यवस्था
की संरचना में परिवर्तन:
समय के साथ अर्थव्यवस्था की संरचना में भी परिवर्तन आता जाता है।
प्राथमिक सेक्टर की तुलना में समय के साथ द्वितीयक तथा तृतीयक सेक्टरों में अधिक
तेजी से वृद्धि होती जाती है। इस प्रक्रिया में कृषि भूमि का उपयोग धीरे-धीरे
गैर-कृषिगत कार्यों में होने लगता है।
(iii) कृषि
भूमि पर बढ़ता दबाव:
समय के साथ यद्यपि किसी विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में कृषि
क्रिया-कलापों का योगदान कम होता जाता है, लेकिन कृषि भूमि
पर कृषि क्रियाकलापों का दबाव भी बढ़ता जाता है। इसके लिए निम्नलिखित दो कारक
उत्तरदायी होते हैं
(अ) सामान्यतया विकासशील देशों
में कृषि पर निर्भर जनसंख्या का प्रतिशत क्रमशः समय के साथ घटता जाता है जबकि कृषि
का सकल घरेलू उत्पादन में योगदान तेजी से कम होता जाता है।
(ब) कृषि क्रियाकलापों पर निर्भर
जनसंख्या समय के साथ - साथ बढ़ती जाती है।
प्रश्न
3. भू - उपयोग के कौन-कौन से संवर्गों
के अनुपात में वृद्धि दर्ज की गई है और क्यों?
अथवा
भू - उपयोग के संवर्गों में वृद्धि के कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर:
भू - उपयोग के संवर्गों: वन क्षेत्रों, गैर
कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि स्थायी चारागाह भूमि, निवल
बोये गए क्षेत्र एवं वर्तमान परती भूमि आदि के अनुपात में वृद्धि दर्ज की गई है।
इस वृद्धि के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं.
(i) सर्वाधिक वृद्धि गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त क्षेत्र में हुई
है। इसका कारण यह है कि औद्योगिक एवं सेवा सेक्टरों में वृद्धि के कारण गाँवों एवं
नगरों के आकार में वृद्धि हो रही है तथा अधिकांश निर्माण कृषि योग्य भूमि एवं कृषि
योग्य परन्तु व्यर्थ भूमि पर हो रहे हैं।
(ii) देश में वन क्षेत्रों में वृद्धि सीमांकन के कारण हुई है न कि
देश में वास्तविक वन आच्छादित क्षेत्र के कारण।
(iii) देश में वर्तमान परती भूमि में वृद्धि दो कार में से हुई है।
वर्तमान परती क्षेत्र में समयानुसार बहुत अधिक उतारचढ़ाव की प्रवृत्ति रही है जो
वर्षा की अनियमितता एव फसल चक्र पर निर्भर है।
(iv) निवल बोये गए क्षेत्र में वृद्धि का कारण नवीन तकनीकी रही है
जिसने बंजर व व्यर्थ भूमि में सुधार कर उसमें कृषि की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया
है।
प्रश्न
4. भारत में भू - उपयोग के किन-किन
संवर्गों में कमी हुई है और क्यों?
अथवा
भू - उपयोग के चार वर्गों में गिरावट के कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत में भू - उपयोग के चार संवर्गों के क्षेत्रीय अनुपात में
गिरावट आई है, वे निम्नलिखित हैं:
1.
बंजर व
व्यर्थ भूमि
2.
कृषि योग्य
व्यर्थ भूमि
3.
विविध तरु
फसलों के अन्तर्गत क्षेत्र
4.
पुरातन परती
भूमि।
भू -
उपयोग के इन संवर्गों में गिरावट के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
1.
समय के साथ - साथ जैसे - जैसे कृषि एवं गैर
कृषि कार्यों हेतु भूमि पर दबाव बढ़ता है, वैसे - वैसे
तकनीकी विकास से व्यर्थ एवं कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में कमी आती जाती है।
2.
पुरातन परती
भूमि में कमी का कारण कृषि भूमि पर बढ़ता तकनीकी प्रभाव है।
3.
विविध तरु
फसलों में कमी का कारण बढ़ता जनसांख्यिकीय दबाव है।
प्रश्न
5. साझा सम्पत्ति संसाधन क्या हैं?
इन संसाधनों की उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
राज्यों के स्वामित्व में सामुदायिक उपयोग की भूमियों को साझा
सम्पत्ति संसाधन कहा जाता है। इन संसाधनों से पशुओं के लिए चारा, घरेलू उपयोग हेतु ईंधन, लकड़ी तथा अन्य वन उत्पाद;
जैसे-फल, रेशे, गिरी तथा
औषधीय पौधे आदि उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार की भूमि छोटे कृषकों, भूमिहीन कृषकों तथा समाज के अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए बहुत
महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि ये लोग इसी भूमि पर पशुपालन से प्राप्त
आजीविका पर निर्भर करते हैं। इन्हीं संसाधनों से ग्रामीण गरीब महिलाएँ चारा व ईंधन
को इकट्ठा करती हैं।
साझा
सम्पत्ति संसाधनों के प्रयोग पर सभी का अधिकार होता है जिस कारण से इसे सामुदायिक
प्राकृतिक संसाधन भी कहते हैं। सामुदायिक वन, चारागाह, ग्रामीण जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजनिक स्थल साझा सम्पत्ति के ऐसे
उदाहरण हैं जिसका उपयोग एक परिवार से बड़ी इकाई द्वारा किया जाता है तथा वही इनके
प्रबन्धन का कार्य भी करती है।
प्रश्न
6. किन कारणों से भू - संसाधनों का
महत्व कृषकों के लिए बहुत अधिक होता है?
अथवा
"भूसंसाधनों का महत्व उन लोगों के लिए अधिक है, जिनकी आजीविका कृषि पर निर्भर है" उपयुक्त कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से कृषकों के लिए भू-संसाधनों का महत्व बहुत अधिक
होता है
(i) कृषि पूर्णतया भूमि पर
आधारित है तथा द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाओं की अपेक्षा भूमि का कृषि में महत्व
अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीनता प्रत्यक्ष रूप से वहाँ की गरीबी से
सम्बन्धित है। अर्थात् ग्रामीण क्षेत्रों में किसी कृषक के पास भूमि का होना या न
होना उसकी अमीरी या गरीबी का सूचक है।
(ii) भूमि की गुणवत्ता कृषि
उत्पादकता को प्रभावित करती है। अन्य कार्य इससे इतना अधिक प्रभावित नहीं होते।
(iii) ग्रामीण क्षेत्रों में भू-स्वामित्व आर्थिक सम्पन्नता के
अतिरिक्त सामाजिक समृद्धि का भी सूचक होता है। इससे सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि
होती है तथा प्राकृतिक आपदाओं व निजी विपत्ति से सुरक्षा की भावना भी उत्पन्न होती
है।
प्रश्न
7. शस्य गहनता से क्या आशय है? भारत में शस्य गहनता के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शस्य गहनता या कृषि गहनता का सम्बन्ध कृषि भूमि के गहन उपयोग से
होता है। एक कृषि वर्ष में एक ही खेत में कई फसलों को बो कर अधिक उत्पादन प्राप्त
करना शस्य गहनता कहलाता है अथवा सकल बोये गये क्षेत्र तथा शुद्ध बोये गये क्षेत्र
के अनुपात को शस्य गहनता कहा जाता है।
भूमि
बचत प्रौद्योगिकी विकसित करना वर्तमान में एक अति आवश्यक कार्य है। भूमि बचत
प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत निम्नलिखित दो संवर्ग सम्मिलित हैं
1.
प्रति इकाई
भूमि में फसल विशेष की उत्पादकता बढ़ाना।
2.
एक कृषि
वर्ष में गहन भूमि उपयोग (शस्य गहनता) से सभी फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना।
भारत
जैसे देश में जहाँ भूमि की कमी तथा श्रम की अधिकता है, शस्य गहनता की आवश्यकता न केवल कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए आवश्यक है
वरन् इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या को हल करने में सहायता
मिलेगी।
प्रश्न
8. भारत में विभिन्न फसल ऋतुएँ कौन -
कौन सी हैं? प्रत्येक का विवरण दीजिए।
अथवा
भारतीय कृषि वर्ष में कौन-कौन से शस्य मौसम पाये जाते हैं?
संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
खरीफ, रबी एवं जायद फसल ऋतुओं का संक्षिप्त
विवरण दीजिए।
अथवा
भारतीय कृषि ऋतुओं के बारे में बताते हुए उनकी विशेषताओं का
उल्लेख करो।
उत्तर:
भारत में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ (शस्य मौसम) हैं जिनका विवरण
निम्नलिखित है:
(i) खरीफ - खरीफ का मौसम दक्षिण -
पश्चिमी मानसून के प्रारम्भ होते ही आ जाता है। इस मौसम की प्रमुख फसलें - चावल,
कपास, जूट, ज्वार,
बाजरा व अरहर आदि हैं। खरीफ ऋतु का समय जून से सितम्बर के मध्य माना
जाता है। इस फसल ऋतु में बोयी जाने वाली फसलों को मुख्य रूप से अधिक तापमान एवं
अपेक्षाकृत अधिक आर्द्रता की आवश्यकता पड़ती है।
(ii) रबी- खरीफ का मौसम समाप्त होने के
पश्चात् ही रबी का मौसम प्रारंभ हो जाता है। यह फसल ऋतु शीत ऋतु के मौसम के अनुरूप
अक्टूबर से मार्च तक मानी जाती है। इस मौसम में वे फसलें उगायी जाती हैं जो कम तापमान
तथा अपेक्षाकृत कम वर्षा में पनप सकती हैं। इस मौसम में कम तापमान की आवश्यकता
वाली शीतोष्ण एवं उपोष्ण कटिबन्धीय फसलें उगायी जाती हैं। इन फसलों में गेहूँ,
चना, सरसों आदि प्रमुख हैं।
(iii) जायद: जायद एक अल्पकालिक
ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु है। यह फसल ऋतु रबी की कटाई के पश्चात् ही प्रारम्भ हो जाती
है। इसकी प्रमुख फसलें चैवला, सब्जियाँ, फल, तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी एवं चारे की फसलें आदि हैं। इस फसल ऋतु
में विभिन्न फसलों की कृषि सिंचित भूमि पर की जाती है।
प्रश्न
9. सिंचित कृषि क्या होती है? इसके प्रकार तथा उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सिंचित कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि पद्धति से है जिसमें कृषि उत्पादन
प्राप्त करने के लिए सिंचाई साधनों द्वारा जल की आपूर्ति की जाती है। सिंचाई के
उद्देश्य के आधार पर सिंचित कृषि के निम्नलिखित दो वर्ग हैं:
1.
रक्षित
सिंचाई कृषि
2.
उत्पादक
सिंचाई कृषि।
(i)
रक्षित सिंचाई कृषि: इस
कृषि में वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई द्वारा पूरा किया जाता है। इस
प्रकार की सिंचाई का मुख्य उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने
से बचाने के लिए अधिकतम कृषिगत क्षेत्र को पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध कराना है।
(ii)
उत्पादक सिंचाई कृषि: उत्पादक सिंचाई कृषि में जल उपलब्ध कराने की मात्रा रक्षित सिंचाई से अधिक
होती है। इस कृषि का उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने से
बचाने के लिए फसलों को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता
प्राप्त करना है।
प्रश्न
10. शुष्क भूमि कृषि तथा आर्द्र कृषि
भूमि की विवेचना कीजिए।
अथवा
शुष्क कृषि एवं आर्द्र कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वर्षा निर्भर कृषि को कृषि ऋतु में उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के
आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जाता है:
1.
शुष्क भूमि
कृषि
2.
आर्द्र भूमि
कृषि।
(i) शुष्क
भूमि कृषि:
भारत में शुष्क भूमि कृषि ऐसे प्रदेशों में की जाती है जहाँ
वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम रहती है। इन क्षेत्रों में
ऐसी कृषि फसलें उगायी जाती हैं जिनमें शुष्कता सहन करने की क्षमता होती है।
जैसे-रागी, बाजरा, मूंग, चना तथा ग्वार ज्वार (चारा फसलें)। इन क्षेत्रों में आर्द्रता संरक्षण तथा
वर्षा जल के उपयोग की अनेक विधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं।
(ii) आर्द्र
भूमि कृषि:
आर्द्र भूमि कृषि के अन्तर्गत वे फसलें उगायी जाती हैं
जिन्हें पानी की बहुत अधिक आवश्यकता पड़ती है; जैसे-चावल,
जूट तथा गन्ना आदि। इस कृषि में वर्षा ऋतु के अन्तर्गत वर्षा जल की
प्राप्ति कृषि फसलों के लिये आवश्यक जल से अधिक होती है। इसी कारण ऐसे क्षेत्रों
को कभी-कभी बाढ़ तथा मृदा अपरदन जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
प्रश्न
11. भारत में "शुष्क भूमि
कृषि" की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शुष्क भूमि कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1.
यह कृषि
मुख्यत: 75 सेमी. से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में
की जाती है।
2.
इस प्रकार
की कृषि में वर्ष में केवल एक ही फसल उगाई जाती है।
3.
अधिक
शुष्कता सहन कर सकने वाली फसलें; यथा - बाजरा, ज्वार, चना, एवं
रागी का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।
4.
इस प्रकार
की कृषि में प्रति हैक्टेयर उत्पादन क्षमता कम होती है।
प्रश्न
12. भारत में आर्द्र भूमि कृषि की विशेषताओं
का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आर्द्र भूमि कृषि की निम्न विशेषताएँ हैं:
1.
आर्द्र भूमि
कृषि अधिक वर्षा उपलब्धता वाले क्षेत्रों में की जाती है।
2.
अधिक वर्षा
के कारण ऐसी कृषि के क्षेत्रों को बाढ़ एवं मृदा अपरदन का सामना करना पड़ता है।
3.
इस कृषि में
मुख्यतः चावल, गन्ना एवं जूट की फसल उत्पादित की जाती हैं।
4.
इस कृषि
वाले क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के दौरान आवश्यकता से अधिक जल फसलों हेतु उपलब्ध
रहता है।
प्रश्न
13. भारत में चावल की कृषि का संक्षिप्त
विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में चावल की कृषि विभिन्न जलवायु प्रदेशों में उत्पादित की
जाती है। भारत में विश्व का लगभग 21.6 प्रतिशत चावल उत्पादित
किया जाता है। विश्व के चावल उत्पादक राष्ट्रों में भारत का चीन के बाद दूसरा
स्थान है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग एक-चौथाई भाग पर चावल की कृषि की
जाती है। सन् 2016 में देश के प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों
में पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश,
आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु आदि राज्य सम्मिलित थे। पश्चिम बंगाल राज्य में जलवायु की
अनुकूलता के कारण एक कृषि वर्ष में चावल की तीन फसलें (औस, अमन
तथा बोरो) उत्पादित की जाती हैं।
चावल
के प्रति हेक्टेयर उत्पादन की दृष्टि से पंजाब, तमिलनाडु,
पश्चिम बंगाल, हरियाणा, आन्ध्र
प्रदेश, तेलंगाना तथा केरल भारत के अग्रणी राज्य हैं। पंजाब
तथा हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में हरित-क्रान्ति के अन्तर्गत चावल की कृषि सन् 1970
से प्रारम्भ की गई। उत्तम किस्म के बीजों, पर्याप्त
रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का उपयोग तथा शुष्क जलवायु के कारण चावल की फसल के
रोग प्रतिरोधी होने के कारण पंजाब तथा हरियाणा में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज
अधिक है। दूसरी ओर वर्षा पर निर्भर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व
उड़ीसा राज्यों के चावल उत्पादक क्षेत्रों में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम
मिलती है।
प्रश्न
14. भारत में गेहूँ की कृषि एवं उसके
उत्यादन के प्रमुख क्षेत्रों का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में विश्व का लगभग 12.3 प्रतिशत
गेहूँ उत्पादित किया जाता है। शीतोष्ण कटिबन्धीय फसल होने के कारण इसे भारत में
शीतकालीन अवधि में रबी की फसल के रूप में उत्पादित किया जाता है। रबी की फसल होने
के कारण गेहूँ की कृषि सिंचाई की सुविधा रखने वाले क्षेत्रों में प्रमुख रूप से की
जाती है। लेकिन हिमालय के उच्च पर्वतीय भागों तथा मध्य प्रदेश में मालवा के पठारी
भागों पर गेहूँ की कृषि पूर्ण रूप से वर्षा पर निर्भर रहती है।
भारत के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत
भाग पर प्रतिवर्ष गेहूँ की कृषि की जाती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब,
हरियाणा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश भारत के
सर्वप्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य हैं। पंजाब तथा हरियाणा राज्यों में गेहूँ की
प्रति हेक्टेयर उपज सर्वाधिक (4000 किग्रा. प्रति हेक्टेयर)
मिलती है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा बिहार राज्यों में
गेहूँ की प्रति हेक्टेयर उपज मध्यम स्तर की है। मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों में गेहूँ की कृषि वर्षा पर
आधारित है, इसी कारण इन राज्यों में गेहूँ की उत्पादकता कम
मिलती है।
प्रश्न
15. भारत में कपास उत्पादन एवं उसके
उत्पादक क्षेत्रों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के अर्द्धशुष्क भागों में उत्पादित की जाने वाली कपास देश में
खरीफ ऋतु में बोई जाती है। भारत छोटे रेशे वाली (भारतीय) तथा लम्बे रेशे वाली
(अमेरिकन) दोनों प्रकार की कपास का उत्पादन करता है। विश्व के कपास उत्पादक
राष्ट्रों में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। देश के समस्त बोये गये क्षेत्र
के लगभग 4.7 प्रतिशत भाग पर कपास की कृषि की जाती है।
भारत में कपास उत्पादन के निम्नलिखित तीन क्षेत्र महत्त्वपूर्ण
हैं:
1.
उत्तर -
पश्चिम भारत में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तरी राजस्थान।
2.
पश्चिमी
भारत में गुजरात व महाराष्ट्र राज्य।
3.
दक्षिणी
भारत में तेलंगाना, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य।
इनमें
गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना,
आन्ध्र प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा भारत के
अग्रणी कपास उत्पादक राज्य हैं। महाराष्ट्र के वर्षा निर्भर कपास क्षेत्रों में
कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बहुत कम मिलता है, जबकि
पंजाब, हरियाणा तथा उत्तरी राजस्थान के सिंचित क्षेत्रों में
कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक रहता है।
प्रश्न
16. भारत में चाय की कृषि पर एक
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चाय एक रोपण फसल है तथा इसका उपयोग पेय पदार्थ के रूप में किया जाता
है। चाय उष्ण आर्द्र तथा उपोष्ण आर्द्र कटिबन्धीय जलवायु वाले ढालू भू-भागों पर
पैदा की जाती है। इसकी कृषि के लिए अच्छे अपवाह वाली जीवांश प्रधान मिट्टी की
आवश्यकता होती है।
भारत
में चाय की कृषि सन् 1840 में असम राज्य की
ब्रह्मपुत्र घाटी में सबसे पहले प्रारम्भ की गई। वर्तमान में भी ब्रह्मपुत्र घाटी
चाय उत्पादन की दृष्टि से भारत का सर्वप्रमुख क्षेत्र है। वर्तमान में असम राज्य
में देश की 50 प्रतिशत से अधिक चाय उत्पादित की जाती है। इस
राज्य के कुल बोये गये क्षेत्र के 53.2 प्रतिशत भाग पर चाय
की कृषि की जाती है। बाद में चाय की कृषि पश्चिम बंगाल के उप-हिमालयी क्षेत्रों
(दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा फॅचबिहार जिले) में भी प्रारम्भ
की गयी। वर्तमान में पश्चिमी बंगाल में देश की लगभग एक चौथाई चाय उत्पादित की जाती
है। दक्षिणी भारत में चाय की कृषि पश्चिमी घाट की नीलगिरी तथा इलायची की पहाड़ियों
के निचले ढालों (तमिलनाडु तथा केरल राज्य) पर भी प्रमुखता से की जाती है।
प्रश्न
17. भारत में कृषि विकास पर संक्षिप्त
टिप्पणी लिखिए।
अथवा
कृषि विकास हेतु संचालित किए गए किन्हीं दो कार्यक्रमों के बारे
में बताइये।
उत्तर:
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का सर्वप्रमुख आधार है। भारत के कुल
भू-भाग के 58 प्रतिशत भाग पर कृषि कार्य किये जाते हैं।
लेकिन कृषि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण देश में प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का
औसत कम है। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारतीय कृषि एक जीविकोपार्जन प्रक्रिया
के रूप में थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार द्वारा खाद्यान्न फसलों के
उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से निम्नलिखित तीन उपाय अपनाये गये
1.
व्यापारिक
फसलों के स्थान पर खाद्यान्नों का उगाया जाना
2.
कृषि गहनता
को बढ़ाना
3.
कृषि योग्य
बंजर तथा परती भूमि को कृषि भूमि में बदलना। इसके अलावा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने
के लिए गहन कृषि जिला कार्यक्रम
(IADP) तथा
गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम:
(IAAP) नामक कार्यक्रमों को संचालित किया
गया। साथ ही सन् 1960 के दशक के मध्य के पश्चात् से
खाद्यान्न फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिये सिंचाई वाले क्षेत्रों में पर्याप्त
रासायनिक खाद के साथ उच्च उत्पादकता प्रदान करने वाली किस्मों की कृषि पर बल दिया
गया। कृषि विकास की इस नीति से देश में खाद्यान्न उत्पादनों में अभूतपूर्व वृद्धि
हुई जिसे हरित क्रान्ति का नाम दिया गया।
प्रश्न
18. भारत में प्रौद्योगिकी के विकास से
कृषि उत्पादन किस प्रकार प्रभावित हुआ है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-देश के विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक कृषि
प्रौद्योगिकी का प्रसार तीव्रता से अनुभव किया जा रहा है। देश में हुई हरित
क्रान्ति से उत्तम किस्म के उच्च उत्पादकता प्रदान करने वाले बीजों के क्षेत्र में
उल्लेखनीय वृद्धि अनुभव की गयी, साथ ही हरित - क्रान्ति ने
कृषि निवेशों; जैसे - उर्वरकों, कीटनाशकों,
कृषि यन्त्रों तथा कृषि आधारित उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन
प्रदान किया।
भारत में प्रौद्योगिकी के विकास से कृषि क्षेत्र में निम्नलिखित
सफलताएँ प्राप्त की गयीं:
(i) देश में चावल तथा गेहूँ के प्रति हेक्टेयर उत्पादन में
उल्लेखनीय वृद्धि अनुभव की गई। इसके अलावा गन्ना, तिलहन तथा
कपास के उत्पादन में प्रशंसनीय वृद्धि हुई। वर्तमान में भारत दालों, चाय, जूट तथा दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान
रखता है, जबकि चावल गेहूँ, मूंगफली,
गन्ना तथा सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान
है।
(ii) पिछले 40 वर्षों में देश में रासायनिक
उर्वरकों की खपत में लगभग 15 गुनी वृद्धि हुई है।
प्रश्न
19. हरित क्रान्ति से क्या आशय है?
हरित क्रान्ति की सफलता के लिये किये गये प्रमुख कार्यक्रमों का
संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति से आशय: हरित क्रान्ति
शब्द का सम्बन्ध आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कृषि उत्पादन विशेष रूप से
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि करने से है। इस क्रान्ति का प्रमुख आधार उच्च
उत्पादकता वाले बीजों की किस्मों का अधिकाधिक प्रयोग करना था।
हरित - क्रान्ति के प्रमुख कार्यक्रम -
भारत में हरित क्रान्ति की सफलता के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम उत्तरदायी रहे हैं:
1.
खाद्यान्न
फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों का अधिकाधिक प्रचलन।
2.
रासायनिक
उर्वरकों के प्रयोग में तेजी से होने वाली वृद्धि।
3.
कीटनाशक
रसायनों के प्रयोग में वृद्धि।
4.
भूमि
संरक्षण कार्यक्रम।
5.
गहन कृषि
जिला कार्यक्रम (I.A.D.P.) तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (I.A.A.P.).
6.
बहुफसली
कार्यक्रम।
7.
आधुनिक
उपकरण एवं संयन्त्रों का बढ़ता प्रयोग।
प्रश्न
20. “कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण
भारतीय कृषि की एक प्रमुख समस्या है।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण:
भारत में सिंचाई तथा कृषि विकास की दोषपूर्ण नीतियों के कारण
उत्पन्न एक गम्भीर समस्या है - कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण। इस समस्या के कारण
मृदा उर्वरकता में कमी आ जाती है। भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि भूमि का एक
बड़ा भाग जलाक्रांतता, लवणता तथा मृदा क्षारता के कारण
बंजरभूमि के रूप में बदल चुका है।
कीटनाशक रसायनों के बढ़ते प्रयोग से मृदा परिच्छेदिकाओं में जहरीले
तत्वों का जमाव हो गया है। बहुफसलीकरण में वृद्धि होने से परती भूमि के क्षेत्रफल
में कमी आती जा रही है जिससे कृषि भूमि में पुनः उर्वरकता प्राप्त करने की
प्राकृतिक प्रक्रिया अवरुद्ध हो गयी है। उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र तथा अर्द्धशुष्क
कृषि क्षेत्र मानवकृत मृदा अपरदन तथा वायु अपरदन की समस्या से ग्रस्त हो गये हैं
जिसके कारण उन्हें भूमि निम्नीकरण की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
प्रश्न
21. "छोटे खेत एवं विखण्डित जोतों
के साथ-साथ निम्न उत्पादकता भी भारतीय कृषि की एक प्रमुख समस्या है।" भारतीय
कृषि के सन्दर्भ में इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समय बीतने के साथ-साथ पीढ़ियों के अनुसार भूमि का बँटवारा होता है
जिससे खेतों का उपविभाजन एवं छितराव होता रहता है। छोटे एवं बिखरे हुए खेत कृषि के
आधुनिकीकरण एवं विकास में बाधा बनते हैं। भारत के लगभग 60 प्रतिशत
किसानों के पास एक हेक्टेयर से भी कम कृषि भूमि है तथा लगभग 40 प्रतिशत किसानों के खेतों का आकार 0.5 हेक्टेयर से
भी कम है। इसके अतिरिक्त भारत में अधिकतर खेत बिखरे हुए हैं। चकबंदी के लिए भी कोई
विशेष प्रयास नहीं हुए हैं। विखण्डित व छोटे खेत आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं
होते हैं।
कृषि
क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति होने के बावजूद भी संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा जापान जैसे विकसित देशों की अपेक्षा भारत में लगभग सभी
महत्त्वपूर्ण फसलों की उत्पादकता कम है। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण
भू-संसाधनों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। जिससे श्रम उत्पादकता भी कम हुई
है। देश के शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में अधिकांशतः मोटे अनाज, दालों तथा तिलहन की खेती की जाती है तथा यहाँ इनकी उत्पादकता भी कम है।
निबन्धात्मक प्रश्न:
प्रश्न
1. भारत के भू - उपयोग वर्गीकरण की
विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
अथवा
भू - राजस्व अभिलेख द्वारा अपनाये गये भूमि उपयोग वर्गीकरण का
विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के भू - राजस्व विभाग ने भूमि को उपयोग के आधार पर कितने
वर्गों में वर्गीकृत किया है ? विस्तारपूर्वक बताइये।
उत्तर:
भारत में भू - राजस्व अभिलेख द्वारा अपनाया गया भूमि उपयोग
वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से हैं:
(i) वनों के अधीन क्षेत्र: वर्गीकृत वन
क्षेत्र एवं वनों के अन्तर्गत वास्तविक क्षेत्र में अन्तर होता है। वर्गीकृत वन वह
क्षेत्र है, जिसका सीमांकन सरकार द्वारा इस प्रकार किया जाता
है कि वहाँ पर वन विकसित हो सकें। भू-राजस्व अभिलेखों में इसी परिभाषा को अपनाया
गया है। अतः इस संवर्ग के क्षेत्रफल में वृद्धि दर्ज हो सकती है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वहाँ वास्तविक रूप से वन पाये जायेंगे।
(ii) गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि: इस वर्ग के अन्तर्गत वह भूमि आती है जो कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यों के
लिए उपयोग में ली जाती है। इस वर्ग की भूमि का प्रयोग ग्रामीण व शहरी बस्तियों,
नहरों, सड़कों, कारखानों,
दुकानों आदि के विकास के लिए किया जाता है। सामान्यतः द्वितीयक एवं
तृतीयक क्रियाकलापों में वृद्धि होने से भूमि उपयोग के इस संवर्ग में भी वृद्धि
होती है।
(iii) बंजर एवं व्यर्थ भूमि: यह
अनुपजाऊ भूमि होती है जो कृषि के योग्य नहीं होती है। ऐसी भूमि पहाड़ों एवं खड्डों
आदि के रूप में होती है। प्रचलित प्रौद्योगिकी के आधार पर इसे कृषि के लिए उपयोगी
नहीं बनाया जा सकता।
(iv) स्थायी चारागाह क्षेत्र: इस वर्ग
की अधिकांश भूमि पर ग्राम पंचायत या सरकार का स्वामित्व होता है। इस भूमि के केवल
छोटे से भाग पर ही निजी स्वामित्व होता है। ग्राम पंचायत के नियंत्रण वाली भूमि को
'साझा संपत्ति संसाधन' कहा जाता है।
(v) कृषि योग्य व्यर्थ भूमि: इस वर्ग
के अन्तर्गत उस भूमि को सम्मिलित किया जाता है जिस पर पिछले पाँच वर्षों या इससे
अधिक समय तक कृषि नहीं की गई। आधुनिक भूमि सुधार प्रौद्योगिकी के प्रयोग से इसे
कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
(vi) विभिन्न तरु फसलों एवं उपवनों के अन्तर्गत क्षेत्र: इसे बोये गये निवल क्षेत्र में सम्मिलित नहीं किया जाता। इस वर्ग के
अन्तर्गत उद्यान व फलदार वृक्ष वाली भूमि को सम्मिलित किया जाता है। इस वर्ग की
अधिकांश भूमि निजी स्वामित्व के अन्तर्गत आती है।
(vii) वर्तमान परती भूमि: इस वर्ग के
अन्तर्गत वह भूमि सम्मिलित की जाती है, जिस पर एक वर्ष या
इससे कम अवधि के लिए कृषि नहीं की जाती। भूमि की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भूमि
को कुछ समय के लिए परती रखना एक पारम्परिक प्रचलन है। भूमि को परती रखने से इसकी
उपजाऊ शक्ति प्राकृतिक रूप से वापस आ जाती है।
(viii) पुरातन परती भूमि: यह वर्तमान
परती भूमि के अतिरिक्त परती भूमि होती है जिस पर 1 से 5
वर्ष तक कृषि नहीं की जाती है। यदि कोई भू-भाग पाँच वर्ष से अधिक
समय तक कृषि विहीन रहता है तो इसे कृषि योग्य व्यर्थ भूमि वर्ग में सम्मिलित कर
दिया जाता है।
(ix) निवल बोया गया क्षेत्र: भूमि
उपयोग का वह संवर्ग जिसमें फसलें उगाई और काटी जाती हैं, निवल
बोया गया क्षेत्र कहलाता है। तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की भोजन आपूर्ति
हेतु इस क्षेत्र में वृद्धि किया जाना आवश्यक है।
प्रश्न
2. भारत में भूमि उपयोग परिवर्तन की
विवेचना कीजिए।
अथवा
भारत में भू - उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के
परिवर्तकों को स्पष्ट करते हुए देश में भू-उपयोग संवर्गों में हुए परिवर्तनों को
समझाइए।
उत्तर:
भारत में भू - उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के
परिवर्तक - भारत में समय के साथ भू - उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के
निम्नलिखित तीन परिवर्तक होते हैं।
1.
अर्थव्यवस्था
का आकार
2.
अर्थव्यवस्था
की संरचना में परिवर्तन
3.
कृषि भूमि
पर बढ़ता दबाव।
(i) अर्थव्यवस्था
का आकार: अर्थव्यवस्था के आकार को उत्पादित वस्तुओं तथा
सेवाओं के मूल्य के संदर्भ में जाना जाता है। अर्थव्यवस्था का आकार समय के साथ
बढ़ता है, जो बढ़ती हुई जनसंख्या, बदलते आय स्तर, उपलब्ध तकनीक तथा इसी प्रकार के अन्य
कारकों पर निर्भर होता है। इसका परिणाम यह होता है कि समय के साथ भूमि पर
अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का दबाव बढ़ता जाता है तथा इसके लिए सीमांत भूमि
को भी उपयोग में लाया जाता है।
(ii) अर्थव्यवस्था
की संरचना में परिवर्तन: समय के साथ अर्थव्यवस्था की संरचना में भी
परिवर्तन आता जाता है। प्राथमिक सेक्टर की तुलना में समय के साथ द्वितीयक तथा
तृतीयक सेक्टरों में अधिक तेजी से वृद्धि होती जाती है। इस प्रक्रिया में कृषि
भूमि का उपयोग धीरे-धीरे गैर-कृषिगत कार्यों में होने लगता है।
(iii) कृषि
भूमि पर बढ़ता दबाव: समय के साथ यद्यपि किसी विकासशील देश की
अर्थव्यवस्था में कृषि क्रियाकलापों का योगदान कम होता जाता है, लेकिन कृषि भूमि पर कृषि क्रियाकलापों का दबाव भी बढ़ता जाता है। इसके लिए
निम्नलिखित दो कारक उत्तरदायी होते हैं।
(क) सामान्यतया विकासशील देशों
में कृषि पर निर्भर जनसंख्या का प्रतिशत क्रमशः समय के साथ-साथ घटता जाता है,
जबकि कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान तेजी से कम होता जाता है।
(ख) कृषि क्रियाकलापों पर निर्भर
जनसंख्या समय के साथ - साथ बढ़ती जाती है।
भारत
में भू-उपयोग संवर्गों में हुए परिवर्तन:
नीचे दिए गये आरेख में सन् 1950 - 51 तथा 2014
- 15 के मध्यभारत में भू-उपयोग संवर्गों के अनुपात में हुए
परिवर्तनों को प्रदर्शित किया गया है।
उक्त आरेख से स्पष्ट है कि 1950-51 से 2014-15
की अवधि में भारत में भू-उपयोग के निम्नलिखित पाँच संवर्गों के
अनुपात में वृद्धि व चार संवर्गों के अनुपात में गिरावट अनुभव की गई।
वृद्धि दर्ज करने वाले संवर्ग: वन क्षेत्र, गैर-कृषिगत
कार्यों में प्रयुक्त भूमि, स्थायी चारागाह क्षेत्र, निवल बोया क्षेत्र तथा वर्तमान परती भूमि।
गिरावट
दर्ज करने वाले संवर्ग: बंजर भूमि, कृषि योग्य व्यर्थ भूमि,
पुरातन परती भूमि, विविध तरु फसलों व उपवनों
का क्षेत्र। वन क्षेत्रों, गैर-कृषि कार्यों तथा वर्तमान
परती भूमि के अनुपात में वृद्धि के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।
1.
भारतीय
अर्थव्यवस्था की निर्भरता औद्योगिक व सेवा क्षेत्र तथा अवसंरचना सम्बन्धी विस्तार
पर सतत् रूप से बढ़ती जा रही है। साथ ही ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में अधिवासों
एवं परिवहन प्रारूपों का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है। वस्तुतः गैर-कृषि कार्यों
में प्रयुक्त भूमि का प्रसार कृषि योग्य व्यर्थ भूमि तथा कृषि योग्य भूमि की हानि
पर हुआ है।
2.
वन क्षेत्र
में वृद्धि उनके सीमांकन के कारण हुई है न कि वास्तविक वन आच्छादित क्षेत्र में
वृद्धि के कारण।
3.
वर्तमान
परती भूमि में वृद्धि वर्षा की अनियमितता तथा फसल-चक्र में होने वाले परिवर्तन के
कारण हुई है।
प्रश्न
3. भारतीय कृषि के प्रमुख प्रकारों का
विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय कृषि के प्रकार: आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोत के आधार पर
कृषि को सिंचित कृषि एवं वर्षा निर्भर (बारानी) कृषि में विभाजित किया जाता है।
1. सिंचित
कृषि: सिंचित कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि पद्धति से
है जिसमें कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए सिंचाई साधनों द्वारा जल की आपूर्ति
की जाती है। सिंचाई के उद्देश्य के आधार पर सिंचित कृषि के निम्नलिखित दो वर्ग
हैं:
1.
रक्षित
सिंचाई कृषि
2.
उत्पादक
सिंचाई कृषि।
(i) रक्षित
सिंचाई कृषि:
इस कृषि में वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई द्वारा
पूरा किया जाता है। इस प्रकार की सिंचाई का मुख्य उद्देश्य आर्द्रता की कमी के
कारण फसलों को नष्ट होने से बचाने के लिए अधिकतम कृषिगत क्षेत्र को पर्याप्त
आर्द्रता उपलब्ध कराना है।
(ii) उत्पादक
सिंचाई कृषि:
उत्पादक सिंचाई कृषि में जल उपलब्ध कराने की मात्रा रक्षित
सिंचाई से अधिक होती है। इस कृषि का उद्देश्य फसलों को पर्याप्त मात्रा में जल
उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना है।
2. वर्षा
निर्भर कृषि- वर्षा निर्भर कृषि को कृषि ऋतु में उपलब्ध
आर्द्रता की मात्रा के आधार. पर निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जाता है:
1.
शुष्क भूमि कृषि
2.
आर्द्र भूमि
कृषि।
(i) शुष्क
कृषि भूमि:
भारत में शुष्क भूमि कृषि ऐसे प्रदेशों में की जातं. है जहाँ
वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम रहती है। इन क्षेत्रों में ऐसी
कृषि फसलें उगायी जाती हैं जिनमें शुष्कता सहन करने की क्षमता होती है जैसे - रागी,
बाजरा, मूंग, चना,
ग्वार तथा ज्वार (चारा फसलें)। इन क्षेत्रों में आर्द्रता संरक्षण
तथा वर्षा जल के उपयोग की अनेक विधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं।
(ii) आर्द्र
भूमि कृषि:
आर्द्र भूमि कृषि के अन्तर्गत वे फसलें उगायी जाती हैं
जिन्हें पानी की बहुत अधिक आवश्यकता पड़ती है; जैसे-चावल,
जूट तथा गन्ना आदि। इस कृषि में वर्षा ऋतु के अन्तर्गत वर्षा जल की
प्राप्ति कृषि फसलों के लिये आवश्यक जल से अधिक होती है। इसी कारण ऐसे क्षेत्रों
को कभी-कभी बाढ़ तथा मृदा अपरदन जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
प्रश्न
4. भारत में चावल के उत्पादन की आवश्यक
भौगोलिक दशाओं के साथ-साथ इसके उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चावल भारत की एक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। देश की अधिकांश
जनसंख्या का मुख्य भोजन चावल है। विश्व के चावल उत्पादक राष्ट्रों में भारत का चीन
के बाद दूसरा स्थान है। भारत में विश्व का लगभग 21.6 प्रतिशत
चावल उत्पादित होता है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग एक - चौथाई भाग पर
चावल की कृषि की जाती है। आवश्यक भौगोलिक दशाएँ चावल एक उष्ण आई कटिबन्धीय फसल है।
इसकी लगभग 3000 से भी अधिक किस्में हैं जो विभिन्न कृषि
जलवायु प्रदेशों में उगाई जाती हैं।
इसकी
कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं:
(i) तापमान: चावल की कृषि के लिए कम
से कम 20° सेण्टीग्रेड तापमान होना चाहिए। इसे बोते
समय 20° सेण्टीग्रेड तथा फसल पकते समय 27° सेन्टीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है।
(ii) वर्षा: चावल की कृषि के लिए अधिक
पानी की आवश्यकता होती है। सामान्यतया 100 से 200 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी कृषि की जाती है। 100
सेमी. से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की सहायता से
चावल की कृषि की जाती है।
(iii) मृदा: चावल की कृषि के लिए बहुत
उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके लिए चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है
क्योंकि यह मिट्टी अधिक समय तक आर्द्रता धारण कर सकती है। नदियों द्वारा लायी गई
जलोढ़ मिट्टी में चावल का पौधा अधिक अच्छे ढंग से विकसित होता है।
(iv) धरातल: चावल की कृषि के लिए समतल
मैदानी भाग अनुकूल होते हैं ताकि वर्षा अथवा सिंचाई द्वारा प्राप्त जल पर्याप्त
समय तक खेतों में रह सके। पहाड़ी क्षेत्रों में चावल की कृषि ढालों पर सीढ़ीदार
खेत बनाकर की जाती है।
(v) श्रम: चावल की कृषि में मशीनों से
काम नहीं लिया जा सकता इसलिए इसकी कृषि के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है।
उत्पादन
एवं वितरण: भारत में चावल की कृषि समुद्र तल से 200 मीटर की ऊँचाई तक एवं पूर्वी भारत के आर्द्र प्रदेशों से लेकर उत्तर -
पश्चिमी भारत के शुष्क परन्तु सिंचित क्षेत्र पंजाब, हरियाणा,
पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तरी राजस्थान में सफलतापूर्वक की जाती
है।
सन् 2014 - 15 में देश के प्रमुख चावल उत्पादक
राज्यों में पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर
प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना,
तमिलनाडु आदि राज्यों को शामिल किया जाता है। पश्चिम बंगाल राज्य
में जलवायु की अनुकूलता के कारण एक कृषि वर्ष में चावल की तीन फसलें (औस, अमन तथा बोरो) उत्पादित की जाती हैं। चावल के प्रति हेक्टेयर उत्पादन की
दृष्टि से. पंजाब, तमिलनाडु, पश्चिम
बंगाल, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश तथा
केरल भारत के अग्रणी राज्य हैं।
पंजाब तथा हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में हरित क्रान्ति के
अन्तर्गत चावल की कृषि सन् 1970 से प्रारम्भ की गई। उत्तम
किस्म के बीजों, पर्याप्त रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के
उपयोग तथा शुष्क जलवायु के कारण चावल की फसल के रोग प्रतिरोधी होने के कारण पंजाब
तथा हरियाणा में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज अधिक है। दूसरी ओर वर्षा पर निर्भर
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उड़ीसा राज्यों के चावल उत्पादक
क्षेत्रों में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम मिलती है।
प्रश्न
5. भारत में गेहूँ उत्पादन के लिए
आवश्यक भौगोलिक दशाएँ एवं इसके उत्पादन एवं वितरण का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गेहूँ एक शीतोष्ण कटिबन्धीय फसल है। भारत में चावल के पश्चात् गेहूँ
दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। भारत में गेहूँ की कृषि अति प्राचीन काल से
की जा रही है। भारत विश्व का लगभग 12.3 प्रतिशत गेहूँ
उत्पादित करता है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत
भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है।
आवश्यक भौगोलिक दशाएँ: गेहूँ की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक
दशाएँ निम्नलिखित हैं।
(i) तापमान: गेहूँ मुख्य रूप से शीतोष्ण कटिबन्धीय पौधा है। गेहूँ को बोते समय 10° सेण्टीग्रेड तथा पकते समय 150 से 200 सेन्टीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है।
(ii) वर्षा: गेहूँ की कृषि के लिए 75
सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा इसकी कृषि के
लिए हानिकारक होती है।
(iii) मदा: गेहूँ की कृषि विभिन्न
प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है। परन्तु इसकी कृषि के लिए दोमट, बलुई दोमट एवं काली मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है।
(iv) धरातल: गेहूँ की कृषि के लिए समतल
एवं उपयुक्त जल निकास वाली भूमि होनी चाहिए।
(v) श्रम: गेहूँ की कृषि के लिए अधिक
श्रम की आवश्यकता होती है, लेकिन वर्तमान में बढ़ते हुए
यंत्रीकरण ने इसकी कृषि में श्रम के महत्व को कम कर दिया है।
उत्पादन
एवं वितरण भारत में विश्व का लगभग 12.3 प्रतिशत गेहूँ उत्पादित
किया जाता है। शीतोष्ण कटिबन्धीय फसल होने के कारण इसे भारत में शीतकालीन अवधि में
रबी की फसल के रूप में उत्पादित किया जाता है। रबी की फसल होने के कारण गेहूँ की
कृषि सिंचाई की सुविधा रखने वाले क्षेत्रों में प्रमुख रूप से की जाती है। लेकिन
हिमालय के उच्च पर्वतीय भागों तथा मध्य प्रदेश में मालवा के पठारी भागों पर गेहूँ
की कृषि पूर्ण रूप से वर्षा पर निर्भर रहती है।
भारत
के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत भाग पर गेहूँ की कृषि
की जाती है। हमारे देश में गेहूँ के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। देश में
1960 के दशक के बाद हरित क्रांति आयी जिसका सर्वाधिक प्रभाव
गेहूँ के उत्पादन पर पड़ा। भारत में गेहूँ का उत्पादन 749 लाख
टन हुआ। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा,
राजस्थान तथा मध्य प्रदेश भारत के सर्वप्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य
हैं। पंजाब तथा हरियाणा राज्यों में गेहूँ की प्रति हेक्टेयर उपज सर्वाधिक (4000
किग्रा. प्रति हेक्टेयर) मिलती है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा बिहार राज्यों में गेहूँ की प्रति हेक्टेयर उपज मध्यम स्तर
की है। मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू - कश्मीर
राज्यों में गेहूँ की कृषि वर्षा पर आधारित है। इसी कारण इन राज्यों में गेहूँ की
उत्पादकता कम मिलती है।
प्रश्न
6. भारत में दालों के उत्पादन का विवरण
दीजिए।
उत्तर:
दालें - दालें फलीदार फसलें हैं जो
मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण के द्वारा मिट्टी के उपजाऊपन में प्राकृतिक रूप से
वृद्धि करती हैं। भारत विश्व का सर्वप्रमुख दाल उत्पादक देश है जहाँ विश्व की लगभग
20 प्रतिशत दालें उत्पादित की जाती हैं। देश के कुल बोये गये
क्षेत्र के लगभग 11 प्रतिशत भाग पर विभिन्न दालों की खेती की
जाती है। वर्षा पर आधारित फसल होने के कारण शुष्क क्षेत्रों में दालों की प्रति
हेक्टेयर उपज कम मिलती है। चना तथा अरहर भारत में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख
दलहनी फसलें हैं।
चना-चना मुख्यतः वर्षा आधारित फसल है जो प्रमुख रूप से रबी की ऋतु में देश के
मध्य, पश्चिमी तथा उत्तरी-पश्चिमी भागों में
उत्पादित की जाती है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र के केवल 2.8 प्रतिशत भाग पर चने की कृषि की जाती है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र
प्रदेश, तेलंगाना तथा राजस्थान देश के सर्वप्रमुख चना
उत्पादक राज्य हैं। चने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है साथ ही सिंचित क्षेत्रों में
इसकी उत्पादकता में प्रतिवर्ष उतार-चढ़ाव मिलता है।
अरहर: यह देश की दूसरी प्रमुख दाल फसल है। इसे लाल चना, तुहर तथा पिजन पी. के. नाम से भी जाना जाता है। भारत के कुल बोये गये
क्षेत्र के लगभग 2 प्रतिशत भाग पर अरहर की खेती की जाती है।
अरहर की कृषि देश के मध्य एवं दक्षिणी स्थलों के शुष्क भागों में वर्षा आधारित
परिस्थिति एवं सीमान्त क्षेत्रों पर की जाती है। अरहर की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता
कम है। इसका मुख्य उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है। इनके अतिरिक्त इसके अन्य उत्पादक
राज्य उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात
एवं मध्य प्रदेश आदि हैं।
प्रश्न
7. भारत में प्रमुख तिलहन फसलों के
उत्पादक क्षेत्रों का विस्तार से विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में तिलहन व्यापारिक फसलों का एक प्रमुख समूह है। तिलहनी फसलों
में मूंगफली, तोरिया, सरसों, सोयाबीन एवं सूरजमुखी आदि सम्मिलित हैं। तिलहनों से निकाला गया तेल हमारे
भोजन का महत्वपूर्ण अंग है। इसके अतिरिक्त तिलहनों के तेल का कई उद्योगों में
कच्चे माल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। भारत विश्व में तिलहनों का सबसे
बड़ा उत्पादक देश है। देश के कुल फसली क्षेत्र के लगभग '14 प्रतिशत
भाग पर तिलहनों की कृषि की जाती है। भारत के प्रमुख तिलहन उत्पादक क्षेत्र मालवा
पठार, मराठवाड़ा, गुजरात, राजस्थान के शुष्क भाग तथा आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना
एवं रायलसीमा क्षेत्र आदि हैं। प्रमुख तिलहनी फसलों का विवरण अग्र प्रकार से है
मूंगफली: भारत विश्व में मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व की
लगभग 16.6 प्रतिशत मूंगफली उत्पादित की जाती है।
देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 3.6 प्रतिशत भाग पर
मूंगफली की कृषि की जाती है। यह मुख्यतः शुष्क प्रदेशों की वर्षा आधारित खरीफ फसल
है। परन्तु दक्षिण भारत में यह रबी के मौसम में बोयी जाती है। गुजरात, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना,
कर्नाटक एवं महाराष्ट्र भारत के प्रमुख मूंगफली उत्पादक राज्य हैं।
तोरिया
व सरसों- तोरिया एवं सरसों में राई, सरसों, तोरिया एवं तारामीरा आदि कई तिलहन सम्मिलित
किए जाते हैं। ये उपोष्ण कटिबन्धीय फसलें हैं। जिनकी कृषि भारत के मध्य व उत्तरी
पश्चिमी भाग में रबी के मौसम में की जाती है। भारत में सिंचाई के प्रसार, बीज सुधार एवं तकनीकी सुधार से इन फसलों के उत्पादन में वृद्धि अनुभव की
गई है।
देश
के कुल बोये गये क्षेत्र के केवल 2.5 प्रतिशत भाग पर तोरिया व
सरसों की कृषि की जाती है। राजस्थान राज्य से देश के कुल तिलहन उत्पादन का
एक-तिहाई भाग आता है। अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल एवं मध्य प्रदेश आदि हैं। इन
फसलों के प्रति हेक्टेयर उत्पादन की दृष्टि से पंजाब एवं हरियाणा देश में अग्रणी
स्थान रखते हैं।
अन्य
तिलहन- सोयाबीन एवं सूरजमुखी भारत के अन्य महत्वपूर्ण
तिलहन हैं। सोयाबीन अधिकांशतया मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में बोया जाता है। ये
दोनों राज्य मिलकर देश का लगभग 90 प्रतिशत सोयाबीन उत्पादित
करते हैं। सूरजमुखी की कृषि कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र में मुख्य रूप से की जाती है। देश के उत्तरी
भागों में यह एक गौण फसल है लेकिन सिंचित क्षेत्रों में इसका उत्पादन अधिक है।
प्रश्न
8. गन्ना उत्पादन के लिये आवश्यक
भौगोलिक दशाओं का वर्णन करते हुए भारत के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों का सचित्र विवरण
दीजिए।
उत्तर:
गन्ना उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ गन्ना एक उष्ण कटिबन्धीय
फसल है। वर्षा पर निर्भर दशाओं में यह केवल आर्द्र एवं उपार्द्र जलवायु वाले
क्षेत्रों में भी उत्पादित की जाती है।
गन्ने की कृषि के लिए निम्न भौगोलिक दशाओं का होना आवश्यक है।
तापमान:
गन्ने की कृषि के लिए ऊँचे तापमान की आवश्यकता होती है।
इसकी कृषि के लिए सामान्यत: 20° से 25° सेंग्रे. तापक्रम आवश्यक होता है। पाला गन्ने के लिए हानिकारक होता है।
वर्षा-गन्ने के लिए पर्याप्त मात्रा में वर्षा की आवश्यकता होती है।
सामान्यतः 100 से 200 सेमी. वर्षा
आदर्श मानी जाती है। कम वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। भारत में गन्ने
की कृषि प्रमुख रूप से सिंचित क्षेत्रों में की जाती है।
मिट्टी: गन्ने की कृषि के लिए नमीयुक्त, उपजाऊ एवं गहरी दोमट मिट्टी
उपयोगी होती है। मिट्टी में चूने का अंश महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लावा मिट्टी
भी गन्ने की कृषि के लिए उपयोगी है।
श्रम: गन्ने की कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में मानवीय श्रम की आवश्यकता होती
है, क्योंकि बुवाई से लेकर कटाई तथा मिलों में ले जाने अथवा
उपयोग में लाये जाने तक अधिकांश कार्य हाथ से ही करना पड़ता है।
भारत
में गन्ना उत्पादक क्षेत्र विश्व के गन्ना उत्पादक राष्ट्रों में भारत का ब्राजील
के बाद दूसरा स्थान है। भारत में विश्व का लगभग 19 प्रतिशत
गन्ना उत्पादित किया जाता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात तथा कर्नाटक भारत के महत्त्वपूर्ण गन्ना उत्पादक राज्य हैं। उत्तर
प्रदेश राज्य में देश का लगभग 40 प्रतिशत गन्ना उत्पादित
किया जाता है। उत्तर भारत की तुलना में दक्षिणी भारत के गन्ना उत्पादक राज्यों में
गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज अधिक है।
प्रश्न
9. भारत में चाय तथा कॉफी की कृषि का
विवरण देते हुए इनके उत्पादन क्षेत्रों को भारत के मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
भारत में चाय की कषि विश्व के चाय उत्पादक राष्ट्रों में भारत का
प्रथम स्थान है। इस देश में विश्व की लगभग 21.1 प्रतिशत चाय
उत्पादित की जाती है, जबकि विश्व के चाय निर्यातक देशों में
भारत का विश्व में श्रीलंका व चीन के बाद तीसरा स्थान है।
चाय
एक रोपण फसल है तथा इसका उपयोग पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है। चाय उष्ण
आर्द्र तथा उपोष्ण आर्द्र कटिबन्धीय जलवायु वाले ढालू भू-भागों पर पैदा की जाती
है। इसकी कृषि के लिए अच्छे अपवाह वाली जीवांश प्रधान मिट्टी की आवश्यकता होती है।
भारत
में चाय की कृषि सन् 1840 में असम राज्य की
ब्रह्मपुत्र घाटी में सबसे पहले प्रारम्भ की गई। वर्तमान में भी ब्रह्मपुत्र घाटी
चाय उत्पादन की दृष्टि से भारत का सर्वप्रमुख क्षेत्र है। वर्तमान में असम राज्य
में देश की 50 प्रतिशत से अधिक चाय प्रतिवर्ष उत्पादित की
जाती है। इस राज्य के कुल बोये गये क्षेत्र के 53.2 प्रतिशत
भाग पर चाय की कृषि की जाती है।
बाद
में चाय की कृषि पश्चिम बंगाल के उपहिमालयी क्षेत्रों (दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा पूचबिहार जिले) में भी प्रारम्भ की गयी। वर्तमान में
पश्चिमी बंगाल में देश की लगभग एक-चौथाई चाय प्रतिवर्ष उत्पादित की जाती है।
दक्षिणी भारत में चाय की कृषि पश्चिमी घाट की नीलगिरी तथा इलायची की पहाड़ियों के
निचले ढालों (तमिलनाडु तथा केरल राज्य) पर भी प्रमुखता से की जाती है।
भारत में चाय तथा कॉफी उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र
भारत
में कॉफी की कृषि कॉफी एक उष्ण कटिबन्धीय रोपण कृषि है। कॉफी की तीन किस्में
अरेबिका, रोबस्ता तथा लिबेरिका उत्पादित की जाती
हैं। भारत में प्रमुख रूप से अरेबिका किस्म की कॉफी उत्पादित की जाती है। भारत में
विश्व के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 3.7 प्रतिशत भाग उत्पादित
किया जाता है। विश्व के कॉफी उत्पादक राष्ट्रों में भारत का सातवाँ स्थान है।
कर्नाटक
भारत में कॉफी उत्पादन करने वाला अग्रणी राज्य है, जहाँ
भारत की दो-तिहाई से अधिक कॉफी उत्पादित की जाती है। केरल तथा तमिलनाडु भारत में
कॉफी उत्पादन करने वाले अन्य प्रमुख राज्य हैं। कर्नाटक, केरल
व तमिलनाडु राज्यों में पश्चिमी घाट की उच्च भूमि पर कॉफी की कृषि प्रमुखता से की
जाती है।
प्रश्न
10. भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का
उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय कृषि की निम्नलिखित आठ समस्याएँ हैं:
(1) अनियमित
मानसून पर निर्भरता:
भारत में कुल कृषिगत क्षेत्र का लगभग दो - तिहाई भाग फसलों
के उत्पादन के लिए प्रत्यक्ष रूप से मानसूनी वर्षा पर निर्भर रहता है। भारत में
दक्षिणी - पश्चिमी मानसूनी हवाओं से होने वाली वर्षा अनियमित होने के साथ - साथ
अनिश्चित होती है। जहाँ अनियमित मानसून से एक ओर राजस्थान तथा अन्य क्षेत्रों में
होने
वाली
न्यून वर्षा अत्यधिक अविश्वसनीय है वहीं दूसरी ओर भारत के अधिक वर्षा प्राप्त करने
वाले क्षेत्रों में प्राप्त होने वाली वर्षा में भी काफी उतार - चढ़ाव देखा जाता
है, जिसके कारण ऐसे क्षेत्र कभी बाढ़ग्रस्त तो कभी सूखाग्रस्त
हो जाते हैं। सूखा और बाढ़ दोनों के प्रकोप से कृषि फसलों को गम्भीर हानि का सामना
करना पड़ता है।
(2) निम्न
उत्पादकता:
संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा
जापान जैसे विकसित राष्ट्रों की तुलना में भारत में उत्पादित की जाने वाली अधिकांश
कृषि फसलों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बहुत कम है। इसका प्रमुख कारण भारत में
श्रम उत्पादकता का कम रहना तथा देश के शुष्क तथा अर्द्ध - शुष्क क्षेत्रों में
वर्षा पर निर्भर रहने वाली कृषि का प्रचलन मिलना है।
(3) वित्तीय
संसाधनों की बाध्यताएँ तथा ऋणग्रस्तता:
भारत में सीमांत तथा छोटे कृषक पूँजी की कमी के कारण कृषि कार्यों में
पर्याप्त निवेश कर पाने में असमर्थ रहते हैं, जिसके कारण
विविध वित्तीय संस्थाओं तथा महाजनों से ऋण तो ले लेते हैं लेकिन कम आय होने के
कारण वे ऋणग्रस्त रहते हैं।
(4) भूमि
सुधारों में कमी:
यद्यपि आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा भूमि सुधारों को
प्राथमिकता प्रदान की गई लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण सरकार द्वारा
भूमि सुधार पूर्णतया लागू नहीं हो पाये। यही कारण है कि देश में कृषि योग्य भूमि
का वितरण आज भी असमान है जिससे कृषि विकास को पर्याप्त बल नहीं मिल सका।
(5) छोटे
खेत तथा विखण्डित जोतें:
भारत के 60 प्रतिशत किसानों के पास एक
हेक्टेयर से कम कृषि भूमि है तथा लगभग 40 प्रतिशत किसानों के
खेतों का आकार 0.5 हेक्टेयर से भी कम है। तेजी से बढ़ती
जनसंख्या के कारण पीढ़ी - दर - पीढ़ी खेतों का विभाजन होता जाता है तथा कृषि जोतों
का आकार भी घटता जाता है। विखण्डित व छोटे आकार के भू-जोत आर्थिक दृष्टि से
लाभकारी नहीं होते।
(6) वाणिज्यीकरण
का प्रभाव:
भारत के अधिकांश कृषकों के पास कम कृषि भूमि है, जिसमें कृषक अपने परिवार के भरण - पोषण के लिए खाद्यान्नों का उत्पादन
प्राथमिकता पर करते हैं। यद्यपि देश के कुछ सिंचित भागों में कृषि
का आधुनिकीकरण तथा वाणिज्यीकरण भी हो रहा है।
(7) व्यापक
अल्प रोजगारी:
भारत के असिंचित क्षेत्रों में वृहद् स्तर पर अल्प रोजगारी
की समस्या मिलती है। इन क्षेत्रों में मौसमीय बेरोजगारी वर्ष में 4 से 8 महीनों तक रहती है। भारत के अधिकांश भागों में
सम्पन्न होने वाले कृषि कार्यों में चूँकि गहन श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसी
कारण कृषि में कार्यरत कृषकों को वर्ष-पर्यन्त कार्य करने के अवसर प्राप्त नहीं
होते हैं।
(8) कृषि
योग्य भूमि का निम्नीकरण:
सिंचाई तथा कृषि विकास की दोषपूर्ण नीतियों के कारण उत्पन्न
एक गम्भीर समस्या है- भूमि संसाधनों का निम्नीकरण। इस समस्या के कारण मृदा
उर्वरकता में कमी आ जाती है। भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि भूमि का एक बड़ा
भाग जलाक्रांतता, लवणता तथा मृदा क्षारकता के
कारण बंजर - भूमि के रूप में बदल चुका है। कीटनाशक रसायनों के बढ़ते प्रयोग से
मृदा परिच्छेदिकाओं में जहरीले तत्वों का जमाव हो गया है।
बहुफसलीकरण में बढ़ोत्तरी होने से परती भूमि के क्षेत्रफल में कमी
आती जा रही है जिससे कृषि भूमि में पुनः उर्वरकता प्राप्त करने की प्राकृतिक
प्रक्रिया अवरुद्ध हो गयी है। उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र तथा अर्द्धशुष्क कृषि क्षेत्र
मानवकृत मृदा अपरदन तथा वायु अपरदन की समस्या से ग्रस्त हो गये हैं, जिसके कारण उन्हें भूमि निम्नीकरण की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

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