Class-12 Geography
Chapter-
4 (प्राथमिक क्रियाएँ)
समेलन संबंधी प्रश्न:
निम्न में स्तम्भ 'अ' को स्तम्भ 'ब' से सुमेलित कीजिए:
प्रश्न 1.
|
स्तम्भ
अ (कृषि) |
स्तम्भ
ब (कृषि की दशा) |
|
(i) चावल प्रधान गहन कृषि |
(अ) मलेशिया व इंडोनेशिया |
|
(ii)
वाणिज्य पशुधन पालन |
(ब) भूमध्य सागरीय कृषि |
|
(iii)
लादांग |
(स) बागाती कृषि |
|
(iv)
खट्टे फलों की कृषि |
(द) मुख्य फसल चावल |
|
(v) चाय के बागान |
(य) ऑस्ट्रेलिया - न्यूजीलैण्ड |
उत्तर:
|
स्तम्भ
अ (कृषि) |
स्तम्भ
ब (कृषि की दशा) |
|
(i) चावल प्रधान गहन कृषि |
(द) मुख्य फसल चावल |
|
(ii)
वाणिज्य पशुधन पालन |
(य) ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैण्ड |
|
(iii)
लादांग |
(अ) मलेशिया व इंडोनेशिया |
|
(iv)
खट्टे फलों की कृषि |
(स) बागाती कृषि |
|
(v) चाय के बागान |
(ब) भूमध्य सागरीय कृषि |
रिक्त स्थान पति संबंधी
प्रश्न:
निम्न वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
प्रश्न 1. आदिमकालीन
समाज जंगली ................. पर निर्भर था।
उत्तर:
पशुओं
प्रश्न 2. ................. संग्रह व ................. प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाएं है।
उत्तर:
भोजन, आखेट
प्रश्न 3. चलवासी
पशुचारण एक प्राचीन ................. व्यवसाय रहा है।
उत्तर:
जीवन-निर्वाह
प्रश्न 4. भूमध्य
सागरीय कृषि अति ................. प्रकार की कृषि है।
उत्तर:
विशिष्ट
प्रश्न 5. ................. संस्था कृषकों को सभी रूप में सहायता करती है।
उत्तर:
सरकारी।
सत्य - असत्य कथन संबंधी प्रश्न:
निम्न में से सत्य-असत्य कथनों की पहचान कीजिए:
प्रश्न 1. भोजन
संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2. वाणिज्य
पशुधन पालन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 3. आदिकालीन
निर्वाह कृषि मैदानी भागों में की जाती है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4. धरातलीय
खनन को विवृत खनन भी कहा जाता है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 5. विकसित
अर्थव्यवस्था वाले देश खनन, प्रसंस्करण व शोधन में आगे बढ़
रहे हैं।
उत्तर:
असत्य
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न:
प्रश्न 1. आर्थिक
क्रियाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मानव के वे क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं।
प्रश्न 2. आर्थिक
क्रियाओं के प्रमुख वर्ग कौन - कौन से हैं?
उत्तर:
1.
प्राथमिक
2.
द्वितीयक
3.
तृतीयक
4.
चतुर्थक
5.
पंचमक।
प्रश्न 3. प्रत्यक्ष
रूप से पर्यावरण पर कौन - सी क्रियाएँ निर्भर होती हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती हैं।
प्रश्न 4. किन्हीं
चार प्राथमिक क्रियाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
1.
शिकार करना (आखेट)
2.
भोजन संग्रह
3.
पशुचारण
4.
कृषि।
प्रश्न 5. लाल
कॉलर श्रमिक कौन कहलाते हैं?
अथवा
लाल कॉलर श्रमिक से क्या आशय है?
उत्तर:
प्राथमिक क्रियाकलाप करने वाले ऐसे लोग जिनका कार्यक्षेत्र उनके घर
से बाहर होता है, लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं।
प्रश्न 6. भारत
में शिकार पर क्यों प्रतिबन्ध लगाया गया है?
उत्तर:
क्योंकि अवैध शिकार के कारण हमारे देश में जंगली जीवों की अनेक
प्रजातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं या संकट में हैं जिसके कारण जंगली जीवों की
संख्या तेजी से घट गई है।
प्रश्न 7. मानव
की प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
1.
भोजन संग्रह
2.
आखेट।
प्रश्न 8. भोजन
संग्रह व आखेट का कार्य आदिमकालीन समाज द्वारा किस उद्देश्य से किया जाता है?
उत्तर:
इस कार्य का प्रमुख उद्देश्य आदिमकालीन समाज के लोगों द्वारा अपने
भोजन, वस्त्र एवं शरण की आवश्यकताओं की आपूर्ति करना होता
है।
प्रश्न 9. विश्व
में संग्रह के कौन-कौन से क्षेत्र हैं?
उत्तर:
1.
उच्च अक्षांश के क्षेत्र उत्तरी कनाडा, उत्तरी
यूरेशिया व दक्षिणी चिली।
2.
निम्न अक्षांश के क्षेत्र अमेजन बेसिन, उष्ण
कटिबंधीय अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व दक्षिणी-पूर्वी एशिया।
प्रश्न 10. जेपोटा
वृक्ष के दूध से क्या बनता है?
उत्तर:
जेपोटा वृक्ष के दूध से च्युगम का चिकल बनता है।
प्रश्न 11. विश्व
स्तर पर भोजन संग्रहण का अधिक महत्त्व क्यों नहीं है?
उत्तर:
क्योंकि इन क्रियाओं के द्वारा प्राप्त उत्पाद विश्व बाजार में
प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं साथ ही अनेक उत्तम किस्म एवं कम मूल्य वाले कृत्रिम
उत्पादों ने भोजन संग्रह करने वाले समूहों के उत्पादों का स्थान ले लिया है।
प्रश्न 12. ऋतु
प्रवास से क्या आशय है?
उत्तर:
ग्रीष्मकाल में मैदानी भागों से पर्वतीय चारागाहों की ओर तथा शीतकाल
में पर्वतीय भागों से मैदानी चारागाहों की ओर पशुचारकों का होने वाला प्रवास ऋतु
प्रवास कहलाता है।
प्रश्न 13. भारत
में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में कौन से जाति समूह ऋतु प्रवास करते हैं।
उत्तर:
भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल, गद्दी एवं भूटिया लोगों के समूह ऋतु प्रवास
करते हैं।
प्रश्न 14. वर्तमान
में चलवासी पशुचारकों की संख्या घटने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
1.
राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण।
2.
कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना।
प्रश्न 15. कौन
- सी गतिविधि पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है?
उत्तर:
वाणिज्य पशुधन पालन।
प्रश्न 16. विश्व
में वाणिज्य पशुधन पालन किन देशों में किया जाता है?
उत्तर:
न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेन्टाइना, उरुग्वे तथा संयुक्त राज्य अमेरिका
विश्व में वाणिज्य पशुधन पालन करने वाले प्रमुख देश हैं।
प्रश्न 17. विश्व
में विभिन्न प्रकार की कृषि प्रणालियाँ क्यों पायी जाती हैं?
उत्तर:
विश्व में पायी जाने वाली विभिन्न भौतिक, सामाजिक
एवं आर्थिक दशाएँ कृषि कार्य को प्रभावित करती हैं। इसी प्रभाव के कारण विश्व में
विभिन्न प्रकार की कृषि प्रणालियाँ पायी जाती हैं।
प्रश्न 18. विश्व
में आदिकालीन निर्वाह कृषि के कौन - कौन से क्षेत्र हैं?
उत्तर:
विश्व में आदिकालीन निर्वाह कृषि अफ्रीका, दक्षिणी
एवं मध्य अमेरिका के उष्ण कटिबंधीय भाग तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में की जाती है।
प्रश्न 19. स्थानांतरणशील
कृषि को कर्तन एवं दहन कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा स्थानांतरी
कृषि हेतु प्राकृतिक वनस्पति को काट दिया या जला दिया जाता है। इस जली हुई वनस्पति
की राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इसी कारण
स्थानांतरणशील कृषि को कर्तन एवं दहन कृषि के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 20. आदिकालीन
निर्वाह कृषि को विश्व के विभिन्न भागों में किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
आदिकालीन निर्वाह कृषि को भारत के उत्तरी-पूर्वी भागों में झूमिंग,
मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा, मलेशिया
व इंडोनेशिया में लादांग, श्रीलंका में चेना, म्यांमार में टोंग्या एवं सूडान में नगासू कहा जाता है।
प्रश्न 21. गहन
निर्वाह कृषि के दो प्रकारों के नाम बताइए।
उत्तर:
1.
चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि।
2.
चावल रहित गहन निर्वाह कृषि।
प्रश्न 22. चावल
प्रधान गहन निर्वाह कृषि की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
इसमें भूमि का गहन उपयोग होता है तथा मशीनों की तुलना में मानवीय
श्रम का महत्त्व अधिक होता है।
प्रश्न 23. फेजेंडा
क्या है?
उत्तर:
ब्राजील में कॉफी के बागानों को फेजेंडा कहा जाता है।
प्रश्न 24. विस्तृत
वाणिज्य अनाज कृषि की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
इस कृषि में वृहत् आकार के खेतों में मशीनों द्वारा कृषि की जाती
है। इसमें प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है लेकिन प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता
है।
प्रश्न 25. विस्तृत
वाणिज्य अनाज कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन कम लेकिन प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक
क्यों होता है?
उत्तर:
इस कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन इसलिए कम होता है क्योंकि यह कृषि
कम उपजाऊ अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में प्रमुख रूप से की जाती है। ऐसे क्षेत्र
जनसंख्या की दृष्टि से कम सघन बसे होते हैं। इसी कारण प्रति एकड़ उत्पादन कम होते
हुए भी प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक दर्ज किया जाता है।
प्रश्न 26. मिश्रित
कृषि की सर्वप्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
मिश्रित कृषि में कृषि फसलों के उत्पादन तथा पशुपालन दोनों को समान
महत्त्व दिया जाता है।
प्रश्न 27. वाणिज्य
डेरी कृषि के प्रमुख क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, कनाडा, न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया तथा
तस्मानिया वाणिज्य डेरी कृषि के प्रमुख क्षेत्र हैं।
प्रश्न 28. भूमध्य
सागरीय क्षेत्र की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
रसदार खट्टे फलों की कृषि भूमध्य सागरीय क्षेत्र की प्रमुख विशेषता
है।
प्रश्न 29. ट्रक
कृषि क्या है?
उत्तर:
ट्रक कृषि के अंतर्गत सब्जियों की कृषि की जाती है। फार्म एवं बाजार
के मध्य की दूरी, जो एक ट्रक रात-भर में तय करता है, उसी के आधार पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया।
प्रश्न 30. सहकारी
कृषि किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जब कृषकों का एक समूह अपनी भूमि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा
से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करता है तो उसे सहकारी कृषि कहा जाता है।
प्रश्न 31. संयुक्त
राज्य अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग में अधिक मुद्रा प्राप्त करने के लिए किस
प्रकार की कृषि सर्वाधिक उपयुक्त है?
उत्तर:
मिश्रित कृषि।
प्रश्न 32. खनन
की विधियाँ अथवा प्रकार.बताइए।
उत्तर:
खनन की विधियाँ अथवा प्रकार दो हैं:
1.
धरातलीय खनन
2.
भूमिगत खनन (कूपकी खनन)।
प्रश्न 33. कूपकी
खनन विधि का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब कूपकी खनन विधि का प्रयोग
किया जाता है।
प्रश्न 34. विश्व
के विकसित देश खनन संबंधी कार्यों से पीछे क्यों हट रहे हैं?
उत्तर:
क्योंकि इन देशों में मानवीय श्रम महँगा है, इसलिए
इन देशों को खनन कार्य में अधिक श्रम लागत व्यय करनी होती है।
प्रश्न 35. विश्व
के विकासशील राष्ट्रों में खनन कार्य सफलतापूर्वक क्यों संचालित हो रहा है?
उत्तर:
क्योंकि विश्व में विकासशील राष्ट्रों में पर्याप्त संख्या में
सस्ते खनन श्रमिक आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जिसके कारण खनन कार्य में इन देशों
को कम श्रम मूल्य व्यय करना पड़ता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1):
प्रश्न 1. प्राथमिक
क्रियाएँ कौन - कौन सी हैं? ये पर्यावरण पर क्यों निर्भर
होती हैं?
उत्तर:
आखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण,
मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि कार्य करना एवं खनन कार्य आदि प्राथमिक क्रियाएँ हैं। प्राथमिक
क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती हैं क्योंकि ये
पृथ्वी के संसाधनों; जैसेभूमि, जल, वनस्पति, भवन निर्माण
सामग्री, खनिजों एवं जीवों के उपयोग से सम्बन्धित होती हैं।
प्रश्न 2. आदिमकालीन
मानव अपना जीवन निर्वाह किस प्रकार करता था?
उत्तर-:
मानव सभ्यता के आरम्भिक युग में आदिमकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह
के लिए अपने समीपवर्ती वातावरण पर निर्भर रहता था। उसका जीवन निर्वाह दो कार्यों
द्वारा होता था
1.
पशुओं का आखेट करके
2.
अपने समीपवर्ती जंगलों से खाने योग्य कंद - मूल एवं
जंगली पौधे आदि एकत्रित करके। अतिशीत एवं अत्यधिक गर्म प्रदेशों में रहने वाले लोग
आखेट द्वारा जीवन यापन करते थे।
प्रश्न 3. "आदिमकालीन मानव समाज पूर्णतः जंगली पशुओं पर निर्भर था।" कथन को
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आदिमकालीन मानव समाज पूर्णतः पशुओं पर निर्भर इसलिए था क्योंकि इस
काल में मानवीय विकास एवं प्रौद्योगिकी का स्तर अत्यधिक निम्न था। अपनी न्यून
ज्ञान क्षमता के कारण कृषि प्रक्रिया का विकास नहीं होने से मानव का भोजन मुख्यतः
जंगली पशुओं एवं कंद-मूल-फलों से जुड़ा था साथ ही मानव ने अपनी सुरक्षा हेतु भी
कुछ पशुओं को पालतू बनाया था, उसके आवागमन में भी पशुओं की
प्रधानता मिलती थी एवं मानव अपने विविध प्रकार के औजारों का निर्माण भी पशुओं की
हड्डियों से करता था।
प्रश्न 4. वर्तमान
समय में विश्व स्तर पर भोजन संग्रहण का अधिक महत्त्व नहीं रह गया है। क्यों?
उत्तर:
वर्तमान समय में विश्व स्तर पर भोजन संग्रहण का अधिक महत्त्व नहीं
रह गया है क्योंकि इन क्रियाओं के द्वारा प्राप्त उत्पाद विश्व बाजार से
प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हैं। आज बाजार में अनेक प्रकार की उत्तम किस्म एवं
कम कीमत वाली कृत्रिम वस्तुएँ उपलब्ध हैं जिन्होंने उष्ण कटिबंधीय वन क्षेत्रों के
भोजन संग्रह करने वाले समूहों के उत्पादों का स्थान ले लिया है:
प्रश्न 5. संग्रहण
की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संग्रहण की मुख्यरूप से निम्न विशेषताएँ हैं।
1.
यह कार्य शुष्क एवं ध्रुवीय क्षेत्रों में किया जाता
है।
2.
यह मानव की प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रिया है।
3.
इस कार्य को आदिम समाज के लोगों द्वारा किया जाता है।
4.
संग्रहण का कार्य मुख्यतः भोजन आपूर्ति एवं निर्वहन
के दृष्टिकोण से किया जाता है।
प्रश्न 6. पशुचारण
व्यवसाय का विकास किस प्रकार हुआ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
विश्व के विभिन्न भागों में आखेट पर निर्भर रहने वाले मानव समूह ने
जब यह महसूस किया कि केवल आखेट द्वारा ही जीवन यापन करना सम्भव नहीं है तब मानव ने
पशुचारण व्यवसाय के संबंध में अपना ध्यान केन्द्रित किया। विश्व की विभिन्न
जलवायुविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाये जाने वाले पशुओं का
चयन करके उनको पालतू बनाया। भौगोलिक कारकों एवं तकनीकी विकास के आधार पर वर्तमान
समय में पशुचारण व्यवसाय को दो रूपों में अपनाया गया है। चलवासी पशुचारण एवं
वाणिज्य पशुधन पालन। इस प्रकार पशुचारण व्यवसाय का विकास हुआ।
प्रश्न 7. चलवासी
पशुचारण से क्या आशय है? इससे मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे
की जाती है?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण का आशय लोगों के जीवन के ढंग जिसमें उन्हें अपने
पशुओं, उनकी अर्थव्यवस्था के आधार के लिए चारागाहों की तलाश
में बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने निवास को स्थानांतरित करना पड़ता है।
चलवासी पशुचारण कहा जाता है। चलवासी पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र,
शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर निर्भर
रहते हैं। वे अपने पालतू पशुओं के साथ पानी एवं चारागाहों की उपलब्धता की तलाश में
एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते हैं तथा इनसे ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति
करते हैं।
प्रश्न 8. चलवासी
पशुचारण के प्रमुख क्षेत्र एवं वहाँ पाये जाने वाले प्रमुख पशुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं:
1.
उत्तरी अफ्रीका के अटलांटिक तट से अरब प्रायद्वीप
होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक
2.
यूरोप एवं एशिया के टुण्ड्रा प्रदेश
3.
दक्षिणी - पश्चिमी अफ्रीका एवं मेडागास्कर द्वीप।
इन क्षेत्रों में कई प्रकार
के पशु पाले जाते हैं जिनमें उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका में गाय-बैल, एशिया व
सहारा के मरुस्थलों में भेड़, बकरी व ऊँट, तिब्बत एवं एंडीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा तथा आर्कटिक व ध्रुवीय
क्षेत्रों में रेडियर पाले जाते हैं।
प्रश्न 9. ऋतुप्रवास
को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पशुचारक वर्ग के लोग नवीन चारागाहों की तलाश में समतल मैदानी
क्षेत्रों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में लम्बी-लम्बी दूरियाँ तय करते हैं। ग्रीष्मकाल
में मैदानी भागों से पर्वतीय क्षेत्रों के चरागाहों की ओर तथा शीत ऋतु में पर्वतीय
भागों से मैदानी क्षेत्र के चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं। इनकी इस विधि को ही
ऋतु प्रवास के नाम से जाना जाता है।
उदाहरण: भारत के हिमालय के
पर्वतीय क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल, गद्दी एवं भूटिया लोगों के
समूह ग्रीष्मकाल में मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय क्षेत्रों में चले जाते हैं एवं
शीतकाल में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों में आ जाते हैं।
प्रश्न 10. वाणिज्य
पशुधन पालन व्यवसाय क्या है?
उत्तर:
वाणिज्य पशुधन पालन: वाणिज्य पशुधन पालन का कार्य व्यवस्थित रूप में
विशाल फार्मों पर पर्याप्त पूँजी व्यय कर के किया जाता है। इस व्यवसाय में पशुओं
की संख्या चारागाह की वहन क्षमता के अनुसार रखी जाती है। इस व्यवसाय में केवल एक
ही प्रकार के पशुओं का पालन किया जाता है तथा पशुओं से प्राप्त विभिन्न उत्पादों
को आधुनिक तकनीकों के माध्यम से विश्व बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है।
न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, उरुग्वे तथा
संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन व्यवसाय प्रमुख रूप से किया जाता
है।
प्रश्न 11. कृषि
क्या है ?
अथवा
कृषि प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कृषि - मृदा को जोतने, फसलें उगाने एवं पशुओं के पालन-पोषण के विज्ञान एवं कला को कृषि कहा जाता
है। कृषि के प्रकार-कृषि के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।
1.
निर्वाह कृषि:
2.
आदिकालीन निर्वाह कृषि
3.
गहन निर्वाह कृषि
4.
रोपण कृषि
5.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
6.
मिश्रित कृषि
7.
डेरी कृषि
8.
भूमध्य सागरीय कृषि
9.
बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि
10. सहकारी कृषि
11. सामूहिक कृषि।
प्रश्न 12. आदिमकालीन
निर्वाह कृषि से क्या आशय है?
अथवा
स्थानांतरणशील कृषि से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
कर्तन एवं दहन कृषि के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
आदिकालीन निर्वाह कृषि: इसे स्थानांतरणशील कृषि या कर्तन या दहन
कृषि भी कहते हैं। कृषि की इस पद्धति में वन भूमि के एक हिस्से में से पेड़ और
झाड़ियों को काटकर उसे साफ कर दिया जाता है। इस प्रकार से कटी हुई वनस्पति को जला
दिया जाता है और उससे प्राप्त हुई राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है। वनस्पति
को काटने के कारण इसे कर्तन और वनों को जलाने के कारण इसे दहन कृषि कहा जाता है।
यह राख मिट्टी में खाद का काम करती है। इस साफ किए भू-भाग पर तब तक फसलें उगायी
जाती हैं जब तक उसमें उर्वरा शक्ति बनी रहती है। मृदा की उर्वरा शक्ति समाप्त होने
पर कृषक नए क्षेत्र में वनों को जलाकर उस पर कृषि कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया
सतत् रूप से चलती रहती है।
प्रश्न 13. वह
कौन - सी कृषि पद्धति है जिसे क्षेत्रानुसार भिन्न - भिन्न नामों से पुकारा जाता
है?
उत्तर-:
आदिकालीन निर्वाह कृषि अथवा स्थानांतरणशील कृषि को भिन्न-भिन्न
क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। इस कृषि पद्धति को भारत के
उत्तरी-पूर्वी राज्यों में झूमिंग, मध्य अमेरिका एवं
मैक्सिको में मिल्पा, मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग,
श्रीलंका में चेन्ना तथा सूडान में न्गासू के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 14. चावल
प्रधान गहन निर्वाह कृषि की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए?
अथवा
निर्वाह कृषि की विशेषता बताइए।
उत्तर:
चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
1.
चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि में चावल प्रमुख फसल
होती है।
2.
इस प्रकार की कृषि में भूमि का गहन उपयोग किया जाता
है।
3.
इस प्रकार की कृषि में यंत्रों की तुलना में मानवीय
श्रम का अधिक महत्त्व है।
4.
इस प्रकार की कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता
है लेकिन प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।
5.
इस प्रकार की कृषि में कृषक का पूरा परिवार कृषि
कार्य में लगा रहता है।
6.
इस कृषि में भूमि की उत्पादकता एवं उपजाऊपन को बनाए
रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद व हरी खाद का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 15. चावल
रहित गहन निर्वाह कृषि का पंक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
चावल रहित गहन निर्वाह कृषि मुख्य रूप से मानसून एशिया के उन
क्षेत्रों में की जाती है जहाँ उच्चावच, जलवायु, मृदा एवं अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण चावल की फसल उगाना
प्रायः असम्भव है। इस कृषि के अंतर्गत बोयी जाने वाली फसलों में सिंचाई की जाती
है। उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी
कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूँ, सोयाबीन, जौ व बाजरा बोया जाता है। जबकि भारत के गंगा-सिंधु के मैदान के पश्चिमी
भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी-पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा प्रमुख रूप से
उगाया जाता है।
प्रश्न 16. विस्तृत
वाणिज्य कृषि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विस्तृत वाणिज्य कृषि की मुख्य फसल गेहूँ है। इसके अतिरिक्त मक्का,
जौ, राई व जई भी बोयी जाती है। इस कृषि में
खेतों का आकार बहुत विशाल होता है तथा यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार
की कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है लेकिन प्रति व्यक्ति औसत उत्पादन अधिक
होता है। इस प्रकार की कृषि यूरेशिया के स्टेपीज, उत्तरी
अमेरिका के प्रेयरीज, अर्जेन्टाइना के पंपास, दक्षिणी अफ्रीका के वेल्डस, ऑस्ट्रेलिया के डाउंस
एवं न्यूजीलैण्ड के केंटनबरी के घास प्रदेशीय मैदानों में की जाती है।
प्रश्न 17. मिश्रित
कृषि क्या है? यह विश्व में कहाँ - कहाँ की जाती है?
उत्तर:
मिश्रित कृषि: यह कृषि का एक प्रकार है जिसमें फसलों को उगाया और
पशुओं को पाला जाता है। इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में
मध्यम आकार के खेतों में आधुनिक पद्धति से की जाती है। इस कृषि के प्रमुख क्षेत्र
उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग,
यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अक्षांश
वाले भागों में स्थित क्षेत्र हैं।
प्रश्न 18. डेरी
कृषि क्या है? डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक
क्षेत्रों के समीप क्यों किया जाता है?
अथवा
डेरी कृषि के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
डेरी कृषि: पर्याप्त पूँजी, आधुनिक यंत्र,
गहन कृषि एवं आधुनिक पशु स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता से दुधारू
पशुओं से व्यावसायिक स्तर पर दुग्ध उत्पादन करने का कार्य डेरी कृषि कहलाता है।
डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों के समीप इसलिए किया जाता है
क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेरी उत्पादों के अच्छे बाजार होते हैं।
डेरी कृषि, उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, कनाडा,
न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया एवं
तस्मानिया में प्रमुख रूप से की जाती है।
प्रश्न 19. भूमध्य
सागरीय कृषि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भूमध्य सागरीय कृषि का प्रचलन भूमध्य सागरीय जलवायु रखने वाले
निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलता है।
1.
दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया से
अटलांटिक तट तक भूमध्य सागर के समीपवर्ती भाग।
2.
संयुक्त राज्य अमेरिका में दक्षिणी कैलीफोर्निया।
3.
दक्षिणी अमेरिका में मध्यवर्ती चिली।
4.
दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणी-पश्चिमी भाग।
5.
ऑस्ट्रेलिया का दक्षिणी एवं दक्षिणी-पश्चिमी भाग।
प्रमुख फसलें: अंगूर
भूमध्यसागरीय कृषि की प्रमुख फसल है। अंगूरों से उच्च गुणवत्ता की शराब, मुनक्का तथा
किशमिश तैयार की जाती है। अंजीर, जैतून, अन्य खट्टे रसदार फल तथा सब्जियाँ यहाँ उत्पादित की जाने वाली अन्य फसलें
हैं।
प्रश्न 20. सब्जी
की खेती एवं उद्यान कृषि के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि में आर्थिक रूप से अधिक लाभदायक
फसलें जैसे सब्जियाँ, फल एवं पुष्पों की कृषि नगरीय
क्षेत्रों में आपूर्ति के उद्देश्य से की जाती है। इस कृषि में गहन श्रम एवं अधिक
पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त सिंचाई, उर्वरक,
उत्तम किस्म के बीज, कीटनाशी, हरित गृह एवं शीत क्षेत्रों में कृत्रिम ताप का भी इस कृषि में उपयोग होता
है।
यह कृषि मुख्य रूप से उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, उत्तरी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका व भूमध्य सागरीय प्रदेशों में की
जाती है।
प्रश्न 21. कारखाना
कृषि कहाँ की जाती है? इसके प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में
कारखाना कृषि की जाती है। इस कृषि में गाय-बैल व कुक्कुटों को पाला जाता है।
उन्हें बाड़े में रखा जाता है तथा कारखानों में निर्मित चारा खिलाया जाता है।
पशुओं की बीमारियों का ध्यान रखा जाता है। अन्य व्यापारिक कृषि पद्धतियों की भाँति
इस कृषि में भी भवन निर्माण, यंत्र खरीदने, प्रकाश व ताप की व्यवस्था एवं पशु चिकित्सा के लिए बहुत अधिक धन की
आवश्यकता होती है। उत्तम नस्ल का चुनाव व प्रजनन की वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग
कुक्कुट व पशुपालन के प्रमुख लक्षण हैं।
प्रश्न 22. सहकारी
कृषि क्या है? यह किन - किन देशों में की जाती है?
उत्तर:
सहकारी कृषि: जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि भूमि से अधिक लाभ
प्राप्त करने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करता है तो
उसे सहकारी कृषि कहते हैं। सहकारी कृषि मुख्य रूप से पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क,
नीदरलैण्ड, स्वीडन, बेल्जियम
व इटली में सफलतापूर्वक की जा रही है। इस कृषि को सर्वाधिक सफलता डेनमार्क में
प्राप्त हुई है जहाँ प्रत्येक किसान इसका सदस्य है।
प्रश्न 23. खनन
क्या है? खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारकों को लिखिए।
उत्तर:
खनन - पृथ्वी से वाणिज्यिक दृष्टि से बहुमूल्य खनिजों की प्राप्ति
से जुड़ी आर्थिक क्रिया को खनन कहा जाता है। खनन से खनिजों को खनिज अयस्क के रूप
में प्राप्त किया गया है।
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक-खनन कार्य की लाभप्रदता एवं
इसे प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1.
भौतिक कारक जिनमें खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी तथा
उपलब्धता की अवस्था को सम्मिलित किया जाता है।
2.
आर्थिक कारक जिनमें खनिज की माँग, वर्तमान तकनीकी
ज्ञान का स्तर एवं इसका उपयोग, आधारभूत अवसंरचना के विकास के
लिए उपलब्ध पूँजी तथा परिवहन व मानवीय श्रम पर होने वाले व्यय को सम्मिलित किया
जाता है।
प्रश्न 24. क्या
कारण है कि वर्तमान समय में विकसित देश खनन कार्य से पीछे हट रहे हैं जबकि
विकासशील देश इसे महत्त्व प्रदान कर रहे हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश खनन कार्य से पीछे हट
रहे हैं क्योंकि इसमें श्रम लागत अधिक आने लगी है जबकि विकासशील देश अपनी विशाल
श्रम शक्ति के बल पर अपने देशवासियों के जीवन स्तर को उच्च बनाने के लिए खनन कार्य
को महत्त्व प्रदान कर रहे हैं। अफ्रीका, एशिया व दक्षिणी
अमेरिकी महाद्वीप के कई विकासशील देशों में आय के साधनों का 50 प्रतिशत तक खनन कार्य से प्राप्त हो रहा है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2):
प्रश्न 1. भोजन
संग्रह व आखेट नामक आर्थिक क्रियाओं की विशेषताओं का उल्लेख तथा इसके प्रमुख
क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भोजन संग्रह व आखेट व्यवसाय की प्रमुख विशेषताएँ:
1.
भोजन संग्रह व आखेट नामक आर्थिक क्रियाकलापों को
आदिमकालीन मानव द्वारा कठोर जलवायु दशाएँ रखने वाले क्षेत्रों में किया जाता है।
2.
यह कार्य विश्व के विभिन्न भागों में विभिन्न स्तरों
व विभिन्न रूपों में किया जाता है।
3.
यह व्यवसाय भोजन, वस्त्र, शरण
जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण प्राथमिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के उद्देश्य से किया जाता
है।
4.
इस व्यवसाय में बहुत कम पूँजी, निम्नस्तरीय
तकनीक तथा अधिक मानवीय श्रम की आवश्यकता होती है।
5.
प्रति व्यक्ति उत्पादकता कम होती है। भोजन संग्रह व
आखेट व्यवसाय के प्रमुख क्षेत्र
6.
उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में स्थित उत्तरी कनाडा, उत्तरी
यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली तथा निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों में स्थित अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, दक्षिणी
- पूर्वी एशिया के आंतरिक भागों में तथा न्यूगिनी में यह व्यवसाय किया जाता है।

प्रश्न 2. आधुनिक
समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में व्यापारीकरण होने से क्या परिवर्तन
आया है?
उत्तर:
उच्च अक्षांशीय तथा निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों के कुछ भागों में
अधिक पूँजी तथा उच्च तकनीक के माध्यम से भोजन संग्रह व्यवसाय का व्यापारीकरण कर
दिया गया है। इसके अंतर्गत स्थानीय लोगों की सहायता से कीमती वृक्षों की पत्तियाँ,
छाल एवं औषधीय पौधों का संग्रह कराया जाता है तथा इन्हें संशोधित कर
अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में विक्रय कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित
संग्रहीत वनोत्पादों का आधुनिक मशीनों की सहायता से शोधन कर विभिन्न उपयोगी
उत्पादन प्राप्त किए जाते हैं
|
संग्रहीत
वस्तुएँ |
शोधित
उत्पाद |
|
(i) पौधों की छाल |
कुनैन
तथा कार्क |
|
(ii)
पौधों की पत्तियाँ पेय पदार्थ, |
दवाइयाँ
तथा क्रांतिवर्द्धक वस्तुएँ |
|
(iii)
पौधों के रेशे |
वस्त्रों
का धागा |
|
(iv)
पौधों के दृढ़फल |
भोजन व तेल |
|
(v) पौधों का तना रबड़, |
बलाटा, गोंद व
राल। |
प्रश्न 3. चलवासी पशुचारण की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इस व्यवसाय के
प्रमुख क्षेत्रों को मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:

चलवासी पशुचारण की प्रमुख
विशेषताएँ:
1.
यह एक प्राचीन जीवन: निर्वाह व्यवसाय है जिसमें
पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार तथा आवागमन
के लिए पालित पशुओं पर पूर्णतया निर्भर रहता है।
2.
पशुचारक अपने परिवार तथा पालित पशुओं के साथ एक स्थान
से दूसरे स्थान की ओर पानी व चारागाहों की तलाश में स्थानांतरित होता रहता है।
3.
प्रत्येक पशुचारक समुदाय के अपने-अपने निश्चित
चारागाह होते हैं।
4.
उष्ण मरुस्थलीय प्रदेशों में किए जाने वाले चलवासी
पशुचारण में भेड़, बकरी तथा ऊँट प्रमुख पालित पशु होते हैं जबकि तिब्बत व एंडीज पर्वत
श्रेणियों पर यॉक व लामा नामक पशुओं को पाला जाता है।
प्रश्न 4. वाणिज्य
पशुधन पालन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए तथा इस व्यवसाय के प्रमुख
क्षेत्रों को विश्व मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:

1.
यह एक व्यवस्थित तथा पूँजी प्रधान व्यवसाय है जो
पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है।
2.
इसमें पशु चारागाह फार्म स्थायी तथा एक विशाल क्षेत्र में फैले हुए मिलते
हैं।
3.
इस कृषि पद्धति में 3 से 5 वर्ष
तक कृषि भूमि में खेती की जाती है तथा इसके बाद कृषि भूमि की उर्वरकता समाप्त होने
पर नए क्षेत्र के वनों को जलाकर कृषि भूमि प्राप्त की जाती है।
4.
कुछ वर्ष बाद कृषक पुन: पहले वाले कृषि क्षेत्र पर
(उर्वरकता में वृद्धि हो जाने के कारण) वापस कृषि कार्य करने आ जाता है। इस प्रकार
झूम का यह चक्र (आग लगाकर कृषि भूमि तैयार करना) चलता रहता है।
5.
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से
जाना जाता है। भारत के उत्तर - पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य
अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता
है।
प्रश्न 5. स्थानांतरणशील
कृषि की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
आदिकालीन निर्वाह कृषि की
प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आदिकालीन निर्वाह कृषि (स्थानांतरणशील कृषि) की विशेषताएँ:
इस कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1.
इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि
भूमि प्राप्त की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इसी
कारण इस कृषि को कर्तन-दहन कृषि भी कहा जाता है।
2.
इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है तथा इनमें
कृषि कार्य पुराने औजारों (जैसे लकड़ी, कुदाली तथा फावड़ों) से किया जाता
है।
3.
इस कृषि पद्धति में 3 से 5 वर्ष तक
कृषि भूमि में खेती की जाती है तथा इसके बाद कृषि भूमि की उर्वरकता समाप्त होने पर
नए क्षेत्र के वनों को जलाकर कृषि भूमि प्राप्त की जाती है।
4.
कुछ वर्ष बाद कृषक पुनः पहले वाले कृषि क्षेत्र पर
(उर्वरकता में वृद्धि हो जाने के कारण) वापस कृषि कार्य करने आ जाता है। इस प्रकार
झूम का यह चक्र (आग लगाकर कृषि भूमि तैयार करना) चलता रहता है।
5.
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से
जाना जाता है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य
अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता
है।
प्रश्न 6. रोपण
कृषि की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ-रोपण कृषि की प्रमुख विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं:
1.
इस कृषि को यूरोपीय एवं अमेरिकी लोगों ने अपने अधीन
उष्ण कटिबंधीय उपनिवेशों में स्थापित किया था।
2.
इसमें बागानों का आकार बहुत विशाल होता है। कुछ बागान
हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए होते हैं।
3.
इस कृषि के अंतर्गत अधिक पूँजी निवेश, उच्च
प्रबन्धन, उच्च तकनीक तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया
जाता है।
4.
इस कृषि के अंतर्गत केवल किसी एक ही फसल का उत्पादन
किया जाता है।
5.
सस्ते श्रमिकों की पर्याप्त उपलब्धता वाले क्षेत्रों
में इस प्रकार की कृषि की जाती है।
6.
सस्ता अकुशल श्रम स्थानीय लोगों से प्राप्त किया जाता
है जबकि तकनीकी सहायता एवं कुशल श्रम शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों से प्राप्त होता
है।
7.
रोपण कृषि वाले क्षेत्रों में यातायात सुविधाएँ
विकसित अवस्था में मिलती हैं जिसके द्वारा बागानों एवं बाजार का सुलभ सम्पर्क बना
रहता है।
8.
यह कृषि उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले क्षेत्रों में
प्रमुखता से की जाती है।
9.
यह वृहद् स्तरीय लाभोन्मुख उत्पादन कृषि प्रणाली है।
प्रश्न 7. विस्तृत
वाणिज्य अनाज कृषि का संक्षेप में सचित्र विवरण दीजिए।
उत्तर:
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि के प्रमुख क्षेत्र-इस प्रकार की कृषि
विश्व के मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में स्थित आंतरिक अर्द्ध-शुष्क घास क्षेत्रों
में की जाती है। विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि विश्व के निम्नलिखित क्षेत्रों में की
जाती है
1.
यूरेशिया के स्टेपीज
2.
उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज
3.
अर्जेन्टीना के पम्पास
4.
दक्षिणी अफ्रीका के वेल्डस
5.
ऑस्ट्रेलिया के डाउन्स
6.
न्यूजीलैण्ड का केंटनबरी मैदान।

वाणिज्य पशुधन पालन की
प्रमुख विशेषताएँ:
1.
यह एक व्यवस्थित तथा पूँजी प्रधान व्यवसाय है जो
पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है।
2.
इसमें पशु चारागाह फार्म स्थायी तथा एक विशाल क्षेत्र
में फैले हुए मिलते हैं।
3.
पशुओं की चराई को नियन्त्रित करने के लिए इन विशाल
चारागाह फार्मों में बाड़ लगाकर उसे अनेक भागों में बाँट दिया जाता है।
4.
इस व्यवसाय में पशुओं की संख्या चारागाह की वहन
क्षमता के अनुसार रखी जाती है।
5.
इसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। भेड़, बकरी,
गाय-बैल तथा घोड़े इस व्यवसाय के प्रमुख पालित पशु हैं।
6.
पशुओं का पालन वैज्ञानिक ढंग व उच्च तकनीक के माध्यम
से किया जाता है।
7.
पशु उत्पादों का अधिकांश भाग वैज्ञानिक ढंग से
संसाधित कर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है।
प्रश्न 8. मिश्रित
कृषि क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मिश्रित कृषि: यह कृषि का एक प्रकार है जिसमें एक साथ फसलों को
उगाया और पशुओं को पाला जाता है। मिश्रित कृषि की विशेषताएँ: मिश्रित कृषि की
निम्नलिखित विशेषताएँ हैं।
1.
इस प्रकार की कृषि में फसल उत्पादन तथा पशुपालन साथ -
साथ किया जाता है।
2.
इस प्रकार की कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है
जिस पर बोई जाने वाली फसलों में गेहूँ, जौ, राई,
मक्का, चारे की फसल तथा कंद - मूल प्रमुख हैं।
वस्तुतः चारे की फसलें मिश्रित कृषि में अनिवार्य रूप से उगायी जाती हैं।
3.
एक ओर जहाँ कृषक कृषि फसलों के उत्पादन से आय प्राप्त
करते हैं, वहीं दूसरी ओर पशुपालन व्यवसाय के अंतर्गत पालित गाय - बैल, सूअर तथा मुर्गीपालन से भी आय प्राप्त होती है।
4.
इस कृषि के अंतर्गत खेतों की मिट्टी के उपजाऊपन को
बनाए रखने लिए विभिन्न फसलों के एक क्रमिक अनुक्रमण का अनुपालन किया जाता है।
5.
इस कृषि के अंतर्गत उन्नत कृषि यंत्रों, भवनों,
रासायनिक एवं वनस्पति खाद के गहन उपयोग पर अधिक पूँजी व्यय की जाती
है।
6.
इस कृषि में कृषक कृषि कार्यों में अति निपुणता रखते
हैं।
प्रश्न 9. विश्व
में डेरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
विश्व में डेरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ: विश्व में किए जाने वाले
डेरी कृषि व्यवसाय की निम्नलिखित विशेषताएँ सर्वप्रमुख हैं।
1.
इस व्यवसाय में सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष तकनीक की
सहायता से दुधारू पशुओं का वाणिज्यिक स्तर पर पालन किया जाता है।
2.
इस व्यवसाय में गहन. मानवीय श्रम तथा पर्याप्त पूँजी
की आवश्यकता होती है।
3.
पालित पशुओं के आवास, चारा भण्डारण तथा दुग्ध उत्पादन में
प्रयुक्त यंत्रों पर पर्याप्त पूँजी व्यय की जाती है।
4.
पालित पशुओं के पालन व दुग्ध उत्पादन के लिए
वर्षपर्यन्त मानवीय श्रम की आवश्यकता पड़ती है।
5.
पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर पर्याप्त
ध्यान दिया जाता है।
6.
डेरी कृषि का व्यवसाय नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों
के समीपवर्ती भागों में किया जाता है तथा डेरी कृषि से प्राप्त ताजा दूध तथा अन्य
डेरी उत्पादों की खपत इन्हीं नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में हो जाती है।
7.
इस व्यवसाय में विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों
का उपयोग एवं पास्चुरीकरण की सुविधा उपलब्ध रहती है, इसी
कारण इस व्यवसाय से प्राप्त विभिन्न डेरी उत्पादों को दीर्घ समय तक संरक्षित रखा
जा सकता है।
प्रश्न 10. बाजार
के लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बाजार के लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि की विशेषताएँ-बाजार के
लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
1.
इस कृषि के अंतर्गत उन अधिक आर्थिक लाभ प्रदायक कृषि
फसलों (जैसे - सब्जियों, फलों एवं पुष्पों) की खेती की जाती है जिनकी माँग समीपवर्ती नगरीय
क्षेत्रों में होती है।
2.
इस कृषि में अधिक पूँजी तथा गहन श्रम की आवश्यकता
होती है।
3.
इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है तथा इन खेतों
का सीधा सम्पर्क उत्तम यातायात साधनों द्वारा उन समीपवर्ती नगरों से होता है
जिनमें इस कृषि के उत्पादों की खपत होती है।
4.
इस कृषि व्यवसाय में पर्याप्त सिंचाई, उर्वरक,
उत्तम किस्म के बीज एवं कीटनाशी रसायनों का उपयोग किया जाता है। कुछ
कम तापक्रम वाले क्षेत्रों में हरित गृह एवं कृत्रिम ताप का प्रयोग भी इस कृषि में
किया जाता है।
5.
जिन क्षेत्रों में कृषक केवल सब्जियों का उत्पादन
करता है उस कृषक के खेत को ट्रक फार्म कहा जाता है। ट्रक फार्म से बाजार तक की
दूरी, ट्रक दु अधिकतम एक रात में तय की जाती है, इसलिए इस
प्रकार की जाने वाली कृषि टूक कृषि कहलाती है।
6.
पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक
क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अलावा कारखाना कृषि भी की जाती है जिसमें गाय - बैल
जैसे पशुधन तथा मुर्गियों को उच्च तकनीक एवं वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से पालित
किया जाता है तथा इन पालित पशुओं को कारखानों में निर्मित किए जाने वाले पशु आहार
को खिलाया जाता है।
प्रश्न 11. सहकारी
कृषि क्या है? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
सहकारी कृषि किसे कहा जाता है? यह किन -
किन देशों में की जाती है?
उत्तर:
जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि भूमि से अधिक लाभ अर्जित करने के
उद्देश्य से स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करता है तो
उसे सहकारी कृषि कहा जाता है। सहकारी कृषि का एक आन्दोलन के रूप में प्रारम्भ लगभग
एक शताब्दी पूर्व पश्चिमी यूरोप में हुआ तथा डेनमार्क, नीदरलैण्ड,
बेल्जियम, स्वीडन तथा इटली नामक यूरोपियन
देशों में इसे पर्याप्त लोकप्रियता मिली। इन यूरोपियन देशों में से सहकारी कृषि को
सर्वाधिक सफलता डेनमार्क में मिली जहाँ आज प्रत्येक कृषक इसका सदस्य है। सहकारी
कृषि में प्रत्येक सहभागी कृषक की कृषि भूमि यथावत् सुरक्षित रहती है। सहकारी
संस्था का उत्तरदायित्व कृषि में कार्य के लिए आवश्यक सभी चीजों की खरीद करना,
कृषि उत्पादों को उचित मूल्य पर बेचने तथा सस्ती दरों पर प्रसंस्करण
के साधनों को जुटाना होता है।
प्रश्न 12. सामूहिक
कृषि क्या है तथा यह किस प्रकार की जाती है?
अथवा
कोलखहोज कृषि से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
सामूहिक कृषि: ब कृषकों के एक समूह द्वारा अपने संसाधनों को मिलाकर
कृषि कार्य परस्पर सहयोग से किया जाता है तो उसे सामूहिक कृषि कहते हैं। पूर्व
सोवियत संघ में कोलखहोज नाम से प्रारम्भ हुई सामूहिक कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह
है कि इसमें सभी कृषक अपने संसाधन, जैसे-कृषि भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं। प्रत्येक कृषक अपनी दैनिक
आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए कृषि भूमि का एक छोटा-सा भाग अपने अधिकार में रखता
है।
सरकार कृषि उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है तथा कृषि
उत्पादन को निर्धारित मूल्य पर सरकार द्वारा खरीदा जाता है। कृषि उत्पादन का
बँटवारा प्रत्येक कृषक को दिए गए कृषि उत्पादन लक्ष्य तथा वास्तविक उत्पादन के
आधार पर कर दिया जाता है। यद्यपि पूर्व सोवियत संघ में यह पद्धति कृषि उत्पादन में
वृद्धि तथा आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई जिसे अन्य समाजवादी
देशों ने भी अपनाया, लेकिन सोवियत संघ का विघटन होने के बाद
इस प्रकार की कृषि वर्तमान में संशोधित रूप में की जा रही है।
प्रश्न 13. खनन
की विधियों का विवरण संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
खनिज अयस्क की प्रकृति तथा उनकी उपलब्धता की अवस्था के आधार पर खनन
की निम्नलिखित दो विधियाँ होती हैं
1.
धरातलीय खनन या विवृत खनन
2.
भूमिगत खमन या कूपकी खनन।
(i) धरातलीय या
विवृत खनन: एक पान जहाँ मिट्टी और उसके बाहरी आवरण को पहले हटाया जाता है बाद में खनन
करके खनिज या अयस्क को प्राप्त किया जाता है, इसे धरातलीय या विवृत खनन कहा जाता
है। यह खनन की सबसे सस्ती विधि है तथा इसमें बड़े पैमाने पर खनन किया जाता है।
(ii) भूमिगत
खनन या कूपकी खनन: खनन की इस विधि के अंतर्गत खनिजों को प्राप्त करने
के लिए पृथ्वी में गहरा भूमिगत कूपक लम्बवत् रूप में खोदा जाता है जिसमें से
भूमिगत रास्ते प्रायः क्षैतिज व तिर्यक रूप से खनिजों तक पहुँचने के लिए नालियों
रूप में निर्मित किए जाते हैं। खनन की यह विधि महँगी होने के साथ-साथ अनेक जोखिमों
से युक्त होती है।

निबंधात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1. वर्तमान
में कृषि की कौन - कौन सी प्रणालियाँ प्रचलित हैं? विस्तारपूर्वक
बताइए।
उत्तर:
वर्तमान में कृषि की निम्नलिखित प्रणालियाँ प्रचलित हैं
(1) आदिमकालीन
निर्वाह कृषि: इसे स्थानांतरी कृषि या कर्तन एवं दहन कृषि भी कहा
जाता है। वन क्षेत्रों में की जाने वाली इस कृषि में किसी भू-भाग में उस अवधि तक
कृषि की जाती है जब तक उसमें उर्वरा शक्ति बनी रहती है। मृदा की उर्वरा शक्ति के
समाप्त होने पर कृषक नए क्षेत्रों में वनों को जलाकर उस पर कृषि कार्य करता है। यह
प्रक्रिया सतत् रूप से चलती रहती है।
(2) गहन
निर्वाह कृषि: यह कृषि मानसूनी एशिया के सघन बसे देशों में निम्न
दो रूपों में की जाती है.
(i) चावल
प्रधान गहन जीवन निर्वाह कृषि: इस कृषि में चावल प्रमुख फसल होती है। इस कृषि में
प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है। परन्तु प्रति कृषक उत्पादन कम होता है। अधिक
जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है जिसमें कृषक का सम्पूर्ण
परिवार कृषि कार्य में लगा रहता है।
(ii) चावल
रहित गहन जीवन निर्वाह कृषि: मानसूनी एशिया के अनेक भागों में भौगोलिक कारकों की
प्रतिकूलता के कारण चावल के स्थान पर गेहूँ, जौ, ज्वार,
बाजरा आदि बोया जाता है।
(3) रोपण
कृषि: यह
कृषि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में कुछ फसलों की पौध रोपण कर अधिक पूँजी, उच्च तकनीक
व वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से व्यापारिक स्तर पर की जाती है। इस कृषि में
खेतों का आकार बहुत विस्तृत होता है। इस प्रकार की कृषि में बड़े-बड़े बागानों में
चाय, रबड़, गन्ना, केले, नारियल आदि की कृषि की जाती है। ब्राजील में
कॉफी के बागानों को फेजेंडा कहा जाता है।
(4) विस्तृत
वाणिज्य अनाज कृषि: इस प्रकार की कृषि विश्व के मध्य अक्षांशीय
क्षेत्रों के आंतरिक शुष्क प्रदेशों में वृहद् आकार के कृषि फार्मों पर आधुनिक
यंत्रों के माध्यम से की जाती है। इस कृषि की मुख्य फसल गेहूँ है। इस कृषि में
खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है एवं खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य
यंत्रों द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं। इसमें प्रति एकड़ उत्पादन कम परन्तु प्रति
व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।
(5) मिश्रित
कृषि: विश्व
के अत्यधिक विकसित भागों में मध्यम आकार के खेतों में कृषि फसलों की आधुनिक पद्धति
से की जाने वाली कृषि जिसमें पशुपालन का कार्य साथ - साथ किया जाता है। इस प्रकार
की कृषि उत्तर-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग, यूरेशिया
के कुछ भाग, दक्षिणी महाद्वीपों के अधिकांश भागों में की
जाती है। इस प्रकार की कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है। इसमें बोयी जाने
वाली प्रमुख फसलों में गेहूँ, जौ, राई,
जई, मक्का, धान की फसलें
व कंदमूल आदि हैं। इस कृषि में फसल उत्पादन व पशुपालन साथ-साथ किया जाता है। फसलों
के साथ पशुओं जैसे - मवेशी, भेड़, सूअर
व कुक्कुट आय के प्रमुख स्रोत होते हैं।
(6) डेरी
कृषि:
पर्याप्त पूँजी, आधुनिक यंत्र, गहन कृषि तथा आधुनिक पशु स्वास्थ्य
सेवाओं की सहायता से दुधारू पशुओं से व्यावसायिक स्तर पर दुग्ध उत्पादन करने का
कार्य डेरी कृषि के अंतर्गत किया जाता है। इस कृषि में पूँजी की अत्यधिक आवश्यकता
होती है। इस कृषि में पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु
चिकित्सा पर भी ध्यान दिया जाता है। पशुओं को चराने, दूध
निकालने आदि कार्यों के लिए पूरे वर्ष श्रम की आवश्यकता होती है। इस कृषि का कार्य
नगरीय व औद्योगिक केन्द्रों के समीप किया जाता है। डेरी कृषि मुख्य रूप से
उत्तर-पश्चिमी यूरोप, कनाडा, न्यूजीलैण्ड,
दक्षिण-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया व तस्मानिया में की जाती है।
(7) भूमध्य
सागरीय कृषि: विश्व के भूमध्य सागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों में खट्टे रसदार फलों तथा
सब्जियों की कृषि भूमध्य सागरीय कृषि के अंतर्गत शामिल की जाती है। यह एक अति
विशिष्ट प्रकार की कृषि है। इसका विस्तार भूमध्य सागर के समीपवर्ती क्षेत्र जो
दक्षिण यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया से अटलांटिक तट तक फैला है। अंगूर
की कृषि भूमध्य सागरीय कृषि की मुख्य विशेषता है। यह कृषि दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्यवर्ती
चिली, दक्षिण अफ्रीका व ऑस्ट्रेलिया में भी की जाती है।
(8) बाजार के
लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि: इस प्रकार की कृषि में अधिक
आर्थिक लाभ प्रदायक फसलों जैसे सब्जियाँ, फल व पुष्पों की कृषि नगरीय
क्षेत्रों में आपूर्ति के उद्देश्य से की जाती है। इस कृषि में गहन श्रम एवं अधिक
पूँजी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की कृषि उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग व भूमध्य सागरीय प्रदेश में
अधिक विकसित है। जिन प्रदेशों में कृषक केवल सब्जियाँ पैदा करता है वहाँ इसको ट्रक
कृषि के नाम से जाना जाता है।
(9) सहकारी
कृषि: जब
कृषकों के एक समूह द्वारा अपनी स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य किए
जाते हैं तो उसे सहकारी कृषि कहा जाता है। डेनमार्क में इस प्रकार की कृषि को
सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई है।
(10) सामूहिक
कृषि: इस
प्रकार की कृषि में कृषि उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं
सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। रूस में इस कृषि को कोलखहोज अथवा कोलखोज कहा जाता
है। इस कृषि में सभी कृषक अपने संसाधनों, जैसे - भूमि, पशुधन
एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं। ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के
लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते हैं। यह खेती सोवियत संघ में
अधिक की जाती थी। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् इस प्रकार की कृषि में भी संशोधन
किया गया है।
प्रश्न 2. निर्वाह
कृषि के प्रमुख प्रकार बताइए एवं स्थानांतरणशील कृषि क्षेत्रों का विवरण एवं
विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
निर्वाह कृषि-इस प्रकार के कृषि क्षेत्र में रहने वाले लोग स्थानीय
उत्पादों के सम्पूर्ण अथवा अधिकांश भाग का स्वयं उपभोग करते हैं। निर्वाह कृषि को
दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि- आदिकालीन
निर्वाह कृषि को स्थानांतरणशील कृषि भी कहते हैं। यह कृषि कार्य उष्ण कटिबंधीय
क्षेत्रों में किया जाता है। इस कृषि में उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की वनस्पति को
जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। वर्षा ऋतु के उपरान्त
उसमें फसल बोयी जाती है।
5 वर्ष के उपरान्त जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है तो किसान
नवीन क्षेत्रों के वनों को जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करते हैं। वर्तमान में इस
प्रकार की कृषि के क्षेत्रों का विस्तार कम होता जा रहा है। इसे कर्तन एवं दहन कृषि
भी कहा जाता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में स्थानांतरणशील कृषि को अलग - अलग
नामों से जाना जाता है। उत्तरी-पूर्वी भारत में इसे झूमिंग, मध्य
अमेरिका व मैक्सिको में मिल्पा, मलेशिया व इंडोनेशिया में
लादांग आदि नामों से जाना जाता है।
(ii) गहन
निर्वाह कृषि: इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों
में की जाती है। यह कृषि दो प्रकार की होती है
(अ) चावल
प्रधान गहन निर्वाह कृषि: इस प्रकार की कृषि में चावल मुख्य फसल होती है। अधिक
जनसंख्या घनत्व के कारण खेती का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में सम्पूर्ण
परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है। उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं
के गोबर की खाद का उपयोग होता है। इस कृषि में प्रति एकड़ औसत उत्पादन अधिक होता
है लेकिन प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।
(ब) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि:
मानसून एशिया के कई भागों में प्राकृतिक परिस्थितियों की प्रतिकूलता के कारण चावल
उगाना सम्भव नहीं होता है। ऐसे क्षेत्रों में अन्य फसलें बोयी जाती हैं जैसे
उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया व
उत्तरी जापान में गेहूँ, सोयाबीन, जौ व
सोरगम बोया जाता है। भारत में सिन्धु-गंगा के मैदानों में गेहूँ बोया जाता है।
स्थानांतरणशील कृषि क्षेत्र स्थानांतरणशील कृषि कार्य वर्तमान में आदिमजाति के
लोगों द्वारा विश्व के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में किया जाता है जिनमें अफ्रीका,
दक्षिणी अमेरिका, मध्य अमेरिका तथा
दक्षिणी-पूर्वी एशियाई भाग सम्मिलित हैं। इन कृषि क्षेत्रों को आगे दिए गए
मानचित्र में प्रदर्शित किया गया है।
स्थानांतरणशील कृषि की
प्रमुख विशेषताएँ:
1.
इस कृषि पद्धति में वनों को काटकर तथा आग लगाकर कृषि
भूमि प्राप्त की जाती है जिसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इसी
कारण इस कृषि को कर्तन-दहन कृषि भी कहा जाता है।
2.
इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है तथा इनमें
कृषि कार्य पुराने औजारों (जैसे - लकड़ी, कुदाली तथा . फावड़ों) से किया जाता
है।
3.
इस कृषि पद्धति में 3 से 5 वर्ष तक
कृषि भूमि में खेती की जाती है तथा इसके बाद भूमि की उर्वरकता समाप्त होने पर नए
क्षेत्रों में वनों को जलाकर कृषि भूमि प्राप्त की जाती है।
4.
कुछ वर्ष बाद कृषक पुनः पहले वाले कृषि क्षेत्र पर
(उर्वरकता में वृद्धि हो जाने के कारण) वापस कृषि कार्य करने आ जाता है। इस प्रकार
झूम का यह चक्र (आग लगाकर कृषि भूमि तैयार करना) चलता रहता है।

प्रश्न 3. मिश्रित
कृषि की विशेषताओं का वर्णन करते हुए विश्व में मिश्रित कृषि के प्रमुख क्षेत्रों
का सचित्र विवरण दीजिए।
उत्तर:
मिश्रित कृषि: जब फसलों की कृषि के
साथ-साथ पशुपालन आदि सहायक कार्य भी किए जाते हैं तो उसे मिश्रित कृषि के नाम से
जाना जाता है। मिश्रित कृषि में खाद्यान्न व चारा फसलों के साथ-साथ पशुपालन भी
किया जाता है। पशुओं में मवेशी, भेड़, सूअर
व कुक्कुट आदि पाले जाते हैं, जिनके लिए चारा फसलें उगायी
जाती हैं। इस कृषि में गेहूँ, जौ, राई,
मक्का, जई, कंद-मूल व
चारे की फसलें उगायी जाती हैं। इस कृषि में फसल उत्पादन व पशुपालन को समान महत्त्व
दिया जाता है।
मिश्रित कृषि की विशेषताएँ:
मिश्रित कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
1.
इस प्रकार की कृषि में फसल उत्पादन तथा पशुपालन साथ -
साथ किया जाता है।
2.
इस प्रकार की कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है
जिस पर बोई जाने वाली फसलों में गेहूँ, जौ, राई,
मक्का, चारे की फसल तथा कंद - मूल प्रमुख हैं।
वस्तुतः चारे की फसलें मिश्रित कृषि में अनिवार्य रूप से उगायी जाती हैं।
3.
एक ओर जहाँ कृषक कृषि फसलों के उत्पादन से आय प्राप्त
करते हैं, वहीं दूसरी ओर पशुपालन व्यवसाय के अंतर्गत पालित गाय - बैल, सूअर तथा मुर्गीपालन से भी आय प्राप्त होती है।
4.
इस कृषि के अंतर्गत खेतों की मिट्टी के उपजाऊपन को
बनाए रखने लिए विभिन्न फसलों के एक क्रमिक अनुक्रमण का स्वरूप अपनाया जाता है।
5.
इस कृषि के अंतर्गत आधुनिक कृषि यंत्रों एवं रासायनिक
तथा वनस्पति खाद के गहन उपयोग पर अधिक पूँजी व्यय की जाती है।
6.
इस कृषि में कृषक कृषि कार्यों में अति निपुणता रखते
हैं।
7.
इस प्रकार की कृषि में कृषि के वैज्ञानिक स्वरूप का
प्रयोग किया जाता है। विश्व में मिश्रित कृषि के प्रमुख क्षेत्र-विश्व में मिश्रित
कृषि के क्षेत्रों को नीचे दिए गए मानचित्र में प्रदर्शित किया गया है

यह कृषि विश्व के निम्नलिखित
समशीतोष्ण जलवायु वाले अत्यधिक विकसित क्षेत्रों में की जाती है:
1.
उत्तरी - पश्चिमी यूरोप।
2.
उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग।
3.
यूरेशिया में पूर्वी यूरोप, दक्षिणी
यूरोप तथा साइबेरिया के दक्षिणी भाग।
4.
दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका के कुछ दक्षिणी तटीय
क्षेत्र।
प्रश्न 4. गहन
निर्वाह कृषि व विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की तुलना निम्न बिन्दुओं के आधार पर
कीजिए।
(i) क्षेत्र
(ii) विधि / प्रक्रिया
(iii) उपजें।
उत्तर:
कृषि का अर्थ: मृदा को जोतने, फसलें उगाने,
पशुओं के पालन - पोषण व बागवानी करने के विज्ञान एवं कला को कृषि
कहते हैं। विकासशील देशों में कृषि प्रमुख व्यवसाय है। विश्व में पाई जाने वाली
विभिन्न भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ कृषि को प्रभावित
करती हैं। कृषि की कई प्रणालियाँ पायी जाती हैं।
|
क्रम
सं. |
गहन
निर्वाह कृषि |
विस्तृत
वाणिज्य कृषि |
|
(i) क्षेत्र |
यह
कृषि मुख्य रूप से मानसून एशिया के घने बसे देशों यथा भारत, बांग्लादेश,
म्यांमार, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, थाइलैण्ड, चीन,
पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया, जापान आदि में की जाती है। |
यह
कृषि मुख्य रूप से शीतोष्ण घास के मैदानों वाले देर्शों यथा कनाड़ा, संयुक्त
राज्य अमेरिका, ब्राजील, रूस,
अर्जेन्टाइना, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, मैक्सिको
आदि में की जाती है। इस प्रकार की कृषि विस्तृत भू-जोतों पर की जाती है। |
|
(ii)
विधि/प्रक्रिया |
गहन-निर्वाह
कृषि दो प्रकार से की जाती है (अ) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि (ब) गेहूँ प्रधान गहन निर्वाह कृषि चावल
प्रधान गहन निर्वाह कृषि में चावल मुख्य फसल होती है जबकि गेहूँ प्रधान गहन
निर्वाह कृषि में गेहूँ की फसल मुख्य फसल होती है। गहन निर्वाह कृषि से संबंधित
देशों में अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता और कृषक का
सम्पूर्ण परिवार कृषि कार्यों में संलग्न रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है। इसलिए
इस कृषि में यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व होता
है। खेतों में उपजाऊपन बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद डाली जाती है।
सिंचाई सुविधाओं का विस्तार होने से फसल चक्र का अनुसरण किया जाता है। |
इनका
क्षेत्रफल प्राय: 240 से 1600 हेक्टेयर तक होता है। इसमें खेत जोतने से
फसल काटने तक का समस्त कार्य मशीनों के द्वारा |किया जाता
है। इस कृषि की मुख्य फसल गेहूँ है। जई, राई, तिलहन आदि फसलें भी बोयी जाती हैं मानवीय श्रम का न्यूनतम उपयोग होता है
तथा यंत्रों, रासायनिक खादों, सिंचाई
व संकर बीजों का उपयोग इस प्रकार की कृषि में अधिक होता है। इसमें प्रति
हेक्टेयर उत्पादन कम किन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है। निरंतर
जनसंख्या वृद्धि के कारण इन कृषि क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र निरन्तर घट रहा है। |
|
(iii)
उपजें |
इस
प्रकार की कृषि में चावल और गेहूँ मुख्य उपजें हैं, लेकिन
बाजरा, ज्वार, जौ, सोयाबीन आदि भी उगाई जाती हैं। |
इस
प्रकार की कृषि में गेहूँ मुख्य फसल है। इसके अतिरिक्त जौ, मक्का,
राई, जई व तिलहन आदि भी उगाई जाती है। |
प्रश्न 5. विश्व
में डेरी कृषि एवं बाजार के लिए सब्जी की खेती व उद्यान कृषि को विस्तार से बताइए।
उत्तर:
डेरी कृषि: दूध एवं दूध से बने पदार्थ
जैसे मक्खन, पनीर, पाउडर, दूध, दही आदि के लिए दुधारू पशुओं व अन्य पशुओं को
पालने के व्यवसाय को डेरी कृषि के नाम से जाना जाता है।
विश्व में डेरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ-विश्व में किए जाने वाली डेरी कृषि व्यवसाय की निम्नलिखित विशेषताएँ
सर्वप्रमुख हैं
1.
इस व्यवसाय में सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष तकनीक की
सहायता से दुधारू पशुओं का वाणिज्यिक स्तर पर पालन किया जाता है।
2.
इस व्यवसाय में गहन मानवीय श्रम तथा पर्याप्त पूँजी
की आवश्यकता होती है।
3.
पालित पशुओं के आवास, चारा - भण्डारण तथा दुग्ध उत्पादन
में प्रयुक्त यंत्रों पर पर्याप्त पूँजी व्यय की जाती है।
4.
पालित पशुओं के पालन व दुग्ध उत्पादन के लिए
वर्षपर्यन्त मानवीय श्रम की आवश्यकता पड़ती है।
5.
पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर पर्याप्त
ध्यान दिया जाता है।
6.
डेरी कृषि का व्यवसाय नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों
के समीपवर्ती भागों में किया जाता है तथा डेरी कृषि से प्राप्त ताजा दूध तथा अन्य
डेरी उत्पाद की खपत इन्हीं नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में हो जाती है।
7.
इस व्यवसाय में विकसित यातायात के साधनों, प्रशीतकों
का उपयोग तथा पास्चुरीकरण की सुविधा उपलब्ध रहती है। इसी कारण इस व्यवसाय से
प्राप्त विभिन्न डेरी उत्पादों को दीर्घ समय तक संरक्षित रखा जा सकता है। प्राथमिक
क्रियाएँ 3101 विश्व में डेरी कृषि के प्रमुख क्षेत्र विश्व
में डेरी कृषि के प्रमुख क्षेत्रों को नीचे दिए गए विश्व मानचित्र पर प्रदर्शित
किया गया है।

मानचित्र - विश्व में डेरी कृषि के
क्षेत्र मानचित्र से स्पष्ट है कि विश्व में वाणिज्य स्तर के डेरी कृषि के
निम्नलिखित क्षेत्र हैं
1.
उत्तरी - पश्चिमी यूरोप।
2.
कनाडा का दक्षिणी - पूर्वी भाग।
3.
दक्षिणी - पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, तस्मानिया
तथा न्यूजीलैण्ड।
बाजार के लिए सब्जी की खेती
व उद्यान कृषि: इस प्रकार की कृषि उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, संयुक्त
राज्य अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग व भूमध्य सागरीय प्रदेश में अधिक विकसित है।
बाजार के लिए सब्जी की खेती एवं उद्यान कृषि की विशेषताएँ-बाजार के लिए सब्जी की
खेती एवं उद्यान कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
1.
इस कृषि के अंतर्गत अधिक आर्थिक लाभ प्रदान करने वाली कृषि फसलों जैसे
सब्जियों, फलों एवं पुष्पों की खेती की जाती है जिनकी माँग
समीपवर्ती नगरीय क्षेत्रों में अधिक होती है।
2.
इस कृषि में अधिक पूँजी तथा गहन श्रम की आवश्यकता
होती है।
3.
इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है तथा इन खेतों
का सीधा सम्पर्क उत्तम यातायात के साधनों द्वारा उनके समीपवर्ती नगरों से होता है
जिनमें इस कृषि के उत्पादों की खपत होती है।
4.
इस कृषि व्यवसाय में पर्याप्त सिंचाई, उर्वरक,
उत्तम किस्म के बीज एवं कीटनाशी रसायनों का उपयोग किया जाता है। कुछ
कम तापमान वाले क्षेत्रों में हरित गृह एवं कृत्रिम ताप का प्रयोग भी इस प्रकार की
कृषि में किया जाता है।
5.
जिन क्षेत्रों में कृषक केवल सब्जियों का उत्पादन
करते हैं, उन कृषकों के खेत को ट्रक फार्म कहा जाता है। ट्रक फार्म से बाजार तक की
दूरी, ट्रक द्वारा अधिकतम एक रात में तय की जाती है इसलिए इस
प्रकार की जाने वाली कृषि ट्रक कृषि कहलाती है।
6.
पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक
क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अलावा कारखाना कृषि भी की जाती है जिसमें गाय - बैल
जैसे पशुधन तथा मुर्गियों को उच्च तकनीक एवं वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से पाला
जाता है तथा इन पालित पशुओं को कारखानों में निर्मित किए जाने वाले पशु आहार को
खिलाया जाता है।
विश्व में बाजार के लिए
सब्जी खेती व उद्यान कृषि के प्रमुख क्षेत्र-यह कृषि विश्व के निम्नलिखित
क्षेत्रों में विकसित अवस्था में मिलती है
1.
उत्तरी - पश्चिमी यूरोप
2.
संयुक्त राज्य अमेरिका का उत्तरी - पूर्वी भाग
3.
विश्व के भूमध्य सागरीय जलवायु वाले क्षेत्र।
प्रश्न 6. सहकारी
कृषि एवं सामूहिक कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सहकारी कृषि एवं सामूहिक कृषि में निम्नलिखित अंतर है
|
सहकारी
कृषि |
सामूहिक
कृषि |
|
(i) जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से
एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करता है उसे सहकारी कृषि कहते हैं। |
(i) जब कृषकों के एक समूह द्वारा अपने संसाधनों जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम आदि को मिलाकर कृषि कार्य परस्पर सहयोग से किया जाता है
तो उसे सामूहिक कृषि कहते हैं। |
|
(ii)
इस कृषि पद्धति में व्यक्तिगत कृषि अक्षुण्ण रहते हुए सहकारी रूप
में कृषि की जाती है। |
(ii)
यह कृषि इस सिद्धांत पर आधारित है कि उत्पादन के साधनों पर
सम्पूर्ण समाज का अधिकार होता है तथा श्रम सामूहिक रूप से प्रदान किया जाता है। |
|
(iii)
सहकारी संस्था किसानों को समस्त प्रकार से सहायता प्रदान करती है।
यह सहायता कृषि कार्य में काम आने वाली समस्त वस्तुओं की खरीद करने, कृषि उत्पाद को उचित मूल्य पर बेचने एवं सस्ती दरों पर प्रसंस्करण के
साधनों को जुटाने के लिए होती है। |
(iii)
इस प्रकार की कृषि में सभी किसान अपने संसाधनों जैसे- भूमि,
पशुधन, श्रम आदि को मिलाकर कृषि कार्य करते
हैं। स्वयं की पूर्ति के लिए भूमि का एक छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते
हैं। इस कृषि में सरकार का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। सरकार उत्पादन का
वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है| तथा कृषि उपजों को
निर्धारित मूल्यों पर खरीदती है। यदि उपज लक्ष्य से अधिक होती है, तो उसे समस्त सदस्यों में बाँट दिया जाता है अथवा उसे बाजार में बेचकर
धन कमाया जाता है। |
|
(iv)
सभी सदस्यों में लाभ को बराबर-बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। |
(iv)
सभी सदस्यों को उनके द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति के आधार पर
भुगतान किया जाता है। असाधारण कार्य करने वाले सदस्य को नकद या माल
के रूप में पुरस्कृत किया जाता है। |
|
(v) सहकारी आन्दोलन एक शताब्दी पूर्व प्रारम्भ हुआ। इस आन्दोलन को सर्वाधिक
सफलता पश्चिमी यूरोप में प्राप्त हुई। डेनमार्क, नीदरलैण्ड,
बेल्जियम, स्वीडन, रूस,
इटली में यह सफलतापूर्वक सचालित किया जा रहा है। इस आन्दोलन को
सर्वाधिक सफलता डेनमार्क में प्राप्त हुई, जहाँ प्रत्येक
कृषक इसका सदस्य है। |
(v) इस कृषि को पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सरकार ने प्रारम्भ किया था
जिसे अन्य समाजवादी देशों ने अपनाया। इसे सोवियत संघ में 'कोलखहोज'
का नाम दिया गया। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् इस प्रकार की
कृषि में भी परिवर्तन हो गया है। |
प्रश्न 7. खनन
के विकास एवं विधियों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
खनन का विकास एवं खनन कार्य प्रभावित करने वाले कारकों का
विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खनन: पृथ्वी से वाणिज्यिक दृष्टि से
बहुमूल्य खनिजों की प्राप्ति से जुड़ी आर्थिक क्रिया को खनन कहा जाता है।
खनन का विकास - खनन कार्य मानव के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक
है। खनिजों का मानव सभ्यता के विकास में इतना अधिक महत्त्व है कि इतिहास के कई
युगों का नामकरण खनिजों के अनुसार हुआ है। जैसे - ताम्रयुग, कांस्ययुग
एवं लौहयुग आदि। खनन का वास्तविक विकास औद्योगिक क्रांति के पश्चात् ही सम्भव हुआ
है। आज खनिजों के बिना उद्योगों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्राचीनकाल से आज
तक खनन का निरन्तर महत्त्व बढ़ता जा रहा है।
खनन कार्य को प्रभावित करने
वाले कारक-खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं।
1.
भौतिक कारक: खनन को प्रभावित करने वाले
भौतिक कारकों में खनिज निक्षेपों के आकार, प्रकार एवं उपलब्धता की अवस्था आदि
को सम्मिलित करते हैं।
2.
आर्थिक कारक: इन कारकों में खनिज की माँग, विद्यमान
तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए
उपलब्ध पूँजी तथा यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय सम्मिलित किया जाता है।
खनन की विधियाँ सामान्यतः खनन के लिए दो विधियाँ
अपनायी जाती हैं जो खनिज की उपलब्धता अवस्था एवं अयस्क की प्रकृति पर आधारित हैं।
1. धरातलीय
खनन विधि: खनन की इस विधि को विवृत खनन के नाम से भी जाना जाता है। इस विधि को उन
खनिजों के खनन के लिए प्रयोग किया जाता है जो धरातल के निकट ही कम गहराई पर पाए
जाते हैं। यह सबसे सस्ती विधि है क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक उपायों एवं
उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता
है।
2. भूमिगत खनन
विधि: खनन
की इस विधि को कूपकी खनन के नाम से भी जाना जाता है। यह विधि उन खनिजों के खनन के
लिए प्रयोग में ली जाती है जो धरातल में गहराई पर पाए जाते हैं। इस विधि में
लम्बवत् कूपक गहराई पर स्थित होते हैं, जहाँ से भूमिगत नालियाँ खनिजों तक
पहुँचने के लिए फैली होती हैं।
इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया
जाता है। खनन में कार्य करने वाले श्रमिकों एवं निकाले जाने वाले खनिजों के
सुरक्षित और प्रभावी आवागमन हेतु इसमें विभिन्न प्रकार की लिफ्ट, बेधक (बरमा), माल ढोने की गाड़ियों व वायु संचार
प्रणाली की आवश्यकता होती है। खनन की यह विधि जोखिम भरी है, क्योंकि
जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएँ होने
का भय बना रहता है।

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